इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 4

नर्सिंग होम मालिकों ने रची साजिश

इधर अनुज महतो अविनाश के किसी भी मकसद को और पनपने देना नहीं चाहता था क्योंकि वह उस के लिए बेहद खतरनाक बन चुका था.

पहले रची योजना के मुताबिक 9 नवंबर, 21 को अनुज महतो ने रात 9 बज कर 58 मिनट पर पूर्णकला देवी से अविनाश को फोन करवाया और एक अहम जानकारी देने के लिए उसे अपने नर्सिंग होम बुलवाया. नर्स पूर्णकला देवी ने वैसा ही किया जैसा मालिक ने उसे करने को कहा.

नर्स पूर्णकला देवी का फोन आने के बाद अविनाश उस से मिलने फोन पर बात करते हुए अपने औफिस से पैदल ही निकल गया और अपनी बाइक वहीं छोड़ गया था. उसी समय उस की मां संगीता जब खाना खाने के लिए उसे बुलाने पहुंची तो औफिस खुला देख समझा कि यहीं कहीं बाहर गया होगा, आ जाएगा. फिर वह वापस घर लौट आई थीं.

इधर फोन पर बात करता हुआ अविनाश थाना बेनीपट्टी से 400 मीटर दूर कटैया रोड पहुंचा, जहां एक कार उस के आने के इंतजार में खड़ी थी. कार में नर्स पूर्णकला देवी सवार थी. अविनाश को देखते ही उस ने पीछे का दरवाजा खोल कर उसे बैठा लिया.

फिर वहां से सीधे अनुराग हेल्थकेयर सेंटर पहुंची, जहां पहले से घात लगाए सब से आगे वाले कमरे में अनुज महतो बैठा था. उसी कमरे में उस ने लकड़ी का मूसल भी छिपा कर रखा था, जबकि पूर्णकला ने अनुज महतो के चैंबर में लाल मिर्च का पाउडर और एक पैकेट कंडोम रखा था.

अविनाश को साथ ले कर वह सीधा चैंबर में पहुंची, जहां उस ने उपर्युक्त सामान छिपा कर रखा था. खाली पड़ी एक कुरसी पर उसे बैठने का इशरा कर भीतर कमरे में गई और जब लौटी तो उस के हाथ में पानी भरा कांच का गिलास था.

उस ने पानी अविनाश की ओर बढ़ा दिया. अविनाश ने पानी भरा गिलास नर्स के हाथों से ले कर जैसे ही अपने होठों से लगाया, फुरती से मिर्च पाउडर पूर्णकला ने उस की आंखों में झोंक दिया. मिर्च की जलन से अविनाश के हाथ से कांच का गिलास छूट कर फर्श पर गिर पड़ा और खतरे को भांप कर अविनाश आंखें मलता हुआ बाहर की ओर भागा.

तब तक मूसल ले कर कमरे में पहले से घात लगाए बैठा अनुज महतो बाहर निकला और उस के सिर पर पीछे से मूसल का जोरदार वार किया. वार इतना जोरदार था कि वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. तब तक वहां रोशन, बिट्टू, दीपक, पवन और मनीष भी आ पहुंचे.

फर्श पर गिरे अविनाश की सांसों की डोर अभी टूटी नहीं थी. वह बेहोश हुआ था. फिर उसे खींचकर चैंबर में ले जाया गया. वहां अस्पताल की चादर से अविनाश का गला तब तक दबाया गया, जब तक उस का बदन ठंडा नहीं पड़ गया. इस के बाद अनुज महतो पांचों की मदद से एक बोरे में अविनाश की लाश भर कर जिस कार से आया था, उसी कार की डिक्की में छिपा कर औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के जंगल में फेंक कर फरार हो गए.

2 दिनों बाद जब अविनाश की खोज जोर पकड़ी तो अनुज महतो सहित सभी घबरा गए कि कहीं उस की लाश बरामद न हो जाए, नहीं तो सब के सब पकड़े जाएंगे. बुरी तरह परेशन अनुज महतो 11 नवंबर की रात अपनी बाइक ले कर उड़ने चौर थेपुरा पहुंचे, जहां अविनाश की लाश फेंकी थी. उस की लाश अभी वहीं पड़ी थी. फिर क्या था, उस ने बोरे के ऊपर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी और अपनी बाइक थेपुरा गांव में छोड़ कर फरार हो गया.

अपने दुश्मन अविनाश को रास्ते से हटाने के बाद अनुज महतो ने जो फूलप्रूफ योजना बनाई थी, वह फेल हो गई और आरोपी कानून के मजबूत फंदों से बच नहीं सके. वह असल ठिकाने पहुंच गए. अनुज महतो कथा लिखने तक फरार चल रहा था.

पुलिस ने नर्स पूर्णकला देवी की निशानदेही पर अनुराग हेल्थकेयर सेंटर से मिर्च से भरी डिब्बी, कंडोम का पैकेट, खून से सनी चादर और मूसल बरामद कर लिया था. जांचपड़ताल में यह पता चली थी कि अविनाश और नर्स पूर्णकला देवी के बीच मधुर संबंध थे. ये मधुर संबंध भी अविनाश की हत्या का एक वजह बनी थी.

अविनाश की हत्या के मुख्य आरोपी अनुज महतो, जो फरार चल रहा था, ने पुलिस के दबाव में आ कर 21 जनवरी, 2022 को व्यवहार न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया था, जहां पुलिस ने 48 घंटे की रिमांड पर ले कर उस से हत्या की जानकारी जुटाई और फिर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पत्रकार अविनाश के सभी आरोपी जेल की सलाखों के पीछे कैद अपनी करनी पर पछता रहे थे

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 3

अपने ही इलाके बेनीपट्टी के कटैया रोड पर किराए का 5 कमरों का एक मकान ले कर उस में जयश्री हेल्थकेयर के नाम से नर्सिंग होम खोल लिया. भिन्नभिन्न इलाजों के लिए अलगअलग डाक्टरों को नियुक्त कर के नर्सिंग होम शुरू किया था. थोड़ी मेहनत से अविनाश का नर्सिंग होम चल निकला. लेकिन उस के सपनों का शीशमहल धरातल पर ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका. इस की बड़ी वजह थी बेनीपट्टी में कुकुरमुत्तों की तरह नर्सिंग होम्स का पहले से संचालित होना.

दरअसल, दरजनों नर्सिंग होम उस इलाके में पहले से चल रहे थे. अच्छी जगह पर अविनाश का नर्सिंग होम खुल जाने और सब से कम पैसों में इलाज करने से बाकी के नर्सिंग होम्स की कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई थी, जिस से सभी नर्सिंग होम संचालकों की नींद हराम हो गई थी.

वे नहीं चाहते थे कि जयश्री हेल्थकेयर चले. फिर क्या था, सभी संचालकों ने मिल कर स्वास्थ्य विभाग में झूठी शिकायत कर के उस का नर्सिंग होम बंद करवा दिया. एक साल के भीतर ही उस का नर्सिंग होम बंद हो गया. यह बात 2019 की है.

ऐसा नहीं था कि धन माफियाओं के डर से हार मान कर अविनाश ने हथियार डाल दिया हो. उस दिन के बाद से अविनाश ने दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि स्वास्थ्य के नाम पर नर्सिंग होमों द्वारा गरीबों से मनमाने तरीके से की जा रही वसूली को वह ज्यादा दिनों तक चलने नहीं देगा. उन नर्सिंग होमों को भी वह बंद करवा कर दम लेगा, जिन्होंने उस के सपनों को कुचलामसला था. क्योंकि उसे पता था कि जिले के अधिकांश नर्सिंग होम अपने आर्थिक लाभ के लिए नियमकानून को ताख पर रख कर कैसे संचालित हो रहे हैं.

अवैध नर्सिंग होम्स के खिलाफ अविनाश ने उठाई आवाज

बड़ेबड़े मगरमच्छों से टकराना अविनाश के लिए आसान नहीं था. क्योंकि वह उन की ताकत को देख चुका था. उन्हें कुचलने के लिए एक ऐसे हथियार की उसे जरूरत थी, जो उसे सुरक्षा भी दे सके और दुश्मनों को मीठे जहर के समान धीरेधीरे मार भी सके.

विकास झा अविनाश का सब से अच्छा दोस्त भी था और हमदर्द भी. उस के सीने में सुलग रही आग को वह अच्छी तरह जानता था. बीएनएन न्यूज पोर्टल नाम से वह एक न्यूज चैनल भी चलाता था. शार्प दिमाग वाले अविनाश के मन में आया कि दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए क्यों न पत्रकारिता को अपना ले. फिर उस ने विकास से बात कर के बीएनएन न्यूज पोर्टल जौइन कर लिया.

पत्रकारिता का चोला ओढ़ने के बाद अविनाश बेहद ताकतवर बन गया था. खाकी वरदी से ले कर खद्दर वालों के बीच उस ने एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था. धीरेधीरे वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था. अपने विरोधियों और दुश्मनों को धूल चटाने के लिए वह परिपक्व हो चुका था. उस के दुश्मनों की लिस्ट में बेनीपट्टी के 2 नर्सिंग होम अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संजय और अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के मालिक डा. अनुज महतो थे.

