Lucknow Crime Story: नारायण शरण और प्रियंका उर्फ चंदा ने समाज के विरुद्ध जा कर प्रेम विवाह किया था. नारायण ने मेहनत और लगन से न केवल अपने विवाह को सफल बनाया बल्कि पैसा कमा कर परिवार भी बसा लिया. लेकिन पति के इस प्रेम को भूल कर प्रियंका एक ऐसी दुनिया में रम गई जो उस के लिए नहीं थी. छोटे भाई नारायण शरण ने फोन कर के बुलाया तो हरिशंकर सहाय आधी रात को ही जानकीपुरम स्थित उस के घर जा पहुंचा. लेकिन वहां की स्थिति देख कर उस के होश उड़ गए. नारायण की पत्नी प्रियंका खून से लथपथ फर्श पर बेहोश पड़ी थी, जबकि नारायण घर से गायब था.
हरिशंकर ने घायल प्रियंका को पड़ोसियों की मदद से गाड़ी में डाल कर अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उस की नब्ज देख कर उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल प्रशासन ने प्रियंका की मौत की सूचना पुलिस को दे दी, क्योंकि मृतका की हालत देख कर ही पता चल रहा था कि उस की हत्या हुई है. अस्पताल से सूचना मिलने पर थाना जानकीपुरम के थानाप्रभारी आर.बी. सिंह अपनी टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए और प्रियंका की लाश को कब्जे में ले लिया. लाश की फोटो आदि करा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी आर.बी. सिंह पुलिस टीम के साथ नारायण के घर पहुंचे.
घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने मृतका के जेठ हरिशंकर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि आधी रात को नारायण ने फोन कर के सिर्फ इतना कहा था कि प्रियंका की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, उसे तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ेगा. नारायण की बात सुन कर वह उसी समय उस के घर पहुंच गया. वहां उस के तीनों बच्चे मां की हालत देख कर बुरी तरह रो रहे थे, जबकि नारायण का कुछ अतापता नहीं था. उस ने पड़ोसियों की मदद से प्रियंका को तुरंत अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के थानाप्रभारी आर.बी. सिंह हरिशंकर को साथ ले कर थाना जानकीपुरम लौट आए और उस से एक तहरीर ले कर प्रियंका की हत्या का मुकदमा मृतका के पति नारायण शरण श्रीवास्तव के खिलाफ दर्ज करा दिया. नारायण फरार था. अब पुलिस को किसी भी तरह उसे गिरफ्तार करना था. थानाप्रभारी आर.बी. सिंह ने उस की गिरफ्तारी के लिए अपने मुखबिरों को सतर्क कर दिया. मुखबिरों की ही बदौलत हत्या के 6 दिनों बाद 27 सितंबर, 2014 को नारायण को गिरफ्तार कर लिया.
थाने में की गई पूछताछ में नारायण शरण ने प्रियंका की हत्या का अपराध तो स्वीकार किया ही, वह चाकू भी बरामद करा दिया, जिस से उस ने प्रियंका की हत्या की थी. पूछताछ में नारायण ने प्रियंका की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह इस प्रकार थी. नारायण शरण श्रीवास्तव मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बहराइच के कस्बा जरवल में अपने मातापिता के साथ रहता था. कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह एक डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा. जब उस ने इंजेक्शन वगैरह लगाना सीख लिया तो अपने घर में क्लीनिक खोल कर वह खुद डाक्टर बन गया.
एक तो वह सस्ता इलाज करता था, दूसरे लोगों को फायदा भी हो जाता था, इसलिए कुछ ही दिनों में उस की डाक्टरी की दुकान चल निकली. एक दिन उस के क्लीनिक में इलाज के लिए एक लड़की आई. उस का नाम चंदा था. नारायण ने उसे दवाएं दीं, जिसे खाने के बाद वह ठीक होने लगी. इस से उसे लगा कि नारायण बहुत अच्छा डाक्टर है. वह अकसर उस के यहां दवा लेने आने लगी. एक तरफ नारायण की दवाओं से चंदा ठीक हो रही थी तो दूसरी तरफ उस की खूबसूरती और मासूम अदाओं ने तथाकथित डाक्टर नारायण के दिल में हलचल मचा दी थी. नारायण भी कदकाठी से ठीकठाक था, इसलिए वह भी चंदा को अच्छा लगता था.
