—श्वेता पांडेय

गंगाराम अपनी मां दुलारीबाई से किसी भटियारिन की तरह हाथ नचाता हुआ गुस्से से बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार बोला है कि मुझे निकासी के लिए रास्ता दो. मुझे लंबा चक्कर काट कर घर तक पहुंचना पड़ता है. उस समय तो और परेशानी बढ़ जाती है जब खेतों से फसल बैलगाड़ी में लाद कर लाते हैं.

‘‘आखिर मेरी बात तुम कब समझोगी. हर साल इसी बात का रोना होता है. सवा महीने बाकी हैं, फसल तैयार हो चुकी है. मुझे निकासी के लिए रास्ता चाहिए. और उस 2 एकड़ खेत में से हिस्सा भी चाहिए. मैं भी परिवार वाला हूं.’’

‘‘अच्छा. अभी तो मांबाप को पूछता नहीं है और जिस दिन जमीन से हिस्सा मिल गया, मांबाप मानने से भी इनकार कर देगा. गंगाराम, मैं ने दुनिया देखी है. बंटवारा हुआ नहीं कि मांबाप के हाथ में कटोरा थमा दोगे. बुढ़ौती में भीख मांगनी पड़ जाएगी.

दोनों मांबेटे में इसी तरह काफी देर तक झगड़ा चलता रहा. उसी समय गंगाराम के पिता बालाराम खेत से घर लौटे. दुलारी ने बेटे की शिकायत अपने पति से की, ‘‘लो, संभालो अपने बेटे को, जो जी में आता है बोलता ही चला जाता है.’’

गंगाराम अपने पिता से बोला, ‘‘बाबूजी, मां को समझाओ और संभालो नहीं तो किसी दिन मेरा मूड खराब हो गया तो इसे गंडासे से काट कर नदी में.’’

बालाराम ने बीच में हस्तक्षेप किया, ‘‘बहुत बोल चुका,’’ उन्होंने अपनी पत्नी दुलारी का पक्ष लिया, ‘‘अब अगर तू अपनी मां को एक भी शब्द बोला तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

इस झगड़े के बीच गंगाराम की पत्नी निर्मला पति का हाथ पकड़ कर बाहर लाने लगी. गंगाराम ने निर्मला का हाथ झटक दिया, ‘‘आज मैं बुड्ढे बुढि़या को छोड़ूंगा नहीं.’’

कहता हुआ गंगाराम अपने पिता बालाराम से जा भिड़ा. बापबेटे को एकदूसरे से हाथपाई करते देख गांव के लोग जमा हो गए.

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गांव वालों ने बापबेटे को बड़ी मुश्किल से एकदूसरे से अलग किया. गंगाराम लोगों की बांहों में जकड़ा हुआ कसमसा रहा था. साथ ही गुस्से से चीखता रहा.

दोनों एकदूसरे के कट्टर विरोधी हो गए. कोढ़ में खाज यह हुआ कि इसी बीच निर्मला बीमार रहने लगी. इस के लिए निर्मला अपनी सास दुलारीबाई को जिम्मेदार ठहराने लगी. वह सास पर यह आरोप लगाती कि उस ने उस के ऊपर कोई टोनाटोटका करा दिया है.

गंगाराम ने कई ओझागुनिया को पत्नी को दिखाया. मर्ज यह था कि निर्मला के सिर में दर्द बना रहता था और शाम को बुखार चढ़ने लगता था.

झाड़फूंक से कोई सुधार न हुआ तो वह डाक्टर के पास गया. टेस्ट करवाने पर पता चला कि निर्मला को टायफायड है. एलोपैथी दवा भी चली और झाड़फूंक भी. पता नहीं किस ने असर दिखाया, निर्मला धीरेधीरे ठीक होने लगी.

गंगाराम और उस की पत्नी निर्मला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की सास दुलारीबाई किसी तांत्रिक ओझा से मिल कर उन्हें बरबाद करने पर तुली है.

इस बात पर गंगाराम की सोच भी निर्मला की सोच से अलग नहीं थी. निर्मला जब पूरी तरह से ठीक हो गई और उस के शरीर में जान आ गई तब वह अपनी सास पर इलजाम लगाने लगी.

एक बार फिर दोनों पक्षों में तकरार और झिकझिक होने लगी. वह एकदूसरे के लिए गलत भावनाएं रखने लगे. फिर वही समय आया, नवंबर दिसंबर का. फसल तैयार हो कर खेत से कोठरी में जाने को तैयार थी.

मुद्दा फिर वही उठा कि बैलगाड़ी में रखे अनाज को दूसरे रास्ते से लाना होगा. बालाराम और दुलारी किसी भी तरह से इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि निकासी के लिए बाड़ी से जगह दी जाए. हर साल फसल तैयार होने के बाद यही सवाल खड़ा हो जाया करता था.

कई सालों से यह निकासी का मसला न तो सुलझ रहा था और न ही दूरदूर तक कोई समाधान ही दिखाई दे रहा था.

आज भी इसी विवाद को ले कर गंगाराम और निर्मला दोनों का मन खिन्न था. खाना खाने के बाद दोनों पतिपत्नी टीवी देखने लगे.

टीवी पर वह क्राइम स्टोरी पर आधारित सीरियल देख रहे थे. उस सीरियल की कहानी उन की जिंदगी से जुड़ी जैसी थी. दोनों ने बड़े ध्यान से खामोशी के साथ वह सीरियल देखा. सीरियल खत्म होने के बाद दोनों ने उस पर चर्चा की.

गंगाराम और उस की पत्नी को इस बात की चिंता हो रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि मांबाप पूरी जमीन छोटे भाई रोहित के नाम कर जाएं. वैसे भी छोटा होने के नाते वह मांबाप का चहेता था.

इस सोच ने निर्मला और गंगाराम को परेशान कर डाला. जब इंसान को कोई चीज मिलने की संभावना दिखाई न देती है, तब वह उसे किसी दूसरे ही तरीके से हासिल करने की कोशिश में लग जाता है. इन दोनों ने भी एक योजना बना ली.

गंगाराम और निर्मला ने एक योजना के तहत अपने व्यवहार में थोड़ाबहुत बदलाव किया. अपने पिता बालाराम और मां दुलारीबाई से सहजता से पेश आने लगे. बालाराम और दुलारी को आश्चर्य हुआ कि हमेशा कड़वे बोल बोलने वालों की जुबान में शहद कैसे घुल गया.

इस के बाद उन दोनों ने विचारविमर्श किया कि अपनी योजना में किसे शामिल किया जाए, जिस से उन की योजना सफल हो जाए. नजर और दिमाग के घोड़े दौड़ाने के बाद गंगाराम ने धुधवा गांव के ही नरेश सोनकर, योगेश सोनकर और कोपेडीह निवासी रोहित सोनकर से जिक्र किया.

पैसों के लालच में तीनों ही उन की योजना में शामिल हो गए. तीनों ने योजना बना कर वारदात को अंजाम देने के लिए 21 दिसंबर, 2020 का दिन तय किया.

योजना के अनुसार, चारों लोग खेत पर पहुंच गए. वहां बालाराम और उस का छोटा बेटा रोहित तड़के में खेतों पर पानी लगा रहे थे. उन्होंने उन दोनों को दबोच लिया और सीमेंट की बनी पानी की हौदी में डुबो कर दोनों को मार दिया.

अगला निशाना अब दुलारीबाई और उस की बहू कीर्तिनबाई रही. चारों दबेपांव वहां पहुंचे, जहां वे सब्जियों का गट्ठर तैयार करने में व्यस्त थीं. शिकारी की तरह दबेपांव वे उन के करीब पहुंचे और कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ वार कर उन दोनों की जिंदगी भी खत्म कर दी.

इतना सब कुछ करने के बाद उन लोगों ने चैन की सांस ली. यहां यह बताते चलें कि निर्मला उन चारों को ऐसा करते हुए दरवाजे की ओट से देख रही थी. काम को अंजाम देने के बाद गंगाराम ने तीनों साथियों को वहां से रवाना कर दिया.

निर्मला और गंगाराम दोनों ने मिल कर कुल्हाड़ी को बाड़ी में ही दबा दिया. सुबह के 5 बजतेबजते पूरे खुरमुड़ा गांव में इस दहला देने वाली हत्या की चर्चा होने लगी.

अम्लेश्वर थाने में संजू सोनकर निवासी खुरमुड़ा की रिपोर्ट पर अमलेश्वर थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने इस नृशंस हत्याकांड की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी.

जांचपड़ताल के लिए फोरैंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. आईजी विवेकानंद सिन्हा के सुपरविजन में जांच होती रही. पुलिस को किसी तरह का कोई सूत्र नहीं मिल रहा था जिस से जांच आगे बढ़ती.

डौग स्क्वायड टीम घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. मृतकों के शव के समीप ले जा कर कुत्ते को छोड़ दिया गया. खोजी कुत्ता गोलगोल चक्कर लगाता हुआ मृतकों को सूंघ कर खेत की ओर कुछ दूर तक गया.

मौके की जांच से इतना तो स्पष्ट था कि हत्यारे 2-3 से कम नहीं थे. खेत में रासायनिक छिड़काव कर दिया गया था, जिस के कारण खोजी कुत्ते को सही दिशा नहीं मिल पा रही थी.

बहरहाल, पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जब पुलिस को किसी तरह का सूत्र नहीं मिला तो पुलिस ने गंगाराम के साढ़ू नरेश सोनकर को विश्वास में ले कर मुखबिरी का जिम्मा सौंपा.

नरेश मंझा हुआ खिलाड़ी था. उस ने पुलिस को मुखबिरी करने के बहाने उलझाए रखा. जांच के लिए आईजी विवेकानंद सिन्हा ने कुछ बिंदु तय किए.

उन बिंदुओं को आधार बना कर पुलिस जांच में जुटी रही. इस सामूहिक हत्याकांड को हुए 3 महीने बीत चुके थे. लेकिन अपराधियों का कोई अतापता नहीं था.

थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने अपने एक मुखबिर को नरेश के पीछे लगा दिया. नरेश की एक्टिविटी पुलिस को शुरू से ही संदेहास्पद लगी थी.

फोरैंसिक विशेषज्ञों की टीम के सहयोग से भौतिक साक्ष्य जुटाया गया. टीम ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी साक्ष्य को आधार बना कर बारीकी से पूछताछ कर जानकारी इकट्ठी की.

पुलिस ने संदेहियों को हिरासत में ले कर सघन पूछताछ की. इस घटना का मास्टरमाइंड बालाराम का अपना सगा बड़ा बेटा गंगाराम निकला.

गंगाराम की स्वीकारोक्ति के बाद योगेश सोनकर, नरेश सोनकर, रोहित सोनकर उर्फ रोहित मौसा को गिरफ्तार कर लिया गया. सभी को घटनास्थल पर ले जा सीन रीक्रिएशन कराया गया.

आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी पुलिस ने बालाराम की बाड़ी से बरामद कर ली.

घटना के वक्त पहने गए कपड़ों को इन चारों ने ठिकाने लगा दिया था. 18 मार्च, 2021 को आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिस में निर्मला भी शामिल थी. इन चारों आरोपियों का नारको टेस्ट भी कराया गया.

आईजी विवेकानंद सिन्हा ने अमलेश्वर थाना स्टाफ की पीठ थपथपाई. पुलिस ने सभी आरोपियों गंगाराम, उस की पत्नी निर्मला, योगेश सोनकर, नरेश सोनकर और रोहित सोनकर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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