करोड़ों के लिए सीए की हत्या – भाग 1

वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) श्वेताभ तिवारी की मुरादाबाद में दिल्ली रोड पर बंसल कांप्लैक्स में श्वेताभ ऐंड एसोसिएट नाम से फर्म है, यहीं पर इन का औफिस भी है. श्वेताभ तिवारी यहीं पर प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करते थे. इन के औफिस में करीब 80 कर्मचारी काम करते थे.

बात 5 फरवरी, 2023 की शाम 7 बजे की है. इन का औफिस बंद हो चुका था, लेकिन काम की अधिकता के कारण श्वेताभ तिवारी अपने बिजनैस पार्टनर अखिल अग्रवाल के साथ कार्यालय में बैठे अपना काम निबटा रहे थे. उसी समय श्वेताभ तिवारी के निजी ड्राइवर ने कहा, ‘‘सर, मैं ने गाड़ी लगा दी है.’’

श्वेताभ तिवारी ने कहा कि हमें कुछ जरूरी काम है समय लग जाएगा. इसलिए तुम अपने घर चले जाओ, मैं गाड़ी खुद ड्राइव कर के ले जाऊंगा. पता नहीं कि हमें कितना समय लगे. इतना सुनते ही ड्राइवर अपने घर चला गया था.

रात करीब पौने 9 बजे श्वेताभ तिवारी ने गार्ड नीरज को बुला कर कहा कि औफिस बंद कर के चाबी मुझे दे दो. गार्ड नीरज ने औफिस बंद कर चाबियां श्वेताभ तिवारी को सौंप दीं. इस के बाद श्वेताभ तिवारी और पार्टनर अखिल अग्रवाल औफिस से निकल कर कार में बैठ गए थे. ठीक उसी समय श्वेताभ तिवारी के फोन की घंटी बजी. किसी परिचित या महत्त्वपूर्ण व्यक्ति का फोन था.

वह गाड़ी कादरवाजा खोल कर बाहर आ गए थे. फोन पर बात करतेकरते वह 50 मीटर दूर स्थित बैंक औफ बड़ौदा के एटीएम के पास आकर बात करने लगे. ठीक उसी समय कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने उन्हें गोली मार दी. गोली उन का जबड़ा पार कर निकल गई थी. वह अपनी जान बचाने के लिए तेजी से बंसल कांप्लैक्स की तरफ भागे, लेकिन वह जमीन पर गिर पड़े. हमलावर उन के पीछे था. उस ने उन पर पुन: फायर झोंक दिए.

उन्हें 6 गोलियां मारी गई थीं. एक हमलावर बाइक लिए खड़ा था. श्वेताभ तिवारी गोली खा कर भी तड़प रहे थे. तभी बाइक पर बैठे व्यक्ति ने हमलावर युवक से कहा कि देख वो तो जिंदा है. बाइक पर सवार व्यक्ति से हमलावर युवक ने .315 बोर का तमंचा ले कर 7वां फायर भी झोंक दिया. जब हमलावर ने देखा कि वह शांत हो गए हैं तो वे दोनों बाइक पर सवार हो कर बुद्धि विहार कालोनी, सोनकपुर पुल होते हुए हरथला की तरफ भाग गए थे.

श्वेताभ तिवारी के पार्टनर अखिल अग्रवाल कार में ही बैठे रहे, लेकिन उन्हें गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं दी. वह उस समय फोन से अपने बेटे से बात करने में व्यस्त थे. उस दिन शादियों का सहालग था. श्वेताभ तिवारी का गार्ड नीरज भी बारात देखने के लिए सडक़ पर जाने लगा तो उस ने देखा श्वेताभ तिवारी खून से लथपथ जमीन पर गिरे पड़े हैं. वह भाग कर चिल्लाता हुआ गाड़ी तक आया. उस ने उन के पार्टनर अखिल अग्रवाल को बताया कि साहब श्वेताभ तिवारी जमीन पर गिरे पड़े हैं व खून से लथपथ हैं. यह सुन कर अखिल अग्रवाल भी भाग कर वहां पहुंचे, नजारा बहुत गंभीर था.

अखिल अग्रवाल व गार्ड नीरज ने उन्हें उठा कर गाड़ी में डाला व पास के ही एपेक्स अस्पताल ले गए. वहां पर डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

सीए की हत्या पर लोगों में आक्रोश

इस हादसे की सूचना अखिल अग्रवाल ने मृतक श्वेताभ तिवारी की पत्नी शलिनी को दी. सीए श्वेताभ तिवारी की हत्या की खबर सुन कर पूरे घर में कोहराम मच गया. शालिनी का रोतेराते बुरा हाल था. इस हत्याकांड की खबर सुन कर तमाम एक्सपोर्टर, गणमान्य नागरिक, जन प्रतिनिधि, मुरादाबाद के डीआईजी शलभ माथुर, एसएसपी हेमराज मीणा, एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया, सीओ डा. अनूप सिंह अस्पताल पहुंचे. तुरंत ही घटनास्थल का निरीक्षण किया.

इधर सूचना मिलते ही बरेली से (मुरादाबाद बरेली) रेंज के एडीजी प्रेमचंद्र मीणा भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी मृतक श्वेताभ तिवारी की पत्नी शालिनी व दोस्तों से बात कर घटना की वजह जानने की कोशिश की. पुलिस ने घटनास्थल से 6 खोखे बरामद किए. वहां से सबूत बरामद करने के बाद शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. पोस्टमार्टम में मृतक श्वेताभ तिवारी को 7 गोलियां लगने की पुष्टि हुई.

चूंकि मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए एसएसपी हेमराज मीणा ने एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया के नेतृत्व में 5 पुलिस टीमों का गठन किया. इन टीमों में मुख्यरूप से सीओ डा. अनूप सिंह, एसएचओ (मझोला) विप्लव शर्मा, एसएचओ (सिविल लाइंस) महेंद्र सिंह, एसएचओ (मूंढापांडे) रविंद्र प्रताप सिंह, एसओजी इंचार्ज रविंद्र सिंह, सर्विलांस सेल इंचार्ज राजीव कुमार, एसआई सतराज सिंह आदि को शामिल किया गया.

सब से पहले तेजतर्रार सीओ डा. अनूप सिंह ने मृतक श्वेताभ तिवारी की पत्नी शालिनी से पूछा कि आप को किस पर शक है, किसकिस से आप की दुश्मनी है तो शालिनी ने बताया कि साहब हमारी किसी से कोई रंजिश नहीं है. वह तो बहुत ही सीधेसादे थे. उन का प्रौपर्टी का बड़ा काम था. कहीं भी किसी से उन का कोई झगड़ा नहीं था. उन्हें बस अपने काम से मतलब रहता था, इसी में वह लगे रहते थे.

400 सीसीटीवी फुटेज की जांच

पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के लगभग 400 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक किए, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी. इस के बाद पुलिस ने श्वेताभ तिवारी के औफिस में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को थाने बुला कर उन से पूछताछ की. उन से भी कोई क्लू नहीं मिल पा रहा था. पुलिस ने करीब 8 हजार मोबाइल नंबरों को भी खंगाला, जो उस समय नजदीक टावरों की रेंज में थे. इन में से पुलिस को कोई भी संदिग्ध नंबर नहीं मिला. पुलिस का मानना था कि साजिशकर्ता ने शूटरों से जरूर संपर्क किया होगा.

मृतक श्वेताभ तिवारी की फर्म श्वेताभ एसोसिएट में 4 पार्टनर हैं. एक पार्टनर की मृत्यु हो चुकी है 3 अन्य पार्टनरों से भी पुलिस ने पूछताछ की. इन से भी हत्या के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. पुलिस ने मृतक श्वेताभ तिवारी के घर के नौकर, नौकरानियों ड्राइवरों से भी पूछताछ की, यहां भी पुलिस को निराशा मिली.

इस के बाद पुलिस ने आसपास के टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले, उन से भी हत्यारों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पुलिस ने हत्या के बाद से पूरे शहर की नाकेबंदी कर दी थी. पुलिस यह मान कर चल रही थी कि शूटर बाहर के नहीं, बल्कि यहीं के हैं.

संगीता के प्यार की झंकार – भाग 1

पति के देहसुख से वंचित संगीता जिस युवक के प्यार में पागल थी, उस की नजर कहीं और भी टिकी थी. लखनऊ के बहुचर्चित राम मनोहर लोहिया संस्थान में 28 दिसंबर, 2021 को कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. ओपीडी से ले कर दूसरे विभागों में मरीजों की काफी भीड़भाड़ थी. हर विंडो और डाक्टर के चैंबर के बाहर अफरातफरी का आलम था.

ऐसा ही माहौल भरती वार्ड और जांच करवाने वाले विभागों के भीतर भी था. वहां के मरीज और उन के साथ आए अटेंडेंट ने पाया कि अस्पताल के कर्मचारी ड्यूटी करने के बजाय विरोध जता रहे थे. नतीजा अस्पताल का अधिकतर कामकाज पूरी तरह से ठप हो चुका था.

दरअसल, संस्थान में काम करने वाले चतुर्थ श्रेणी के एक कर्मचारी श्रीराम यादव का 18 दिसंबर, 2021 को अपहरण हो गया था. उसे मार कर नहर में फेंक देने की चर्चा थी, जबकि हत्या के जुर्म में उस की पत्नी संगीता यादव समेत 5 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका था. लेकिन पुलिस लाश बरामद नहीं कर सकी थी.

इस हत्याकांड को ले कर ही संस्थान का स्टाफ गुस्से में था. नर्सिंग संघ के आह्वान पर सभी सुबह 9 बजे से ही हड़ताल पर थे. अस्पताल की स्थिति को देख कर मैनेजमेंट के हाथपांव फूल गए थे. इस की शिकायत जब मैडिकल कालेज के सीएमएस यानी चीफ मैडिकल सुपरिंटेंडेंट तक पहुंची, तब उन्होंने जिला प्रशासन और पुलिस के उच्च अधिकारियों से संपर्क किया.

सीएमएस की सूचना पा पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर ने तुरंत डीसीपी अमित कुमार आनंद और एडिशनल सीपी एस.एम. कासिम आब्दी को लोहिया संस्थान में आई आकस्मिक समस्या का तुरंत समाधान निकालने के लिए कहा. डीसीपी अमित कुमार टीम के साथ अस्पताल पहुंचे. उन्होंने आंदोलनकारियों की बातें सुनीं. उन की मांग को जल्द से जल्द पूरी करने का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि वह पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने और श्रीराम की लाश बरामद करने की कोशिश करेंगे.

श्रीराम यादव (42) अपनी पत्नी संगीता यादव, 3 बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ लोहिया संस्थान के परिसर स्थित सरकारी आवास में रहते थे. उन के पास 18 दिसंबर की देर शाम कार खरीदने के लिए 2 युवक आए थे. श्रीराम ने अपनी कार बेचने के बारे में खास दोस्त अवशिष्ट कुमार को कह रखा था. उन के कहे मुताबिक ही दोनों युवक कार का ट्रायल लेने आए थे.

