Social story : प्रयागराज महाकुंभ हादसे से पहले आयोजित कुंभ और अद्र्धकुंभ मेलों में भी हादसे हुए थे, लेकिन योगी सरकार ने उन हादसों से सबक लेने के बजाए अपना ध्यान मेले का राजनीतिक लाभ लेने के साथ वीवीआईपी व्यवस्थाओं पर जोर दिया. जितने स्तर पर इस मेले का प्रचार किया गया, काश! उसी स्तर पर सुरक्षा के इंतजाम किए होते तो...
28 और 29 जनवरी, 2025 की दरम्यानी रात थी. हिंदू आस्था के प्रतीक शहर प्रयागराज में 144 साल बाद लगे महाकुंभ में मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के कारण आस्था में डूबे लाखोंकरोड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति से जनसैलाब का मंजर था. हर कोई संगम नोज में स्नान करने को व्याकुल था. वैसे तो मौनी अमावस्या का मुहूर्त 28 जनवरी की शाम 7.35 बजे से ही शुरू हो चुका था, लेकिन हर कोई अपनी आस्था के कारण मध्यरात्रि के बाद और ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करने को आतुर था.
चाहे धर्मभीरु सम्राट हर्षवर्धन का दौर रहा हो या फिर सैकड़ों वर्षों की गुलामी का कालखंड. कुंभ में आस्था का यह जन प्रवाह कभी नहीं रुका. पद्मपुराण में कहा गया है, 'आगच्छन्ति माघ्यां तु, प्रयागे भरतर्षभ...’ यानी माघ महीने में सूर्य जब मकर राशि में गोचर करते हैं, तब संगम में स्नान से करोड़ों तीर्थों के बराबर पुण्य मिल जाता है. लोक धारणा है कि इस अवधि में जो श्रद्धालु प्रयाग के संगम तट पर में स्नान करते हैं, वह हर तरह के पापों से मुक्त हो जाते हैं.
इसी आस्था में डूबे श्रद्धालुओं के जत्थे संगम नोज और उस के आसपास गंगा यमुना किनारे पवित्र स्नान के लिए अपने कदम बढ़ा चुके थे. शाम से ही महाकुंभ मेले के डीआईजी वैभव कृष्ण माइक हाथ में ले कर घोषणा कर श्रद्धालुओं से अपील कर रहे थे कि वो अपने स्थान से उठ कर समीप के गंगा घाटों पर जाएं और जल्दी स्नान कर के अपने गंतव्यों की ओर प्रस्थान करें. क्योंकि मौनी अमावस्या पर प्रयागराज में देशभर से करीब 12 करोड़ श्रद्धालु आए हैं और भीड़ बहुत अधिक है.