जब शरद ने अपने घर से पैसे नहीं मंगाए तो उस के साथियों ने मिल कर उस की पिटाई करनी शुरू कर दी, साथ ही उस की पिटाई का वीडियो भी बनाते रहे.

पहले तो वे उसे ऐसे ही पीटते रहे. जब इस पर भी शरद ने घर से पैसे नहीं मंगाए तो उस के कपड़े उतार कर उस के साथ मारपीट की. फिर उसे स्प्रे फ्लेम से जलाया. यही नहीं, हद तो तब हो गई जब शरद से कहा गया कि वह अपने गुप्तांग में खुद ही ईंट बांध कर उठक बैठक करे. शरद को डर के मारे यह भी करना पड़ा.

शरद के साथ यह सब एकदो दिन नहीं, पूरे 11 दिनों तक होता रहा और वह इन लोगों के सामने रोताबिलखता और गिड़गिड़ाता रहा, पर इन लोगों को उस पर जरा भी दया नहीं आई.

उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के थाना लवेदी का रहने वाला 17 साल का शरद (बदला हुआ नाम) 12वीं पास करने के बाद नीट (डाक्टरी की प्रवेश परीक्षा) की तैयारी करने के लिए कानपुर आ गया था. कानपुर के थाना काकादेव के अंतर्गत आने वाली एक कोचिंग में उस ने एडमिशन लिया और वहीं पास ही एक मकान में किराए का कमरा ले कर रहने लगा.

इटावा के और भी तमाम लड़के कानपुर में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. घर से दूर अकेले रह रहे शरद की ऐसे ही कुछ लड़कों से दोस्ती हो गई.

किसी अन्य शहर में कोई अपने इलाके का मिल जाता है तो वह अपना ही लगने लगता है. वे लड़के शरद से उम्र में बड़े और समझदार थे, इसलिए जब कभी समय मिलता, शरद उन के कमरे पर चला जाता. उन से मिल कर दिमाग पर जो पढ़ाई का बोझ होता था, वह भी थोड़ा हलका हो जाता था और उन से कुछ सीखने को भी मिल जाता था.

21 अप्रैल, 2024 को कोचिंग की छुट्टी थी. शरद पढ़ते पढ़ते ऊब गया था, इसलिए उस ने सोचा कि क्यों न दोस्तों के पास जा कर मूड थोड़ा हलका कर ले. वह काकादेव के पांडुनगर में ही रहने वाले अपने दोस्तों शिवा और केशव के यहां चला गया.

शरद के ये दोनों दोस्त शिवा और केशव भी इटावा के थाना बकेवर के रहने वाले थे. दोनों ही कानपुर के काकादेव पांडुनगर में रह कर एसएससी की तैयारी कर रहे थे. बातचीत में जब शरद ने कहा कि उस के पास पैसे नहीं है तो शिवा और केशव ने कहा, ”तुम औनलाइन गेम क्यों नहीं खेल लेते, तुरंत पैसे मिल जाएंगे.’’

”पहली बात तो यह कि मैं ने कभी औनलाइन कोई गेम खेला नहीं है. फिर हार गया तो जो पैसे हैं, वे भी चले जाएंगे. मैं नहीं खेलता कोई गेमवेम.’’ शरद बोला.

”कोई नहीं हारता. अगर सभी हारते रहते तो अब तक ये सारे गेम कब का बंद हो गए होते. देखते नहीं बड़ेबड़े क्रिकेटर और हीरो इन गेम का प्रचार करते हैं. एक बार खेल कर तो देखो. थोड़े पैसे लगाना. जीत जाना तो आगे खेलना, वरना बंद कर देना.’’ केशव ने कहा.

शरद अभी नासमझ ही तो था. दोस्तों के कहने में आ गया. उस ने एविएटर गेम डाउनलोड किया और खेलना शुरू किया. शुरूशुरू में वह जीता. इस गेम में फाइटर विमान उड़ाना होता है. इस में कई लोग एक साथ खेलते हैं. गेम खेलने वाला खुद अपने साथी चुन सकता है. जिस का विमान सब से पहले क्रैश हो जाता है, वह हार जाता है.

शुरू में शरद भी जीतता रहा. उस ने करीब 50 हजार रुपए जीते, लेकिन जब हारने लगा तो जीते हुए 50 हजार रुपए तो हार ही गया, दोस्तों के भी करीब 20 हजार रुपए हार गया.

