3 लव मैरिज के बाद भी बनी रही बेवफा – भाग 3

कुहनी पर पट्ïटी देख कर वह विनोद से बोली, ‘‘मैं किस तरह आप का शुक्रिया अदा करूं, आप ने मेरे घायल बेटे की पट्टी करवाई और उसे छोडऩे घर भी आ गए.’’

“मैं ने अपना इंसानी फर्ज निभाया है,’’ विनोद मुसकरा कर बोला, ‘‘वैसे आप का बेटा है बहुत समझदार. छोटा है लेकिन यह बराबर मुझे अपने घर तक ले कर आया है.’’

“इसे स्कूल से घर तक आने का रास्ता बखूबी पता है. रोज पैदल मेरे साथ स्कूल तक आताजाता है इसलिए.’’ महिला मुसकरा कर बोली, ‘‘शायद आज इस की जल्दी छुट्टी हो गई, तभी यह स्कूल से बाहर निकल आया. वैसे 12 बजे मैं इसे लेने स्कूल जाती हूं.’’ महिला ने कहा.

“जी, लेकिन स्कूल वालों की गलती है, जब तक पेरेंट न पहुंचे, बच्चे को अकेले स्कूल से बाहर नहीं आने देना चाहिए.’’

“हां, यह तो आप ठीक कह रहे हैं. मैं कल स्कूल की आया से कहूंगी.’’

“बिलकुल कहना, ताकि वह आगे ऐसी गलती न करे,’’ विनोद ने कहने के बाद अपना स्कूटर स्टार्ट करना चाहा तो महिला

चौंक कर बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हैं, यहां तक आए हैं तो एक कप चाय पी कर जाइए.’’

“जी, रहने दीजिए.’’

“नहीं, मैं इस मामले में बहुत सख्त हूं, यदि आप चाय नहीं पी कर जाएंगे तो आप से चाय के 10 रुपए वसूल कर लूंगी.’’ महिला ने इतनी बेबाकी से यह बात कही कि विनोद हंस पड़ा, ‘‘अब तो चाय पीनी ही पड़ेगी, क्योंकि मैं 10 रुपए आप को देने के मूड में नहीं हूं.’’

महिला हंस पड़ी, ‘‘मैं तो मजाक कर रही थी. आइए, मैं चाय बनाती हूं.’’ महिला ने विनोद को आदर से अपने कमरे में बिठाया. चाय बना कर लाने तक विनोद शर्मा से वह ऐसे घुलमिल गई जैसे बरसों की मुलाकात हो. उस ने अपना नाम अफसाना बताया. उस ने विनोद से वादा लिया कि वह वहां आता रहेगा. अफसाना मूलरूप से बिहार के सीतामढ़ी की रहने वाली थी, लेकिन बाद में उस का परिवार का सिद्धार्थ विहार में शिफ्ट हो गया.

विनोद से शादी के बाद बन गई भव्या शर्मा..

विनोद शर्मा ने चाय पीने के बाद यह वादा किया कि वह वहां आदिल से मिलने जरूर आया करेगा. उस ने यह वादा किया तो था हफ्ते में एक बार आने का, लेकिन उसे आदिल से ज्यादा अफसाना से लगाव हो गया था. वह शुरू में हफ्ते में एक बार फिर हर दूसरे दिन अफसाना से मिलने आने लगा. इन मुलाकातों ने दोनों के दिलों में प्यार का बीज बो दिया. वे दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे.

दोनों को अब एकदूसरे से मिले बगैर चैन नहीं आता था. एक दिन विनोद शर्मा ने अफसाना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा जो उस ने स्वीकार कर लिया. दोनों ने शादी कर ली और आदिल को साथ ले कर दोनों वृंदावन एनक्लेव में एक किराए का कमरा ले कर रहने लगे. विनोदने अफसाना का नाम भव्या शर्मा रख दिया.

पहले विनोद ही काम पर जाता था, उस की तनख्वाह से खर्चे पूरे नहीं होते थे. इसलिए अफसाना उर्फ भव्या शर्मा ने उसे घर बैठा दिया और खुद घर से बाहर कदम बढ़ा दिए. भव्या ने बताया कि वह आयुर्वेदिक दवा सप्लाई करने का काम करती है. इस सिलसिले में वह अकसर गाजियाबाद से बाहर रहती थी. जब लौटती तो ढेरों रुपया उस के पर्स में होते थे. विनोद की आंखें इतने रुपए देख कर चौंधिया जाती थीं. उसे संदेह होता था कि भव्या दवा बेचने की आड़ में कोई और धंधा करती है.

विनोद ने पुलिस को बताया कि वह घर में रहता था, उस का काम आदिल को स्कूल छोडऩा, लाना और उसे खाना बना कर खिलाने का था. भव्या ने एक प्रकार से उसे घर की औरत बना दिया था, इस बात को वह सहन नहीं कर पा रहा था, जिस से वह टेंशन में रहने लगा तो उस ने शराब पीनी शुरू कर दी. विनोद तब हैरान रह गया जब भव्या भी शराब पीने लगी थी. वह बिजनैस टूर कर के लौटती तो पी कर घर आती या घर में बैठ कर उस के सामने ही शराब पीती. उस ने कई बार भव्या को इस के लिए रोका, लेकिन वह नहीं मानी. इस बात पर दोनों में झगड़ा भी होने लगा था.

तीसरा पति बना हत्यारा…

इस बार वह इंदौर गई तो 24 दिसंबर, 2022 की रात को भव्या ने उसे वीडियो काल की. उस के साथ उस का दूसरा पति अनीस भी था. अनीस अंसारी ने विनोद की वीडियो काल पर भद्ïदीभद्ïदी गालियां दीं और विनोद को जान से मारने की धमकी दी. विनोद इसी बात से गुस्से में था कि भव्या ने उस से शादी कर लेने के बाद भी अपने दूसरे पति का साथ नहीं छोड़ा था. उस का वह पति इंदौर में उस के साथ था. इस से विनोद का खून खौल रहा था.

भव्या 25 तारीख को इंदौर से लौट कर आई तो शराब के नशे में थी. उस का विनोद से झगड़ा हुआ. वह गुस्से में उसे उलटासीधा बकने लगी. झगड़ा अनीस अंसारी को ले कर था, भव्या अभी भी उस के साथ मौजमस्ती कर रही थी. विनोद ने आदिल को खिलौना लाने को 100 रुपए दिए, क्योंकि वह भव्या को सबक सिखाना चाहता था.

आदिल खिलौना लाने के लिए बाजार चला गया तो विनोद ने भव्या पर किचन के चाकू से हमला कर के उसे मौत के घाट उतार दिया. फिर उस ने तौलिए से चाकू साफ किया और उसे अलमारी के पीछे डाल दिया. उस ने भव्या के कपड़े भी चेंज किए. खून वाले कपड़े उस ने वाशिंग मशीन में डाल दिए. उस का फोन भी मशीन में डाल दिया.

आदिल बाजार से आया तो विनोद ने उस से कहा कि उस की मां थकी हुई है, सो रही है, उसे डिस्टर्ब न करे. आदिल अपनी चारपाई पर चला गया तो पकड़े जाने के डर से विनोद वहां से भाग गया.

पुलिस ने विनोद की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू व खून सने कपड़े भी बरामद करा दिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 4

हर रोज सुबह को बीना के सासससुर रेस्टोरेंट पर चले जाते थे. थोड़ी देर बाद देवर सुनील भी रेस्टोरेंट पर चला जाता था. एंजल के स्कूल का समय भी वही होता था. उधर सुधीर भी अपने काम के लिए सुबह को निकलता था तो शाम को वापस लौटता था.  सब के जाने के बाद बीना घर में अकेली रह जाती थी. यह समय उस के लिए उपयुक्त था, इसलिए अगले दिन ही उस ने फोन कर के मृदुल को घर बुला लिया.

बातचीत हुई तो मृदुल बीना से बोला, ‘‘एक बार फिर सोच लो, तुम्हें बहुत कठिन परीक्षा से गुजरना होगा जिस में तुम्हें काफी कष्ट सहना पड़ेगा.’’

‘‘मैं अपने पति के लिए किसी भी परीक्षा से गुजरने को तैयार हूं. हर कष्ट सहूंगी मैं. आप बताइए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘दरअसल, मैं काला जादू करूंगा. इस में थोड़ी तकलीफ तो होती है, पर रिजल्ट एक दम परफैक्ट आता है. अगर थोड़ा कष्ट सह सकती हो, तो कोई परेशानी ही नहीं है.’’

‘‘बताइए तो मुझे करना क्या होगा?’’

मृदुल ने कोई जवाब देने के बजाए पूरे मकान में घूम कर देखा. तभी उसे किचन में काफी ऊपर लगा लोहे का एक जंगला नजर आ गया. उसे देख कर वह बीना से बोला, ‘‘मैं इस जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे में फांसी का फंदा बनाऊंगा. वह फंदा गले में डाल कर तुम्हे स्टूल पर खड़ा होना पड़ेगा. फिर मैं तंत्रमंत्र से अपना काला जादू शुरू कर दूंगा. जब मंत्र पूरे हो जाएंगे तो तुम्हें यह कह कर पैर से स्टूल गिरा देना होगा कि मेरे पति के जीवन में कोई प्रेमिका न रहे. स्टूल गिरने से फांसी का फंदा तुम्हारे गले में कस जाएगा और तुम्हें तकलीफ होने लगेगी.’’

घबराई हुई बीना बड़े ध्यान से मृदुल की बात सुन रही थी. उसे शांत देख मृदुल बोला, ‘‘डरने की जरूरत नहीं है, तुम्हें जब ज्यादा तकलीफ होगी तो इशारा कर देना, मैं तुम्हें संभाल कर फंदा गले से निकाल दूंगा. इस क्रिया में होगा यह कि तुम्हारा गला घुटने से जितनी तकलीफ तुम्हें होगी, उस से चार गुना ज्यादा तकलीफ तुम्हारे पति की प्रेमिका को होगी. इस तरह मौत के डर से वह तुम्हारे पति का खयाल अपने मन से निकाल देगी.’’

