अगस्त, 2017 की शाम को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के राजनगर स्थित गौड़ मौल में काफी भीड़ थी. इस भीड़ में

शिवानी और आसिफ उर्फ आशू भी शामिल थे. दोनों काफी खुश थे, लेकिन किस की खुशियां कब गम में तब्दील हो जाएं, कोई नहीं जानता. साढ़े 6 बजे के करीब दोनों टहलते हुए मौल के बाहर आ गए. मौल के बाहर पार्किंग में शिवानी की स्कूटी खड़ी थी, जबकि आसिफ की एसयूवी कार सड़क के उस पार खड़ी थी. आसिफ ने शिवानी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा शिवानी, मैं चलता हूं.’’

‘‘चलो, मैं आप को कार तक छोड़ देती हूं.’’

‘‘नहीं, मैं चला जाऊंगा. क्यों बेकार में परेशान हो रही हो?’’

‘‘परेशान होने की क्या बात है, मैं चलती हूं.’’ शिवानी ने हंसते हुए कहा.

आसिफ अपनी कार के पास पहुंचा और बैठने से पहले शिवानी से थोड़ी बात की. शिवानी लौटने लगी तो आसिफ ने बैठने के लिए कार का दरवाजा खोला. वह कार में बैठ पाता, तभी 2 लड़के स्कूटी से आए और उस की कार की दूसरी ओर रुक गए. उन में से पीछे बैठा युवक मुंह पर सफेद अंगौछा बांधे था. दूसरा स्कूटी स्टार्ट किए खड़ा रहा. पीछे बैठा युवक तेजी से उतरा और आसिफ के सामने जा खड़ा हुआ. उस के हाथ में पिस्टल थी, जिसे देख कर आसिफ घबरा गया.

आसिफ कुछ समझ पाता, इस से पहले ही उस युवक ने आसिफ पर गोली चला दी. वह चिल्लाते हुए जान बचा कर भागा, तभी उस ने उस पर एक और गोली दाग दी. इस के बाद वह स्कूटी पर बैठ गया तो उस का साथी उसे ले कर भाग निकला.

गोली लगने से आसिफ सड़क पर ही लहूलुहान हो कर गिर पड़ा था. गोलियों के चलने से वहां अफरातफरी मच गई थी. शिवानी ने भी गोलियों के चलने की आवाज सुनी थी. वह भाग कर आसिफ के पास पहुंची. आसिफ की हालत देख कर उस की हालत पागलों जैसी हो गई.

पुलिस को घटना की सूचना दे दी गई थी. सूचना पा कर स्थानीय थाना कविनगर के इंसपेक्टर नीरज सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. उन्होंने तुरंत आसिफ को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

सरेआम हुई इस वारदात से घटनास्थल और उस के आसपास सनसनी फैल गई. एसपी (सिटी) आकाश तोमर और सीओ रूपेश सिंह भी मौके पर पहुंच गए. इन्होंने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. पुलिस ने घटनास्थल से पिस्टल के 2 कारतूसों के खोखे बरामद किए. शुरुआती पूछताछ में पता चला कि मृतक आसिफ उर्फ आशू शहर की चमन विहार कालोनी का रहने वाला था. उस का सबमर्सिबल के इलैक्ट्रिक पैनल बनाने का बड़ा कारोबार था.

शिवानी पर आसिफ को मरवाने का आरोप आसिफ के साथ मौल आई शिवानी शहर की ही रहने वाली थी. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. घटना की खबर पा कर मृतक के घर वाले आ गए थे. उन का कहना था कि आसिफ की हत्या शिवानी और उस के साथियों ने की है. शिवानी पर उन लोगों ने हत्या का सीधा आरोप लगाया था, क्योंकि आसिफ उसी के साथ मौल आया था.

इस हमले में शिवानी को खरोंच तक नहीं आई थी, जबकि वह काफी डरीसहमी थी. अस्पताल में उस का भी प्राथमिक इलाज किया गया. एसएसपी एच.एन. सिंह ने पुलिस को इस मामले का जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. आसिफ के घर वालों के आरोपों के आधार पर पुलिस ने शिवानी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया, जबकि वह हत्या में अपना हाथ होने से मना कर रही थी. उस का कहना था कि आसिफ उस का अच्छा दोस्त था. वह भला उस की हत्या क्यों कराएगी? यह हत्या उस के बौस ने कराई है, क्योंकि उसे उस की यह दोस्ती पसंद नहीं थी.

