उड़ीसा में नकली दवाएं बरामद होने के बाद पता चला कि नकली दवाओं की खेप वाराणसी से देश के अलगअलग क्षेत्रों में भेजी जाती हैं. इस के पुख्ता सबूत मिलने के बाद से एसटीएफ की टीम जुट गई थी. पिछले कुछ महीनों से एसटीएफ की टीम नकली दवाओं के गैंग पर नजर भी बनाए हुए थी कि इसी बीच गुरुवार को नकली दवाओं के गैंग के सरगना अशोक कुमार के वाराणसी के सिगरा थाना क्षेत्र की चर्च कालोनी में मौजूद होने की पुख्ता जानकारी मिली.

ऐसे में टीम ने घेराबंदी कर के अशोक को एक मकान से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में बुलंदशहर के सिकंदराबाद थाना क्षेत्र की टीचर्स कालोनी के रहने वाले अशोक कुमार ने कई खास जानकारियां दीं. उस की निशानदेही पर चर्च कालोनी के एक मकान में रखी 108 पेटी नकली दवाएं बरामद की गईं. इस के अलावा 4 लाख 40 हजार रुपए नकद, फरजी बिल, अन्य दस्तावेज तथा एक फोन बरामद किया.

उस से पूछताछ में मंडुवाडीह थाना क्षेत्र के महेशपुर लहरतारा स्थित गोदाम में भारी मात्रा में नकली दवाएं होने की जानकारी मिली तो वहां से भी एसटीएफ ने गोदाम में छापा मार कर 208 पेटी नकली दवाएं बरामद कर लीं, जो अलगअलग 316 कार्टन में पैक थीं.

उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी का कैंट यानी शहर का सब से व्यस्त इलाका, कैंट रेलवे स्टेशन, रोडवेज बस डिपो यहीं मौजूद होने से नाकेनाके पर पुलिस का यहां पहरा भी होता है, लेकिन 2 मार्च, 2023 को अचानक बड़ी संख्या में पुलिस बल की दौड़धूप, पुलिस के वाहनों के बजते सायरन बरबस ही लोगों को सोचने को मजबूर कर रहे थे कि आखिरकार माजरा क्या है?

फिर खयाल आया कि हो न हो कोई वीवीआईपी शहर में आया हो, इसलिए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई हो? क्योंकि यहां अकसर वीआईपी आते रहते हैं. बातों और कयासों का दौर चल ही रहा था कि तभी शहर के कुछ हिस्सों में एसटीएफ की छापेमारी की खबर फैलने लगी.

तभी कैंट चौराहे पर तैनात पुलिस वाहन में लगा वायरलेस घनघना उठा. दूसरी ओर से आवाज आई, ”हर आनेजाने वाले वाहनों की गहनता से जांच कराई जाए, कोई भी संदिग्ध व्यक्ति या वाहन नजर आए तो उसे रोका जाए.’‘

इतना सुनते ही पुलिस जीप का चालक बुदबुदाया, ”आज भी सुकून से रोटी मिलनी तो दूर चाय भी नसीब नहीं होती दिखाई दे रही है…’‘ बड़बड़ाते हुए उस ने लहरतारा की ओर गाड़ी घुमा दी.

यह बात 2 मार्च, 2023 की है. दरअसल, वाराणसी शहर के मंडुआडीह थाना क्षेत्र के लहरतारा, सिगरा थाना क्षेत्र सहित कैंट के कई इलाकों में एसटीएफ टीम की रेड पड़ गई थी. एसटीएफ ने कैंट इलाके के रोडवेज के पीछे व लहरतारा, महेशपुर में छापेमारी की, जहां उसे पेटेंट दवा कंपनियों के नाम की भारी तादाद में एलोपैथी दवाएं मिली थीं, जिसे देख टीम में शामिल जवानों की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. सभी के मुंह से निकल पड़ा था, ”ओफ! इतना बड़ा नकली दवाओं का रैकेट…’‘

खैर, एसटीएफ टीम ने इस की फौरन सूचना अपने उच्चाधिकारियों को देने के साथ ही मौके से नकली दवा कारोबार के सरगना को मौके से गिरफ्तार कर लिया, जिन की निशानदेही पर टीम ने कैंट रोडवेज के पीछे चर्च कालोनी व ट्रांसपोर्ट क्षेत्र लहरतारा के महेशपुर से भारी तादाद में एलोपैथी नकली दवाएं बरामद कीं, जिन की कीमत 7.5 करोड़ बताई गई. विभिन्न नामीगिरामी कंपनियों के नाम पर बनी ये नकली दवाएं 316 बड़े डिब्बों में पैक थीं.

पता चला कि नकली दवाओं का कारोबार करने वाले गिरोह का गिरफ्तार सरगना अशोक कुमार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर का निवासी है. उस ने पूछताछ में वाराणसी के 3 लोगों समेत 12 लोगों के नामों का खुलासा किया था, जो इस नकली दवा कारोबार से जुड़े थे.

पुलिस के मुताबिक नकली दवा कारोबार की जड़ें काफी गहरी होने के साथसाथ देश के कई राज्यों से होते हुए पड़ोसी देशों बांग्लादेश तक में अपनी गहरी जड़ें जमा चुकी हैं, जिन की कहानी कुछ इस प्रकार से है—

देश में दवा का काफी बड़ा कारोबार है, अमूमन आज हर एक व्यक्ति की निर्भरता दवाओं पर हो गई है. ऐसे में देश में नकली दवा का कारोबार भी तेजी से न केवल पनपा है, बल्कि इन की जड़ें भी काफी गहरी हो चली हैं. कुछ महीने पहले उड़ीसा में बारगढ़ व झाडड़ूकड़ा में नकली दवा के बरामद होने और उस के तार वाराणसी से जुड़े होने की जानकारी होने पर वाराणसी पुलिस सहित एसटीएफ की टीम सक्रिय हो गई थी.

उड़ीसा की घटना के बाद सक्रिय हुए वाराणसी एसटीएफ प्रभारी विनोद सिंह काफी दिनों से नकली दवाओं के कारोबार की छानबीन और सरगना को दबोचने के लिए जाल बिछाए हुए थे. 2 मार्च, 2023 को वह अपनी टीम के साथ बैठ कर इसी पर रणनीति बना रहे थे कि कैसे व किस प्रकार से इस कारोबार के साथ गैंग का खुलासा करना है कि तभी उन का एक विश्वासपात्र साथी सैल्यूट मारते हुए उन के पास आया और धीरे से उन के कान में कुछ बुदबुदाने लगा.

उस की बात सुनते ही खुशी के मारे एसटीएफ प्रभारी विनोद सिंह उछल कर बोल पड़े, ”फिर देर किस बात की है, तुम पहुंच कर नजर रखो, मैं भी पहुंच रहा हूं.’‘

इतना कह कर विनोद सिंह ने फोन कर अपने उच्चाधिकारियों को इस सूचना से अवगत कराया. उन के दिशानिर्देशों के बाद वह भी पुलिस टीम के साथ निकल गए.

कौन था नकली दवाओं का सरगना

नकली दवाओं का कारोबारी अशोक कुमार पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था. भारी मात्रा में नकली दवा बरामद होने के बाद भी गैंग का सरगना अशोक कुमार एसटीएफ टीम को बरगलाने के साथसाथ खुद को फंसाए जाने की बात कहता रहा. वह बारबार बस यही कह रहा था,  ”साहब, मैं बेकुसूर हूं, इन दवाओं से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. दूसरे लोगों ने मुझे फंसाया है.’‘

”ठीक है तो तुम्हीं बताओ कि किन लोगों ने तुम्हें फंसाया है?’‘

इस सवाल पर वह पूरी तरह से एसटीएफ टीम से नजरें बचा कर नीचे की ओर देखने लगा. उसे बोलते नहीं बन रहा था कि वह अब क्या सफाई दे.

सही जानकारी देने पर पुलिस ने उसे बख्श देने की बात कही तो वह पूरी तरह से टूट गया और रट्टू तोते की तरह बोलने लगा था. उस ने कई नामों का खुलासा किया, जो इस गोरखधंधे में उस के साथी थे.

उन में रोहन श्रीवास्तव (प्रयागराज), रमेश पाठक (पटना), दिलीप (बिहार), अशरफ (पूर्णिया), लक्ष्मण (हैदराबाद), नीरज चौबे शिवपुर (वाराणसी), डा. मोनू, रेहान, बंटी, ए.के. सिंह, शशांक मिश्रा आशापुर (वाराणसी), अभिषेक कुमार सिंह न्यू बस्ती परासी (सोनभद्र) थे.

पुलिस के मुताबिक पकड़े गए अशोक कुमार ने बताया कि वह इन्हीं साथियों की मदद से अपने कमरे व गोदाम पर दवाएं स्टोर करता था. बसों पर माल रखने वाले कुलियों के द्वारा बसों, ट्रांसपोर्ट के माध्यमों से कोलकाता, उड़ीसा, बिहार, हैदराबाद व उत्तर प्रदेश के वाराणसी, आगरा, बुलंदशहर में दवा कारोबार करने वालों को सप्लाई किया करता था.

जांच में पता चला कि नकली दवा का धंधा करने वाले गिरोह के सरगना अशोक कुमार ने वर्ष 1987 में बुलंदशहर के किसान इंटरकालेज से हाईस्कूल की पढ़ाई की, लेकिन फेल होने पर पढ़ाई छोड़ दी. इस के बाद गद्ïदे की फैक्ट्री में मजदूरी करने लगा था.

वर्ष 2003 में मजदूरी छोड़ कर 7 साल आटोरिक्शा चलाया पर फायदा नहीं होने के कारण फिर से गद्ïदे की कंपनी में नौकरी करने लगा और लगातार 10 साल तक काम किया. काम के बदले उसे हर महीने 12 हजार रुपए मिलते थे.

एक बार फिर से नौकरी छूट गई और वह फिर से आटो चलाने लगा. इसी दौरान उस की मुलाकात बुलंदशहर के ही नीरज से हुई. नीरज एलोपैथी की नकली दवाओं का काम करता था. नीरज से मिल कर अशोक अपने आटो से नकली दवाओं की सप्लाई करने लगा. यहीं से उसे इस काले कारोबार के बारे में जानकारी हुई.

शुरू में वह नीरज से ही थोड़ीबहुत नकली दवाएं खरीद कर स्थानीय झोलाछाप डाक्टरों को बेचने लगा था. कहते हैं कि आमदनी होने पर व्यक्ति की हसरतें भी बढ़ने लगती हैं, कुछ ऐसा ही अशोक के साथ भी हुआ. नकली दवा का कारोबार चलने पर उस की आमदनी भी बढ़ने लगी थी. जब आमदनी बढ़ी तो लालच भी बढ़ने लगा.

वर्ष 2019 में अमरोहा (यूपी) में नीरज की बेची गई नकली दवा पकड़ी गई थी. इस में नीरज का नाम आने के बाद पुलिस ने नीरज को गिरफ्तार कर लिया था.

इस मामले में नीरज के पिता ने पुलिस वालों के ही खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था, जिस के बाद अशोक वहां से भाग कर 3 साल से वाराणसी में आ कर कैंट रोडवेज बस डिपो के पीछे चर्च कालोनी में किराए पर रहने लगा.

इस के बाद उस ने लहरतारा में किराए पर गोदाम ले कर हिमाचल प्रदेश से नामीगिरामी पेटेंट दवा कंपनियों के नाम की नकली दवाएं बनाने वालों पंचकूला के अमित दुआ, हिमाचल प्रदेश के बद्ïदी के सुनील व रजनी भार्गव से संपर्क कर नकली दवाएं, फरजी बिल्टी व बिल से ट्रांसपोर्ट के माध्यम से मंगाने लगा था.

एसटीएफ टीम के मुताबिक बाहर से दवाएं मंगा कर अशोक रोडवेज बसों में सामान रखने वाले कुलियों के माध्यम से उन्हें प्रदेश के अलगअलग जिलों और अन्य राज्यों में वाराणसी में रह कर भेजा करता था.

नकली दवाओं की आपूर्ति से अशोक को तगड़ा मुनाफा होने लगा था. जिस नकली दवा पर कीमत 100 रुपए दर्ज होती थी, वह उसे हिमाचल प्रदेश से 30 रुपए में मिलती थी. उसे वाराणसी तक लाने पर लगभग 10 रुपए खर्च होते थे. इन दवाओं पर 35 से 40 फीसदी की बचत हो जाती थी.

अशोक कुमार द्वारा नकली दवा कारोबार में शामिल होने की बात स्वीकार कर लेने और उस की निशानदेही पर एसटीएफ प्रभारी विनोद कुमार सिंह ने ड्रग इंसपेक्टर अमित बंसल की मौजूदगी में बरामद दवाओं को सील किया. अशोक कुमार के खिलाफ सिगरा थाने में भादंसं की धारा 420, 468, 471 आदि के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया है.

दूसरी ओर गिरफ्तार अशोक कुमार ने पूछताछ में वाराणसी के 3 लोगों समेत दूसरे 12 लोगों के नामों का खुलासा किया, जो इस नकली दवा कारोबार के धंधे के साझेदार थे. खबर मिलने पर वे सभी अंडरग्राउंड हो गए थे, जिन्हें पुलिस तलाश रही थी.

नकली दवाओं के साथ फरजी मैडिकल रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में महज नकली दवाओं का ही कारोबार नहीं, बल्कि फरजी मैडिकल रिपोर्ट तैयार करने का भी काम किया जाता है. अगस्त 2023 में ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जिस में 2 सरकारी डाक्टरों को फौरन गिरफ्तार भी कर लिया गया था.

दरअसल, जून महीने में दलित समुदाय के सदस्यों पर हमला करने के आरोप में सुरेंद्र विश्वकर्मा और अमित विश्वकर्मा के खिलाफ 2 मुकदमे दर्ज हुए थे. शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि हमले में उन्हें गंभीर चोटें आईं.

सोनभद्र जिला अस्पताल में तैनात डाक्टरों की मेडिको-लीगल रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी. जांच के बाद पुलिस ने सोनभद्र के जिला अस्पताल में तैनात 2 डाक्टरों को पैसे के बदले फरजी मैडिकल रिपोर्ट तैयार करने के आरोप में गिरफ्तार किया.

गिरफ्तार किए गए डाक्टरों की पहचान डा. पुरेंदु शेखर सिंह और डा. दयाशंकर सिंह के रूप में की गई. दोनों की उम्र 50 वर्ष के आसपास थी. उन पर भादंसं की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना), 468 (धोखाधड़ी के उद्ïदेश्य से जालसाजी) और 471 (जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रौनिक रिकौर्ड को असली के रूप में उपयोग करना) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था.

सोनभद्र के सीओ राहुल पांडे के मुताबिक चूंकि सोनभद्र वाराणसी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम अदालत के क्षेत्राधिकार में आता है, ऐसे में गिरफ्तार दोनों डाक्टरों को वाराणसी की एक अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.

दोनों मामलों की जांच के दौरान सुरेंद्र और अमित ने कहा कि उन पर झूठे आरोप लगाए गए हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि शिकायतकर्ताओं को कोई चोट नहीं आई थी. सुरेंद्र और अमित ने दावा किया कि जिला अस्पताल के डाक्टरों द्वारा कथित तौर पर झूठा मेडिको-लीगल तैयार किया गया था.

अपने दावे के समर्थन में सुरेंद्र और अमित ने कहा कि शिकायतकर्ताओं ने जिला अस्पताल से अपना मैडिकल परीक्षण कराया और बताया कि उन के शरीर पर चोट के झूठे निशान हैं.

वहीं, उन्होंने दूसरे अस्पताल से अपनी मैडिकल जांच कराई, जिस में कहा गया कि उन के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई है. उन्होंने दावा किया कि कथित तौर पर जिला अस्पताल के कर्मचारियों को पैसे दे कर झूठी मैडिकल रिपोर्ट हासिल की गई.

दोनों रिपोर्टों के आधार पर, अगस्त में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, जिस में कहा गया था कि अस्पतालों में झूठी मैडिकल रिपोर्ट तैयार की जा रही थी. जिस की शिकायत के बाद वाराणसी भ्रष्टाचार इकाई ने 2 डाक्टरों को गिरफ्तार किया.

ऐसे बच सकते हैं नकली दवाओं से

डा. ए.के. सिन्हा, वरिष्ठ चिकित्सक, मंडलीय अस्पताल, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

देश में दवाओं का एक लंबा कारोबार है. किसी आम व्यक्ति के बस की बात नहीं है कि वह आसानी से

दवाओं की पहचान कर सके. फिर भी जहां तक हो सके, जेनेरिक दवाएं और चिकित्सक के परामर्श, प्रतिष्ठित मैडिकल दुकान से ही लें, साथ ही साथ दवा का बिल भी लेना न भूलें. ताकि दवाओं के गलत और नकली होने की दशा में उस की पहचान हो सके.

मिर्जापुर मंडलीय अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा. ए.के. सिन्हा का मानना है कि प्रत्येक तीमारदार और मरीज को डाक्टर द्वारा लिखी हुई दवाओं का ही सेवन करना चाहिए और प्रतिष्ठित दुकानों से ही दवा वह भी रसीद के साथ लेनी चाहिए. इस से नकली दवाओं के जाल में फंसने से काफी हद तक बचा जा सकता है.

वह कहते हैं कि अकसर लोग सस्ती दवा के चक्कर में बिना डाक्टरी परामर्श के ही दवा लेने के साथ ही इस का सेवन भी करना शुरू कर देते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो होता ही है. यह जोखिम के साथसाथ जेब पर भी भारी पड़ता है.

वह कहते हैं कि देश में मैडिकल सिस्टम व्यापक पैमाने पर दिनप्रतिदिन व्यापक रूप लेता जा रहा है, ऐसे में कुछ लोग चंद पैसों के लिए जीवनरक्षक दवाओं की आड़ में नकली दवाओं का कारोबार कर लोगों की जान से खिलवाड़ करते आ रहे हैं. ऐसे लोगों पर कठोरतम काररवाई होनी चाहिए, ताकि दोबारा कोई इस प्रकार का धंधा करने का साहस तो क्या सोचने की भी हिम्मत न कर सके.

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