एक पल रुक कर मृदुल बोला, ‘‘काले जादू का यह अनुष्ठान पूरे 40 दिन चलेगा, लेकिन रोजाना नहीं बल्कि हफ्ते में एक बार. अगर तुम तैयार हो तो हम आज से ही शुरू कर देते हैं. हां, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है. मैं हूं सब कुछ संभालने के लिए.’’

बीना डर तो रही थी, पर पति को बचाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. इसलिए बिना दूरगामी परिणाम सोचे उस ने हां कर दी. उस की स्वीकृति मिलते ही मृदुल ने जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे पर फांसी का फंदा बना दिया. इस के बाद उस ने बीना को स्टूल पर खड़ा कर के फंदा उस के गले में डाल दिया. शुरू में तो बीना को डर लग रहा था, लेकिन जब मृदुल उस के चारों ओर चक्कर लगा कर मंत्र पढ़ने लगा तो उस का डर कम हो गया.

करीब 20-25 मिनट का आडंबर रचने के बाद मृदुल ने बीना से स्टूल गिराने को कहा तो उस ने पैर से स्टूल गिरा दिया. स्टूल गिरते ही उस का गला रस्से के फंदे में फंस गया, लेकिन मृदुल ने फंदा कुछ इस तरह बनाया था कि उसे तकलीफ तो हो पर गला पूरी तरह न घुटे. इस तरह बीना ने 5-7 मिनट तकलीफ झेली, तत्पश्चात मृदुल ने उसे नीचे उतार लिया. यह सब आडंबर उस ने बीना का विश्वास जीतने के लिए किया था.

बीना का विश्वास जीतने के बाद मृदुल चला गया. बीना को उस पर किसी तरह का कोई संदेह नहीं था. इसी का लाभ उठा कर उस ने ऐसा 2 बार किया. अब बीना स्टूल को लात मार कर बेहिचक नीचे कूदने लगी थी. यानि मृदुल के लिए मैदान साफ था.

योजना पहले ही तैयार थी. 8 जून को रविवार था. उस दिन बीना का फोन आया तो मृदुल शाम 7 बजे अपने पिता श्याम कुमार और मनीष धूसिया के साथ उस के पास पहुंच गया. मनीष को उस ने इसलिए बाहर छोड़ दिया ताकि वह बाहर नजर रख सके. अपने पिता श्याम कुमार के साथ वह अंदर चला गया.

उस दिन मृदुल ने बीना से कहा, ‘‘आज आखिरी पूजा है, इसलिए मैं अपने चेले को भी साथ लाया हूं. आज काम हो जाएगा और अब किसी पूजा पाठ या तंत्रमंत्र की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’ सुन कर बीना खुश हो गई. उस दिन भी मृदुल ने पूरी क्रिया दोहराई, लेकिन इस से पहले उस ने रस्सी में बने फांसी के फंदे को थोड़ा ढीला कर के ऐसा बना दिया था कि बीना के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. इस बार बीना को न बचाना था, न वह बच सकी. मृदुल और श्याम कुमार के सामने ही उस ने छटपटाते हुए दम तोड़ दिया.

बीना के घर आनेजाने के चक्कर में मृदुल को यह पता चल गया था कि थोड़ी सी कोशिश कर के जीने की कुंडी अंदर की तरह बाहर से भी खोली और बंद की जा सकती है. जाते वक्त उस ने इसी का लाभ उठाया. अपना काम कर के बाप बेटे मनीष धूसिया को ले कर वहां से फार हो गए.

पूरी कहानी पता चलने के बाद पुलिस ने मनीष धूसिया, रूबी यादव और तांत्रिक अकबर शाह उर्फ शाकिर अली को भी गिरफ्तार कर लिया. श्याम कुमार को शुक्लागंज उन्नाव से पकड़ा गया. सभी आरोपियों को पुलिस ने 15 जुलाई को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. फिलहाल सभी जेल में हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

3 लव मैरिज के बाद भी बनी रही बेवफा – भाग 2

घटनास्थल पर इलाके के लोगों की अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई थी. भीड़ पुलिस वैन को देख कर इधरउधर हट गई. इंसपेक्टर अनीता चौहान अपनी टीम के साथ उस कमरे में आ गईं, जिस में भव्या की लाश पड़ी हुई थी.

भव्या शर्मा के पेट पर चाकू का गहरा घाव था, जिस से खून बह कर फर्श पर फैल चुका था. उस की लाश पीठ के बल पड़ी हुई थी. इंसपेक्टर अनीता चौहान ने लाश का मुआयना किया. मृतका भव्या चेहरेमोहरे से बेहद खूबसूरत थी, उस की उम्र लगभग 35 वर्ष की लग रही थी. उस के शरीर पर जो सलवारकुरती थी, वह अस्तव्यस्त थी. सलवार का नाड़ा ठीक से नहीं बंधा था.

लाश के पास ही खून सना एक तौलिया पड़ा था. इंसपेक्टर अनीता ने इस हत्या की सूचना अधिकारियों को देने के बाद फोरैंसिक टीम और फोटोग्राफर को घटनास्थल पर आने के लिए फोन कर दिया.

पुलिस जुटी जांच में…

थोड़ी देर में पुलिस के अधिकारी और फोरैंसिक टीम फोटोग्राफर के साथ वहां आ गई. आला अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर अनीता चौहान को इस केस का हल करने की जिम्मेदारी सौंप दी. अनीता चौहान के सामने कत्ल करने वाले आरोपी विनोद शर्मा का नाम आ गया था. टीपू ने उसी पर अपना संदेह जताया था.

विनोद शर्मा यहां होगा, यह सोचना भी मूर्खता होती. अकसर कत्ल करने के बाद हत्यारा मौके फरार हो जाता है. विनोद शर्मा भी भाग गया होगा. उस की तलाश करने के लिए उस का हुलिया फोटो और उस के घर वालों तथा यारदोस्तों की जानकारी हासिल करना जरूरी था.

भव्या शर्मा मर्डर का खुलासा हो चुका था, अब उस के आरोपी को गिरफ्तार करना बाकी था. इंसपेक्टर अनीता चौहान ने मृतका के भाई टीपू को बुला कर विनोद शर्मा का हुलिया और एक फोटो हासिल किया. आदिल वहीं खड़ा सुबक रहा था. वह उस के पास आ गईं. आदिल 8 साल का हो गया था, वह नासमझ नहीं था. उस से इस हत्या की बाबत बहुत कुछ जानकारी मिल सकती थी.

उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ रख कर पूछा, ‘‘तुम्हारे पापा और मम्मी का क्या अकसर झगड़ा होता रहता था?’’

“हां, पापा मेरी अम्मी को मारतेपीटते भी थे. कुछ दिनों से वह रोज अम्मी से लड़ाई कर रहे थे.’’ आदिल ने सुबकते हुए बताया, ‘‘कल भी अम्मी जब इंदौर से लौट कर घर आई थी, पापा उस से लडऩे लगे थे.’’

“किस बात पर लड़े थे तुम्हारे पापा?’’ इंसपेक्टर अनीता ने पूछा.

“पापा कह रहे थे कि अम्मी मेरे असली पापा के साथ इंदौर में क्यों थी?’’

“तुम्हारे पापा यानी अनीस अंसारी? वह तुम्हारी अम्मी के साथ इंदौर गए थे?’’

“मालूम नहीं, अम्मी तो यहां से अकेली ही इंदौर गई थी. हो सकता है मेरे पापा अनीश वहां मिल गए हों?’’

“क्या तुम्हारी अम्मी बाहर जाती रहती थी?’’

“हां, वह दवा खरीद कर उसे बेचने बाहर जाती रहती थी.’’

“तुम्हारे पापा का कल तुम्हारी अम्मी से झगड़ा हुआ था, तब क्या तुम वहां मौजूद थे?’’

“था, लेकिन विनोद पापा ने मुझे सौ रुपए दे कर खिलौना लाने के लिए बाजार भेज दिया. मुझे चाबी वाली कार चाहिए थी, जिस की मैं कई दिनों से जिद कर रहा था. पापा ने रुपए दिए तो मैं बाजार चला गया. जब मैं वापस आया तो अम्मी फर्श पर मरी पड़ी थी, उन के पेट से खून बह रहा था. पापा वहां नहीं थे. मेरे पापा विनोद ने ही मेरी अम्मी को मारा है.’’

आरोपी विनोद की हुई तलाश…

टीपू पास आ गया था. इंसपेक्टर अनीता ने विनोद के घर वालों और उस के खास दोस्तों के विषय में उस से जानकारी ली. टीपू ने विनोद शर्मा का एक एड्रैस और बताया. वह विजय शर्मा का बेटा था जो ईपी-25/16, नई बस्ती, थाना अर्जुन नगर, जिला गुरुग्राम, हरियाणा में रहते थे. आवश्यक काररवाई निपटा लेने के बाद इंसपेक्टर अनीता चौहान ने भव्या शर्मा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

टीपू के द्वारा वादी के रूप में विजयनगर थाने में उसी दिन भादंवि की धारा 302 के तहत भव्या की हत्या का मामला पंजीकृत कर लिया गया. विनोद शर्मा वांछित अपराधी था. उस के फोटो की कौपियां पुलिस टीम को दे कर उन्हें विनोद की खोज में लगा दिया गया. अनीता चौहान ने अपने खास मुखबिर भी विनोद शर्मा की तलाश में दौड़ा दिए.

गाजियाबाद के बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन, ढाबों, होटलों में विनोद शर्मा की तलाश की जाने लगी. पुलिस की एक टीम को उस के पैतृक घर गुडग़ांव भेजा गया. पुलिस की मुस्तैदी और मुखबिरों की भागदौड़ का परिणाम अच्छा ही निकला. 2 दिन बाद एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीम ने विनोद शर्मा को डीपीएस कट के पास दिन में करीब साढ़े 11 बजे गिरफ्तार कर लिया.

भव्या शर्मा की हत्या 25 दिसंबर, 2022 को रात में की गई थी और 28 दिसंबर, 2022 को दोपहर में विनोद को गिरफ्तार कर लिया गया. यह पुलिस की बहुत बड़ी सफलता थी. विनोद शर्मा को थाना विजयनगर में लाया गया. वह समझ चुका था कि पुलिस ने उस पर हाथ क्यों डाला है. वह अब कुछ भी छिपाना नहीं चाहता था.

