पैसे के लिए किसी के मासूम बेटे का अपहरण कर के उसे मार डालने का अपराध मृत्युदंड से कम नहीं होना चाहिए. रुद्राक्ष अपहरण, हत्याकांड के आरोपी अंकुर पाडिया को जो सजा मिली, वह उसी के लायक था.

26फरवरी, 2018 की बात है. कोटा शहर की अदालत में उस दिन आम दिनों से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी.

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण प्रकरण न्यायालय के विशिष्ट न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल की अदालत के बाहर सब से ज्यादा मौजूद भीड़ थी. भीड़ में शहर के आम लोगों के अलावा वकील भी शामिल थे.

अदालत में भीड़ जुटने का कारण यह था कि उस दिन कोटा के बहुचर्चित रुद्राक्ष अपहरण हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. इसलिए रुद्राक्ष के मातापिता के अलावा उन के कई परिचित भी अदालत में आए हुए थे.

भीड़ में इस बात को ले कर खुसरफुसर हो रही थी कि अदालत क्या फैसला सुनाएगी. कोई कह रहा था कि आरोपियों को फांसी होगी तो कोई उम्रकैद होने का अनुमान लगा रहा था. दरअसल, इस मामले से कोटा की जनता का भावनात्मक जुड़ाव रहा था, इसलिए पूरे कोटा शहर की नजरें फैसले पर टिकी हुई थीं.

विशिष्ट न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल समय पर अदालत में पहुंच गए. जज साहब ने पहले अदालत के जरूरी काम निपटाए. फिर उन्होंने रुद्राक्ष हत्याकांड की फाइल पर नजर डाली और इस मामले के चारों आरोपियों को दोपहर 2 बजे अदालत में पेश होने का संदेश भिजवा दिया.

  अदालत के बाहर जमा लोगों को जब पता लगा कि जज साहब ने दोपहर 2 बजे आरोपियों को अदालत में पेश करने को कहा है तो वहां से धीरधीरे भीड़ कम होने लगी.

लंच के बाद अदालत के बाहर फिर से लोग जमा होने लगे. दोपहर 2 बजे पुलिस ने रुद्राक्ष हत्याकांड के आरोपी अंकुर पाडिया और उस के भाई अनूप पाडिया को कोर्टरूम में पेश किया. दोनों भाइयों को जेल से अदालत लाया गया था. तीसरा आरोपी महावीर शर्मा जमानत पर चल रहा था, वह भी कोर्टरूम में आ चुका था. इन तीनों आरोपियों को कटघरे में खड़ा किया गया.

इस बीच विशिष्ट न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल अपने चैंबर से निकल कर कोर्टरूम में अपनी कुरसी पर बैठ गए. कुरसी पर बैठते ही उन्होंने एक नजर कोर्टरूम में मौजूद लोगों पर डाली, फिर अपने साथ लाई फाइल पर नजर दौड़ाने लगे.

इस केस का चौथा आरोपी करणजीत सिंह दिल्ली से नहीं आया था. उस के वकील सतविंदर सिंह ने जज साहब के सामने उस की हाजिरी माफी का प्रार्थनापत्र पेश करते हुए कहा कि करणजीत सिंह के दादा की मृत्यु होने के कारण वह अदालत में हाजिर नहीं हो सका. इस पर जज साहब कुछ नहीं बोले.

जज साहब ने सामने रखी फाइल खोल कर कुछ पन्ने पलटे और रुद्राक्ष की हत्या के चारों आरोपियों अंकुर पाडिया, अनूप पाडिया, महावीर शर्मा और चरणजीत सिंह को दोषी घोषित कर दिया. उन्होंने सजा के आधार बिंदु भी सुनाए.

तभी आरोपियों की पैरवी करते हुए उन के वकीलों ने कहा कि उन्हें कम से कम सजा दी जाए. विशिष्ट लोक अभियोजक कमलकांत शर्मा ने उन की बात का विरोध करते हुए कहा कि यह रेयरेस्ट औफ रेयर मामला है, इसलिए आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. इन्हें कम से कम फांसी की सजा दी जाए. अपनी दलीलें पेश करते हुए लोक अभियोजक ने अदालत के सामने 3 रूलिंग भी पेश कीं.

  वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज साहब ने शाम 5 बजे दोषियों को सजा सुनाने की बात कही. इस के बाद वह फिर से अपने चैंबर में चले गए.

रुद्राक्ष कौन था और उस का अपहरण व हत्या क्यों की गई, इस के लिए हमें करीब सवा 3 साल पीछे जाना होगा.

दरअसल रुद्राक्ष कोटा शहर की तलवंडी कालोनी के रहने वाले पुनीत हांडा का बेटा था. पुनीत हांडा एक बैंक में मैनेजर थे. 7 साल का रुद्राक्ष रोजाना की तरह 9 अक्तूबर, 2014 की शाम करीब 5-साढ़े 5 बजे अपने घर के पीछे हनुमान पार्क में खेलने गया था. आमतौर पर वह करीब एक घंटे पार्क में खेल कर वापस घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह नहीं लौटा तो परिवार वालों ने उसे पार्क में जा कर ढूंढा. लेकिन वह वहां नहीं मिला.

उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे पुनीत हांडा के लैंडलाइन पर फोन आया. फोन करने वाले ने कहा कि तुम्हारा बेटा किडनैप हो गया है. पुनीत ने पहले तो इसे मजाक समझा, लेकिन फोन करने वाले ने गालीगलौज के साथ अपना नाम जफर मोहम्मद बताते हुए कहा कि बच्चे को कश्मीर भेज दिया है. अगर बच्चे को सहीसलामत वापस चाहते हो तो 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो.

पुनीत हांडा ने 2 करोड़ रुपए की रकम देने में असमर्थता जताई तो फोन करने वाले ने कहा, ‘‘तू बैंक मैनेजर है और तेरी बीवी टीचर. जितनी भी रकम हो सकती है, इकट्ठी कर ले. बाकी बात सुबह फोन कर के बताऊंगा और अगर पुलिस को बताने की होशियारी दिखाई तो बच्चे से हाथ धो बैठोगे.’’ कहते हुए उस आदमी ने फोन काट दिया.

फोन सुन कर पुनीत ने सिर थाम लिया. उन की समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें. वह सोचने लगे कि उन की तो किसी से दुश्मनी भी नहीं है.

बेटे के अपहरण होने की बात जब पुनीत की पत्नी श्रद्धा हांडा को पता चली तो वह रोने लगीं. पुनीत ने पत्नी को ढांढस बंधाते हुए कहा कि यह समय रोने का नहीं, बल्कि सोचने का है कि हमें अब क्या करना चाहिए. वह रोते हुए बोलीं, ‘‘मेरे जितने भी गहने हैं, सब बाजार में बेच दो पर मेरे रुद्राक्ष को ले आओ.’’

पुनीत ने पत्नी को हौसला रखने को कहा. बाद में उन्होंने फैसला किया कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए. इस के बाद पुनीत ने अपने कुछ परिचितों को फोन कर के बुलाया. परिचितों के साथ उसी रात करीब पौने 9 बजे वह कोटा के जवाहरनगर पुलिस थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी को उन्होंने सारी बातें बताईं. पुलिस ने उसी समय भादंवि की धारा 364ए के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया. पूरे शहर में नाकेबंदी करा दी गई. पुलिस ने उस पार्क के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी देखे, जिस में रुद्राक्ष खेलने गया था. फुटेज में सफेद रंग की निसान माइक्रा कार नजर आई, जिस का नंबर साफ नहीं दिख रहा था. पुलिस उस कार की तलाश में जुट गई. रुद्राक्ष और अपहर्त्ताओं की तलाश के लिए रात भर पुलिस का अभियान चलता रहा, लेकिन कोई सुराग नहीं लगा.

अगले दिन 10 अक्तूबर, 2014 को कोटा के तालेडा थाना इलाके के जाखमुंड स्थित नहर में एक बच्चे की लाश बरामद हुई. बाद में उस की शिनाख्त 7 वर्षीय रुद्राक्ष के रूप में हुई. जवाहरनगर थाना पुलिस ने बच्चे की लाश को जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और केस में हत्या की धारा भी जोड़ दी.

थोड़ी सी देर में रुद्राक्ष की हत्या की खबर पूरे शहर में फैल गई. जिस के बाद लोग आक्रोश में आ गए. विरोध जताने के लिए लोगों ने बाजार बंद रखे. जगहजगह पुलिस के खिलाफ धरनाप्रदर्शन भी शुरू हो गए. कैंडल मार्च, मौन जुलूस निकाले गए. मानव शृंखला बना कर भी विरोध जताया गया. एक तरह से पूरा शहर इस आंदोलन से जुड़ गया था.

भारी जनाक्रोश को देखते हुए जयपुर से आए अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (क्राइम) अजीत सिंह कई दिनों तक कोटा में इसलिए डेरा डाले रहे कि कहीं स्थिति विस्फोटक न हो जाए.

पुलिस ने रुद्राक्ष के अपहर्त्ता और हत्यारोपियों की तलाश में कई टीमें गठित कीं. पुलिस ने रुद्राक्ष के साथ पार्क में खेल रहे बच्चों से भी पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि कई दिन से एक अंकल पार्क में खेल रहे बच्चों को चौकलेट बांटने आते थे. उस दिन भी वह आए. उन के पास की चौकलेट खत्म हो गई थीं. रुद्राक्ष ही चौकलेट के लिए रह गया था. तब वह चौकलेट देने के लिए रुद्राक्ष को अपनी कार के पास ले गए.

पुलिस ने बच्चों के बताए हुलिए के आधार पर अपहर्त्ता के स्केच बनवा कर जारी कर दिए. सीसीटीवी फुटेज के आधार पर संदिग्ध कार के मालिक का भी पुलिस ने पता लगा लिया. इस के अलावा पुनीत हांडा के घर के लैंडलाइन टेलीफोन पर जिस फोन नंबर से फिरौती की काल आई थी, उस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई.

5 दिन की लगातार जांचपड़ताल के बाद कोटा शहर के अनंतपुरा थाना इलाके के ओम एनक्लेव के रहने वाले अंकुर पाडिया का नाम सामने आया. पुलिस ने अंकुर पाडिया को तलाशा तो पता चला कि वह कोटा शहर में है ही नहीं. अंकुर के कोटा शहर में ही अलगअलग जगहों पर कई फ्लैट हैं.

पुलिस 14 अक्तूबर को ओम एनक्लेव में स्थित अंकुर के फ्लैट पर पहुंची. लोगों की मौजूदगी में फ्लैट का ताला तोड़ कर तलाशी ली तो वहां एक मोबाइल फोन, अंकुर का पासपोर्ट, वोटर आईडी मिले. फ्लैट के नीचे एक निसान माइक्रा कार भी खड़ी मिली. लोगों से पता चला कि वह कार अंकुर की ही है. कार में एक कंबल, कपड़े, चौकलेट, बिस्कुट, कैंची, सेलोटेप, नायलौन की डोरी मिली.

अंकुर की बंसल क्लासेज के नजदीक ही स्टेशनरी की दुकान भी है. दुकान की तलाशी लेने पर वहां से एक लैपटाप, हार्डडिस्क, पेन ड्राइव, डोंगल, 2 मोबाइल फोन बरामद हुए. इस के अलावा उस के महालक्ष्मीपुरम स्थित फ्लैट से 3 लाख रुपए नकद, डायरी, मोबाइल फोन आदि जब्त किए. यह वही फोन था, जिस से फिरौती के लिए काल की गई थी.

जांच में पता चला कि रुद्राक्ष के घर फिरौती के लिए बीएसएनएल की सिम से काल की गई थी. उस की काल डिटेल्स से पुलिस को रिलायंस कंपनी का एक नंबर मिला. जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि वह सिम दिल्ली से लिया गया था. दिल्ली में करणजीत सिंह नाम के व्यक्ति ने एक साथ 8-10 सिम कार्ड बेचे थे. इन में से एक सिमकार्ड का प्रयोग कर के गुजरात से क्लोरोफार्म मंगाने के लिए ईमेल किया गया था. आईपी एड्रेस से अंकुर का नाम सामने आ गया था.

