रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा – भाग 4

मांबाप के कत्ल की ठीक तारीख तो उदयन नहीं बता पाया, पर उस ने बताया कि यह कोई 5-6 साल पहले की बात है. उस दिन बारिश हो रही थी. पापा चिकन लेने बाजार गए थे और मम्मी कमरे में अलमारी में कपड़े रख रही थीं. हत्या के 2 हफ्ते पहले उस ने एक इंगलिश चैनल पर ‘वाकिंग डैथ’ नामक सीरियल देख कर मातापिता की हत्या की योजना बनाई थी. हत्या के दिन उदयन ने सुंदरनगर के ही गायत्री मैडिकल स्टोर्स से नींद की गोलियां खरीद ली थीं.

अलमारी में कपड़े सहेज कर रखती इंद्राणी को उदयन ने धक्का दे कर पलंग पर ढकेल दिया. इंद्राणी की बूढ़ी हड्डियों में दम नहीं था, वह अपने हट्टेकट्टे बेटे का ज्यादा विरोध नहीं कर पाईं. कुछ ही देर में उदयन ने उन का गला घोंट दिया.

लगभग आधे घंटे बाद बी.के. दास चिकन ले कर घर आए और इंद्राणी के बारे में पूछा तो उदयन ने सहज भाव से उन्हें बताया कि मां ऊपर कपड़े रख रही हैं. इस बात से संतुष्ट हो कर उन्होंने उदयन से चाय बनाने को कहा तो वह चाय बना लाया और उन के कप में नींद की 5 गोलियां मिला दीं.

चाय पीने के बाद बी.के. दास नींद की आगोश में चले गए तो उदयन ने उन की गला घोंट कर हत्या कर दी. अब समस्या लाशों को ठिकाने लगाने की थी. उन दिनों सुंदरनगर इलाके में कंस्ट्रक्शन का काम जोरों पर चल रहा था. उदयन ने बगल में काम करने वाले एक मजदूर को बुलाया और लौन के दोनों कोनों में गड्ढे खुदवा लिए. देर रात उस ने अपने जन्मदाताओं की लाशें घसीट कर गड्डों में डालीं और उन्हें हमेशा के लिए दफना दिया.

इस के बाद किसी ने बी.के. दास और उन की पत्नी इंद्राणी दास को नहीं देखा और न ही उन के बारे में कोई पूछने वाला था. उदयन की मौसी प्रिया चटर्जी ने जरूर एकाध बार उस के घर आ कर पूछा तो उदयन ने उन्हें टरकाऊ जवाब दे दिया.

भोपाल पुलिस उदयन को ले कर राजधानी एक्सप्रैस से 6 फरवरी को करीब 11 बजे रायपुर पहुंची और सुंदरनगर जा कर उस लौन की खुदाई शुरू करवा दी, जहां उदयन ने अपने मांबाप की कब्र बनाई थी. 3 घंटे की खुदाई के बाद लगभग 6 फुट नीचे से दोनों की खोपडि़यां निकलीं. साथ ही इंद्राणी के कपड़े, सोने की 4 चूडि़यां, चेन, एक ताबीज और बी.के. दास की पैंटशर्ट, बेल्ट और ताबीज भी कब्रों से मिले.

इस बंगले के मौजूदा मालिक हरीश पांडेय हैं, जो खुदाई होते वक्त वहां मौजूद थे. उन्होंने यह मकान उदयन से सुरेंद्र दुआ नाम के ब्रोकर के जरिए खरीदा था. 1800 वर्गफीट पर बने इस मकान का सौदा 30 लाख रुपए में हुआ था जोकि उन्हें सस्ता लगा था. हरीश ने जब यह मकान खरीदा था तब यहां बगीचा नहीं था, बल्कि खाली जमीन थी, जिस पर उन्होंने काली मिट्टी डाल कर गार्डन बनवा लिया था. उस वक्त उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उदयन के मांबाप की कब्रें यहां बनी हुई हैं.

दोपहर ढाई बजे तक खुदाई का काम पूरा हो गया और सारे सबूत मिल गए. रायपुर पुलिस ने उदयन के खिलाफ मांबाप की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. उदयन अब चर्चा के साथसाथ शोध का भी विषय बन गया था. 3 राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल की पुलिस ने उस के खिलाफ हत्या, अपहरण व धोखाधड़ी जैसे दरजन भर मामले दर्ज किए हैं. रायपुर से उसे बांकुरा पुलिस बंगाल ले गई, फिर उसे वापस रायपुर लाया गया. जाहिर है, सब कुछ साफ होने तक उदयन रिमांड पर भोपाल, रायपुर और कोलकाता के बीच झूलता रहेगा.

7 फरवरी को जब उसे बांकुरा पुलिस ने सीजेएम अरुण कुमार नंदी की अदालत में पेश किया गया तो वहां गणतंत्र समनाधिकार नारी मुक्ति ने विरोध प्रदर्शन करते हुए उस पर पत्थर बरसाए. उदयन की कहानी खत्म सी हो गई है, पर जिज्ञासाएं और सवाल अभी भी बाकी हैं, जिन में से कुछ के जवाब मिल गए हैं और कुछ के मिलना शेष हैं.

अपनी मां इंद्राणी का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए उस ने 8 फरवरी, 2013 को इटारसी नगर पालिका में रजिस्ट्रेशन फार्म भरा था. इस में उस ने मां की मौत 3 फरवरी, 2013 को 66 वर्ष की उम्र में होना लिखा था. इंद्राणी का स्थाई पता उस ने रायपुर का ही लिखाया था और अस्थाई पता द्वारा हेलिना दास, गांधीनगर, इटारसी लिखवाया था. इस आधार पर उसे इंद्राणी का डेथ सर्टिफिकेट मिल गया था जबकि पिता बी.के. दास का मृत्यु प्रमाणपत्र उस ने इंदौर जा कर बनवाया था.

जल्द ही साबित हो गया कि उदयन अव्वल दरजे का खुराफाती और चालाक शख्स भी था जो संयुक्त खाते से अपनी मां की पेंशन निकाल रहा था. इस बारे में फेडरल बैंक के कुछ अधिकारी शक के दायरे में हैं. इंद्राणी पेंशनभोगी कर्मचारी थीं. हर पेंशनभोगी को साल में एक बार अपने जीवित होने का प्रमाणपत्र बैंक को देना होता है. आमतौर पर पेंशनधारी खुद बैंक जा कर अपने जीवित होने का प्रमाण दे कर आते हैं.

अस्वस्थता, नि:शक्तता या किसी दूसरी वजह से बैंक जाने में असमर्थ पेंशनर्स को डाक्टरी हेल्थ सर्टिफिकेट देना पड़ता है. कैसे हर साल उदयन अपनी मां के जीवित होने का प्रमाणपत्र बैंक को दे रहा था, यह गुत्थी अभी पूरी तरह नहीं सुलझी है. लेकिन साफ दिख रहा है कि उदयन से किसी बैंक कर्मचारी की मिलीभगत थी.

हालांकि जनवरी 2012 में उस ने मां के जीवित होने का प्रमाण पत्र डिफेंस कालोनी, दिल्ली के डाक्टर एस.के. सूरी से लिया था, जिस की जांच ये पंक्तियां लिखे जाने तक चल रही थीं. अगर शुरू में ही फेडरल बैंक कर्मचारियों ने सख्ती बरती होती तो इंद्राणी की मौत का राज वक्त रहते खुल जाता.

सब कुछ साफ होने के बाद यह भी उजागर हुआ कि उदयन मांबाप की हत्या के बाद अय्याश हो गया था. नशे के साथसाथ उसे अलगअलग लड़कियों से सैक्स करने की लत भी लग गई थी. अपनी हवस बुझाने के लिए वह कालगर्ल्स के पास भी जाता था या फिर उन्हें होटलों में बुला कर ऐश करता था. फेसबुक पर उस के सौ से भी ज्यादा एकाउंट थे, जिन की प्रोफाइल में खुद को वह बड़ा कारोबारी बता कर लड़कियों को फांसता था.

उदयन की एकदो नहीं, बल्कि 40 गर्लफ्रैंड थीं जो उस की हवस पूरी करने के काम आती थीं. इन में कई अच्छे घरों की लड़कियां भी शामिल थीं. उदयन का प्यार दिखावा भर होता था. साल छह महीने में ही एक लड़की से उस का जी भर जाता था और उसे वह बासी लगने लगती थी. फिर किसी न किसी बहाने वह उसे छोड़ देता था. अभी तक 14 ऐसी लड़कियों की पहचान हो चुकी है, जिन के उदयन के साथ अंतरंग संबंध थे. 2 गायब युवतियों को पुलिस ढूंढ रही है, शक यह है कि कहीं उदयन ने इसी तर्ज पर और भी कत्ल तो नहीं किए.

शराब और ड्रग्स के आदी उदयन ने मांबाप का पैसा जम कर अय्याशियों में उड़ाया. ऐसा मामला पहले न मनोवैज्ञानिकों ने देखा है, न ही वकीलों ने और न ही उन पुलिस वालों ने जिन का वास्ता कई अनूठे अपराधियों से पड़ता है. सब के सब उदयन दास की हकीकत जान कर हैरान हैं.

दास दंपति ने हाड़तोड़ मेहनत कर के जो पैसा कमाया था. शायद यह सोच कर कि बुढ़ापा आराम से बेटेबहू और पोते के साथ गुजरेगा. लेकिन उसी बेटे ने उन का बेरहमी से अर्पणतर्पण कर डाला और उन की अस्थियां तक लेने से मना कर दिया.

उदयन की परवरिश का मामला एक गंभीर विषय है जिस पर काफी सोचसमझ कर बोलने और सोचने की जरूरत है, क्योंकि हत्या जैसे संगीन जुर्म की वजह बचपन के एकाकीपन, किशोरावस्था की हिंसा और युवावस्था की क्रूरता को नहीं ठहराया जा सकता.

 

60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला बहरूपिया – भाग 3

इस तरह 2-3 दिन और अगले सप्ताह करतेकरते 3 माह बीत गए. कभी कोरोना तो औफिस के काम की व्यस्तता बताता हुआ स्वैन उस से वादे करता रहा. इस दौरान उसे स्वैन के बारे में बहुत कुछ पता चल गया था. घर के सारे खर्च का भार उस के ऊपर ही आ गया था. नौकरानी के वेतन से ले कर दूसरे खर्चे तक वही वहन कर रही थी. अवंतिका काफी तनाव में आ गई थी. परेशान रहने लगी थी.

स्वैन से जब भी फोन पर बातें होतीं तो सौरी बोलते हुए काम की व्यस्तता का बहाना  बना देता  था. एक बार उस ने खुद फ्लाइट से बेंगलुरु आने की बात कही तब उस ने मना कर दिया. बोला कि वह वहां गेस्टहाउस में रहता है. अस्थाई ठिकाना है. जब अपना फ्लैट ले लेगा तब बुला लेगा.

पति की सच्चाई जानकर हो गई हैरान

इस बीच अवंतिका के दिमाग में वाइफ डाक्टर और वाइफ टीचर शब्द भी घूमते रहे. उस का संदेह गहरा गया. एक रोज नौकरानी को विश्वास में ले कर पूछ बैठी. नौकरानी ने दबी जुबान में बताया कि उस की पहले से भुवनेश्वर में 2 शादियां हो चुकी हैं. वह वहां किस इलाके में रहती हैं, उसे नहीं मालूम. यह सुन कर अवंतिका को लगा जैसे उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई हो.