2019 के अगस्त महीने में अविनाश ने आरटीआई के माध्यम से दरजन भर नर्सिंग होम्स से सूचना मांगी थी, जिन के नाम अलजीना हेल्थकेयर, शिवा पाली क्लीनिक, सुदामा हेल्थेयर, सोनाली हेल्थकेयर, मां जानकी सेवा सदन, आराधना हेल्थ ऐंड डेंटल केयर क्लिनिक, जय मां काली सेवा सदन, अंशु हेल्थकेयर सेंटर, सानवी हौस्पिटल, अनन्या नर्सिंग होम, अनुराग हेल्थकेयर सेंटर और आर.एस. मेमोरियल हौस्पिटल थे.

अविनाश के इस काम से सभी नर्सिंग होम के संचालकों की भौहें तन गईं कि इस की इतनी हिम्मत कि हमें ही आंखें दिखाने लगा. उसे पता नहीं है किस से टकराने की कोशिश कर रहा है. बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. इन धन माफियाओं की गीदड़भभकी के आगे अविनाश न झुका और न ही डरा. बल्कि इन से टक्कर लेने के लिए वह डट कर खड़ा हो गया था.

काररवाई से तिलमिला गए नर्सिंग होम मालिक

अविनाश द्वारा डाली गई आरटीआई का  किसी भी नर्सिंग होम के संचालकों ने उत्तर नहीं दिया तो उस ने लोक जन शिकायत के माध्यम से इस की शिकायत ऊपर के अधिकारियों तक पहुंचा दी. अविनाश की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उपर्युक्त नर्सिंग होमों की जांच की तो उन में से कई नर्सिंग होम स्वास्थ्य विभाग के मानक पर खरे नहीं उतरे. अंतत: उन्हें स्वास्थ्य विभाग के कोप का भाजन पड़ा और उन पर ताला लगा दिया गया.

अविनाश ने पानी में रह कर मगरमच्छों से दुश्मनी मोल ले ली थी. विरोधियों की कमर तोड़ने के लिए अविनाश ने जो तीर छोड़ा था, वह ठीक उस के निशाने पर जा कर लगा था. अविनाश के इस काम से खफा चल रहे सभी नर्सिंग होम संचालक आपस में एकजुट हो गए और मिल कर अविनाश को सबक सिखाने की तैयारी में जुट गए थे. इसी कड़ी में अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संतोष एक दिन अविनाश के घर जा पहुंचे.

इत्तफाक से उन की मुलाकात अविनाश के बडे़ भाई त्रिलोकीनाथ झा उर्फ चंद्रशेखर से हुई. उस समय अविनाश घर पर नहीं था, कहीं गया हुआ था.

त्रिलोकीनाथ को समझाते हुए डा. संतोष ने कहा, ‘‘तुम अपने भाई अविनाश को समझाओ कि वह जो कर रहा है, उसे तुरंत बंद कर दे. वरना जानते ही हो आए दिन सड़कों पर तमाम एक्सीडेंट होते रहते हैं. वह भी किसी दुर्घटना का शिकार हो कर कहीं सड़क किनारे पड़ा मिलेगा. फिर मत कहना कि मैं ने समझाया नहीं.’’

डा. संतोष त्रिलोकीनाथ को धमकी दे कर चला गया. त्रिलोकीनाथ जानता था कि बदले की आग में जल रहा अविनाश अपने विरोधियों को धूल चटाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा है. उस ने संतोष की धमकी को दरकिनार कर दिया और छोटे भाई को कुछ नहीं बताया.

विरोधियों को खाक में मिलाने के लिए पत्रकार अविनाश बहुत आगे निकल चुका था. उस के आरटीआई पर 2 और नर्सिंग होमों अनन्या और अनुराग पर स्वास्थ्य विभाग की काररवाई होनी तय हो गई थी. दोनों नर्सिंग होम भी स्वास्थ्य विभाग के मानकों पर खरे नहीं उतरे थे. अनन्या के मालिक संतोष और अनुराग के मालिक अनुज महतो किसी कीमत पर अपने नर्सिंग होम बंद होने नहीं देना चाहते थे. उन के बंद होने से हाथों से लाखों रुपए की कमाई जा रही थी.

क्रोध की आग में जल रहे अनुज महतो ने अविनाश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. अपनी इस योजना में उस ने अपने नर्सिंग होम की सब से विश्वासपात्र नर्स पूर्णकला देवी के साथ रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को मिला लिया.

कहीं से इस की भनक अविनाश को मिल गई थी. 7 नवंबर को फेसबुक पर उस ने बेहद मार्मिक पोस्ट शेयर की, जिस में उस ने अपनी हत्या किए जाने की आशंका जाहिर करते हुए 15 नवंबर को ‘द गेम इज ओवर’ लिखते हुए बड़ा खेल होना पोस्ट किया था.

                                                                                                                                         क्रमशः

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 2

हत्या के विरोध में लोगों ने किया आंदोलन

बहरहाल, पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा की निर्मम हत्या के विरोध में विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का शांतिपूर्ण आंदोलन चरम पर था. उस के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग जोर पकड़ रही थी. उस से शहर की शांति व्यवस्था उथलपुथल हो चुकी थी.

इस बीच, अविनाश का पोस्टमार्टम कर के उस का पार्थिव शरीर घर वालों को सौंप दिया गया था, लेकिन घर वालों और राजनीतिक दलों के नेताओं ने हत्यारों के गिरफ्तार होने तक उस का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया.

एसपी डा. सत्यप्रकाश जानते थे कि जब तक अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा, शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जाएगी. उन्होंने एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल अविनाश के घर उन्हें समझाने के लिए भेजा कि अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा, उस का अंतिम संस्कार कर दें.

एसपी सत्यप्रकाश के आश्वासन पर मृतक के घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इधर अविनाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. रिपोर्ट में उस की मौत का कारण सिर में गहरी चोट लगना बताया गया था. साथ ही मौत 72 से 80 घंटे पहले होनी बताई गई.

यानी जिस दिन अविनाश रहस्यमय ढंग से गायब हुआ था, उसी दिन उस की हत्या हो चुकी थी. पुलिस ने अविनाश के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन अध्ययन किया. काल डिटेल्स में रात के 9 बज कर 58 मिनट पर आखिरी बार किसी को काल आई थी.

जब पुलिस ने अविनाश के न्यूज पोर्टल औफिस में लगे सीसीटीवी कैमरे को चैक किया तो उस समय भी फुटेज में यही समय हो रहा था जब काल रिसीव करते हुए अविनाश बाहर निकल रहा था. उस के बाद वह घर नहीं लौटा था.

बहरहाल, पुलिस ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर पूर्णकला देवी के नाम का निकला. पुलिस ने जब और गहराई से जांच की तो पता चला कि अनुराग हेल्थ सेंटर में काम करने वाली नर्स पूर्णकला देवी और अविनाश के बीच पिछले 3 महीने से मधुर संबंध कायम थे. पुलिस की जांच प्रेम प्रसंग की ओर मुड़ गई थी.

नर्स से मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

पुलिस की जांच तभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचती, जब पूर्णकला देवी पुलिस के हाथ लगती. इधर पुलिस पर हत्यारों को गिरफ्तार करने का लगातार दबाव बना हुआ था. अखबारों ने अविनाश हत्याकांड की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर दिया था. चारों ओर पुलिस की आलोचना हो रही थी. घटना का सही ढंग से खुलासा करना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. पूर्णकला देवी के गिरफ्तार होने पर ही निर्मम हत्याकांड का खुलासा हो सकता था.

14 नवंबर, 2021 को अरेर थानाक्षेत्र के अतरौली की रहने वाली पूर्णकला देवी को पुलिस ने दबिश दे कर उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए बेनीपट्टी थाने ले आई. एसडीपीओ अरुण कुमार सिंह और थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की.

नर्स पूर्णकला देवी कोई पेशेवर अपराधी तो थी नहीं, जो घंटों पुलिस को यहांवहां भटकाती. पुलिस के सवालों के सामने उस ने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर बता दिया कि पत्रकार अविनाश हत्याकांड में उस के अलावा कई और लोग शामिल थे. उसी दिन पुलिस ने पूर्णकला देवी की निशानदेही पर बेनीपट्टी के रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाने ले आई.

पांचों आरोपियों से कड़ाई से हुई पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म कुबूल लिया. उन्होंने अविनाश हत्याकांड के मास्टरमाइंड अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के संचालक डा. अनुज महतो को बताया था, जिस ने अविनाश की ब्लैकमेलिंग से त्रस्त हो कर घटना को अंजाम दिया था. घटना के बाद से ही डा. अनुज महतो फरार चल रहा था.

नीतीश कुमार ने जारी किया फरमान

खैर, अविनाश हत्याकांड की गूंज प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कानों तक पहुंच चुकी थी. उन्होंने प्रदेश के पुलिस प्रमुख को अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेजने का फरमान जारी कर दिया था. पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा हत्याकांड हाईप्रोफाइल मर्डर कांड बन चुका था, इसीलिए पुलिस की आंखों से नींद उड़ी हुई थी.

पुलिस ने आननफानन में उसी दिन शाम को पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता आयोजित कर अविनाश के हत्यारों को पेश किया और घटना की असल वजहों से रूबरू कराया. उस के बाद सभी आरोपियों को जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

25 वर्षीय अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा मूलरूप से बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी थानाक्षेत्र के लोहिया चौक का निवासी था. अंबिकेश झा के 2 बेटों में वह छोटा था.

सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले अंबिकेश किसान थे. खेतीबाड़ी से इतनी आमदनी कर लेते थे कि परिवार का भरणपोषण करने के बाद कुछ बचा लेते थे. बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए पानी की तरह रुपए बहाते थे. ऐसा नहीं था कि उन के दोनों बेटे अपने सामान्य परिस्थितियों को न समझते रहे हों या पैसों की कीमत न समझते हों, बल्कि वे गरीबी की भट्ठी में तप कर कुंदन बन गए थे.

दोनों बेटे त्रिलोकीनाथ और अविनाश पढ़लिख कर योग्य इंसान बनाना चाहते थे. इस के लिए दोनों ही हाड़तोड़ मेहनत करते थे. जिस तरह दोनों हाथों की सभी अंगुलियां एक समान नहीं हैं, उसी तरह अंबिकेश के दोनों बेटे एक समान नहीं थे.

अविनाश घर में सब से छोटा था, इसलिए सब का लाडला था. मांबाप से ले कर भाईबहन सभी उस पर अपना प्यार लुटाते थे. इसलिए वह थोड़ा जिद्दी भी था. जिस भी काम को करने की जिद वह ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. चाहे इस के लिए उसे बड़ी से बड़ी कुरबानी क्यों न देनी पड़े. वह पीछे नहीं हटता था.

अविनाश का नर्सिंग होम करा दिया बंद

बात साल 2018 की है. ग्रैजुएशन पूरा कर चुके अविनाश का सपना था नर्सिंगहोम खोल कर वह गरीबों की सेवा करे. इतनी ही छोटी उम्र में उस की सोच महासागर से भी गहरी थी क्योंकि वह गरीबी अपनी आंखों से देख चुका था. इसलिए वह नहीं चाहता था कि कोई भी गरीब पैसों के अभाव में इलाज के लिए दम तोड़े.

                                                                                                                                           क्रमशः

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 1

रात के साढ़े 10 बज रहे थे. बिहार के मधुबनी जिले की रहने वाली संगीता देवी बेटे अविनाश को ढूंढती हुई दूसरे मकान पहुंची, जहां उस ने न्यूज पोर्टल का अपना औफिस बना रखा था. यहीं बैठ कर वह न्यूज एडिट करता था. लेकिन अविनाश अपने औफिस में नहीं था. दरवाजे के दोनों पट भीतर की ओर खुले हुए थे. कमरे में ट्यूबलाइट जल रही थी और बाइक बाहर खड़ी थी. संगीता ने सोचा कि बेटा शायद यहीं कहीं गया होगा, थोड़ी देर में लौट आएगा तो खाना खाने घर पर आएगा ही.

लेकिन पूरी रात बीत गई, न तो अविनाश घर लौटा था और न ही उस का मोबाइल फोन ही लग रहा था. उस का फोन लगातार बंद आ रहा था. मां के साथसाथ बड़ा भाई त्रिलोकीनाथ झा भी यह सोच कर परेशान हो रहा था कि भाई अविनाश गया तो कहां? उस का फोन लग क्यों नहीं रहा है? वह बारबार स्विच्ड औफ क्यों आ रहा है?

ये बातें उसे परेशान कर रही थीं. फिर त्रिलोकीनाथ ने अविनाश के सभी परिचितों के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा तो सभी ने ‘न’ में जवाब दिया. उन सभी के ‘न’ के जवाब सुन कर त्रिलोकीनाथ एकदम से हताश और परेशान हो गया था और मांबाप को भी बता दिया कि अविनाश का कहीं पता नहीं चल रहा है और न ही फोन लग रहा है.

पता नहीं कहां चला गया? बड़े बेटे का जवाब सुन कर घर वाले भी परेशान हुए बिना नहीं रह सके. यही नहीं, घर में पका हुआ खाना वैसे का वैसा ही रह गया था. किसी ने खाने को हाथ तक नहीं लगाया था. अविनाश के अचानक इस तरह लापता हो जाने से किसी का दिल नहीं हुआ कि वह खाना खाए.

पूरी रात बीत गई. घर वालों ने जागते हुए पूरी रात काट दी. कभीकभार हवा के झोंकों से दरवाजा खटकता तो घर वालों को ऐसा लगता जैसे अविनाश घर लौट आया हो. यह बात 9 नवंबर, 2021 बिहार के मधुबनी जिले की लोहिया चौक की है.

अगली सुबह त्रिलोकीनाथ दरजन भर परिचितों को ले कर बेनीपट्टी थाने पहुंचे. थानाप्रभारी अरविंद कुमार सुबहसुबह कई प्रतिष्ठित लोगों को थाने के बाहर खड़ा देख चौंक गए. उन में से कइयों को वह अच्छी तरह पहचानते भी थे. वे छुटभैए नेता थे. वह कुरसी से उठ कर बाहर आए और उन के सुबहसुबह थाने आने की वजह मालूम की. इस पर लिखित तहरीर उन की ओर बढ़ाते हुए त्रिलोकीनाथ ने छोटे भाई के रहस्यमय तरीके से गुम होने की बात बता दी.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने जब सुना कि बीएनएन न्यूज पोर्टल के चर्चित पत्रकार और जुझारू आरटीआई कार्यकर्ता अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा से मामला जुड़ा है तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने तहरीर ले कर आवश्यक काररवाई करने का भरोसा दिला कर सभी को वापस लौटा दिया.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की गुमशुदगी दर्ज कर ली और उस की तलाश में जुट गए. उन्होंने मुखबिरों को भी अविनाश की खोजबीन में लगा दिया था. अरविंद कुमार ने साथ ही साथ इस मामले की जानकारी एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह और एसपी डा. सत्यप्रकाश को भी दे दी थी ताकि बात बनेबिगड़े तो अधिकारियों का हाथ बना रहे.

अविनाश को गुम हुए 4 दिन बीत चुके थे. लेकिन उस का अब तक कहीं पता नहीं चल सका था. बेटे के रहस्यमय ढंग से गायब होने से घर वालों का बुरा हाल था. 3 दिनों से घर में चूल्हा तक नहीं जला था. अब भी घर वालों को उम्मीद थी कि अविनाश कहीं गया है, वापस लौट आएगा. इसी बीच उन के मन में रहरह कर आशंकाओं के बादल उमड़ने लगते थे जिसे सोचसोच कर उन का पूरा बदन कांप उठता था.

झुलसी अवस्था में मिली पत्रकार की लाश

बहरहाल, 12 नवंबर, 2021 की दोपहर में अविनाश के बड़े भाई त्रिलोकीनाथ को एक बुरी खबर मिली कि औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के सुनसान बगीचे में बोरे में जली हुई एक लाश पड़ी है, आ कर देख लें. लाश की बात सुनते ही त्रिलोकीनाथ का कलेजा धक से हो गया. बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा कर खुद को संभाला, लेकिन घर वालों को भनक तक नहीं लगने दी. अलबत्ता उस ने इस की जानकारी बेनीपट्टी के थानाप्रभारी अरविंद कुमार को दे दी और साथ में मौके पर चलने को कहा.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार टीम के साथ  त्रिलोकीनाथ को ले कर उड़ने चौर धेपुरा पहुंचे, जहां जली हुई लाश पाए जाने की सूचना मिली थी. चूंकि वह क्षेत्र औंसी थाने में पड़ता था, इसलिए इस की सूचना उन्होंने औंसी थाने के प्रभारी विपुल को दे कर उन्हें भी घटनास्थल पहुंचने को कह दिया था. सूचना पा कर थानाप्रभारी विपुल भी मौके पर पहुंच चुके थे.

लाश प्लास्टिक के अधजले कट्टे में थी. लग रहा था कि लाश वाले उस कट्टे पर कोई ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगाई गई थी. जिस से कट्टे के साथ लाश काफी झुलस गई थी. चेहरे से वह पहचानने में नहीं आ रही थी. थानाप्रभारी अरविंद ने त्रिलोकीनाथ को लाश की शिनाख्त के लिए आगे बुलाया.

लाश के ऊपर कपड़ों के कुछ टुकड़े चिपके थे और उस के दाएं हाथ की मध्यमा और रिंग फिंगर में अलगअलग नग वाली 2 अंगूठियां मौजूद थीं. कपड़ों के अवशेष और अंगूठियों को देख कर त्रिलोकीनाथ फफकफफक कर रोने लगा. उसे रोता हुआ देख पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मृतक उस का भाई अविनाश है, जो पिछले 4 दिनों से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था.

अब क्या था, जैसे ही अविनाश की लाश पाए जाने की जानकारी घर वालों को हुई, उन का जैसे कलेजा फट गया. घर में कोहराम मच गया और रोनाचीखना शुरू हो गया. इस के बाद तो पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की हत्या की खबर देखते ही देखते जंगल में आग की तरह पूरे शहर में फैल गई थी. अविनाश की हत्या की खबर मिलते ही मीडिया जगत में शोक की लहर दौड़ गई. उस के समर्थकों के दिलों में आक्रोश फूटने लगा थे. समर्थक उग्र हो कर आंदोलन की राह पर उतर आए.

13 नवंबर को अविनाश की निर्मम हत्या के विरोध में शाम के वक्त विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बेनीपट्टी बाजार की मुख्य सड़क पर कैंडल मार्च निकाल कर हत्यारे को फांसी देने, परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा देने और हत्याकांड की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग को ले कर प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी की. सभी लोग कैंडल मार्च के माध्यम से विरोध प्रकट करते हुए डा. लोहिया चौक से अनुमंडल रोड तक सड़क पर नारेबाजी करते रहे.