चंदा जब भी उस के यहां दवा लेने आती, घंटों बैठ कर उस से बातें करती रहती. शायद यह उम्र का असर था, क्योंकि दोनों ही जवानी की दहलीज पर खड़े थे. इस का नतीजा यह हुआ कि चंदा नारायण से दवा लेने के बहाने लगभग रोज उस के यहां आने लगी. चंदा पड़ोस के गांव के रहने वाले मुश्ताक की बेटी थी. जब उस के मांबाप को बेटी के रोजरोज डा. नारायण से मिलने की जानकारी हुई तो उन्होंने चंदा को ऊंचनीच और परिवार की इज्जत का वास्ता दे कर रोकने की कोशिश की. लेकिन चंदा पर जितनी बंदिशें लगाई गईं, उस के मन में नारायण से मिलने की ललक उतनी ही बढ़ती गई.
चूंकि नारायण और चंदा अलगअलग जाति के ही नहीं, अलगअलग धर्म से भी ताल्लुक रखते थे, इसलिए दोनों के घरवालों ने ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों ने उन के मिलने में रुकावटें डालनी शुरू कर दीं. लेकिन न चंदा को कोई रोक पाया, न नारायण को. जब नारायण और चंदा ने देखा कि उन के मिलने का विरोध कुछ ज्यादा ही हो रहा है तो उन के हाथ जो लगा, उसे ले कर दोनों अपनाअपना घरपरिवार छोड़ कर भाग गए. नारायण चंदा को ले कर दिल्ली आ गया. नारायण पढ़ालिखा समझदार लड़का था. दिल्ली में उस ने रहने की व्यवस्था तो कर ही ली, आमदनी का भी जरिया बना लिय.
धीरेधीरे वह खुद को व्यवस्थित करने की कोशिश कर ही रहा था कि न जाने कैसे चंदा के घर वालों को उस के ठिकाने का पता चल गया. लेकिन चंदा के पिता मुश्ताक उन दोनों तक पहुंचते, उस के पहले ही अपने ऊपर मंडराते खतरे को भांप कर नारायण वहां से चंदा को ले कर मुंबई चला गया. नारायण पढ़ालिखा व होशियार लड़का था. इसलिए वहां भी उसे कोई परेशानी नहीं हुई. कुछ न कुछ कर के वह इतना कमाने लगा कि दोनों की गुजरबसर आराम से हो सके. 1997 में नारायण चंदा को ले कर हरिद्वार आ गया. यहां उस ने चंदा का नाम बदल कर प्रियंका रख लिया और बकायदा उस से शादी कर ली. शादी करने के बाद नारायण और प्रियंका बाराबंकी आ गए, जहां दोनों ने एक छोटा सा जनरल स्टोर खोल लिया. जनरल स्टोर में ही वह छोटीमोटी बीमारियों का इलाज भी करने लगा था. इस से उस की कमाई दोहरी हो जाती थी.
ठीकठाक कमाई होने लगी तो घर की स्थिति में काफी सुधार आया. जल्दी ही उस ने घर में सुखसुविधा के तमाम साधन जुटा लिए. समय के साथ प्रियंका एकएक कर के 3 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 बेटे शिवम तथा हर्ष और एक बेटी श्रेया उर्फ गुनगुन थी. दोनों बेटे स्कूल जाने लगे थे, जबकि गुनगुन अभी छोटी थी. बच्चों की वजह से घर का माहौल खुशनुमा हो गया. बच्चों के साथ हंसतेखेलते प्रियंका और नारायण का समय आराम से कट रहा था. बच्चे ठीकठाक स्कूल में पढ़ रहे थे. सब कुछ ठीकठाक था. इस के बावजूद नारायण ने बाराबंकी छोड़ कर लखनऊ में रहने का विचार बनाया. लखनऊ में उस ने जानकीपुरम थानाक्षेत्र स्थित जानकी विहार कालोनी में राजकिशोर का मकान किराए पर लिया और परिवार के साथ रहने लगा. लखनऊ आने के बाद नारायण एलएलबी की पढ़ाई करने के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करने लगा.