अगली बार जब स्वैन आया तब उस ने बेंगलुरु जाने की जिद पकड़ ली. साथ ही अपने मायके जबलपुर चलने के लिए जोर दिया. उस ने कहा कि वह अपने परिवार के सामने वैदिक रीति और विधिविधान से शादी की रस्में करना चाहती है. उस के परिवार वाले उसे तभी स्वीकार कर पाएंगे जब वे शादी की रस्मों में शामिल होंगे.

इस बात को ले कर उन के बीच तूतूमैंमैं होने लगी. किसी तरह से मामला शांत हुआ, लेकिन आए दिन झगड़े होने लगे. अवंतिका समझ गई थी उस के साथ धोखा हुआ है. उस ने स्वैन के बारे में और जानकारियां जुटानी शुरू कीं. संयोग से उसे आधा दरजन ऐसी महिलाओं के फोन नंबर मिल गए, जो स्वैन के मोबाइल में वाइफ बेंगलुरु, वाइफ टीचर, वाइफ दिल्ली, वाइफ आईटीबीपी आदि के नाम से सेव थे.

उस ने सभी का वाट्सऐप ग्रुप बना लिया. उन से स्वैन के बारे में बातें शेयर होने लगीं. जल्द ही स्वैन की पोल खुल गई. उस के कारनामों के बारे में मालूम हो गया कि वह कई महिलाओं को झांसा दे कर शादियां कर चुका था. सभी को केंद्र सरकार का एक बड़ा अफसर बताया था. साथ ही अवंतिका को यह भी पता चल गया कि जिसे वह डा. विधु प्रकाश स्वैन समझ रही थी, वह वास्तव में रमेश चंद्र स्वैन था. उस के अन्य नाम डा. रमानी रंजन स्वैन और डा. विजयश्री स्वैन भी था. सभी में सरनेम स्वैन ही था.

स्वैन के खिलाफ दर्ज हुई शिकायत

अवंतिका के सिर से पानी ऊपर जा चुका था. उस ने देरी किए बगैर अक्तूबर 2020 में भुवनेश्वर के एक थाने में  स्वैन के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दी. शिकायत में उन सभी महिलाओं की भी चर्चा की, जो अलगअलग राज्यों की थीं और उस के द्वारा ठगी जा चुकी थी.

शिकायत में शादी के नाम पर उन से देहज में मोटी रकम लिए जाने की बात लिखी. शिकायत के अनुसार स्वैन ने अलगअलग बहाने बना कर भी पैसे मांगे थे. जैसे आईटीबीपी पत्नी से उस ने कुछ अर्जेंसी के बहाने से 10 लाख रुपए मांगे थे. वह अकसर अपनी पत्नी से स्टाफ को 1-2 लाख रुपए पेमेंट करने के लिए कहता था, या फिर अकाउंट में ट्रांसफर करने को बोलता था.

भुवनेश्वर पुलिस ने रमेश चंद्र स्वैन के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 (ए), 419, 468, 471 और 494 के तहत मामला दर्ज कर लिया था. जबकि वह गिरफ्त में नहीं आ पाया था. भुवनेश्वर की पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी गई थी. रमेश को शायद इस बात की भनक लग गई थी, इसलिए उस ने अपना मोबाइल नंबर बदल लिया था. वह भुवनेश्वर से फरार हो गया था.

पुलिस को तलाशी के सिलसिले में मालूम हुआ था कि वह गुवाहाटी में रहने वाली अपनी एक और पत्नी के साथ रह रहा है. 7 महीने बाद रमेश मामले के ठंडा होने की उम्मीद के साथ भुवनेश्वर वापस आ गया था.

इसी बीच दिल्ली वाली पत्नी भी सक्रिय हो चुकी थी. उस ने भुवनेश्वर में ही अपने मुखबिर लगा रखे थे. उसे जैसे ही मालूम हुआ कि रमेश अपने भुवनेश्वर के खंडगिरी वाले फ्लैट में वापस आ चुका है, तुरंत इस की सूचना भुवनेश्वर पुलिस को दे दी. उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने वाली महिलाओं में मध्यप्रदेश की महिला के अलावा दिल्ली की 48 वर्षीया स्कूल टीचर भी थी.

दिल्ली की टीचर ने उस के खिलाफ मई 2021 में ओडिशा के भुवनेश्वर और कटक के कमिश्नरेट पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. उस ने भी शिकायत में लिखा था कि स्वैन ने कई शादियां की हैं और उस से दहेज के नाम पर 13 लाख रुपए ठगे थे. उस की शादी 29 जुलाई, 2018 को दिल्ली के एक आर्य समाज मंदिर में हुई थी. भुवनेश्वर की यात्रा के दौरान उसे स्वैन की एक नौकरानी से पता चला कि उस की पहले से ही वहां 2 पत्नियां रह रही हैं.

इस शिकायत पर पुलिस ने स्वैन के फोन नंबर से पता लगाया कि उस के कई पते हैं और हर पते पर पाया गया कि उस की एक पत्नी रहती है. उस के बारे में यह भी मालूम हुआ कि वह अकसर यात्रा पर रहता था. जहां उस की पहली शादी हुई थी और जिस से उस के बच्चे थे वहां कभीकभार ही आता था. पुलिस ने उस के फोन को ट्रैक कर के उस के ठिकाने का पता लगा लिया था.

भुवनेश्वर पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए चकमा दे कर भागने वाले रमेश चंद्र स्वैन को गिरफ्तार कर लिया. बताते हैं कि उस रोज वह 19वीं शादी करने वाला था. उस की गिरफ्तारी वेलेंटाइन डे की पूर्व संध्या पर 13 फरवरी की देर रात भुवनेश्वर के केंद्रपाड़ा में सिंघला गांव से हुई. उस दिन वह भुवनेश्वर में शनि मंदिर के दर्शन करने के लिए गया था.

इस मामले की जांच के लिए एक टास्क फोर्स गठित की गई थी. उस के पास से 13 क्रेडिट कार्ड, 4 आधार कार्ड, चार पैन कार्ड, अलगअलग नामों वाले अशोक चिन्ह लोगो के साथ विजिटिंग कार्ड बरामद किए गए. अगले रोज उसे कोर्ट में पेश किया. वहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा – भाग 3

उदयन के पड़ोसियों की नजर में वह अजीबोगरीब यानी असामान्य व्यक्ति था, जो खुद को दुनिया से छिपा कर रखना चाहता था. दरअसल, वह अपनी बुनी एक काल्पनिक दुनिया में रहता था और उसे ही सच मान बैठा था. यानी व्यवहारिकता से उस का कोई सरोकार नहीं रह गया था. सुबहसुबह जब साकेतनगर में रहने वाले संभ्रांत और धनाढ्य लोगों के घरों से नाश्ता बनने की खुशबू आती थी, तब उदयन के घर से गांजे की गंध आ रही होती थी.

उदयन की कोई नियमित या तयशुदा दिनचर्या नहीं थी. वह अकसर शराब के नशे में धुत रहता था. पड़ोसियों के लिए वह एक रहस्य था. कभीकभार बात भी करता था तो खुद को इंटेलीजेंस ब्यूरो का अफसर बताता था. साथ ही जल्द ही अमेरिका शिफ्ट होने की बात भी करता था.

वह ऐसा शायद इसलिए करता था कि लोग उस की शाही जिंदगी के बारे में ज्यादा सिर न खपाएं. महंगी कारों का मालिक उदयन कभीकभार आटोरिक्शा में भी आताजाता दिखता था और रिक्शाचालक को 25-30 रुपए की जगह 500 रुपए थमा दिया करता था. नजदीक की दुकान से वह मैगी दूध बिस्किट जैसे आइटम लाता रहता था और दुकानदार को एकमुश्त भुगतान करता था.

पुलिस वालों ने जब उस के मांबाप के बारे में पूछा तो वह खामोश रहा. इस खामोशी में एक और तूफान छिपा हुआ था. आकांक्षा के कत्ल और लाश बरामदगी में उलझी पुलिस को इतना ही पता चला था कि उदयन के पिता का नाम बी.के. दास है और वे भोपाल के भेल के रिटायर्ड अफसर हैं और मां इंद्राणी भी सरकारी कर्मचारी रह चुकी हैं.

जब आकांक्षा की लाश बरामद हो गई और उदयन ने जुर्म कबूल लिया तो पुलिस का ध्यान उदयन से जुड़ी दूसरी बातों पर गया. काफी बवंडर मच जाने के बाद भी उस का कोई हमदर्द या दोस्त तो क्या कोई सगासंबंधी भी सामने नहीं आया, यह एक हैरानी की बात थी.

रिमांड पर लेने के बाद पुलिस ने जब सख्ती बरती तो उदयन बारबार बयान बदलता रहा. जब उस के दिल्ली आईआईटी से पढ़ने की बात भी झूठी निकली तो पुलिस वालों का माथा ठनका कि यह हत्यारा पागल ही नहीं बल्कि शातिर भी है. जब उस के मांबाप के फोन नंबर मांगे गए तो पहले तो वह मुकर गया कि उन के नंबर उस के पास नहीं हैं. लेकिन फिर दबाव पड़ने पर उस ने मां इंद्राणी का एक नंबर दिया जो बंद जा रहा था.

2 मकानों के किराए और मां की पेंशन से रईसी से जिंदगी गुजारने वाला उदयन कह रहा था कि उस की मां अमेरिका में है. लेकिन अब उस की बातें बयान और चेहरा साफसाफ चुगली कर रहे थे कि वह झूठ बोल रहा है. लिहाजा पुलिस ने उस के साथ सख्ती की, जो कामयाब रही.

उस की मां इंद्राणी दास डीएसपी नहीं थी, जैसा कि उस ने आकांक्षा और पड़ोसियों को बताया था. उस की मां भोपाल में सांख्यिकी विभाग में अधिकारी थीं और शिवाजीनगर के जी टाइप सरकारी क्वार्टर 122/43 में रहती थीं. पति के रायपुर शिफ्ट होने के बाद वह भी उन के साथ रायपुर चली गई थीं.

दरअसल, उदयन की कोशिश यह थी कि पुलिस वालों का ध्यान और काररवाई आकांक्षा के कत्ल में ही उलझ कर रह जाए. कह सकते हैं कि यह अहसास या उम्मीद इस चालाक कातिल को थी कि उसे आकांक्षा का हत्यारा साबित करना कानूनन उतना आसान काम नहीं है, जितना कि दिख रहा है.

गलत नहीं कहा जाता कि पुलिस की मार पत्थरों से भी मुंह खुलवा देती है, फिर उदयन साइको या शातिर ही सही था तो हाड़मांस का पुतला ही, जो 48 घंटे में ही टूट गया. इस के बाद सामने आई एक और कहानी, जिसे सुन कर पुलिस वालों के भी तिरपन कांप उठे. अब तक देश भर की दिलचस्पी इस साइको किलर में और बढ़ गई थी, जिस के कारनामों से अखबार भरे पड़े थे. जबकि न्यूज चैनल्स का तो वह हीरो बन गया था. 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद यह दूसरी घटना थी, जिस पर आम लोग तरहतरह से अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे थे.

