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मेवाराम यादव 8 जून, 2018 को अपनी बेटी ममता की ससुराल थाना सिरसागंज के गांव इंदरगढ़ गए थे. वहां के किसी वैद्य से उन्हें अपनी दवा लेनी थी. दवा ले कर उन्हें अगले दिन ही दोपहर तक घर लौटना था. लेकिन इस से पहले ही 9 जून की सुबह करीब 5 बजे उन के मोबाइल पर उन के बेटे सुनील की बहू अंशिका का फोन आया.

उस समय वह बहुत घबराई हुई थी. उस ने कहा, ‘‘पापा आप जल्दी से घर आ जाओ, सूर्यांश के पापा सुबह 3 बजे घर से दिशा मैदान के लिए गए थे, लेकिन 2 घंटे हो गए अब तक नहीं लौटे हैं. वह अपना मोबाइल भी घर पर छोड़ गए थे.’’

बहू की बात सुन कर मेवाराम घबरा गए. उन्होंने बहू से कहा कि वह चिंता न करे, वे अभी गांव आ रहे हैं.

बात बेटे के लापता होने की थी, इसलिए उन्होंने बेटी के ससुर यानी अपने समधी दिगंबर सिंह को यह बात बताई और अपनी बाइक उठा कर वापस अपने गांव नगला जलुआ के लिए चल दिए. इंद्रगढ़ से उन के गांव की दूरी बाइक से मात्र 30 मिनट की थी. रास्ते भर उन के दिमाग में यही बात घूम रही थी कि आखिर उन का बेटा सुनील चला कहां गया.

घर पहुंच कर उन्होंने अपनी बहू अंशिका से पूरी जानकारी ली. अंशिका ने बताया कि वह सुबह 3 बजे के करीब दिशा मैदान गए थे. उस समय वह केवल अंडरवियर और बनियान पहने हुए थे. जब वह काफी देर बाद भी वापस नहीं आए तब मुझे चिंता हुई और मैं ने घर से बाहर जा कर उन्हें खेतों की ओर तलाशा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दिए.

सुनील मेवाराम का 28 साल का बेटा था. उन्होंने करीब 5 साल पहले उस की शादी अंशिका से की थी. वह भी सुनील को खोजने के लिए जंगल की तरफ चल दिए. उन के साथ गांव के कुछ लोग भी थे. उन्होंने बेटे को संभावित जगहों पर ढूंढा लेकिन पता नहीं लगा.

जब वह वापस घर की तरफ आ रहे थे तभी रास्ते में मिले कुछ लोगों ने उन्हें बताया कि रेलवे लाइन के किनारे झाडि़यों में एक बोरी पड़ी है. देखने से लग रहा है कि उस में कोई लाश है. खून भी रिस रहा है.

इतना सुनते ही मेवाराम गांव वालों के साथ रेलवे लाइन की तरफ चल दिए. लाइन गांव से लगभग 200 मीटर दूर दक्षिण दिशा में थी.

सभी लोग वहां पहुंचे तो लाइन के पास की झाडि़यों में एक बोरा पड़ा था, बोरे से जो खून रिस रहा था उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं. लोगों ने जब गौर से देखा तो खून की बूंदें थीं. ऐसा लग रहा था कि बोरी को कुछ समय पहले ही ला कर फेंका गया है.

वैसे तो वह बोरी पुलिस की मौजूदगी में ही खोली जानी चाहिए थी. लेकिन बोरी देख कर मेवाराम की धड़कनें बढ़ गई थीं. बोरी के अंदर क्या है, यह देखने की उन की उत्सुकता बढ़ गई थी. इसलिए उन्होंने गांव वालों के सामने जब बोरी खुलवाई तो उस में उन के बेटे सुनील की ही लाश निकली.

बेटे की लाश देखते ही मेवाराम गश खा कर जमीन पर बैठ गए और रोने लगे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उन के बेटे की हत्या किस ने और क्यों की. इस के बाद तो यह खबर जल्द ही आसपास के गांवों में भी फैल गई. जिस से वहां तमाम लोग इकट्ठा हो गए. सभी आपस में तरहतरह के कयास लगा रहे थे.

गांव के ही किसी व्यक्ति ने पुलिस को घटना की सूचना दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए.

पुलिस ने जब लाश का निरीक्षण किया तो उस के सिर और शरीर पर तेज धारदार हथियार के घाव थे. इस के अलावा उस की नाक भी कटी हुई थी. सारे घावों से जो खून निकला था, उसे देख कर लग रहा था कि उस की हत्या कुछ घंटों पहले ही की गई थी.