एलएलबी की पढ़ाई पूरी हो गई तो रजिस्ट्रेशन करा कर नारायण वकालत करने लगा. साथ में उस का प्रौपर्टी डीलिंग का काम चल ही रहा था. घर आए मरीजों को वह दवा भी दे देता था. इस तरह पैसा कमाने के लिए वह एक साथ 3-3 काम कर रहा था. इस के लिए उसे मेहनत तो करनी पड़ रही थी, लेकिन कमाई खूब हो रही थी. इस कमाई से जल्दी ही उस का और प्रियंका का रहनसहन भी स्तरीय हो गया. नारायण ठाठ से रहने लगा तो प्रियंका भी बनठन कर रहने लगी. नारायण शरण का पूरा दिन दौड़धूप में बीतता था जिस की वजह से वह पत्नी और बच्चों को बिलकुल समय नहीं दे पाता था. जबकि प्रियंका चाहती थी कि वह भी कालोनी की अन्य महिलाओं की तरह अपने पति के साथ बांहों में बांहें डाल कर लखनऊ के बाजारों में घूमे. लेकिन पति की व्यस्तता की वजह से ऐसा हो नहीं पाता था.
नारायण के 3-3 बच्चे थे. उन का भविष्य संवारने के लिए उसे पैसों की जरूरत थी. इसलिए उस का ध्यान सिर्फ पैसा कमाने में लगा था. पैसा कमाने के चक्कर में वह यह भूल गया कि घरपरिवार की जरूरतों के अलावा पत्नी की भी कुछ इच्छाएं होती हैं. पति होने के नाते उन्हें पूरा करना उस का फर्ज है. जिस मकान में नारायण परिवार के साथ रहता था, उसी के बगल में किराए के मकान में अवधेश मिश्रा रहता था. 20 वर्षीय अवधेश काफी तेजतर्रार और आकर्षक व्यक्तित्व का युवक था. वह मूलरूप से जिला सीतापुर के थाना बिसवां के गांव लश्कर का रहने वाला था. लखनऊ में वह छोटीमोटी प्रौपर्टी डीलिंग का काम कर रहा था. लेकिन उस की उम्र चूंकि काफी कम थी इसलिए लोग उस पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे.
नौजवान होने की वजह से काम में उस का मन भी कम लगता था. वह दिनभर बनसंवर कर घूमा करता था. नारायण शरण भी प्रौपर्टी काम करता था और पड़ोस में ही रहता था. इसलिए अवधेश का उस के यहां भी आनाजाना था. वह नारायण की पत्नी प्रियंका को भाभी कहता था. कभीकभी वह अवधेश नारायण की अनुपस्थिति में भी उस के घर आ जाता था. उस स्थिति में वह प्रियंका से बातें करते हुए बच्चों के साथ खेलता रहता. प्रियंका को चूंकि वह भाभी कहता था, इसलिए कभीकभार उस से थोड़ीबहुत हंसीमजाक भी कर लेता था. जबकि प्रियंका अवधेश से खुल कर हंसीमजाक करती थी. अवधेश को प्रियंका का स्वभाव और बातें बहुत अच्छी लगती थीं, इसलिए नारायण के काम पर चले जाने के बाद जब वह घर में अकेली रह जाती तो अवधेश अपना ज्यादातर समय उसी के यहां बिताता.
