फुरकान अपने दादा इरफान के सामने आ कर खड़ा हुआ तो उस की आंखें चमक रही थीं, सांसों से शराब की बदबू आ रही थी और चेहरे पर कुटिल मुसकराहट तैर रही थी. फालिज के शिकार बूढ़े इरफान को फुरकान की आदतें अच्छी नहीं लगती थीं. उन्होंने उसे न जाने कितनी बार समझाया था, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ था.
बूढ़े अपाहिज इरफान का फुरकान के अलावा अपना कोई नहीं था. इसलिए वह फुरकान की हर बात मानने को मजबूर थे. इरफान काफी दौलतमंद आदमी थे. उन्होंने जो कमाया था अक्लमंदी से काम लेते हुए उसे रियल एस्टेट में लगाया था. उन्हें हर महीने कई मकानों और दुकानों का मोटा किराया मिल रहा था. करोड़ों रुपए की प्रौपर्टी लाखों रुपए महीना दे रही थी. रहने के लिए शानदार बंगला, कई गाडि़यां और नौकर थे.
इरफान के बेटे इमरान और बहू की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. संयोग से उस दिन फुरकान अपने दादा के पास घर में रुक गया था. तब उस की उम्र 10-11 साल थी. इरफान ने किसी तरह बेटे बहू की मौत के गम को बरदाश्त किया. इमरान उन की एकलौती संतान थी. फुरकान चूंकि उन का एकलौता बेटा था. इसलिए लेदे कर फुरकान का ही उन का एकमात्र सहारा रह गया था. वह पोते की परवरिश करने लगे. उन्होंने उसे कभी मांबाप की कमी महसूस नहीं होने दी.
लेकिन इतना सब करने और अच्छी शिक्षा दिलाने के बावजूद फुरकान ने जवानी में गलत राह पकड़ ली. एक दिन इरफान के मैनेजर सलीम ने जब उन्हें बताया कि फुरकान साहब अय्याशी कर रहे हैं तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. उन्होंने पूछा, ‘‘कैसी अय्याशी?’’