शिवानी भले ही हत्या की बात से मना कर रही थी, लेकिन मृतक के पिता खालिद की तहरीर के आधार पर पुलिस ने शिवानी, उस के बौस व 2 अन्य लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसपी सिटी के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन किया गया, जिस में थानाप्रभारी और उन के सहयोगियों के अलावा अपराध शाखा के पुलिसकर्मियों को भी शामिल किया गया.

पुलिस ने मौल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की रिकौर्डिंग चैक की तो उस में घटना कैद थी. हमलावर एक स्कूटी से आए थे, जिन में पीछे बैठे युवक ने गोली चलाई थी. लेकिन उन के चेहरे स्पष्ट नहीं थे. गोली चलने के बाद जिस तरह शिवानी ने पलट कर देखा था और आसिफ को बचाने के लिए दौड़ी थी, उस से लगता नहीं था कि उस की कोई मिलीभगत थी. पुलिस ने शिवानी को वह रिकौर्डिंग दिखाई तो उस ने हमलावर की शारीरिक कदकाठी देख कर उसे अपना बौस बताया.

अगले दिन पुलिस ने शिवानी से काफी घुमाफिरा कर पूछताछ की. उस के और आसिफ के मोबाइल की काल डिटेल्स हासिल कर उस का गहराई से अध्ययन किया, लेकिन इस से कोई सुराग हासिल नहीं हुआ. शिवानी का कहना था कि हत्या उस के बौस ने ही की है. क्योंकि वह उस से बेहद नाराज था. उस ने यह भी बताया कि घटना के बाद उस ने बौस को 2 बार फोन मिलाया था, लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की थी. ऐसा पहली बार हुआ था.

शिवानी के बौस का नाम दिनेश था और वह शहर से लगे गांव चिपियाना का रहने वाला था. उस का प्रौपर्टी का कारोबार था. उस का औफिस एक इंस्टीट्यूट के पास था. शिवानी वहीं काम करती थी. पुलिस ने दिनेश के घर और औफिस पर छापा मारा तो दोनों जगह ताला लगा मिला. वह परिवार सहित फरार हो गया था. इस से पुलिस का शक और मजबूत हो गया. पुलिस ने उस के नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई तो पता चला कि वारदात के समय उस के फोन की लोकेशन औफिस की ही थी. इस का मतलब उस ने यह वारदात बदमाशों से कराई थी या फिर जानबूझ कर अपना मोबाइल फोन औफिस में छोड़ दिया था. क्योंकि शिवानी उसी पर हत्या का आरोप लगा रही थी. शायद इसीलिए उस ने शिवानी का फोन रिसीव नहीं किया था.

दिनेश के यहां काम करने वाले दोनों लड़कों लकी और राजीव के मोबाइल फोन की लोकेशन पता की गई तो वह गौड़ मौल की पाई गई. इस से साफ हो गया कि आसिफ की हत्या में दिनेश का ही हाथ है. इस जानकारी के बाद पुलिस ने शिवानी को घर जाने दिया, लेकिन उसे शहर छोड़ कर जाने से मना कर दिया था. पुलिस ने उस के नंबर को भी सर्विलांस पर लगा दिया था.

पुलिस खुद भी दिनेश के बारे में पता करने लगी, साथ ही मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया. परिणामस्वरूप 8 अगस्त की रात पुलिस ने दिनेश को उस के एक साथी सहित गाजियाबाद के लालकुआं से रात साढ़े 12 बजे गिरफ्तार कर लिया. बाद में पता चला कि उस के साथ पकड़ा गया युवक लकी था. तलाशी में उन के पास से एक पिस्टल और कारतूस बरामद हुए. पुलिस ने उन्हें थाने ला कर पूछताछ की तो आसिफ की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