अनीता चौहान ने जब उस से सामने बिठा कर पूछताछ शुरू की तो उस ने अपनी पत्नी भव्या शर्मा हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह एक खुद्दार पति के विश्वास और पत्नी के प्रति समर्पण को पूरी तरह ठेस पहुंचाने वाली थी.

इस तरह हुआ अफसाना के घर आनाजाना…

नई बस्ती थाना अर्जुन नगर, गुडग़ांव (हरियाणा) का रहने वाला था विनोद शर्मा. वह दिल्ली से सटे गाजियाबाद में किराए का कमरा ले कर एक फैक्ट्री में काम करता था. शुरू से विनोद को अच्छा पहनने व खाने का शौक था. यहां भी वह जो कमाता था, अपने पहनने खाने पर खर्च कर देता था. कुछ पैसे जोड़ कर उस ने एक स्कूटर खरीद लिया था, उसी से वह अपनी फैक्ट्री आताजाता था.

एक दिन वह अपने काम पर जा रहा था तो उस ने सडक़ किनारे एक बच्चे को रोते हुए देख कर अपना स्कूटर रोक लिया. बच्चे की कुहनी छिली हुई थी, उस में से खून बह रहा था. विनोद ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटे,

तुम रो क्यों रहे हो?’’

“एक रिक्शे वाला टक्कर मार कर गिरा गया मुझे…’’ बच्चे ने रोते हुए बताया.

“ओह!’’ विनोद ने उसे प्यार से पुचकारा, ‘‘तुम कहां रहते हो?’’

“विजय नगर में. अम्मी मुझे लेने आएंगी.’’

“तुम अपना घर जानते हो?’’

“हां,’’ बच्चे ने सिर हिलाया.

“चलो, पहले मैं तुम्हारी डाक्टर से पट्ïटी करवाता हूं. फिर तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा.’’

विनोद ने बच्चे को स्कूटर पर बिठाया और एक डाक्टर के पास ले जा कर उस की कुहनी पर पट्टी करवा दी. इस के बाद बच्चे को ले कर उस के द्वारा बताए एक मकान के सामने पहुंच गया.

“यही है मेरा घर,’’ बच्चा स्कूटर से उतर कर बोला. विनोद ने अपने स्कूटर को जब तक स्टैंड पर खड़ा किया, बच्चा दौड़ कर अपने कमरे में चला गया. जब वह बाहर आया तो उस के साथ एक 30-31 साल की सुंदर महिला थी.

“मुझे यह अंकल ले कर आए हैं अम्मी.’’ बच्चे ने अपनी मासूम आवाज में कहा. महिला ने हैरान नजरों से विनोद को देखा,

‘‘आदिल आप को कहां मिल गया, इसे तो स्कूल में छोड़ा था मैं ने?’’

“जी, यह स्कूल के सामने सडक़ पर खड़ा रो रहा था. कोई रिक्शेवाला इसे टक्कर मार गया होगा, कुहनी से खून बह रहा था. मैं ने डाक्टर से पट्टी करवा दी है.’’

“अरे, यह तो मैं ने देखा ही नहीं.’’ महिला घबराए स्वर में बोली और नीचे झुक कर अपने बेटे आदिल की कुहनी देखने लगी.

3 लव मैरिज के बाद भी बनी रही बेवफा – भाग 1

“मैं जबलपुर जा रही हूं विनोद, आदिल का ध्यान रखना.’’ भव्या ने अपना सफारी बैग तैयार करते हुए कहा.

“अरे!’’ विनोद शर्मा के चेहरे पर आश्चर्य उमड़ आया, ‘‘अभी 2 दिन पहले ही तो तुम जबलपुर से लौटी हो. फिर जबलपुर..?’’

भव्या ने आंखें नचाईं, ‘‘क्यों, क्या दोबारा जबलपुर जाने की सरकार द्वारा पाबन्दी लगी हुई है?’’

“मेरा यह आशय नहीं है भव्या, जबलपुर एक बार क्या सौ बार जाओ, भला वहां जाने की कैसी पाबंदी. मैं तो कह रहा हूं तुम परसों ही जबलपुर हो कर आई हो, अब फिर जा रही हो.’’

“मेरा काम ही ऐसा है विनोद. मुझे दवा सप्लाई करनी होती है, दवा की दुकानों से और्डर लेने होते हैं. मेरा आनाजाना तो लगा ही रहेगा.’’

“तुम्हें कितनी बार कहा है, मुझे काम करने दो, तुम घर का चूल्हा संभालो, लेकिन तुम्हेें मेरा काम पर जाना पसंद ही नहीं है.’’

“मैं जो कर रही हूं, वह तुम नहीं कर पाओगे, फिर तुम्हें घर रहने में क्या परेशानी है, तुम्हें मैं पूरी सुखसुविधा तो दे रही हूं…’’

“यही तो परेशानी है भव्या, तुम्हारे टुकड़ों पर पल रहा हूं. लोग मुझे ताना मारने लगे हैं, निकम्मा और कामचोर समझने लगे हैं.’’ विनोद गंभीर हो गया.

“लोग मेरे मुंह पर तो कुछ नहीं बोलते, तुम्हें कौन बोलता है, बताओ, मैं उस की जुबान खींच कर हाथ में दे दूंगी.’’ भव्या गुस्से से बोली, ‘‘मैं कमा रही हूं. घर मेरा है, उस का खर्च कैसे चलता है, उन्हें क्या लेनादेना… मैं…’’

“बस.’’ विनोद ने उस की बात काट कर जल्दी से कहा, ‘‘अब गुस्सा बढ़ा कर अपना दिमाग खराब मत करो. बैग तैयार हो गया है तो जाओ, मैं आदिल की देखभाल कर लूंगा. हां, जा रही हो तो मुझे हजार रुपए देती जाओ.’’

“इतने रुपयों का क्या करोगे?’’

“आदिल को चीज दिलानी होती है और रात को मुझे अकेले नींद नहीं आती है, शराब के एकदो पैग पी लेता हूं तो सुकून मिल जाता है.’’

“बस एक साल का सब्र कर लो. मैं एक साल में अच्छा सा मकान ले लूंगी, थोड़ा जरूरत का सामान भी बना लूंगी, तब तुम्हारे साथ ही सोया करूंगी.’’ भव्या ने मुसकरा कर कहा और पर्स में से 5-5 सौ के 2 नोट निकाल कर विनोद की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘रख लो, तुम भी क्या याद रखोगे एक कमाऊ बीवी से नाता जुड़ा है.’’

विनोद शर्मा इस बात पर खुल कर हंसने वाला था, लेकिन उस की नजर भव्या के पर्स से झांक रहे 5-5 सौ रुपयों की गड्डी पर चली गई. इतने रुपए देख कर उस के दिमाग में धमाके होने शुरू हो गए ‘उस की पत्नी भव्या अनैतिक काम करती है… वह अपना जिस्म बेचती है… घर में हरे नोटों की रेलमपेल ऐसे ही नहीं हो रही. आयुर्वेदिक दवा का छोटा सा कारोबार इतनी मोटी कमाई नहीं दे सकता. भव्या बदचलन है, भव्या से शादी कर के वह धोखा खा गया है.’

भव्या कब अपना बैग उठा कर निकल गई, विनोद को पता ही नहीं चला. वह भव्या को ले कर बुरे खयालों के भंवरजाल में उलझता जा रहा था.

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के थाना विजय नगर में रोजाना की भांति कामकाज हो रहा था. इस थाने की इंसपेक्टर अनीता चौहान थी, जो अपने कक्ष में बैठी एक लूट व चोरी के मामले की फाइल देख रही थी कि कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी ने दरवाजे पर दस्तक दी. प्रभारी निरीक्षक ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखा. कांस्टेबल अक्षय को दरवाजे पर देख कर उन्होंने उसे अंदर आने की अनुमति दे दी. कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी ने उन की मेज के पास आ कर सैल्यूट करने के बाद बगैर किसी भूमिका के कहा,

‘‘आवास विकास कालोनी वृंदावन एनक्लेव में एक महिला का कत्ल हो गया है मैडम.’’

“ओह!’’ हाथ में पकड़ी कलम इंसपेक्टर अनीता चौहान के हाथ से छूट कर फाइल पर गिर गई, वह चौंकते हुए बोली,

‘‘सुबहसुबह यह खबर तुम्हें कहां से मिल गई अक्षय?’’

“मैडम, वादी टीपू यहां आया है, उसी ने यह खबर दी है.’’

“कहां है टीपू, उसे अंदर बुलाओ.’’ कुरसी की पुश्त से लगती हुई अनीता चौहान ने कहा. कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी बाहर चला गया. कुछ ही देर में वह एक व्यक्ति के साथ अंदर आया. अनीता चौहान ने उस व्यक्ति को सिर से पांव तक देखा. वह बहुत घबराया हुआ था.

“क्या नाम है तुम्हारा?’’ अनीता चौहान ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

“जी, मेरा नाम टीपू है. मैं वृंदावन एनक्लेव की 9/2763 आवास विकास कालोनी में रहता हूं. मेरे बहन और जीजा भी इसी कालोनी के मकान नंबर 9/2556 में रहते हैं. मेरी बहन भव्या शर्मा का रात को मेरे जीजा विनोद शर्मा ने मर्डर कर दिया है.’’

“मर्डर तुम्हारे जीजा विनोद शर्मा ने किया है, यह तुम किस आधार पर कह रहे हो?’’ इंसपेक्टर चौहान ने हैरानी से पूछा.

“मेरी बहन के बेटे आदिल ने मुझे बताया है कि कल शाम से उस की मां भव्या और पिता विनोद शर्मा में जम कर झगड़ा हुआ था. वह कत्ल होते नहीं देख पाया, क्योंकि झगड़ा बढऩे पर उस को विनोद ने खिलौना लाने के लिए बाहर भेज दिया था.’’

“बैठ जाओ.’’ इंसपेक्टर अनीता चौहान ने हाथ का इशारा कर के कहा तो टीपू सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया.

