रेलवे की सुरक्षा और क्षमता बढ़ाने के लिए बजट में इस बार 1.48 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव रखा गया है.  इस पैसे का इस्तेमाल सुरक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर व रेलवे को हाइटैक बनाने में किया जाएगा. लेकिन, बजट के बाद संसद की लोकलेखा समिति की सदन में पेश की गई रिपोर्ट पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता वाली लोकलेखा समिति ने रेलवे की कार्यप्रणाली की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि 150 खतरनाक चिह्नित पुलों, पटरियों तथा ट्रेनों की गति पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद रेलवे बोर्ड को 31 पुलों को मंजूरी देने में 213 महीने यानी 17 साल से अधिक का समय लग गया.

घटिया गुणवत्ता

लोकलेखा समिति ने रेलवे बोर्ड पर अपनी टिप्पणी में कहा है कि ब्रिटिश शासनकाल में बनाए गए कुछ पुल अच्छी स्थिति में हैं पर आजादी के बाद बनाए व मरम्मत किए गए पुल घटिया गुणवत्ता वाले हैं. रेल पटरियों का भी ऐसा ही हाल है. यह सब रेल अधिकारियों व ठेकेदारों की मिलीभगत से हुआ है. रिपोर्ट में कुशल कर्मचारियों की कमी पर भी सवाल उठाए गए हैं.

ऐसे में महज रेल बजट बढ़ा देने से क्या यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था पर भरोसा किया जा सकता है? रेल दुर्घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है.

अव्यवस्था की मार

रेलयात्रा में लगातार जानमाल का खतरा बना हुआ है. रेल व्यवस्था राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और निकम्मे अधिकारियों, कर्मचारियों के चलते भारी अव्यवस्था के दौर से गुजर रही है लेकिन फिर भी बुलेट ट्रेन चलाए जाने का शोर है. यात्रियों की जान की सुरक्षा को ले कर कोई गंभीर नहीं है. सरकार और उस के मुलाजिम दोनों ‘मनसा वाचा कर्मणा’ चोर हैं. यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से होने वाले रेल हादसों की अहम वजह स्टाफ का नकारापन रहा है, मगर सरकार द्वारा इन नकारे स्टाफ पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है.

सरकार संसद के भीतर तो यह स्वीकार करती है कि रेल दुर्घटनाओं में रेलकर्मी दोषी हैं, मगर उन को गिरफ्तार करवाने, कठोर सजा दिलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती. लगता है कि सरकार मरने वाले यात्रियों को पिछले जन्म का फल मान कर पौराणिक सोच को पोषित करना चाहती है, बस.

लापरवाही की हद

सरकारी आंकड़े खुद चीख रहे हैं कि रेल हादसों के लिए स्टाफ की लापरवाही जिम्मेदार है, फिर भी सरकार है कि उन दोषी रेल अधिकारियों, कर्मचारियों पर कोई आपराधिक कार्यवाही करने से बचती है. मात्र अनुशासनात्मक कार्यवाही कर अगली बार फिर मौत पर मातम मनाती है और आखिर में मौत के मुलाजिमों को मुक्त कर देती है. यही कारण है कि अब तक स्टाफ की कमी से हुई दुर्घटनाओं में कार्यवाही का कोई बड़ा उदाहरण स्थापित नहीं हो सका कि जिस से स्टाफ सहमा हो और रेल दुर्घटनाएं रुकी हों.

होते होते बचा हादसा

25 सितंबर, 2017 (एक ही ट्रैक पर आई 3 ट्रेनें) : इलाहाबाद के निकट एक ही ट्रैक पर आई दूरंतो ऐक्सप्रैस सहित 3 ट्रेनें एकसाथ टकराने से बालबाल बच गईं.

29 सितंबर, 2017 को बिना गार्ड के रवाना हुई ट्रेन :  उत्तर प्रदेश के उन्नाव में गंगा घाट रेलवेस्टेशन से मालगाड़ी को बिना गार्ड के ही रायबरेली के लिए रवाना कर दिया गया.

हादसों की वजह सिर्फ स्टाफ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में 3 वर्षों तक रेलमंत्री रहे सुरेश प्रभु के कार्यकाल में छोटे बड़े कुल 300 रेल हादसे हुए, जिनमें से सिर्फ साल 2017 में जनवरी से अगस्त तक 31 हुए. तब के रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने दुर्घटनाओं के बाबत नैतिक आधार पर इस्तीफा देने की पेशकश की, जिस के बाद तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को यह मंत्रालय मिला. मगर हादसे हैं कि अब भी थमने का नाम नहीं ले रहे.

society

19 जुलाई, 2017 को संसद में सुरेश प्रभु ने रेलवे स्टाफ की लापरवाही की वजह से हुई दुर्घटनाओं के बाबत बताया था कि साल 2015-2016 में हुए कुल 107 हादसों में 55 और साल 2016-2017 में 85 हादसों में से 56 हादसे सिर्फ स्टाफ की लापरवाही से हुए. इसी तरह नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2012 से साल 2016-2017 तक प्रत्येक 10 रेल दुर्घटनाओं में से 6 स्टाफ की चूक की वजह से हुई हैं. नीति आयोग की ही एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में 31 मार्च तक 104 विभिन्न दुर्घटनाओं में 66 दुर्घटनाएं स्टाफ की लापरवाही से हुई हैं.