दरअसल, आसिफ और शिवानी की दोस्ती बहुत गहरी थी. वह शिवानी के घर भी आताजाता था. दोनों की जानपहचान और अपनत्व का यह रिश्ता उन के घर वालों से भी नहीं छिपा था. आसिफ एक तरह से शिवानी के घर के सदस्य की तरह था, इसलिए उन के रिश्ते को कोई शक की नजरों से नहीं देखता था. करीब 2 साल पहले शिवानी ने दिनेश के औफिस में नौकरी कर ली. शिवानी खूबसूरत और समझदार लड़की थी. उस ने बहुत जल्द दिनेश के औफिस का सारा काम संभाल लिया. भरोसा हुआ तो वह एकाउंट का काम भी देखने लगी. वक्त के साथ दिनेश उस की ओर आकर्षित होने लगा. वह मन ही मन शिवानी को प्यार करने लगा. लेकिन उस की और शिवानी की उम्र में काफी फासला था.

दिनेश शादीशुदा था, इस के बावजूद वह दिल के हाथों हार गया. यह बात अलग थी कि शिवानी उस की चाहत से बेखबर थी. चूंकि दिनेश शिवानी को चाहने लगा था, इसलिए उस का खास खयाल रखने लगा. शिवानी उस के इस खयाल रखने को अपनत्व और बौस का प्यार समझती थी. दिनेश के दिल में शिवानी के लिए जो सोच थी, उसे उस ने उस पर कभी जाहिर नहीं किया. उसे पूरी उम्मीद थी कि एक दिन ऐसा आएगा, जब शिवानी उस की चाहत को समझ जाएगी और उसे जी भर कर खुशियां देगी. इसी उम्मीद में वह उसे एकतरफा प्यार करता रहा.

सामने आई शिवानी की दोस्ती दिनेश को पता नहीं था कि शिवानी की आसिफ से दोस्ती है. यह राज उस पर तब खुला, जब वह शिवानी के औफिस भी आने लगा. उस का आनाजाना बढ़ा तो दिनेश का ध्यान उस की ओर गया. उसे यह नागवार गुजरा. वक्त के साथ आसिफ का आनाजाना बढ़ा तो दिनेश को शक हुआ. तब उस ने एक दिन शिवानी से पूछा, ‘‘शिवानी, एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘पूछिए सर.’’  ‘‘यह जो लड़का तुम से मिलने आता है, यह कौन है?’’

दिनेश की इस बात पर पहले तो शिवानी चौंकी, उस के बाद बताया, ‘‘सर, उस का नाम आसिफ है. वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त है.’’

दिनेश को लगा, शिवानी का आसिफ से गहरा रिश्ता है. वह खामोश हो गया. शिवानी ने दिनेश की इस बात को सामान्य ढंग से लिया था, जबकि उस के दिमाग में शिवानी और आसिफ के रिश्तों को ले कर उथलपुथल मची थी. शिवानी को ले कर उस ने जो ख्वाब देखे थे, उसे बिखरते नजर आ रहे थे.

दिनेश के औफिस में राजीव और लकी भी काम करते थे. लकी गाजियाबाद के ही दुहाई गांव का रहने वाला था, जबकि राजीव दिल्ली के वजीराबाद का रहने वाला था. ये दोनों ही दिनेश के विश्वासपात्र थे. दिनेश ने दोनों को शिवानी की निगरानी पर लगा दिया. उन्होंने दिनेश को बताया कि शिवानी आसिफ के साथ अकसर घूमती है.

एक साल पहले की बात है. शिवानी के पिता की मौत हो गई थी. उन की तेरहवीं पर दिनेश उस के घर गया तो उस ने आसिफ को भी वहां पाया. वह वहां शिवानी के घर के सदस्य की तरह काम कर रहा था. कहां उस ने सोचा था कि शिवानी उस की खुशियों में चार चांद लगा देगी, लेकिन यहां तो आसिफ उस की खुशियों में ग्रहण बन गया था. अब उस का सब्र जवाब दे गया. एक दिन उस ने शिवानी से कहा, ‘‘मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं शिवानी.’’

‘‘कहिए सर, क्या कहना चाहते हैं?’’

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम आसिफ का साथ छोड़ दो.’’

‘‘सर, यह आप क्या कह रहे हैं? अगर आसिफ से मेरी दोस्ती है तो इस में बुराई क्या है?’’ शिवानी ने पूछा.