“क्या तुम्हारी बहन ने अपने समाज से बाहर शादी की थी? यह विनोद शर्मा…’’

“विनोद शर्मा हिंदू ही है मैडम. मेरी बहन बेबी उर्फ अफसाना ने उस से तीसरी शादी की थी. तब उस का नाम भव्या शर्मा रख दिया गया था.’’

“क्या कह रहे हो?’’ चौंक कर प्रभारी निरीक्षक ने टीपू की ओर देखा, ‘‘तुम्हारी बहन ने 3-3 शादियां की थीं?’’

4 नाम, 3 शादियां, 2 बार बदला धर्म…

“जी हां,’’ टीपू ने बताया, ‘‘मेरी बहन बेबी उर्फ भव्या ने अपनी मरजी से पहली शादी 2004 में दिल्ली के रहने वाले योगेंद्र कुमार से की थी. योगेंद्र से शादी कर उस ने अपना नाम अंजलि रख लिया था. उस से उसे एक बेटा निहाल हुआ था, जो अब 16 साल का हो चुका है. योगेंद्र से नहीं बनी तो उस ने 2017 में अनीस अंसारी से निकाह कर लिया. अनीस से शादी कर वह अफसाना बन गई. आदिल अनीस अंसारी का ही बेटा है. मेरी बहन की अनीस से भी पटरी नहीं बैठी तो उस ने 2019 में विनोद शर्मा से शादी कर ली. आदिल इसी के साथ रहता आया है. उस ने तीनों ही लवमैरिज की थीं.’’

“हूं, अब बात मेरी समझ में आई है. नामों के घालमेल ने मुझे तो उलझा ही दिया था.’’ इंसपेक्टर अनीता चौहान हलके से मुसकरा दीं. मन ही मन वह भव्या की स्वच्छंद जिंदगी का अनुमान कर इतना तो समझ ही चुकी थी कि भव्या शर्मा उर्फ अफसाना उर्फ बेबी रंगीन तबीयत की महिला रही है, जिस की एक भी पति से पटरी नहीं बैठ पाई है.

फिलहाल मामला हत्या का था, इसलिए कुछ ज्यादा न पूछ कर रोजनामचे में अपनी रवानगी दर्ज करके एसआई योगराज सिंह, हैडकांस्टेबल अमित राय और कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी को साथ ले कर टीपू के साथ घटनास्थल वृंदावन एनक्लेव की आवास विकास कालोनी के लिए रवाना हो गई.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 3

बीना समझ गई कि उसी की वजह से उस के घर में आग लगी हुई है. वह अपने गुस्से को जब्त नहीं कर सकी और उस ने रूबी के बाल पकड़ कर उस की धुनाई करनी शुरू कर दी. जरा सी देर में आसपड़ोस के लोग जमा हो गए. जब बीना ने उन्हें हकीकत बताई तो रूबी मुंह छिपा कर वहां से चली गई.

पिटपिटा कर रूबी लौट तो आई पर उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह बीना से बदला जरूर लेगी. लेकिन सवाल यह था कि कैसे? क्योंकि वह खुलेआम कुछ करती तो सुधीर उस से दूर जा सकता था. दूसरे जेल जाने का भी डर था, इसलिए उस दिन के बाद वह इस मुददे पर गंभीरता से सोचने लगी.

एक दिन सुबह रूबी अखबार पढ़ रही थी तो उस की नजर एक विज्ञापन पर ठहर गई. विज्ञापन बाबा अकबर शाह का था, जिसने विज्ञापन में प्रेमीप्रेमिका को मिलाने का दावा बड़ी गारंटी के साथ किया था. रूबी को तांत्रिक बाबा के दावों में दम नजर आया, तो उस ने बाबा अकबर शाह से मिलने का फैसला कर लिया.

बाबा अकबर शाह ने अपना अड्डा बर्रा में हरी मस्जिद के पास बना रखा था. रूबी उस से जा कर मिली और उसे अपनी और सुधीर की पूरी प्रेमकहानी सुना दी. साथ ही बीना के बारे मे भी बता दिया जिस की वजह से दोनों का मिलना मुमकिन नहीं था. अकबर शाह का असली नाम शाकिर अली था. वह नंबर एक का धूर्त था और रुबी जैसों को अपने जाल में फंसाने को तैयार बैठा रहता था. पूरी कहानी सुन कर उस ने रूबी से कहा, ‘‘इस का एक ही रास्ता है कि बीना को इस दुनिया से विदा करा दे.’’

‘‘अगर मैं ने ऐसा कुछ किया तो मैं तो फंस जाऊंगी. सुधीर तो मुझे क्या मिलेगा, उल्टे जेल जाना पड़ेगा.’’ रूबी ने कहा तो बाबा बोला, ‘‘तुम्हें तुम्हारा प्रेमी मिल जाएगा और जेल भी नहीं जाना पड़ेगा. यह काम मैं करुंगा, तुम नहीं.’’

‘‘मेरे और सुधीर के प्यार की कहानी तमाम लोग जान गए हैं. बीना और मेरा झगड़ा भी हुआ है. अगर उस का कत्ल होगा तो नाम तो मेरा ही आएगा, फिर कैसे बचूंगी मैं?’’

‘‘क्योंकि यह काम मैं तंत्रमंत्र से करूंगा. मेरी भेजी गई मूठ घर बैठे उस की जान ले लेगी, सब के सामने खून उगल कर मरेगी वह. इस तरह की मौत में तुम्हारा नाम कैसे आएगा?’’ बाबा ने कहा तो रूबी को यह युक्ति सही लगी. उस ने सुन रखा था कि तांत्रिक अपने तंत्रमंत्र से मूठ भेज कर किसी की भी जान ले सकते हैं. इसलिए उस ने पूछ लिया, ‘‘मुझे क्या करना होगा बाबा?’’

‘‘कुछ नहीं, बस 30 हजार रुपए खर्च करने हैं.’’

बीना की जान लेने के लिए रूबी को यह सही तरीका लगा. वह एचडीएफसी बैंक में अच्छीभली नौकरी करती थी, पैसों की उस के पास कोई कमी नहीं थी. थोड़ी सौदेबाजी के बाद उस ने बाबा अकबर शाह उर्फ शाकिर अली को 25 हजार रुपए दे दिए. उसे पूरा यकीन था कि अब जल्दी ही बीना उस के रास्ते से हट जाएगी. लेकिन हफ्तों से ज्यादा बीत जाने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो रूबी अकबर शाह के पास गई. उस ने बाबा से शिकायत की तो वह बोला, ‘‘कोशिश कर रहा हूं पर उस के सितारे बहुत अच्छे हैं. तुम चिंता मत करो, मैं ने उस का भी तोड़ निकाल लिया है. इस हफ्ते में बीना जरूर मर जाएगी.’’

रूबी बाबा की बात का यकीन कर के वापस आ गई. लेकिन जब एक हफ्ता बाद भी बीना को कुछ नहीं हुआ तो रूबी को बहुत गुस्सा आया. उस ने 25 हजार रुपए खर्च किए थे. वह गुस्से से दनदनाती हुई बाबा अकबर शाह के औफिस जा पहुंची. लेकिन अकबर शाह उसे नहीं मिला. अलबत्ता, वहां उसे हंसपुरम की आवास विकास कालोनी में रहने वाला मनीष धूसिया जरूर मिल गया. बाबा के पास आतेजाते मनीष धूसिया और रूबी का अच्छा परिचय हो गया था.

बातचीत हुई तो मनीष धूसिया ने रूबी से कहा, ‘‘बाबा की मूठ पता नहीं क्यों काम नहीं कर रही है. तुम चाहो तो मैं तुम्हारा काम दूसरे तरीके से करा सकता हूं. लेकिन इस के लिए 50 हजार रुपए लगेंगे.’’

रूबी किसी भी तरह बीना को रास्ते से हटाना चाहती थी ताकि सुधीर से शादी कर सके. इसलिए उस ने कहा, ‘‘मैं कितने भी पैसे खर्च करने को तैयार हूं, लेकिन तरीका ऐसा होना चाहिए कि उस की मौत कत्ल न लगे. क्योंकि कत्ल के मामले में मैं फंस जाऊंगी.’’

‘‘उस की चिंता छोड़ो, मैं ऐसी योजना बनाऊंगा कि काम भी हो जाएगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि बीना का कत्ल हुआ है.’’ मनीष ने कहा तो बीना ने उस की बात पर विश्वास कर लिया. उस ने रूबी को जल्दी ही उस आदमी से मिलाने का वादा किया जो उस का काम कर सकता था.

पैसा लेने के बाद जब मनीष धूसिया ने इस मुद्दे पर सोचना शुरू किया तो उस के दिमाग में मृदुल वाजपेयी का नाम आया. गांव राजेपुर, उन्नाव का रहने वाला मृदुल वाजपेयी पेशे से ड्राइवर था और फिलहाल नौबस्ता, कानपुर में रह रहा था. उस का पिता श्याम कुमार वाजपेयी शुक्लागंज, कानपुर में रहता था. मनीष धूसिया को पता था कि मृदुल पैसे के लिए परेशान है, उसे किसी की कर्ज की रकम चुकानी थी.

मनीष ने मृदुल से बात की तो वह पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो गया. जब बात हो गई तो मनीष ने मृदुल को रूबी से मिलवा दिया. उस ने इस काम के लिए 50 हजार रुपए मांगे. थोड़ी सौदेबाजी के बाद बीना की मौत की कीमत 40 हजार रुपए तय हो गई. रूबी ने इस शर्त के साथ पैसे दे दिए कि बीना की मौत आत्महत्या लगनी चाहिए ताकि किसी को उस पर शक न हो.

मृदुल और मनीष ने मिल कर बीना को ठिकाने लगाने के लिए एक अनोखी योजना तैयार की. इस योजना में मृदुल ने अपने पिता श्याम कुमार को भी शामिल कर लिया. अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए मृदुल ने सब से पहले फरजी आईडी से एक सिम खरीदा. उस सिम को अपने मोबाइल में डाल कर एक दिन वह बीना से मिलने उस के घर जा पहुंचा. यह उसे पता ही था कि बीना दिन में घर में अकेली होती है.