इस के बाद दोस्तों ने उस से अपने रुपए मांगने शुरू किए. कुछ दिन तो शरद टालता रहा. पर जब ज्यादा दिन हो गए तो एक दिन उस के दोस्तों शिवा और केशव ने अपने कुछ अन्य दोस्तों तन्मय चौरसिया, संजीव यादव, अभिषेक कुमार वर्मा और योगेश कुमार विश्वकर्मा के साथ मिल कर शरद को पकड़ कर अपने कमरे पर बंधक बना लिया.

इन में तन्मय चौरसिया कानपुर के काकादेव के रानीगंज का रहने वाला था. बीफार्मा की पढ़ाई कर के वह एक कोचिंग संचालक की कार चलाता था. जबकि जौनपुर का रहने वाला संजीव कानपुर के काकादेव में ही रह कर यूपीएससी की तैयारी कर रहा था.

वहीं महोबा के श्रीनगर कोतवाली क्षेत्र का रहने वाला अभिषेक कुमार वर्मा काकादेव के आर.एस. पुरम में रह कर नीट की तैयारी कर रहा था. उसी तरह सिद्धार्थनगर भिटिया का रहने वाला योगेश कुमार विश्वकर्मा भी काकादेव में रह कर नीट की तैयारी कर रहा था.

इन सभी लोगों का पूरा एक ग्रुप था. ये सभी मिल कर अपने से छोटे बच्चों को इसी तरह गेम खिला कर उन से पैसे ऐंठते थे. शिवा और केशव ने शरद को दिए तो थे 20 हजार रुपए, पर ब्याज जोड़ कर उस से 50 हजार रुपए मांग रहे थे. इन सभी का लीडर तन्मय चौरसिया था.

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इन छहों लोगों ने शरद से कहा कि वह अपने घर से पैसे मंगा कर उन के पैसे दे. जब उस ने ऐसा नहीं किया तो उन्होंने शरद को प्रताडि़त कर पिटाई भी की.

इन लोगों ने शरद के साथ जो मारपीट की थी, उस की जो वीडियो बनाई थी, उन वीडियो को वायरल करने की धमकी दे कर उसे प्रताडि़त करते रहे और अपने पैसे मांगते रहे. आखिर 11 दिन बाद यानी 5 मई, 2024 को इन लोगों ने शरद के साथ मारपीट की वीडियो वायरल कर दी.

जब इस बात की जानकारी शरद को हुई तो उसे लगा कि जिस इज्जत को बचाने के लिए उस ने इतनी प्रताडऩा सही, वह तो अब सब खत्म हो गई. तब 5 मई की शाम को शरद ने अपने घर वालों को फोन कर के सारी बात बता दी.

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                                                       गिरफ्तार आरोपी

इस के बाद 6 मई की सुबह थाना काकादेव में शरद के घर वालों ने 6 लोगों— शिवा, केशव, तन्मय, संजीव, योगेश और अभिषेक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस के पहुंचने से पहले ही ये सभी आरोपी फरार हो गए थे. लेकिन काकादेव पुलिस ने शाम तक सभी को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पूछताछ में सभी अभियुक्तों ने अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया था.

शरद का कहना था कि 4 लोगों ने उस के साथ कुकर्म भी किया था. उस की भाभी ने भी मीडिया से बातचीत करते समय यह बात कही थी, पर पुलिस ने कुकर्म की धारा नहीं जोड़ी है. पुलिस ने छहों आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 34, 343, 323, 500, 506, 307, 7/8 पोक्सो ऐक्ट और 67ख आईटी ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया है.

अंत में प्रैस कौन्फ्रेंस के दौरान थाना काकादेव के एसएचओ के.पी. गौड़ ने कहा कि नाबालिग युवक बहुत मजबूत था. मैडिकल में उस के पूरे शरीर पर चोट के निशान मिले. 11 दिनों तक बंधक बना कर उसे बड़ी बेरहमी से मारापीटा गया. लड़का हिम्मत वाला था, वरना मर जाता. उसे इस तरह यातना दी गई थी कि केवल उस की जान जानी बाकी थी.

औनलाइन गेम खेलने के बाद इतनी यातना सहनी होगी, शरद ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. बहरहाल, उसे यातना देने वाले अब जेल पहुंच गए हैं.