दिनेश ने उसे समझाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘शिवानी, मैं तुम्हारा बेहतर भविष्य चाहता हूं. मैं ने उस के बारे में पता कराया है, वह अच्छा लड़का नहीं है. उस के चक्कर में तुम कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाओ. वैसे भी वह दूसरे मजहब का है.’’

‘‘बात मजहब की नहीं है सर. वह मेरा पुराना दोस्त है. उस के और मेरे घरेलू संबंध हैं.’’

अच्छा नहीं लगा शिवानी का जवाब दिनेश को शिवानी की यह बात नागवार गुजरी. उस ने कहा, ‘‘क्या मेरी बात की तुम्हारे लिए कोई अहमियत नहीं है?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है सर, मैं आप के यहां नौकरी करती हूं. लेकिन मेरे निजी मामले में आप जिस तरह दखलंदाजी कर रहे हैं, यह ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं तुम्हारा भला चाहता हूं, इसीलिए उस से दूर रहने की सलाह दे रहा हूं.’’

‘‘आसिफ को मैं कई सालों से जानती हूं. मुझे उस में कोई बुराई नजर नहीं आती. वैसे भी मैं अपना अच्छाबुरा समझती हूं.’’ शिवानी ने बेरुखी से कहा.

शिवानी के इस जवाब से दिनेश खामोश हो गया. यह बात अलग थी कि शिवानी की बातें उस के दिल को लग गई थीं. शिवानी तो इन बातों को भूल गई, लेकिन दिनेश नहीं भूला था. उस ने शिवानी से कह भी दिया था कि आसिफ अब उस से मिलने औफिस में नहीं आना चाहिए.

आसिफ दिनेश के औफिस भले ही नहीं आता था, लेकिन औफिस के बाहर शिवानी से उस का मिलनाजुलना लगातार जारी रहा. इन बातों से दिनेश चिढ़ गया. एक दिन उस ने शिवानी को चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘शिवानी, आसिफ से दूर हो जाओ वरना कहीं ऐसा न हो कि मेरे हाथों उस का कुछ बुरा हो जाए.’’

दिनेश दबंग किस्म का आदमी था. शिवानी जानती थी कि वह कुछ भी कर सकता है. उस की चेतावनी से डर कर शिवानी ने वादा करते हुए कहा, ‘‘ठीक है सर, अगर आप को अच्छा नहीं लगता तो मैं उस से दूर रहूंगी.’’

रिश्तों के अपने मायने होते हैं, लेकिन कुछ रिश्ते मजबूरियां भी बन जाते हैं. शिवानी के साथ भी दिनेश का रिश्ता कुछ ऐसा ही हो गया था. पिता के मरने के बाद उस की जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं. दिनेश ने न सिर्फ उसे रोजगार दिया था, बल्कि उस पर उस के कई एहसान भी थे, इसलिए वहां नौकरी करना उस की मजबूरी थी.

दिनेश की चेतावनी से डर कर कुछ दिनों के लिए शिवानी ने आसिफ से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उसे अपनी जिंदगी जीने का पूरा हक था. उस के रिश्ते किस से हों, यह तय करना भी उस का काम था. लेकिन दिनेश जबरन दखलंदाजी कर रहा था. सही बात तो यह थी कि शिवानी आसिफ से रिश्ता नहीं तोड़ना चाहती थी, इसीलिए वह आसिफ से फिर मिलनेजुलने लगी.

दोस्ती के लिए शिवानी का झूठ  दिनेश जब भी इस बारे में पूछता, वह झूठ बोल देती. दिनेश का सोचना था कि आसिफ से दूर होने के बाद शिवानी उस के पहलू में आ गिरेगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दिनेश ने अपने आदमी फिर शिवानी के पीछे लगा दिए. पता चला कि शिवानी ने आसिफ से मिलनाजुलना बंद नहीं किया था.

दिनेश किसी भी कीमत पर शिवानी को खोना नहीं चाहता था. यही वजह थी कि आसिफ को वह फूटी आंख नहीं देखता था. वह चाहता था कि शिवानी आसिफ से किसी तरह अलग हो जाए. यह बात जुनून की हद तक उस के दिमाग पर हावी हो गई थी. वह दिनरात इसी बारे में सोचने लगा. उसे लगा कि शिवानी आसिफ का साथ छोड़ने वाली नहीं है. अगर उस ने कुछ नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं, जब शिवानी दबाव पड़ने पर नौकरी छोड़ देगी. वह उसे दिल से चाहता था, इसलिए नहीं चाहता था कि शिवानी उस से दूर हो.

कई दिनों की दिमागी उथलपुथल के बाद दिनेश ने सितंबर महीने में आसिफ को ही रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. आसिफ के लिए उस के दिल में यह सोच कर और भी नफरत पैदा हो गई कि उसी की वजह से शिवानी उस की नहीं हो पा रही थी.

उस ने सोचा कि अगर आसिफ को ही हमेशा के लिए हटा दिया जाए तो शिवानी का ध्यान पूरी तरह उस की ओर हो जाएगा. वेतन बढ़ाने और भविष्य में बड़ी जरूरतों को पूरा करने का वादा कर के उस ने इस साजिश में अपने कर्मचारियों राजीव और लकी को भी शामिल कर लिया. इस के बाद हत्या के लिए उस ने एक अवैध पिस्टल भी खरीद ली.

हत्या के बाद कोई उस पर शक न कर सके, इसलिए दिनेश ने योजना के तहत 2 नए मोबाइल फोन व उन के लिए सिमकार्ड खरीद लिए. इन में से एक मोबाइल फोन उस ने अपने पास रख लिया और दूसरा राजीव को दे दिया. शिवानी के औफिस से निकलते ही दिनेश राजीव को उस के पीछे लगा देता था. वह जहांजहां जाती थी, राजीव सारी खबर उसे देता रहता था. शिवानी आसिफ के साथ कभी मौल में घूमती तो कभी फिल्म देखने चली जाती. इस से दिनेश को विश्वास हो गया कि शिवानी किसी भी हालत में आसिफ को छोड़ने वाली नहीं है. अब वह आसिफ को निपटाने की फिराक में रहने लगा.

बेगुनाह के खून से रंगे हाथ  4 अगस्त की शाम शिवानी औफिस से टाइम से पहले ही निकल गई. इस से दिनेश को लगा कि आज वह आसिफ से मिलने जा रही है. उस ने राजीव को उस के पीछे भेज दिया. शिवानी गौड़ मौल में आसिफ से मिलने गई थी. यह बात राजीव ने दिनेश को बता दी.

दिनेश ने लकी से साथ चलने को कहा. उस पर पुलिस को शक न हो, इस के लिए उस ने सबूत के तौर पर अपना मोबाइल फोन औफिस में ही छोड़ दिया. वह लकी के साथ स्कूटी से गौड़ मौल पहुंचा. थोड़ी दूर पर खड़े हो कर दोनों आसिफ के बाहर आने का इंतजार करने लगे.

आसिफ बाहर निकला तो राजीव ने फोन कर के बता दिया. इस के बाद दिनेश ने स्कूटी से जा कर आसिफ को गोली मार दी और वहां से भाग गया.

अगले दिन अखबारों में दिनेश ने पढ़ा कि शिवानी ने उस के खिलाफ बयान दिया है तो वह जयपुर भाग गया.

मामला थोड़ा शांत हुआ तो वापस आ कर वह लकी से मिला. इस के बाद पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया. दिनेश के पास जो पिस्टल मिली थी, आसिफ की हत्या में उसी का उपयोग किया गया था.

अगले दिन पुलिस ने दिनेश और लकी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीसरे हत्यारोपी राजीव की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी. पुलिस उस की सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

जांच के बाद शिवानी की कोई संदिग्ध भूमिका नहीं पाई गई. शिवानी को हासिल करने की दिनेश की ललक का आसिफ बेवजह शिकार हो गया.

आखिर दिनेश को ही क्या मिला? आसिफ की हत्या के आरोप में वह जेल जरूर चला गया. उस ने विवेक से काम ले कर अगर अपने जुनून से किनारा कर लिया होता तो शायद ऐसी नौबत कभी न आती.?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

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