दिन में प्रियंका के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे तो वह घर में अकेली रह जाती थी. जब वह बोर होने लगती तो बातें करने के लिए या तो खुद ही अवधेश को अपने घर बुला लेती या फिर उसी के कमरे पर चली जाती. एक दिन अवधेश बातचीत करते हुए प्रियंका से हंसीमजाक कर रहा था. बातोंबातों में वह प्रियंका की खूबसूरती के कसीदे काढ़ने लगा. यह देख प्रियंका ने मजाक में अवधेश की बेचैन आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘अवधेश, क्या सचमुच मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं? कहीं तुम मुझे खुश करने के लिए मेरी झूठी तारीफें तो नहीं कर रहे?’’
अवधेश ने प्रियंका को चाहत भरी नजरों से देखा. वह गहरी नजरों से उसे अपलक निहार रही थी. उस ने महसूस किया कि उस के दिल में जो बातें काफी दिनों से होंठों पर आने के लिए मचल रही हैं, उसे जुबां पर लाने का यह सुनहरा मौका है. दोपहर का वक्त था. प्रियंका के दोनों बेटे स्कूल गए थे और छोटी बेटी गहरी नींद सो रही थी. वह प्रियंका के करीब आया तो प्रियंका ने उसे कमरे का दरवाजा बंद करने का इशारा किया. प्रियंका के इशारे से वह समझ गया कि उस के दिल में उस के लिए भी वही भावना है, जो उस के दिल में प्रियंका के लिए है. अवधेश ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और प्रियंका को बांहों में ले कर उस के खूबसूरत चेहरे को बेतहाशा चूमने लगा.
अवधेश की इस हरकत से प्रियंका मदहोश हो गई और उस की आंखें बंद हो गईं. अवधेश ने जल्दीजल्दी प्रियंका के कपड़े उतारे और खुद भी उसी अवस्था में आ कर उस से लिपट गया. कुछ देर बाद वासना का तूफान शांत हुआ तो दोनों के चेहरों पर तृप्ति के भाव थे. अवधेश ने शरारत से मुसकराते हुए प्रियंका की ओर देखा तो कुछ पल पहले एकसाथ गुजारे हुए पलों की याद आते ही प्रियंका की नजरें नीचे झुक गईं. उस ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और अवधेश को अपने कमरे पर जाने को कहा. अवधेश के मन की मुराद पूरी हो चुकी थी. वह कपड़े पहन कर अपने कमरे पर चला गया.
उस दिन के बाद दोनों को मिलन के मौके का इंतजार रहने लगा. जब भी उन्हें मौका मिलता वे दुनिया की नजरों से छिप कर अपने जिस्म की प्यास बुझा लेते. जब से प्रियंका और अवधेश के संबंध बने थे, उन के रंगढंग काफी बदल गए थे. अब प्रियंका अवधेश का ज्यादा और नारायण का खयाल कम रखती थी. कुछ महीनों तक तो किसी को उन के बीच चल रहे अवैधसंबंधों की जानकारी नहीं हुई, लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. कुछ लोगों ने नारायण तथा बच्चों की अनुपस्थिति में अवधेश को प्रियंका के यहां बारबार आतेजाते देखा तो उन का माथा ठनका.
एक शादीशुदा औरत का एक जवान लड़के से भला क्या रिश्ता हो सकता है? लोगों ने इस बात पर गौर किया कि अवधेश प्रियंका से मिलने तभी जाता है, जब उस का पति नारायण शरण घर के बाहर रहता था. यह बात एक कान से होती हुई दूसरे कान तक पहुंची. प्रियंका और अवधेश के अवैध संबंधों की चर्चा गर्म होतेहोते एक दिन नारायण शरण के कानों तक भी जा पहुंची. अवधेश के अपने घर में घंटों गुजारने का पता चला तो उसे प्रियंका पर बहुत गुस्सा आया. उस ने प्रियंका से अवधेश के बारबार घर आने और घंटों बैठने का कारण पूछा तो प्रियंका त्रियाचरित्र दिखाते हुए तमक कर बोली, ‘‘अवधेश अच्छे स्वभाव का लड़का है. वह कभीकभार बच्चों के साथ खेलने हमारे घर आ जाता है तो इस में बुराई क्या है?’’
अपनी बीवी को एक गैर युवक की तरफदारी करते देख नारायण शरण के मन में यह बात बैठ गई कि लोग उस की पत्नी और अवधेश के बारे में ऐसीवैसी बातें यूं ही नहीं करते. आग वहीं लगती है, जहां धुआं उठता है. अपने मन में उठ रहे भावों पर काबू पाते हुए उस ने कहा, ‘‘अवधेश तेरा सगा भाई तो है नहीं कि जब चाहे मुंह उठाए हमारे घर में चला आए. जमाना बहुत खराब है. लोग उसे ले कर तुम्हारे बारे में तरहतरह की बातें करते हैं. हम लोग यहां के प्रतिष्ठित लोगों में हैं. तुम्हें अपनी और मेरी प्रतिष्ठा का खयाल रखना चाहिए.चलो मान लिया कि उसे मुझ से कोई काम है तो उसे मेरा मोबाइल नंबर दे कर मुझ से बात करने को कह दो. मैं नहीं चाहता कि मोहल्ले में कोई उसे ले कर तुम्हारे बारे में ऐसीवैसी बातें करे. आज तुम्हें अच्छी तरह समझा देता हूं. मेरी बात का ध्यान रखना, वरना ठीक नहीं होगा.’’
पति के नाराज होने पर प्रियंका ने बात को दबा देने में ही अपनी भलाई समझी, सो उस ने पति के सामने कह दिया कि आज के बाद अवधेश यहां नहीं आएगा. प्रियंका को अच्छी तरह समझाने के बाद नारायण शरण शांत हो गया. लेकिन पति के मना करने के बाद भी प्रियंका नहीं सुधरी. नारायण शरण सुबह काम पर चला जाता, उस के बाद दोनों बच्चे स्कूल चले जाते. उन के जाने के बाद प्रियंका अवधेश को अपने घर बुला लेती. नारायण के धमकाने के बाद प्रियंका थोड़ी सावधानी बरतने लगी थी. पति का गुस्सा शांत होने तक उस ने अवधेश को घर आने से मना जरूर कर दिया था. मगर दोनों ज्यादा दिनों तक एकदूसरे से मिले बिना नहीं रह पाए. जब नारायण शरण कोर्ट के काम से घर से बाहर होता, तो अवधेश प्रियंका से मिलने उस के घर आ जाता.
प्रियंका पर अवधेश का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था. इसलिए थोड़े दिनों के बाद जब नारायण शरण का ध्यान उन की ओर से हट गया तो प्रियंका ने अवधेश को खुश करने के लिए पति की गाढ़ी कमाई से सोने की चेन बनवा कर दी. यही नहीं, जब अवधेश ने देखा कि प्रियंका उस पर पूरी तरह मेहरबान है तो उस ने प्रियंका से कहा कि उसे काम पर आनेजाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, अगर वह उसे एक मोटरसाइकल खरीद दे तो उस की काफी मुश्किलें आसान हो जाएंगी. उन दिनों नारायण शरण का काम अच्छा चल रहा था, इसलिए घर में पैसों की कमी नहीं थी. अवधेश मिश्रा के प्यार में पागल प्रियंका ने मन ही मन सोचा कि अगर वह पति की नजरें बचा कर अवधेश को मोटरसाइकिल खरीदने के लिए रुपए दे देती है तो उसे पता तक नहीं चलेगा.