श्रीराम उन के साथ टेस्ट ड्राइव कराने के लिए चले गए. किंतु देर रात तक घर नहीं लौटने पर परिवार के सदस्य चिंतित हो गए. पत्नी संगीता ने इस की सूचना अपने देवर को दी. उन्होंने रिश्तेदारों व दोस्तों से संपर्क किया, लेकिन श्रीराम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

अगले दिन 19 दिसंबर को भाई मनीष यादव ने विभूतिखंड थाने में उन की खास जानपहचान वाले प्रो. अवशिष्ट कुमार व अन्य अज्ञात युवकों के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट लिखवा दी थी.

पुलिस ने छानबीन के बाद 3 दिन के भीतर ही 22 दिसंबर को बाराबंकी में अयोध्या हाईवे से लिंक रोड पर कुरौली के पास यूपी32 बीएम 5048 नंबर की कार बरामद कर ली, लेकिन तब तक श्रीराम का कोई अतापता नहीं चल पाया.

पति की हत्या में संगीता हुई गिरफ्तार

कार मिलने के बाद घटनास्थल से ले कर लोहिया परिसर के सीसीटीवी कैमरे खंगाले गए. सभी फुटेज में श्रीराम की गाड़ी के पीछे एक कार जाती दिखी. उस के नंबर यूपी78 पीक्यू 2268 से पता चला कि वह कार अवशिष्ट की है, जिस पर श्रीराम के भाई ने एफआईआर में शक जताया था. साथ ही कार 18 दिसंबर, 2021 से ही अवशिष्ट के निवास स्थान परिसर में भी नहीं थी.

इसे आधार बना कर की गई गहन छानबीन के बाद पुलिस टीम ने श्रीराम की पत्नी संगीता समेत अवशिष्ट, संतोष, सुशील व कुंती को गिरफ्तार कर लिया. उन से पूछताछ में श्रीराम की गोली मार कर हत्या किए जाने की बात सामने आई.

उन्होंने स्वीकार कर लिया कि श्रीराम को गोली मार कर उस का शव इंदिरा नहर में फेंक दिया गया है. इस जानकारी के बाद श्रीराम की दोनों बेटियां व एक बेटा पिता की हत्या व मां की गिरफ्तारी से सदमे में आ गए. इस हत्याकांड में सब से बड़े सवाल का जवाब मिलना बाकी था कि आखिर श्रीराम की हत्या क्यों की गई? इसी के साथ कई दूसरे सवालों के जवाब भी तलाशे जाने थे.

इस बारे में डीसीपी (पूर्वी) अमित कुमार आनंद ने अपनी प्राथमिक जांच के आधार पर मीडिया को बताया कि श्रीराम की पत्नी संगीता यादव अवशिष्ट कुमार की प्रेमिका है, जो बाराबंकी के जहांगीराबाद स्थित राजकीय पौलीटेक्निक परिसर में रहता है.

अवशिष्ट मूलरूप से लखीमपुर खीरी का निवासी है. हिरासत में लिए गए दूसरे आरोपियों में कुंती गांधीनगर, बाराबंकी की रहने वाली है. संतोष कुमार बाराबंकी में डखौली गांव और सुशील कुमार अशोक नगर का निवासी है.

विभूतिखंड थाने के इंसपेक्टर चंद्रशेखर सिंह ने उन की गिरफ्तारी के साथसाथ .32 बोर की पिस्टल, तमंचा, 7 कारतूस व एक खोखा और अवशिष्ट से संगीता की 4 फोटो, आधार कार्ड, पैन कार्ड व पोस्ट पेमेंट कार्ड बरामद किया. पुलिस के मुताबिक संगीता का अवशिष्ट के साथ लंबे समय से प्रेमप्रसंग चल रहा था. दोनों चोरीछिपे मिलते रहते थे. अवशिष्ट से बात करने के लिए संगीता ने एक मोबाइल फोन छिपा कर रखा हुआ था.

दिसंबर 2021 की शुरुआत में श्रीराम ने वह फोन देख लिया था. उसे पता चल गया था कि संगीता चोरीछिपे अवशिष्ट से बातें करती है. इसे ले कर पतिपत्नी के बीच काफी झगड़ा हुआ. उस के बाद से श्रीराम पत्नी संगीता पर नजर रखने लगा.

और शुरू हुई लव स्टोरी

संगीता ने जब अवशिष्ट को इस की जानकारी दी, तब दोनों ने श्रीराम को रास्ते से हटाने की साजिश रच डाली. उन्होंने योजना बना कर श्रीराम को मौत के घाट उतार दिया था. इसे अंजाम देने के लिए अवशिष्ट ने जहांगीराबाद में पौलीटेक्निक के पास स्थित तालाब में मछली पालन करने वाले जानकार संतोष व सुशील को राजी कर लिया था.

लोहिया संस्थान में 28 दिसंबर को हंगामे के बाद श्रीराम हत्याकांड को ले कर पुलिस नए सिरे से सक्रिय हो गई. थानाप्रभारी ने संगीता यादव को लखनऊ के बड़े पुलिस अधिकारियों अमित कुमार आनंद, कासिम आब्दी और एसीपी अनूप कुमार सिंह के सामने पेश किया.

संगीता से जब सख्ती से पूछताछ की गई, तब हत्याकांड और उस के पीछे के कारणों का सारा मामला सामने आ गया, जिस में अवशिष्ट कुमार की भूमिका भी काफी संदिग्ध थी. उस के बाद अवशिष्ट कुमार से भी गहन पूछताछ की गई. फिर जो कहानी आई, वह इस प्रकार है—

प्रो. अवशिष्ट कुमार बाराबंकी में फैजाबाद रोड पर राजकीय पौलीटेक्निक कालेज जहांगीराबाद में पिछले 8 सालों से नौकरी कर रहा था. उस के पिता रामनरेश लखीमपुर में रहते हैं. उस का श्रीराम से 2020 में अचानक संपर्क तब हो गया था, जब वह अपने इलाज के सिलसिले में राम मनोहर लोहिया संस्थान में भरती था. वह कोविड-19 का क्वारंटाइन मरीज था. इसी बीच उस की जानपहचान बड़े अधिकारी से ले कर निचले तबके के कर्मचारियों तक से हो गई थी.

वह अकेला था और अपनी देखरेख उसे ही खुद करनी पड़ती थी. यह देख कर वहां काम करने वाला श्रीराम उस की मदद करने लगा था. सहानुभूति दिखाते हुए उस ने अपनी पत्नी संगीता को भी बीचबीच में देखरेख करने के लिए कह दिया. जल्द ही अवशिष्ट की श्रीराम और संगीता से अच्छी जानपहचान हो गई. उस की सेहत में भी काफी सुधार हो गया और अस्पताल से छुट्टी मिल गई. इस के लिए उस ने श्रीराम और उस की पत्नी को तहेदिल से धन्यवाद कहा. जवाब में पतिपत्नी ने उसे एक रोज घर पर आमंत्रित किया.

पुलिस की छाया में कैसे बनते हैं अतीक जैसे गैंगस्टर – भाग 1

उमेश पाल हत्याकांड में पुलिस रिमांड पर भेजे गए माफिया डौन से नेता बने अतीक अहमद और अशरफ ने 15 अप्रैल, 2023 की शाम को बताया था कि उन्हें काफी घबराहट हो रही है. उस वक्त रात के 10 बजने वाले थे. दरअसल, वे 2 दिन पहले ही अतीक के 19 वर्षीय बेटे असद अहमद की पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई थी, जिस से वह विचलित हो गए थे. उसी दिन अतीक की कोर्ट में पेशी हुई थी. वह बेटे की मौत से इतने आहत हो गए थे कि सिर पर पकड़ लिया था.

बेटे की मौत से बेहाल अतीक को बारबार छोटा भाई अशरफ दिलासा दे रहा था. हवालात में उसे जूट के बोरे का बिस्तर मिला था. ऊपर से भिनभिनाते काटते मच्छरों के बीच पुलिस की सख्तियां बनी हुई थीं. उन दोनों से पूछताछ भी जारी थी. थाने की हाजत में अतीक और अशरफ काफी डर गए थे. वे काफी असहज महसूस कर रहे थे.

दोनों की हालत बिगड़ती देख कर धूमनगंज थाने के इंसपेक्टर राजेश कुमार मौर्य ने उन की मैडिकल जांच के लिए तत्परता दिखाई. उन्होंने थाने के 7 एसआई विजय सिंह, सौरभ पांडे, सुभाष सिंह, विवेक कुमार सिंह, प्रदीप पांडे, विपिन यादव, शिव प्रसाद वर्मा एवं एक हैडकांस्टेबल विजय शंकर और 10 कांस्टेबल सुजीत यादव, गोविंद कुशवाहा, दिनेश कुमार, धनंजय शर्मा, राजेश कुमार, रविंद्र सिंह, संजय कुमार प्रजापति, जयमेश कुमार, हरि मोहन और मान सिंह के साथ दोनों को बोलेरो वाहन से रात करीब सवा 10 बजे मोतीलाल नेहरू मंडल चिकित्सालय अस्पताल भेज दिया गया.

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आरक्षी चालक महावीर सिंह गाड़ी चला रहा था. इस काफिले के साथ एक सरकारी जीप भी थी. दोनों को ले कर पुलिस टीम रात करीब साढ़े 10 बजे कोल्विन रोड पर मोतीलाल नेहरू मंडल चिकित्सालय पहुंची थी. अस्पताल के गेट पर गाड़ी खड़ी कर तमाम पुलिसकर्मी अतीक और अशरफ को ले कर अस्पताल की ओर बढ़े, जबकि महावीर सिंह और सतेंद्र कुमार गाडिय़ों की सुरक्षा में वहीं रुक गए.

अस्पताल गेट से 10-15 कदम आगे बढ़ते ही मीडियाकर्मियों का एक हुजूम सुरक्षा घेरे में चल रहे अतीक और अशरफ की बाइट और बयान लेने के लिए अपने कैमरे और माइक के साथ पहुंच गया. उन्होंने सुरक्षा घेरे को तोड़ दिया था और वे अतीक और अशरफ के काफी करीब पहुंच गए. मीडियाकर्मियों को देख कर दोनों भाई बाइट देने के लिए रुक गए, जबकि पुलिस टीम पीछे से उन्हें आगे बढऩे को कहती रही.

मीडियाकर्मियों के सवालों का सिलसिला शुरू हो चुका था. हथकड़ी पहने अतीक और अशरफ पत्रकारों के सवालों के जवाब देने लगे थे. अतीक से पूछा गया कि आप को अपने बेटे को सुपुर्द ए खाक करने के दौरान वहां नहीं ले जाया गया, क्या कहेंगे?

इस पर अतीक ने कहा, ‘‘नहीं ले गए तो हम नहीं गए.’’

यूं बरसीं दनादन गोलियां

ठीक इसी वक्त अशरफ बोल पड़े, ‘‘मेन बात ये है कि गुड्ïडू मुसलिम…’’ उन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी मीडियाकर्मियों की भीड़ में से 2 लोगों ने अपने माइक और आईडी नीचे फेंक दी. उन्होंने तुरंत हथियार निकाल कर अतीक और अशरफ को निशाना बनाया. एक ने अतीक की कनपटी पर पिस्टल सटा दी और दूसरे ने तड़ातड़ फायरिंग शुरू कर दी. वे फायरिंग अत्याधुनिक सेमी आटोमैटिक हथियार से कर रहे थे. इसी दौरान तीसरे कथित मीडियाकर्मी ने भी अतीक और अशरफ को निशाना बना कर फायर करने शुरू कर दिए थे.

जब तक कोई कुछ समझ पाता और पुलिस सचेत हो पाती, तब तक मीडियाकर्मी बन कर आए हमलावरों द्वारा अतीक और अशरफ पर दनादन कई गोलियां दागी जा चुकी थीं. हमलावरों की लगातार हुई फायरिंग से कांस्टेबल मान सिंह भी जख्मी हो गए. उन के दाहिने हाथ में गोली लगी थी. गोलीबारी के बीच आधुनिक हथियार थामे हुए पुलिस वालों ने हमलावरों पर गोली नहीं चलाई और न ही अतीक व उस के भाई को बचाने की कोशिश की. इसे लोगों ने सुनियोजित साजिश बताया.

हमलावर निर्भीकता के साथ ‘जय श्रीराम’ का जयघोष कर भागने लगे, जबकि मीडियाकर्मियों के कैमरे औन थे. वैसे पुलिस को तीनों हमलावरों को लोडेड हथियारों के साथ पकडऩे में सफलता मिल गई. वे भागने में असफल रहे. इस फायरिंग में हमलावरों का एक साथी भी अपने साथियों के साथ फायरिंग के दौरान घायल हो गया.

तब तक घटनास्थल पर अफरातफरी मच गई थी. आसपास की दुकानों के शटर फटाफट गिरने लगे थे. वहां मौजदू बाकी मीडियाकर्मी भी तितरबितर हो गए. हमलावरों की गोली से गंभीर रूप से घायल अतीक और अशरफ को तत्काल अस्पताल के इमरजेंसी में ले जाया गया. वहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. यानी गोली लगने से दोनों भाइयों की मौत हो चुकी थी.

पकड़े गए तीनों युवकों के हाथों से लोडेड हथियार छिटक कर गिर गए थे, वहीं हथियार मीडिया के कैमरों में आ गए थे. फायरिंग के दौरान भगदड़ में कुछ पत्रकार भी घायल हो गए. घटनास्थल को तुरंत सुरक्षित घेरे में ले कर फोरैंसिक जांच कराई गई. साथ ही कांस्टेबल मान सिंह को इलाज के लिए अस्पताल में भरती करवा दिया गया.

हमलावरों की हुई पहचान

इस वारदात से पूरे प्रदेश में सनसनी फैल गई. ऐहतियात बरतते हुए धारा 144 लगा दी गई. मौके से पकड़े गए हमलावरों की पहचान भी जल्द हो गई. एक ने अपना नाम लवलेश तिवारी बताया. वह मात्र 22 साल का था और बांदा में केवतरा क्रौसिंग, थाना कोतवाली निवासी यज्ञ कुमार तिवारी का बेटा है. दूसरा 23 साल का मोहित उर्फ सनी, पुत्र स्वर्गीय जगत सिंह हमीरपुर जिले में कुरारा का रहने वाला है. तीसरे आरोपी ने अपना नाम अरुण कुमार मौर्य, पुत्र दीपक कुमार बताया.

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वह कातरबारी, थाना सोरों, जिला कासगंज का रहने वाला मात्र 18 साल का था. अतीक और अशरफ हत्या के आरोपियों में लवलेश तिवारी, सनी सिंह और अरुण मौर्य की जानकारियों से लोगों को बेहद हैरानी हुई. हैरानी लवलेश की मां आशा देवी को अपने बेटे की करतूत पर भी है. जबकि उस के पिता यज्ञ कुमार अपने बेटे को शुरू से ही नाकारा समझते रहे हैं.

ऊलजुलूल हरकतों के चलते ही घर वालों ने उस से बातचीत बंद कर रखी थी. फिर भी हत्याकांड में उस का नाम आ जाने से जितनी हैरानी पिता को है, उतनी ही परेशान मां आशा देवी हो गई हैं. बताते हैं कि लवलेश पहले बजरंग दल से जुड़ा हुआ था. 2 साल पहले एक लडक़ी को थप्पड़ मारने के आरोप में जेल भी जा चुका है, लेकिन हाल के दिनों में उस की संगति किन के साथ थी, वह क्या करता था, घर वाले इस से अनजान थे.

दूसरा हमलावर सन्नी सिंह पर कुरारा पुलिस थाने में 15 केस दर्ज हैं. वह पुलिस की निगाह में एक छंटा हुआ बदमाश और हिस्ट्रीशीटर है. उस के मातापिता की मौत हो चुकी है और पिछले 10 सालों से अपने घर नहीं गया है. उस के बारे में तहकीकात करने पर पता चला कि वह खूंखार सुंदर भाटी गैंग से भी संबंध रखता है. लवलेश की तरह सन्नी के घर वाले भी उसे पहले से ही खुद से अलग कर रखे हैं.

 

तीसरे आरोपी अरुण कुमार मौर्य की हरकतें भी अपने दोनों साथियों जैसी ही रही हैं. उसे जानने वाले और घर वाले कालिया कह कर बुलाते थे. उस के मातापिता की भी मौत हो चुकी है और पिछले 6 सालों से अपने घर से बाहर रह रहा है. आरोप है कि कुछ समय पहले उस ने जीआरपी थाने में तैनात एक पुलिसकर्मी की जान ले ली थी. तभी से वह फरार चल रहा था.

…और वह खौफनाक मंजर

जिस ने भी अतीक और अशरफ पर हमले का खौफनाक मंजर देखा, वह सिहर गया. और तो और वह कैमरे में भी कैद हो गया. हमले में अतीक अहमद को 8 गोलियां लगीं, जबकि 5 गोलियों से अशरफ धराशाई हो गया. अतीक की मौत तड़पतड़प कर हुई.

ज्योति ने बुझाई पति की जीवन ज्योति – भाग 1

उस दिन अप्रैल 2023 की 18 तारीख थी. सुबह के यही कोई 8 बज रहे थे. उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की अतर्रा कोतवाली के इंसपेक्टर मनोज कुमार शुक्ला अपने कक्ष में मौजूद थे. वह निकाय चुनाव को संपन्न कराने के लिए अपने सहयोगियों के साथ मंथन कर रहे थे. तभी उन के मोबाइल पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव कर जैसे ही ‘हैलो’ कहा, दूसरी ओर से किसी

महिला ने सिसकते हुए पूछा, “क्या आप अतर्रा थाने से बोल रहे हैं?”

“जी हां, मैं अतर्रा कोतवाली से इंसपेक्टर मनोज कुमार शुक्ला बोल रहा हूं. बताइए क्या बात है?”

“सर, नरैनी रोड के पास अज्ञात लोगों ने मेरे पति प्रदीप चौरिहा की हत्या कर दी है.” उस महिला ने भर्राई आवाज में कहा.

“आप कौन बोल रही हैं? और हत्या नरैनी रोड पर किस जगह हुई है? घटनास्थल की जगह ठीक से बताइए, जिस से हम वहां आसानी से पहुंच सकें.” मनोज कुमार शुक्ला ने कहा.

“सर, मेरा नाम ज्योति चौरिहा है. आप नरैनी रोड पर राजेंद्र नगर आ जाइए और प्रदीप का नाम पूछ लीजिए. मोहल्ले के लोग उसे रामू के नाम से जानते हैं. वह मेरे पति का ही मकान है.” ज्योति ने कहा.

“ठीक है, हम जल्द ही पहुंच रहे हैं.” कह कर इंसपेक्टर मनोज शुक्ला ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

चूंकि हत्या का मामला था, अत: उन्होंने आवश्यक पुलिस बल साथ लिया और घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचित कर दिया था. थाने से राजेंद्र नगर की दूरी ज्यादा नहीं थी. अत: कुछ ही देर में वह रामू के मकान पर पहुंच गए.

उस समय वहां मकान के बाहर भीड़ जुटी थी और मकान के अंदर से चीखचीख कर रोने की आवाजें आ रही थीं. वह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ मकान की पहली मंजिल पर पहुंचे, जहां कमरे में मृतक की लाश पड़ी थी. कमरे के अंदर पड़े फोल्डिंग पलंग पर प्रदीप चौरिहा की लाश पड़ी थी.

उस की हत्या किसी धारदार हथियार से गला रेत कर की गई थी. मृतक के कपड़े खून से तरबतर थे. पलंग के नीचे फर्श पर भी खून जमा था. कमरे में एक छोटी मेज पड़ी थी. उस पर शराब की खाली बोतल व गिलास रखा था. बाजार का खाना भी पड़ा था. शायद प्रदीप ने कमरे में बैठ कर शराब पी थी और आधाअधूरा खाना भी खाया था. मृतक की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी और शरीर स्वस्थ था.

फोरैंसिक टीम ने जुटाए सबूत

इंसपेक्टर मनोज शुक्ला अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अभिनंदन, एएसपी लक्ष्मीनिवास मिश्र तथा डीएसपी जियाउद्दीन अहमद भी घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा अनेक लोगों से घटना के संबंध में पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट भी उठाए.

डौग स्क्वायड ने भी घटनास्थल की जांच की. शव को सूंघ कर भौंकते हुए बगल वाले कमरे में गई और वहां कई चक्कर लगाए. उस के बाद वह जीना उतर कर मकान के पिछले दरवाजे से सडक़ पर आई. वह कुछ दूर तक सडक़ पर आगे बढ़ी, फिर वापस आ गई. इस से टीम ने अंदाजा लगाया कि हत्यारे हत्या करने के बाद बगल वाले कमरे में गए, फिर जीना उतर कर पिछले दरवाजे से फरार हो गए.

पुलिस अधिकारियों ने मकान खंगाला तो पाया कि मकान के जिस हिस्से में प्रदीप रहता था, वहां उस ने सीसीटीवी कैमरे लगवा रखे थे. पुलिस अधिकारियों को लगा कि वह फुटेज के माध्यम से हत्यारों की पहचान कर लेगे. लेकिन उन्हें निराशा तब हुई, जब सीसीटीवी कैमरे बंद मिले तथा डिजिटल वीडियो रिकौर्डर (डीवीआर) भी गायब था. अधिकारी समझ गए कि हत्यारे बेहद चालाक है. उन्होंने योजनाबद्व तरीके से हत्या की थी और फरार हो गए.

घटनास्थल पर मृतक की पत्नी ज्योति चौरिहा मौजूद थी. रोरो कर उस का बुरा हाल था. रहरह कर वह बेहोश भी हो जाती थी. पुलिस अधिकारियों ने उसे धैर्य बंधाया और फिर पूछताछ की. ज्योति ने बताया कि उस के पति प्रदीप चौरिहा उर्फ रामू अतर्रा के हिंदू इंटर कालेज में लिपिक थे. लेकिन वह शराब के लती थे. कभी वह यारदोस्तों के साथ शराब पी कर घर आते थे तो कभी घर बैठ कर ही शराब पीते थे.

बीती शाम भी वह शराब की बोतल ले कर घर वापस आए थे. साथ में बाजार से खाना भी पैक करा कर लाए थे. बाहर के खाने को ले कर उस की पति से कहासुनी भी हुई थी. गुस्से में वह अपनी बेटियों को ले कर बगल वाले कमरे में आ गई थी. उस के बाद वह शराब पीते रहे और उसे भद्दीभद्दी गालियां बकते रहे. उन की आवाज जब बंद हो गई तो वह भी सो गई.

सुबह वह सो कर उठी तो उस के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था. उस ने पति को दरवाजा खोलने की आवाज लगाई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. मन में घबराहट हुई तो उस ने भूतल पर रहने वाली किराएदार राखी राठी को काल की और दरवाजे की कुंडी खोलने के लिए कहा. राखी तब ऊपर आई और दरवाजा खोला. उस के बाद वह राखी के साथ पति के कमरे में पहुंची.

वहां उन की लाश पलंग पर पड़ी थी. यह देख उस के मुंह से चीख निकल गई. पति का गला कटा हुआ था. घटना की जानकारी उस की सास निर्मला देवी व देवर संदीप चौरिहा को हुई तो वे भी आ गए. इस के बाद उस ने पुलिस को सूचना दी.

निरीक्षण और पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने मौके की काररवाई निपटा कर प्रदीप के शव को पोस्टमार्टम हेतु बांदा के जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद ज्योति की ओर से अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

चूंकि लिपिक की हत्या का मामला संगीन था, इसलिए एसपी अभिनंदन ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया और मामले के खुलासे के लिए इंसपेक्टर मनोज कुमार शुक्ला के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस का निर्देशन एएसपी लक्ष्मीनिवास मिश्र को सौंप दिया.

इस गठित पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के अनुसार प्रदीप की मौत सांस की नली व गले की हड्ïडी कटने तथा अधिक खून बहने से हुई थी. हत्या का समय रात 2 व 3 बजे के बीच बताया गया था.

इस के बाद पुलिस टीम ने मृतक की पत्नी ज्योति से पूछताछ की तथा उस का बयान दर्ज किया. बयान में ज्योति ने कहा कि उस के पति की हत्या संपत्ति विवाद में की गई है. हत्या किसी और ने नहीं, बल्कि उस के देवर संदीप उर्फ श्यामू ने की है.संपत्ति को ले कर उस के पति व देवर में अकसर झगड़ा होता रहता था.

                                                                                                                                              क्रमशः

प्यार में जब पति ने अड़ाई टांग – भाग 3

एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी ने उस कमरे को देखा, जहां कपिल के द्वारा खुद को गोली मार लेने की बात शिवानी कह रही थी. जिस बिस्तर पर कपिल 3 मार्च, 2023 की रात को सोया था, उस का सिरहाना खून से भीग गया था. श्री त्रिपाठी ने अनुमान लगाया कि जिस वक्त कपिल सो रहा होगा, तभी उसे गोली मारी गई होगी. सिरहाना इसी बात की चुगली कर रहा था. यदि कपिल ने जागती अवस्था में खुद को गोली मारी होती तो पलंग की चादर भीगी होनी चाहिए थी. क्योंकि यदि आदमी बैठ कर कनपटी में गोली मारेगा खून से चादर जरूर भीगेगी न कि केवल सिरहाना.

श्री त्रिपाठी ने कमरे में नजरें दौड़ाई. उस में टेबल और 2 कुरसियां पड़ी थीं. एक पलंग था, जिस पर कपिल अकेला सोता था. साथ वाले कमरे में उस की पत्नी अपने बेटों के साथ सोती थी. अभी तक शिवानी के प्रेमी का नामपता मालूम नहीं हुआ था, मुखबिर पूरी कोशिश कर रहे थे. आखिर एक मुखबिर को मालूम हो गया कि उस युवक का नाम अंकुश प्रजापति है, जो शिवानी से प्रेम करता है.

उस मुखबिर ने यह भी पता निकाल लिया कि अंकुश नंदग्राम में ही रहता है और कपिल के घर से थोड़ी दूरी पर ही स्थित मोबाइल एक्सेसरीज की दुकान पर काम करता रहा है. पुलिस टीम उस दुकान पर पहुंच गई. दुकान मालिक ने पूछने पर बताया कि अंकुश प्रजापति 3 मार्च के बाद से काम पर नहीं आ रहा है. उस का घर का एड्रैस दुकान पर लिखा मिल गया. अंकुश प्रजापति नंदग्राम में ही 100 फुटा रोड पर रहता है. कपिल मर्डर केस का खुलासा करने के लिए पुलिस ने उस के घर पर दबिश दी, लेकिन वह घर से भी फरार था. इसी से वह पूरी तरह शक के दायरे में आ गया.

पुलिस ने उस के गांव का पता ढूंढ निकाला.  अंकुश ग्राम तरेना, थाना डुमरियागंज, जिला सिद्धार्थनगर का मूल निवासी था. वहां पुलिस की टीम भेजी गई, लेकिन वह गांव में भी नहीं पहुंचा था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि वह नंदग्राम में ही कहीं छिपा हुआ होगा.

प्रेमी से कराई हत्या

मुखबिर और पुलिस टीम उस की तलाश में जुट गई. पुलिस को 19 मार्च, 2023 को अंकुश को गिरफ्तार करने में सफलता मिल गई. अंकुश को नंदग्राम में रेत मंडी से दिन में 11 बजे गिरफ्तार कर लिया गया.  थाने ला कर उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने कपिल की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अवैध संबंधों की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

अंकुश नंदग्राम में ही एक मोबाइल एक्सेसरीज की दुकान पर काम करता था. शिवानी अपना मोबाइल फोन वहीं रिचार्ज कराने जाती थी. उसी दौरान की अंकुश से जानपहचान हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. पति के काम पर जाने के बाद शिवानी प्रेमी अंकुश को फोन कर अपने घर बुला लेती थी. इस तरह दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. अंकुश उस के दिल में पूरी तरह समा गया था, इसलिए शिवानी पति को नापसंद करने लगी थी.  बाद में कपिल को उन दोनों के प्रेम संबंधों की जानकारी हो गई तो वह पत्नी से लड़ाईझगड़ा करने लगा था.

रोजरोज की पिटाई से शिवानी तंग आ चुकी थी, इसलिए उस ने प्रेमी अंकुश को पति की हत्या करने के लिए उकसाया. अंकुश इस  के लिए तैयार हो गया. फिर योजना के अनुसार, 3 मार्च, 2023 को शिवानी ने कपिल के खाने में नींद की गोलियां मिला कर खिला दीं. वह बेसुध सो गया तो उस ने फोन कर के अंकुश को घर बुला लिया. कपिल के पास तमंचा रहता था. शिवानी ने संदूक से तमंचा निकाल कर अकुंश को दिया. उस ने बेसुध पड़े कपिल की बाईं कनपटी पर सटा कर गोली मार दी.

पति की हत्या कराने के बाद शिवानी ने प्रेमी अंकुश को घर से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर दिया. इस के कुछ देर बाद उस ने शोर मचा कर पड़ोसियों को जगा दिया. पड़ोसियों को उस ने पति को सुसाइड करने की जानकारी दी. उन की मदद से वह पति को अस्पताल ले गई. जब जीटीबी (दिल्ली) में कपिल को मरा हुआ घोषित किया गया तो शिवानी ने चैन की सांस ली.

अंकुश से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शिवानी को भी गिरफ्तार कर लिया. प्रेमी को थाने में देख उस के होश उड़ गए. फिर उस ने भी हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली. शिवानी उर्फ सीमा और अंकुश प्रजापति से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 25, 27 आम्र्स एक्ट के खिलाफ गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. केस की तफ्तीश एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार में जब पति ने अड़ाई टांग – भाग 2

आत्महत्या की बात पर अड़ी रही शिवानी

पलंग के ऊपर एक देशी तमंचा और पलंग के दाहिनी ओर फर्श पर एक खाली खोखा पड़ा हुआ था. श्री त्रिपाठी ने सावधानी बरतते हुए वह तमंचा रुमाल द्वारा उठाया और खाली कारतूस के खोखे को भी कब्जे में ले लिया. रोने के कारण कपिल की पत्नी शिवानी की आंखें लाल हो गई थीं. वह पास ही खड़ी हो कर अभी भी सुबक रही थी.

“यह घटना कितने बजे की है शिवानी, जब कपिल ने आत्महत्या करने के लिए गोली चलाई?’’ श्री त्रिपाठी ने शिवानी से प्रश्न किया.

“उस वक्त घड़ी में ढाई बज रहे थे साहब. मैं सोई हुई थी. गोली चलने की आवाज से मैं अपनी चारपाई पर उठ कर बैठ गई. पति के कराहने की आवाजें कानों में पड़ी तो मैं चौंक कर इन के कमरे में आई. वो बिस्तर पर गिरे तड़प रहे थे. मैं ने तुरंत अपनी ससुराल फलावदा में इन के भतीजे सचिन को फोन द्वारा इन के आत्महत्या करने की जानकारी दी और मकान मालिक तथा पड़ोसियों की मदद से इन्हें एमएमजी अस्पताल ले कर भागी.’’

“कपिल ने आत्महत्या क्यों की?’’ शिवानी के चेहरे पर नजरें गड़ा कर श्री त्रिपाठी ने पूछा.

“कई दिनों से यह परेशान चल रहे थे, मैं पूछती थी तो कह देते थे कि कामधंधे में सौ प्रकार के टेंशन होते हैं, तुम्हें क्या बताऊं, मैं खामोश हो जाती थी. उसी टेंशन में इन्होंने रात को खुद को गोली मार ली.’’

“तुम पतिपत्नी के बीच सब कुछ ठीक चल रहा था?’’ श्री त्रिपाठी ने पूछा.

“हम खुश थे साहब. कपिल कभी टेंशन नहीं देते थे. काम पर से लौटते थे तो मेरे और बच्चों के लिए खानेपीने का सामान ले कर आते थे. कल भी वह आम ले कर आए थे. हम ने साथ खाना खाया था, वह 10 बजे सोने के लिए अपने पलंग पर आ जाते थे. रात को भी वह 10 बजे अपने पलंग पर सोने के लिए चले गए थे. मैं बच्चों के साथ अपने कमरे में जा कर सो गई थी कि रात को इन्होंने खुद को गोली मार ली.’’

“तुम कैसे कह सकती हो कि गोली कपिल ने खुद चला कर आत्महत्या की है, कोई दूसरा भी तो गोली चला सकता है.’’ श्री त्रिपाठी ने गंभीरता से अपनी बात कही.

“तमंचा तो इन्हीं का ही था साहब. कोई बाहरी व्यक्ति यदि इन्हें मारने आता तो अपना हथियार ले कर आता न कि इन का तमंचा संदूक से निकाल कर इन्हें गोली मारता.’’

“बात तो तुम ठीक कह रही हो.’’ श्री त्रिपाठी ने होंठों को सिकोड़ कर मन ही मन शिवानी के तर्क की प्रशंसा की, लेकिन उन्हें शिवानी के तर्क में एक खामी भी नजर आ गई. वह यह कि कमरे में कपिल की हत्या करने आए व्यक्ति को संदूक से कपिल का तमंचा निकाल कर भी दिया जा सकता है. और यह काम शिवानी ही कर सकती है, क्योंकि उस घर में कपिल के साथ शिवानी ही मौजूद थी.

‘शिवानी ने यदि ऐसा किया है तो क्यों?’ श्री त्रिपाठी को इसी का उत्तर तलाश करना था.

“क्या रात को तुम ने दरवाजा खुला छोड़ा था?’’ श्री त्रिपाठी ने शिवानी के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

शिवानी के खिलाफ मिलते गए ठोस सबूत

शिवानी के चेहरे के भाव बदले. वह थोडा घबराई, फिर खुद को संभालते हुए जल्दी से बोली, ‘‘मैं क्यों दरवाजा खुला छोड़ूंगी साहब, मैं ने रात को अच्छे से दरवाजा बंद किया था. मेरे पति ने जब गोली मारी, तब पड़ोसियों की मदद लेने के लिए मैं ने खुद दरवाजा खोला था.’’

“ठीक है,’’ श्री त्रिपाठी ने खून के नमूने और अन्य साक्ष्य एकत्र करने का काम एसआई हरेंद्र सिंह को सौंप कर उन्हें यह भी हिदायत दे दी कि वह आसपास पड़ोसियों से शिवानी के चरित्र की जानकारी भी गुप्त तरीके से एकत्र करें और उन्हें रिपोर्ट करें. हिदायत देने के बाद श्री त्रिपाठी थाना नंदग्राम की ओर लौट गए.

एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी की आंखों में तीखी चमक उभर आई. वह आगे की ओर झुक गए. उन के सामने एसआई हरेंद्र, हैडकांस्टेबल सगीर खान और कांस्टेबल सोनू मावी बैठे हुए थे. एसआई हरेंद्र ने कुछ ही देर पहले श्री त्रिपाठी को कपिल की संभावित हत्या के पीछे की एक खास जानकारी दी थी. एसआई हरेंद्र की आंखों में झांक कर श्री त्रिपाठी ने पूछा, ‘‘तुम ने जो जानकारी जुटाई है, वह सही है न?’’

“बिलकुल सही है सर. कपिल के आसपास हम ने गुप्त तरीके से शिवानी के चरित्र के विषय में पूछताछ की. 2-4 जगह से हमें बताया गया है कि शिवानी का किसी युवक से इश्कविश्क का चक्कर चल रहा है.  मृतक कपिल और शिवानी के बीच उन्होंने उस युवक को ले कर झगडऩे की आवाजें भी सुनी हैं, जो कभीकभी रात के सन्नाटे में उन्हें सुनाई दे जाती थीं. कपिल शायद अपनी इज्जत को डरता रहा है, इसलिए उस ने कभी ऊंची आवाज में उस युवक को ले कर शिवानी से झगड़ा नहीं किया.

“उस युवक का नामपता मालूम हुआ?’’ श्री त्रिपाठी ने पूछा.

“नहीं, लेकिन मैं ने मुखबिरों को यह पता लगाने के काम पर लगा दिया है सर, बहुत जल्द उस युवक का नामपता मालूम हो जाएगा.’’

“शिवानी को फिलहाल अंधेरे में रखना है मिस्टर हरेंद्र. हमें शिवानी के खिलाफ ठोस सबूत मिल जाएं, तभी शिवानी पर हाथ डाला जाएगा.’’

“ठीक है सर.’’ एसआई ने कहा, ‘‘बहुत सावधानी से मैं उस युवक की जानकारी हासिल करूंगा.’’ एसआई हरेंद्र ने कहा और कुरसी छोड़ दी, ‘‘इजाजत चाहूंगा सर.’’

श्री त्रिपाठी ने सिर हिला दिया. एसआई हरेंद्र हेडकांस्टेबल सगीर खान को साथ ले कर कक्ष से बाहर निकल गए. कपिल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी, उस से श्री प्रदीप त्रिपाठी के इस शक की पुष्टि हो गई कि कपिल ने आत्महत्या नहीं की है, उस की गोली मार कर हत्या की गई है.

प्रेमी अंकुश तक पहुंच गई पुलिस

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, कपिल को हत्या से पहले नींद की गोलियां खिलाई गई थीं. उस को बाईं कनपटी पर बहुत नजदीक से गोली मारी गई थी, जो खोपड़ी के दाहिनी ओर से निकल गई थी. इसी से कपिल की मौत हुई थी. जिस रात कपिल की हत्या की गई, कमरे में उस की पत्नी शिवानी और छोटे बच्चे ही थे. जाहिर था, कपिल को शिवानी ने ही नशे की गोलियां खाने या दूध में मिला कर दी होंगी.

शिवानी शक के दायरे में थी, लेकिन श्री त्रिपाठी उसपर हाथ डालने से पहले उस युवक तक पहुंचना जरूरी समझते थे ताकि शिवानी को गुनाह कुबूल करवाया जा सके.  एसएचओ प्रदीप त्रिपाठी का सोचना था कि शिवानी ने अपने प्रेमी से पति को गोली मरवाई है. कपिल कुमार की हत्याकी पुष्टि हो जाने के बाद 16 मार्च, 2023 को कपिल के भतीजे सचिन की ओर से भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्टदर्ज कर ली गई.

बाहुबली धनंजय सिंह की धमक बरकरार – भाग 3

2 बाहुबलियों की लड़ाई में धनंजय सिंह पर उस हार का असर यह हुआ कि जिले में राजनीतिक महत्त्व कम हो गया. अगले साल जुलाई, 2018 में बागपत जेल में मारे गए मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह ने अपने पति की हत्या की साजिश का आरोप धनंजय सिंह पर लगा दिया. उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा कि धनंजय ने उन के पति की हत्या इसलिए करवा दी क्योंकि वो 2019 का लोकसभा चुनाव जौनपुर से लडऩे वाले थे. हालांकि इस मामले में पुलिस अभी तहकीकात ही कर रही है.

हालांकि मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद 5 जनवरी, 2021 को लखनऊ के गोमतीनगर में अजीत सिंह उर्फ लंगड़ा की गोली मार कर हत्या कर दी गई. अजीत सिंह कभी मोहम्मदाबाद विधानसभा के गोहना ब्लौक का प्रमुख और मुख्तार अंसारी का खास था. इस हत्या में भी धनंजय सिंह का नाम आया. उस के बाद से धनंजय फरार हो गया.

पुलिस ने उस पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित करते हुए गैरजमानती वारंट जारी करा दिया. बावजूद इस वारंट के वह क्षेत्र में खुलेआम घूमता और मैच खेलता दिखा. कहने को तो पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी कर रही थी, लेकिन वह मल्हनी विधानसभा में ही खुलेआम घूम रहा था.

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यहां तक कि 4 जनवरी, 2022 को वह सैकड़ों की संख्या में मौजूद लोगों के बीच क्रिकेट खेलता नजर आया. इस पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर तंज भी कसा था कि बाबाजी (सीएम योगी) माफियाओं की टौप टेन सूची बना कर माफिया भाजपा लीग शुरू कर दें.

यह भी कुछ कम दबंगई का नमूना नहीं था कि फरार होने के दौरान ही धनंजय सिंह ने अपनी तीसरी पत्नी श्रीकला रेड्ïडी को जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जितवा दिया. जबकि श्रीकला रेड्ïडी तेलंगाना की रहने वाली हैं और निप्पो समूह परिवार की एक सदस्य हैं. उस का भाजपा से गहरा संबंध है.

वाई कैटगरी की सुरक्षा पर सवाल

राजनीतिक प्रभाव में कमी आने के बावजूद धनंजय सिंह को वाई कैटेगरी की सुरक्षा मिलती रही. 4 पुलिस वाले घेरा बना कर साथ चलते थे. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब एक विदेशी मीडिया की रिपोर्टर इंटरव्यू के लिए उस के जौनपुर में बनसफा गांव में बने एक विशाल घर में गई, तब उसे आधे घंटे तक इंतजार करना पड़ा.

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फिर गाडिय़ों का काफिला आया, जो टुकड़ों में बंट कर घर के चारों तरफ फैल गया. एक एसयूवी से उतर कर धनंजय सिंह घर के बरामदे में आया, जबकि एक एसयूवी दूसरे मुख्य गेट के बाहर और एक घर के साइड गेट के बाहर खड़ी कर दी गई. गाडिय़ों के बाहर बंदूक कंधे पर लिए 2-2 आदमी खड़े थे.

बातचीत में धनंजय ने 2019 के चुनाव के बारे में बात करते हुए पूर्वांचल में 29 लोकसभा सीटों पर निषाद पार्टी का दबदबा होने की बात कही. धनंजय सिंह ने चुनाव में सीट पर अपनी जीत का दावा किया. पूर्वांचल में ओम प्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद जैसे जाति आधारित नेताओं को प्रभावशाली बताया.

बहरहाल, धनंजय के खिलाफ 2018 में कोर्ट में याचिका दायर होने पर योगी सरकार सकते में आ गई. धनंजय के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास जैसे कुल 2 दरजन से अधिक गंभीर मुकदमे दर्ज हैं. हैरानी की बात तो यह है कि वाई कैटेगरी की सुरक्षा के बीच भी उस के खिलाफ 4 मुकदमे दर्ज हुए.

सुनीत कुमार और डी.बी. भोंसले की पीठ ने उस वक्त के सौलिसिटर जनरल शशि प्रकाश सिंह को तलब कर पूछा था कि आपराधिक इतिहास रखने वाले व्यक्ति की सुरक्षा में पुलिस क्यों लगाई जाए? इस के बाद सरकार पर दबाव बढ़ा और 25 मई, 2018 को सरकार ने सुरक्षा हटा दी. साथ ही सरकार ने कहा कि धनंजय सिंह को मिली सभी जमानतों को खारिज करने के लिए जौनपुर एसएसपी को निर्देश दे दिया गया है, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ.

15 फरवरी, 2022 को एसटीएफ ने धनंजय को गैर जमानती धाराओं से जमानती धाराओं का आरोपी बनाते हुए कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी. जिस के बाद धनंजय को जमानत लेने की जरूरत नहीं पड़ी. उस के बाद ही 17 फरवरी को धनंजय सिंह जनता दल यूनाइटेड मल्हनी सीट के लिए नामांकन किया था. इस कारण धनंजय ने खुल कर चुनाव प्रचार किया.

अपराधों की लंबी सूची होने के बावजूद जनता के बीच धनंजय की अच्छी छवि बनी हुई है. घर पर सुबहशाम कार्यकर्ताओं भीड़ लगी रहती है. नामांकन के दौरान दिए गए हलफनामे के अनुसार धनंजय सिंह के पास 3.56 करोड़ की चल संपत्ति और 5.31 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति है. जबकि तीसरी पत्नी श्रीकला के पास 780 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति है. पत्नी के ऊपर किसी तरह की कोई देनदारी नहीं है.

बाहुबली धनंजय सिंह का राजनीतिक रसूख कम होने के कारण एक पर एक अदालती झटके लगने लगे हैं. पिछले दिनों नमामि गंगे प्रोजेक्ट के मैनेजर अभिनय सिंघल द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट के चलते उसे जेल भी जाना पड़ा था. इस से पहले वह इसी मामले में जमानत पर बाहर था. वैसे धनंजय ने अपने सहयोगी के साथ मिल कर कोर्ट में आरोप खारिज करने का आवेदन दिया था.

मुजफ्फरनगर के रहने वाले अभिनव सिंघल ने एफआईआर दर्ज कराते हुए बताया था कि धनंजय सिंह के सहयोगी संतोष विक्रम अपने सहयोगियों के साथ उन्हें पकड़ कर धनंजय के आवास पर ले गए, जहां पर धनंजय सिंह उन को गाली देते हुए कमरे में ले आए और पिस्टल सटा दी और कहा कि प्रोजैक्ट के लिए निम्न गुणवत्ता की सामग्री सप्लाई करे. जौनपुर में दर्ज इस मामले के तहत अपर सत्र न्यायाधीश ने धनंजय सिंह और उस के सहयोगी संतोष विक्रम के खिलाफ आरोप पत्र तय कर दिया है.

बाहुबली धनंजय सिंह की धमक बरकरार – भाग 2

दरअसल, उस रोज उत्तर प्रदेश पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली थी कि 50 हजार के ईनामी वांटेड क्रिमिनल धनंजय सिंह 3 अन्य लोगों के साथ भदोही-मिर्जापुर रोड पर बने एक पैट्रोल पंप पर डकैती डालने वाला है. पुलिस के लिए यह सूचना महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि तब धनंजय सिंह एक हत्या के आरोप में फरार चल रहा था और उस ने एक ऐसा गैंग बना बना रखा था, जो लूटपाट, डकैती, अपहरण, रंगदारी आदि को बड़ी आसानी से अंजाम दे देता था.

एनकाउंटर की वाहवाही में नप गए 34 पुलिसकर्मी

उस गैंग द्वारा 17 अक्तूबर, 1998 की रात में धावा बोलने की सूचना थी. पुलिस मौके पर पूरे दलबल के साथ पहुंच गई थी. गैंग के लोग भी आ गए. दोनों ओर से जम कर फायरिंग हुई. इस एनकाउंटर में साढ़े 11 बजे के करीब पुलिस ने सभी को मार गिराया. उस के बाद पुलिस ने दावा किया कि मारे गए 4 लोगों में एक धनंजय सिंह है.

यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई. पुलिस को भदोही एनकाउंटर में बाहुबली धनंजय सिंह को मार गिराने की काफी वाहवाही मिली. किंतु पुलिस का यह दावा तब गलत साबित हो गया, जब कुछ महीने बाद फरवरी 1999 में धनंजय सिंह एक केस के सिलसिले में पुलिस के सामने आ धमका.

दरअसल, पुलिस के इस दावे के बाद धनंजय करीब 4 महीने तक अपनी मौत पर खामोश बना रहा. किंतु जब भदोही एनकाउंटर का सच सामने आया, तब सवाल उठा कि धनंजय की जगह पुलिस ने किस का एनकाउंटर कर दिया था? इस सवाल का जवाब इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट से मिला. उस रिपोर्ट के अनुसार जिस दिन पुलिस ने वह एनकाउंटर किया था, उसी दिन भदोही में सीपीएम के कार्यकर्ता फूलचंद यादव ने शिकायत दर्ज करवाई थी. रिपोर्ट में लिखवाया था कि पुलिस जिसे धनंजय सिंह बता रही है, वह उन का भतीजा ओमप्रकाश यादव है.

उन्होंने पुलिस को यह बात बताई, लेकिन पुलिस ने उन की बात नहीं सुनी. ओमप्रकाश यादव समाजवादी पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता था. उन दिनों मुलायम सिंह यादव सदन में विपक्ष के नेता थे. उन्होंने राज्य सरकार पर दबाव बनाया. इस के बाद जांच के आदेश दिए गए और फिर मानवाधिकार आयोग की जांच बैठी.

फिर क्या था, उस एनकाउंटर में शामिल 34 पुलिसकर्मियों पर ही मुकदमा दर्ज हो गया. इस केस की सुनवाई भदोही की स्थानीय अदालत में अभी भी जारी है. इस तरह धनंजय सिंह की दबंगई बनी रही, उलटे पुलिस का ही रिकौर्ड बिगड़ गया.

दल बदलबदल कर बने विधायक और सांसद

धनंजय सिंह की राजनीति की शुरुआत दिवंगत रामविलास पासवान की नई बनी लोक जनशक्ति पार्टी से 2002 में हुई थी. तब धनंजय सिंह ने पार्टी के टिकट पर जौनपुर की रारी विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. जब धनंजय ने जौनपुर की राजनीति में कदम रखा, उस वक्त वहां विनोद नाटे नाम के एक दबंग बाहुबली नेता हुआ करते थे.

विनोद के प्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें नामी बदमाश मुन्ना बजरंगी का भी गुरु कहा जाता था. वह जौनपुर से चुनाव लडऩा चाहते थे और उन्होंने यहां की रारी विधानसभा क्षेत्र से जीतने के लिए काफी मेहनत भी की थी, लेकिन एक सडक़ दुर्घटना में अचानक उन की मृत्यु हो गई.

फिर धनंजय उन की तसवीर को सीने से लगा कर पूरे इलाके में घूमा. इस के बाद धीरेधीरे धनंजय का राजनीतिक कद बढ़ता गया. साल 2004 में कांग्रेस और लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर धनंजय सिंह ने लोकसभा का चुनाव लड़ा.

हालांकि, इस बार उस की किस्मत ने साथ नहीं दिया और हिस्से में हार मिली. इस के बाद साल 2007 में धनंजय ने पार्टी बदल ली और जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो कर फिर दोबारा रारी से विधायक बनने में सफलता हासिल की.

एक साल बाद ही धनंजय ने फिर से पार्टी बदल ली और बसपा का दामन थाम लिया. 2009 में पहली बार उस ने बसपा के टिकट से लोकसभा चुनाव जीता. परिसीमन के बाद रारी के स्थान पर बनी मल्हनी विधानसभा से पिता राजदेव सिंह को विधायक बनाने में मदद की.

पत्नी के चलते अस्त हो गया राजनीतिक करिअर

कहते हैं कि मर्द की तरक्की में पत्नी की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण होती है, लेकिन उस की वजह से कई बार मर्द कितना कमजोर बन जाता है, यह धनंजय सिंह के अलावा और कोई नहीं समझ सकता. उस की दूसरी पत्नी के कारनामे की सजा उसे भी भुगतनी पड़ी. उस के बाद उस का राजनीतिक ग्राफ जो गिरना शुरू हुआ वह आज तक नहीं उठ पा रहा है.

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3 शादियां रचाने वाले धनंजय सिंह की पहली पत्नी मीनू सिंह की मौत शादी के 9 महीने बाद ही संदिग्ध हालत में हो गई थी. वह पटना जिले की रहने वाली थी. उस की लाश धनंजय सिंह के लखनऊ स्थित गोमती नगर वाले घर में मिली थी.

उस के बाद धनंजय ने डा. जागृति सिंह से दूसरी शादी की. वह दिल्ली के ही एक अस्पताल में डेंटिस्ट थी. शादी के बाद 2012 में दिल्ली स्थित साउथ एवेन्यू के सांसद आवास में रहने आ गई थी. उस पर नवंबर 2013 में घरेलू नौकरानी की हत्या का आरोप लग गया था. इस का प्रमाण पुलिस को सीसीटीवी फुटेज से मिला था. इस मामले में धनंजय सिंह पर भी सबूत मिटाने के आरोप लगे थे. बाद में पत्नी से तलाक हो गया, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपनी पार्टी से धनंजय को निष्काषित कर दिया. न केवल सांसदी जाती रही, बल्कि पत्नी के अपराध में साथ देने के आरोप में जेल भी जाना पड़ा.

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उस के बाद से धंनजय सिंह का राजनीतिक पतन शुरू हो गया. हालांकि उस ने अपनी खोई प्रतिष्ठा पाने के लिए साल 2012 के चुनाव में पत्नी डा. जागृति सिंह को विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खड़ा किया, लेकिन वह हार गई. सपा के पारस नाथ यादव ने उसे 31,502 वोटों के अंतर से हरा दिया. कुछ दिन बाद ही जागृति अपनी नौकरानी की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर ली गई. इस मामले के चलते राजनीतिक करिअर को बचाने के मकसद से धनंजय ने जागृति से तलाक ले लिया.

उस के बाद 2014 में लोकसभा और 2017 में विधानसभा में भी जौनपुर से खुद हाथ आजमाया, लेकिन दोनों चुनावों में धनंजय सिंह की करारी हार हुई.

चुनावों में मिली लगातार हार

बताते हैं कि 2017 में विधानसभा चुनाव में हार मुलायम सिंह की वजह से मिली. उस चुनाव में पारिवारिक विवाद से नाराज मुलायम सिंह चुनाव प्रचार के लिए सिर्फ 2 जगह ही गए थे. जिन में से एक जौनपुर का मलहनी विधानसभा क्षेत्र भी था. उन्होंने मंच से सपा के प्रत्याशी बाहुबली नेता पारसनाथ यादव के पक्ष में प्रचार करते हुए सिर्फ इतना कहा कि ‘हम पारस के लिए आए हैं, आप लोग इन्हें जिताएं.’

इस के बाद पूरा खेल पलट गया. बताते हैं कि जो सीट धनंजय के कब्जे में जाती दिख रही थी वो पारस यादव को मिल गई. 2014 में धनंजय को लोकसभा चुनाव में जहां केवल 64 हजार वोट मिले, वहीं कुल पड़े वोटों का 6 फीसदी ही था. 2017 में मल्हनी सीट से निषाद पार्टी से चुनाव लड़ा था. तब पारसनाथ यादव ने 21,210 वोटों से हरा दिया था.

हालांकि पारसनाथ की आकस्मिक मौत होने के बाद 2020 में उपचुनाव हुआ. उस में धनंजय सिंह ने उम्मीदवारी की, किंतु पारसनाथ के बेटे लकी यादव ने धनंजय सिंह को हरा दिया. यहां तक कि इस साल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2022 में भी धनंजय सिंह को हार का सामना भी करना पड़ा है. इस बार उस ने जेडीयू के टिकट से चुनाव लड़ा था. यानी कि 2009 के बाद धनंजय को एक भी चुनाव में जीत नहीं मिल पाई.

                                                                                                                                         क्रमशः

आतंक के ग्लैमर में फंसा सैफुल्ला

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से मध्य प्रदेश पुलिस की सूचना पर लखनऊ में आतंकी सैफुल्ला मारा गया, उसे राजनीतिक नफानुकसान से जोड़ कर देखना ठीक नहीं है. सैफुल्ला की कहानी से पता चलता है कि हद से अधिक धार्मिक दिखने वाले लोगों के पीछे कुछ न कुछ राज अवश्य हो सकता है. धर्म के नाम पर लोग दूसरों पर आंख मूंद कर भरोसा कर लेते हैं. ऐसे में धर्म की आड़ में आतंक को फैलाना आसान हो गया है. अगर बच्चा आक्रामक लड़ाईझगड़े वाले वीडियो गेम्स और फिल्मों को देखने में रुचि ले रहा है तो घर वालों को सचेत हो जाना चाहिए. यह किसी बीमार मानसिकता की वजह से हो सकता है.

मातापिता बच्चों को पढ़ालिखा कर अपने बुढ़ापे का सहारा बनाना चाहते हैं. अगर बच्चे गलत राह पर चल पड़ते हैं तो यही कहा जाता है कि मातापिता ने सही शिक्षा नहीं दी. जबकि कोई मांबाप नहीं चाहता कि उस का बेटा गलत राह पर जाए. हालात और मजबूरियां सैफुल्ला जैसे युवाओं को आतंक के ग्लैमर से जोड़ देती हैं.

धर्म की शिक्षा इस में सब से बड़ा रोल अदा करती है. धर्म के नाम पर अगले जन्म, स्वर्ग और नरक का भ्रम किसी को भी गुमराह कर सकता है. सैफुल्ला आतंकवाद और धर्म के फेर में कुछ इस कदर उलझ गया था कि मौत ही उस से पीछा छुड़ा पाई. कानपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार का सैफुल्ला भी अन्य युवाओं जैसा ही था.

सैफुल्ला का परिवार उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की जाजमऊ कालोनी के मनोहरनगर में रहता था. उस के पिता सरताज कानपुर की एक टेनरी (चमड़े की फैक्ट्री) में नौकरी करते थे. उन के 2 बेटे खालिद और मुजाहिद भी यही काम करते थे. उन की एक बेटी भी थी. 4 बच्चों में सैफुल्ला तीसरे नंबर पर था.

सैफुल्ला के पिता सरताज 6 भाई हैं, जिन में नूर अहमद, ममनून, सरताज और मंसूर मनोहरनगर में ही रहते थे. बाकी 2 भाई नसीम और इकबाल तिवारीपुर में रहते है. सैफुल्ला बचपन से ही पढ़ने में अच्छा था. जाजमऊ के जेपीआरएन इंटरकालेज से उस ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. इंटर में उस ने 80 प्रतिशत नंबर हासिल किए थे.

सन 2015 में उस ने मनोहरलाल डिग्री कालेज में बीकौम में दाखिला लिया. इसी बीच उस की मां सरताज बेगम का निधन हो गया तो वह पूरी तरह से आजाद हो गया. घरपरिवार के साथ उस के संबंध खत्म से हो गए. उसे एक लड़की से प्रेम हो गया, जिसे ले कर घर में लड़ाईझगड़ा होने लगा.

सैफुल्ला के पिता चाहते थे कि वह नौकरी करे, जिस से घरपरिवार को कुछ मदद मिल सके. पिता की बात का असर सैफुल्ला पर बिलकुल नहीं हो रहा था. जब तक वह पढ़ रहा था, घर वालों को कोई चिंता नहीं थी. लेकिन उस के पढ़ाई छोड़ते ही घर वाले उस से नौकरी करने के लिए कहने लगे थे. जबकि सैफुल्ला को पिता और भाइयों की तरह काम करना पसंद नहीं था.

वह कुछ अलग करना चाहता था. अब तक वह पूरी तरह से स्वच्छंद हो चुका था. सोशल मीडिया पर सक्रिय होने के साथ वह आतंकवाद से जुड़ने लगा था. फेसबुक और तमाम अन्य साइटों के जरिए आतंकवाद की खबरें, उस की विचारधारा को पढ़ता था.

यहीं से सैफुल्ला धर्म के कट्टरवाद से जुड़ने लगा. ऐसे में आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन के कारनामे उसे प्रेरित करने लगे. टीवी और इंटरनेट पर उसे वीडियो गेम्स खेलना पसंद था. इन में लड़ाईझगड़े और मारपीट वाले गेम्स उसे बहुत पसंद थे.शार्ट कौंबैट यानी नजदीकी लड़ाई वाले गेम्स उसे खास पसंद थे. वह यूट्यूब पर ऐसे गेम्स खूब देखता था. इस तरह की अमेरिकी फिल्में भी उसे खूब पसंद थीं. यूट्यूब के जरिए ही उस ने पिस्टल खोलना और जोड़ना सीखा.

कानपुर में रहते हुए सैफुल्ला कई लोगों से मिल चुका था, जो आतंकवाद को जेहाद और आजादी की लड़ाई से जोड़ कर देखते थे. वह आतंक फैलाने वालों की एक टीम तैयार करने के मिशन पर लग गया. फेसबुक पर तमाम तरह के पेज बना कर वह ऐसे युवाओं को खुद से जोड़ने लगा, जो आर्थिक रूप से कमजोर थे. सैफुल्ला ऐसे लोगों के मन में नफरत के भाव भी पैदा करने लगा था. उस का मकसद था युवाओं को खुद से जोड़ना और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन की राह पर चलते हुए भारत में भी उसी तरह का संगठन खड़ा करना. युवाओं को वह सुविधाजनक लग्जरी लाइफ और मोटी कमाई का झांसा दे कर खुद से जोड़ने लगा था.

कानपुर में लोग सैफुल्ला का पहचानते थे, इसलिए इस तरह के काम के लिए उस का कानपुर से बाहर जाना जरूरी था. आखिर एक दिन वह घर छोड़ कर भाग गया. घर वालों ने भी उस के बारे में पता नहीं किया. उस ने इस के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को चुना. वहां मुसलिम आबादी भी ठीकठाक है और प्रदेश तथा शहरों से सीधा जुड़ा हुआ भी है. इन सब खूबियों के कारण लखनऊ उस के निशाने पर आ गया.

नवंबर 2016 में सैफुल्ला लखनऊ के काकोरी थाने की हाजी कालोनी में बादशाह खान का मकान 3 हजार रुपए प्रति महीने के किराए पर ले लिया. यह जगह शहर के ठाकुरगंज इलाके से पूरी तरह से सटी हुई है, जिस से वह शहर और गांव दोनों के बीच रह सकता था. यहां से कहीं भी भागना आसान था.

बादशाह खान का मकान सैफुल्ला को किराए पर पड़ोस में रहने वाले कयूम ने दिलाया था. वह मदरसा चलाता था. बादशाह खान दुबई में नौकरी करता था. उस की पत्नी आयशा और परिवार मलिहाबाद में रहता था. मकान को किराए पर लेते समय उस ने खुद को खुद्दार और कौम के प्रति वफादार बताया था.

सैफुल्ला ने कहा था कि वह मेहनत से अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ अपनी कौम के बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा देना चाहता है. अपने खर्च के बारे में उस ने बताया था कि वह कम फीस पर बच्चों को कंप्यूटर के जरिए आत्मनिर्भर बनाने का काम करता है.इसी से सैफुल्ला ने अपना खर्च चलाने की बात कही थी.

उस की दिनचर्या ऐसी थी कि कोई भी उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. अपनी दिनचर्या का पूरा चार्ट बना कर उस ने कमरे की दीवारों पर लगा रखा था. वह सुबह 4 बजे उठ जाता था खुद को फिट रखने के लिए. वह पांचों वक्त नमाज पढ़ता था. कुरआन के अनुवाद तफ्सीर पढ़ता था. वह पूरी तरह से धर्म में रचबस गया था. हजरत मोहम्मद साहब के वचनों हदीस पर अमल करता था. अपना खाना वह खुद पकाता था. दोपहर 3 बजे उस का लंच होता था. शरीयत से जुड़ी किताबें पढ़ता था. रात 10 बजे तक सो जाता था.

रमजान के दिनों में वह पूरी तरह से उस में डूब जाता था. वह बिना देखे कुरआन की हिब्ज पढ़ता था. वह खुद को पूरी तरह से मोहम्मद साहब के वचनों पर चलने वाला मानता था. उसे करीब से देखने वाला समझता था कि इस से अच्छा लड़का कोई दुनिया में नहीं हो सकता. हाजी कालोनी के जिस मकान में सैफुल्ला रहता था, उस में कुल 4 कमरे थे. मकान के दाएं हिस्से में महबूब नामक एक और किराएदार अपने परिवार के साथ रहता था. बाईं ओर के कमरे में महबूब का एक और साथी रहता था. इस के आगे दोनों के किचन थे. दाईं ओर का कमरा खाली पड़ा था और उस के आगे भी बाथरूम और किचन बने थे.

असल में बादशाह खान ने अपने इस मकान को कुछ इस तरह से बनवाया था कि कई परिवार एक साथ किराए पर रह सकें. कोई किसी से परेशान न हो, ऐसे में सब के रास्ते, स्टोररूम और बाथरूम अलगअलग थे. मकान खुली जगह पर था, इसलिए चोरीडकैती से बचने के लिए सुरक्षा के पूरे उपाय किए गए थे. सैफुल्ला ने किराए पर लेते समय इन खूबियों को ध्यान में रखा था और उसे यह जगह भा गई थी.

सैफुल्ला को यह जगह काफी मुफीद लगी थी. जैसे यह उसी के लिए ही तैयार की गई हो. वह समय पर किराया देता था. अपने आसपास वालों से वह कम ही बातचीत करता था. ज्यादा समय वह अपने कंप्यूटर पर देता था. इस में वह सब से ज्यादा यूट्यूब देखता था, जिस में आईएसआईएस से जुड़ी जानकारियों पर ज्यादा ध्यान देता था.

7 मार्च, 2017 को भोपाल-उज्जैन पैसेंजर रेलगाड़ी में बम धमाका हुआ. वहां पुलिस को बम धमाके से जुड़े कुछ परचे मिले, जिस में लिखा था, ‘हम भारत आ चुके हैं—आईएस’. यह संदेश पढ़ने के बाद भारत की सभी सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस सक्रिय हो गई. ट्रेन में हुआ बम धमाका बहुत शक्तिशाली नहीं था, जिस से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था.

पर यह संदेश सुरक्षा एजेंसियों और सरकार की नींद उड़ाने वाला था. पुलिस जांच में पता चला कि यह काम भारत में काम करने वाले किसी खुरासान ग्रुप का है, जो सीधे तौर पर आईएस की गतिविधियों से जुड़ा हुआ नहीं है, पर उस से प्रभावित हो कर उसी तरह के काम कर रहा है. यह खुरासान ग्रुप तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का एक हिस्सा है, जो आईएस से जुड़ा है.

मध्य प्रदेश पुलिस ने जब पकड़े गए 3 आतंकवादियों से पूछताछ की तो कानपुर की केडीए कालोनी में रहने वाले दानिश अख्तर उर्फ जफर, अलीगढ़ के इंदिरानगर निवासी सैयद मीर हुसैन हमजा और कानपुर के जाजमऊ के रहने वाले आतिश ने माना कि वे 3 साल से सैफुल्ला को जानते हैं. वह उन्हें वीडियो दिखा कर कहता था, ‘एक वे हैं और एक हम. कौम के लिए हमें भी कुछ करना होगा.’

उन्होंने बताया था कि सैफुल्ला का इरादा भारत में कई जगह बम विस्फोट करने का है. इस जानकारी के बाद पुलिस को सैफुल्ला की जानकारी और लोकेशन दोनों ही मिल गई थी. इस के बाद पुलिस ने दोपहर करीब ढाई बजे सैफुल्ला के घर पर दस्तक दी. लखनऊ की पुलिस पूरी तरह से अलर्ट थी. उस के साथ एटीएस के साथ एसटीएफ भी थी.

सैकड़ों की संख्या में पुलिस और दूसरे सुरक्षा बलों ने घर को घेर लिया था. आसपास रहने वालों को जब पता चला कि सैफुल्ला आतंकवादी है और मध्य प्रदेश में हुए बम विस्फोट में उस का हाथ है तो सभी दंग रह गए. सुरक्षा बलों ने पूरे 10 घंटे तक घर को घेरे रखा. वे सैफुल्ला को आत्मसमर्पण के लिए कहते रहे, पर वह नहीं माना.