डोरबेल बजाने पर बीना ने दरवाजा खोला, तो मृदुल ने खुद को तांत्रिक बताते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे पति ने मेरी भांजी को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा है. उसे समझा लो, वरना ऐसा तंत्रमंत्र करूंगा कि खून उगलउगल कर मरेगा.’’

बीना अपने पति से प्यार भी करती थी और यह भी जानती थी कि वह रंगीनमिजाज आदमी है. उस ने मृदुल की बातों पर यकीन कर लिया, साथ ही वह घबराई भी. उस ने मृदुल से कहा, ‘‘मैं उन्हें समझाने की कोशिश करूंगी. प्लीज, आप उन का अहित मत सोचिए.’’

‘‘उसे तुम नहीं, मैं ही सुधार सकता हूं. तुम अगर चाहो तो मैं उसे लाइन पर ला सकता हूं. लेकिन इस के लिए तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा.’’

‘‘बताइए कैसे?’’ बीना ने पूछा तो मृदुल बोला, ‘‘फिलहाल तो आप अपना मोबाइल नंबर मुझे दे दीजिए. क्योंकि यह मामला इतना आसान नहीं है. इस के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी. मैं अपना नंबर आप को दे देता हूं. जब भी आप के पास 2 ढाई घंटे का समय हो, मुझे बुला लीजिएगा. मैं अपना काम शुरू कर दूंगा.’’

बीना ने विश्वास कर के मृदुल को अपना फोन नंबर दे दिया. बातचीत के बाद मृदुल चला गया. जब से सुधीर रूबी के चक्कर में फंसा था, पत्नी के प्रति उस का व्यवहार बिल्कुल बदल गया था. दोनों के बीच लड़ाईझगड़े आम बात हो गई थी. बीना को इस बात का तो जरा भी आभास नहीं था कि रूबी सुधीर से शादी का सपना देख रही है. अलबत्ता, मृदुल की बातों से उसे यह जरूर यकीन हो गया था कि सुधीर रूबी की तरह ही किसी और लड़की से भी चक्कर चला रहा होगा. इसलिए वह चाहती थी कि किसी भी तरह उस का पति लाइन पर आ जाए और किसी दूसरी औरत के चक्कर में न पड़े. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 3

दिल्ली पहुंचतेपहुंचते उस के पैसे किराए और खानेपीने में खर्च हो गए थे. पैसों के लिए उस ने दिल्ली में काम की तलाश की, लेकिन बिना जानपहचान के उसे वहां कोई ढंग का काम नहीं मिला. नौबत भूखों मरने की आई तो वह अमृतसर चला गया. क्योंकि उसे पता था कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में लंगर चलता है, इसलिए उसे वहां खाने की चिंता नहीं रहेगी. अमृतसर में उसे खाने की चिंता नहीं थी. लंगर में खाने की व्यवस्था हो ही जाती थी. खाना खा कर वह दिनभर इधरउधर घूमता रहता था.

इसी घूमनेफिरने में उस की दोस्ती उत्तर प्रदेश से वहां काम करने आए लोगों से हो गई. उन की जानपहचान का फायदा योगेश को यह मिला कि उसे एक होटल में नौकरी मिल गई. इस तरह खानेपीने और रहने की व्यवस्था तो हो ही गई थी, 4 पैसे भी हाथ में आने लगे थे.

लेकिन जल्दी की उस का मन वहां से उचट गया. दरअसल उसे अपने घर वालों की याद सताने लगी थी. सब से ज्यादा उसे पत्नी की याद आ रही थी. जब उस का मन नहीं माना तो कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह अपने घर पहुंचा. घर पहुंच कर पता चला कि पत्नी तो मायके में है. वह घर में रुकने के बजाय ससुराल चला गया. वह वहां 3 दिनों तक रहा, लेकिन किसी को कानोंकान खबर नहीं लगने दी कि इस बीच वह कहां था. 3 दिन ससुराल में रह कर वह फिर अमृतसर चला गया.

कुछ दिनों अमृतसर में रह कर एक बार फिर वह ससुराल गया. इस बार वह पत्नी को ले कर शिरडी के साईं बाबा के दर्शन करने भी गया. पत्नी को ससुराल में छोड़ कर अमृतसर आ गया. इस बार उस ने होटल की नौकरी छोड़ दी और लौंड्री में नौकरी करने लगा. उस ने यहां अपना नाम अशोक कुमार भल्ला रख लिया था. इसी नाम से उस ने अपना राशन कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस भी बनवा लिया था.

इस तरह योगेश ने अपनी पूरी पहचान बदल ली थी. ड्राइविंग लाइसैंस बन जाने के बाद वह किसी कंपनी की गाड़ी चलाने लगा था. खुद को बचाने के लिए योगेश ने काफी प्रयास किया, लेकिन पुणे पुलिस भी उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. किसी तरह पुलिस को उस के पुणे आकर शिरडी जाने का पता चल गया. इस के बाद पुलिस ने घर वालों पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस का नतीजा यह निकला कि 2 सालों बाद एक बार फिर योगेश शिरडी से पुणे पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

योगेश के पकड़े जाने का फायदा यह हुआ कि नैना पुजारी हत्याकांड की सुनवाई विधिवत शुरू हो गई. क्योंकि उस के फरार होने से इस मामले की सुनवाई एक तरह से रुक सी गई थी. शायद इसीलिए इस मुकदमे का फैसला आने में 8 साल का लंबा समय लग गया. योगेश की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर विधिवत सुनवाई शुरू हुई. कोई अभियुक्त फिर से फरार न हो जाए, इस के लिए सुनवाई वीडियो कौन्फ्रेंसिंग द्वारा कराई जाने लगी.

सुनवाई पूरी होने पर बहस में सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने तर्क दिए कि नैना तो इस विश्वास के साथ जा कर कार में बैठी थी कि कंपनी में काम करने वाले साथ हैं तो किसी बात का डर नहीं है. लेकिन उसे जिन पर विश्वास था, उन्हीं लोगों ने उस के साथ विश्वासघात किया. एक औरत की मजबूरी का फायदा उठा कर इन लोगों ने उस के साथ मनमानी तो की ही, बेरहमी से उस की हत्या भी कर दी.

इस घटना से घर से बाहर जा कर काम करने वाली महिलाओं में असुरक्षा की भावना भर गई है. महिलाओं का साथ काम करने वालों पर से विश्वास उठ गया है. महिलाओं में व्याप्त भय दूर करने के लिए जरूरी है कि इन अपराधियों को मौत की सजा दी जाए, जिस से आगे कोई इस तरह का अपराध करने की हिम्मत न कर सके.

सरकारी वकील हर्षद निंबालकर ने अपनी बात कहते हुए इस मामले को दुर्लभतम करार देते हुए नैना के साथ की गई बर्बरता का हवाला देते हुए दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की. उन का कहना था कि पीडि़ता के साथ जिस तरह सामूहिक दुष्कर्म कर के उस की हत्या की गई, उसे देखते हुए यह एक दुर्लभतम मामला है. इसलिए दोषियों को फांसी की सजा होनी चाहिए.

वहीं बचाव पक्ष के वकील बी.ए. अलूर ने अपनी दलीलें दीं, लेकिन अपराध संगीन था, इसलिए माननीय जज श्री एल.एल. येनकर ने अभियुक्तों पर जरा भी दया नहीं दिखाई और अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म, लूट और हत्या के अपराध में 3 अभियुक्तों योगेश राऊत, महेश ठाकुर और विश्वास कदम को फांसी की सजा सुनाई. इस के अलावा अलगअलग मामलों में अलगअलग सजाएं और जुरमाना भी लगाया गया है.

चूंकि राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन चुका था, इसलिए उसे दोषमुक्त कर दिया गया. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या किसी के वादामाफ गवाह बन जाने से उस का अपराध खत्म हो जाता है. आखिर अपराध में तो वह भी शामिल था. यहां यह देखा जाना जरूरी है कि वादामाफ गवाह का अपराध कैसा था, वह अपराध में किस हद तक शामिल था?

अदालत के इस फैसले से मृतका नैना पुजारी के पति अभिजीत पुजारी संतुष्ट हैं. उन का कहना है कि फिर इस तरह के अपराध करने की कोई हिम्मत न कर सके, इस के लिए अपराधियों को इसी तरह की सख्त से सख्त सजा की जरूरत थी. पत्नी की हत्या के बाद अभिजीत ने एक संस्था शुरू की है, जो पीडि़त महिलाओं को न्याय दिलाने का काम करती है.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 2

थाना यरवदा पुलिस ने उसी समय नैना का हुलिया बता कर पुणे के सभी थानों को उन की गुमशुदगी की सूचना दे दी. 9 अक्तूबर, 2009 को किसी व्यक्ति ने पुणे के थाना खेड़ पुलिस को सूचना दी कि राजगुरुनगर के वनविभाग परिसर में जारेवाड़ी फाटे के पास गंदे नाले में एक महिला की लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थाना खेड़ पुलिस मौके पर पहुंच गई थी.

लाश देख कर पुलिस को यह अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि यरवदा पुलिस ने जिस युवती की गुमशुदगी की सूचना दी है, यह लाश उसी की हो सकती है. थाना खेड़ पुलिस ने इस बात की जानकारी थाना यरवदा पुलिस को दी तो थाना यरवदा पुलिस अभिजीत को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गई. अभिजीत के साथ उस के कुछ रिश्तेदार भी थे.

लाश का चेहरा भले ही बुरी तरह कुचला था, लेकिन लाश देखते ही अभिजीत ही नहीं, उन के साथ आए रिश्तेदार भी फूटफूट कर रोने लगे. इस का मतलब वह लाश नैना की ही थी. लाश की शिनाख्त हो गई तो पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. लेकिन वहां से ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से पुलिस नैना के हत्यारों तक पहुंच पाती. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

नौकरी करने वाली हर लड़की बैग और मोबाइल रखती है. बैग में छोटीमोटी जरूरत की चीजों के अलावा डेबिटक्रेडिट कार्ड भी होते हैं. पूछताछ में पता चला कि इस सब के अलावा नैना सोने की चूडि़यां, बाली और मंगलसूत्र पहने थी. उस का मोबाइल और बैग तो गायब ही था, वह जो गहने पहने थी, वे सब भी गायब थे. इस से पुलिस को यही लगा कि किसी ने लूट के लिए उस की हत्या कर दी है.