4 फरवरी को उदयन ने न केवल मान लिया बल्कि बता भी दिया कि उस ने अपने मांबाप की भी हत्या की थी और उन्हें रायपुर वाले घर के लौन में दफना दिया था. यानी रिश्तों की कब्र खोदने की उस की सनक या बीमारी काफी पुरानी थी. बहरहाल, फिर से एक नई कहानी इस तरह उभर कर सामने आई.

उदयन अपने मांबाप का एकलौता बेटा था. चूंकि मांबाप दोनों कामकाजी थे, इसलिए उसे कम ही वक्त दे पाते थे. बचपन से ही वह उद्दंड प्रवृत्ति का था. शुरुआती पढ़ाई के लिए उसे भोपाल के नामी सेंट जोसेफ को-एड स्कूल में दाखिला दिलाया गया था.

पढ़ाईलिखाई में उस का मन नहीं लगता था और वह अकसर अकेले रहना पसंद करता था. ये वे समस्याएं थीं जो आमतौर पर उन कामकाजी अभिभावकों के बच्चों के सामने पेश आती हैं, जिन्हें पैसों की कोई कमी नहीं होती. उदयन जब सातवीं कक्षा में था तब उस ने स्कूल में दीवार पर मारमार कर एक सहपाठी का सिर फोड़ दिया था, जिस की वजह से उसे स्कूल से निकाल दिया गया था.

संभ्रांत बंगाली दास परिवार जहांजहां भी रहा, लोगों से कटा ही रहा. इधर उदयन की शैतानियां इतनी बढ़ गई थीं कि मांबाप उसे पारिवारिक समारोहों में भी नहीं ले जाते थे. वे लोग उसे काबू में रखने के लिए बातबात पर डांटतेडपटते रहते थे.

मेरे मांबाप हिटलर सरीखे थे, अपनी कहानी सुनाते हुए उस ने यह बात जोर दे कर पुलिस को बताई. उदयन के हिंसक और असामान्य व्यवहार के बावजूद उस के पिता बी.के. दास की इच्छा थी कि बेटा गणित पढ़े और इंजीनियर बने. लेकिन बेटे की इस मनोदशा को वे नहीं समझ पाए थे कि वह उन से मरनेमारने की हद तक नफरत करने लगा है.

भोपाल से रिटायर होने के बाद बी.के. दास ने रायपुर में अपनी खुद की फैक्ट्री खोल ली थी. अपने सेवाकाल के दौरान दोहरी कमाई के चलते वे खासी जायदाद बना चुके थे. यानी वे एक अच्छे निवेशक जरूर थे पर अच्छे पिता नहीं बन पाए थे. रायपुर के पौश इलाके सुंदरनगर में एनसीसी औफिस के पास भी उन्होंने पत्नी के नाम से एक शानदार मकान बनवाया था और वहीं रहने लगे थे. उदयन का दाखिला भी उन्होंने वहीं के एक स्कूल में करा दिया था. जैसेतैसे 12वीं पास करने के बाद उदयन का दाखिला एक प्राइवेट कालेज में करा दिया गया.

उदयन ने कभी अपने कैरियर और जिंदगी के बारे में नहीं सोचा. उलटे कालेज में आ कर वह नशे का भी आदी हो गया था. यहां भी उस का कोई दोस्त नहीं था और मातापिता भी किसी से संपर्क नहीं रखते थे. यानी पूरा परिवार एकाकी जीवन जीने का आदी हो चला था.

पढ़ाई के बारे में पूछने पर वह मातापिता से साफ झूठ बोल जाता था. जब पढ़ाई खत्म होने का वक्त आया तो उस ने घर में झूठ बोल दिया कि उसे डिग्री मिल गई है. डिग्री मिल गई तो कहीं नौकरी करो, पिता के यह कहने पर उदयन को लगने लगा कि पढ़ाई का झूठ अब छिपने वाला नहीं है. मांबाप नहीं मानेंगे, यह सोच कर उदयन ने एक खतरनाक फैसला ले लिया. उस ने सोच लिया कि क्यों न मांबाप दोनों को ठिकाने लगा दिया जाए, फिर कोई रोकनेटोकने नहीं वाला होगा. करोड़ों की जायदाद व दौलत भी उस की हो जाएगी. उस ने ऐसा ही किया भी.

                                                                                                                                         क्रमशः

अजीब फलसफा जिंदगी का

विदेश से आए उस लिफाफे को देख कर मुझे हैरानी हुई थी. क्योंकि मेरा अपना कोई ऐसा विदेश में नहीं रहता था, जो मुझे  चिट्ठी लिखता. लेकिन उस लिफाफे पर मेरा नामपता लिखा था. इस का मतलब लिफाफा चाहे जिस ने भी भेजा था, मेरे लिए ही भेजा गया था. लिफाफे पर भेजने वाले का नाम शहजाद मलिक लिखा था. दिमाग पर काफी जोर दिया, फिर भी शहजाद मलिक का नाम याद नहीं आया.

उत्सुकतावश मैं ने उसे खोला तो उस में से 2 सुंदर फोटो निकले. उन में से एक 2 नन्हेमुन्ने बच्चों की फोटो थी और दूसरी फोटो एक आदमी व एक औरत की. पहली नजर में मैं उन्हें पहचान नहीं पाया. तसवीरों के साथ एक चिट्ठी भी थी. मैं ने सरसरी नजर से उसे पढ़ा तो याद आया, ‘अरे यह तो शादा ने भेजी है. लेकिन वह तो कुवैत में रहता था, कनाडा कब चला गया.’

शहजाद उर्फ शादा की फोटो देख कर मुझे उस का अतीत याद आने लगा. लगभग 12 साल पहले मैं उस से मियांवाली की मशहूर सैंट्रल जेल की काल कोठरी में मिला था, जहां वह एक खूंख्वार अपराधी के रूप में बंद था. पूरी जेल में उस की दहशत थी. जेल में कैदियों का मनोवैज्ञानिक इलाज भी किया जाता था. शादे के इलाज के लिए भी तमाम प्रयोग किए गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वह पहले की ही तरह झगड़ाफसाद करता रहा. उस के इस झगड़े फसाद से कैदी तो आतंकित रहते ही थे, जेल के कर्मचारी भी डरते थे. यही वजह थी कि उसे काल कोठरी में अकेला छोड़ दिया गया था. तनहाई में रहतेरहते वह इंसान से हैवान बन गया था.

मैं ने जेल का चार्ज संभाला तो उस के अहाते में गया. मुझे उस के पास जाते देख मेरे डिप्टी जेलर ने कहा, ‘‘साहब, यहीं से लौट चलें. आगे जाना ठीक नहीं है.’’

‘‘क्यों? जब यहां तक आ गया हूं तो उन कैदियों से भी मिल लूं.’’ कहते हुए मैं ने डिप्टी जेलर ने साथ चल रहे अन्य कर्मचारियों की ओर देखा. सभी सहमे हुए से थे. वे आपस में खुसरपुसर करने लगे. तभी उन में से एक हवलदार ने कहा, ‘‘सर, उस में शादा बंद है.’’

‘‘शादा भी आदमी ही है, कोई खूंख्वार जानवर तो नहीं.’’ यह कह कर मैं आगे बढ़ा तो साथ चल रहे स्टाफ को मजबूरन मेरे साथ चलना पड़ा. जैसे ही मैं अंदर पहुंचा, एक कोेठरी  से आवाज आई, ‘‘ओए…’’

‘ओए’ एक तरह से चेतावनी थी. इस का मतलब था, जो भी हो, यहां से वापस चले जाओ, वरना ठीक नहीं होगा. मैं बिना डरे आगे बढ़ता रहा. मेरे साथ लाठी लिए सिपाही भी थे. जब मैं शादा की कोठरी के सामने पहुंचा तो वह सख्त लहजे में बोला, ‘‘तो यह है नया साहब… पहले ही दिन मुझ से टक्कर लेने आ गया.’’

मैं पुराना जेलर था. न जाने कितने बिगड़े हुए कैदियों से मेरा सामना हो चुका था. इसलिए मैं मुसकराते हुए उस की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘नहीं शादे… मैं तुझ से टक्कर लेने नहीं, मिलने आया हूं.’’

‘‘मिलने आए हो… हा…हा…हा…’’ शादा मेरी खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज में हंसा.

‘‘शादे मैं तुम से विस्तार से बातें करना चाहता हूं. क्या तुम मेरे औफिस में आ सकते हो?’’

‘‘साहब, बातें करने के लिए इन लाठियों की भी जरूरत पड़ती है क्या? बातचीत तो मुंह से होती है, लाठियों से नहीं.’’

मैं समझ गया कि आदमी पढ़ालिखा है, लेकिन हालात ने इसे जंगली बना दिया है. सच भी है, हालात आदमी को शैतान और शैतान को भलामानुष बना देते हैं. शायद ऐसे ही किसी हालात का मारा यह भी है. मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम से वादा करता हूं कि औफिस में हम दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं होगा,’’ इस के बाद मैं ने अपने सफेद बालों की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘मैं तुम्हारे पिता के समान हूं.’’

पता नहीं क्यों पिता का नाम सुन कर उस के माथे पर बल पड़ गए.  उस ने कुछ कहना चाहा, लेकिन मेरी विनम्रता की वजह से वह चुप रह गया था.   थोड़ी देर बाद वह मेरे औफिस में आया. औफिस में मैं ने जिस शादे को देखा, वह जेल में बंद शादे से एकदम अलग था. वह 24-25 साल का जवान लड़का था, जो इस जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा था. जब मैं ने उस से प्यार से बात की तो उस के अंदर का इंसान जाग गया.

शादा ने जो बताया उस के अनुसार उस का बाप इलाके का नंबरदार था. काफी जमीनें थीं उस के पास. रहने के लिए गांव के बाहर हवेली जैसा मकान था. काम करने के लिए नौकर थे. तब लोग उसे शहजादा कहते थे. उस ने इंटर अच्छे नंबरों से पास किया तो उस का दाखिला इंजीनियरिंग में हो गया. जब इंजीनियरिंग का उस का आखिरी साल था, तो उस की मां मर गई. मां के मरने के कुछ दिनों बाद ही उस के बाप ने पास के गांव की एक औरत से शादी कर ली.

उस औरत के पहले से ही 2 जवान बेटे थे, जो निठल्ले थे. वे दिन भर आवारों की तरह घूमते रहते थे. पढ़ाईलिखाई से उन्हें कोई मतलब नहीं था. शादे की सौतेली मां चाहती थी कि उस के बेटों की तरह शादा भी न पढ़ेलिखे. उस ने शादे के बाप को भड़काना शुरू किया, ‘वह जवान हो चुका है. चाहे तो अपने आप कमा कर पढ़ाई कर सकता है.’