रास्ते में जो खून के निशान थे उन का पीछा किया गया तो वह भी गांव के पास तक मिले. उस के बाद उन का पता नहीं चला. इन सब बातों से पुलिस को इतना तो विश्वास हो गया कि सुनील की हत्या गांव में ही करने के बाद उस की लाश यहां डाली गई थी.

थानाप्रभारी ने मृतक के पिता मेवाराम से बात की तो उन्होंने किसी व्यक्ति पर कोई शक नहीं जताया. तब थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

मेवाराम उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के गांव नगला जलुआ में रहते थे. वह गांव में ही टेलरिंग का काम करते थे. उन के 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. उन के पास खेती की 3 बीघा जमीन थी जो बंटाई पर दे रखी थी. टेलरिंग की कमाई से ही वह अपने 4 बच्चों का विवाह कर चुके थे. केवल छोटा बेटा सनी ही शादी के लिए बचा था.

मेवाराम की पत्नी मुन्नी देवी की 3 साल पहले मौत हो चुकी थी. सब से बड़ा सुनील पिछले 4 साल से दक्षिणी दिल्ली के फतेहपुर बेरी स्थित एक फैक्ट्री में सिलाई का काम करता था. यह फैक्ट्री रेडीमेड कपड़े एक्सपोर्ट करती थी. सुनील के दोनों छोटे भाई संजय व सनी भी उसी के साथ रह कर ड्राइवरी करते थे. फतेहपुर बेरी में ही सुनील की बहन पिंकी की सुसराल थी. वहीं पास में ही उन्होंने किराए पर मकान ले लिया था.

मेवाराम ने सुनील की शादी 5 साल पहले फिरोजाबाद के गांव ढोलपुरा निवासी वीरेंद्र यादव की बेटी अंशिका उर्फ अनुष्का के साथ की थी. सुनील का डेढ़ साल का बेटा सूर्यांश था. जबकि संजय का अभी कोई बच्चा नहीं था. सुनील और संजय कुछ दिनों के लिए बारीबारी से अपनी पत्नी को गांव से दिल्ली लाते थे.

अंशिका जब दिल्ली से अपनी ससुराल नगला जलुआ लौटती थी तो वहां से जल्द ही अपने मायके ढोलपुरा चली जाती थी. मई 2018 के शुरू में सुनील अंशिका के साथ दिल्ली से अपने गांव आया, कुछ दिन गांव में रहने के बाद वह पत्नी व बेटे सूर्यांश को ढोलपुरा छोड़ कर वापस दिल्ली चला गया.

उस के बाद 28 मई को दिल्ली से सुनील पत्नी को लेने आया. वह अपनी ससुराल से पत्नी व बेटे को अपने गांव नगला जलुआ ले आया. उस ने अंशिका से कह दिया था कि 10 जून को दिल्ली चलेंगे. लेकिन दिल्ली लौटने से पहले ही सुनील की हत्या हो गई.

थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम मेवाराम से बात करने के लिए उन के घर पहुंच गए. पूछताछ में मेवाराम ने बताया कि सुनील सुबह 3 बजे दिशा मैदान के लिए कभी नहीं गया, और न ही वह केवल अंडरवीयर में जाता था. उन्होंने बताया कि उन्हें शक है कि सुनील की पत्नी अंशिका उस से कुछ छिपा रही है. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुनील के कमरे का निरीक्षण किया तो उन्हें सड़क की ओर के दरवाजे पर खून लगा दिखाई दिया.

खून देख कर थानाप्रभारी समझ गए कि सुनील की हत्या इसी घर में करने के बाद उस के शव को रेलवे लाइन के पास फेंका गया था. पुलिस ने अंशिका से सुनील की हत्या के बारे में पूछताछ की तो अंशिका ने रट्टू तोते की तरह ससुर को सुनाई कहानी दोहरा दी. थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि सुनील नंगे पैर गया था या चप्पलें पहन कर. इस पर वह कोई जवाब नहीं दे सकी.

पुलिस ने घर में छानबीन की तो अंदर के कमरे के फर्श पर खून के निशान दिखाई दिए, जिसे साफ किया गया था. इस के साथ ही उस कमरे के दवाजे पर भी खून के छींटे साफ दिखाई दे रहे थे. जो सुनील की हत्या उसी कमरे में होने की गवाही दे रहे थे. पुलिस को घर में ही अंशिका की साड़ी व पेटीकोट सूखता मिला, जिसे धोने के बाद भी उस पर खून के धब्बे दिख रहे थे.

