क्यों एक मां ने की कैंसर ग्रस्त बेटी की हत्या?

  23 अक्तूबर, 2018 की सुबह 5 बजे का समय था. गांव के लोग नींद से जाग कर दैनिककार्यों में लग गए थे. इसी बीच किसी के रोने चिल्लाने की आवाजें सुनाई देने लगीं. आवाजें संतोषी के घर से आ रही थीं. संतोषी अपने घर के बाहर बैठी थी, जमीन पर उस की 13 साल की बेटी अर्चना की लाश पड़ी थी.

गांव वालों ने पास जा कर देखा तो अर्चना की अचानक मौत से हतप्रभ हुए. लोगों ने संतोषी से पूछा तो उस ने बताया कि अर्चना के गले का कैंसर फट गया है. जब गांव के लोग एकत्र हुए तो उन के बीच तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. वजह यह थी कि अर्चना के गले पर तेज धारदार हथियार के निशान नजर आ रहे थे. यह घटना हरदोई जिले के सांडी थाना क्षेत्र के गांव नेकपुर में घटी थी.

इसी बीच किसी गांव वाले ने इस की सूचना सांडी थाने को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी अरुणेश गुप्ता पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया तो गले में पतले फल वाले किसी धारदार हथियार से गला रेते जाने के निशान मिले.

जब इंसपेक्टर ने गला रेत कर हत्या किए जाने की बात बताई तो संतोषी बोली, ‘‘साहब, पिछले कुछ दिनों से अर्चना को गले का कैंसर था. मैं समझ रही थी कि वही कैंसर फट गया है. मैं और मेरे तीनों बेटे घर के बाहर बनी दोनों दुकानों में सो रहे थे. अर्चना अंदर कमरे में सो रही थी. सुबह जब मैं अंदर गई तो यह मरी पड़ी थी, गले से खून बह रहा था. मैं समझी इस का कैंसर फट गया है. मैं इसे उठा कर बाहर ले आई.’’

घर के अंदर जाने का एक ही रास्ता था, वह भी सामने से और दुकान के बराबर से हो कर जाता था, जो बंद था. घर के बाहर मेनगेट के बराबर में बनी 2 दुकानों में संतोषी और उस के तीनों बेटे सो रहे थे. ऐसे में हत्यारे ने कहां से आ कर घटना को अंजाम दे दिया,यह समझ के बाहर था.

घर का सभी सामान अपनी जगह पर था, कोई चीज गायब नहीं थी. अलावा अर्चना के मोबाइल के. अर्चना स्मार्टफोन इस्तेमाल करती थी. इसे ले कर थानाप्रभारी अरुणेश गुप्ता के दिमाग में कई सवाल घूम रहे थे.

सूचना पा कर एसपी आलोक प्रियदर्शी और एएसपी ज्ञानंजय सिंह भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बड़ी बारीकी से निरीक्षण किया. जब उन्होंने संतोषी से कई बिंदुओं पर पूछताछ की तो उन की समझ में आ गया कि हत्या किसी करीबी ने की है.

अफसर समझ गए कि वह करीबी संतोषी ही है. लेकिन उस समय संतोषी को हिरासत में लेना ठीक नहीं था. पुलिस ने फैसला किया कि पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही उस पर हाथ डाला जाएगा. इसलिए अर्चना के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय स्थित मोर्चरी भेज दिया गया.

थाने लौट कर थानाप्रभारी अरुणेश गुप्ता ने संतोषी के बड़े बेटे मोनू की लिखित तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

अरुणेश गुप्ता ने अपने स्तर से ग्रामीणों से पूछताछ की तो संतोषी के चरित्र पर कई लोगों ने अंगुलियां उठाईं. मुख्य संदिग्ध होने की वजह से पुलिस ने संतोषी को 29 अक्तूबर को हिरासत में लिया. उस से महिला आरक्षी की मौजूदगी में कड़ाई से पूछताछ की गई तो वह टूट गई.

उस ने नशे में की गई अर्चना की हत्या का जुर्म स्वीकार करते हुए पूरी कहानी बयान कर दी. पूछताछ के बाद अरुणेश गुप्ता ने संतोषी के 15 वर्षीय बेटे मोनू और गांव के ही संतोषी के प्रेमी अभिमन्यु उर्फ अपन्नू उर्फ छोटे भैया को भी उसी दिन गिरफ्तार कर लिया.

संतोष उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के सांडी थाना क्षेत्र के गांव नेकपुर में अपनी पत्नी संतोषी के साथ रहता था. संतोषी से उस का विवाह 16 साल पहले हुआ था. कालांतर में वे 3 बेटों और एक बेटी के मांबाप बने. उन का बड़ा बेटा मोनू 15 साल का था और बेटी अर्चना 13 साल की. इस के अलावा उन के 9 और 8 साल के 2 बेटे और थे. संतोष टेलरिंग का काम करता था.

अर्चना पढ़ाई में काफी तेज थी. फिलहाल वह सांडी के नरपति सिंह इंटर कालेज में 8वीं कक्षा में पढ़ रही थी. अर्चना के बेहतर भविष्य के लिए संतोष ने 10 बीघा जमीन खरीद कर उस के नाम कर दी थी. उस से बड़े मोनू ने 7वीं तक पढ़ाई करने के बाद स्कूल से नाता तोड़ लिया था.

4 बच्चों की मां बनने के बाद भी संतोषी की फरमाइशें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं. संतोषी काफी सुंदर महिला थी. जैसे जैसे संतानें होती गईं, वैसे वैसे उस के सौंदर्य में और भी निखार आता गया.

संतोष चाहता था कि संतोषी बच्चों की परवरिश पर ध्यान दे, लेकिन संतोषी थी कि उसे सजने संवरने से ही फुरसत नहीं थी. कोई उस की खूबसूरती की तारीफ कर देता तो वह फूली नहीं समाती थी. वह परिवार की बंदिशों में बंध कर घुटन महसूस करती थी. लेकिन सामाजिक रीतिरिवाज को मानना उस की मजबूरी थी.

संतोषी के विवाह को जितने साल गुजर गए थे, उतने साल में पत्नियां अपने पतियों पर हावी हो जाती हैं. संतोषी भी अपवाद नहीं थी. संतोष कभी कुछ कहता तो संतोषी उसे चुप करा देती थी. वह मन मसोस कर रह जाता था.

खुले स्वभाव के कारण संतोष किसी से बात करने में भी गुरेज नहीं करती थी. इसी वजह से वह कई पुरुषों के संपर्क में आ गई थी. उन में से एक सर्वेश भी था. सर्वेश उसी गांव में रहता था और लकड़ी की ठेकेदारी करता था.

5 साल पहले की बात है. सर्वेश और संतोष में दोस्ती हो गई. दोनों ही शराब के शौकीन थे. दोनों जबतब शराब की महफिल जमाते रहते थे. खानेपीने पर खर्चा सर्वेश ही किया करता था. एक दिन सर्वेश ने मीट खाने की इच्छा जताई, साथ में यह भी कहा कि कहीं अच्छा मीट खाने को नहीं मिलता.

सर्वेश के इतना कहते ही संतोष बोला, ‘‘यह बात पहले बता देता तो अब तक कई बार अच्छा बना मीट खा चुका होता.’’

सर्वेश ने उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो संतोष ने बताया कि उस की पत्नी संतोषी बहुत लजीज मीट बनाती है. वह जब कहे, बनवा देगा. यह सुन कर सर्वेश के मुंह में पानी आ गया. वह बोला आज शाम को ही मीट बनवाओ. संतोष ने सहमति दे दी.

शाम को संतोष सर्वेश को साथ ले कर घर पहुंचा और साथ लाई मीट की पौलीथिन संतोषी को देते हुए कहा, ‘‘संतोषी, आज ऐसा लजीज मीट पका कि सर्वेश अंगुलियां चाटता रह जाए.’’ इस के बाद संतोष और सर्वेश शराब की बोतल खोल कर बैठ गए.

सर्वेश बातें करते हुए शराब तो संतोष के साथ पी रहा था, लेकिन उस का मन संतोषी में उलझा हुआ था. निगाहें लगातार उस का पीछा कर रही थीं. सर्वेश को उस की खूबसूरती भा गई थी. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में संतोषी का शबाब नशीला होता गया.

शराब का दौर खत्म हुआ तो संतोषी खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर सर्वेश ने उस की दिल खोल कर तारीफ की. संतोषी भी उस की बातों में खूब रस ले रही थी. खाना खाने के बाद सर्वेश अपने घर लौट गया.

इस के बाद तो संतोष के घर करीबकरीब रोज ही महफिल सजने लगी. सर्वेश ने संतोषी से चुहलबाजी करनी शुरू कर दी. संतोषी भी उस की चुहलबाजियों का बराबर जवाब देती. संतोषी की आंखों में सर्वेश को अपने लिए चाहत नजर आने लगी थी. उस के अंदाज भी कुछ ऐसे थे, जैसे वह खुद उस के करीब आना चाहती हो.

दरअसल, संतोषी को सर्वेश में वे सब खूबियां नजर आई थीं जो वह चाहती थी. सर्वेश मजबूत कदकाठी और रोबीले चेहरे वाला आकर्षक मर्द था. वह पैसा भी अच्छा कमाता था, खर्च भी दिल खोल कर करता था. ऐसे में अब तक मन मार कर संतोष के साथ रह रही संतोषी के सपनों को नए पंख लग गए थे. अपनी तरफ सर्वेश का झुकाव देख कर वह बहुत खुश थी.

रोजरोज की मुलाकात के बाद दोनों एकदूसरे से घुलमिल गए. सर्वेश हंसीमजाक करते हुए संतोषी से शारीरिक छेड़छाड़ भी कर देता था, संतोषी विरोध करने के बजाए मुसकरा कर रह जाती थी. यह सब देख सर्वेश संतोषी को जल्द से जल्द पा लेने की सोचने लगा. इसी के मद्देनजर उस ने मन ही मन योजना बनाई.

एक दिन जब वह संतोष के साथ उस के घर में बैठा शराब पी रहा था तो उस ने खुद कम पी, लेकिन संतोष को जम कर शराब पिलाई. देर रात शराब की महफिल खत्म हुई तो दोनों ने खाना खाया. सर्वेश ने भर पेट खाना खाया, जबकि संतोष मुश्किल से कुछ निवाले खा कर एक तरफ लुढ़क गया.

सर्वेश की मदद से संतोषी ने संतोष को चारपाई पर लेटा दिया. इस के बाद हाथ झाड़ते हुए बोली, ‘‘अब इन के सिर पर कोई ढोल भी बजाता रहे तो भी सुबह से पहले जागने वाले नहीं.’’ फिर उस ने सर्वेश की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘तुम घर जाने लायक हो या इन के पास ही तुम्हारी चारपाई भी बिछा दूं?’’