लेकिन जब नैना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो मामला ही उलट गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नैना के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था. अब पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि नैना की हत्या लूट के लिए नहीं, बल्कि दुष्कर्म के बाद की गई थी, जिस से दुष्कर्मियों का अपराध उजागर न हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद नैना पुजारी के अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और लूट का मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने अभियुक्तों की तलाश शुरू कर दी. यह ऐसी घटना थी, जिस ने सब को झकझोर कर रख दिया था. दूसरी ओर उन महिलाओं के मन में भी डर समा गया था, जो नौकरी करती हैं. क्योंकि किसी के साथ भी ऐसा हो सकता था.

पुलिस ने नैना के हत्यारों तक पहुंचने के लिए जांच उन की कंपनी से शुरू की. पूछताछ में पता चला कि उस दिन नैना बस से घर नहीं गई थीं. पुलिस को यह भी पता चला कि नैना के एटीएम कार्ड से पैसे निकाले गए थे. पुलिस ने वहां की सीसीटीवी फुटेज निकलवाई तो उस में जो फोटो मिले, उस के आधार पर पुलिस योगेश से पूछताछ करने उस के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. आखिर पुलिस ने 16 अक्तूबर, 2009 को उसे गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने साथियों के नाम भी बता दिए. इस के बाद पुलिस ने महेश ठाकुर, राजेश चौधरी और विश्वास कदम को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में चारों ने नैना का अपहरण कर उस के साथ दुष्कर्म और लूट के बाद उस की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने नैना का सारा सामान चारों से बरामद कर लिया. इस मामले के खुलासे के बाद कंपनी में ही काम करने वालों द्वारा इस तरह का अपराध करने से लड़कियों और महिलाओं के मन में डर समा गया कि जब साथ काम करने वाले ही इस तरह का काम कर सकते हैं तो वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं.

इस दर्दनाक घटना ने पूरे देश में खलबली मचा दी थी. नौकरी करने वाली हर महिला को अपनी सुरक्षा की चिंता सताने लगी थी. इस बात को ले कर धरनाप्रदर्शन भी शुरू हो गए. एक ओर धरनाप्रदर्शन हो रहे थे तो दूसरी ओर पुलिस अपना काम कर रही थी. पूछताछ कर के सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने जांच पूरी कर के 12 जनवरी, 2010 को चारों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी थी. इस के बाद न्यायाधीश श्री एस.एम. पोडिलिकार ने चारों का नारको टेस्ट कराया और इस केस को लड़ने के लिए हर्षद निंबालकर को सरकारी वकील नियुक्त किया. पुलिस को अपना पक्ष मजबूत करने के लिए एक चश्मदीद गवाह की जरूरत थी. पुलिस ने राजेश चौधरी से बात की तो वह वादामाफ गवाह बनने को तैयार हो गया. इस तरह 4 लोगों में राजेश चौधरी वादामाफ गवाह बन गया तो 3 अभियुक्त ही बचे.

इस केस की सुनवाई चल रही थी, तभी एक घटना घट गई. इस मामले का मुख्य अभियुक्त योगेश राऊत 30 अप्रैल, 2011 को फरार हो गया. हुआ यह कि उस ने जेल प्रशासन से शिकायत की कि उस के शरीर में खुजली हो रही है. उसे जेल के अस्पताल में दिखाया गया, लेकिन वहां उसे कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद उसे पुणे के ससून अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे भरती करा दिया. उसी बीच टायलेट जाने के बहाने वह पुलिस को चकमा दे कर अस्पताल से भाग निकला.

पैसे उस के पास थे ही, इसलिए जब वह अस्पताल से बाहर आया तो उसे भाग कर जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई. दरअसल, उस ने यह काम योजना बना कर किया था. इसलिए जब वह अस्पताल में इलाज के लिए भरती हुआ तो उस का भाई उस से मिलने आया.

उसी दौरान उस ने योगेश को खर्च के लिए 4 हजार रुपए दे दिए थे. इसलिए अस्पताल से निकलते ही योगेश ने औटो पकड़ा और दौड़ कर रेलवे स्टेशन पहुंचा, जहां से टे्रन पकड़ कर वह गुजरात के सूरत शहर चला गया. उसे यह शहर छिपने के लिए ठीक नहीं लगा तो वह वहां से दिल्ली चला गया.

 

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 2

जांच के लिए ओमप्रकाश सिंह ने सुधीर से नंबर ले कर सब से पहले बीना के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. बीना ने आखिरी बार जिस नंबर पर बात की थी, उस पर ओमप्रकाश सिंह की निगाह टिक गई. कारण यह था कि उस नंबर से 31 मई से 8 जून तक 15 बार बातें हुई थीं. ओमप्रकाश सिंह ने वह नंबर सुधीर को दिखा कर पूछा कि वह किस का नंबर है, सुधीर उस नंबर के बारे में कुछ नहीं जानता था.

उस नंबर पर फोन किया गया तो वह बंद मिला. उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला उस नंबर से जो फोन किए गए थे, वह केवल बीना को ही किए गए थे. बीना ने भी उस नंबर पर कई बार बातें की थीं. बीना की हत्या के बाद उस नंबर से कोई फोन  नहीं हुआ था. इस का मतलब वह सिम केवल बीना से बात करने के लिए खरीदा गया था.

पुलिस ने उस नंबर की सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से यह जानकारी ली कि वह नंबर किस का है. जानकारी मिलने पर पुलिस उस आदमी तक पहुंच गई जिस के नाम पर सिम इश्यू हुआ था. लेकिन उस आदमी ने इस बात से इनकार कर दिया कि वह उस नंबर के बारे में कुछ जानता है. अलबत्ता, उस ने यह जरूर माना कि नंबर लेने के लिए फोटो और आईडी उस की ही इस्तेमाल हुई है.

उस व्यक्ति से पूछताछ के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि किसी ने सिम लेने के लिए फरजी तरीके से उस के फोटो और आईडी का इस्तेमाल किया था. इस के बाद यह मामला और भी पेचीदा हो गया.

स्थिति के मद्देनजर एसएसपी सुनील इमैनुएल ने इस मामले की विस्तृत जांच के लिए एक विशेष टीम का गठन किया जिस में एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा, सीओ ओमप्रकाश सिंह, सबइंसपेक्टर एनुद्दीन, आनंद शर्मा, हेड कांस्टेबल राजकिशोर, सिपाही अरविंद पांडेय, गौरव गुप्ता, भूपेंद्र सिंह और सर्विलांस विशेषज्ञ शिवभूषण को शामिल किया गया.

जिस नंबर से बीना को फोन किए जाते थे, वह चूंकि बंद था, इसलिए शिवभूषण ने सर्विलांस के माध्यम से उस फोन के आईएमईआई नंबर का सहारा लिया जिस में उस नंबर की सिम का इस्तेमाल किया गया था. युक्ति काम कर गई, पुलिस को इससे उस नंबर का पता चल गया जो उस वक्त उस मोबाइल में चल रहा था. उस नंबर का पता चलते ही पुलिस ने सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से उस के धारक की जानकारी ले ली. पता चला वह सिम मृदुल वाजपेयी, निवासी नौबस्ता, कानपुर के नाम पर था. इस के बाद पुलिस ने तत्काल मृदुल वाजपेयी को हिरासत में ले कर उस से विस्तृत पूछताछ की.

थोड़ी सी सख्ती के बाद मृदुल वाजपेयी टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि बीना की हत्या उसी ने की थी. साथ ही यह भी बता दिया कि इस मामले में उस के पिता श्याम कुमार वाजपेयी, रूबी यादव, मनीष धूसिया और तांत्रिक शाकिर अली उर्फ बाबा अकबर शाह भी शामिल थे.

पुलिस टीम ने उसी दिन ओमप्रकाश सिंह के निर्देशन में छापा मार कर श्याम कुमार वाजपेयी, मनीष धूसिया, रूबी यादव और बाबा अकबर शाह को गिरफ्तार कर लिया. इन लोगों से पूछताछ में आत्महत्या में हत्या की जो कहानी सामने आई वाकई हैरतअंगेज भी थी और आंखें खोलने वाली भी.

दरअसल सुधीर बिल्डिंग बनवाने के ठेके तो लेता ही था, समाजवादी पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता भी था. समाजवादी युवजन सभा का महासचिव होने के नाते पार्टी के शीर्ष नेताओं तक उस की सीधी पहुंच थी. इस नाते परिचितों, रिश्तेदारों में उस का खूब मानसम्मान था. एक बार सुधीर जब अपने एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने इटावा गया तो वहां उस की मुलाकात रूबी यादव से हुई.

22 साल की रूबी विश्व बैंक कालोनी, कानपुर के रहने वाले प्रमोद कुमार यादव की बेटी थी. वह एचडीएफसी बैंक में अकाउंटेंट कोआर्डिनेटर के पद पर काम कर रही थी. सुधीर और रूबी पहली बार मिले तो दोनों ही एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. बातचीत में दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर भी एकदूसरे को दे दिए.

इस मुलाकात के बाद सुधीर और रूबी जब कानपुर लौट आए तो दोनों के बीच फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगीं, जिनमें रोमांटिक बातें भी होती थीं. बातों का सिलसिला बढ़ा तो फिर मुलाकातें भी होने लगीं. सुधीर शादीशुदा था और एक बेटी का बाप भी. यह बात रूबी भी अच्छी तरह जानती थी. इस के बावजूद न तो रूबी ने इस बात की परवाह की और न सुधीर को अपनी पत्नी और बेटी का खयाल आया. रूबी के सामने उसे अपनी पत्नी बीना फीकी और उबाऊ लगने लगी थी.

धीरेधीरे सुधीर और रूबी की एकदूसरे के प्रति दीवानगी बढ़ती गई. रूबी का तो यह हाल हो गया कि वह सुधीर को देखे बिना नहीं रह पाती थी. दोनों ही अपनेअपने प्यार का इजहार कर चुके थे. मोबाइल पर बातें होना तो आम बात थी, इस के लिए दोनों ही न दिन देखते थे न रात. इस का नतीजा यह हुआ कि बीना को सुधीर पर शक होने लगा कि उस की जिंदगी में कोई और औरत भी है.

बीना ने जब अपने स्तर पर पता लगने की कोशिश की तो उसे जल्दी ही पता चल गया कि वह रूबी नाम की एक लड़की से इश्क लड़ा रहा है. इस के बाद पतिपत्नी में आए दिन झगड़ेहोने लगे. बीना सद्गृहणी थी, उस की मजबूरी यह थी कि परिवार के सामने पति से खुल कर लड़ भी नहीं सकती थी. किसी से शिकायत करने से भी कोई फायदा नहीं था क्योंकि सुधीर पावरफुल नेता था. घर में भी उस की दंबगई चलती थी.

उधर गुजरते वक्त के साथ रूबी के दिल में सुधीर के लिए प्यार बढ़ता जा रहा था. सुधीर भी शादीशुदा और एक बेटी का बाप होने के बावजूद रूबी से ऐसे प्यार जताता था जैसे उस के बिना रह ही नहीं सकता. कभीकभी वह रूबी के सामने अपनी पत्नी की बुराई भी करता और अपनी मजबूरी जाहिर करते हुए कहता, ‘‘क्या करूं, मेरे मांबाप ने कमउम्र में ही मेरी शादी कर दी, उन की वजह से मैं उसे छोड़ भी नहीं सकता. मैं जैसी पत्नी की कल्पना करता था, तुम बिलकुल वैसी ही हो.’’

सुधीर की अपनत्व भरी प्यारीप्यारी बातें सुन कर रूबी फूली नहीं समाती थी. ऐसी बातें सुन कर उस के दिल में सुधीर के लिए और भी प्यार बढ़ जाता था. नतीजा यह हुआ कि वह सुधीर को सदा के लिए पाने की चाहत पाल बैठी.

इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिस ने रूबी के मन में बीना के प्रति जहर घोल दिया.  दरअसल सुधीर और रूबी प्राय: रोज ही बात किया करते थे. अचानक एक दिन सुधीर का मोबाइल पानी में गिर गया जिससे पानी उस के अंदर चला गया और मोबाइल बंद हो गया. इत्तेफाक से उस दिन सुधीर को लखनऊ जाना था. रूबी का नंबर उस के मोबाइल में तो फीड था, पर वैसे उसे याद नहीं था. इस वजह से वह उसे फोन कर के लखनऊ जाने की बात बता भी नहीं सका. वह उसे बिना बताए ही लखनऊ चला गया.

उधर रूबी बराबर उस का नंबर ट्राई कर रही थी. जब कई घंटे तक उस का फोन नहीं मिला तो वह हकीकत पता लगाने के लिए सुधीर के घर जा पहुंची. उस समय बीना घर में अकेली थी, सासससुर और देवर रेस्टोरेंट पर गए हुए थे. यह बीना और रूबी की पहली मुलाकात थी. बीना ने रूबी से उस का नाम पूछा तो उस ने बता दिया.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 1

आजाद कुटिया, बर्रा, कानपुर निवासी सुरेश यादव के 2 बेटे हैं- सुधीर और सुनील. परिवार हर तरह से संपन्न है, किसी चीज की कोई कमी नहीं. इस परिवार के 2 मकान हैं और दामोदर नगर, नौबस्ता में एक रेस्टोरेंट. सुरेश यादव पत्नी रंजना और छोटे बेटे सुनील के साथ रेस्टोरेंट खुद चलाते हैं. उन का बड़ा बेटा सुधीर बिल्डिंग बनवाने के ठेके लेता है, साथ ही वह समाजवादी पार्टी का नेता भी था.

सुधीर की शादी गांधी नगर, इटावा निवासी विजयकुमार यादव की बेटी बीना से हुई थी. बीना सीधीसादी औरत थी, सद्गृहणी. पूरे परिवार को बांध कर रखने वाली बीना एक बेटी एंजल की मां बन चुकी थी. 5 साल की एंजल सुबह स्कूल जाती थी और दोपहर को लौट आती थी. परिवार के अन्य सदस्य भी सुबहसुबह अपनेअपने कामों पर चले जाते थे. उन लोगों के जाने के बाद बीना घर में अकेली रहती थी.

8 जून को रविवार था, छुट्टी का दिन. उस दिन सुरेश यादव और रंजना जब रेस्टोरेंट पर जाने लगे तो एंजल भी उन के साथ चलने की जिद करने लगी. बीना ने भी सासससुर से उसे साथ ले जाने की सिफारिश की तो वे इनकार नहीं कर सके. मातापिता और बेटी के जाने के कुछ देर बाद सुधीर भी अपने काम पर चला गया. बाद में दोपहर में सुनील भी रेस्टोरेंट पर चला गया. घर में अकेली रह गई बीना.

रेस्टोरेंट का काम निपटा कर सुरेश यादव पत्नी रंजना और पोती एंजल के साथ रात 10 बजे घर लौटे तो हमेशा की तरह ऊपर जाने वाले जीने के दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद थी. सुरेश और रंजना ने कई बार घंटी बजाई, बीना को आवाज दीं, लेकिन न तो दरवाजा खुला और न कोई हलचल सुनाई दी.

थोड़ी चिंता तो हुई, लेकिन सुरेश यादव और उन की पत्नी ने सोचा कि हो न हो घंटी खराब हो गई हो और बीना गहरी नींद में सो गई हो. वे लोग और भी जोरजोर से आवाजें देने लगे. उन की आवाजें सुन कर बीना तो कुंडी खोलने नहीं आई, अलबत्ता पड़ोस के लोग जरूर आ गए. वे लोग भी बीना को आवाज देने लगे, लेकिन इस का कोई लाभ नहीं हुआ.

सब लोगों को परेशान देख नन्हीं एंजल ने सुरेश यादव से कहा, ‘‘बाबा, मैं साइड में अंगुली डाल कर सिटकनी खोल देती हूं. कहो तो ट्राई करूं?’’

सुरेश यादव को उम्मीद की किरण दिखाई दी तो उन्होंने एंजल को गोद में उठा कर सिटकनी खोलने को कहा. 5 साल की एंजल ने अपनी पतली अंगुलियां साइड से डाल कर सिटकनी खोल दी. दरवाजा खुलते ही सब लोग बीना को आवाज देते हुए अंदर दाखिल हो गए. लेकिन अंदर भी जब बीना का कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने उस के कमरे में जा कर देखा.

बीना अपने कमरे में भी नहीं थी. इस पर रंजना ने सोचा कि हो सकता है बीना किचन में हो और आवाज न सुन पा रही हो. उन्होंने किचन में जा कर देखा तो वहां का दृश्य देख वह इतनी जोर से चीखीं कि सुरेश यादव और अंजलि के साथसाथ बाहर खड़े पड़ोसी भी उन की चीख सुन कर अंदर की तरफ दौड़े. किचन के अंदर का दृश्य देख कर सबकी आंखें फटी रह गईं.

किचन में ऊपर की तरफ लगे लोहे के जंगले से एक रस्सी बंधी थी और बीना उसी रस्सी से फांसी पर झूल रही थी. उस के पैरों के पास स्टूल लुढ़का पड़ा था. ऐसा लगता था जैसे उस ने आत्महत्या की हो. कुछ लोगों ने छू कर देखा तो उस के हाथपांव बिलकुल ठंडे थे. ऐसा लग रहा था जैसे उसे मरे हुए काफी देर हो चुकी है.

सुरेश यादव ने खुद को संभाल कर अपने बेटों सुधीर और सुनील को फोन कर के इस मामले की सूचना दी. उस समय सुधीर और सुनील दामोदर नगर स्थित अपना रेस्टोरेंट बंद करवा रहे थे. खबर मिलते ही दोनों घर की ओर दौड़े. बेटों को फोन करने के बाद सुरेश यादव ने 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को भी इस बारे में बता दिया. मामला थाना बर्रा क्षेत्र का था, इसलिए कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना बर्रा को दे दी गई.

खबर मिलते ही तत्कालीन थानाप्रभारी अजय प्रकाश श्रीवास्तव अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना किया, लोगों से पूछताछ की. मामला स्पष्ट रूप से आत्महत्या का लग रहा था, लेकिन परेशानी यह थी कि बीना ने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा था. एक ग्रैजुएट औरत द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले में यह बात थोड़ी अजीब लग रही थी. जीने की कुंडी अंदर से बंद मिली थी, इसलिए संदेह की भी कोई गुंजाइश नहीं थी.

पुलिस ने प्राथमिक काररवाई कर के बीना की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. बीना के पति सुधीर यादव और सभी घर वालों को इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि जब घर में कोई ऐसीवैसी बात ही नहीं हुई थी, तो बीना ने आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाया. बहरहाल, सुधीर ने गांधीनगर, इटावा फोन कर के बीना की आत्महत्या की बात अपनी ससुराल वालों को भी बता दी. अगले दिन सुबह बीना के पिता विजय सिंह यादव, भाई संजीव कुमार यादव तथा मां कानपुर आ गए.

ये लोग सीधे पोस्टमार्टम हाउस जा पहुंचे. तब तक बीना का पोस्टमार्टम हो चुका था. शव देखने के बाद बीना के भाई संजीव सिंह एडवोकेट ने दोबारा पोस्टमार्टम कराने की मांग उठाई. बीना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में फांसी लगा कर आत्महत्या किए जाने की बात लिखी थी, जो कि उस के मायके वालों को स्वीकार नहीं थी.

अंतत: काफी जद्दोजहद के बाद जिलाधिकारी श्रीमती रोशन जैकब ने लाश का पुन: पोस्टमार्टम कराए जाने का निर्देश दिया. लेकिन दोबारा किए गए पोस्टमार्टम में भी फांसी लगा कर जान देने की बात ही सामने आई. इस के बावजूद बीना के मायके वालों को विश्वास नहीं हुआ कि बीना ने आत्महत्या की होगी. उन का कहना था कि उन की बेटी आत्महत्या नहीं कर सकती.