पुलिस ने अंकुर का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. जांच में पता चला कि अनूप पाडिया का फरजी नाम संतोष सिंह है. अनूप की एक नए नंबर पर बारबार बात हो रही थी. उस नए नंबर का मूवमेंट कानपुर स्टेशन के आसपास आ रहा था. उस मोबाइल की आईडी उड़ीसा की थी. कानपुर में तलाश की गई तो पता चला कि अंकुर पाडिया उड़ीसा के किसी व्यक्ति की आईडी पर कानपुर के एक होटल में कमरा ले कर रहा है.

लंबी भागदौड़ के बाद पुलिस ने 27 अक्तूबर, 2014 को कानपुर से अंकुर पाडिया और लखनऊ से उस के भाई अनूप पाडिया को गिरफ्तार कर लिया. अनूप पाडिया रुद्राक्ष के अपहरण और हत्या मामले में अंकुर का सहयोगी था.

पूछताछ में पता चला कि अंकुर पाडिया को क्रिकेट मैचों का सट्टा लगाने का शौक था. इस शौक में कुछ समय पहले उस ने लाखों रुपए गंवा दिए थे, जिस से उस पर लाखों रुपए का कर्ज हो गया था, जिस की वजह से उसे कोटा में महालक्ष्मीपुरम का अपना फ्लैट गिरवी रखना पड़ा था. बैंक का उस पर 39 लाख रुपए का कर्ज था. उस ने गोपाल से 65 लाख रुपए ले रखे थे. इस के अलावा निखिल शर्मा से भी 10 लाख रुपए ले रखे थे. कई अन्य लोगों से भी उस ने मोटी रकम ले रखी थी.

कर्ज से उबरने के लिए अंकुर ने रुद्राक्ष के अपहरण की योजना बनाई. उसे पता था कि रुद्राक्ष का पिता पुनीत हांडा बूंदी सेंट्रल कोऔपरेटिव बैंक में मैनेजर है और मां कौन्वेंट स्कूल में टीचर, इसलिए अंकुर को उम्मीद थी कि उन के बेटे रुद्राक्ष का अपहरण करने पर फिरौती के रूप में मोटी रकम मिल सकती है.

अंकुर ने रुद्राक्ष का अपहरण करने के लिए कई दिन तक पार्क के चक्कर लगाए. वहां खेलने वाले बच्चों को वह चौकलेट देता था. 9 अक्तूबर, 2014 को वह पार्क से रुद्राक्ष को चौकलेट के बहाने ले गया और उसे अपनी सफेद माइक्रा कार में बैठा कर क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश कर दिया.

बेहोश रुद्राक्ष को ले कर वह कोटा शहर में घूमता रहा. वह कोटा के दशहरा मेले में भी गया. इस के अलावा उस ने उम्मेद क्लब के सिल्वर जुबली कार्यक्रम में भाग लिया. उसी रात अंकुर ने रुद्राक्ष की हत्या कर दी और उस का शव तड़के नहर में फेंक दिया. रुद्राक्ष की हत्या के बाद वह कोटा से भाग कर कई राज्यों में घूमता हुआ कानपुर पहुंचा.

बाद में 30 अक्तूबर को पुलिस ने दिल्ली के तिलकनगर थाना इलाके में कृष्णापुरी के रहने वाले करणजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया. करणजीत सिंह दिल्ली के गफ्फार मार्केट में मोबाइल का काम करता था. उस ने पुलिस को बताया कि उसे एक जगह 10 सिम कार्ड लावारिस हालत में मिले थे. इन में से एक सिमकार्ड उस ने खुद रख लिया और बाकी 9 सिम 23 सितंबर, 2014 को एक आदमी को 1100 रुपए में बेच दिए. पुलिस ने अंकुर पाडिया के नौकर महावीर शर्मा के 7 नवंबर, 2014 को बूंदी जिले के केशोराय पाटन से गिरफ्तार कर लिया.