ऐसा ही कुछ रूपेश के साथ भी हुआ था. 6 महीने पहले ही रूपेश का विवाह हुआ था. पत्नी प्रिया एक आईटी कंपनी में नौकरी करती थी. प्रिया की अकसर नाइट शिफ्ट होती थी, इसलिए वह दिन में घर में रहती थी. रूपेश भी एक कंपनी में नौकरी करता था. उस की ड्यूटी दिन की होती थी, इसलिए रात में वह अकेला ही घर में रहता था.

एक दिन उस के मोबाइल पर एक मैसेज आया, जिस में एक गेमिंग एप्लीकेशन का लिंक था. उस ने सोचा कि चलो खेल कर देखते हैं कि इस में क्या होता है. उस गेम का नाम था ‘रमी लोटस’. यह एक स्लाइडिंग गेम था. एक जैसी स्लाइड आती थीं. जीतने पर कुछ रिवाड्र्स मिलते थे. शुरुआत में वह जीतने लगा. उस ने 500 रुपए लगाए तो उसे 700 रुपए मिले. एक हजार रुपए लगाए तो 15 सौ रुपए मिले. इसी तरह लगभग एक सप्ताह चला.

खाते में पैसे आने लगे तो लालच बढ़ता गया. वह अधिक पैसे लगाने लगा. इस में भी वह न जीत की स्थिति में होता था और न हार की स्थिति में यानी वह न जीतता था और न हारता था. इस तरह 12 से 15 दिन बीत गए.

रूपेश को एप्लीकेशन पर विश्वास हो गया तो वह बड़ी रकम लगाने लगा. अचानक वह हारने लगा. हारी गई रकम वापस पाने के लिए वह और अधिक रुपए लगाता गया और वह लगातार हारता रहा. इस तरह उस ने करीब ढाई लाख रुपए गंवा दिए. यह उस की पिछले ढाईतीन साल की बचत थी. वह पैसे वापस पाने के लिए अधिक रुपए लगाता रहा और लगातार हारता रहा.

जब पास का सारा पैसा खत्म हो गया तो उस ने क्रेडिट कार्ड से पैसा निकाला, शेयर मार्केट से पैसा लिया. जब सब जगह से उम्मीदें खत्म हो गईं तो रूपेश को चिंता हुई. जिस यूपीआई से वह पैसे ट्रांसफर करता था, उस ऐप कंपनी के कुछ लोगों के नाम उसे मिले. वे लोग बेंगलुरु, इंदौर और मुंबई के थे. रूपेश ने उन्हें मेल किया, ‘आप लोगों ने गेम को इस तरह सेट किया है कि मेरा सारा पैसा डूब गया.’

उन लोगों ने रूपेश को जवाब भेजा कि ‘आप जीता हुआ पैसा तुरंत वापस कर दीजिए, उस के बाद ही आप द्वारा लगाई गई रकम वापस की जाएगी.’

उन के इस जवाब से रूपेश समझ गया कि उसे एक बार फिर फंसाने की कोशिश की जा रही है. रूपेश ने जवाब दिया, ‘अब मैं कोई रकम लौटा नहीं सकता.’

रूपेश ने थाने जा कर पुलिस से मदद मांगी. पर पुलिस ने मदद करने की कौन कहे, उस की शिकायत तक नहीं दर्ज की. पुलिस का कहना था कि जिस ऐप पर उस ने अपने पैसे गंवाए हैं, वह मान्यता प्राप्त एप्लीकेशन है. वह औनलाइन शिकायत दर्ज कराए तो कुछ हो सकता है.

रूपेश ने औनलाइन शिकायत की. पर कुछ नहीं हुआ. 3 महीने तक वह भागदौड़ करता रहा, काफी परेशान हुआ. लेकिन कहीं से उसे कोई मदद नहीं मिली. अब उस ने अपना पूरा ध्यान अपनी नौकरी पर लगा दिया है.

विवेक भी कैसे हारा पौने 3 करोड़

अब बात करते हैं इंदौर के विवेक की, जिस की कहानी रूपेश से बिलकुल अलग और भयानक है. विवेक ने बीकौम तक की पढ़ाई की थी. पिता की सोनेचांदी के गहनों की दुकान थी. पिता की मौत के बाद वह अपनी पुश्तैनी दुकान संभालने लगा. दुकान का मालिक बनते ही वह औनलाइन गेमिंग ऐप पर सट्टा लगाने लगा. इस में उस का करीब 12 लाख रुपए का नुकसान हुआ.