बाप ने सौतेली मां की बात मानी. शादा ने पिता से बहुत मिन्नतें कीं कि उस का पढ़ाई का यह आखिरी साल है, इसलिए उस की पढ़ाई का खर्च उठाते रहें. पढ़ाई के बाद नौकरी लग जाएगी तो वह उन के पैसे वापस कर देगा. लेकिन उस के बाप ने उस की एक नहीं सुनी और पढ़ाई का खर्च तो देना बंद कर ही कर दिया, उसे जमीनजायदाद से भी बेदखल कर दिया. इस के बाद शादे के सभी रास्ते बंद हो गए. उस के पास कुछ भी नहीं रह गया. पढ़ाई की छोड़ो, उसे खानेपहनने तक के लाले पड़ गए. उस की पढ़ाई अधूरी रह गई. अपने ऊपर हुए अत्याचार से उसे इतना गुस्सा आया कि उसे अत्याचार करने वाले की हत्या कर देना ही ठीक लगा. उस ने यही किया भी. उस ने अपने बाप की हत्या कर दी.

शादा ने खुद अपराध स्वीकार किया था, इसलिए बचने का कोई सवाल ही नहीं था. सारे सुबूत और गवाह उस के खिलाफ थे, इसलिए अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा सुना दी थी. चूंकि वह जवान था, इसलिए अदालत ने उस के साथ थोड़ी नरमी बरती थी. जेल में वह अपने साथी कैदियों को डराधमका कर अपने आप को बड़ा साबित करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अंदर से वह अभी भी शहजाद था.

कुछ दिनों बाद मैं ने शहजाद से कहा कि अगर वह चाहे तो अपनी इंजीनियरिंग की तैयारी जेल में रह कर कर सकता है. मेरी इस बात पर वह मुझे हैरानी से देखने लगा. उसे मेरे चेहरे पर हमदर्दी की झलक दिखाई दी तो उस ने पूछा, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘मैं ने इंजीनियरिंग कालेज के प्रिंसिपल से बात की है. उन्होंने मदद का वादा किया है. उन्होंने तुम्हारे लिए इस संबंध में विशेष रूप से गवर्नर को लिखा है. उम्मीद है, वहां से स्पेशल केस के तौर पर तुम्हारे लिए मंजूरी मिल जाएगी.’’

मेरी बात सुन कर वह खुश हुआ. मैं ने अपने स्तर पर काररवाई की. नतीजतन जिस कोठरी में कभी गालियां गूंजती थी और लाठियां चलती थीं, अब वही कोठरी एक विद्यार्थी का कमरा बन गई थी. जेल के वैलफेयर फंड से उस के लिए किताबें मंगवा दी गई थीं. उस की ड्यूटी जेल में लगी मशीनों पर लगा दी गई थी.

पुलिस की देखरेख में वह कालेज भी जाता रहा. आखिर उस ने फाइनल परीक्षा दी. तमाम परेशानियों के बावजूद उस की प्रथम पोजीशन आई. जो शहजाद कभी जेल में आतंक का पर्याय था और खौफनाक कैदी के रूप में मशहूर था, अब वही शहजाद जेल का सब से अच्छा और मेहनती इंसान बन गया था. संयोग से उसी बीच जेल मंत्री जेल का निरीक्षण करने आए तो शहजाद ने उन के प्रति अभिनंदन पत्र प्रस्तुत करने के बाद मेरी प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘आज मैं जो कुछ भी हूं, जेलर फीरोज अली खां साहब की वजह से हूं. इन्होंने मुझे बहुत अच्छा रास्ता दिखाया.’’

मैं ने जेल मंत्री से सिफारिश की कि शहजाद की सजा कम कर दी जाए. जेल मंत्री की सिफारिश पर कुछ दिनों बाद शहजाद जेल से रिहा हो गया.

समय गुजरता रहा. कुछ दिनों बाद मैं अपनी नौकरी से रिटायर हो गया तो शहर से जुड़े एक गांव में जमीन खरीद कर मैं ने अपना एक छोटा सा फार्महाऊस बना लिया. मैं खेतों में थोड़ाबहुत काम करने के साथ पढ़ाईलिखाई कर के समय बिताने लगा. एक दिन मैं खेतों में काम कर रहा था, तभी घबराया हुआ शहजाद मेरे पास आया. उस के चेहरे पर कोठरी वाले शादे की परछाइयां झलक रही थीं. मैं ने उसे बिठा कर पानी पिलाया. उस के बाद पूछा, ‘‘समस्या क्या है, जो तुम इतना घबराए हुए हो?’’

‘‘मैं एक साल से कोशिश कर रहा हूं कि गांव की जमीन से मेरे हिस्से की कुछ जमीन मुझे मिल जाए तो मैं उसे बेच कर अपना वर्कशौप खोल लूं. पंचायत भी बुलाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मेरी सौतेली मां मुझे मेरी हत्या करवाने की धमकी दे रही है. उस ने अपने बेटों को मेरी हत्या के लिए मेरे पीछे लगा भी दिया है.’’

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उस से क्या कहूं. काफी सोचविचार कर मैं ने कहा, ‘‘बेटा शहजाद, तुम पढे़लिखे हो, तुम्हारे लिए काम की कोई कमी नहीं है, मैं चाहता हूं, तुम यह देश छोड़ कर कुवैत चले जाओ. वहां तुम्हें अच्छी नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘यह सब इतना आसान है क्या? मेरे पास तो पैसा भी नहीं है.’’ वह बोला.

‘‘यह तुम मेरे ऊपर छोड़ दो. पासपोर्ट और नौकरी की व्यवस्था मैं करवाऊंगा. वहां जाने तक तुम किसी अच्छे वर्कशौप में नौकरी कर के अनुभव प्राप्त कर लो.’’

मैं ने शहजाद का पासपोर्ट अपने एक जानने वाले की मदद से बनवा दिया. कुवैत में मेरी जानपहचान के तमाम लोग थे, उन की मदद से मैं ने उस के लिए वहां नौकरी की व्यवस्था करवा दी. शहजाद कुवैत चला गया. उस की पढ़ाई, अनुभव और व्यवहार काम आया और उसे वहां एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई. कई सालों तक उस की चिट्ठियां आती रहीं. उस ने 2-3 बार ड्राफ्ट भी भेजे. लेकिन जब मैं ने उसे डांट कर ड्राफ्ट भेजने से मना किया तो उस ने ड्राफ्ट भेजने बंद कर दिए. उस ने अपने आखिरी खत में लिखा था कि वह कुवैत में बहुत मजे से है और अब शादी करने के बारे में सोच रहा है.

इस के बाद शहजाद का कोई खत नहीं आया. जब खत आने बंद हो गए तो उस के बारे में कोई अतापता नहीं चला. आज आने वाला खत उस के जीवन का नया मोड़ था, जिस में उस की पत्नी और बच्चे भी शामिल थे. उस ने लिखा था, ‘‘सरजी… आप को शायद आप का सिरफिरा बेटा न याद हो, लेकिन मैं आप को हमेशा याद रखता हूं. मेरी समझ में नहीं आता कि मैं आप के उपकारों का बदला कैसे चुकाऊं? अगर आप नहीं होते तो मैं आत्महत्या कर लेता या फिर किसी की हत्या कर के फांसी चढ़ जाता. आप को जान कर खुशी होगी कि आप का यह बेटा कनाडा में इंजीनियर है और खूब मजे की जिंदगी जी रहा है.’’

उस ने आगे लिखा था, ‘‘कुवैत में मैं ने एक पाकिस्तानी लड़की से शादी कर ली थी. उस के बाद मैं कनाडा आ गया था. मेरे दोनों बच्चे स्कूल जाते हैं, जिन की फोटो आप को भेज रहा हूं. ये आप के पोतापोती हैं. दूसरी फोटो मेरी और मेरी पत्नी की है. हम भले ही कनाडा मे रहते हैं, लेकिन मैं मियांवाली का रहने वाला हूं, इसलिए घर के बाहर भी मियांवाली हाऊस लिखवा रखा है. हमारा रहनसहन भी अपने देश जैसा ही है. हम विदेशी रंग में नहीं रंगे हैं.

‘‘मैं ने अपनी पत्नी को भी आप के बारे में सब बता दिया है. वह आप के बारे में जान कर बहुत खुश हुई और अपने ससुर से मिलने के लिए बेचैन है. इसलिए अब मेरी आप से एक विनती है, जिसे आप ठुकराएंगे नहीं. आप कनाडा आ जाइए. यहां आप की बहू और बच्चे आप का इंतजार कर रहे हैं. मैं ने आप के टिकट और वीजा का इंतजाम कर दिया है. कुछ दिनों में वे आप को मिल जाएंगे. यह आप की मोहब्बत का कर्ज है. खत का जवाब जरूर देंगे.’’

खत पढ़ कर मैं सोचने लगा कि हालात आदमी को शैतान तो शैतान को भलामानुष बना देते हैं. इस का सब से बड़ा उदाहरण शहजाद है.

कुछ दिनों बाद मैं कनाडा की यात्रा पर था. पूरे रास्ते मैं शहजाद, बहू और बच्चों के बारे में सोचता रहा. क्योंकि जिंदगी के आखिरी दिनों में यह मेरे लिए कुदरत का दिया इनाम था, जिस के लिए मैं सारी जिंदगी तरसता रहा था. इस की वजह यह थी कि मैं ने शादी नहीं की थी.

प्रस्तुति : एस.एम. खान

रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा – भाग 2

दरअसल, आकांक्षा घर वालों से झूठ बोल कर उदयन के पास भोपाल आ गई थी. उदयन से उस की जानपहचान फेसबुक के जरिए 2007-08 में हुई थी. फेसबुक पर उदयन ने आकांक्षा को बताया था कि वह एक आईएफएस अधिकारी है. उस के पिता भेल भोपाल से रिटायर्ड अधिकारी हैं और इन दिनों वह रायपुर में खुद की फैक्ट्री चलाते हैं. मां रिटायर्ड डीएसपी हैं और अमेरिका में रह रही हैं. उदयन की रईसी, पद और पारिवारिक पृष्ठभूमि का आकांक्षा पर वाजिब असर पड़ा और दोनों की दोस्ती गहराने लगी.

इस के बाद दोनों दिल्ली और भोपाल में मिलने लगे. उदयन ने जो झूठ रौब झाड़ने की गरज से आकांक्षा से बोले थे, उन में से एक यह भी था कि वह भी अमेरिका में रहता है. इसलिए जब भी वे मिलते थे तो उदयन यही बताता था कि वह कुछ समय के लिए अमेरिका से आया है. इश्क में अंधी आकांक्षा उस की हर बात बच्चों की तरह मान जाती थी. इस दरम्यान दोनों के बीच क्या और कैसी बातें हुईं, यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था. अलबत्ता यह जरूर था कि दोनों ही एकदूसरे का पहला प्यार नहीं थे.

बहरहाल, जून में जब आकांक्षा भोपाल आई तो उदयन ने उस से बरखेड़ा स्थित बंगाली समुदाय के मंदिर कालीबाड़ी में शादी कर ली. इस के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह साकेतनगर में रहने लगे. आकांक्षा खुश थी, लेकिन उदयन की हिदायत पर अमल करते हुए वह पड़ोसियों से ज्यादा बातचीत नहीं करती थी. अलबत्ता एकदो धार्मिक आयोजनों में वह जरूर शामिल हुई थी.

यह बात गलत नहीं है कि एक झूठ को ढकने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं. उदयन ने तो आकांक्षा से शायद एक भी सच नहीं बोला था. उस ने आकांक्षा को न जाने कौन सी घुट्टी पिलाई थी जो वह चाबी वाले खिलौने की तरह उस पर भरोसा किए जा रही थी. लेकिन कहते हैं कि झूठ के पांव नहीं होते. जल्द ही आकांक्षा के सामने उदयन की असलियत उजागर होने लगी.