अंकुर पाडिया ने रुद्राक्ष के अपहरण की योजना पूरी तरह सोचसमझ कर बनाई थी. पुलिस को उस के लैपटाप की जांच के बाद पता चला कि उस ने सितंबर, 2014 में इंटरनेट के द्वारा क्लोरोफार्म मिलने के स्थानों की तलाश की. इस के अलावा एक अंगरेजी अखबार की वेबसाइट पर किडनैपिंग से संबंधित वेबपेज भी देखे.

अंकुर के लैपटाप की एफएसएल जांच रिपोर्ट से पता चला कि पहली सितंबर, 2014 से 14 अक्तूबर, 2014 के बीच उस ने अपराध के लिए इंटरनेट पर कई तरह की खोजबीन की थी. डेढ़ महीने में उस ने 188 तरह के कीवर्ड सर्च किए. इन में वेयर कैन वी गेट क्लोरोफार्म, वेयर कैन वी गेट मेकअप मटीरियल सरदारजी गेटअप, हाउ टू चेंज योर वाइस ओवर द फोन, रिच परसन इन कोटा प्रमुख थे.

अंकुर इतना शातिर था कि उस ने 16 अक्तूबर, 2014 की रात सुशांता राजगंधा नामक व्यक्ति का वोटर आईडी कार्ड चुरा लिया. सुशांता राजगंधा ट्रेन द्वारा बलसाड से राजगंधा जा रहा था. रुद्राक्ष की हत्या के बाद कोटा से फरार हो कर अंकुर भी उसी ट्रेन से कहीं जा रहा था.

इसी दौरान मौका पा कर अंकुर ने सुशांत राजगंधा का वोटर आईडी कार्ड व अन्य दस्तावेज चुरा लिए. सुशांत राजगंधा के वोटर आईडी कार्ड के आधार पर अंकुर कानपुर में होटल में रुका हुआ था. अंकुर के शातिराना दिमाग का अंदाज इस से भी पता चलता है कि जब कानपुर में उसे पकड़ा गया था तो उस के पास उस का लिखा 2 पन्नों का सुसाइड नोट भी था.

इस सुसाइड नोट पर उस के दस्तखत भी थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि अंकुर इस सुसाइड नोट को प्रचारित कर दुनिया की नजर में मर जाता, लेकिन असल में वह नाम बदल कर अपने भाई अनूप पाडिया की तरह कहीं अन्यत्र रहने लग जाता.

पुलिस को यह भी पता चला कि अनूप पाडिया पर कोटा शहर व कई अन्य जगहों पर धोखाधड़ी के मामले दर्ज हैं. कई प्रकरण एनआई एक्ट के विचाराधीन हैं. वह सन 2009 में जयपुर जिले से पुलिस अभिरक्षा से फरार हो गया था. तब से वह फरार चल रहा था. बाद में उसे रुद्राक्ष के मामले में लखनऊ से गिरफ्तार किया गया, जहां वह संतोष सिंह के नाम से रह रहा था.

पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि दोनों भाई पैसों के लिए मिल कर अपराध कर रहे थे. रुद्राक्ष की हत्या के तुरंत बाद 12 अक्तूबर, 2014 को अंकुर सीधा अपने भाई अनूप उर्फ संतोष सिंह के पास गया था.

इस मामले में आमजनों की भावना को देखते हुए कोटा के वकीलों ने 2 आरोपियों अंकुर पाडिया और अनूप पाडिया की पैरवी नहीं की थी. इतना ही नहीं, बार असोसिएशन ने परिवादी पुनीत हांडा की तरफ से नि:शुल्क पैरवी के लिए एडवोकेट हरीश शर्मा को नियुक्त कर दिया था.

व्यापक जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने अंकुर पाडिया के खिलाफ भादंसं की धारा 364ए, 302, 379, 419, 420, 120बी व सूचना प्रौद्योगिकी की धारा 65 व 66क, ख, ग, घ के तहत, अभियुक्त अनूप पाडिया उर्फ संतोष सिंह के खिलाफ भादंसं की धारा 364ए, 302, 419, 420, 212, 120बी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ख, ग, घ के अंतर्गत आरोपपत्र पेश किया.