इस नुकसान की भरपाई के लिए उस ने अधिक पैसा लगाया. इंदौर में उस की एक प्रौपर्टी 2 करोड़ 57 लाख रुपए में बिकी थी. उस ने सारा पैसा औनलाइन गेमिंग में लगा दिया और अंत में वह सारा पैसा हार गया. 10 लाख रुपए उस ने 20 प्रतिशत ब्याज पर उधार लिए. उन्हें भी वह हार गया. उधार न दे पाने की वजह से लोगों ने उस पर ठगी के मुकदमे दर्ज करा दिए.

विवेक की बहन सौफ्टवेयर इंजीनियर थी. पति की मौत के बाद वह यूके चली गई थी. वह वहां से वापस आई तो उसे भाई के बारे में पता चला. उस ने विवेक को रिहैबिलिटेशन सेंटर में भरती कराया. 15 महीने उस का इलाज चला. इलाज के बाद वह सेंटर से बाहर आ गया है और अब उस की स्थिति पहले से काफी ठीक है.

एक भाई ने गंवाए 40 लाख तो दूसरे ने कैसे गंवा दिए 7 करोड़

पिछले साल मुंबई से 28 साल के रोहित को इंदौर के अंकुर रिहैबिलिटेशन सेंटर में लाया गया था. उसे औनलाइन गेमिंग की ऐसी लत लगी थी कि वह 40 लाख रुपए हार गया था. रिहैब सेंटर में उस के रिश्तेदार ले कर आए थे. इलाज के बाद स्थिति में सुधार हुआ. इस साल उस के छोटे भाई को उसी रिहैब सेंटर में लाया गया है.

बड़े भाई की अपेक्षा छोटा भाई औनलाइन गेमिंग में बहुत बुरी तरह फंसा था. उस ने 7 करोड़ रुपए गंवाए थे. इतना पैसा गंवाने के बाद उस ने आत्महत्या की कोशिश की. इन दोनों भाइयों के पिता की मौत हो चुकी है और मां यूएस में रहती हैं. छोटे भाई का इलाज अभी भी रिहैब सेंटर में चल रहा है.

लखनऊ के एक डाक्टर ने ‘द लायन वेबसाइट’ में पैसा लगाया था. यह वेबसाइट क्रिकेट, फुटबाल, टेनिस, पोकर, तीन पत्ती और कैसिनो द्वारा गैंबलिंग कराती है. डाक्टर ने 50 हजार रुपए लगाए और 2 लाख रुपए जीते. जीतने के बाद उन्हें 2 लाख 50 हजार रुपए मिलने थे, पर मिले नहीं.

कंपनी के लोग उन्हें वाट्सऐप चैट पर पैसा देने के लिए अलगअलग तारीखें देते रहे. बाद में उन्हें बताया गया कि उन के नाम से किसी और ने कंपनी से पेमेंट ले लिया है. इस के बाद जवाब देना बंद कर दिया गया.

डाक्टर के पास पेमेंट नंबर और चैट के सारे सबूत हैं, लेकिन अब सारे नंबर बंद हो चुके हैं. इसलिए वह कुछ नहीं कर पा रहे हैं. पुलिस के पास जाने से भी घबराते हैं, क्योंकि पुलिस तो यही कहेगी कि आखिर जुआ खेलने की क्या जरूरत थी.

किस तरह फंसाया जाता है लोगों को

अब आइए यह जानते हैं कि यह औनलाइन सट्टेबाजी होती कैसे है? इस के लिए वेबसाइट भले ही किसी देश में रजिस्टर्ड हो, पर हर देश के हर राज्य में इन की एक टीम होती है, जिसे लौगइन आईडी बनाने का टारगेट दिया जाता है. डाटाबेस कंपनी द्वारा ही दिया जाता है, जिस में देश भर के लोगों के मोबाइल नंबर होते हैं.

टेलीकालिंग के लिए अलग लोग होते हैं. इंस्टाग्राम, फेसबुक और टेलीग्राम ऐप को प्रमोट करने के लिए अलग लोग होते हैं. ग्राहकों को मैसेज और काल द्वारा डायरेक्ट लिंक्स भेजी जाती हैं. क्योंकि इन टीमों का काम केवल लोगों तक लिंक्स पहुंचाना होता है. बाकी ये लोग किसी को फंसाते नहीं, लालच में लोग खुद ही फंसते हैं.