आकांक्षा ने कभी भी उदयन को अपने मांबाप से फोन तक पर बात करते नहीं देखा था. जब भी वह उन के बारे में पूछती थी या उदयन की गुजरी जिंदगी को कुरेदती थी तो वह चालाकी से उसे टाल जाता था. लेकिन उसे यह भी समझ में आने लगा था कि यह सब बहुत ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है. उस ने आकांक्षा से कहा कि अमेरिका में उस का मन नहीं लगता, इसलिए वह उस के साथ भोपाल में ही घर बसाना चाहता है. आकांक्षा इस के लिए भी तैयार हो गई.

दोनों का अफेयर 8 साल पुराना था लेकिन शादी और गृहस्थी की मियाद महीने भर ही रही. तब तक उदयन के काफी झूठ फरेब उजागर हो चुके थे. फिर भी आकांक्षा ने समझदारी दिखाते हुए उन से समझौता कर लिया था. वह एक भावुक स्वभाव वाली युवती थी, जो अपने प्रेमी की खातिर मांबाप से झूठ बोल कर आई थी.

इसी वजह से वह ज्यादा कलह कर के न तो खुद को जोखिम में डालना चाहती थी और न ही कोई फसाद खड़ा करना चाहती थी. बावजूद इस के दोनों में खटपट तो होने ही लगी थी. लेकिन दोनों ने इस की भनक मोहल्ले वालों को नहीं लगने दी थी.

थाने ला कर पुलिस ने जब उदयन से पूछताछ की तो उस ने जो बताया, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था. उदयन और आकांक्षा के बीच 14 जुलाई, 2016 को जम कर कलह हुई थी, जिस की वजह थी उदयन के कई लड़कियों से जायजनाजायज संबंध.

यहां स्पष्ट कर दें कि दूध की धुली आकांक्षा भी नहीं थी. इस घटना के चंद दिन पहले आकांक्षा के एक पूर्व बौयफ्रैंड, जिस से वह अकसर फोन पर बात किया करती थी, ने उस के कुछ अश्लील फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिए थे. इसे ले कर उदयन के तनबदन में आग लग गई थी. उसे रहरह कर लग रहा था कि आकांक्षा के अपने एक्सबौयफ्रैंड से नाजायज संबंध भी थे और वह उस की आर्थिक मदद भी करती थी.

उस रात उदयन सोया नहीं, बल्कि जाग कर आकांक्षा की हत्या की साजिश रचता रहा. जबकि आकांक्षा लड़झगड़ कर सो गई थी. 15 जुलाई की सुबह लगभग 5 बजे एकाएक उदयन के सिर पर एक अजीब सा वहशीपन सवार हो गया. उस ने गहरी नींद में सो रही आकांक्षा का मुंह तकिए से दबा दिया. आकांक्षा कुछ देर छटपटाई और फिर उस का शरीर ढीला पड़ गया. हालांकि उदयन को तसल्ली हो गई थी कि वह मर चुकी है फिर भी उस ने कुछ मिनटों तक उस के चेहरे से तकिया नहीं हटाया.

कुछ देर बाद उदयन ने आकांक्षा के चेहरे से तकिया हटाया और दरिंदों की तरह उस का गला दबाने लगा, जिस से उस के गले की हड्डी टूट गई. आकांक्षा के मरने की पूरी तरह तसल्ली करने के बाद उदयन के सामने समस्या उस की लाश को ठिकाने लगाने की थी. लाश का चेहरा उस ने एक पौलीथिन से ढंक दिया था.

आकांक्षा की लाश को वह दूसरे कमरे में ले गया और उसे एक पुराने बक्से में डाल दिया. एक घंटे सुस्ताने और कुछ सोचने के बाद उदयन बाहर निकला और साकेतनगर की ही एक दुकान से शैलेष नाम के सीमेंट विक्रेता से 14 बोरी सीमेंट खरीद लाया. शैलेष ज्यादा सवाल या शक न करे, इसलिए उस ने उसे बताया था कि नईनई शादी हुई है, पत्नी के लिए बाथटब बनवाना है.

इस के बाद उदयन ने रवि नाम के मिस्त्री को बुलाया, जिस से उस की पुरानी पहचान थी. रवि को उस ने यह कह कर कमरे में चबूतरा बनाने को कहा कि वह उस के ऊपर मंदिर बनवाएगा. चबूतरा बनते समय उदयन ने आधा काम खुद किया. थोड़ी देर के लिए रवि को इधरउधर कर के उस ने लाश वाला बक्सा चबूतरे के नीचे बने गड्ढे में डाला और ऊपर से खुद चिनाई कर दी रवि को इस की भनक भी नहीं लगी. वैसे भी एक मामूली काम के एवज में उसे खासी मजदूरी मिल रही थी, इसलिए उस ने उदयन के इस विचित्र व्यवहार पर गौर नहीं किया.

चबूतरा बना कर उदयन ने उस पर पलस्तर कर दिया और खूबसूरती बढ़ाने के लिए उस पर मार्बल भी लगवा दिया. यह उस के अंदर की ग्लानि थी, डर था या आकांक्षा के प्रति नफरत कि वह अकसर इस चबूतरे पर बैठ कर सुबहसुबह ध्यान लगाता था.

आकांक्षा की लाश निकालने वाली पुलिस टीम ने चबूतरा खोदना शुरू किया तो 7 महीने पुरानी लाश को बाहर निकालने में उसे 7 घंटे पसीना बहाना पड़ा. खुदाई के लिए बाहर से मजदूर बुलाए गए, जिन्होंने सब से पहले मार्बल तोड़ा लेकिन उन के गैंती, फावड़े जैसे मामूली औजार इस चबूतरे को नहीं खोद  पाए तो ड्रिल मशीन मंगानी पड़ी. चबूतरा इतना मजबूत था कि खुदाई करने के दौरान एक ड्रिल मशीन भी टूट गई. उस की जगह दूसरी ड्रिल मशीन मंगानी पड़ी.

जैसेतैसे आकांक्षा की लाश वाला बक्सा बाहर निकाला गया. जब लाश बाहर निकली तो वहां मौजूद पुलिस वाले फिर सकते में आ गए. संदूक में लाश का अस्थिपंजर मिला, जिन्हें पोस्टमार्टम और फिर डीएनए जांच के लिए भेज दिया गया. प्रतीकात्मक तौर पर आकांक्षा का अंतिम संस्कार आयुष और उस के परिजनों ने भोपाल में ही कर दिया, जिस में शामिल होने के लिए उस के मातापिता नहीं आए.

इस जघन्य हत्याकांड की खबर देश भर में फैल गई. जिस ने भी सुना, उस ने उदयन को साइको कहा. पर उस के चेहरे पर पसरी बेफिक्री और बेशरमी वे पुलिस वाले ही देख पाए जो उसे ट्रांजिट रिमांड के लिए अदालत ले गए थे. इस के बाद रिमांड अवधि में शुरू हुई 32 वर्षीय उदयन दास और उस से जुड़ी दूसरी जानकारियां जुटाने की कवायद, जिन्होंने यह साबित कर दिया कि उसे साइको किलर बेवजह नहीं कहा जा रहा.

                                                                                                                                          क्रमशः

60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला बहरूपिया – भाग 2

सच तो यह भी था कि उसे देख कर उस की आंखों में चमक आ गई थी. उस के दिमाग में अपनी नौकरी के लिए पैरवी की उम्मीद की किरण नजर आई थी. कारण वह स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़ा था. उस के दिमाग में फायदे की 2 बातें बैठ गईं.

उस ने तुरंत अपनी सहेली को फोन मिलाया. उसे भी प्रोफाइल के बारे में बताया और उस से सलाह मांगी. सहेली ने सिर्फ इतना कहा कि उस से सपंर्क कर चैक कर ले. यह बात मई 2020 की थी. उन दिनों देश में कोरोना के दूसरे फेज का माहौल भी चल रहा था.

अगले ही रोज अवंतिका ने इस बारे में अपना निर्णय ले लिया. उस प्रोफाइल के डा. स्वैन को संपर्क करने के साथसाथ अपनी डिटेल्स भी भेज दी. उधर से प्रपोजल भी आ गया और उस ने शादी की तारीख भी तय कर दी. उस ने कोरोना पर लगी पाबंदियों का हवाला देते हुए कम से कम लोगों के बीच मंदिर में शादी की बात कही.

जुलाई 2020 में भुवनेश्वर के एक मंदिर में शादी की तारीख तय हो गई. स्वैन ने शादी के बाद वहीं से बेंगलुरु चलने की बात कही. बातोंबातों में उस ने घर के रेनोवेशन के लिए 5 लाख रुपए की भी मांग कर ली. अवंतिका के बैंक खाते में दिवंगत पति के पैसे जमा थे. उस में से ही उस ने पैसे देने का वादा भी कर लिया. स्वैन ने शादी में परिवार से किसी सदस्य को आने से मना कर दिया था. अवंतिका भी घर वालों के शोरशराबे से बचना चाहती थी. वह अपने कुछ कपड़ों से भरे सूटकेस के साथ भुवनेश्वर आ गई थी.

मंदिर में साधारण तरह से हुई शादी के समय स्वैन की तरफ से केवल एक दंपति मौजूद था. उस का परिचय उस ने बहन और बहनोई के रूप में करवाया था. अवंतिका नवविवाहिता बन भुवनेश्वर स्थित स्वैन के 3 कमरे वाले एक मकान में आ गई थी. वहां केवल एक नौकरानी रहती थी. उसी से मालूम हुआ कि घर की देखभाल की जिम्मेदारी उस पर थी.

स्वैन अकसर शहर से बाहर ही रहता था. महीनों बाद शादी के लिए आया था. फिर भी अवंतिका को घर का शांत माहौल अच्छा लगा. उस से भी अच्छा लगा स्वैन का स्वभाव और मधुर बोली. वह बेहद खुश थी. लंबे समय बाद किसी पुरुष का साथ मिला था, जिसे वह अपना कह सकती थी और खास बात यह थी कि वह एक बड़े अधिकारी की पत्नी थी.

2 दिनों बाद ही स्वैन ने बेंगलुरु जाने की फ्लाइट बुक करवा ली थी. उस का टिकट साथ में नहीं लेने पर जब अवंतिका ने सवाल किया, तब उस ने बताया कि औफिस में हेल्थ रिलेटेड एक जरूरी प्रोजेक्ट जमा करवाना है. सेंटर की हेल्थ मिनिस्टरी का और्डर है. उसे निपटा कर एक सप्ताह में लौट आएगा. फिर कहीं घूमने का प्लान बनाएंगे. तब तक वह यहां का घर अपने अनुसार दुरुस्त कर ले.

वादे के मुताविक स्वैन ठीक आठवें रोज भुवनेश्वर आ गया था. आते ही उस ने 2 दिन बाद अवंतिका को आगे के टूर का प्रोग्राम बताया, जो गोवा का था. वह टूर भी उस के औफिस से रिलेटेड था. वह 2 दिनों के लिए भुवनेश्वर में ठहरा था. इस दौरान स्वैन जब सुबह के समय बाथरूम में था, तब नौकरानी भागती हुई उस के पास आई. उस के हाथ में मोबाइल था, ‘‘मैडम! देखिए आप के फोन में कौल आ रही है?’’