अभियुक्त करणजीत सिंह के खिलाफ भादंसं की धारा 109, 364ए एवं 302 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66बी तथा अभियुक्त महावीर शर्मा के खिलाफ भादंसं की धारा 201 एवं 212 के तहत 23 जनवरी, 2015 को अदालत में आरोपपत्र पेश किया. पुलिस ने 1464 पेज और 10 सीडी में चालान पेश किया था.

कोर्ट में करीब 3 सालों तक इस बहुचर्चित मामले की काररवाई चलती रही, जिस में 110 गवाहों के बयान भी दर्ज किए गए. न्यायालय में पेश हुए साक्ष्यों के आधार पर ही न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल ने आरोपियों को दोषी ठहराया.

सजा सुनाने के लिए जज साहब शाम 5 बजे कोर्ट में पहुंच गए. उस समय आरोपियों के अलावा मामले से जुड़े सभी वकील व रुद्राक्ष के मातापिता भी कोर्टरूम में मौजूद थे.

जज साहब ने बिना कोई भूमिका बनाए सीधे फैसला सुनाते हुए कहा, ‘अभियुक्त अंकुर ने क्रूरतम, अमानवीय तथा हृदयविदारक जघन्य अपराध किया था. अभियुक्त की अपराध प्रवृत्ति को देखते हुए वह समाज की मुख्यधारा से जुड़ने के योग्य नहीं है. अभियुक्त अंकुर समाज के लिए खतरा है.

ऐसे हालात में अभियुक्त अंकुर के साथ नरमी का रुख अपनाए जाने का कोई औचित्य नहीं हो सकता. 7 साल के बच्चे की बर्बरतापूर्वक हत्या के इस मामले को रेयरेस्ट औफ रेयर माना जाना न्यायोचित प्रतीत होता है. इसलिए अभियुक्त अंकुर पाडिया को मृत्युदंड से कम कुछ भी दिया जाना न्यायोचित नहीं है.’

इतना कह कर जज साहब ने एक सरसरी नजर कटघरे में खड़े अभियुक्त अंकुर पाडिया के चेहरे पर डाली.

कुछ क्षण रुक कर जज साहब ने कहा, ‘अभियुक्त अनूप ने नियोजित तरीके से षडयंत्रपूर्वक अपराध किया था. इस तरह के अपराधों में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए नरमी का रुख अपनाया गया तो यह समाज के लिए घातक होगा. पिछले 5 सालों से वह नाम बदल कर और अपनी पहचान छिपा कर संतोष सिंह के नाम से रहता रहा और इसी नाम से आईडी, परिवार कार्ड बनवा लिए, जो उस की आपराधिक प्रवृत्ति को दर्शाता है. अभियुक्त अनूप का अपराध अतिगंभीर और हृदयविदारक है. उस के खिलाफ नरमी का रुख अपनाया जाना न्यायोचित नहीं होगा.’

जज साहब ने इतना कह कर कटघरे में खड़े अभियुक्त अनूप पाडिया और कोर्टरूम में मौजूद लोगों पर सरसरी नजर डाली.

कुछ पलों की चुप्पी के बाद जज साहब ने आगे कहा, ‘अभियुक्त महावीर और करणजीत पर भी आरोपित अपराध गंभीर प्रकृति के हैं. महावीर ने फिरौती के लिए अपहरण व हत्या जैसे गंभीर अपराध में साक्ष्य नष्ट करने और आरोपी अंकुर को बचाने के लिए सहयोग किया. आरोपी चरणजीत ने फरजी सिम बेचने का अपराध किया. ये परिवीक्षा के प्रावधानों के लाभ पाने के अधिकारी नहीं हैं. उन्हें भी समुचित दंड से दंडित किया जाना न्यायोचित होगा.’

इस के बाद जज साहब ने टेबल पर रखे गिलास से पानी पिया. फिर उन्होंने दंडादेश सुनाते हुए कहा, ‘मुख्य आरोपी अंकुर पाडिया को दोषसिद्ध आरोप के अंतर्गत धारा 302 भादंसं में मृत्युदंड और 50 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. इस के अलावा उसे 364ए में मृत्युदंड व 50 हजार रुपए के अर्थदंड से भी दंडित किया जाता है.’

अंकुर पाडिया को कई अन्य धाराओं में सजा व अर्थदंड सुनाने के बाद जज साहब ने अभियुक्त अनूप पाडिया को दोषी मानते हुए धारा 302 एवं 120बी और 364ए एवं 120बी भादंसं में आजीवन कारावास की सजा सुनाई. फिर अभियुक्त महावीर शर्मा को 4 साल और करणजीत सिंह को 2 साल की सजा सुनाई.

अदालत ने अंकुर पाडिया को फांसी की सजा के साथ कुल 3 लाख 60 हजार रुपए, अनूप पाडिया को उम्रकैद के साथ 3 लाख 20 हजार रुपए, महावीर शर्मा को 4 साल की कठोर कैद के साथ 25 हजार रुपए और करणजीत सिंह को 2 साल की कठोर कैद के साथ 1 लाख रुपए के अर्थदंड से दंडित किया.

सजा के अन्य बिंदुओं को सुनाने के बाद जज साहब ने फाइल को बंद करते हुए एक बार फिर कोर्टरूम में मौजूद लोगों पर नजर डाली और कुरसी से उठ कर अपने चैंबर में चले गए.

फैसला सुन कर कोर्टरूम में मौजूद रुद्राक्ष की मां श्रद्धा हांडा फफक पड़ीं. फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी कटघरे में खड़े अंकुर पाडिया के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. उस के भाई अनूप पाडिया के चेहरे पर भी मलाल के कोई भाव नहीं थे.

रुद्राक्ष के पिता पुनीत हांडा ने कहा कि मेरी कैसी जीत और कैसी हार. मेरा बेटा तो वापस नहीं मिल सकता. 3 साल तक अदालत की चौखट पर आतेआते मैं खुद को अपराधी समझने लगा था. आरोपी पेशी पर आए या न आए, मैं तो हर बार पेशी पर पहुंचता था.

जेल से जब अंकुर व अनूप कोर्ट में आते तो लगता कि वे किसी ऐशगाह या फाइवस्टार होटल से निकल कर आ रहे हैं. ब्रांडेड जूते, जींस, टीशर्ट, चेहरे पर शिकन तक नहीं. ऐसे में मैं कई बार हैरान हो जाता कि जेल में आखिर चल क्या रहा है. मैं सिस्टम के आगे खुद को अपराधी और हत्यारों को फरियादी समझने लगा था.

अदालत का फैसला आने से करीब एक महीने पहले ही रुद्राक्ष के दादाजी मदनमोहन हांडा का स्वर्गवास हो गया था. पिता के ड्यूटी पर चले जाने और मां के स्कूल चले जाने के बाद रुद्राक्ष का सब से ज्यादा समय अपने दादाजी के साथ ही बीतता था. रुद्राक्ष की मौत ने दादा मदनमोहन को भी तोड़ दिया था. जिस पार्क से रुद्राक्ष का अपहरण हुआ था, वहां दादाजी ने पोते की याद में 2 पौधे रोपे थे. वे इन्हीं पौधों को पालपोस कर रुद्राक्ष को याद करते थे.

रुद्राक्ष हत्याकांड में मुख्य आरोपी अंकुर पाडिया को गिरफ्तार कराने में तकनीकी जांच के जरिए सब से अहम भूमिका निभाने वाले हेडकांस्टेबल प्रताप सिंह को फैसला आने के दिन ही एएसआई के पद पर गैलेंटरी पदोन्नति दे दी गई. प्रताप सिंह की विशेष पदोन्नति की सिफारिश तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ने की थी. फैसला सुनाए जाने के बाद कोर्टरूम में मौजूद तीनों मुजरिमों को पुलिस कोटा जेल ले गई.

  जेल में भी अनूप पाडिया अपनी फितरत दिखाने से नहीं चूका. उस ने जेल में ही कैदियों से वसूली शुरू कर दी. किसी ने इस की शिकायत भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से कर दी तो ब्यूरो ने 10 अप्रैल, 2017 को प्रोडक्शन वारंट पर कोटा जेल से गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में कोटा जेल के जेलर बत्तीलाल मीणा और 2 दलालों को भी गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट के आदेश पर अनूप पाडिया को अजमेर जेल भेज दिया गया था.

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