अदलत में मौजूद हर आदमी उत्सुक था, जबकि नवीन को अपनी मेहनत बेकार जाती महसूस हो रही थी. उन्होंने महसूस किया कि सोमनाथ सोलकर पर उन के सवालों का कोई असर नहीं हो रहा है.
उन्होंने वह कागज हवा में लहराते हुए भावनात्मक लहजे में कहा, ‘‘मि. सोमनाथ, इंस्टीटयूट की स्थापना का निर्णय आप का एक महान कार्य था, इस के पीछे आप की नेक भावना थी. यही वजह थी, उस समय आप ने 100 करोड़ रुपए का निवेश किया. लेकिन जो लाइन मैं ने पढ़ी है, उस के शब्दों के महत्त्व का आप अंदाजा नहीं लगा सके. उस लाइन को स्वीकार कर के वास्तव में आप ने 2 साजिश करने वालों को अपनी नेक भावना से खेलने की इजाजत दे दी. आप को लगता नहीं कि आप से भी गलती हो सकती है, आप को भी तो कोई मूर्ख बना सकता है?’’
नवीन ने कागज सोमनाथ के सामने रख कर कहा, ‘‘एक बार फिर आप इसे ध्यान से पढि़ए और उस के अर्थ व उद्देश्य की तह तक पहुंचने की कोशिश कीजिए.’’
तभी शशांक ने उन के पास आ कर कहा, ‘‘विश्वास कीजिए मि. सोमनाथ, इस में चिंता की ऐसी कोई बात नहीं है, ये सभी बातें हम ने आपस में सलाह कर के तय की थीं.’’
सोमनाथ सोलकर के चेहरे के भाव बदल गया. उन्होंने अपने वकील को घूरते हुए कहा, ‘‘शायद तुम मुझे इसे पढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहे हो?’’
उन्होंने बड़े ही ध्यान से उस लाइन को पढ़ा. इस के बाद नवीन की ओर देखते हुए थोड़ी नरमी से कहा, ‘‘मुझे तो बताया गया था कि ट्रस्ट को सही ढंग से चलाने के लिए यह लाइन बहुत जरूरी है. बहरहाल मैं ने कभी ऐसे किसी पेपर पर हस्ताक्षर नहीं किए, जिस से ट्रस्ट की शर्तों और नियमों या दूसरे मामलों में कोई भी परिवर्तन लाया जा सके.’’