कैंडल मार्च भाकपा नेता आनंद कुमार झा के नेतृत्व में शुरू हुआ. वहां जनकल्याण मंच के महासचिव योगीनाथ मिश्र, कांग्रेसी नेता विजय कुमार मिश्र, भाजपा नेता विजय कुमार झा, मुकुल झा और बीजे विकास सहित तमाम लोग मौजूद थे.

एक ओर जहां नेता कैंडल मार्च निकाल कर प्रशासन पर दबाव बना रहे थे तो वहीं दूसरी ओर झंझारपुर प्रैस क्लब के सदस्यों ने ललित कर्पूरी स्टेडियम में एक आपात बैठक कर इस पूरे घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की.

                                                                                                                                          क्रमशः 

जुर्म की आवाज – भाग 4

हम ने जल्दी से गाड़ी स्टार्ट की और उस तरफ चल पड़े, जिधर कब्र होने का अंदाजा था. 20 मिनट में हम ने वह कब्र तलाश कर ली. अगले 10 मिनट में हमें एक गैस स्टेशन के पीछे कचरे के ड्रम में तेजाब की बोतल, बेलचा, दस्ताने और चश्मा भी मिल गया. वह गैस स्टेशन कच्ची सड़क से करीब 1 किलोमीटर दूर था.

शौहर की लाश मिलने के बाद भी कीसले ने जुबान नहीं खोली. वह बारबार वकील को बुलाने को कहती रही. रेमंड हम सब को साथ ले कर सिमेट के लिए रवाना हो गए. रास्ते में मोंक के सवालों ने कीसले को सच बोलने पर मजबूर कर दिया. कीसले का शौहर नारमन एक मशहूर आर्किटैक्ट था. वह खुद भी अच्छे जौब पर थी. इन लोगों का सिमेट में एक खूबसूरत बंगला था, पास में 4 कीमती कारें थीं. पतिपत्नी के दोस्तों के साथ शराब की शानदार महफिलें जमती थीं.

घटना से एक दिन पहले सुबह को नाश्ते पर नारमन ने कीसले को बताया कि वह पूरी तरह दिवालिया हो गया है. वह चोरीछिपे जुआ खेलने का आदी था और यह सोच कर बड़ीबड़ी बाजी खेलता था कि शायद किस्मत साथ दे दे और उस का नुकसान पूरा हो जाए. लेकिन उस की यह उम्मीद पूरी नहीं हुई और वह दलदल में फंसता चला गया. यहां तक कि इस के चलते वह दिवालिया हो गया.

इस से ज्यादा बुरी खबर यह थी कि जुए में लगातार हारने की वजह से नारमन का बैंक एकाउंट, जिस में कीसले की भी जमापूंजी थी, एकदम खाली हो गया था. शेयर्स और कीमती चीजें भी बिक गई थीं. इस से भी बुरी बात यह थी कि उस ने अपनी कंपनी में 3 लाख डौलर्स का गबन किया था. इस मामले में नारमन का जेल जाना तय था. उस के जेल जाने के बाद देनदारी के सारे मामले और तकाजे कीसले को अकेले बिना पैसे के भुगतने पड़ते.

इस खौफनाक हकीकत को जान कर कीसले की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. पहले तो उस की समझ में नहीं आया कि क्या करे? फिर वह गुस्से और हताशा में उठ कर किचन में गई. वहां से वह भारी फ्राइंगपैन उठा कर लाई और पीछे से नारमन के सिर पर 2 बार जोरदार वार किए. दूसरे वार ने नारमन की जान ले ली.

कीसले उस की लाश को घसीटते हुए गैराज में ले गई और उसे कचरा रखने वाली खाली थैली में डाल कर उस के मुंह पर एक डोरी बांध दी. इस के बाद  उस ने लाश गाड़ी में रखी और उसे ठिकाने लगाने के लिए रवाना हो गई. कीसले में इतनी ताकत थी कि बिना किसी की मदद के वह सब कुछ कर सकती थी. अगर ऐसा न होता तो उसे लाश के टुकड़े करने पड़ते.

पति की हत्या के बाद कीसले ने कंप्यूटर खोल कर नेट के जरिए ये मालूम किया कि लाश ठिकाने लगाने का बेहतरीन तरीका क्या है? उसे पता चला कि लाश दफन करने के बाद अगर उस पर तेजाब छिड़क दिया जाए तो वह जल्दी गल जाती है.

अब सवाल यह था कि लाश को कहां दफन करे? उसे याद आया कि कुछ साल पहले उस के शौहर ने एक प्लाट लेने का इरादा किया था. पर कीमत पर बात नहीं बन पाई थी और वह जमीन नहीं ले सका था.  वह जगह जंगल के किनारे बिलकुल सुनसान थी. वहां लाश के देख लिए जाने के चांसेज न के बराबर थे. लिहाजा वह बाजार जा कर वहां से लाश ठिकाने लगाने का जरूरी सामान ले आई.

रात गए उस ने अपनी गाड़ी निकाली और लाश को उसी जगह ले जा कर दफन कर दिया, वापस आते हुए उस ने रास्ते में गैस स्टेशन के पीछे कचरा घर में बेलचा, चश्मा और तेजाब की बोतल वगैरह फेंक दी.

‘‘दरअसल किसले ने सोचा था कि सब लोग यही समझेंगे कि नारमन गिरफ्तारी और बदनामी से बचने के लिए कहीं छिप गया है. किसी को इस बात का शक भी नहीं होगा कि उस की परेशान बीवी ने उसे मार डाला है. ऐसे केस में बीवी के मारने का खयाल भी किसी के दिल में नहीं आता, पर किस्मत ने उस का साथ नहीं दिया.

कीसले को ले कर हम पुलिस हेडक्वार्टर पहुंचे, जहां उस का वकील इंतजार में बैठा था. वह एक बड़ा महंगा और काबिल वकील था. पर जब उसे मालूम हुआ कि कीसले बयान दे चुकी है और उस ने जुर्म भी कुबूल कर लिया है, तो  उस ने उस के मुकदमे की पैरवी करने से साफ इनकार कर दिया. रेमंड जानते थे कि ऐसी स्थिति में कोई भी वकील उस का केस नहीं लेगा. इसलिए उन्होंने उस के लिए सरकारी वकील का इंतजाम कर दिया.

इस दौरान हम ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर के रेमंड के औफिस में जमा कर दी. उसे देख कर रेमंड ने कहा, ‘‘तुम दोनों मेरी बुद्धिमत्ता की दाद दो कि मैं ने कैसे आउट औफ वे जा कर तुम दोनों को यहां बुला लिया.’’

इस पर मोंक ने हंसते हुए कहा, ‘‘इस में आप की बीवी की मरजी भी शामिल है, क्योंकि वह मेरी तफ्तीश और मुजरिम पकड़ने की योग्यता से बहुत प्रभावित हैं. वैसे हमें अपने साथ रखने से आप भी तो फायदे में हैं. अब आप को कत्ल की खबर से पहले ही कातिल मिल जाएंगे.’’ कमरे में हम तीनों का कहकहा गूंज उठा.

जुर्म की आवाज – भाग 3

मैं ने गाड़ी उस की कार के आगे रोकी. हम दोनों अपनी कार से बाहर आ गए. हम ने अपने हथियार निकाल लिए और उन का रुख कार की तरफ कर दिया. वह कार में अपनी सीट पर बैठी रही.

‘‘अपने हाथ ऊपर उठाओ और कार से बाहर आओ.’’ मैं ने सख्ती से कहा, तो वह हैरान सी कार के बाहर आ गई. मोंक की पिस्तौल उस पर तनी हुई थी, इसलिए मैं ने अपनी पिस्तौल होलस्टर में रख ली और उसे हथकड़ी डालते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार किया जा रहा है.’’

‘‘मैं नहीं मानती, तुम यह कैसे कह सकते हो कि मैं ने कत्ल किया है?’’

‘‘हम पुलिस वाले हैं, सोचसमझ कर हाथ डालते हैं.’’ मोंक ने कहा.

सूचना पा कर रेमंड 20 मिनट में वहां पहुंच गए. जबकि फोरेंसिक टीम और पैरामैडिकल स्टाफ उन से पहले ही वहां पहुंच गए थे. इन्हें मैं ने बुलवाया था. ऊंचे ओहदे पर होने के बावजूद रेमंड का रवैया बड़ा दोस्ताना था. उन्होंने दोनों कारों को देखा. दोनों में काफी टूटफूट हो चुकी थी. कीसले को एंबुलेंस में बैठा लिया गया था.

रेमंड ने एंबुलेंस में बैठी कीसले पर नजर डाली. फिर वह मोंक से मुखातिब हुआ. ‘‘कमाल हो गया, किसी को मालूम भी नहीं कि कोई कत्ल हुआ है और तुम ने कातिल को पकड़ लिया. यह काम सिर्फ तुम ही कर सकते हो.’’

‘‘शुक्रिया चीफ.’’ मोंक ने उस के व्यंग्य पर ध्यान नहीं दिया.

‘‘लेकिन मोंक तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है. अगर लाश मिल जाती तो गिरफ्तारी हो सकती है, ऐसे नहीं.’’ रेमंड ने कहा.

‘‘उस का इस तरह गाड़ी ले कर भागना उस का जुर्म साबित करता है.’’ मैं ने कहा, तो रेमंड बोले, ‘‘नहीं गाड़ी ले कर भागने के कई कारण हो सकते हैं. तुम इसे इकबाले जुर्म नहीं कह सकते.’’

