42 वर्षीय इंदरजीत कौर अकसर बीमार रहती थी. तमाम डाक्टरों से उस का इलाज चला, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ. उस के पिता हरवंश सिंह एक सरकारी मुलाजिम थे. बेटी को ले कर वह बड़ा परेशान रहते थे. इंदरजीत कौर के अलावा उन के 2 बेटे भी थे.

हरवंश सिंह दक्षिणी दिल्ली के नेहरूनगर में परिवार के साथ रहते थे. छोटा परिवार होने के बावजूद वह हमेशा परेशान रहते थे. उन की यह परेशानी बेटी इंदरजीत कौर को ले कर थी. अब तक शादी के बाद उसे ससुराल में होना चाहिए था, लेकिन बीमारी की वजह से उस की शादी नहीं हो पाई थी. इस के अलावा दूसरी परेशानी बड़े बेटे को ले कर थी, जो शादी के 8 सालों बाद भी बाप नहीं बन पाया था. तीसरी परेशानी छोटे बेटे को ले कर थी, जो अभी तक बेरोजगार था.

इंदरजीत कौर पिता को अकसर समझाती रहती थी कि वह चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा. लेकिन वह ङ्क्षचता से उबर नहीं पा रहे थे. परिवार की जिम्मेदारी एक तरह से इंदरजीत ही संभाले थी. हरवंश सिंह सेवानिवृत्त हुए तो फंड के उन्हें जो 15 लाख रुपए मिले, उन में से 12 लाख रुपए उन्होंने इंद्रजीत के नाम जमा करा दिए थे. इस पर बेटों ने कोई ऐतराज नहीं किया था.

रिटायर होने के कुछ ही महीने बाद हरवंश सिंह की मौत हो गई थी. उन के मरने के 4 महीने बाद ही उन की पत्नी की भी मौत हो गई. 4 महीने में ही मांबाप दोनों की मौत हो जाने से इंदरजीत को गहरा सदमा लगा था. उन के मरने के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी उसी पर आ पड़ी थी.

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