हां, अपने प्रचार के लिए ये लोग फेक काल कर के यह जरूर कहते हैं कि तमाम लोगों को इतने दिनों में इतना लाभ मिला है. इस के बाद कोई भी व्यक्ति एक बार इन का गेम खेल लेता है तो उस की सारी जानकारी कंपनी के पास पहुंच जाती है. फिर कंपनी की ओर से दबाव डाला जाता है कि वह आदमी किसी भी तरह गेम खेले.

इन वेबसाइटों के डोमेन विदेशों में बुक होते हैं. ये सारी वेबसाइटें विदेशी सर्वर पर ही चलती हैं. साथ में ऐसी कोडिंग की जाती है कि एक लिमिट के बाद कंपनी को ही लाभ हो और यूजर हारे.

कंपनी के पास सौफ्टवेयर इंजीनियर्स और डेवलपर्स की टीम होती है. अगर कोई साइट ब्लौक कर दी जाती है तो तुरंत समान नाम वाली दूसरी साइट पर काम शुरू कर दिया जाता है. जिस खाते में पैसा आता है, उस से पैसा निकालने के लिए अलग टीम होती है. कभी भी एक खाते में पैसा नहीं रखा जाता. ये खाते नकली नाम से खुलवाए गए होते हैं.

इधर तमाम लोग इस तरह के ऐप की फ्रेंचाइजी लेने लगे हैं. इस में लाइसैंस मुख्य कंपनी के नाम होता है. बाकी के लोगों को बिजनैस के हिसाब से कमीशन मिलता है. फ्लैट या किसी कमरे से 2-2, 4-4 लोग ऐप चला रहे हैं. इस में किसी बड़े सेटअप की जरूरत नहीं होती.

छत्तीसगढ के महादेव सट्टेबाजी ऐप का खुलासा होने के बाद केंद्र सरकार ने 122 गैंबलिंग ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन ऐसे सैकड़ों ऐप अभी भी चल रहे हैं. इस के अलावा गेम के नाम पर तमाम गैंबलिंग वाली वेबसाइटें भी बड़ी संख्या में चल रही हैं.

गेमिंग ऐप कैसे करते हैं काम

पहले लोगों को अधिक से अधिक पैसा कमाने का लालच दिया जाता है. इस के लिए फेसबुक, टेलीग्राम और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म का उपयोग किया जाता है. सेलेब्स द्वारा प्रमोशन किया जाता है. यूजर केवल वाट्सऐप नंबर पर ही संपर्क कर सकता है. संपर्क करने पर उसे 2 नंबर दिए जाते हैं. इस में एक नंबर पैसा जमा कराने के लिए होता है. दूसरा नंबर यूजर आईडी का होता है, जिस के द्वारा बेटिंग की जाती है.

यूपीआई द्वारा प्रौक्सी बैंक खाते में पेमेंट लिया जाता है. प्रौक्सी खाते में आने वाली रकम हवाला, क्रिप्टो और अन्य गैरकानूनी तरीके से ट्रांसफर की जाती है. भारतीय बैंक के खातों से जुड़े पेमेंट प्रौक्सी को बदल देते हैं. इसलिए जिस रास्ते से ट्रांजेक्शन होता है, उसे जाना नहीं जा सकता. रास्ता कहीं और दिखाता है और पेमेंट कहीं और होता है.

इस तरह की ज्यादातर वेबसाइटें साइप्रस, माल्टा, कुराकाओ, मोरेशियस और केमेन आइलैंड जैसे देशों में रजिस्टर्ड हैं, क्योंकि यहां सट्टेबाजी कानूनी है.

गैंबलिंग औफर करने वाली वेबसाइटों के डोमेन विदेशों में बुक होते हैं. इन के सर्वर भी वहीं होते हैं. क्योंकि इन देशों में जुआ कानूनी है और टैक्स भी कम है. वहां बैठ कर भारत में गैंबलिंग कराई जाती है. जांच से पता चला है कि गेमिंग के नाम पर सट्टेबाजी कराने वाले ज्यादातर मोबाइल ऐप्स महादेव बेटिंग, महादेव बुक या रेड्डी अन्ना बुक के नाम दर्ज हैं.

इस पूरी सांठगांठ के पीछे सब से बड़ा खिलाड़ी महादेव है. इस ग्रुप के पास विविध नामों से 5 हजार से अधिक वेबसाइटें हैं. पता चला है कि ज्यादातर वेबसाइटें महादेव बुक के लाइसैंस पर चल रही हैं. महादेव ने कुराकाओ से लाइसैंस लिया है. ज्यादातर कंपनियों ने इस लाइसैंस के साथ ओरिजोना में रजिस्टर्ड कराया है.

टेक एक्सपर्ट के अनुसार अगर औनलाइन जुए को स्किल बेस्ड गेम माना जाता है तो ऐप एल्गोरिदम पूरे गेम को कंट्रोल करता है. यह इस तरह सिंक्रनाइज होता है कि कंपनी खिलाडिय़ों की अपेक्षा अधिक फायदा करती है. अगर इसे कौशल्य खेल के रूप में वर्गीकृत किया जाए तो इस में विश्लेषण के आंकड़े और डाटा अध्ययन का समावेश होना चाहिए. अनुमान पर आधारित निर्णय को कौशल्य नहीं माना जा सकता.

अभिनेता क्यों कर रहे हैं ऐप का प्रचार

क्रिकेटबेट9 यह क्रिकेटबज की मिरर वेबसाइट है. क्रिकेटबज पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो इस के संचालकों ने क्रिकेटबेट9 वेबसाइट शुरू कर दी. इसे मुख्यत: औपरेट चंडीगढ़ से किया जा रहा है. इन के पास भी महादेव बुक का लाइसैंस है.

महादेव बुक ने खुद अनेक वेबसाइटों को अपने नाम का लाइसैंस दिया है. इस ने भारत में नहीं, कुराकाओ में रजिस्ट्रेशन कराया है. इसलिए ठगी करने के बाद भी कंपनियां बच जाती हैं. इस तरह की कंपनियां 150 से 2 सौ तक वेबसाइटें लांच करती हैं. एक पर प्रतिबंध लगने के बाद दूसरी में शिफ्ट हो जाती हैं. इसे एक्सचेंज कहा जाता है.

ये ऐप्स अपनी इस तरह ब्रांडिंग करते हैं जैसे वे गेम खेला रहे हैं. जबकि ये सब सट्टेबाजी होती है. हर व्यक्ति ऐप पर बेटिंग करता है. ये ऐप्स अल्गोरिदम्स द्वारा नियंत्रित होते हैं. शुरुआत में जीतते हैं, जिस से यूजर्स आदी हो जाता है, बाद में उसे लूट लिया जाता है.

अल्गोरिदम मशीन लर्निंग पर चलती है. उसे जिस तरह कंप्यूटर में फीड किया जाएगा, वह उसी तरह काम करेगा. वह इस तरह डिजाइन किया जाता है कि कंपनी का फायदा हो और यूजर्स हारें. ये ऐप्स ह्यूमन इंटरफेस से गुजरते हैं. इस पर हमेशा नजर रखी जाती है.

कितना बड़ा है गेमिंग ऐप का बाजार?

पिछले कुछ सालों में भारत में फैंटेसी ऐप की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है. लाखों यूजर्स ड्रीम11, माई सर्कल11, एमपीएल जैसे प्लेटफार्म पर पहुंच रहे हैं. इंडियन प्रीमियर लीग यानी कि आईपीएल के 16वें सीजन में फैंटेसी गेमिंग ऐप शिखर की विज्ञापन की थी. टीएएम मीडिया रिसर्च के एडवरटाइजिंग के अनुसार इन का हिस्सा पिछले आईपीएल की अपेक्षा 15 प्रतिशत से बढ़ कर 18 प्रतिशत हो गया है.

सौरव गांगुली, कपिल शर्मा, हरभजन सिंह, विराट कोहली, शुभमन गिल, हार्दिक पांडया, आमिर खान, आर. माधवन, शरमन जोशी इन गेमिंग ऐप्स का प्रचार करते हैं. कंसल्टेंसी रेडसकर की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 की अपेक्षा 2023 में फैंटेसी गेमिंग प्लेटफार्म की आमदनी में 24 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. यह अब 341 मिलियन डालर अथवा 28 सौ करोड़ हो गया है. इस दौरान 6 करोड़ यूजर्स ने फैंटेसी गेमिंग प्रवृत्तियों में भाग लिया, जिस में 66 प्रतिशत लोग छोटे शहरों से आते हैं.

ये गेमिंग ऐप्स यूजर्स से एंट्री फीस वसूल करते हैं. इन की टीम अंडर परफार्म करेगी तो पैसा खोने का डर है. ड्रीम11 भारत का सब से बड़ा फैंटेसी स्पोट्र्स प्लेटफार्म है. इस के 20 करोड़ रजिस्टर्ड यूजर्स हैं. एमपीएल9 करोड़ और माई सर्कल11 अपने पास 4 करोड़ यूजर्स होने का दावा करता है.

गेमिंग ऐप द्वारा जुए को क्यों नहीं रोका जा सकता

भारत में फैंटेसी गेमिंग ऐप को नियंत्रित करने के लिए पब्लिक गैंबलिंग अधिनियम 1867 का उपयोग होता है. यह अधिनियम देश में तमाम तरह के गैंबलिंग को प्रतिबंधित करता है. जबकि इन कौशल्य वाले खेलों को नहीं रोकता. इन के विज्ञापन भ्रम में डालने वाले होते हैं. जिन में ज्यादा से ज्यादा पैसा जीतते हुए दिखाया जाता है. जबकि सच्चाई यह है कि ज्यादातर खिलाड़ी बहुत छोटा एमाउंट जीतते हैं.

मनोचिकित्सकों के अनुसार हमारे दिमाग में एक रिवार्ड सेंटर है. वहां से हमें आनंद मिलता है, अच्छा लगता है. यह फूड, सैक्स और सिद्धियों से क्रिएट होता है. औनलाइन सट्टेबाजी में शुरुआत में लोग जीतते हैं, जिस से उन्हें अच्छा लगता है. यह एक तरह की बीमारी है, जिसे मनोचिकित्सा में पैथोलौजिकल गैंबलिंग कहा जाता है.

इस में रोगी कुछ सोचेविचारे बिना काम करने लगता है. शुरू में वह कमाई करने के लिए खेलता है. पर औनलाइन गेम इस तरह प्रोग्राम किया जाता है कि वह खेलने वाले को औड और इवन क्रम में जिताता और हराता है. अंत में यूजर हार जाता है. दिमाग के अंदर एक रिवार्डिंग कैमिकल डोपामाइन होता है. एक बार रिवार्ड मिलने पर बारबार रिवार्ड प्रयास करते हैं. पैसे हार जाने के बाद शरम लगती है. जिस की भरपाई करने के लिए खेलने वाला अधिक पैसे लगाता है.

दरअसल, सट्टा तो पहले भी लोग खेलते थे. पर पहले लोग हिसाब रखते थे. औनलाइन गेमिंग ने ऐसी स्थिति खड़ी कर दी है कि युवा किसी भी तरह का हिसाब रखे बिना पैसा लगाते हैं.

छत्तीसगढ़ में महादेव सट्टेबाजी ऐप का खुलासा होने के बाद केंद्र सरकार के इलेक्ट्रौनिक्स और इनफौर्मेशन मंत्रालय ने 122 गैरकानूनी सट्टेबाजी ऐप्स को प्रतिबंधित कर दिया है. महादेव ऐप पर तरहतरह के गेम खेलाए जाते थे. जिस में कार्ड गेम, चांस गेम, क्रिकेट, बैडमिंटन, टेनिस, फुटबाल शामिल थे. इस के द्वारा यूजर आईडी बना कर सट्टेबाजी की जाती थी. मनी लौंड्रिंग होती थी और पैसा बेनामी खाते में जाता था.

ईडी ने भी कहा है कि महादेव ऐप के प्रमोटर ने यूएई से 508 करोड़ रुपए कुरिअर द्वारा छत्तीसगढ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को दिए थे. इस के पहले मार्च, 2023 में आईटी मंत्रालय ने 138 सट्टेबाजी और जुए के ऐप पर प्रतिबंध लगाया था.

केंद्र सरकार ने इन सट्टेबाजी ऐप्स पर भले ही प्रतिबंध लगा दिया है, पर अभी भी सट्टेबाजी के अनेक ऐप्स चल रहे हैं. यह उसी पैटर्न पर काम कर रहे हैं, जिस तरह महादेव बेटिंग ऐप काम करता था.

नोट: कहानी में कुछ पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं.

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