‘‘चीफ जब हम ने उस पर कत्ल का इल्जाम लगाया, तो उस ने हैरान हो कर कहा था, ‘तुम्हें कैसे पता चला?’

रेमंड ने बात काटी, ‘‘अगर यह इकबाले जुर्म है तो क्या उस ने तुम्हें बताया कि लाश कहां दफन है?’’

‘‘नहीं, न तो उस ने जुर्म कुबूल किया और न ही यह बताया कि उस के शौहर की लाश कहां दफन है?’’ मैं ने कहा, तो मोंक ने दखल दिया, ‘‘मैं साबित कर सकता हूं कि इस औरत ने अपने शौहर का कत्ल किया है.’’

मोंक ने डिटेल में बताया, ‘‘औरत की हथेली पर छाला, शादी की अंगूठी का न होना, सिरके की बोतल, काले बैग का टुकड़ा और गाड़ी के बंपर पर लगा कीचड़, ये सारे सुबूत हैं.’’

मोंक की बातें सुनने के बाद रेमंड सोच में पड़ गए. पलभर बाद बोले, ‘‘मोंक मैं तुम से सहमत हूं. पर इन सब तथ्यों पर न तो हम कत्ल का केस बना सकते हैं और न कत्ल की बात साबित कर सकते हैं. अच्छा यह बताओ, जब कीसले की गाड़ी की रफ्तार ज्यादा नहीं थी तो तुम ने गाड़ी क्यों रोकी?’’

‘‘उस की कार बहुत गंदी थी.’’ मोंक ने जवाब दिया, तो रेमंड अपना सिर पीटते हुए बोले, ‘‘मोंक गाड़ी गंदी होना गैरकानूनी नहीं है, इस के लिए हम कोई एक्शन नहीं ले सकते. मुझे लगता है कि तुम मेरी नौकरी खत्म करवा कर दम लोगे. यह बहुत अमीर औरत है और हम पर दावा दायर कर सकती है. वैसे भी उसे कातिल साबित करने के लिए हमारे पास कोई सुबूत नहीं हैं.’’

‘‘मि. रेमंड, क्या लाश मिलने पर आप की तसल्ली हो सकती है?’’ मोंक ने पूछा.

‘‘हां मोंक, लाश मिलने से हमारी पोजीशन मजबूत हो जाएगी.’’ रेमंड ने कहा, तो मोंक बोला,  ‘‘मुमकिन है, इस सिलसिले में कीसले मुंह न खोले, लेकिन उस की कार सब बता देगी.’’

मोंक कुछ सोचते हुए कीसले की कार की तरफ बढ़ा. मैं और रेमंड उस के पीछे थे. रेमंड ने जल्दी से कहा, ‘‘बिना वारंट के हम उस की गाड़ी का जीपीएस सिस्टम नहीं देख सकते मि. मोंक.’’

‘‘मुझे यह जानने की जरूरत नहीं है कि कार कहां से आ रही है.’’ मोंक ने पूरे विश्वास से कहा. फिर वह घूमघूम कर बारीकी से गाड़ी की जांच करने लगा.

गाड़ी पर निगाह जमाएजमाए उस ने कहा, ‘‘गाड़ी के निचले हिस्से और टायरों पर जो कीचड़ लगा है, उस पर पत्ते भी हैं. इस का मतलब यह कि गाड़ी जंगल की तरफ गई थी. जब हम ने कार रोकी थी तो उस पर लगा कीचड़ गीला थी. हवा, मौसम और गर्मी को देखते हुए यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है कि कब्र यहां से 5-6 मिनट की ड्राइव के फासले पर होगी.’’

‘‘चलो मान लिया कि लाश यहां से 5 मिनट के फासले पर है, पर उस तक पहुंचा कैसे जाएगा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘स्नेक की तलाश करने के बाद हम वहां तक पहुंच सकते हैं.’’

‘‘बीच में यह स्नेक कहां से आ गया?’’ रेमंड ने जल्दबाजी में पूछा.

‘‘कीसले ने स्नेक पर गाड़ी चढ़ा दी थी और वह टायरों के नीचे कुचल कर मर गया. मुझे इस की अगलीपिछली साइड के पहियों पर स्नेक के टुकड़े नजर आ रहे हैं.  शायद वह गाड़ी के नीचे आने के पहले मर चुका था.’’

‘‘पर तुम यह कैसे कह सकते हो कि स्नेक लाश दफन कर के वापस लौटते समय कीसले की गाड़ी से कुचला गया?’’

‘‘स्नेक के गोश्त के पीस कीचड़ के ऊपर लगे हैं, नीचे नहीं. इस का मतलब पहले कीचड़ लगा फिर स्नेक कुचला गया. अगर हम मरे हुए स्नेक को तलाश लें, तो मालूम हो जाएगा कि हम सही दिशा की तरफ जा रहे हैं.’’

‘‘लेकिन इस से यह कैसे जान सकेंगे कि वहां से आगे कहां जाना है?’’ रेमंड ने पूछा तो मोंक ने कार के पहिए की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘इस से अंदाजा होता है कि कीसले कार बहुत तेज रफ्तार से चला रही थी. जब वह एक तंग और कच्चे रास्ते पर मुड़ी, तो उस की कार किसी झाड़ या खंभे से टकरा गई, जिस से दाईं ओर की लाइट टूट गई.

‘‘इस टूटी हुई लाइट के अंदर भी कीचड़ लगा है. इस का मतलब लाइट कीचड़ में जाने के पहले टूटी थी. अब हमें बस, यह करना है कि हाईवे पर 5 किलोमीटर वापस जा कर एक मरे हुए स्नेक, कच्ची धूल भरी सड़क और किसी ऐसे खंभे या झाड़ को तलाशना है, जिस पर कार के रंग के लाल निशान हो. हमें अपनी सही दिशा मिल जाएगी. वहां हमें लाइट के टुकड़े और कीचड़ पर गाड़ी के टायरों के निशान भी मिल जाएंगे.’’

इस पर रेमंड बोले, ‘‘फिर तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? लाश की तलाश क्यों नहीं शुरू करते? जब मिल जाए तो मुझे खबर कर देना.’’

जुर्म की आवाज – भाग 2

उस का इस तरह भागने का मतलब था कि एक तरह से वह अपना जुर्म कुबूल कर रही थी. कीसले के भागने से मैं हैरान परेशान था. मोंक ने झुंझला कर कहा, ‘‘अब खड़े क्यों हो, वह हम से बच कर भाग रही है.’’

मैं लपक कर गाड़ी में जा बैठा और गाड़ी का सायरन चालू कर दिया. हम कीसले की कार के पीछे रवाना हो गए. मेरी आंख में शायद धूल के कण चले गए थे, जो बड़ी तकलीफ दे रहे थे. मैं बारबार रूमाल से आंख पोंछ रहा था. मोंक ने रेडियो औन कर के यह खबर रेमंड को दे दी कि हम एक कातिल का पीछा कर रहे हैं.

मोंक ने उस औरत के लिए खुले रूप से कातिल शब्द इस्तेमाल किया था. इस का मतलब था कि मोंक को उस के कातिल होने का पक्का यकीन था.   हालांकि इस से पहले वह कभी भी कत्ल के किसी केस में नाकाम नहीं हुआ था. फिर भी उस का इतना आत्मविश्वास मुझे उलझन में डाल रहा था. हम तेजी से उस लाल कार के करीब पहुंचते जा रहे थे, जो 90 की स्पीड से दौड़ रही थी. हमारी स्पीड भी 90 के ऊपर थी. मैं ने मोंक से पूछा, ‘‘क्या हम कीसले को पकड़ पाएंगे?’’

‘‘तुम बिलकुल फिक्र मत करो नेल, हम उसे पकड़ लेंगे.’’ मोंक ने बड़े आत्मविश्वास से कहा. कीसले की कार के आगे एक ट्रक चल रहा था. उस ने उसे ओवरटेक करने की कोशिश की. सामने से 2 कारें आ रही थीं. उन्होंने उसे बचाने की कोशिश की, तो एक कार सड़क के किनारे बनी मुंडेर से टकरा गई, जबकि दूसरी कार पूरी तरह दाईं तरफ घूम गई.

इसी बीच लाल कार हमारी नजरों से ओझल हो गई. मैं ने स्पीड बढ़ाई, तो थोड़ी देर बाद वह कार फिर नजर आ गई. मैं ने मोंक ने कहा, ‘‘तुम्हें यह खयाल क्यों आया कि कीसले ने अपने शौहर का कत्ल किया है. क्या इस की कार के पिछले हिस्से में कोई लाश थी, जो मुझे नजर नहीं आई?’’

‘‘नहीं, लाश अंदर नहीं थी. वह लाश को पहले ही  ठिकाने लगा चुकी है. उस ने लाश को काले रंग के बड़े से प्लास्टिक के थैले से डाला था. फिर घसीटती उसे हुई एक कब्र तक ले गई थी. इतना ही नहीं, उस ने लाश को दफन करने के बाद कब्र पर पानी भी छिड़का था.’’

कीसले ने एक होंडा कार को ओवरटेक किया, जिस के फलस्वरूप कार के ड्राइवर को गाड़ी सड़क के एक तरफ उतारनी पड़ी. मुझे भी अपनी स्पीड कम करनी पड़ी. मैं ने मोंक से पूछा, ‘‘तुम यह सब इतने यकीन से कैसे कह सकते हो? तुम्हारी बातों से तो ऐसा लगता है, जैसे तुम चश्मदीद गवाह हो.’’

