उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर से कोई 40-45 किलोमीटर दूर बसा है बीरबल अकबरपुर गांव. इसी गांव में शिवबालक निषाद अपनी पत्नी ममता और 2 बेटियों व एक बेटे के साथ रहता था.

बात 25 जनवरी, 2019 की है. शिवबालक शाम को घर लौटा तो उस का 10 वर्षीय बेटा विवेक घर में नहीं दिखा. पूछने पर बड़ी बेटी ने बताया कि विवेक दोपहर 12 बजे स्कूल से लौट कर खाना खाने के बाद घर से यह कह कर निकला था कि खेलने जा रहा है, तब से वह घर नहीं लौटा.

बेटी की बात सुन कर शिवबालक का माथा ठनका. उस की समझ में नहीं आया कि आखिर बेटा कहां चला गया जो अभी तक नहीं आया. पत्नी घर में नहीं थी, वह अपने मायके फफुआपुर गई हुई थी, इसलिए वह बेटे को ढूंढने के लिए निकल पड़ा. उस ने पड़ोस के बच्चों से पूछा तो उन्होंने बताया कि दोपहर के समय तो विवेक उन के साथ खेल रहा था. उस के बाद कहां गया, उन्हें पता नहीं.

शिवबालक के पड़ोस में हरिकिशन का घर था. शिवबालक ने उस के मंझले बेटे अनिल को विवेक के गायब होने की बात बताई तो वह भी परेशान हो उठा. वह गांव के युवकों को ले कर शिवबालक के साथ विवेक को ढूंढने में जुट गया. इन लोगों ने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन विवेक का कहीं पता नहीं चला. घुरऊपुर, गुरडूनपुरवा टैंपो स्टैंड, सजेती बसस्टाप, बाजार आदि जगहों पर भी उस की खोज की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

शिवबालक ने बेटे के गायब होने की जानकारी पत्नी को दे दी थी. ममता को यह खबर मिली तो वह तुरंत गांव लौट आई. उस ने भी अपने हिसाब से विवेक को खोजा. आधी रात तक खोजबीन के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला.

किसी अनहोनी की आशंका में शिवबालक और ममता ने जैसेतैसे रात बिताई. रात भर उन के मन में तरहतरह के खयाल आते रहे. सवेरा होते ही पड़ोसी हरिकिशन का बेटा अनिल शिवबालक के पास आया. वह बोला, ‘‘चाचा, विवेक को हम लोगों ने बहुत खोज लिया. अब हमें पुलिस का सहारा लेना चाहिए. चलो थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं.’’

उस की बात शिवबालक को भी ठीक लगी. तब दोनों थाना सजेती जा पहुंचे. सुबह का समय था, इसलिए एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह थाने में ही मौजूद थे. शिवबालक ने उन्हें अपने बेटे के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने विवेक की गुमशुदगी दर्ज करा कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

अमरेंद्र बहादुर भी कई सिपाहियों के साथ गांव के नजदीक के खेतों में बच्चे को ढूंढने लगे. पुलिस के साथ गांव वाले भी थे. वह भी पुलिस की मदद कर रहे थे. इस बीच पुलिस ने गौर किया कि विवेक की खोज में अनिल निषाद कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखा रहा है.

सर्च अभियान के दौरान ही अनिल ने एसओ से कहा, ‘‘दरोगाजी, चलिए उधर सरसों के खेत में देख लेते हैं.’’

अनिल की यह बात एसओ अमरेंद्र बहादुर सिंह की समझ में नहीं आई कि यह सरसों के खेत की ओर चलने को क्यों कह रहा है. फिर भी वह बिना कुछ कहे अनिल के पीछेपीछे सरसों के खेत की ओर चल पडे़.

खेत के अंदर जा कर उस ने सरसों के कुछ पौधों को हाथ से इधरउधर किया, फिर चीख कर बोला, ‘‘सर, विवेक की लाश यहां पड़ी है.’’