पुलिस ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट टीम को भी मौके पर बुला लिया. जिस ने जमीन तथा दरवाजे से खून के नमूने एकत्र किए. अधिकारियों को घटना की जानकारी देने पर एसपी (ग्रामीण) महेंद्र सिंह क्षेत्राधिकारी अभिषेक कुमार राहुल तथा महिला कांस्टेबल बीना यादव को साथ ले कर गांव पहुंच गए. सबूतों के आधार पर पुलिस ने अंशिका को हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस घटनास्थल की काररवाई निपटा कर अंशिका और उस के ससुर मेवाराम को थाने ले आई.

थाने ले जा कर महिला पुलिस ने जब अंशिका से उस के पति सुनील की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपने पति की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई वह इस प्रकार थी—

अंशिका ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने दिल्ली के प्रेमी राजा और उस के साथी रोहित के साथ मिल कर पति की हत्या की थी. उस ने आगे बताया कि करीब ढाई साल पहले वह दिल्ली के फतेहपुर बेरी में अपने पति व देवरों के साथ रहती थी.

वहीं सामने के कमरे में उत्तर प्रदेश के बरेली शहर निवासी राजा रहता था. राजा हलवाई का काम करता था. उसी समय राजा की दोस्ती सुनील व उस के देवरों से हो गई थी.

राजा का उन के घर भी आनाजाना था. उसी दौरान उस के व राजा के प्रेम संबंध हो गए. इस की किसी को कोई भनक तक नहीं लगी. अंशिका शादी के बाद से ही अपने पति सुनील को पसंद नहीं करती थी. उस ने दिल्ली से अपने प्रेमी राजा को 8 जून की रात को ही गांव बुला लिया था.

राजा अपने दोस्त रोहित के साथ गांव पहुंचा था. उस ने मकान के सड़क की ओर वाले दरवाजे से दोनों को अंदर बुला कर कमरे में छिपा दिया था. उस समय सुनील मकान के मुख्य दरवाजे पर बैठ कर गांव के लोगों से बात कर रहा था.

रात 12 बजे सुनील खाना खा कर जब बीच वाले कमरे में पलंग पर गहरी नींद में सो गया, तभी उस ने करीब 2 बजे प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर सुनील को सोते समय दबोच लिया और उस का मुंह बंद कर के अंदर वाली कोठरी में ले गए, जहां कैंची व डंडों से उस की हत्या कर दी गई.

इस बीच अंशिका सुनील के हाथ पकडे़ रही. सुनील की हत्या के बाद उस की लाश को एक बोरे में भर कर राजा व उस का दोस्त रेलवे ट्रैक के पास झाडि़यों में फेंक कर दिल्ली वापस चले गए. अंशिका ने बताया कि इस के बाद उस ने बरामदे में पडे़ खून को पानी से धो दिया.

उस के कपड़ों पर भी खून लग गया था, इसलिए उस ने कपड़े धो कर डाल दिए. अंशिका से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के और उस के दिल्ली निवासी प्रेमी राजा तथा उस के साथी रोहित के खिलाफ हत्या व साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने मुकदमा दर्ज होते ही अपनी काररवाई शुरू कर दी.

दिल्ली में रह रहे सुनील के भाई संजय और सनी व बहन को जब सुनील की हत्या की जानकारी मिली तो वह भी दिल्ली से अपने गांव आ गए. संजय और सनी को जब पता चला कि अंशिका सुनील के कत्ल में राजा और रोहित के शामिल होने की बात कह रही है तो वे चौंके, क्योंकि 8 जून, 2018 की रात 11 बजे राजा उन के साथ था.

9 जून की सुबह 6 बजे भी उन्होंने राजा को दिल्ली में देखा था. मेवाराम ने यह बात थाने जा कर थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम को बता दी. इस पर पुलिस ने एक बार फिर अंशिका से सख्ती से पूछताछ की. इस के बाद उस ने पुलिस को वास्तविक कहानी बताई, जो इस प्रकार थी—

अंशिका की एक बुआ गांव कटौरा बुजुर्ग में रहती थी. शादी से पहले अंशिका का अपनी बुआ के यहां आनाजाना लगा रहता था. बुआ के मकान के पास ही शमी उर्फ शिम्मी नाम का युवक रहता था. इसी दौरान शमी और अंशिका के बीच प्यार का चक्कर चल पड़ा. दोनों एकदूसरे को बेहद पसंद करने लगे. बाद में दोनों ने शादी की इच्छा जताई. लेकिन अंशिका की नानी को यह रिश्ता पसंद नहीं आया, क्योंकि शमी कुछ कमाता नहीं था. इस के अलावा उस के पास खेती की जमीन भी नहीं थी.

करीब 5 साल पहले अंशिका की शादी सुनील से हो जरूर गई थी, लेकिन वह सुनील को पसंद नहीं करती थी. शादी के बाद भी उस के और शमी के संबंध जारी रहे, वह चाह कर भी उसे भुला नहीं सकी. सुनील शादी के बाद जब भी अंशिका को दिल्ली ले जाता तो कुछ दिन रहने के बाद वह गांव जाने की जिद करने लगती थी, गांव आने के बाद वह वहां से अपने मायके चली जाती थी.

मायके से वह अपनी बुआ के गांव जा कर प्रेमी शमी से मिलती थी. सुनील को अंशिका की गतिविधियों पर शक होने लगा था. दोनों में इसी बात को ले कर झगड़ा भी होता था. शमी और अंशिका ने अपने प्यार के बीच कांटा बने सुनील को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. शमी ने अंशिका को एक मोबाइल दे रखा था, जिसे वह अपने संदूक में कपड़ों के बीच छिपा कर रखती थी. मौका मिलते ही वह शमी से बात कर लेती थी.

8 जून की शाम को जब अंशिका के ससुर इंदरगढ़ में रहने वाली अपनी बेटी के यहां चले गए तो घर पर अंशिका और सुनील ही रह गए थे. अच्छा मौका देख कर शमी द्वारा दिए गए मोबाइल, जिसे वह सायलेंट मोड पर रखती थी, से शमी को फोन कर के गांव बुला लिया. शमी अपने दोस्त के साथ आया था. अंशिका की मोबाइल पर उस से रात साढ़े 8 बजे, 9 बजे व रात 12 बजे बातचीत हुई.

शमी ने गांव पहुंच कर अंशिका को अपने आने की जानकारी दे दी. रात 12 बजे के बाद अंशिका सुनील से कह कर शौच के बहाने घर से निकली. उस ने खेत में छिपे अपने प्रेमी शमी से कहा कि वह सड़क की तरफ वाले दरवाजे की कुंडी नहीं लगाएगी. जब फोन करूं तभी चुपके से उसी दरवाजे से आ जाना.

रात को सुनील खाना खा कर गहरी नींद सो गया. अंशिका ने प्रेमी व उस के साथी को घर में बुला कर अंदर के कमरे में छिपा दिया. रात 12 बजे शमी व उस के साथी ने सोते समय सुनील को दबोच लिया और उस का मुंह बंद कर के अंदर के कमरे में ले गए, जहां कैंची व डंडों से उस की हत्या कर दी. हत्यारों ने कैंची से सुनील की नाक भी काट दी.

सुनील की हत्या होने की भनक गांव वालों को नहीं लगी. हत्या के बाद शव को बोरे में बंद कर रेलवे ट्रैक पर डालने की योजना थी ताकि सुबह 4 बजे फर्रुखाबाद की ओर से आने वाली कालिंदी एक्सप्रेस से शव के परखच्चे उड़ जाएं और मामला दुर्घटना जैसा लगे, लेकिन बोरा वहां लगे तारों में उलझने की वजह से रेलवे लाइन तक नहीं पहुंच सका. वे लोग बोरे को झाडि़यों में फेंक कर भाग गए.

इस के बाद मेवाराम ने थाने में नई तहरीर दे कर सुनील की हत्या के लिए अंशिका उस के प्रेमी शमी तथा उस के अज्ञात साथी को दोषी बताया. दूसरे दिन पुलिस ने अंशिका को पति की हत्या, साक्ष्य मिटाने के आरोप में जेल भेज दिया. पुलिस ने हत्या के बाद उस के प्रेमी शमी की गिरफ्तारी के लिए उस के गांव व अन्य ठिकानों पर दबिश दी, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.

अंतत: 18 जून, 2018 को शमी ने न्यायालय में सरेंडर कर दिया. न्यायालय द्वारा उसे जेल भेज दिया गया. दूसरे दिन थानाप्रभारी ने जिला जेल पहुंच कर शमी से सुनील की हत्या के बारे में पूछताछ की. शमी पुलिस को गुमराह करता रहा, इस के बाद 24 जून को पुलिस ने शमी को न्यायालय से 4 घंटे के रिमांड पर ले लिया. शमी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल कैंची गांव के बाहर झाडि़यों से बरामद कर ली.

पुलिस के अनुसार हत्या के पीछे शमी और अंशिका के अवैध संबंध थे. कथा लिखे जाने तक शमी के साथी की पुलिस तलाश कर रही थी.

बेटे की हत्या से व्यथित पिता मेवाराम ने कहा कि अगर बहू को मेरा बेटा पसंद नहीं था तो उसे छोड़ देती, उस की हत्या करने की क्या जरूरत थी. अंशिका के जेल जाने के बाद उस का अबोध बेटा दिल्ली में अपने चाचाओं के साथ रह रहा था.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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