‘‘मैं अपनी आंखें खुली रखता हूं, इसलिए.’’ मोंक बोला.

‘‘ठीक है, पर तुम अगर मुझे हकीकत बताओगे, तो मुझे भी पता चल जाएगा. आखिर तुम्हारे साथ मैं भी भागदौड़ कर रहा हूं.’’ मैं ने रूखे लहजे में कहा.

मोंक ने व्यंग्य से मुसकराते हुए मुझे देख कर कहा, ‘‘इस लाल गाड़ी पर लगी कीचड़ से जाहिर होता है कि यह जंगल में गई थी. कार के पिछले बंपर से थोड़ा कीचड़ हटा हुआ है, इस का मतलब जब उस ने कार की डिक्की से प्लास्टिक के थैले में रखी लाश बाहर निकाली होगी, तो रगड़ से उस जगह का कीचड़ साफ हो गया होगा. पिछले हुक में प्लास्टिक के बैग का टुकड़ा भी फंसा हुआ है, जिस से पता चलता है कि डिक्की से प्लास्टिक बैग में रखी हुई कोई चीज निकाली गई है.’’

‘‘पर इस से यह तो साबित नहीं होता कि उस ने अपने शौहर को कत्ल कर के उस की लाश ठिकाने लगाई है.’’ मैं ने पूछा. तब तक हम लाल गाड़ी के काफी करीब पहुंच गए थे. मोंक ने गाड़ी पर नजरें जमाते हुए कहा, ‘‘तुम ने देखा होगा कि उस की अंगुली में शादी की अंगूठी नहीं थी, जो ये बताती है कि दोनों की आपस में नहीं बनती थी. उस की हथेली का छाला साबित करता है कि उस ने हालफिलहाल ही बेलचे से खुदाई की है.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो, यह मैं ने भी देखा था.’’

‘‘उसे चमड़े के दस्ताने पहन कर खुदाई करनी चाहिए थी.’’ मोंक बोला.

‘‘उस के बजाए उस ने रबर के दास्ताने पहन रखे होंगे, जो हाथों को कीचड़ और पानी से बचा सकते थे, लेकिन खुदाई के दौरान बेलचे के दस्ते की रगड़ से नहीं बचा सके. उस ने लंबी आस्तीनों की शर्ट, जींस व काला चश्मा पहन रखा था, जो उस के चेहरे के लिहाज से छोटा था. इसी वजह से उस की नाक और आंखों के नीचे का हिस्सा लाल सा हो गया था. लाश को दफन करने के बाद उस ने चश्मे, बेलचे और दास्तानों से तो छुटकारा पा लिया, लेकिन वह सिरके की वह बोतल फेंकना भूल गई, जिस पर तेजाब के धब्बे लगे थे. वैसे इस का वारदात से सीधा ताल्लुक नहीं है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘सिरके की बोतल कार में क्यों रखी थी?’’

इस पर मोंक बोला, ‘‘अगर कीसले के हाथों पर तेजाब लग जाता तो उस का असर खत्म करने के लिए सिरका बहुत फायदेमंद होता है.’’

मैं हैरतजदा सा उस की बातें सुन रहा था. जो मोंक ने देखा था, मैं ने भी वही सब देखा था, पर उस ने कितनी अकलमंदी से हर चीज का ताल्लुक कत्ल से जोड़ लिया था और उस की हर बात हकीकत सी लगती थी. निस्संदेह उस का दिमाग बहुत तेज था. इसीलिए वह जानामाना जासूस था. मुझ में मोंक की तरह चीजों को वारदात से जोड़ने की योग्यता नहीं थी. मैं ने थोड़ी रफ्तार बढ़ाई और कीसले की गाड़ी तक पहुंच गया.

जुर्म की आवाज – भाग 1

उस दिन हम लोग न्यूजर्सी रोड पर बिलबोर्ड के पीछे मोर्चा जमाए बैठे थे. कोई तेज रफ्तार गाड़ी आती, तो हम उसे रोक कर चालान काट देते. यह बड़ा बोरिंग काम था. क्योंकि तेज रफ्तार गाडि़यां कम ही आती थीं. हमारी परेशानी यह थी कि हमें अपना टारगेट पूरा करना था.

इस टारगेट के तहत हमें तेज रफ्तार गाडि़यों के ड्राइवर्स को पकड़ कर साढ़े 3 सौ डौलर्स के चालान काटने थे. एंडरयान मोंक और मैं यानी नेल थामस सोमवार की सुबह से पहाडि़यों के बीच से गुजरने वाली डबल लेन रोड पर मौजूद थे. यह पुरानी सड़क थी. ऐसी सड़क पर रफ्तार पर काबू रखना मुश्किल होता है.

इस जगह हमें 3 हफ्ते हो गए थे. मेरा काम अपराध के सुराग ढूंढना था. जबकि मोंक एक पुलिस कंसलटेंट और जासूस था. मैं मोंक का दोस्त भी था और शागिर्द भी. दरअसल मैं एक अच्छा जासूस बनने की धुन में उस के असिस्टेंट के तौर पर उस से जुड़ गया था.

हम यहां पुलिस चीफ रेमंड डशर और उन की बीवी फे्रंकी की मेहरबानी की वजह से आए थे. रेमंड एक जमाने में सानफ्रांसिसको के होमीसाइड जासूस रह चुके थे. फ्रेंकी मोंक के साथ काम कर चुकी थी. रेमंड बहुत ज्यादा व्यस्त चल रहे थे. उन दोनों ने कानून की मदद करने की बात कह कर हमें यहां गाडि़़यां चेक करने के लिए बुलाया था.

मैं इस से पहले भी कत्ल के कई केस हल करने में मोंक की मदद कर चुका था. पर कभी भी मेरे नाम से कामयाबी के झंडे नहीं गड़े थे. मैं मोंक के नाम के बाद ही अपना नाम देख कर खुश हो जाता था. मेरे लिए गर्व की बात यह थी कि मोंक के साथ रह कर मुझे भी पुलिस की वरदी पहनने को मिलती थी.

उस वक्त मोंक पैसेंजर सीट पर बैठा था, गन उस के हाथ में थी. वह अगले शिकार के इंतजार में था और अपनी फिलासफी सुना रहा था. मैं उस की हर बात ध्यान से सुनता था, क्योंकि उस की बातों में काम की कोई न कोई बात जरूर रहती थी. 2 दिनों बाद हमें अपने जरूरी कामों से सानफ्रांसिसको जाना था. वहां रेमंड ने हमें अपने डिपार्टमेंट में जौब की औफर दी थी, जो हम दोनों ने मंजूर कर ली थी.

मैं मोंक की बातें सुन रहा था कि इसी बीच लाल रंग की एक रेंजरोवर उस बिलबोर्ड के पास से तेजी से गुजरी, जिस के पीछे हमारी गाड़ी खड़ी थी.  गाड़ी के टायरों और निचले हिस्से पर कीचड़ लगा था. मोंक ने जल्दी से अपनी गन नीचे करते हुए कहा, ‘‘हमें इस गाड़ी का पीछा करना है.’’

मैं ने छत पर लगी बत्तियां जलाईं और सायरन का बटन दबा दिया. इस के साथ ही हमने लाल गाड़ी का पीछा शुरू कर दिया. चंद सेकेंड में हम उस कार के करीब पहुंच गए. हम ने ड्राइवर को रुकने का इशारा किया. इशारा समझ कर उस ने गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी. कार चलाने वाली एक औरत थी और उस की कार पर न्यूजर्सी की नेमप्लेट लगी थी.

मोंक ने मुंह बनाते हुए उस गाड़ी की तरफ देखा. गाड़ी के बंपर पर कीचड़ के साथसाथ पेड़ की डालियां और पत्ते चिपके हुए थे. मैं जानता था कि मोंक को गंदगी से सख्त नफरत है, इसीलिए उस की त्यौरियां चढ़ी हुई थीं.

मैं ने जल्दी से गाड़ी का नंबर अपने कंप्यूटर में टाइप किया, तो मुझे जरा सी देर में पता चल गया कि वह गाड़ी सिमेट की रहने वाली कीसले ट्यूरिक के नाम पर रजिस्टर्ड है. इस से पहले कभी भी उस गाड़ी का चालान नहीं हुआ था. न ही वह किसी हादसे से जुड़ी थी. मैं गाड़ी से बाहर आ कर ड्राइविंग सीट पर बैठी औरत के करीब पहुंच गया.

मोंक गाड़ी के पिछले हिस्से की तरफ पहुंचा और इतनी बारीकी से देखने लगा, जैसे वहां बैंक से लूटी गई रकम या कोकीन का जखीरा अथवा अगवा की हुई कोई लड़की मौजूद हो. कार की पिछली सीट उठी हुई थी, लेकिन वहां सिरके की एक बोतल के अलावा कुछ नहीं था. निस्संदेह सिरका रखना गैरकानूनी नहीं था.

औरत ने अपनी गाड़ी का शीशा नीचे किया, तो मेरी नाक से एक अजीब सी बदबू टकराई. गाड़ी के अंदर चमड़ा मढ़ा हुआ था. शायद ये उसी की बदबू थी. उस औरत की उम्र करीब 30 साल थी और वह देखने में काफी खूबसूरत थी. उस ने लंबी आस्तीन वाली फलालेन की शर्ट और पुरानी सी जींस पहन रखी थी.

