अगले दिन जब डा. अशोक कुमार के लापता होने की खबर अखबारों में छपी तो मऊ पुलिस को लगा कि बरामद कार डा. अशोक कुमार की है, क्योंकि कार का जो नंबर था, उसी नंबर की जेन कार ले कर वह निकले थे. मऊ पुलिस ने कार बरामद होने की सूचना गोरखपुर पुलिस को दी तो गोरखपुर पुलिस डा. अशोक कुमार के घर वालों को साथ ले कर मऊ के थाना दक्षिण टोला जा पहुंची.
घर वालों ने कार की शिनाख्त कर दी. कार डा. अशोक कुमार की ही थी. कार की स्थिति देख कर सभी को यही लगा कि डा. अशोक कुमार के साथ कोई अनहोनी घट चुकी है. अखबारों में छपी खबर पढ़ कर देवरिया पुलिस ने गोरखपुर पुलिस को अपने यहां से एक लाश बरामद होने की सूचना दी.
उसी सूचना के आधार पर महावीर प्रसाद के बड़े दामाद जयराम प्रसाद गोरखपुर पुलिस के साथ देवरिया के थाना खुखुंदू जा पहुंचे. लाश के फोटो और कपड़े आदि देख कर उन्होंने बता दिया कि फोटो और सामान डा. अशोक कुमार के हैं. संदेह तो पहले ही था, अब साफ हो गया कि डा. अशोक कुमार की हत्या हो चुकी है. इस के बाद परिवार में कोहराम मच गया.
मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए इस मामले के खुलासे के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विजय कुमार ने इस मामले की जांच में चौराचौरी के क्षेत्राधिकारी, एसओजी प्रभारी और क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत के नेतृत्व में 3 टीमें बना कर लगा दीं. चूंकि मामला एससी/एसटी का था, इसलिए इस मामले की जांच क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत को सौंपी गई थी.