सर्वेश के दिल में उमंगों का सैलाब उमड़ पड़ा. उसे लगा कि शायद संतोषी भी यही चाहती है कि वह यहीं रुके और उस के साथ प्यार का खेल खेले. इसलिए बिना देर किए उस ने कहा, ‘‘हां, नशा कुछ ज्यादा हो गया है, मेरा भी बिस्तर लगा दो.’’

संतोषी ने सर्वेश के लिए भी चारपाई बिछा कर बिस्तर लगा दिया. फिर वह दूसरे कमरे में सोने चली गई.

सर्वेश की आंखों में नींद नहीं थी. उस की आंखों के सामने बारबार संतोषी की खूबसूरत काया घूम रही थी. कई बार मिले उस के शारीरिक स्पर्श से वह काफी रोमांचित था. वह उस स्पर्श की दोबारा अनुभूति के लिए बेकरार था.

संतोष की ओर से वह निश्चिंत था. इसलिए वह दबे पांव चारपाई से उठा और संतोष के पास जा कर उसे हिला कर देखा. उस पर किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह धड़कते दिल से उस कमरे की ओर बढ़ गया, जिस में संतोषी सो रही थी.

कमरे में संतोषी जमीन पर बिस्तर लगा कर लेटी थी. कमरे में जल रही लाइट को बंद कर के सर्वेश उस के पास बिस्तर पर लेट गया. जैसे ही उस ने संतोषी को बांहों में भरा तो वह दबी जुबान से बोली, ‘‘अब यहां क्यों आए हो, जाओ यहां से.’’

‘‘तुम्हें प्यार का असली मजा देने आया हूं.’’ कह कर उस ने संतोषी को अपने अंदाज में प्यार करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो मानो 2 जिस्मों के अरमानों की होड़ सी लग गई. कपड़े बदन से उतरते गए और हसरतें बेलिबास होती गईं. फिर दोनों के बीच वह संबंध बन गए जो सिर्फ पतिपत्नी के बीच में होने चाहिए. एक ने अपने पति के साथ बेवफाई की तो दूसरे ने दोस्त के साथ दगाबाजी.

उस रात के बाद संतोषी और सर्वेश एकदूसरे को समर्पित हो गए. संतोषी के संग रास रचाने के लिए सर्वेश हर दूसरे तीसरे दिन संतोष के घर महफिल जमाने लगा. संतोष को वह नशे में धुत कर के सुला देता, उस के बाद वह संतोषी के बिस्तर पर पहुंच जाता. बाद में वह दिन में भी संतोषी के पास पहुंचने लगा. उस के आने से पहले ही संतोषी बच्चों को खेलने भेज देती थी. फिर दोनों निश्चिंत हो कर रंगरलियां मनाते थे.

3 वर्ष पूर्व संतोष की संदिग्ध परिस्थितियों में सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. कुछ दिन का शोक मना कर संतोषी फिर से रंगरलियां मनाने में लग गई. अब उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. फलस्वरूप वह बेलगाम होती गई. यहां तक कि वह शराब भी पीने लगी.

सर्वेश का भाई अभिमन्यु उर्फ अपन्नू विवाहित था, उस के 2 बच्चे भी थे. वह सर्वेश के साथ ही लकड़ी की ठेकेदारी काम देखता था. संतोषी के रंगढंग से वह न केवल अच्छी तरह वाकिफ था, बल्कि उस की देह को भोगने की लालसा भी रखता था. इसलिए वह संतोषी के घर के चक्कर लगाने लगा.

संतोषी की जरूरतों को पूरी कर के वह उसे शीशे में उतारने की कोशिश करने लगा. संतोषी से उस की चाहत छिपी न रह सकी. वह खुश थी कि एक और उस की देह का पुजारी उस की जरूरतों का खयाल रखने के लिए खुदबखुद खिंचा चला आया था.

एक दिन संतोषी अपन्नू के साथ शराब पीने बैठी तो नशा चढ़ते ही बोली, ‘‘अपन्नू, तुम्हारी आंखों में मुझे अपने लिए चाहत दिख रही है. तुम मुझे पाने के लिए लालायित हो, यह जान कर भी कि मैं तुम्हारे भाई की माशूका हूं.’’

‘‘क्या करूं तुम हो ही इतनी मादक कि किसी का भी दिल पाने को मचल उठे. रही बात मेरे भाई की तो तुम उसे ब्याही तो हो नहीं कि कुछ करने से अनर्थ हो जाएगा. तुम्हारे प्यार के सागर में मैं भी डुबकी लगा लूंगा तो क्या फर्क पड़ेगा?’’ वह बोला.

‘‘बात तो सही कह रहे हो. मैं तुम्हें अपना तन तो सौंप दूंगी लेकिन बदले में तुम्हें मेरी सारी जरूरतों का खयाल रखना पड़ेगा. मंजूर हो तो बोलो…’’

अपन्नू ने लपक कर उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मंजूर है.’’

उस का उतावलापन देख कर संतोषी मंदमंद मुसकराई, फिर उस की बांहों में कैद हो गई. दोनों के बीच वासना का खेल खेला जाने लगा. इस के बाद संतोषी दोनों भाइयों के साथ मौजमस्ती करने लगी.

संतोषी ने अपने बेटों को किसी तरह बहलाफुसला कर अपने पक्ष में कर लिया था, इसलिए वे विरोध नहीं करते थे. लेकिन संतोषी की एकलौती बेटी अर्चना इतनी बड़ी हो चुकी थी कि अपनी मां की गलत हरकतों को समझा सके. पढ़ने की वजह से भी उस में काफी समझदारी आ गई थी. अपन्नू ने कई बार नशे में अर्चना के साथ छेड़छाड़ की थी, जिस का अर्चना ने खुल कर विरोध किया था. इस की शिकायत अर्चना ने अपनी मां संतोषी से भी की, लेकिन संतोषी ने कुछ नहीं किया.

अर्चना उन दोनों के नाजायज संबंधों को सार्वजनिक करने की धमकी देती थी, जिस से संतोषी और अपन्नू घबरा गए थे. संतोषी ने हर तरीके से अर्चना को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी.

22 अक्तूबर की रात अपन्नू और संतोषी ने जम कर शराब पी और फिर एकदूसरे की बांहों में समाने ही वाले थे कि अर्चना आ गई. उस ने दोनों को देखा तो सब को बताने की धमकी देने लगी. इस पर संतोषी और अपन्नू ने उसे दबोच लिया. उस समय संतोषी का बड़ा बेटा मोनू भी वहां आ गया था.

संतोषी और मोनू ने अर्चना को पकड़ लिया. संतोषी ने अर्चना का मुंह दबाया तो मोनू ने उस के हाथपैर पकड़े. अपन्नू ने सब्जी काटने वाले छोटे चाकू से उस का गला रेत दिया, जिस से अर्चना की मृत्यु हो गई. इस के बाद अपन्नू वहां से चला गया.

सुबह होने पर संतोषी अर्चना की लाश को उठा कर घर के बाहर ले आई और कैंसर फटने से अर्चना की मौत होने का नाटक करने लगी. लेकिन उस का नाटक सफल नहीं हुआ और पकड़ी गई.

एसओ अरुणेश गुप्ता ने संतोषी की निशानदेही पर उस के घर के कमरे में रखे संदूक के नीचे से हत्या में इस्तेमाल किया गया सब्जी काटने वाला चाकू और संतोषी का खून सना सफेद रंग का ब्लाउज बरामद कर लिया. इस के बाद कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मोनू नाम परिवर्तित है.

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई? – भाग 2

पुलिस ने तीनों से अलगअलग पूछताछ की तो पारसनाथ पाल ने कहा, ‘‘हां साहब, रागिनी मेरी ही बेटी थी. लेकिन उस ने हमें समाजबिरादरी में कहीं जीने लायक नहीं छोड़ा था. उस के कारण लोग हम पर थूथू कर रहे थे. लेकिन उस की हत्या मैं ने नहीं की है. उसे मेरे बेटे सिकंदर पाल ने अपने किसी दोस्त के साथ मिल कर मार डाला है.’’

इस के बाद एसओ अरुण पवार ने सिकंदर पाल से पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि रागिनी की हत्या में उस के मांबाप की कोई भूमिका नहीं थी.

उस ने अपने दोस्त कामदेव सिंह निवासी व्यासनगर जंगल के साथ मिल कर उसे ठिकाने लगाया था. उस के बाद पुलिस ने व्यासनगर जंगल स्थित कामदेव के घर दबिश दी. कामदेव घर पर नहीं मिला. वह घटना के बाद से ही फरार चल रहा था. 2 दिनों के अथक प्रयास के बाद पुलिस ने उसे शाहपुर से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. सिकंदर पाल और कामदेव से की गई पूछताछ के बाद रागिनी पाल की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

रागिनी पाल मूलरूप से गोरखपुर के गुलरिहा इलाके की शिवपुर सहबाजगंज की रहने वाली थी. उस के पिता पारसनाथ पाल एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था. पारसनाथ के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा सिकंदर था. अपनी सामर्थ्य के अनुसार उस ने सभी बच्चों को पढ़ाया.

समय बीतने के साथ जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, वह उन की शादी करता गया. बड़ी बेटियों प्रमिला और सरिता के उस ने हाथ पीले कर दिए थे. सब से छोटी बेटी रागिनी अभी पढ़ रही थी.

उसी दौरान उस के पांव बहक गए. गांव के ही राकेश नाम के युवक के साथ उस के अवैध संबंध हो गए थे, जिस की चर्चा पूरे गांव में थी. किसी तरह यह खबर रागिनी की मां निर्मला के कानों में पड़ी तो उस ने इस की जानकारी अपने पति पारसनाथ को दी.

इतना सुनते ही पारसनाथ बोला, ‘‘क्या बक रही हो, तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है न?’’

‘‘मैं बिलकुल ठीक कह रही हूं.’’ निर्मला ने कहा.

‘‘तो तुम ने इस बारे में रागिनी से पूछा या नहीं?’’

‘‘नहीं, अभी तो नहीं. सयानी बेटी है, पूछने पर कहीं कुछ कर न बैठे, इसलिए चुप थी.’’

‘‘ऐसे चुप्पी साधे ही बैठे रहना, कहीं ऐसा न हो कि बेटी मुंह पर कालिख पोत कर फुर्र हो जाए.’’ पारसनाथ पत्नी निर्मला पर गुस्से से चिल्लाया, ‘‘क्या अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा?’’

‘‘नहीं, तुम अभी उस से कुछ नहीं कहना. मैं उस से बात कर के समझाती हूं.’’ निर्मला ने कहा.

इत्तफाक से अगले दिन रागिनी स्कूल नहीं गई थी. पति भी अपनी ड्यूटी जा चुके थे. तभी निर्मला ने अप्रत्यक्ष रूप से रागिनी से बात शुरू की, ‘‘पढ़ाई कैसी चल रही है बेटा?’’

‘‘ठीक, एकदम फर्स्ट क्लास. क्यों मां, क्या बात है जो आज मेरी पढ़ाई के बारे में पूछ रही हो.’’ रागिनी ने मां से पूछा.

‘‘कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही पूछ रही थी. अच्छा बेटा, मैं तुम से एक बात पूछती हूं क्या सच बताओगी?’’ निर्मला ने कहा.

‘‘हां मां, पूछो, क्या पूछना चाहती हो?’’ रागिनी ने उत्तर दिया.

‘‘तुम कल किस लड़के के साथ घूम रही थी?’’ निर्मला ने पूछा तो रागिनी के चेहरे का रंग उड़ गया. वह एकदम से सकपका गई.

‘‘किसी भी लड़के के साथ नहीं. यह तुम क्या कह रही हो?’’ रागिनी हकलाते हुए बोली, ‘‘लगता है किसी ने तुम्हें गलत जानकारी दी है. यह बात सरासर झूठी है.’’ रागिनी नजरें चुराते हुए बोली, ‘‘क्या मां, तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘मुझे तुम पर पूरा भरोसा है बेटा. तुम ऐसीवैसी हरकत नहीं कर सकती, जिस से तुम्हारे मांबाप की जगहंसाई हो.’’ निर्मला ने समझाते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा, इज्जतआबरू और मानमर्यादा एक औरत के कीमती गहने हैं. बेटा, यदि कोई बात हो तो मुझे खुल कर बता दो. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’

‘‘नहीं मां, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ रागिनी विश्वास दिलाते हुए बोली. बेटी के इतना  कहने पर मां निर्मला उस के कमरे से चली गई.

मां के कमरे से जाने के बाद रागिनी इस बात से हैरान थी कि मां को सच्चाई का पता कैसे चल गया. उसे किस ने बताया होगा? वह इस बात से भी डर रही थी कि पापा और भाई को जब इस बारे में पता चलेगा तो घर में कयामत ही आ जाएगी.

जब से पत्नी ने पारसनाथ को बेटी के बारे में बताया था, वह परेशान हो गया था. अत: वह भी बेटी के बारे में उड़ रही खबर की सच्चाई पता लगाने में जुट गया. उसे पता चला कि पड़ोस के राकेश से रागिनी का काफी दिनों से चक्कर चल रहा है. यह जानकारी रागिनी के भाई सिकंदर को भी हो चुकी थी.

बहन के बारे में सुन कर उस का तो खून खौल उठा. उस ने रागिनी को समझाया कि वह अपनी हरकतों से बाज आ जाए, समाज बिरादरी में बहुत बदनामी हो रही है. नहीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है. रागिनी ने किसी तरह भाई सिकंदर को विश्वास दिलाया कि कोई उसे बदनाम करने के लिए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहा है.

बात घटना से एक साल पहले की है. एक दिन अचानक रागिनी घर से गायब हो गई. जवान बेटी के अचानक गायब होने से घर वाले परेशान हो गए. बेटी को तलाशते हुए वह उस के प्रेमी राकेश के घर पहुंच गए तो पता चला कि राकेश भी उसी दिन से घर से गायब है.

फिर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रागिनी राकेश के साथ ही भाग गई है. चूंकि मामला नाबालिग बेटी का था, इसलिए बदनामी को देखते हुए पारसनाथ ने पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई.

पारसनाथ अपने बेटे सिकंदर के साथ मिल कर बेटी को अपने स्तर से तलाशते रहा. आखिर अपने स्रोतों से उन दोनों ने रागिनी को ढूंढ ही लिया. वह राकेश के साथ ही थी. घर ला कर सिकंदर ने रागिनी पर अपना सारा गुस्सा निकाल दिया था. कमरे में बंद कर के उस ने उस की डंडे से पिटाई शुरू कर दी. लेकिन पिता ने उसे बचा लिया था. तब सिकंदर ने बहन को हिदायत दी कि अगर आइंदा राकेश से मिलने की कोशिश की या उस के बारे में सोचा भी तो जान से हाथ धो बैठेगी. इस के बाद से घर वालों की उस पर नजरें जमी रहतीं.

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई? – भाग 1

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का एक गांव है उमरपुर. यह गांव थाना चिलुआताल के अंतर्गत  आता है. गांव के बाहर आम का एक बड़ा बाग स्थित है. 21 नवंबर, 2018 को करीब 10 बजे गांव के ही विकास, राजन और अमन नाम के लड़के इस बाग में खेलने के लिए गए थे.

वहां पहुंच कर वे अपने खेल की दुनिया में रम गए थे. खेल के दौरान ही राजन चिल्लाता दौड़ता हुआ विकास और अमन के पास जा पहुंचा. उसे चिल्लाता देख दोनों परेशान हो गए. तभी विकास ने उस से पूछा, ‘‘अबे तू चिल्ला क्यों रहा है? वहां झाड़ी में क्या कोई भूत देख लिया जो चीख रहा है और तेरे माथे पर पसीना आ गया.’’

‘‘भूत नहीं, वहां झाडि़यों में एक लड़की की लाश पड़ी है.’’ लंबी सांसें भरता हुआ राजन बोला, ‘‘तुम्हें मेरी बातों पर यकीन न हो रहा हो तो आओ मेरे साथ, तुम्हें भी दिखाता हूं.’’ कह कर राजन झाड़ी की ओर बढ़ा तो उत्सुकतावश उस के दोस्त भी उस के पीछेपीछे चल दिए.

जब वह झाडि़यों के पास पहुंचे तो वास्तव में वहां एक लड़की की लाश पड़ी थी. लाश देख कर वे अपना खेल खेलना भूल गए और सभी सिर पर पैर रखे चिल्लाते हुए गांव की ओर भागे.

गांव पहुंच कर उन्होंने इस की सूचना गांव वालों को दी. बच्चों की सूचना पर गांव के कई लोग लाश देखने के लिए आम के बाग में पहुंच गए. थोड़ी देर में वहां तमाशबीनों का मजमा जमा हो गया. सूचना पा कर गांव का चौकीदार आफताब आलम भी मौके पर पहुंच गया था.

लड़की की लाश देख कर चौकीदार आफताब आलम ने सूचना चिलुआताल के थानाप्रभारी अरुण पवार को फोन द्वारा दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण पवार मय फोर्स उमरपुर में घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश की दशा देख कर वह दंग रह गए. हत्यारों ने मृतका को 5 गोलियां मारी थीं. कनपटी और सीने में एकएक और पेट में 3 गोलियां मार कर उस की हत्या की थी. शरीर पर कई जगह नुकीले हथियार से गोदे जाने के निशान भी थे. खून भी सूख कर पपड़ी के रूप में जम गया था.

लाश से थोड़ी दूर पर कारतूस के 2 खोखे भी पड़े मिले. पुलिस ने वह कब्जे में ले लिए. मौके से कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से शव की पहचान हो सके. शव की शिनाख्त के लिए थानाप्रभारी पवार ने मौके पर जुटे ग्रामीणों से पूछताछ की लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

इस का मतलब साफ था कि मृतका चिलुआताल की रहने वाली नहीं थी. यानी वह कहीं और की रहने वाली थी. थानाप्रभारी ने घटना की सूचना सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे, एसपी (उत्तरी) अरविंद कुमार पांडेय और एसएसपी डा. सुनील गुप्ता को भी दे दी.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद सभी अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल की छानबीन कर वहां मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछताछ की लेकिन मौजूद लोगों ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए बीआरडी मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेज दी. थाने लौट कर उन्होंने चौकीदार आफताब आलम की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और विवेचना शुरू कर दी.

थानाप्रभारी इस बात पर गौर कर रहे थे कि मासूम सी दिखने वाली युवती की भला किसी से क्या दुश्मनी हो सकती थी, जो उसे 5 गोलियां मार कर मौत के घाट उतार दिया.

हत्यारे का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उस ने किसी नुकीली चीज से उस पर अनगिनत वार कर के अपनी भड़ास निकाली. इस से साफ पता चल रहा था कि हत्यारा मृतका से काफी खुन्नस खाया हुआ था. पुलिस को मामला प्रेम संबंधों का लग रहा था.

अगले दिन एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानाप्रभारी अरुण पवार को अपने औफिस बुला कर हत्या के इस केस के बारे में चर्चा की और जल्द से जल्द केस का खुलासा करने के निर्देश दिए.

घटना को एक सप्ताह बीत गया लेकिन न तो मृतका की शिनाख्त हो पाई थी और न ही किसी थाने में इस उम्र की किसी लड़की की गुमशुदगी दर्ज होने की सूचना मिली. जबकि मृतका की शिनाख्त के लिए जिले के सभी 26 थानों को मृतका का फोटो भेज दिया गया था. जांच टीम के लिए यह मामला काफी पेचीदा होता जा रहा था. तब थानाप्रभारी ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

7 दिनों बाद यानी 4 दिसंबर, 2018 को प्रमिला और सरिता नाम की 2 सगी बहनें थानाप्रभारी अरुण पवार से मिलीं. उन्होंने बताया कि उन की छोटी बहन 15 वर्षीय रागिनी जो गुलरिहा थाने के शिवपुर सहबाजगंज में रहती है. 20 नवंबर, 2018 की शाम को घर से साइकिल ले कर निकली थी, वह अभी तक घर नहीं लौटी है.

मांबाप ने कई दिनों तक रागिनी को इधरउधर तलाशा. लेकिन जब कहीं पता नहीं चला तो वह चुप हो कर बैठ गए. उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि वह कहां चली गई और किस हाल में है. भाई सिकंदर पाल भी रागिनी को तलाशने में कोई रुचि नहीं ले रहा. वह भी चुपी साधे बैठा है.

यह बात दोनों बहनों प्रमिला और सरिता को बड़ी अजीब लगी कि जिस की सयानी बेटी घर से लापता हो जाए, वह बाप हाथ पर हाथ धरे भला कैसे बैठा रह सकता है. कहीं न कहीं कोई पेंच जरूर है. तब से दोनों बहनों ने अपने स्तर से रागिनी की तलाश शुरू कर दी. उन्हें जब पता लगा कि उमरपुर गांव के आम के एक बाग में एक सप्ताह पहले पुलिस ने एक लड़की की लाश बरामद की थी, तो वे यहां चली आईं.

थानाप्रभारी ने अपने फोन में मौजूद उस लाश की फोटो और कपड़े दिखाए तो दोनों बहनों ने वह पहचानते हुए बताया कि यह फोटो और कपड़े उन की बहन रागिनी के हैं. लाश की शिनाख्त होने के बाद प्रमिला और सरिता ने बताया कि रागिनी की हत्या के पीछे उसे अपने घर वालों पर शक है. उन्होंने कहा कि उस के मांबाप और भाई सिकंदर पाल से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

प्रमिला और सरिता के बयानों को आधार बना कर पुलिस टीम ने 5 दिसंबर, 2018 को शिवपुर सहबाजगंज गांव में स्थित पारसनाथ पाल के घर पर सुबहसुबह दबिश दी.

संयोग से उस समय घर पर पारसनाथ पाल, उस की पत्नी और बेटा सिकंदर पाल तीनों मिल गए. पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

कानपुर में टप्पेबाज गिरोह

दिलों पर छा गया सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड

अयोध्या में आयोजित 5वां ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ कई मायने में काफी खास रहा. इस साल भी इस का आयोजन ‘अयोध्या महोत्सव’ मंच पर 4 जनवरी, 2024 को किया गया. इस में भोजपुरी के अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले कुणाल सिंह के साथसाथ आजमगढ़ के सांसद और जुबली स्टार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’, आम्रपाली दुबे, संजय पांडेय, अंजना सिंह, देव सिंह सहित टौप के कलाकारों ने भाग लिया.

उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर में स्थित ‘फौरएवर लौन’ में रंगारंग कार्यक्रम शुरू होने के 3 घंटे पहले ही हजारों दर्शक पहुंच गए थे. दर्शकों का भोजपुरी कलाकारों के प्रति दीवानगी का यह आलम था कि कार्यक्रम स्थल पर पैर रखने की जगह नहीं बची थी. कड़ाके की ठंड भी फैंस में समारोह के प्रति उत्साह भरा हुआ था.

स्टेज पर जम कर झूमे कलाकार

अवार्ड की शुरुआत सागर शान एंड टीम ने डांस से की तो उन के ऐक्शन और स्टंट ने दर्शकों में रोमांच भर दिया. छरहरे बदन वाले अभिनेता विमल पांडेय और अभिनेत्री पल्लवी गिरि की जोड़ी ने अपने डांस से युवा दिलों की धड़कनें बढ़ा दीं.

लिटिल स्टार आर्यन बाबू की जब स्टेज पर एंट्री हुई तो दर्शकों की सीटियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. भोजपुरी के पहले रैप सिंगर हितेश्वर ने अपने रैप से माहौल को पूरी तरह रंगीन बना दिया था.

इस के अलावा सूर्य प्रताप यादव ऐंड पार्टी, प्रमिला घोष, विजय यादव और राजेश गौड़ की पेशकश पर भी लोग रातभर झूमते रहे. दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ तो स्टेज पर आने के बाद खुद को रोक नहीं पाए. उन्होंने माइक संभाल कर खुद गाना गा कर आम्रपाली दुबे के साथ डांस किया. इस दौरान ‘कहरवा’ टीम के लोगों ने उन के साथ डांस किया.

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छाई रही विमल और माही की जोड़ी

अभिनेता विमल पांडेय और अभिनेत्री माही खान ने इस अवार्ड शो के होस्ट की जिम्मेदारी संभाली. इन की जोड़ी पिंक और ब्लैक ड्रैस में बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी. इन दोनों ने भोजपुरिया बोली में बेहद खास अंदाज से शुरुआत कर पूरे समय अपने चुलबुले और फनी मोमैंट्स द्वारा लोगों को आखिर तक बांधे रखा. बीचबीच में यह हलकेफुलके अंदाज में हंसीमजाक से लोगों का मनोरंजन भी करते रहे.

सांसद और अभिनेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ ने बैस्ट अवार्ड लेने के बाद कहा कि ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में आ कर वह बेहद खुश हैं. इस से उन की दर्शकों के प्रति जिम्मेदारी और भी बड़ जाती है. वहीं अभिनेता संजय पांडेय ने कहा कि वे ‘सरस सलिल अवार्ड’ पा कर वह खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.

ऐक्टर देव सिंह ने कहा कि उन्हें खुशी है कि जब ‘सरस सलिल अवार्ड’ की नींव रखी गई थी तो उन्हें तब भी अवार्ड मिला था और 5वें साल फिर उन्हें अवार्ड मिल रहा है. इस से उन की ऐक्टिंग के प्रति जवाबदेही और भी बढ़ जाती है. इस दौरान आम्रपाली दुबे, अंजना सिंह सहित सभी छोटेबड़े कलाकारों ने अपने विचार रखे.

खूब खिंची सैल्फी

‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ के प्रति दीवानगी केवल दर्शकों में ही नहीं, बल्कि भोजपुरी के तमाम बड़े हीरो हीरोइनों और टैक्निशियनों में भी दिखी. कलाकार अवार्ड पाने के बाद एकदूसरे के साथ खूब सैल्फी लेते दिखे.

कार्यक्रम को होस्ट कर रहे विमल पांडेय और माही खान की जोड़ी के साथ कई ऐक्टरों ने उन के शानदार अंदाज में ऐंकरिंग के लिए बधाई देते हुए सैल्फी ली. बहुत से कलाकारों ने उसे अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा भी किया.

दर्शकों को मली मनोरंजन की पूरी डोज

‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ के दौरान एक ओर दर्शक भोजपुरी के सुपर स्टार हीरो और हीरोइनों को सामने पा कर गदगद थे, वहीं दूसरी ओर उन के साथ सैल्फी लेने की होड़ मची थी. दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ के साथ दर्शक सैल्फी लेते रहे, लेकिन एक बार भी ‘निरहुआ’ के चेहरे पर गुस्सा या झल्लाहट नहीं दिखी.

कुछ यही हाल आम्रपाली दुबे, अनारा गुप्ता, रक्षा गुप्ता, सपना चौहान, पल्लवी गिरि के साथ हुआ. इन हसीनाओं ने अपने फैंस को खूब सैल्फी दीं.

आर्यन बाबू ने हीरोइनों को नचाया स्टेज पर

भोजपुरी फिल्मों में चाइल्ड ऐक्टर के तौर पर अपने हुनर और ऐक्टिंग की बदौलत मशहूर हुए आर्यन बाबू ने कड़ाके की ठंड में लोगों में एनर्जी भर दी और अपने निराले अंदाज में उन्हें खूब हंसाया. आर्यन बाबू यहीं नहीं रुके और उन्होंने माइक थाम कर जब गाना शुरू किया, तो दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ और आम्रपाली दुबे सहित सभी ऐक्टर दर्शकों के साथ तालियां बजाने लगे.

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आर्यन बाबू ने अपने डांस में तब और ज्यादा ट्विस्ट ला दिया, जब उन्होंने ‘मिस जम्मू’ और फेमस ऐक्ट्रैस अनारा गुप्ता, रक्षा गुप्ता, सपना चौहान को स्टेज पर थिरकने को मजबूर कर दिया. चाइल्ड ऐक्टर आयुषी मिश्र ने भी लोगों को खूब गुदगुदाया.

देसी नाच ‘कहरवा’ में खूब झूमे ऐक्टर

‘अयोध्या महोत्सव मंच’ पर आयोजित हुए ‘5वें सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में जो सब से खास रहा, वह था ‘कहरवा’. अवधी बोली में गाए जाने वाले गीत के साथ जब अवधी कलाकार राजेश गौड़ की अगुआई में तकरीबन 3 दरजन सहकलाकारों की टीम स्टेज पर पहुंची तो लोगों की सांसें थम सी गईं. इन युवा कलाकारों ने खतरनाक स्टंट के साथ देसी अंदाज में जो डांस पेश किया, उस ने लोगों में रोमांच भर दिया.

बड़े सितारों को मिले यह अवार्ड

‘5वें सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में इस बार भारी संख्या में आवेदन आए थे. लेकिन जूरी द्वारा फिल्मों में ऐक्टिंग, ऐडिटिंग, संगीत, मारधाड़, कथापटकथा इत्यादि के आधार पर जिन लोगों का चयन किया गया, उस में सब से ऊपर नाम दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ और आम्रपाली दुबे का रहा, क्योंकि इन दोनों सितारों को ऐक्टिंग की ओवरआल श्रेणी में बैस्ट ऐक्टर का अवार्ड दिया गया.

दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ को जहां उन की फिल्म ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ में की गई ऐक्टिंग के लिए बैस्ट ऐक्टर का अवार्ड दिया गया, वहीं आम्रपाली दुबे को फिल्म ‘दाग एगो लांछन’ के लिए बैस्ट ऐक्ट्रैस का अवार्ड मिला. रजनीश मिश्र को ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ के लिए बैस्ट डायरेक्टर और बैस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का अवार्ड मिला.

सब से ज्यादा अवार्ड निशांत उज्ज्वल को मिले. उन्हें विभिन्न कैटेगरी में कुल 3 अवार्ड मिले, जिस में ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ को बैस्ट फिल्म का, ‘विवाह 3’ के लिए बैस्ट संपूर्ण मनोरंजन प्रदान करने वाली फिल्म और बैस्ट डिस्ट्रीब्यूटर के अवार्ड से नवाजा गया.

‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ के लिए ही जनार्दन पांडेय ‘बबलू पंडित’ को बैस्ट लाइन प्रोड्यूसर, प्यारेलाल यादव ‘कविजी’ को बैस्ट गीतकार, प्रियंका सिंह को बैस्ट सिंगर, दिलीप यादव को बैस्ट ऐक्शन, कानू मुखर्जी को बैस्ट कोरियोग्राफर, ज्योति देशपांडेय को बैस्ट फिल्म निर्माता का अवार्ड दिया गया.

‘दाग एगो लांछन’ फिल्म के लिए जितेंद्र सिंह ‘जीतू’ को बैस्ट ऐडिटर, प्रेमांशु सिंह को बैस्ट डायरेक्टर भोजपुरी फैमिली वैल्यूज मूवी, मनोज कुशवाहा को ‘दाग एगो लांछन’ के लिए बैस्ट स्टोरी, विक्रांत सिंह को बैस्ट सेकंड लीड ‘दाग एगो लांछन’ के लिए प्रदान किया गया. ‘विवाह 3’ के आधार पर महेंद्र सेरला बैस्ट डीओपी रहे, वहीं ऐक्ट्रैस पाखी हेगड़े को महिला प्रधान फिल्मों में विशिष्ट योगदान के लिए अवार्ड दिया गया.

सिनेमाघरों में लंबे समय तक चलने वाली भोजपुरी फिल्म ‘हीरा बाबू एमबीबीएस’ के अभिनेता विमल पांडेय को बैस्ट क्रिटिक ऐक्टर का अवार्ड प्रदान किया गया. इसी फिल्म से अखिलेश पांडेय को बैस्ट डायरैक्टर क्रिटिक अवार्ड से नवाजा गया.

ओवरआल कैटेगरी के खास अवार्ड

ओवरआल कैटेगरी में जिन्हें अवार्ड मिले, उन में संजय पांडेय को ‘संघर्ष 2’ में किए गए अभिनय के लिए बैस्ट विलेन का अवार्ड दिया गया, जबकि ‘सिंह साहब द राइजिंग’ के लिए बैस्ट ऐक्टर इन सपोर्टिंग रोल के लिए सुशील सिंह को अवार्ड प्रदान किया गया. विजय श्रीवास्तव को ‘डार्लिंग’ फिल्म के लिए बैस्ट आर्ट डायरेक्टर का अवार्ड मिला.

इस के अलावा राहुल शर्मा को फिल्म ‘डार्लिंग’ के लिए बैस्ट डैब्यू ऐक्टर, रंजन सिन्हा को बैस्ट पीआरओ, आनंद त्रिपाठी को बैस्ट फिल्म पत्रकार, सीपी भट्ट को फिल्म ‘पड़ोसन’ के लिए बैस्ट कौमेडियन, अनारा गुप्ता को फिल्म ‘सनक’ के लिए बैस्ट आइटम नंबर का अवार्ड, रवि तिवारी को फिल्म ‘आसरा’ के लिए बैस्ट असिस्टैंट डायरेक्टर का अवार्ड दिया गया.

इस के अलावा फिल्म ‘दादू आई लव यू’ के लिए आर्यन बाबू को बैस्ट चाइल्ड ऐक्टर (मेल), ‘अफसर बिटिया’ फिल्म के लिए आयुषी मिश्रा बैस्ट चाइल्ड ऐक्टर (फीमेल), प्रमिला घोष को बैस्ट स्टेज परफौर्मेंस, विजय यादव को बैस्ट फोक डांस ‘फरुआही’ के लिए प्रदान किया गया.

राकेश त्रिपाठी और कन्हैया विश्वकर्मा को ‘अफसर बिटिया’ के लिए बैस्ट डैब्यू डायरेक्टर का अवार्ड दिया गया, जबकि ‘आसरा’ फिल्म से बैस्ट डैब्यू ऐक्ट्रैस का अवार्ड सपना चौहान को, हितेश्वर को बैस्ट भोजपुरी रैपर का अवार्ड प्रदान किया गया.

बायोग्राफी कैटेगरी में इस फिल्म को मिला अवार्ड

बायोग्राफी कैटेगरी में ‘सिंह साहब द राइजिंग’ फिल्म का दबदबा रहा, जिसे कुल 11 अवार्ड मिले. इस में बैस्ट ऐक्टर देव सिंह, बैस्ट ऐक्ट्रैस अंजना सिंह, बैस्ट प्रोड्यूसर गीता सिंह, चंदा सिंह और नीतू सिंह, धीरज पंडित को बैस्ट डायरेक्टर, उदय भगत को बैस्ट कोप्रोड्यूसर, वीना पांडेय को बैस्ट ऐक्ट्रैस इन सपोर्टिंग रोल, शुभम सिंह को बैस्ट स्टोरी, रिया सिंह को बैस्ट ड्रैस डिजाइनर, मुसाफिर जौनपुरी को बैस्ट गीतकार के अवार्ड से नवाजा गया. संतोष पहलवान को बैस्ट सपोर्टिंग ऐक्टर जूरी इन बायोग्राफी अवार्ड फिल्म ‘सिंह साहब द राइजिंग’ के लिए प्रदान किया गया.

अन्य कैटेगिरी में भी मिले अवार्ड

‘5वें सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में जिन दूसरी कैटेगरी में अवार्ड दिए गए, उन में सर्वश्रेष्ठ संदेशपरक फिल्म कैटेगरी में बैस्ट ऐक्टर कृष्णा कुमार, बैस्ट सपोर्टिंग ऐक्टर संजू सोलंकी, बैस्ट डायरेक्टर सम्राट सिंह, बैस्ट सपोर्टिंग ऐक्टर समर्थ चतुर्वेदी, डैब्यू प्लेबैक सिंगर डा. विकास चतुर्वेदी, बैस्ट कोरियोग्राफर विवेक थापा और बैस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का अवार्ड फिल्म डैब्यू के लिए अशोक राव को दिया गया.

कार्यक्रम की होस्ट माही खान को उन की फिल्म ‘पावर औफ किन्नर’ के लिए बैस्ट ऐक्ट्रैस जूरी अवार्ड दिया गया, जबकि अंबरीश सिंह को फिल्म ‘जय मां विंध्यवासिनी’ के लिए बैस्ट राइजिंग स्टार का अवार्ड दिया गया.

चंदन उपाध्याय को बैस्ट डायरेक्टर सामाजिक मुद्ïदों पर बैस्ट फिल्म श्रेणी में ‘हरहर गंगे’ के लिए प्रदान किया गया. फिल्म ‘क्रांतिकारी 1924’ के लिए रक्षा गुप्ता को बैस्ट पौपुलर ऐक्ट्रैस, अनूप अरोरा को बैस्ट सपोर्टिंग ऐक्टर क्रिटिक, जे.सी. पांडेय को बैस्ट डायरेक्टर स्पैशल मैंशन, विद्या विष्णु मौर्य को बैस्ट कौस्ट्यूम डिजाइनर, धामा वर्मा को सपोर्टिंग ऐक्टर क्रिटिक (स्पैशल मैंशन) अवार्ड प्रदान किया गया.

फिल्म डायरेक्टर संजय श्रीवास्तव को उन की फिल्म ‘चाची नंबर 1’ के लिए बैस्ट डायरेक्टर स्पैशल जूरी अवार्ड से नवाजा गया. लाल बाबू पंडित को ‘फरिश्ता’ फिल्म के डायरेक्शन के लिए स्पैशल जूरी अवार्ड दिया गया, जबकि राजेश गौड़ को लोक कला पुरुष कहरवा विधा और रामा प्रजापति को लोक कला बाधवा विधा में अवार्ड प्रदान किया गया.

नीरज रणधीर को ‘सौरी यार’ फिल्म के डायरेक्शन के लिए जूरी अवार्ड, के.के. गोस्वामी को बैस्ट ऐवरग्रीन ऐक्टर, बैस्ट ऐक्ट्रैस भोजपुरी अलबम, सागर शान को बैस्ट कोरियोग्राफर इन अलबम, संजोली पांडेय को बैस्ट लोकगायिका, सत्या सावरकर को ‘दाग एगो लांछन’ फिल्म के लिए स्पैशल जूरी अवार्ड प्रदान किया गया.

स्वाति शर्मा को ‘डार्लिंग’ फिल्म के लिए पाश्र्व गायिका जूरी अवार्ड दिया गया, जबकि ‘डार्लिंग’ फिल्म से ही जूरी अवार्ड श्रेणी में प्रदीप के. शर्मा को बैस्ट फिल्म, रोहित सिंह मटरू को बैस्ट कौमेडी, म्यूजिक बीएवी को बैस्ट पाश्र्व संगीत का अवार्ड दिया गया. गायक और अभिनेता रितेश पांडेय को ‘दाग एगो लांछन’ के लिए बैस्ट ऐक्टर फैमिली वैल्यूज मूवी श्रेणी में अवार्ड प्रदान किया गया.

सीनियर ऐक्टर उदय श्रीवास्तव को ‘अमरप्रीत’ के लिए स्पैशल अवार्ड प्रदान किया गया. अयाज खान को बैस्ट विलेन क्रिटिक, सर्वश्रेष्ठ महिला प्रधान फिल्म श्रेणी में फिल्म ‘अफसर बिटिया’ से श्रुति राव को बैस्ट ऐक्ट्रैस, राकेश त्रिपाठी को बैस्ट कहानी व पटकथा का अवार्ड प्रदान किया गया. सर्वश्रेष्ठ मनोरंजन प्रदान करने वाली फिल्म श्रेणी में ‘आसरा’ फिल्म से कृष्णा विश्वकर्मा को बैस्ट साउंड इंजीनियर व अनंजय रघुराज को बैस्ट डायरेक्टर का अवार्ड प्रदान किया गया.

कुणाल सिंह को मिला लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड

‘भोजपुरी सिनेमा के अमिताभ बच्चन’ कहे जाने वाले कुणाल सिंह को भोजपुरी सिनेमा में उन के योगदान के लिए लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड से नवाजा गया. गौरतलब है कि कुणाल सिंह पिछले 4 दशक से भोजपुरी सिनेमा पर राज कर रहे हैं और उन्होंने तकरीबन 300 फिल्मों में काम किया है.

साल 1983 में आई कुणाल सिंह की भोजपुरी फिल्म ‘गंगा किनारे मोरा गांव’ ने तो इतिहास ही रच दिया था. यह फिल्म वाराणसी के एक थिएटर में लगातार एक साल 4 महीने तक चली थी. यह भोजपुरी सिनेमा के इतिहास में आज भी एक रिकौर्ड है.

इस भोजपुरी रंगारंग नाइट का आगाज ‘अयोध्या महोत्सव न्यास’ के अध्यक्ष हरीश श्रीवास्तव ने किया. वे बोले कि ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ वर्तमान में भोजपुरी सिनेमा का सब से बड़ा अवार्ड बन चुका है. ‘सरस सलिल’ जब तक चाहे तब तक ‘अयोध्या महोत्सव न्यास’ भोजपुरी सिने अवार्ड को होस्ट करेगा.

फिल्म प्रोड्यूसर धीरेंद्र मणि त्रिपाठी की मौजूदगी रही खास

मशहूर फिल्म प्रोड्यूसर धीरेंद्र मणि त्रिपाठी भी मुंबई से इस अवार्ड शो में शरीक होने आए थे. मूलरूप रूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के निवासी धीरेंद्र मणि त्रिपाठी एक कामयाब बिजनेसमैन भी हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से सिनेमा की दुनिया में भी उन का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है.

‘सरस सलिल’ के शुरुआती पाठकों में से एक रहे धीरेंद्र मणि त्रिपाठी जिप्सी म्यूजिक और जिप्सी फिल्म्स के बैनर तले कई फिल्मों का निर्माण करते रहे हैं. हाल ही में उन की 2 फिल्मों की शूटिंग भी काफी चर्चा में रही है. ‘संकटमोचन हनुमान’ ऐसी पहली अवधी फिल्म होगी, जिस को पैन इंडिया रिलीज किया जाएगा.

धीरेंद्र मणि त्रिपाठी ने ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड शो’ में मंच से एक वादा भी किया कि जो भी युवा कलाकार या प्रतिभाशाली डायरैक्टर उन के साथ फिल्म करना चाहते हैं तो उन का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया जाएगा.

मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान

घर वालों को रास न आया बेटी का प्यार – भाग 3

बाप बेटे क्यों बने जल्लाद

बेटी की इस गुहार पर भी पिता कृपाराम व भाई राघवराम का दिल नहीं पसीजा. आरती जब बीच में आई तो राघव ने डंडे से उसे भी मारना शुरू कर दिया. सिर में डंडा लगने से वह बेहोश हो गई. फिर रस्सी से बापबेटे ने उस का गला कस दिया.

आरती को मारने के बाद उन दोनों ने सतीश को भी पीटपीट कर अधमरा कर दिया. आपत्तिजनक हालत में आरती व सतीश  के पकड़े जाने से दोनों का गुस्सा सातवें आसमान पर था. गुस्से में उन्होंने रस्सी से सतीश का गला भी कस दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद सतीश ने वहीं दम तोड़ दिया.

इस सनसनीखेज डबल मर्डर के बाद दोनों पुलिस की गिरफ्त से बचने की जुगत करने लगे. वहीं लाशों को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. सतीश के शव को जंगल में छिपाने व आरती के शव को अयोध्या ले जा कर दफनाने की योजना बनाई गई. तय किया गया कि आरती के बारे में कोई पूछेगा तो कह देंगे कि रिश्तेदारी में गई है.

दोनों बापबेटे रात में ही एक चारपाई पर सतीश के शव को रख कर गांव से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर एक गन्ने के खेत में ले गए. दोनों ने शव को गन्ने के खेत में छिपा दिया. जिस रस्सी से सतीश का गला कस कर हत्या की थी, उसे भी चारपाई के साथ ही खेत में फेंक आए.

सतीश के शव को छिपाने के बाद अब रात में ही आरती का शव ठिकाने लगाना था. कृपाराम और राघवराम आरती के शव को कार से ले कर गांव से 20 किलोमीटर दूर अयोध्या पंहुचे. अयोध्या में सरयू नदी के किनारे श्मशान घाट पर एक बालू के टीले में शव को दफन कर गांव वापस आ गए और घर में शांत हो कर बैठ गए. ताकि किसी को दोहरे हत्याकांड का पता न चल सके.

लेकिन मंगलवार 21 अगस्त को सुबह सतीश के नहीं मिलने पर उस के घर वालों ने उसे बहुत तलाशा. जब उन्हें जानकारी हुई कि आरती भी घर पर नहीं है तो उन लोगों ने पुलिस को सूचना दे दी. क्योंकि वे लोग भी आरती और सतीश के रिश्ते के बारे में जानते थे.

थाने में आरती के पिता कृपाराम चौरसिया ने कहा कि हमारे यहां गांव के लड़के से शादी नहीं होती है. सतीश भले ही हमारी जाति का था, लेकिन वह था तो हमारे गांव का ही. ऊपर से वह आरती का भाई लगता था. आरती किसी दूसरे गांव के लड़के से बोलती तो हम लोग उसकी शादी करवा देते.

हमारे घर से 20 मीटर की दूरी पर ही सतीश का घर था. रोज का आमनासामना होता था. वह बचपन से घर आताजाता था. दोनों साथ खेले, हम लोग उसे आरती का बड़ा भाई कहते थे. हम लोग आरती के साथ उस का रिश्ता कैसे मंजूर कर लेते?

3-4 महीने पहले दोनों को गांव के एक युवक ने साथसाथ देख लिया था. दोनों बाहर कहीं साथ में बैठे थे. इस बात की जानकारी उस ने हमें दी थी. जब आरती की घर पर बहुत पिटाई की थी. उस को सख्ती से मना किया था कि वह कभी सतीश से न मिले, लेकिन हफ्ते भर पहले वह सतीश से मिलने फिर चली गई.

इस के बाद आरती के घर से  निकलने पर  पूरी तरह पाबंदी लगा दी थी, लेकिन उस ने सतीश को 20-21 अगस्त की रात को घर बुला लिया. अगर हम अपनी बेटी को नहीं मारते तो वह हमें मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ती.

सतीश की निर्मम हत्या किए जाने पर उस के घर में कोहराम मच गया. मां प्रभावती और भाई बहनों का रोरो कर बुरा हाल हो गया. सतीश के घर वाले और रिश्तेदार गम के साथ गुस्से में दिखे.

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सतीश की मां प्रभावती का कहना था कि आरती के पिता कृपाराम चौरसिया, भाई राघवराम के साथ ही उस का चाचा आज्ञाराम और उस का बेटा विजय भी इस हत्याकांड में शामिल हैं. कृपाराम व राघवराम ने भी थाने में पुलिस को उन के नाम बताए थे. लेकिन पुलिस ने केवल बापबेटे को ही गिरफ्तार किया है.

आरती के पिता व भाई ने जुुर्म कुबूल कर लिया. इस से आरती के चाचा आज्ञाराम और उस के बेटे विजय को राहत मिली है. मगर सतीश की मां अपने बेटे को न्याय दिलाने की खातिर अभी भी मामले में आज्ञाराम व विजय को आरोपी बनाए जाने की मांग कर रही है.

उस का आरोप है कि जिस तरह से दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया गया है और दोनों की लाशों को घटनास्थल से हटाया गया है, उस में सिर्फ 2 लोग ही शामिल नहीं हो सकते. प्रभावती अंतिम सांस तक सभी दोषियों के खिलाफ कड़ी काररवाई के लिए संघर्ष करने की बात कहती है.

गांव में हुए दोहरे हत्याकांड के खुलासे व आरती के पिता व भाई द्वारा हत्या करने का जुर्म कुबूल करने तथा दोनों की गिरफ्तारी से गांव के लोग सन्न रह गए. गिरफ्तारी के बाद आरती के अन्य परिजन घर में ताला लगा कर भाग गए थे. पूरे गांव में इसी घटना की चर्चा हो रही थी.

वहीं सतीश की हत्या की सूचना सोमवार को ही मोबाइल से पिता बिंदेेश्वरी प्रसाद चौरसिया को दी गई. वे ट्रेन से मुंबई से गांव पहुंच गए. वे अपने बेटे की हत्या पर फफकते हुए बोले, ”पता होता कि उस की हत्या कर दी जाएगी तो उसे भी अपने साथ मुंबई ले जाते. बेटे को तो न खोना पड़ता.’’

बिंदेश्वरी ने रोते हुए कहा कि फांसी की सजा देने का अधिकार तो सिर्फ अदालत को है, लेकिन बाप बेटे ने मिल कर जल्लाद की तरह मेरे जिगर के टुकड़े सतीश को फांसी दे दी.

औनर किलिंग के हत्यारों कृपाराम व राघवराम को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में एसएचओ सत्येंद्र वर्मा, एसआई विजय प्रकाश, हैडकांस्टेबल दया यादव, कुषार यादव, आशुतोष पांडे, अमरीश मिश्रा व कांस्टेबल रिषभ शामिल थे. एसपी अंकित मित्तल ने 24 घंटे में डबल मर्डर का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम को पुरस्कृत किया.

गुमशुदगी की रिपोर्ट को भादंवि की धारा 302, 201 में तरमीम कर प्रेमी युगल आरती चौरसिया व सतीश चौरसिया की हत्या के आरोपी कृपाराम चौरसिया व उस के बेटे राघवराम चौरसिया को गिरफ्तार कर 23 अगस्त, 2023 को पुलिस ने न्यायालय में पेश किया. जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

एएसपी शिवराज

हंसते खेलते युवा प्रेमी युगल को मौत की नींद सुला दिया गया, जहां आदमी चांद पर पहुंच रहा है. जमाना चाहे कितना भी आगे बढ़ गया हो, लेकिन दकियानूसी सोच उन्हें आगे नहीं बढऩे दे रही. कृपाराम और राघवराम जैसे लोग समाज में नासूर बने हुए हैं, जो झूठी आन, बान और शान के लिए औनर किलिंग जैसे अपराध करते हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कानपुर में टप्पेबाज गिरोह – भाग 3

दिल्ली के डेरा टप्पेबाज गैंग ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों आगरा, मथुरा, लखनऊ, फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर आदि शहरों में दरजनों वारदातें कर के काफी धन एकत्र किया. दिसंबर माह के पहले सप्ताह में टप्पेबाज गैंग के डेरा मुखिया विनेश, विकास, आकाश व राहुल अपने डेरे के 2-2 सदस्य ले कर कानपुर शहर आ गए.

कानपुर में इन लोगों ने रेलवे स्टेशन स्थित एक होटल में अपनी वैध आईडी दिखा कर 3 रूम बुक कराए और साथियों के साथ ठहर गए. इस होटल में रुक कर इन लोगों ने कई लोगों को टप्पेबाजी का शिकार बनाया.

इस के बाद इन लोगों ने क्राइम ब्रांच का सिपाही बता कर प्रमोद वर्मा को शिकार बनाया. प्रमोद की बिरहाना रोड पर ज्वैलरी शौप है. प्रमोद दोपहर में घर में रखे 250 ग्राम सोने के आभूषण ले कर अपनी दुकान पर जा रहे थे. जब वह खत्री धर्मशाला के पास पहुंचे, तभी 2 युवकों ने उन्हें रोक लिया और खुद को क्राइम ब्रांच का सिपाही बताते हुए बैग की तलाशी देने को कहा.

इस पर उन्होंने दुकान पर चल कर तलाशी लेने की बात कही तो उन्होंने हड़काते हुए क्राइम ब्रांच औफिस चलने को कहा. इस से घबरा कर उन्होंने बैग खोल दिया. एक ने बैग की तलाशी शुरू कर दी. दूसरे ने उन्हें नाम पता नोट करने में उलझा लिया.

कुछ देर बाद इन लोगों ने बैग लौटाते हुए कहा दुकान जाओ. प्रमोद ने दुकान जा कर बैग खोल कर देखा तो उस में पत्थर के टुकड़े थे. टप्पेबाज उन को शिकार बना कर फरार हो गए. प्रमोद ने थाना कलक्टरगंज में रिपोर्ट दर्ज कराई.

19 दिसंबर को टप्पेबाज विनेश और आकाश मोटरसाइकिल से झकरकटी स्थित गणेश होटल से शिकार की तलाश में निकले. मोटरसाइकिल विकास चला रहा था. जबकि पीछे की सीट पर विनेश बैठा था.

जब ये लोग यशोदानगर बाईपास पहुंचे तो वहां जाम लगा था. पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल की कार भी इसी जाम में फंसी थी. संजय पाल पीछे की सीट पर बैठे थे और नोटों से भरा बैग उन के पास रखा था. गाड़ी उन का ड्राइवर अरुण पाल चला रहा था.

जाम में फंसी संजय की गाड़ी पर टप्पेबाज विनेश व आकाश की नजर पड़ी. सीट पर रखा बैग देख कर उन दोनों की बांछें खिल उठीं. उन्होंने सहज ही अंदाजा लगा लिया कि बैग में मोटी रकम हो सकती है. उन्होंने संजय पाल को शिकार बनाने की ठान ली.

योजना के तहत उन्होंने कार का पीछा किया और विनेश ने जाम के चलते धीमी चल रही कार के बोनट पर मोबिल औयल गिरा दिया. संजय वन रोड पहुंचने पर विनेश ने ड्राइवर अरुण पाल को इंजन से औयल टपकने का इशारा किया. अरुण ने कार रोक दी. संजय पाल व ड्राइवर अरुण जब कार से उतरे, तभी टप्पेबाज आकाश व विनेश आ गए. उन्होंने चिली स्प्रे कार में छिड़क दिया.

गाड़ी चैक कर के संजय पाल व अरुण पाल आ कर गाड़ी में बैठे तो उन की आंखों में जलन होने लगी. दोनों आंखें मलते हुए गाड़ी के बाहर आए. इसी बीच विनेश ने नोटों से भरा बैग सीट से उठाया और बाइक की पिछली सीट पर जा बैठा. वहां से ये यशोदा नगर की ओर भाग गए.

यशोदा नगर बाईपास के पहले वृंदावन गार्डन के पास टप्पेबाज राहुल कार लिए खड़ा था. वह उन्हीं दोनों का इंतजार कर रहा था. कार में प्रेम, राजेश, नरेश, अनिकली व नाबालिग एस. विजय निवासन बैठे थे. आकाश व विनेश ने आते ही रुपयों से भरा बैग कार में बैठे लोगों को थमा दिया और खुद उन्नाव की ओर चले गए. राहुल कार ले कर वापस गणेश होटल लौट आया.

इधर टप्पेबाजों का शिकार हुए संजय पाल थाना किदवई नगर पहुंचे और थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा को टप्पेबाजों द्वारा नोटों से भरा बैग पार करने की जानकारी दी.

पकड़े गए टप्पेबाज गैंग के प्रमुख आकाश, राहुल, विनेश, विकास से जब कड़ी पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि इन के अलावा शहर में एक और गैंग है, जो टप्पेबाजी कर पुलिस की नींद हराम किए हुए है. यह गैंग महाराष्ट्र का है.

इस गैंग में तमिलनाडु के सदस्य भी हैं. इस गैंग ने अनवरगंज क्षेत्र में कई वारदातें की थीं. इंसपेक्टर (अनवरगंज) मंसूर अहमद पुलिस टीम में शामिल थे. उन से पता चला कि टप्पेबाजों ने उन के थाना क्षेत्र में बांसमंडी के पास बिंदकी (फतेहपुर) निवासी आढ़ती जयकुमार साहू के साथ टप्पेबाजी की थी.

टप्पेबाजों ने उन से कहा कि उन की कार के पहिए से हवा निकल गई है. वह पहिया चैक करने उतरे. इसी बीच टप्पेबाजों ने उन की गाड़ी में रखा बैग पार कर दिया. बैग में ढाई लाख रुपए थे.

इस के बाद टप्पेबाजों ने लालगंज निवासी रेलवे ठेकेदार विजेंद्र सिंह तथा फर्रुखाबाद निवासी अतुल को शिकार बनाया. दोनों की कार से बैग उड़ाया गया था. विजेंद्र सिंह के बैग में लाइसेंसी पिस्टल, रुपए व जरूरी कागजात थे, जबकि अतुल के बैग में नकदी व कागजात थे. तीनों ने थाना अनवरगंज में टप्पेबाजों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

इंसपेक्टर मंसूर अहमद इन टप्पेबाजों को पकड़ने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी. पकड़े गए गैंग से मंसूर अहमद को कुछ क्लू मिला तो उन्होंने टप्पेबाजी करने वाले गैंग की टोह में मुखबिर लगा दिए. वह स्वयं भी प्रयास करते रहे. उन्होंने क्षेत्र के होटलों, विश्राम गृहों तथा रेलवे स्टेशन अनवरगंज में विशेष निगरानी शुरू कर दी.

4 जनवरी शुक्रवार की रात इंसपेक्टर मंसूर अहमद को खास मुखबिर से सूचना मिली कि टप्पेबाज गिरोह बांसमंडी तिराहे पर मौजूद है और किसी बड़ी वारदात की फिराक में है.

मुखबिर की इस सूचना पर विश्वास कर मंसूर अहमद बांसमंडी तिराहा पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर एक महिला सहित 4 लोगों को हिरासत में ले लिया. सभी को थाना अनवरगंज लाया गया.

थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम गणेश नायडू, दूसरे ने बाबू नायडू तथा महिला ने अपना नाम पार्वती नायडू बताया. पार्वती नायडू, गणेश नायडू की बहन थी जबकि बाबू नायडू उस का बेटा था. ये तीनों महाराष्ट्र के नदुरवार जिले के नवापुर के रहने वाले थे. चौथा व्यक्ति गणेश का रिश्तेदार चंद्रुक तेली था. वह तमिलनाडु के तिरुपुर जिले के उठकली का रहने वाला था.

पुलिस ने चारों की जामातलाशी ली तो उन के पास से करीब सवा लाख रुपए नकद, टायर कटर, गुलेल, छर्रे, मोबाइल तथा एटीएम कार्ड बरामद हुए. पूछताछ में टप्पेबाजों ने तीनों घटनाओं का खुलासा किया और कार से बैग उड़ाने की बात कबूली.

पुलिस ने इन टप्पेबाजों से करीब आधी रकम तो बरामद कर ली, लेकिन रेलवे ठेकेदार विजेंद्र सिंह की पिस्टल का पता नहीं चला. संभावना है कि गैंग का कोई अन्य सदस्य आधी रकम व पिस्टल ले कर किसी दूसरे जिले की ओर निकल गया हो.

30 दिसंबर को थाना किदवईनगर पुलिस ने टप्पेबाज गिरोह के 11 सदस्यों विनेश, विकास, आकाश, राहुल, प्रेम, नरेश, रामू, वरदराज, राजेश, अनिकली तथा नाबालिग को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से नाबालिग को छोड़ कर सभी को जेल भेज दिया गया. नाबालिग को बाल सुधार गृह भेजा गया.

दूसरे टप्पेबाज गैंग को अनवरगंज पुलिस ने 5 जनवरी को रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से गणेश, बाबू, पार्वती, चंदुक तेली को जिला जेल भेज दिया गया.

घर वालों को रास न आया बेटी का प्यार – भाग 2

गन्ने के खेत में मिला सतीश का शव

हत्या का जुर्म कुबूल करने के बाद पुलिस ने आरती के भाई राघवराम की निशानदेही पर गन्ने के खेत से सतीश का शव, चारपाई व रस्सी बरामद कर ली. फोरैंसिक टीम व डौग स्क्वायड को भी बुला लिया गया था. खोजी कुत्ता गन्ने के खेत के बाद दौड़ता हुआ राघवराम के घर पर जा पहुंचा.

फोरैंसिकटीम ने भी घटनास्थल से कुछ साक्ष्य जुटाए. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. वहीं आरती को बालू के टीले में दफन किए जाने की जानकारी पर एसएचओ सत्येंद्र वर्मा ने डीएम से अनुमति ली.

इस के बाद पुलिस टीम के साथ अयोध्या जा कर वहां के अधिकारियों से बात कर के सरयू नदी के किनारे बालू के टीले में दफन आरती का शव निकलवाया. मौके की काररवाई के बाद उस का अयोध्या में ही पोस्टमार्टम कराया गया.

सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड का पुलिस ने 24 घंटे के अंदर ही परदाफाश कर दिया. इस डबल मर्डर की दिल दहलाने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

19 वर्षीय सतीश चौरसिया का गांव की ही रहने वाली 18 साल की आरती चौरसिया से पिछले लगभग 2 सालों से अफेयर चल रहा था. दोनों एक ही जाति के थे. गांव के नाते सतीश का आरती के घर आनाजाना था. दोनों ही जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे.

सतीश कदकाठी का कसा हुआ नौजवान था. वह सुंदर भी था. आरती उस की ओर आकर्षित हो गई. जब भी सतीश घर पर आता, आरती उसे कनखियों से देखा करती थी. इस बात का आभास सतीश को भी था. वह भी मन ही मन आरती को चाहने लगा था.

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अब दोनों का बचपन का प्यार जवान हो गया था. जब कभी दोनों की नजरें मिलतीं तो दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. दोनों के बीच घर वालों के सामने सामान्य बातचीत होती थी.

धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. अब दोनों की मोबाइल पर प्यार भरी बातें होने लगीं. फिर उन की अकसर गांव के बाहर चोरी छिपे मुलाकातें होने लगीं. प्रेमीयुगल एकदूसरे का हाथ थाम कर शादी करने का फैसला भी ले चुके थे.

सतीश ने आरती से साफ लहजे में कह दिया था, ”आरती, दुनिया की कोई ताकत हम दोनों को शादी करने से नहीं रोक सकती है. मैं ने तुम से सच्चा प्यार किया है और आखिरी सांस तक करता रहंूगा.’’

आरती ने भी मरते दम तक साथ निभाने का वादा किया.

आरती और सतीश खुश थे. दोनों अपने भावी जीवन के सपने देखते. दुनिया से बेखबर वे अपने प्यार में मस्त रहते थे. पर गांवदेहात में लव स्टोरी ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पाती. यदि किसी एक व्यक्ति को भी इस की भनक लग जाती है तो कानाफूसी से बात गांव भर में जल्द ही फैल जाती है.

किसी तरह आरती के घर वालों को भी इस बात का पता चल गया कि आरती का सतीश के साथ चक्कर चल रहा है. इस बात की जानकारी मिलने के बाद आरती के घर वाले कई बार विरोध कर चुके थे. विरोध के बाद सतीश का आरती के घर जाना बंद हो गया, लेकिन मौका मिलने पर दोनों चोरीछिपे मुलाकात जरूर कर लेते थे.

घर से निकलने पर क्यों लगाई पाबंदी

20-21 अगस्त, 2023 की रात को जब राघवराम घर आया, उस समय आरती और उस की मम्मी खाना बना रही थीं. पिता पास ही बैठे हुए थे. राघव पिता के पास जा कर बैठ गया. दोनों बाप बेटे कामकाज की बातें करने लगे. कुछ देर बाद खाना बन कर तैयार हो गया. तब मां ने आवाज लगा कर राघव व अपने पति को बुला लिया. दोनों खाना खाने किचन के पास पहुंच गए. किचन के पास ही बैठ कर चारों ने खाना खाया. ये लोग आपस में बात कर रहे थे, लेकिन आरती कुछ बोल नहीं रही थी.

आरती उन लोगों से नाराज थी. क्योंकि घर वाले एक हफ्ते से उसे घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे थे. दरअसल, आरती अपने प्रेमी सतीश से चोरीछिपे मिलती थी. जिस की जानकारी होने पर उस पर रोक लगाई गई थी.

आरती और सतीश के प्रेम प्रसंग की वजह से गांव में उन की बदनामी हो रही थी. जो घर वालों को बरदाश्त नहीं थी, लेकिन यह बात आरती नहीं समझ पा रही थी. वह तो सतीश के साथ शादी करने की जिद पर अड़ी हुई थी.

करीब एक हफ्ते से आरती घर वालों के डर से अपने प्रेमी सतीश से मिलने नहीं जा पा रही थी. उसे उन का यह फरमान नागवार गुजर रहा था. उधर सतीश भी आरती से मिलने के लिए बेचैन था. दोनों ही जल बिन मछली की तरह एकदूसरे के लिए तड़प रहे थे.

इस के चलते आरती ने फोन कर के सतीश को 20-21 अगस्त की रात को मिलने के लिए अपने घर के पीछे बुला लिया.

रंगेहाथों पकड़ा गया प्रेमी युगल

अपनी प्रेमिका आरती से मोबाइल पर बात होने के बाद सतीश ने घर वालों के सोने का इंतजार किया. रात साढ़े 12 बजे जब घर वाले सो गए तो वह बाहर की बैठक (कमरे) से निकल कर आरती के घर जा पहुंचा. उस समय आरती के घर वाले भी गहरी नींद में सोए हुए थे. आरती बेसब्री से उसी के आने की बाट जोह रही थी. उसे एकएक पल काटना भारी हो रहा था.

सतीश जैसे ही आरती के घर के पास पहुंचा, फोन करने पर आरती दरवाजा खोल कर बाहर आ गई. दोनों एकदूसरे का हाथ थामे वहीं घर के पीछे झाडिय़ों की आड़ में चले गए. वहां पहुंचते ही दोनों ने एकदूसरे को अपनी बांहों के घेरे में कस लिया. दोनों एकदूसरे से पूरे एक हफ्ते बाद मिले थे.

घर वालों से बेपरवाह हो कर युगल प्रेमी कानाफूसी में इतने मगन हो गए कि उन्हें किसी बात का अहसास ही नहीं हुआ. दोनों ही तनमन से प्यासे थे. वे अपने जज्बातों पर काबू नहीं कर पाए और दो तन एक हो गए.

रंगेहाथों पकड़े जाने पर डर की वजह से सतीश प्रेमिका के घर वालों से अपनी गलती की माफी मांगने लगा. मगर आरती के पिता व भाई के सिर पर खून सवार था. घर वाले दोनों को पकड़ कर पीटते हुए घर में ले आए. बापबेटे डंडे  से सतीश की जम कर पिटाई करने लगे.

अपने प्रेमी की हालत देख कर आरती रो पड़ी. प्रेमी के साथ पकड़े जाने पर आरती ने पिता और भाई से उसे छोडऩे की काफी विनती की. आरती ने उन के सामने हाथ जोड़ कर कहा, ”मैं सतीश के साथ ही जीना और मरना चाहती हंू. इसलिए मारना है तो हम दोनों को ही मार दो, एक को नहीं.’’

कानपुर में टप्पेबाज गिरोह – भाग 2

पुलिस टीमों ने शहर के बाहर शिवली, घाटमपुर, महाराजपुर, जहानाबाद आदि कस्बों में टप्पेबाजी करने वालों की तलाश की. जेल से छूटे पुराने टप्पेबाजों को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की गई, लेकिन कोई ऐसी जानकारी नहीं मिल सकी, जिस से संजय पाल से की गई टप्पेबाजी का खुलासा हो पाता.

पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल के साथ हुई टप्पेबाजी की वारदात एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी के क्षेत्र में हुई थी, इसलिए वह इस वारदात को ले कर कुछ ज्यादा प्रयासरत थीं. उन के दिशा निर्देश में काम कर रही टीम रातदिन एक किए हुए थी. सर्विलांस टीम भी उन के साथ काम कर रही थी.

सर्विलांस टीम ने पुलिस टीम के साथ संजय पाल के घर से घटनास्थल तक मोबाइल टावर डेटा फिल्टरेशन की मदद ली. इस में एक नंबर ऐसा निकला जो वारदात के वक्त घटनास्थल पर एक्टिव था. उस नंबर की लोकेशन यशोदा नगर हाइवे से उन्नाव की ओर मिली थी, इसलिए सर्विलांस टीम ने उस नंबर को लिसनिंग पर लगा दिया.

29 दिसंबर को उस नंबर धारक ने लखनऊ में रहने वाले एक साथी से बात की, जिसे पुलिस ने सुन लिया. इस के बाद एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी की टीम ने मोबाइल लोकेशन के जरिए आलमबाग, लखनऊ से 2 युवकों को धर दबोचा.

रवीना त्यागी ने जब इन युवकों से पूछताछ की तो उन्होंने अपना नाम विनेश और विकास बताया. इन दोनों से रवीना त्यागी ने संजय वन रोड पर हुई 10.69 लाख की टप्पेबाजी के बारे में पूछा तो दोनों साफ मुकर गए. लेकिन जब उन्हें थाना किदवई नगर लाया गया और पुलिसिया अंदाज में पूछताछ हुई तो दोनों टूट गए. उन्होंने 10.69 लाख रुपए की टप्पेबाजी स्वीकार कर ली. उन दोनों ने बताया कि उन का टप्पेबाजी का गैंग है. गैंग के अन्य सदस्य झकरकटी बसअड्डा स्थित गणेश होटल में ठहरे हुए हैं.

इस के बाद पुलिस की चारों संयुक्त टीमों ने झकरकटी स्थित गणेश होटल पर छापा मारा और 3 बैड वाले एक रूम से 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में एक महिला और एक नाबालिग भी था.

इन के पास से पुलिस ने टप्पेबाजी कर के उड़ाया गया बैग बरामद कर लिया. बैग से 10.69 लाख रुपए सहीसलामत मिले. इस के अलावा पुलिस ने गैंग के पास से एक कार, एक वैन, एक बाइक, पेपर स्प्रे, चिली स्प्रे, गुलेल, लोहे के छर्रे, जले हुए मोबिल औयल की बोतल तथा सूजा बरामद किया.

पुलिस की संयुक्त टीम ने टप्पेबाज गैंग के 11 सदस्यों को पकड़ा. इन सभी को बरामद रुपए और अन्य सामान के साथ थाना किदवई नगर लाया गया. पूछताछ में गैंग के सदस्यों ने अपना नाम आकाश, राहुल, प्रेम, राजेश, रामू, अनिकली, विनेश, विकास, नरेश निवासी मदनगीर, दिल्ली तथा वरदराज और नाबालिग एस. विजय निवासन निवासी इंद्रपुरी दिल्ली बताया.

एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने संजय वन रोड पर हुई टप्पेबाजी का खुलासा करने, पूरे गैंग को पकड़ने और टप्पेबाजी का 10.69 लाख रुपए बरामद करने की जानकारी एडीजी अविनाश चंद्र, आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अनंत देव तिवारी को दी.

इस के बाद एसएसपी अनंत देव तिवारी व एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता की, जिस में आरोपियों को पेश किया गया. प्रैसवार्ता के दौरान एडीजी अविनाश चंद्र ने टप्पेबाज गैंग को पकड़ने वाली टीम को एक लाख रुपए तथा आईजी आलोक सिंह ने 50 हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की.

प्रैसवार्ता में टप्पेबाजी के शिकार पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल तथा पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स के पदाधिकारियों को बुलाया गया. संजय पाल ने नोटों से भरे अपने बैग की पहचान की तथा खुलासे के लिए पुलिस की सराहना की.

चूंकि गैंग के सदस्यों ने अपना जुर्म कबूल कर के रुपया भी बरामद करा दिया था. इसलिए किदवईनगर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा ने टप्पेबाजी के शिकार हुए संजय पाल को वादी बता कर भादंसं की धारा 406, 419, 420 के तहत राहुल, प्रेम, राजेश रामू, विकास, विनेश, अनिकली, आकाश, वरदराज, नरेश तथा एस. विजय निवासन (नाबालिग) के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को गिरफ्तार कर लिया. बंदी बनाए गए आरोपियों से की गई पूछताछ में जो घटना सामने आई, उस का विवरण इस तरह है—

कानपुर में पकड़े गए टप्पेबाज विनेश, विकास, आकाश, राहुल व उन के गैंग के अन्य सदस्य मूलरूप से तमिलनाडु के चेन्नै व त्रिची के रहने वाले थे. सालों पहले ये लोग दिल्ली आए और मदनगीर जेजे कालोनी तथा इंद्रपुरी के क्षेत्रों में बस गए. इन क्षेत्रों में इन के 25 डेरे हैं, जो आपस में जुड़े हुए हैं. एक डेरे में 12-13 सदस्य होते हैं.

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इन सदस्यों के समूह को डेरा नाम दिया जाता है. डेरा स्वामी समूह का सरगना होता है. इन की पीढि़यां कई दशकों से अपराध को जीविकोपार्जन का साधन बनाए हुए हैं. इन्हें बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है. इन के गिरोह में पुरुष, महिला व बच्चे सभी होते हैं.

इन के समुदाय के जो लोग अपराध की ट्रेनिंग नहीं लेते और अपराध नहीं करते, उन्हें डेरे के लोग नकारा मानते हैं. उन्हें हीनभावना से देखते हैं. ऐसे निठल्लों की शादी भी नहीं होती.

दिल्ली का डेरा टप्पेबाज गैंग, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली व राजस्थान के विभिन्न शहरों में वारदातें करता था. वह राज्य के जिस जिले में जाता, वहां के बसअड्डों या रेलवे स्टेशनों के आसपास के होटलों में ठहरता. होटल में वैध आईडी दिखा कर ये लोग कमरा बुक कराते थे. चूंकि इन के साथ महिलाएं व बच्चे होते, इसलिए पुलिस भी इन पर शक नहीं करती. ये लोग किराए का वाहन प्रयोग नहीं करते. अपनी कार, वैन या मोटरसाइकिल ही इस्तेमाल करते हैं.

गैंग के शातिर टप्पेबाज बाइक से वारदात को अंजाम देने के लिए निकलते हैं. उन के पीछे कार होती है, जिस में महिला और एक बच्चा भी रहता है. घटना को अंजाम देने के बाद शातिर टप्पेबाज कार में नकदी व जेवरात ले कर बैठ जाते हैं.

पुलिस को चकमा देने के लिए दूसरे साथी नकदी ले कर बाइक से निकल जाते हैं. ज्यादातर वाहन गैंग की महिलाओं के नाम खरीदे हुए होते हैं. वाहन सही नामपते पर रजिस्टर्ड होते हैं, जिस से पुलिस चैकिंग में कभी नहीं पकड़े जाते.

गैंग के शातिर लोग रेलवे क्रौसिंग, जेब्रा क्रौसिंग, रेड लाइट तथा जाम वाली जगहों पर रेकी करते हैं. वहां घटना को अंजाम दे कर ये लोग दूसरे जिले की ओर कूच कर जाते हैं. ये लोग चलती गाड़ी के बोनट पर जला हुआ मोबिल औयल डाल कर शिकार बनाते हैं या फिर चलती गाड़ी रुकवा कर चिली स्प्रे के सहारे टप्पेबाजी करते हैं.

कभीकभी ये गाड़ी का शीशा तोड़ कर नोटों से भरा बैग या अन्य सामान पार कर लेते हैं. कार के टायर में सूजा चुभो कर ये लोग पंक्चर कर के भी गाड़ी से सामान गायब कर देते हैं. कभीकभी ये लोग खुद को क्राइम ब्रांच का अधिकारी या आयकर विभाग का अधिकारी बता कर भी टप्पेबाजी कर लेते हैं.