‘‘मेरा मोबाइल! वह तो मेरे पास है. अरे, यह साहब का है. यहीं रख दो वह बाथरूम से आएंगे तब देख लेंगे. एप्पल मोबाइल एक जैसे दिखते हैं, किस का कौन है पहचाना ही नहीं जाता.’’

अवंतिका के बोलतेबोलते काल डिस्कनेक्ट हो गई थी. कुछ सेकेंड बाद फिर कौल आया, नाम उभरा ‘वाइफ डाक्टर’. सोचा किसी डाक्टर की वाइफ का फोन होगा. कुछ सेकेंड बाद फोन फिर डिस्कनेक्ट हो गया. किंतु तुरंत एक कौल आ गई. उस में दूसरा नाम उभरा था ‘वाइफ बेंगलुरु’.

अवंतिका को स्वैन पर होने लगा शक

यह नाम देख कर अवंतिका को एक बार फिर अजीब लगा. खुद से बातें करने लगी, ‘वाइफ बेंगलुरु’ का मतलब क्या हो सकता है?

उस फोन के कटते ही अवंतिका ने स्वैन का फोन उस समय आए मिस काल को स्क्राल कर दिया. देखा, उस से पहले और 2 काल आई थी. एक में ‘वाइफ टीचर’ था, जबकि दूसरे में सिर्फ ‘डब्ल्यू भुवनेश्वर’ लिखा था. उसी वक्त स्वैन बाथरूम से निकल आया. उस के हाथ में अपना मोबाइल देख कर एक झपट्टे के साथ ले लिया. डांटते हुआ बोला, ‘‘मेरा मोबाइल क्यों देख रही हो. जरा भी मैनर नहीं है क्या? एजूकेटेड हो.’’

अवंतिका अभी अपनी सफाई देती उस से पहले ही स्वैन ने उसे खूब खरीखोटी सुना दी. अचानक स्वैन के बदले तेवर को देख कर अवंतिका सहम गई. स्वैन उस रोज नाश्ता किए बगैर चला गया.

उस के जाने के बाद अवंतिका उदास हो गई. नौकरानी ने आ कर उसे नाश्ता दिया. हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मेम साहब, साहब की बातों का बुरा नहीं मानना. वह ऐसे ही हैं. तुरंत नाराज हो जाते हैं, लेकिन तुरंत शांत भी हो जाते हैं. देखना अभी एक घंटे में वापस आएंगे और कोई गिफ्ट भी देंगे.’’

‘‘अच्छा?’’ अवंतिका बोली.

‘‘जी मेमसाहब!’’ नौकरानी मुसकराती हुई बोली.

‘‘और कुछ बताओ साहब के बारे में,’’ अवंतिका ने कहा.

‘‘और क्या बताऊं उन के बारे में… सब कुछ तो ठीक है, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, बताओ. हो सका तो मैं तुम्हारी मदद करूंगी,’’ अवंतिका बोली.

‘‘साहब को मत बोलना… मैं खुद बोल दूंगी. मेरा 3 महीने का पैसा बाकी है. सोचा थी आज मांगूंगी… लेकिन साहब नाराज हो गए,’’ नौकरानी मायूसी के साथ बोली.

‘‘कितना पैसा बाकी है? बताओ मैं दे देती हूं.’’

‘‘जी 9 हजार,’’ नौकरानी झिझकती हुई बोली. अवंतिका ने तुरंत अपने बैग से 10 हजार रुपए निकाले और नौकरानी के हाथ में रख दिए.

‘‘मेमसाहब आप बहुत अच्छी हैं. इस में एक हजार अधिक हैं,’’ नौकरानी बोली.

‘‘कोई बात नहीं, रख लो मेरी तरफ से गिफ्ट है.’’ अवंतिका ने कहा.

नौकरानी के कहे मुताबिक स्वैन उस रोज नहीं आ पाया. अवंतिका ने रात होने पर नौकरानी से स्वैन के नहीं आने का कारण पूछा. किंतु उस से कोई सही जवाब नहीं मिल पाया. उस ने सिर्फ आश्चर्य जताते हुए कहा कि ऐसा तो पहली बार हुआ है.

अगले रोज स्वैन शाम के वक्त आया. वह हड़बड़ी में था. फटाफट खुद सामान पैक किया और तुरंत निकल पड़ा. अवंतिका कुछ पूछती, इस से पहले ही उस ने सौरी बोलते हुए बताया कि उसे एक दिन पहले ही निकलना पड़ेगा. अगली बार बेंगलुरु ले चलने का वादा कर चला गया.

रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा – भाग 1

30 जनवरी, 2017 को पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले से क्राइम ब्रांच की एक टीम भोपाल आई. 5 सदस्यीय इस टीम का नेतृत्व बांकुरा क्राइम ब्रांच के टीआई अमिताभ कुमार कर रहे थे. उन के साथ सबइंसपेक्टर कौशिक हजरत और संदीप बनर्जी के अलावा एएसआई चंद्रबाला भी थीं. इस टीम के साथ एक स्मार्ट और खूबसूरत युवक आयुष सत्यम भी था, जो काफी परेशान लग रहा था.

भोपाल स्टेशन पर उतर कर यह टीम सीधे गोविंदपुरा इलाके के सीएसपी वीरेंद्र कुमार मिश्रा के पास पहुंची और उन्हें सिलसिलेवार सारी बात बता कर अपने आने का कारण स्पष्ट किया. अमिताभ ने वीरेंद्र मिश्रा को बताया कि एक युवती आकांक्षा शर्मा जोकि उन के साथ आए आयुष सत्यम की बड़ी बहन है, रहस्यमय तरीके से गायब है.

उस के घर वालों ने 5 जनवरी को उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई है. उन लोगों ने उदयन दास नाम के एक युवक पर संदेह व्यक्त किया है. पश्चिम बंगाल की पुलिस टीम ने यह भी बताया कि आकांक्षा का मोबाइल चालू है और उस की लोकेशन भोपाल के साकेतनगर की आ रही है.

अमिताभ कुमार ने यह भी बताया कि 28 वर्षीय आकांक्षा ने जयपुर के नजदीक स्थित वनस्थली से एमएससी इलैक्ट्रौनिक्स से डिग्री ली थी. उस के पिता शिवेंद्र शर्मा यूनाइटेड बैंक औफ इंडिया में चीफ मैनेजर हैं. जून 2016 में आकांक्षा ने घर वालों को बताया था कि अमेरिका में उस की जौब लग गई है और वह अमेरिका जा रही है. पासपोर्ट बनवाने की बात कह कर वह दिल्ली चली गई थी. इस के पहले कुछ दिनों तक वह दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी भी कर चुकी थी.

आजकल के युवाओं के लिए विदेश में नौकरी करना अब कोई बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है. ज्यादातर अभिभावकों की तरफ से उन्हें कैरियर चुनने के मामले में छूट मिली होती है. 24 जून, 2016 को आकांक्षा नौकरी के लिए कथित रूप से न्यूयार्क चली गई थी. जुलाई तक तो वह फोन पर घर वालों से बातें करती रही, लेकिन फिर व्यस्तता का बहाना बना कर उन्हें टालने लगी थी. मोबाइल फोन पर घर वालों से उस की आखिरी बार बात 20 जुलाई को हुई थी.

इस के बाद आकांक्षा ने वायस काल करना बंद कर दिया और मैसेज के जरिए चैट करने लगी थी. इस से शिवेंद्र शर्मा को तसल्ली तो थी लेकिन पूरी तरह नहीं. उन्हें बेटी को ले कर कुछकुछ आशंकाएं भी होने लगी थीं. उन की परेशानी तब बढ़ी जब मैसेज के जरिए भी बात होना बंद हो गया. इस पर उन्होंने 5 जनवरी, 2016 को बांकुरा थाने में आकांक्षा की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी.

दरअसल, बात उतनी मामूली भी नहीं थी, जितनी दिख रही थी. शिवेंद्र और उन का बेटा अपने स्तर पर आकांक्षा को ढूंढ रहे थे. जब कहीं से कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने अपनी साइबर सेल के जरिए आकांक्षा के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस की. पता चला उस के फोन की लोकेशन भोपाल की आ रही है.

इस के कुछ दिन पहले शिवेंद्र शर्मा एक उम्मीद ले कर भोपाल आए थे. मोबाइल फोन पर हुई बात के आधार पर वह उदयन के घर एमआईजी 62, सेक्टर-3ए, साकेतनगर, भोपाल पहुंचे और उस से आकांक्षा के बारे में पूछताछ की. उदयन को वह पहले से जानते थे क्योंकि वह आकांक्षा का खास दोस्त था.

उदयन ने यह तो नहीं कहा कि वह आकांक्षा को नहीं जानता, लेकिन गोलमोल बातें बना कर वह शिवेंद्र शर्मा को टरकाने में जरूर कामयाब रहा था. शिवेंद्र शर्मा को उदयन की बातों पर पूरी तरह विश्वास नहीं हुआ था, लेकिन वह कर ही क्या सकते थे.

शिवेंद्र शर्मा को मायूस लौटाने के बाद उदयन का माथा ठनकने लगा था. कुछ दिन बाद वह सीधे कोलकाता स्थित शिवेंद्र के घर जा पहुंचा और 2 दिन तक वहीं रुका. आकांक्षा के बारे में शिवेंद्र और उन की पत्नी शशिकला की चिंता का भागीदार बन कर उस ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आकांक्षा चूंकि उस की अच्छी फ्रैंड है, इसलिए वह उसे ढूंढने में उन की हरसंभव मदद करेगा.

उसी दौरान शिवेंद्र ने यह महसूस किया कि उदयन असामान्य व्यवहार कर रहा है और उन के घर आने के बाद ठीक से सोया भी नहीं है. इस से उन का शक यकीन में बदल गया कि जरूर कोई गड़बड़ है. यह उन के लिए एक और संदिग्ध बात थी कि उदयन बेवजह शशिकला से जिद करता रहा था कि किचन में जा कर वह खुद चाय बनाएगा. जाहिर है सहज होने की कोशिश में उदयन कुछ ज्यादा ही असहज हो गया था. यह बात शर्मा दंपति से छिपी नहीं रह सकी थी.

खूबसूरत, बिंदास और महत्त्वाकांक्षी आकांक्षा और उदयन के इस कनेक्शन को ले कर बांकुरा और भोपाल पुलिस के बीच लंबी मंत्रणा हुई, जिस का निष्कर्ष यह निकला कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. इस गड़बड़ का पता लगाने के लिए पुलिस टीम ने जो योजना तैयार की, उस का पहला चरण उदयन के बारे में खुफिया तरीके से जानकारियां इकट्ठा करने के साथसाथ उस की निगरानी करना भी था.

31 जनवरी और 1 फरवरी को पुलिस टीम ने उदयन की रैकी की. इस कवायद में पुलिस को जो जानकारियां मिलीं, वे चौंका देने वाली थीं. उदयन अड़ोसपड़ोस में किसी से भी मिलताजुलता नहीं था. अलबत्ता वह बेहद विलासी जिंदगी जी रहा था. उस के पास महंगी कारें औडी और मर्सिडीज थीं. पुलिस वालों को उस की जिंदगी और हरकतें हद से ज्यादा रहस्यमय लगीं. साकेतनगर वाला मकान, जिस में वह रहता था, उस का नीचे का हिस्सा उस ने ब्रह्मकुमारी आश्रम को किराए पर दे रखा था.

इन 2 दिनों में वह अपनी एक गर्लफ्रैंड पूजा अटवानी के साथ ‘काबिल’ और ‘रईस’ फिल्में देखने सिनेमा हौल गया था. पुलिस वालों ने दोनों फिल्में उस के पीछे वाली सीट पर बैठ कर देखी थीं, जिस की उसे भनक तक नहीं लगी थी.

2 फरवरी को पुलिस वाले जब उस के घर पहुंचे तो ताला बाहर से बंद था, लेकिन उदयन अंदर मौजूद था. ताला बंद होने के बावजूद पुलिस वालों ने दरवाजा खटखटाया तो अंदर किसी के होने की आहट मिली. किसी अनहोनी से बचने के लिए बांकुरा पुलिस टीम ने गोविंदपुरा थाने से भी पुलिस बुला ली. उदयन अंदर है, पुलिस यह जान चुकी थी. उसे पकड़ने के लिए गोविंदपुरा थाने के एएसआई सत्येंद्र सिंह कुशवाहा छत के रास्ते से हो कर नीचे गए और उदयन का हाथ पकड़ कर उस से मुख्य दरवाजा खुलवाया.

पुलिस टीम जब अंदर दाखिल हुई तो वहां का नजारा देख चौंकी. कमरों का इंटीरियर बहुत अच्छा था, हर कमरे में एलसीडी लगे थे पर पूरा घर अस्तव्यस्त पड़ा था. ऐसा लग रहा था जैसे वहां मुद्दत से साफसफाई नहीं की गई है. पुलिस ने उदयन से आकांक्षा के बारे में पूछा तो वह खामोश रहा.

पहली मंजिल पर चबूतरा बना देख पुलिस वालों का चौंकना स्वाभाविक था. कमरों में सिगरेट के टोंटे पड़े थे. साथ ही शराब की खाली बोतलें भी लुढ़की पड़ी थीं. सिगरेट के टोंटों की तादाद हजारों में थी. कुछ प्लेटों में बासी सब्जी व दाल पड़ी थी, जिन से बदबू आ रही थी.

जैसेजैसे पुलिस टीम घर को देख रही थी, वैसेवैसे रोमांच और उत्तेजना दोनों ही बढ़ती जा रही थीं. हर कमरे की दीवार पर लव नोट्स लिखे हुए थे, जिन में आकांक्षा के साथ बिताए लम्हों का जिक्र साफ दिखाई दे रहा था. कुछ देर घर में घूमने के बाद पुलिस ने जब उदयन से दोबारा पूछा कि आकांक्षा कहां है तो उस ने बेहद सर्द आवाज में जवाब दिया, ‘‘मैं ने उस का कत्ल कर दिया है और वह इस चबूतरे के नीचे है.’’

मकसद में इतनी जल्दी और आसानी से कामयाबी मिल जाएगी, यह बात पुलिस टीम की उम्मीद से बाहर थी. एक बम सा फोड़ कर उदयन खामोश हो गया. उस के चेहरे पर कोई शिकन या घबराहट नहीं थी. आकांक्षा की हत्या कर के उदयन ने उस की लाश दफना दी थी, यह जान कर पुलिस वालों ने उस पर सवालों की झड़ी लगा दी. इस के बदले उदयन ने जो जवाब दिए, उन से सिलसिलेवार यह कहानी सामने आई.

                                                                                                                                       क्रमशः

60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला बहरूपिया – भाग 1

मध्य प्रदेश में जबलपुर की रहने वाली 38 वर्षीया अवंतिका को पढ़ाई करतेकरते शादी की उम्र कब फुर्र हो गई थी उसे पता ही नहीं चल पाया. पढ़ाई के दौरान ही 30 साल उम्र में उस ने शादी कर ली. उस का पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में था, लेकिन शादी के 2 साल बाद ही एक सड़क हादसे में उस के पति की मृत्यु हो गई थी. तब वह 32 साल की थी. उस के बाद उस ने अपने पैरों पर खड़ा होने की शुरूआत की. अधूरी पढ़ाई पूरी करने में जुट गई.

पति की मौत के बाद अवंतिका का ससुराल से नाता टूट चुका था. उस के मातापिता ने उस की दूसरी शादी के लिए प्रयास शुरू कर दिए. घरवालों को कभी उस के लिए वर पसंद आता था, तब लड़के के घरपरिवार में कोई न कोई खोट नजर आ जाती थी. जब कभी उन्हें घरपरिवार पसंद आता था, तब लड़के के साथ उस की कुंडली नहीं मिल पाती थी.

जन्मकुंडली के मुताबिक अवंतिका मंगल के प्रभाव वाली मांगलिक थी. इस के अलावा उस का विधवा होना भी दूसरी शादी में आड़े आ रहा था. उस की हमउम्र सहेलियां जब कभी मायके आती थीं तब वे उस की सुंदरता की तारीफ के पुल बांध देती थीं. कारण, उस ने उदासी की जिंदगी से तौबा कर ली थी. वह सुंदर और कम उम्र वाली हसीन लड़की जैसी दिखती थी. बनठन कर जब निकलती थी, तब उस का गोरा रंग और भी निखर उठता था.

हर पहनावे में उस के उभार, लचक और शारीरिक मांसलता का ग्लैमर बरवस किसी को भी अपनी ओर खींच लेता था. चालढाल सेक्सी आदाओं वाली होती थी. फिर भी वह विधवा होने का दंश झेलने को मजबूर थी. कारोबारी परिवार से थी. पैसे की कमी नहीं थी. अच्छी खासी रकम पति की मृत्यु के बाद उस की बहुराष्ट्रीय कंपनी से भी मिल गई थी. फिर भी वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी.

स्थाई आमदनी वाली सम्मानित नौकरी की तलाश में थी. समय गुजारने के लिए सामाजिक कार्य में लगी रहती थी. राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग में वह एक नौकरी का फार्म भर चुकी थी. किसी ने बताया कि केंद्रीय स्वस्थ्य मंत्रालय से कोई अच्छी सिफारिश लगाई जाए तब उसे नौकरी मिल सकती है.

इस तरह अवंतिका को 2 सपने पूरे करने थे. एक तमन्ना दूसरी शादी से मनपसंद जीवनसाथी की थी, तो दूसरी थी अच्छी आमदनी वाली नौकरी की. उस के हालात को देख कर कहा जा सकता है कि वह एक तरह से जीवन को संवारने के लिए महत्त्वाकांक्षाओं के बीच झूल रही थी.

कड़वा सच था कि उसे किसी में भी सफलता हाथ नहीं लग पाई थी. इस कारण वह तनाव में रहने लगी थी. जब कोई शादी के बारे में उस से पूछता तब मन कसैला हो जाता था. कई बार लोगों के ताने सुन कर दिमाग झन्ना उठता था. जी तो करता था कि उलट कर कोई तगड़ा जवाब दे डाले, फिर वह कुछ सोच कर चुप लगा जाती थी. उसे अपने अच्छे दिन आने का इंतजार था… लेकिन कब तक? उसे नहीं मालूम था कि जिंदगी आगे किस ओर करवट लेने वाली थी, बिलकुल ऊंट की तरह!

सहेली ने सुझाया शादी करने का तरीका

एक दिन उस का स्कूल के जमाने की सहेली से लंबे समय बाद मिलना हुआ. उस ने उस के साथ ही ग्रैजुएशन की थी. हाउसवाइफ की जिंदगी मजे में गुजार रही थी. खुश थी. मिलते ही पूछ बैठी, ‘‘तुम्हारा कोई रिश्ता तय हुआ?’’

यह सुनते ही अवंतिका तिलमिला गई. बोल पड़ी, ‘‘सालों बाद मिली हो… और तुम ने भी वही राग शुरू कर दिया?’’

‘‘मेरे पूछने का मतलब तुम्हें दुखी करना नहीं था,’’ सहेली बात संभालते हुए बोली, ‘‘मेरी बात बुरी लगी तो लो कान पकड़ती हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं…मैं क्या करूं? किसकिस से अपनी तकलीफ सुनाऊं? कितनों को अपने दिल की बात बताऊं?’’ बोलतेबोलते अवंतिका निराश हो गई.

‘‘मेरा कहा मानो तो तुम मैरेज ब्यूरो में सर्च किया करो,’’ सहेली बोली और मुसकराने लगी.

‘‘सुनते हैं कि उस में ज्यादातर फरजी होते हैं,’’ अवंतिका बोली.

‘‘फरजीवाड़ा कहां नहीं है. यह तो तुम पर निर्भर करता है, उस की जांचपरख करना. तुम अनपढ़ थोड़े हो.’’ सहेली ने समझाया.

‘‘लेकिन कई केस आते ही रहते हैं. असलीनकली की पहचान कैसे होगी?’’

‘‘विश्वसनीय मैरेज साइट पर जाओ. सोशलसाइट से संपर्क वाले में ही धोखे की बातें अधिक होती हैं. अच्छी तरह से प्रोफाइल पढ़ो. रिश्ता फाइनल होने से पहले खुद मिलो, परिवार वालों से मिलवाओ. कुछ समय ले कर उस की डिटेल्स की जांच करो…’’ सहेली बोलती चली गई.

‘‘कह तो तुम सही रही हो, लेकिन अधितर 28-30 उम्र तक ही मांगते हैं. मेरी तो…’’ अवंतिका ने चिंता जताई.

‘‘साइट पर जनरल से अलग सिंगल वीमन, विडो या डाइवोर्सी कालम में सर्च कर देखो. कोई न कोई मिल ही जाएगा… तुम्हारी तरह कई पुरुष सुघड़, सुंदर, सुशिक्षित और सुकुमारी प्रोफेशनल लेडी की तलाश में बैठे होंगे. अब भला तुम से अधिक योग्य लेडी कहां मिलेगी…’’ यह कहती हुई सहेली ने उस की ठुड्डी पकड़ ली और हंसने लगी.

सहेली के जाते ही अवंतिका के मन में उम्मीद की एक हलचल होने लगी. संभावना जाग उठी. दिल की धड़कनें बढ़ गईं. एक गिलास पानी पीया, फिर लैपटाप उठा कर छत पर अपने एकांत स्टडी रूम में चली गई. उस रोज उस ने लैपटाप ऐसे खोला जैसे कोई पट खोल रही हो और उस के खुलते ही उस में से कुछ नया निकलने वाला हो. लगता है लैपटाप भी उस की भावनाएं और दिल में मची हलचल के साथ बेसब्री को भांप गया था.

उस रोज धीरेधीरे विंडो का पेज खुला था. अवंतिका ने झट गूगल क्रोम के बटन को 3-4 बार क्लिक कर दिया. गूगल के कई पेज फटाफट खुल गए. तुरंत मैट्रीमोनियल साइट खोल ली और सहेली के बताए कालम को सर्च करने लगी. सहेली ने जैसा कहा था, ठीक वैसा ही मिला. स्क्रीन पर कई अनमैरीड पुरुषों के प्रोफाइल खुल गए. उन के साथ उन की तसवीरें भी थीं. कुछ ने अपने बेहतरीन करियर और प्रौपर्टी की जानकारी भी दे रखी थी.

एक प्रोफाइल पर अटक गईं नजरें

देखतेदेखते एक प्रोफाइल पर उस की नजर अटक गई. नाम था डा. बिधु प्रकाश स्वैन. केंद्र सरकार की नौकरी थी. वह स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल बोर्ड औफ ऐडमिशन कमिटी का डेप्युटी डायरेक्टर जनरल के पद पर बेंगलुरु में पोस्टेड था. उस ने अपनी पसंद के बारे में लिखा था, ‘‘उसे एक एक समझदार और कल्चर्ड महिला की तलाश है.’’

प्रोफाइल में उम्र दर्ज थी 42 साल. मैरिटल स्टेटस में अनमैरेड लिखा था. साथ ही अपने अविवाहित होने का कारण भी था कि उस की शादी पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने और नौकरी के सिलसिले में ट्रांसफर आदि होते रहने के चलते नहीं हो पाई थी. पुश्तैनी घर, परिवार और इलाके की कुछ तसवीरों के अलावा अशोक स्तंभ चिह्न के लोगो लगे विजिटिंग कार्ड और भारत सरकार लिखे लालबत्ती गाड़ी की तसवीरें भी लगी हुई थीं.

यह सब देख कर अवंतिका को उस पर भरोसा बन गया. दूसरी बात यह कि वह भुवनेश्वर में पढ़ाई के सिलसिले में रह चुकी थी, इसलिए उस प्रोफाइल को नजरंदाज नहीं कर पाई. लैपटाप पर सेव कर वह विशलिस्ट में डाल दी.

Top 11 Crime Stories In Hindi – रहस्यमयी और सनसनीखेज क्राइम स्टोरीज

Top 11 Crime stories In Hindi : समाज में अपराध दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं फिर चाहे वो परिवार हो या प्यार. लोगों में गुस्सा और अहंकार बढ़ता ही जा रहा है जिसकी वजह से लोग किसी की जान लेने से भी नहीं डरते. ऐसे में हम आपके लिए लाये हैं कुछ ऐसी ही क्राइम स्टोरीज (Crime Stories) जिन को पढ़कर आप भी चौंक जायेंगे कि कैसे हमारा समाज अपराध के शिकंजे में कसता जा रहा है. यहां आप पढ़ सकते हैं हमारी टॉप हिंदी क्राइम स्टोरीज. 

1. हवस का नतीजा: राज ने भाभी के साथ क्या किया

अचानक एक पेज पर जा कर उस की आंखें अटक गईं. वह अभी अपनी कमीज के सारे बटन भी बंद नहीं कर पाया था लेकिन उस को इस बात की परवाह नहीं रही. वह अपलक उस पन्ने में लिखे शब्दों को पढ़ने लगा. उस में मुग्धा ने लिखा था, ‘बस अब बहुत रो लिया, बहुत दुख मना लिया औलाद के लिए. मेरा बेटा मेरे पास था और मैं उसे पहचान ही नहीं पाई. जब से मैं यहां आई, उसे बच्चे के रूप में देखा तो आज अपनी कोख के बच्चे के लिए इतनी चिंता क्यों? मैं बहुत जल्दी राज को कानूनी रूप से गोद लूंगी.’

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2. जान लेने वाली पत्नियां

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महज 7 महीने के छोटे से वैवाहिक जीवन में कुसुम ने 14-15 बार मायके की ओर दौड़ लगाई थी. जब वह ससुराल में होती थी तो उस की मां रातदिन अपने नाती रिंकू के रोने की बात फोन पर बता कर उस को ससुराल में नहीं रहने देती थी. कुसुम को उस की मां हमेशा अपनी तबीयत का दुखड़ा बता कर बुलाती थी. कुसुम की गोद में रिंकू को डाल कर वह उस का भावनात्मक शोषण करती थी. इस तरह से मां ने एक पल भी कुसुम को ससुराल में चैन से अपने पति विनीत के साथ नहीं रहने दिया. इस से विनीत डिप्रैशन में चले गया तो मां ने नई चाल चली. वह कुसुम को सिखाने लगी कि तेरा आदमी नामर्द है, उसे छोड़ दे.

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3. मोहिनी : कौन सी गलती ने बर्बाद कर दिया परिवार

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कन्हैया सावधानी से उस के दरवाजे तक आ गया और वहां से उसे अपने आंगन तक ले जाने के लिए तो मोहिनी वहां मौजूद थी ही. तकरीबन 2 घंटे तक कन्हैया वहां रह कर मौजमजा लेता रहा, फिर जैसे आया था वैसे ही लौट गया. ठीक उसी समय अलग हुए बराबर के घर में सलोनी अपने छोटे भाई रमुआ के साथ पशुओं को खूंटे से बांध रही थी. आज रमुआ अपने साथ दोपहर का खाना नहीं ले जा सका था, इसी वजह से वह सवेरे ही पशुओं को हांक लाया था.

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4. पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल – भाग 1

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कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब गौर किया तो उन्हें इंसान के पैर दिखे जिन में बिछुए थे. वह समझ गए कि यह किसी महिला की लाश है. तब तक अग्निशमन दल की टीम भी वहां आ चुकी थी. टीम ने जब आग बुझाई तो वहां वास्तव में एक महिला की लाश निकली. वह लाश झुलस चुकी थी. फिर भी चेहरा इतना तो बचा था कि उस की शिनाख्त हो सकती थी.

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5. पैसों के लालच में बुझ गई ‘रोशनी’

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मोटरसाइकिल से आए युवकों में से 2 नीचे उतरे और रामदुरेश को धक्का मार कर गिरा दिया. उन के गिरते ही वे युवक स्टालर से 2 साल की रौशनी को उठा कर फगवाड़ा की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी में हुआ था कि रामदुरेश कुछ सोचसमझ ही नहीं पाए. जब तक वह उठ कर खड़े हुए, मोटरसाइकिल सवार काफी दूर जा चुके थे. वह मोटरसाइकिल का नंबर भी नहीं देख पाए. रामदुरेश ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठा हो गए. घर वाले भी बाहर आ गए. उन्होंने उन से युवकों का पीछा करने को कहा. कई लोग मोटरसाइकिलों से फगवाड़ा की ओर गए, लेकिन किसी को वे युवक दिखाई नहीं दिए.

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6. नादान मोहब्बत का नतीजा 

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इरफान देखने में अच्छाखासा था और ठीकठाक कमाई भी कर रहा था, केवल एक ही बात थी कि वह मुसलमान था. पर आज के जमाने में तमाम अंतरजातीय विवाह होते हैं. यह सब सोच कर शिल्पी ने इरफान की मोहब्बत स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद वह अकसर उस के साथ घूमनेफिरने लगी. मोहल्ले वालों ने जब शिल्पी को इरफान के साथ देखा तो तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने रामअवतार को बताया कि वह अपनी बेटी को संभाले. वह एक मुसलमान लड़के के साथ घूमतीफिरती है. कहीं उस की वजह से कोई बवाल न हो जाए.

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7. मोहब्बत की परिणति : क्या कहानी है इस परिवार की

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सरेआम हुई इस वारदात ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी थी. गोली चलाने वाले कौन थे, किस तरफ भागे थे, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी खंगाले, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस ने पड़ोसियों से बात की तो उन्होंने बताया कि हम ने गोलियां चलने की आवाज तो नहीं सुनी अलबत्ता मार दिया…मार दिया… की चीखपुकार जरूर सुनी थी. जिस के बाद वे लोग पाराशर के मकान की तरफ दौड़े. हालांकि कुछ लोगों ने पाराशर के मकान से एक आदमी को भागते देखा, लेकिन वह कौन था, कैसे आया और कहां गया, इस बाबत कुछ नहीं बता पाए.

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8. प्रेम कहानी का भयानक अंत: क्यों हुआ प्यार का ऐसा अंजाम

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शिवम पर कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा तो वह परेशान हो गया. नंदिनी ने शिवम पर जो आरोप लगाए उस के अनुसार झगड़े के बाद शिवम सुलह और शादी कराने के लिए उसे एक मंदिर में ले गया. लेकिन मंदिर में पहले से कई लड़के मौजूद थे. शिवम और उस के साथियों ने वहीं पर नंदिनी के साथ गैंगरेप किया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे चुप रहने की धमकी भी दी. अपने साथ हुए इस धोखे पर नंदिनी ने भी सोच लिया कि वह अब चुप नहीं बैठेगी. उस ने मामला पुलिस में ले जाने और शिवम को सजा दिलाने की ठान ली.

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9. दुष्कर्मियों को सजा: निडरता की मिसाल बनी रीना

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इस के बाद उन सभी लड़कों ने रीना को अपनी हवस का शिकार बनाया. विरोध करने पर उस के साथ मारपीट कर के गालियां दी गईं. एक आरोपी ने ब्लैकमेल करने के लिए मोबाइल से उस की वीडियो भी बना ली, साथ ही धमकी दी कि जब भी बुलाएं आ जाना और अगर पुलिस में जाने की सोची तो उसे बदनाम कर दिया जाएगा. रीना रोईगिड़गिडाई, पर उन हैवानों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. बदनामी के डर से रीना इस घटना के बाद चुप रही. न परिवार को बताया और न ही पुलिस को. अलबत्ता वह घुटन भरी जिंदगी जीती रही. हालात और मजबूरी के आगे परेशान हो कर उस ने गांव छोड़ दिया और गुड़गांव जा कर नौकरी करने लगी.

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10. कोठा: उस लड़की ने धंधा करने से क्यों मना कर दिया

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दूसरे दिन रामू जीप ले कर रजनी को लेने दामोदर की खोली में पहुंचा, तो दामोदर वहां नहीं था. उस के कमरे के बाहर ताला लटका देखा. रामू तो समा गया कि दामोदर रजनी को ले कर कहीं भाग गया है. जब यह खबर चनकू बाई को मिली, तो वह गुस्से से तिलमिला उठी. उस ने फौरन शहर में गुंडे फैला दिए थे, ताकि दामोदर और रजनी शहर से बाहर न जाने पाएं. अब सारे शहर में चनकू बाई के आदमी घूम रहे थे, पर दामोदर और रजनी का कहीं अतापता नहीं था. रामू भी कुछ आदमियों को ले कर रेलवे स्टेशन पर तलाश कर रहा था. हथियारों से लैस चनकू बाई के आदमी टे्रन के हर डब्बे की तलाशी ले रहे थे.

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11. साधना कक्ष: बाबा ने की हद पार

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बाबा ने अंजलि को फिर वही मिठाई खाने को दी जो उस ने परची पर लिखी थी. लेकिन इस बार अंजलि को जरा भी हैरानी नहीं हुई क्योंकि उसे यह पता चल चुका था कि बाबा को परची पर लिखी गई हर बात पता चल जाती है. इस के पीछे कोई न कोई राज जरूर था, जिस से आज परदा उठने वाला था. अंजलि इसी सोच में डूबी थी कि बाबा की आवाज उस के कानों में गूंजी, ‘‘अब तुम रात बिताने को तैयार हो. जाओ और मिठाई खा कर आराम करो.’’ इतना कह कर बाबा बाहर चला आया और अंजलि के साथ आई मौसी से साधना कक्ष में ताला लगवा कर अपनी आरामगाह में चला गया.

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जुर्म की आवाज