फलस्वरूप उस ने अवधेश को मोटरसाइकिल खरीदने के लिए रुपए दे दिए. कुछ दिनों बाद नारायण ने जब अवधेश को अपने घर के सामने से नई मोटरसाइकिल पर जाते देखा तो उसे लगा कि आजकल उसे अच्छी कमाई होने लगी है. लेकिन कुछ दिनों बाद जब नारायण ने घर में रखे रुपए गिने तो उस में काफी रुपए कम थे. उस ने इस बारे में प्रियंका से पूछा तो उस ने कहा कि उस के रखे रुपयों में उस ने हाथ तक नहीं लगाया. प्रियंका की बात सुन कर नारायण चुप रह गया. लेकिन उसे यकीन हो गया कि प्रियंका ने उसी के रुपयों से अपने प्रेमी को नई मोटरसाइकिल तथा सोने की चेन दिलाई है. इसी बात को ले कर नारायण ने प्रियंका से सवालजवाब किए तो वह नाराज हो कर मकान में चली गई.
दरअसल, कुछ दिन पहले ही नारायण ने अपना नया मकान बनवाया था जो बन कर तैयार हो गया था. वे लोग कुछ ही दिनों में उस में शिफ्ट होने वाले थे. गुस्से में नारायण ने पूरे दिन प्रियंका को वापस नहीं बुलाया. वह बिना खाएपिए ही वहां पड़ी रही. शाम ढलने पर नारायण यह सोच कर प्रियंका को बुलाने चला गया कि लोगों को उन के झगड़े का पता चलेगा तो उसी की बेइज्जती होगी. पति के द्वारा बुलाए जाने को प्रियंका ने अपनी जीत समझी. घटना वाले दिन नारायण किसी काम से बाहर गया था. देर रात को जब वह घर लौटा तो उस ने देखा कि उस के तीनों बच्चे बाहर सोए थे और घर का दरवाजा अंदर से बंद था.
उस का माथा ठनका. बच्चों को बाहर सुला कर प्रियंका घर में क्या कर रही है? मन में ऐसा विचार आते ही उस ने दरवाजे पर जोर से दस्तक दी. दरवाजा नहीं खुला तो आवाज दे कर जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अवधेश निकल कर वह अपने कमरे की ओर भागा. बीवी के यार को सामने से भागता देख कर नारायण की आंखों में खून उतर आया. वह अवधेश को मारने के लिए उस के पीछे लपका लेकिन उस की किस्मत अच्छी थी, इसलिए काफी दूर तक पीछा किए जाने के बाद भी वह नारायण के हाथ नहीं लगा.
अवधेश से बच कर निकल जाने से नारायण गुस्से से तमतमाया घर लौटा और प्रियंका के ऊपर बरस पड़ा. प्रियंका उस के चुभते सवालों का जवाब भले नहीं दे सकी, लेकिन बदहवासी में उस ने नारायण के गाल पर तमाचा जड़ दिया. बदचलन बीवी की हिम्मत देख कर वह क्षणभर के लिए अवाक रह गया. लेकिन अगले ही पल उस का धैर्य जवाब दे गया. उस ने पास रखा चाकू उठाया और पूरी ताकत से 2 वार प्रियंका के गले पर और एक वार गाल पर कर दिया. बुरी तरह घायल प्रियंका वहीं फर्श पर गिर कर तड़पने लगी. प्रियंका को तड़पते देख नारायण को होश आया कि मां के बिना उस के तीनों बच्चे तो अनाथ हो जाएंगे.
उस ने तुरंत छठामील पर रहने वाले अपने बड़े भाई हरिशंकर सहाय को फोन किया कि प्रियंका की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई है. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना होगा. हरिशंकर जानकीपुरम स्थित नारायण के घर पहुंचे तो नारायण चाकू सहित गायब था. जानकीपुरम के थानाप्रभारी आर.बी. सिंह ने जरूरी काररवाई के बाद प्रियंका उर्फ चंदा की हत्या के आरोप में उस के पति नारायण शरण को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जेल में बंद नारायण के तीनों बच्चे छठामील स्थित अपने ताऊ के घर रह रहे थे. Lucknow Crime Story
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित






