Hindi Suspense Stories : छत्रसाल स्टेडियम से अपने कुश्ती के करियर की शुरुआत करने वाले सुशील पहलवान ने अपनी मेहनत के बूते विश्व भर में अपनी पहचान बनाई. देश ने भी उन्हें अपार मानसम्मान दिया. लेकिन जिस स्टेडियम ने उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचाया, उसी स्टेडियम में सुशील पहलवान ने अपनी ताकत और गुरूर का ऐसा नंगा नाच किया कि...

कहते हैं कि शोहरत ऐसा नशा है जो सिर चढ़ कर बोलता है. क्योंकि शोहरत से ताकत और पैसा दोनों मिलता है. जिस इंसान के पास पैसा और ताकत दोनों हों तो स्वाभाविक है कि ताकत का नशा उस के सिर चढ़ कर बोलने लगता है. आमतौर पर कुश्ती लड़ने वाले ऐसे पहलवान जो शोहरत की बुलंदियों को छू लेते हैं, उन के सिर पर ताकत का ऐसा ही नशा सवार हो जाता है. सुशील पहलवान ऐसा नाम है, जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है. दुनिया का यह नामचीन पहलवान भी ताकत के इसी नशे का शिकार हो गया. वैसे तो पूरी दुनिया सुशील पहलवान के बारे में जानती है लेकिन कहानी शुरू करने से पहले थोड़ा सुशील पहलवान के बारे में जान लेना जरूरी है.

दिल्ली के नजफगढ़ इलाके के बपरोला गांव में 26 मई, 1983 को दीवान सिंह और कमला देवी के सब से बड़े बेटे के रूप में सुशील कुमार का जन्म हुआ. साधारण परिवार में जन्मे सुशील 3 भाइयों के परिवार में सब से बड़े हैं. सुशील के पिता दिल्ली परिवहन निगम में एक बस ड्राइवर के रूप में कार्यरत थे और अपने विभाग में कुश्ती खेलते थे. इसीलिए बचपन से सुशील को भी कुश्ती के खेल का शौक ऐसा लगा कि किशोर उम्र तक आतेआते न सिर्फ कुश्ती लड़ने लगे, बल्कि ओलंपिक में पदक जीतना जिंदगी का लक्ष्य बन गया. सुशील जब 14 साल के थे तो उत्तर पश्चिम दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में स्थित ‘अखाड़ा’ या कुश्ती अकादमी में एक पहलवान के रूप में उन्होंने दाखिला ले लिया.

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