उस की बात सुनते ही एसओ तुरंत उस के पास पहुंच गए. सचमुच सरसों की फसल के बीच विवेक की लाश पड़ी थी. लाश को घासफूस से ढका गया था. लेकिन हवा के झोंकों से घासफूस बिखर गया था. जिस से लाश साफ दिखाई दे रही थी.

बेटे की लाश देख कर शिवबालक दहाड़ें मार कर रोने लगा. इस के बाद तो गांव में जिस ने भी सुना, वही लाश देखने भाग खड़ा हुआ. सूचना मिलने पर मृतक विवेक की मां ममता भी रोतीबिलखती वहां पहुंच गई और शव से लिपट कर रोने लगी.

इधर थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर ने बच्चे की लाश बरामद करने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. नतीजतन कुछ देर बाद एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह और सीओ (घाटमपुर) शैलेंद्र सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया.

उन्हें उस के शरीर पर कोई घाव दिखाई नहीं दिया. गले के निशान से ही अंदाजा लग गया कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. उस के मुंह और नाक में मिट्टी भी भरी हुई थी. हत्या के समय हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि मृतक की आवाज न निकल सके.

सीओ शैलेंद्र सिंह ने विवेक के पिता शिवबालक से पूछा कि उन्हें बेटे की हत्या का किसी पर शक तो नहीं है.

‘‘साहब, बीते साल जून महीने में गांव के इंद्रपाल निषाद के बेटे सर्वेश ने मेरी बेटी नीलम (परिवर्तित नाम) को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी. इस की रिपोर्ट दर्ज कराई गई तो पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल भेज दिया था. 2 महीने पहले ही वह जेल से छूट कर आया है. हो सकता है मेरे बेटे की हत्या में उस का हाथ हो.’’ शिवबालक ने बताया.

उसी समय थानाप्रभारी अमरेंद्र बहादुर सिंह की निगाह अनिल निषाद पर पड़ी. वह कुछ दूरी पर एक बच्चे से बात कर रहा था और उसे अंगुली दिखा कर धमका रहा था.

थानाप्रभारी की निगाह में अनिल पहले ही शक के घेरे में था. अब उन का शक और गहरा गया. जिस बच्चे को वह धमका रहा था, उन्होंने उस बच्चे को अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है, किस गांव में रहते हो?’’

‘‘मेरा नाम सुमित है. मैं इसी गांव में रहता हूं.’’ बच्चे ने बताया.

‘‘तुम विवेक को जानते थे?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘हां साहब, वह मेरा पक्का दोस्त था. वह कक्षा 3 में और मैं कक्षा 4 में पढ़ता हूं.’’

‘‘विवेक को कल किसी के साथ जाते देखा था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां साहब, अनिल उसे खेतों की ओर ले गया था. अनिल ने मुझे 20 रुपए दे कर विवेक को बुलवाया था. तब मैं विवेक को बुला लाया था. इस के बाद अनिल उसे खेतों की तरफ ले कर चला गया था. अनिल अभी मुझे इसी बात की धमकी दे रहा था कि यह बात किसी को न बताना.’’ सुमित ने बताया.

सुमित ने जो बातें पुलिस को बताईं, उस से अनिल पूरी तरह से शक के घेरे में आ गया. उधर शिवबालक के बयानों से सर्वेश पर भी शक था. गांव वालों से भी पुलिस को पता चला कि सर्वेश और अनिल गहरे दोस्त हैं. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह को दे दी तो उन्होंने उन दोनों लड़कों से पूछताछ करने के निर्देश दिए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के विवेक का शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय, कानपुर भिजवा दिया. फिर उन्होंने सर्वेश निषाद और अनिल को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आए.

पुलिस ने सब से पहले सर्वेश निषाद को अनिल से अलग ले जा कर विवेक की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने विवेक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सर्वेश ने बताया कि उस ने अपने दोस्त अनिल की मदद से विवेक की हत्या की थी.

सर्वेश निषाद ने हत्या का जुर्म कबूला तो अनिल को भी टूटते देर नहीं लगी. दोनों से पूछताछ के बाद विवेक की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर से 47 किलोमीटर दूर एक बड़ी आबादी वाला गांव बीरबल अकबरपुर बसा हुआ है. यह एक ऐतिहासिक गांव है. मुगल बादशाह अकबर का यहां किला है, जो समय के थपेड़ों के साथ अब खंडहर में तब्दील हो गया है.

यमुना किनारे बसे इस गांव की आबादी लगभग 10 हजार है. बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर जब आगरा से अकबरपुर आते थे, तो इसी किले में दरबार लगाते थे.

इसी किले में अकबर की मुलाकात बीरबल से हुई थी. बीरबल की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में रख लिया. अपनी बुद्धिमत्ता के चलते बीरबल दरबार में चर्चित हुए तो इस अकबरपुर गांव का नाम बीरबल अकबरपुर पड़ गया. समय बीतते सरकारी रिकौर्ड में भी गांव का नाम बीरबल अकबरपुर दर्ज हो गया.

हाजिरजवाबी और बुद्धिमत्ता का लोहा मनवाने वाले बीरबल का जन्म अकबरपुर गांव से एक किलोमीटर दूर तिलौची में हुआ था. बीरबल के बाल्यावस्था के समय ही उन के पिता की मृत्यु हो गई थी. निर्धन परिवार में जन्मे बीरबल का पालनपोषण उन की मां ने बड़ी कठिन परिस्थितियों में किया था. खेतों पर मजदूरी करने के दौरान मां बीरबल को बांस की टोकरी में लिटा कर लाती थीं और खेत के एक कोने में टोकरी को रख देती थीं.

कहा जाता है कि एक रोज एक साधु खेत से हो कर गुजर रहा था, तभी उस की नजर बीरबल पर पड़ी. उस साधु ने बीरबल की हस्तरेखा तथा मस्तक की लकीरों को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘माई, तुम्हारा यह लाल बड़ा बुद्धिमान होगा. यह अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा बड़ेबड़ों से मनवाएगा और पूरे देश में चर्चित होगा. यह राजदरबारी होगा.’’

उस साधु की बात सुन कर बीरबल की मां उस के चरणों में झुक गईं और बोलीं, ‘‘बाबा, मैं मजदूरी करती हूं. बेहद गरीब हूं. तुम्हें दक्षिणा भी नहीं दे सकती और न ही भोजन करा सकती हूं. मुझे क्षमा करना.’’ कहते हुए वह रोने लगीं.

साधु बोला, ‘‘रो मत माई, मैं तुम से कुछ मांगने नहीं आया हूं. मैं तो इधर से जा रहा था तो मेरी नजर पड़ गई.’’

इस के बाद वह साधु बीरबल को आशीर्वाद दे कर चला गया. समय बीतते इस साधु की भविष्यवाणी सच निकली. बीरबल, अकबर के राजदरबारी बने और अपनी हाजिरजवाबी के लिए चर्चित हुए.

इसी बीरबल अकबरपुर गांव में शिवबालक निषाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा विवेक था.

शिवबालक ड्राइवर था. वह लोडर चलाता था. इस के अलावा उस के पास 3 बीघा खेती की जमीन भी थी. लेकिन वह जमीन ऊसरबंजर थी. उस में ज्वारबाजरा के अलावा कोई दूसरी फसल नहीं होती थी. अतिरिक्त आमदनी के लिए शिवबालक ने दूध का व्यवसाय शुरू कर दिया था. वह सुबह उठ कर गांव से दूध इकट्ठा करता फिर दूध को घाटमपुर कस्बा ले जा कर बेचता था.

वक्त यों ही गुजरता गया. वक्त के साथ शिवबालक के बच्चे भी सालदरसाल बड़े होते गए. बड़ी बेटी नीलम 14 साल की उम्र पार कर चुकी थी. तीनों बच्चे गांव के एसएस शिक्षा सदन स्कूल में पढ़ते थे. नीलम नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शारदा के घर से कुछ दूरी पर सर्वेश निषाद रहता था. वह एक अच्छे परिवार का था. सर्वेश अपने पिता की 3 संतानों में मंझला था. वह थोक में सब्जी बेचने का काम करता था. गांव के किसानों से सस्ते दाम पर सब्जियां खरीद कर उन्हें कानपुर की नौबस्ता थोक सब्जी मंडी में अच्छे दामों पर बेचा करता था.

चूंकि सर्वेश अच्छा कमाता था, सो खूब ठाटबाट से रहता था. गले में सोने की चेन, अंगुलियों में अंगूठियां और कलाई में महंगी घड़ी उस की पहचान थी. उस के पास महंगा मोबाइल रहता था. सर्वेश जिस तरह से अच्छी कमाई करता था, उसी तरह शराब और अय्याशी में वह अपनी कमाई लुटाता था.

उस के पिता इंद्रपाल उस की इस फिजूलखर्ची से परेशान थे. उन्होंने उसे बहुत समझाया और डांटा फटकारा भी लेकिन सर्वेश का रवैया नहीं बदला.

एक रोज नीलम स्कूल जा रही थी, तभी सर्वेश की नजर उस पर पड़ी. खूबसूरत नीलम को देख कर सर्वेश का मन मचल उठा. वह उसे फांसने का तानाबाना बुनने लगा. मौका मिलने पर वह उस से बात करने का प्रयास करता. लेकिन नीलम उसे झिड़क देती थी. तब सर्वेश खिसिया जाता.

आखिर जब उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने एक रोज मौका मिलने पर नीलम का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारी खूबसूरती ने मेरा चैन छीन लिया है. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.’’

नीलम अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली, ‘‘सर्वेश, तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो, मैं तुम्हारी जातिबिरादरी की हूं और इस नाते तुम मेरे भाई लगते हो. भाई को बहन से इस तरह की बातें करते शर्म आनी चाहिए.’’

‘‘प्यार अंधा होता है नीलम. प्यार जातिबिरादरी नहीं देखता.’’ वह बोला.

‘‘होगा, लेकिन मैं अंधी नहीं हूं. मैं ऐसा नहीं कर सकती. नफरत करती हूं. और हां, आइंदा कभी मेरा रास्ता रोकने या हाथ पकड़ने की कोशिश मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई न होगा, समझे.’’ नीलम ने धमकाया.

सर्वेश समझ गया कि नीलम अब ऐसे नहीं मानेगी. उसे अपनी खूबसूरती और जवानी का इतना घमंड है तो वह उस के घमंड को हर हाल में तोड़ कर रहेगा.

सर्वेश का एक दोस्त था अनिल निषाद. दोनों ही हमउम्र थे सो उन में खूब पटती थी. एक रोज दोनों शराब पी रहे थे, उसी दौरान सर्वेश बोला, ‘‘यार अनिल, मैं नीलम से प्यार करता हूं, लेकिन वह हाथ नहीं रखने दे रही.’’

‘‘देख सर्वेश, मैं एक बात बताता हूं कि नीलम ऐसीवैसी लड़की नहीं है. उस का पीछा छोड़ दे. कहीं ऐसा न हो कि उस का पंगा तुझे भारी पड़ जाए.’’ अनिल ने सर्वेश को समझाया.

‘‘अरे छोड़ इन बातों को, मैं भी जिद्दी हूं. मैं आज चैलेंज करता हूं कि नीलम अगर राजी से नहीं मानी तो मुझे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा.’’ सर्वेश ने कहा.

सर्वेश ने नीलम के ऊपर लाख डोरे डालने की कोशिश की लेकिन हर बार उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ा. बात 13 जून, 2018 की है. उस रोज शाम 5 बजे नीलम दिशा मैदान जाने को घर से निकली, तभी सर्वेश ने उस का पीछा किया. नीलम जैसे ही झाडि़यों की तरफ पहुंची, तभी सर्वेश ने उसे दबोच लिया और उसे जमीन पर पटक कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगा.

नीलम उस की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी लेकिन सर्वेश पर जुनून सवार था. तब नीलम ने हिम्मत जुटाई और सर्वेश के हाथ पर दांत से काट लिया. सर्वेश की पकड़ ढीली हुई तो वह चिल्लाती हुई सिर पर पैर रख कर गांव की ओर भागी. अपने घर पहुंचते ही नीलम मूर्छित हो कर देहरी पर गिर पड़ी.

ममता ने नीलम को अस्तव्यस्त कपड़ों में देखा तो समझ गई कि उस के साथ क्या हुआ है. मां ने नीलम के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो कुछ देर बाद उस ने आंखें खोल दीं. उस के बाद उस ने मां को सर्वेश की करतूत बताई. यह सुन कर ममता गुस्से से भर उठी.

वह शिकायत ले कर सर्वेश के पिता इंद्रपाल के पास पहुंची तो उस ने बेटे को डांटनेसमझाने के बजाय उस का पक्ष लिया और उलटे उस की बेटी नीलम के चरित्र पर ही अंगुली उठाने लगा.

ममता ने यह बात अपने पति को बताई. इस के बाद दोनों पतिपत्नी थाना सजेती पहुंच गए. उन्होंने सर्वेश के खिलाफ दुष्कर्म की कोशिश करने का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हुई और आननफानन में सर्वेश को गिरफ्तार कर कानपुर जेल भेज दिया.

सर्वेश 4 महीने जेल में रहा. 20 अक्तूबर, 2018 को उस की जमानत हुई. जेल से बाहर आने के बाद सर्वेश के दिल में ममता और उस की बेटी नीलम के प्रति बदले की आग भभक रही थी. क्योंकि उन की वजह से वह जेल जो गया था.

बदला कैसे लिया जाए, इस विषय पर उस ने अपने दोस्त अनिल से विचारविमर्श किया तो तय हुआ कि ममता के कलेजे के टुकड़े विवेक को मार दिया जाए. विवेक शिवबालक का एकलौता बेटा था. इस के बाद दोनों ने योजना बनाई और समय का इंतजार करने लगे.

25 जनवरी, 2019 को अपराह्न 2 बजे शिवबालक का 10 वर्षीय बेटा विवेक अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा था, तभी सर्वेश की नजर उस पर पडी़. अनिल भी उस के साथ था. सर्वेश ने अनिल के कान में कुछ कानाफूसी की फिर गांव के बाहर चला गया.

इधर अनिल ने विवेक के साथ खेल रहे सुमित को अपने पास बुलाया और उसे 20 रुपए का नोट दे कर कहा, ‘‘सुमित, तुम विवेक को ले कर गांव के बाहर ले आओ. वहां तुम दोनों को बिस्कुट, टौफी खिलाएंगे.’’

सुमित लालच में आ गया. वह विवेक को ले कर गांव के बाहर पहुंच गया. अनिल वहां विवेक के आने का ही इंतजार कर रहा था.

अनिल ने सुमित को वहीं से वापस कर दिया. वह विवेक को बहला कर सरसों के खेत पर ले गया. वहां सर्वेश पहले से मौजूद था. नफरत से भरे सर्वेश ने विवेक का हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए खेत के अंदर ले गया. और विवेक को जमीन पर पटक कर बोला, ‘‘तेरी बहन ने मुझे जेल भिजवाया था. उस का बदला आज तुझे जान से मार कर लूंगा.’’

अनिल जो अब तक खेत के बाहर रखवाली कर रहा था, वह भी खेत के अंदर पहुंच गया. इस के बाद दोनों मिल कर विवेक का गला दबाने लगे. विवेक चीखने लगा तो दोनों ने गला दबाकर विवेक को मार डाला और फिर लाश को घासफूस से ढक कर वापस घर आ गए.

इधर शाम 5 बजे शिवबालक घर आया तो उसे विवेक दिखाई नहीं दिया, विवेक के बारे में उस ने शारदा से पूछा तो उस ने गली में खेलने की बात बताई. लेकिन शिवबालक का माथा ठनका.

वह उस की खोज में जुट गया. लेकिन विवेक नहीं मिला. दूसरे दिन उस की लाश सरसों के खेत में पुलिस की मौजूदगी में मिली. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो बदला लेने के लिए मासूम की हत्या का परदाफाश हुआ.

27 जनवरी, 2019 को थाना सजेती पुलिस ने अभियुक्त सर्वेश निषाद व अनिल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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