गुनाहगारों को सजा नहीं

रेलवे की बड़ी दुर्घटनाओं में जांच के लिए संसद ने एक कानून बना कर रेलवे संरक्षा आयोग बनाया है. निष्पक्ष जांच के लिए इस आयोग को केंद्रीय नागरिक उड्यन मंत्रालय के अधीन रखा गया है. इस आयोग का मुखिया संरक्षा आयुक्त होता है, जो रेलवे के अलग अलग जोन का काम देखने वाले 5 आयुक्तों के साथ काम करता है. संरक्षा आयोग के पास इतना काम होता है कि लंबे अरसे तक जांच ही चलती रहती है. दूसरा, इस आयोग का इतिहास है कि इस के आयुक्त ज्यादातर रेलवे के ही लोग होते हैं, इस से भी जांच का कार्य काफी हद तक प्रभावित होता है.

यही कारण है कि बड़ी से बड़ी दुर्घटनाओं में दोषियों पर आज तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा सकी है, जिससे स्टाफ की लापरवाही से दुर्घटनाएं होती रहती हैं. फलस्वरूप, रेलयात्रियों की जान जाने पर दोषी सजा नहीं, मजा काटता है.

पानी में जनता की गाढ़ी कमाई

रेलवे के दोषी अधिकारियों, कर्मचारियों पर कोई कठोर कार्यवाही न करने के कारण दुर्घटनाओं के साथ साथ इन से होने वाला आर्थिक नुकसान भी बढ़ता चला जा रहा है, जो जनता की गाढ़ी कमाई है.

संसद में हुई बहस के दौरान जो आंकड़े बताए गए हैं (आशंका है कि सरकारी स्वभाव के अनुसार बहुतकुछ छिपा भी लिया गया हो), उन के अनुसार, रेल दुर्घटनाओं के कारण साल 2014-2015 में 70.07 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ है.

सुरक्षा के बजाय दूध, दवाई और वाईफाई का झांसा : मोदी सरकार अच्छे दिन के जुमले से सत्ता में तो आ गई मगर रेलयात्रा के दौरान होने वाले मौतरूपी मर्ज को जड़ से न दूर कर, ट्वीट करने पर दूध और दवाई मुहैया कराने की वाहवाही लूटने में लग गई. इस के साथ ही बुलेट ट्रेन चलाने का दावा, ट्रेन में वाईफाई उपलब्ध करवाने का दावा और अब तो ट्रेन में ही शौपिंग कराने का दावा करने में लगी है. जबकि यात्री सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच पाएगा, यह सुनिश्चित नहीं है.

नियम है, नकेल नहीं

रेलवे के एक रिटायर्ड जनरल मैनेजर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भारतीय रेलवे की नियम पुस्तिका के अनुसार, ट्रैक के रखरखाव हेतु प्रतिदिन 3-4 घंटे निर्धारित हैं, मगर ऐसा हो नहीं पाता. ज्यादातर नियम स्टाफ की लापरवाही की भेंट चढ़ जाते हैं. कभी कभी ट्रैक के खाली न होने या फिर ट्रेन के विलंब से चलने की वजह से भी ऐसा होता है. वे बताते हैं कि भारतीय रेल की प्रक्रिया बहुत अच्छी तरह से सुपरिभाषित, लिखित और वितरित की जाती है, यदि उसका सही से पालन हो जाए तो शायद ही कोई दुर्घटना हो.

सुरक्षा सुस्त, किराया चुस्त

हाल के दिनों में रेलवे ने टिकट में फ्लैक्सी रेट जैसे नए नए शिगूफे छोड़ कर जम कर आमदनी बढ़ाई है. अकसर रेलयात्री यह कहते हुए मिल जाते हैं कि प्रथम श्रेणी की यात्रा का खर्च उतनी ही दूरी के विमान यात्रा के खर्च के लगभग बराबर है.

ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि जब मुसाफिर का मुख्य मकसद एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचना है तो क्या रेलवे उस स्थान तक सुरक्षित पहुंचाने की गारंटी भी गंभीरता से लेता है. जवाब है, नहीं. तथ्य यह है कि 1 रुपए में मात्र 7 पैसा ही रख रखाव के लिए लगाया जाता है, बाकी दूसरे कामों में इस्तेमाल हो जाता है. हालांकि, साल 2014-2015 के मुकाबले सुरक्षा पर खर्च होने वाली रकम को साल 2017-2018 में 42,430 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 65,241 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

लाइफलाइन नहीं, किलरलाइन

रेलवे देश की लाइफलाइन कहलाती है, मगर इस के राजनीतिकरण ने इसे लगभग ‘किलरलाइन’ में तबदील कर दिया है. देखने में आता है कि गठबंधन सरकारों में यह मंत्रालय किसी मजबूत दल की झोली में ही रहा और ज्यादातर काम राष्ट्रीय स्तर पर न हो कर, क्षेत्रीय स्तर पर ही किए गए. पूर्व में अलग से पेश होने वाले रेलवे बजट में पश्चिम बंगाल, बिहार, रायबरेली, अमेठी जैसे क्षेत्रों को खास सौगातें मिलती रही हैं.

ऐसे में हाल ही में हुई रेल दुर्घटनाओं के ऊपर अगर लालू प्रसाद यादव यह तंज कसते हैं कि खूंटा बदलने से नहीं, संतुलित आहार देने व खुराक बदलने से भैंस ज्यादा दूध देगी तो इसे महज एक राजनीतिक बयान नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि इस को समग्र परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए. वास्तव में किसी मंत्री का मंत्रालय बदल देने से रेलवे का भला नहीं हो पाएगा. बेहतर होगा कि रेलवे में भ्रष्टाचार, गैरजिम्मेदाराना कार्यसंस्कृति समाप्त हो और रेलवे स्टाफ व मंत्रालय जनता के प्रति जवाबदेह बनें.

अब तक के जितने भी रेल मंत्री बने हैं, सभी ने रेल सुरक्षा पर बड़ी बड़ी बातें की हैं. फिलहाल वर्तमान रेल मंत्री पीयूष गोयल ने रेल की बदहाल स्थिति पर कोई सुधारात्मक कदम उठाया है, ऐसा तो लगता नहीं.

हाल में हुए प्रमुख रेल हादसे

हाल में स्टाफ के नकारेपन से कई दुर्घटनाएं हुईं. हद तो तब हो गई जब एक ही दिन में 4-4 रेल हादसे हुए और मोदी सरकार ने उन पर कोई कार्यवाही नहीं की.

24 नवंबर, 2017 : उत्तर प्रदेश के मानिकपुर में वास्कोडिगामापटना सुपरफास्ट ट्रेन की 12 बोगियां बेपटरी हो गईं, जिस से पितापुत्र समेत 3 यात्रियों की मौत हो गई और 9 यात्री घायल हो गए.

29 सितंबर, 2017 : मुंबई के एलफिंस्टन रोड उपनगरीय रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर मची भगदड़ से 22 लोगों की मौत हो गई और 32 लोग घायल हो गए.

6 सितंबर, 2017 (एक ही दिन में 4 हादसे) : नए रेलमंत्री पीयूष गोयल की ताजपोशी के एक ही दिन बाद 4 रेल हादसे देश के अलगअलग हिस्सों में हुए. पहली घटना उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में घटी जिस में शक्तिपुंज ऐक्सप्रैस के 7 डब्बे बेपटरी हो गए. दूसरी, नई दिल्ली के मिंटो ब्रिज स्टेशन के निकट रांचीदिल्ली राजधानी ऐक्सप्रैस का इंजन और पावरकार उतर गया. तीसरी, महाराष्ट्र में खंडाला के निकट मालगाड़ी पटरी से उतर गई. चौथी, फरुखाबाद और फतेहगढ़ के पास दिल्लीकानपुर कालिंदी ऐक्सप्रैस क्षतिग्रस्त होने से बच गई.

17 अगस्त, 2017 : उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के निकट खतौली में पुरीउत्कल ऐक्सप्रैस के हादसे में 23 लोगों की जानें गईं, जबकि 150 से ज्यादा लोग घायल हुए.

22 अगस्त, 2017 : उत्तर प्रदेश के औरैया में कैफियत ऐक्सप्रैस के डंपर से टकराने के कारण 9 कोच पटरी से उतर गए, दर्जनों यात्री घायल हो गए.

21 मई, 2017 : उत्तर प्रदेश के उन्नाव स्टेशन के पास लोकमान्य तिलक सुपरफास्ट ट्रेन के 8 कोच पटरी से उतर गए, जिस में 30 यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए.

15 अप्रैल, 2017 : मेरठलखनऊ राजधानी ऐक्सप्रैस के 8 कोच रामपुर के पास पटरी से उतर गए. इस में लगभग 1 दर्जन यात्री घायल हुए.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...