उस औरत की आंखों के नीचे और नाक पर की कुछ स्किन सुर्ख नजर आ रही थी. जिस का मतलब था कि वह चश्मा लगाती थी. मैं ने नम्रता से कहा, ‘‘गुड मानिंग मैडम, क्या मैं आप का लाइसेंस देख सकता हूं? प्लीज रजिस्टे्रशन बुक भी दीजिए.’’ उस ने दोनों चीजें मेरी तरफ बढ़ा दीं. उसी वक्त मैं ने उस की हथेली पर अंगूठे से जरा नीचे एक छाला देखा, पर मैं ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया.

‘‘क्या बात है औफिसर…?’’ उस ने पूछा.

उस का लाइसेंस देखने के बाद इस बात की तसदीक हो गई कि वह कीसले ट्यूरिक ही है. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पता है कि इस सड़क पर गाड़ी की रफ्तार कितनी होनी चाहिए?’’

‘‘55.’’ वह बोली.

‘‘क्या तुम जानती हो, तुम किस स्पीड से गाड़ी चला रही थी?’’

उस ने पूरे विश्वास से कहा, ‘‘55.’’

मेरी समझ में नहीं आया कि जब उस की स्पीड ठीक थी, तो उसे रोकने की वजह क्या है? मैं ने पीछे मुड़ कर मोंक से कहा, ‘‘इस की रफ्तार तो ठीक थी, फिर गाड़ी क्यों रुकवाई?’’ उस ने झुंझला कर कहा, ‘‘देखते नहीं, इस की गाड़ी पर कीचड़ लगा है और पिछले हिस्से के हुक में प्लास्टिक बैग का एक टुकड़ा भी फंसा है.’’

‘‘पर इस से ट्रैफिक कानून का तो कोई उल्लंघन नहीं होता.’’ मैं ने कहा. इसी बीच कीसले बोल उठी, ‘‘क्या मैं जा सकती हूं औफिसर?’’ मैं ने उस का लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन कार्ड उस की तरफ बढ़ाया, तो उस की उंगली पर हल्का सा सफेद दाग नजर आया, जिस से पता चलता था कि उस ने हाल ही में अपनी शादी की अंगूठी उतारी थी.

‘‘औफिसर जरा हटें, मुझे जाने दें.’’

‘‘हां.’’ मैं ने चौंकते हुए कहा, ‘‘तुम जा सकती हो.’’

‘‘नहीं. तुम नहीं जा सकती.’’ पीछे से मोंक की तेज आवाज सुनाई दी. मैं ने ठंडी सांस भर कर कहा, ‘‘तुम सिमेट वापस आने के बाद अपनी गाड़ी धुलवा लेना. मेरे साथी को गंदगी से सख्त नफरत है.’’

‘‘जी जरूर.’’ औरत ने जल्दी से कहा.

‘‘हम इसे यहां से जाने और कार धुलवाने की इजाजत हरगिज नहीं दे सकते.’’ मोंक ने आगे आ कर सख्त लहजे में कहा, तो मैं हैरान हुआ. मैं ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि इस से अहम सुबूत भी धुल जाएंगे.’’ वह बोला.

‘‘कैसे सुबूत? यही कि कार पर कीचड़ लगा है?’’ मैं ने विरोध किया, तो मोंक ने जैसे धमाका किया, ‘‘नहीं, इस ने अपने शौहर का कत्ल किया है.’’

अभी मोंक की जुबान से ये शब्द निकले ही थे कि कीसले ने गाड़ी स्टार्ट की और तूफान की सी तेजी के साथ भगा कर ले गई. मैं ने जल्दी से पीछे हट कर रूमाल से चेहरा साफ किया.

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 3

शिखा ने डा. सोनी को बारबार फोन कर बताया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं डिप्रेशन में हूं. यहां अकेली रहूंगी तो कुछ भी हो सकता है. शिखा ने डाक्टर को इस तरह छोड़ कर चले जाने पर कई तरह के उलाहने भी दिए, साथ ही कहा भी कि अभी पुष्कर आ कर उसे वापस ले चले. शिखा के उलाहनों से तंग आ कर डा. सोनी उसी रात अपनी गाड़ी ले कर पुष्कर गए. वहां रिसौर्ट के कमरे में ठहरी शिखा ने डा. सोनी पर ऐसा जादू चलाया कि वह रात को उसी के कमरे में ठहर गए. इस के अगले दिन डा. सोनी जयपुर आ गए.

2 दिन बाद अक्षत शर्मा व विजय उर्फ सोनू शर्मा डा. सुनीत सोनी के पास पहुंचे. दोनों ने खुद को मीडियाकर्मी बताया और टीवी चैनलों पर खबर चलाने की धमकी दी. उन्होंने शिखा से उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे. लेकिन डा. सोनी ने उन्हें रुपए देने से इनकार कर दिया. इस पर गिरोह के सरगना वकीलों ने शिखा से डा. सुनीत सोनी के खिलाफ अजमेर जिले के पुष्कर थाने में भादंसं की धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुष्कर थाना पुलिस ने इस मामले में डा. सुनीत सोनी को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद गिरोह ने शिखा से समझौता करने के नाम पर डा. सोनी के पिता व भाई से एक करोड़ रुपए वसूल लिए. रकम लेने के बाद गिरोह के सदस्यों ने अदालत में शिखा के बयान बदलवा दिए. डा. सुनीत सोनी को बलात्कार के इस झूठे मुकदमे में 78 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. उस समय डा. सुनीत सोनी ने जयपुर के वैशालीनगर थाने में लिखित शिकायत भी दी थी, लेकिन पुलिस  ने उस समय कुछ नहीं किया था.

बाद में जब एसओजी को जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी मिली तो इस गिरोह से पीडि़त डा. सुनीत सोनी ने एसओजी में लिखित शिकायत दी. डा. सोनी की शिकायत पर जांचपड़ताल के बाद एसओजी ने 24 दिसंबर, 2016 को इस हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले गिरोह का खुलासा किया. एसओजी ने उस दिन सब से पहले 2 लोगों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में ही एसओजी को गिरोह में शामिल युवतियों के बारे में पता चला. इन में शिखा तिवाड़ी के अलावा एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी, उत्तराखंड की युवती कल्पना और अजमेर की आकांक्षा आदि के नाम सामने आए.

गिरोह की पकड़धकड़ शुरू होेने पर शिखा तिवाड़ी जयपुर से भाग कर मुंबई चली गई. मुंबई में वह डीजे अदा के नाम से म्यूजिकल ग्रुप बना कर होटल, नाइट क्लब व बार में प्रोग्राम करने लगी. मुंबई पहुंच कर उस ने अपने पुराने मोबाइल नंबर बंद कर दिए थे और फेसबुक आईडी भी बदल ली थी.

मुंबई में वह अपने बौयफ्रैंड के साथ लोखंडवाला बैंक रोड, अंधेरी (वेस्ट) की एक बिल्डिंग में किराए के फ्लैट में रहती थी. मुंबई में रहते हुए उस के बौयफ्रैंड के इवेंट मैनेजर दोस्त ने शिखा से यह कह कर ढाई लाख रुपए ऐंठ लिए थे कि जयपुर में पुलिस अफसरों से उस की सेटिंग है, वह उस का नाम ब्लैकमेलिंग मामले में नहीं आने देगा.

बाद में जब शिखा को पता चला कि उस का नाम एसओजी थाने में दर्ज मुकदमे में है तो उस ने उस इवेंट मैनेजर से संपर्क किया. इस के बाद इवेंट मैनेजर भूमिगत हो गया. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह ने शिखा तिवाड़ी को डा. सुनीत सोनी को ब्लैकमेल करने के लिए पहले 10 लाख रुपए दिए थे, लेकिन बाद में उस से 5 लाख रुपए वापस ले लिए थे. बाकी रकम गिरोह के सदस्यों ने आपस में बांट ली थी.

गिरोह के पुरुष सदस्यों के अलावा महिला सदस्यों में सब से पहले एसओजी के हाथ कल्पना लगी. इस के बाद एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी भी एसओजी की गिरफ्त में आ गई. शिखा तिवाड़ी उर्फ डीजे अदा की मुंबई से हुई गिरफ्तारी के समय तक हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले 4 गिरोहों के 32 अभियुक्तों को एसओजी गिरफ्तार कर चुकी थी. इन में कई वकील, फर्जी पत्रकार, पुलिसकर्मी व बिचौलिए भी शामिल थे.

शिखा के पकड़े जाने के बाद उस से पूछताछ में ब्लैकमेलिंग गिरोह की एक और महिला सदस्य आकांक्षा का पता चला. एसओजी ने 16 मई को अजमेर के क्रिश्चियन गंज, माली मोहल्ला की रहने वाली 25 वर्षीया आकांक्षा को गिरफ्तार कर लिया. एसओजी के एसपी संजय श्रोत्रिय का कहना है कि आकांक्षा ब्लैकमेलिंग की कई वारदातों में शामिल रही है.

आकांक्षा ने जयपुर से एमबीए की पढ़ाई की थी. एमबीए की पढ़ाई के दौरान वह जयपुर में सिरसी रोड पर एक अपार्टमेंट में रहने लगी थी, तभी उस की पहचान अक्षत शर्मा से हुई थी. अक्षत ब्लैकमेलिंग के मामलों में आकांक्षा का भी सहयोग लेता था. अक्षत शर्मा पहले ही गिरफ्तार हो चुका था. अक्षत ने अपने साथियों की मदद से एक सैन्यकर्मी के फ्लैट पर भी कब्जा कर लिया था. करणी विहार में सिरसी रोड पर स्थित एक फ्लैट का सौदा 45 लाख रुपए में हुआ था, लेकिन अक्षत ने केवल 5 लाख रुपए दे कर अपने साथियों की मदद से उस फ्लैट पर कब्जा कर लिया था.