घर के अंदर से सैफुल्ला पुलिस पर गोलियां चलाता रहा. ऐसे में रात करीब 2 बजे पुलिस ने लोहे के गेट को फाड़ कर उस पर गोलियां चलाईं. तब जा कर वह मरा. पुलिस को उस के कमरे के पास से .32 बोर की 8 पिस्तौलें, 630 जिंदा कारतूस, 45 ग्राम सोना और 4 सिमकार्ड मिले.

इस के साथ डेढ़ लाख रुपए नकद, एटीएम कार्ड, किताबें, काला झंडा, विदेशी मुद्रा रियाल, आतिफ के नाम का पैनकार्ड और यूपी78 सीपी 9704 नंबर की डिसकवर मोटरसाइकिल मिली. इस के अलावा बम बनाने का सामान, वाकीटाकी फोन के 2 सेट और अन्य सामग्री भी मिली.

पुलिस को उस के कमरे से 3 पासपोर्ट भी मिले, जो सैफुल्ला, दानिश और आतिफ के नाम के थे. आतिफ सऊदी अरब हो आया था. बाकी दोनों ने कोई यात्रा इन पासपोर्ट से नहीं की थी. सैफुल्ला का ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट मनोहरनगर के पते पर ही बने थे, जहां उस का परिवार रहता था.

सैफुल्ला के आतंकी होने और पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे जाने की खबर जब उस के पिता सरताज अहमद को मिली, तब वह समझ पाए कि उन का बेटा क्या कर रहा था. पुलिस ने जब उन से शव लेने और उसे दफनाने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि सैफुल्ला ने ऐसा कोई काम नहीं किया कि उस का जनाजा निकले.

वह गद्दार था. उस के शव को ले कर वह अपना ईमान खराब नहीं करेंगे.  इस के बाद पुलिस ने सैफुल्ला को लखनऊ के ही ऐशबाग कब्रगाह में दफना दिया था.

सैफुल्ला की कहानी किसी भी ऐसे युवक के लिए सीख देने वाली हो सकती है कि आतंक की पाठशाला में पढ़ाई करना किस अंजाम तक पहुंचा सकता है. ऐसे शहरी या गांव के लोगों के लिए भी सीख देने वाली हो सकती है, जिन के आसपास रहने वाला इस तरह धार्मिक प्रवृत्ति का हो.

आतंकवाद का ग्लैमर दूर से देखने में अच्छा लग सकता है, पर उस का करीबी होना बदबूदार गंदगी की तरह होता है. धर्म के नाम पर दुकान चलाने वाले लोग मासूम युवाओं को गुमराह करते हैं. सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले लोगों को प्रभावित करना आसान होता है.

ऐसे में जरूरत इस बात की है कि युवा और उन के घर वाले होशियार रहें, जिस से उन के घर में कोई सैफुल्ला न बन सके. बच्चे आतंकवादी नहीं होते, उन्हें धर्म पर काम करने वाले कट्टरपंथी लोग आतंक से जोड़ देते हैं. पैसे कमाने और बाहुबली बनने का शौक बच्चों को आतंक के राह पर ले जाता है.

प्यार में जब पति ने अड़ाई टांग – भाग 1

गाजियाबाद शहर के नंदग्राम थाने में किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर सूचना दी कि नंदग्राम में एक व्यक्ति ने गोली मार कर खुद को घायल कर लिया है, उसे इलाज के लिए एमएमजी अस्पताल में भरती करवाया गया है. उस वक्त रात के 3 बज रहे थे.  सूचना मिलते ही नंदग्राम थाने के एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी तुरंत 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर एमएमजी अस्पताल के लिए खाना हो गए. वह अस्पताल पहुंचे तो मालूम हुआ कि उस घायल व्यक्ति की हालत काफी नाजुक थी, इसलिए उसे यूपी से दिल्ली के जीटीबी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया है. यह घटना 4 मार्च, 2023 की है.

एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी दिल्ली के जीटीबी अस्पताल में आ गए. यहां उन्हें बताया गया कि उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई है. श्री त्रिपाठी भारी मन से उस व्यक्ति की लाश का निरीक्षण किया तो चौंक पड़े. उस व्यक्ति के बाईं कनपटी पर गोली का गहरा जख्म था. गोली बाईं कनपटी पर चलाई गई थी, जो उस के सिर के दाहिनी ओर से निकल गई थी. यह देखने से अनुमान लगाया गया कि यह व्यक्ति लेफ्ट हैंडर रहा है.

कनपटी पर मारी थी गोली

लाश के पास एक युवक और एक महिला बैठे रो रहे थे. एसएचओ त्रिपाठी ने युवक के कंधे पर सहानुभूति से हाथ रख कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘इस की मौत का मुझे गहरा दुख है. क्या तुम इस के बेटे हो?’’

“जी नहीं.’’ वह युवक उठ कर सुबकते हुए बोला, ‘‘यह मेरे चाचा कपिल कुमार थे.’’

“ओह!’’ श्री त्रिपाठी ने युवक के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे चाचा लेफ्ट टेंडर थे?’’

“नहीं साहब, मेरे चाचा अपने दाहिने हाथ से सारा काम करते थे.’’

श्री त्रिपाठी के माथे पर बल पड़ गए. उन्होंने फिर से लाश का जख्म देखा. गोली बाईं कनपटी पर ही सटा कर चलाई गई थी. ऐसा कोई दाहिने हाथ से हर काम करने वाला व्यक्ति कभी नहीं कर सकता था. स्पष्ट था कि गोली मृतक ने स्वयं नहीं चलाई है, यानी इसे किसी दूसरे व्यक्ति ने गोली मारी है. सीधेसीधे यह हत्या का केस था.

“अपने चाचा का नाम, पता नोट करवाओ.’’ एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी ने बेभीर स्वर में कहा और साथ आए कांस्टेबल सोनू मावी को नामपता नोट करने का हुक्म दे कर वह कुछ दूरी पर चले गए. उन्होंने इस संदिग्ध घटना की जानकारी डीसीपी निपुण अग्रवाल और एसीपी आलोक दुबे को दे दी. अधिकारियों को यहां आने में समय लग सकता था. श्री त्रिपाठी ने मृतक के भतीजे से घटना की जानकारी लेने के लिए

उस से पूछा, ‘‘तुम्हें इस घटना की जानकारी कैसे हुई?’’

उस युवक का नाम सचिन था. आसू पोंछते हुए उस ने कहा, ‘‘सर, मैं कस्बा फलावदा, मेरठ में रहता हूं. रात को मैं जब अपने कमरे में सो रहा था, मेरे मोबाइल की घंटी बजी तो मेरी नींद टूट गई. इतनी रात को कौन फोन कर रहा है, यह जानने के लिए मैं ने मोबाइल उठाया तो उस पर मेरी चाची शिवानी का नंबर था. चाची शिवानी ने मुझे बताया कि चाचा कपिल ने खुद को गोली मार ली है.

“मैं ने तुरंत घर के लोगों को यह बात बताई और बाइक से नंदग्राम के लिए निकल पड़ा. रास्ते में ही चाची से मालूम हुआ कि चाचा को दिल्ली जीटीबी अस्पताल में रेफर कर दिया गया है, इसलिए मैं सीधा यहां आ गया. यहां डाक्टरों ने चाचा को मृत घोषित कर दिया था.’’

“तुम्हारी चाची शिवानी ने तुम्हें बताया कि तुम्हारे चाचा ने आत्महत्या कर ली है, लेकिन मेरा अनुमान है यह सुसाइड नहीं बल्कि हत्या का मामला है. क्या तुम बता सकते हो, तुम्हारे चाचा को कौन गोली मार सकता है?’’

सच की तलाश में जुटी पुलिस

इस खुलासे से सचिन चौंक पड़ा. उस ने हैरत से एसएचओ त्रिपाठी की ओर देखा और बोला, ‘‘चाचा कपिल तो बहुत सज्जन आदमी थे साहब, उन की तो किसी से दुश्मनी भी नहीं थी.’’

“तुम्हारी चाची और चाचा के बीच कोई अनबन चल रही हो, ऐसा कुछ तुम्हें मालूम है?’’

“पतिपत्नी के बीच हर घर में थोड़ी बहुत खटपट होती ही रहती है साहब. दोनों के बीच कोई बड़ा झगड़ा तो कभी नहीं हुआ और न चाची कभी रूठ कर अपने मायके गईं. मैं अकसर चाचा के घर आताजाता रहता हूं, वहां सब कुछ सामान्य दिखाई देता था. यदि चाचा की हत्या का शक आप को है तो मेरी प्रार्थना है कि आप इस केस की गहराई से जांच करें.’’

“वह तो मैं करूंगा ही, तुम्हारी चाची का भी बयान मुझे लेना पड़ेगा. चूंकि अभी वह बयान देने की स्थिति में नहीं है, उस से बाद में बात की जाएगी.’’ श्री त्रिपाठी ने कहा और दूसरी आवश्यक काररवाई निपटाने में लग गए. करीब एक घंटे बाद गाजियाबाद से डीसीपी निपुण अग्रवाल और एसीपी आलोक दुबे अस्पताल में आ गए. दोनों अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण करने के बाद यही शंका प्रकट की कि कपिल ने आत्महत्या नहीं की है, उस की हत्या की गई है.

एसीपी आलोक दुबे ने अपने निर्देशन में इस मामले की गहनता से जांच करने के लिए थाना नंदग्राम के एसएचओ प्रदीप कुमार त्रिपाठी के नेतृत्व में पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस में एसआई हरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल सगीर खान, कांस्टेबल सोनू मावी आदि को शामिल किया गया. कागजी काररवाई पूरी कर के कपिल की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. निर्देश देने के बाद पुलिस अधिकारी वापस चले गए.

कपिल के पैतृक गांव फलावदा से उस के कई रिश्तेदार जीटीबी अस्पताल आ गए थे. सभी कपिल की पत्नी शिवानी को अपने साथ ले कर नंदग्राम लौट गए. उन के साथ एसएचओ श्री त्रिपाठी भी नंदग्राम के लिए निकले. उन्हें उस जगह की जांच करनी थी, जहां कपिल द्वारा गोली मार कर आत्महत्या करने की बात शिवानी ने बताई थी. वह देखना चाहते थे कि कपिल की पत्नी शिवानी की बात में कितनी सच्चाई है.

घटनास्थल पर मिले कुछ सबूत

कपिल कुमार कस्बा फलावदा, जिला मेरठ का मूल निवासी था. उस के पिता बलवीर सिंह की मृत्यु हो चुकी थी. कपिल कुछ साल पहले काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के शहर गाजियाबाद के नंदग्राम में आ कर रहने लगा था.  नंदग्राम में वह अपनी पत्नी शिवानी उर्फ सीमा और 2 बेटों के साथ कुंदन सिंह रावत के मकान में किराए पर रहता था. कपिल हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति था. उस के परिवार में भी किसी प्रकार की परेशानी नहीं थी. अपनी पत्नी और बच्चों को खुश रखने के लिए वह कोई कमी नहीं छोड़ता था.