राजू को पड़ोस में रहने वाली सर्वेश से प्यार हुआ तो हर वक्त वह उस की एक झलक पाने की फिराक में रहने लगा. पूरा पूरा दिन वह उसे देखने के लिए दरवाजे पर चारपाई डाले पड़ा रहता. वह उस से मिल कर अपने दिल की बात कहना चाहता था. मौके तो उसे तमाम मिले, लेकिन उन मौकों पर वह उस से दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं कर सका.

राजू जिला कांशी रामनगर की कोतवाली खोरो के गांव दतलाना के रहने वाले रामवीर के 2 बेटों में छोटा बेटा था. बड़े बेटे अमर की शादी हो गई थी. शादी के बाद वह खेती के कामों में पिता की मदद करने लगा था. राजू ने हाईस्कूल कर के भले पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन घर का लाडला होने की वजह से घर का कोई काम नहीं करता था. घर का कोई आदमी उस से किसी काम के लिए कहता भी नहीं था.

मांबाप के लिए वह अभी भी बच्चा था, इसलिए वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला उन की आंखों से ओझल हो, इसलिए राजू ने दिल्ली जा कर नौकरी करने की इच्छा जताई तो उन्होंने उसे वहां भी नहीं जाने दिया. क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला बेटा अभी से किसी की गुलामी करे. इसलिए कोई कामधाम न होने की वजह से राजू दिनभर इधरउधर भटकता रहता था.

चारपाई पर पड़ेपड़े ही उस की नजर सर्वेश पर पड़ी थी तो कोई कामधाम न होने की वजह से उस की ओर आकर्षित हो गया था. कोई कामधाम न होने की ही वजह से हुआ था. जबकि सर्वेश को वह बचपन से ही देखता आया था. पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

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