शिखा व आकांक्षा की गिरफ्तारी के बाद एसओजी ने अक्षत के सामने दोनों को बैठा कर पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि अक्षत व आकांक्षा ने करीब 20 लोगों को अपने जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया था. अक्षत ही आकांक्षा का खर्चा उठाता था. अक्षत ने आकांक्षा को एक फ्लैट व कार गिफ्ट की थी. एसओजी थाने में अक्षत के खिलाफ पांचवां मामला सैन्यकर्मी के फ्लैट पर कब्जे का दर्ज किया गया. आकांक्षा भी गिरोह की गिरफ्तारी शुरू होने पर जयपुर छोड़ कर अजमेर चली गई थी.

एसओजी की जांच में सामने आया है कि जयपुर में चल रहे हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोहों ने ढाई साल में 45 लोगों से करीब 20 करोड़ रुपए वसूले थे.

कथा पुलिस सूत्रों व अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 2

दरअसल, मई के पहले सप्ताह में राजस्थान की एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन को सूचना मिली थी कि दुष्कर्म के झूठे मुकदमे दर्ज कराने की धमकी दे कर लोगों से करोड़ों रुपए ऐंठने वाले हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की सदस्या शिखा तिवाड़ी उर्फ अंकिता उर्फ डीजे अदा आजकल मुंबई में है. मुंबई में वह बड़े होटलरेस्त्राओं में डिस्को जौकी (डीजे) का काम करते हुए लाइव कंसर्ट देती है.

जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह का खुलासा होने के बाद शिखा तिवाड़ी दिसंबर, 2016 में फरार हो गई थी. एसओजी लगातार उस की तलाश कर रही थी. लेकिन उस का कोई पता नहीं चल रहा था. एक दिन एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. को फेसबुक के माध्यम से पता चला कि शिखा तिवाड़ी ने आजकल डीजे अदा के नाम से मुंबई में अपना म्यूजिकल ग्रुप बना रखा है. वह डीजे अदा के नाम से ही मुंबई में रह रही है.

एसओजी को डीजे अदा की ओर से फेसबुक पर पोस्ट की गई उस की लाइव कंसर्ट की फोटो भी मिल गई. इन फोटो से तय हो गया कि शिखा तिवाड़ी ही डीजे अदा है. इस के बाद आईजी ने डीजे अदा की तलाश में जयपुर से अपने तेजतर्रार मातहतों की एक टीम मुंबई भेजी. इस टीम ने कई होटलरेस्त्राओं में पूछताछ के बाद पता लगाया कि डीजे अदा कहांकहां प्रोग्राम करती है. इस के बाद जयपुर से गई एसओजी की टीम ने 14 मई की रात मुंबई से अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी को पकड़ लिया.

शिखा तिवाड़ी को एसओजी की टीम जयपुर ले आई. शिखा से की गई पूछताछ और दिसंबर, 2016 में जयपुर में उजागर हुए हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की जांचपड़ताल के बाद जो कहानी उभर कर सामने आई, वइ इस तरह थी—

दिसंबर 2016 में एसओजी को हत्या के एक मामले में गिरफ्तार आरोपी से पूछताछ में पता चला था कि जयपुर में एक ऐसा गिरोह सक्रिय है, जो हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करता है. इस गिरोह में कुछ वकील, पुलिस वाले, प्रौपर्टी व्यवसाई और फर्जी पत्रकार शामिल हैं. यह गिरोह खूबसूरत युवतियों की मदद से रईस लोगों को ब्लैकमेल करता है.

इस गिरोह के लोग पहले रईस लोगों को चिह्नित करते हैं, फिर उन्हें फांसने के लिए उन की दोस्ती गिरोह की खूबसूरत लड़कियों से कराते हैं. इस दोस्ती के लिए ये लोग फार्महाउस पर सेलीब्रेशन के नाम पर पार्टियां आयोजित करते हैं. इन छोटी पार्टियों में पीनेपिलाने का दौर भी चलता है. गिरोह की लड़कियां इन पार्टियों में अपना मोबाइल नंबर दे कर अपने शिकार का नंबर लेती हैं. इस के बाद उन का मुलाकातों का दौर शुरू होता है.

जल्दीजल्दी की कुछ मुलाकातों में ये युवतियां अपने शिकार को अपनी सुंदरता के मोहपाश में इस तरह बांध लेती हैं कि वह उस के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़पने लगते हैं. शिकार को तड़पा कर ये युवतियां हमबिस्तर होने का कार्यक्रम तय करती हैं. इस के लिए वे कई बार जयपुर से बाहर भी जाती हैं. रईसों के साथ हमबिस्तर होते समय गिरोह के सदस्य युवती की मदद से या तो गुप्त कैमरे से या मोबाइल से क्लिपिंग बना लेते हैं. अगर इस में वे सफल नहीं होते तो युवतियां हमबिस्तर होने के बाद अपने अंतर्वस्त्र सुरक्षित रख लेती हैं. इस के बाद उस रईस को धमकाने का काम शुरू होता है. सब से पहले युवतियां अपने उस रईस शिकार को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की धमकी देती हैं.

अधिकांश मामलों में युवतियां पुलिस में शिकायत दे भी देती हैं. इस के बाद फर्जी पत्रकार व वकील का काम शुरू होता है. वे उस रईस को बदनामी का डर दिखा कर समझौता कराने की बात करते हैं. जरूरत पड़ने पर बीच में पुलिस वाले भी आ जाते हैं. रईस अपनी इज्जत बचाने के लिए उन से सौदा करता है. रईस की हैसियत देख कर 10-20 लाख रुपए से ले कर एक करोड़ रुपए तक मांगे जाते हैं. गिरोह के लोग उस शिकार पर दबाव बनाए रखते हैं. आखिर शिकार बने व्यक्ति को सौदा करना पड़ता है.

यह गिरोह खासतौर से जयपुर सहित राजस्थान के बड़े शहरों के नामचीन प्रौपर्टी व्यवसायियों व बिल्डरों, मोटा पैसा कमाने वाले डाक्टरों, ज्वैलर्स, होटल-रिसौर्ट संचालक और ठेकेदार आदि को अपना शिकार बनाता है. इस काले धंधे में एक एनआरआई युवती भी शामिल है.

ये लोग गिरोह की युवती को प्लौट या फ्लैट खरीदने के बहाने प्रौपर्टी व्यवसाई अथवा बिल्डर के पास भेजते हैं और उसे फंसा लेते हैं. इसी तरह लड़कियों को होटल और रिसौर्ट संचालकों के पास नौकरी के बहाने भेजा जाता है. डाक्टर के पास इलाज कराने के बहाने युवतियों को भेजा जाता था. सौदा होने के बाद युवती और उस के गिरोह के सदस्य स्टांप पर लिख कर दे देते थे कि दुष्कर्म नहीं हुआ था.

शिखा तिवाड़ी जयपुर में गुरु की गली, सीताराम बाजार, ब्रह्मपुरी के रहने वाले आदित्य प्रकाश तिवाड़ी की बेटी थी. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सदस्य अक्सर डिस्को बार में जाते थे. वहीं शिखा की मुलाकात अक्षत शर्मा से हुई. अक्षत ने शिखा को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. इस गिरोह ने जयपुर के वैशालीनगर में मेडिस्पा नाम से हेयर ट्रांसप्लांट क्लीनिक चलाने वाले डा. सुनीत सोनी को अपने शिकार के रूप में चिह्नित किया. योजनाबद्ध तरीके से शिखा तिवाड़ी को हेयर ट्रीटमेंट कराने के बहाने डा. सुनीत सोनी के पास उन के क्लीनिक पर भेजा गया.

अप्रैल, 2016 में 2-4 बार इलाज के नाम  पर आनेजाने के दौरान शिखा ने डा. सोनी को अपने रूप के जाल फांस लिया. एक दिन उस ने डा. सोनी को बताया कि वह डिप्रेशन में आ गई है. शिखा ने डा. सोनी से कहा कि वह पुष्कर जा कर 2-4 दिन घूमना चाहती है, ताकि डिप्रेशन से बाहर आ सके. शिखा ने डाक्टर से कहा कि वह डिप्रेशन की स्थिति में अकेली पुष्कर नहीं जाना चाहती. जबकि साथ जाने के लिए कोई नहीं है. उस ने डा. सोनी पर घूमने के लिए पुष्कर चलने का दबाव डाला.

डा. सोनी जाना तो नहीं चाहते थे, लेकिन अपने डाक्टरी पेशे में पेशेंट की भावनाओं का खयाल रखते हुए वह शिखा के साथ पुष्कर घूमने जाने को तैयार हो गए. डा. सोनी के तैयार हो जाने के बाद शिखा ने गिरोह के सरगना की सलाह पर डा. सुनीत सोनी से पुष्कर के एक रिसौर्ट में कमरा बुक करवा लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार, शिखा व डा. सोनी कार से पुष्कर चले गए. डा. सोनी शिखा को पुष्कर के रिसौर्ट में छोड़ कर उसी शाम जयपुर लौट आए. उन के जयपुर लौट जाने से शिखा को अपना मकसद पूरा होता नजर नहीं आया.