सोच कर चूंकि अविश्वास के बादल छाए थे, इसलिए विजय सिंह ने अपने बेटे संजीव सिंह एडवोकेट के साथ थाना बर्रा पहुंच कर पुलिस से दहेज हत्या की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा, लेकिन बर्रा पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस पर विजय सिंह एसएसपी सुनील इमैनुएल से मिले और शंका जाहिर की कि बीना ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस के ससुराल वालों ने उस की हत्या की है.

उन की बात सुन कर एसएसपी ने तत्कालीन सीओ गोविंद नगर राघवेंद्र सिंह यादव को निर्देश दे कर विजय सिंह को उन के पास भेज दिया. विजय सिंह अपने बेटे के साथ सीओ राघवेंद्र सिंह से मिले और उन से बीना के ससुराल वालों के खिलाफ दहेज हत्या का मामला दर्ज करने का अनुरोध किया.

सीओ के आदेश पर थाना बर्रा के तत्कालीन इंचार्ज अजय प्रकाश श्रीवास्तव ने भादंवि की धारा 498ए 302, 365 के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया. केस चूंकि दहेज हत्या का दर्ज हुआ था इसलिए इस मामले की जांच सीओ राघवेंद्र सिंह यादव ने स्वयं अपने हाथ में ले ली.

केस दर्ज होते ही सपा नेता सुधीर यादव सहित सभी घर वाले भूमिगत हो गए. बाहर ही बाहर सुधीर यादव ने सीओ तक अप्रोच लगाई कि जांच पूरी करने के बाद ही उन की गिरफ्तारी की जाए. पर सीओ ने साफ कह दिया कि पहले जेल जाएं फिर जांच होगी. कोई रास्ता न देख सुधीर यादव ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. वहां से गिरफ्तारी का स्टे आर्डर मिल गया.

इसी दौरान सीओ गोविंद नगर राघवेंद्र सिंह यादव का तबादला हो गया, उन की जगह नए सीओ ओमप्रकाश सिंह ने चार्ज संभाला. सुधीर यादव ने अपने परिवार की गिरफ्तारी का स्टे आर्डर ले रखा था, इसलिए अब कोई परेशानी नहीं थी. वह कुछ सपा नेताओं के साथ सीओ ओमप्रकाश सिंह से मिले. सुधीर ने उन्हें बताया कि बीना की हत्या उन लोगों ने नहीं की है, बल्कि उन्हें जबरन फंसाया जा रहा है. सुधीर ने एक रहस्य की बात यह भी बताई कि बीना का मोबाइल कहीं नहीं मिला है.

प्रकाश सिंह ने बीना की फाइल मंगाई और एकएक चीज का बारीकी से निरीक्षण किया. घटनास्थल की फोटो देखने के बाद उन्हें लगा कि जिस तरह रस्सी में फांसी के फंदे की नीचे और ऊपर गांठें लगाई गई थीं वह एक सामान्य महिला के वश की बात नहीं थी. इस से उन्हें भी यह मामला हत्या का ही लगा.

पुणे का नैना पुजारी हत्याकांड – भाग 1

9 मई, 2017 को पुणे के सैशन कोर्ट के जज श्री एल.एल. येनकर की अदालत में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. इस की वजह यह थी कि वह 8 साल पुराने एक बहुत ज्यादा चर्चित नैना पुजारी के अपहरण, गैंगरेप, लूट और मर्डर के मुकदमे का फैसला सुनाने वाले थे. चूंकि यह बहुत ही चर्चित मामला था, इसलिए मीडिया वालों के अलावा अन्य लोगों को इस मामले में काफी रुचि थी.

अभियुक्तों को एक दिन पहले यानी 8 मई को सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकीलों की लंबी बहस के बाद दोषी करार दे दिया गया था, इसलिए निश्चित हो चुका था कि उन्हें इस मामले में सजा होनी ही होनी है. अब लोग यह जानना चाहते थे कि इंसान के रूप में हैवान कहे जाने वाले उन दरिंदों को क्या सजा मिलती है.

ठीक समय पर जज श्री एल.एल. येनकर अदालत में आ कर बैठे तो अदालत में सजा को ले कर चल रही खुसुरफुसुर बंद हो गई थी. जज के बैठते ही पेशकार ने फैसले की फाइल उन के आगे खिसका दी थी. जज साहब ने एक नजर फाइल पर डाली. उस के बाद अदालत में उपस्थित वकीलों, आम लोगों और अभियुक्तों को गौर से देखा. इस के बाद उन्होंने फाइल का पेज पलटा. जज साहब ने इस मामले में क्या फैसला सुनाया, यह जानने से पहले आइए हम पहले इस पूरे मामले को जान लें कि नैना पुजारी के साथ कैसे और क्या हुआ था?

7 अक्तूबर, 2009 की शाम पुणे के खराड़ी स्थित सौफ्टवेयर कंपनी सिनकोन में काम करने वाली नैना पुजारी ड्यूटी खत्म कर के शाम 8 बजे घर जाने के लिए बाहर निकलीं तो अंधेरा हो चुका था. वैसे तो वह शाम 7 बजे तक निकल जाती थीं लेकिन उस दिन काम की वजह से उन्हें थोड़ी देर हो गई थी. शायद इसीलिए कंपनी से निकलते समय उन्होंने पति अभिजीत को फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं.

महिला कर्मचारियों को कंपनी से निकलने में देर हो जाती थी तो घर पहुंचाने की व्यवस्था कंपनी करती थी. इस के लिए कंपनी ने कैब और बसें लगा रखी थीं. लेकिन उस दिन कोई कैब नहीं थी, इसलिए नैना घर जाने के लिए बस का इंतजार करने लगीं. बस आती, उस के पहले ही उन के सामने एक कार आ खड़ी हुई.

वह कार योगेश राऊत की थी. वह कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करता था. नैना उसे पहचानती थीं, इसलिए जब योगेश ने बैठने के लिए कहा तो नैना उस में बैठ गईं. वह कार में बैठीं तो योगेश के अलावा उस में 2 लोग और बैठे थे. उन के नाम थे महेश ठाकुर और विश्वास कदम. ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे. महेश ठाकुर जरूरत पड़ने पर यानी बदली पर कंपनी की गाड़ी चलाता था तो विश्वास कदम सुरक्षागार्ड था.

ये दोनों भी कंपनी के ही कर्मचारी थे, इसलिए नैना ने कोई ऐतराज नहीं किया. लेकिन जब कार चली तो योगेश उन्हें उन के घर की ओर ले जाने के बजाय राजगुरुनगर, बाघोली की ओर ले जाने लगा. उन्होंने उसे टोका तो योगेश ने उन की बात पर पहले तो ध्यान ही नहीं दिया. जब तक ध्यान दिया, तब तक कार काफी आगे निकल चुकी थी.

नैना ने जब उस से पूछा कि वह कार इधर क्यों लाया है तो उस ने कहा कि इधर से वह अपने एक साथी को ले कर उसे उस के घर पहुंचा देगा. उस ने वहीं से फोन कर के अपने साथी राजेश चौधरी को बुलाया और उसे बैठा कर कार खेड़ की ओर मोड़ दी तो नैना को शंका हुई.

नैना ने योगेश को डांटते हुए वापस चलने को कहा तो योगेश के साथियों ने उन्हें दबोच कर चाकू की नोक पर चुप बैठी रहने को कहा. नैना ने उन के इरादों को भांप लिया. वह छोड़ देने के लिए रोनेगिड़गिड़ाने लगीं. लेकिन भला वे उसे क्यों छोड़ते. वे तो न जाने कब से दांव लगाए बैठे थे. उस दिन उन्हें मौका मिल गया था. चाकू की नोक पर सभी ने चलती कार में ही बारीबारी से उन के साथ दुष्कर्म किया. इस के बाद एक सुनसान जगह पर कार रोक कर नैना का एटीएम कार्ड छीन कर उस से 61 हजार रुपए निकाले. पिन उन्होंने चाकू की नोक पर उन से पूछ ली थी.

नैना इन पापियों के सामने खूब रोईंगिड़गिड़ाईं, पर उन्हें उस पर जरा भी दया नहीं आई. उन लोगों ने उन के साथ जो किया था, किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ सकते थे. क्योंकि उन के जिंदा रहने पर सभी पकड़े जाते. पकड़े जाने के डर से उन्होंने स्कार्फ से गला घोंट कर उन की हत्या तो की ही, लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए पत्थर से उन के सिर को बुरी तरह कुचल दिया. इस के बाद जंगल में लाश फेंक कर सभी भाग खड़े हुए.

दूसरी ओर समय पर नैना घर नहीं पहुंचीं तो उन के पति अभिजीत को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि कंपनी से निकलते समय उन्होंने फोन कर के बता दिया था कि वह कंपनी से निकल चुकी हैं. पति ने नैना के मोबाइल पर फोन किया. फोन बंद था, इसलिए उन की बात नैना से नहीं हो सकी. फोन बंद होने से अभिजीत परेशान हो गए. इस के बाद उन्होंने औफिस फोन किया. वहां से तो वह निकल चुकी थीं, इसलिए वहां से कहा गया कि नैना तो यहां से कब की जा चुकी हैं.

इस के बाद अभिजीत ने वहांवहां फोन कर के नैना के बारे में पता किया, जहांजहां उन के जाने की संभावना हो सकती थी. जैसेजैसे रात बढ़ती जा रही थी, उन की चिंता और परेशानी बढ़ती जा रही थी. सब जगह उन्होंने फोन कर लिए थे. कहीं से भी नैना के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

अभिजीत की समझ में नहीं आ रहा था कि नैना ने सीधे घर आने को कहा था तो बिना बताए रास्ते से कहां चली गईं. उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. अब तक उन के कई रिश्तेदार भी आ गए थे. रात साढ़े 9 बजे कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना यरवदा जा कर थानाप्रभारी से मिल कर उन्होंने पत्नी नैना के घर न आने की बात बता कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी.