‘‘अरे  रामू, क्या हुआ?’’ चनकू बाई ने पूछा.

‘‘यह लड़की धंधा करने को तैयार नहीं हो रही है,’’ रामू ने कहा.

रामू की बात सुन कर चनकू बाई कुछ सोचने लगी. कुछ याद आते ही वह बोली, ‘‘रामू, फौरन डीडी को बुलाओ, वही चुटकियों में ऐसे केस हल कर देता है.’’

डीडी उर्फ दामोदर गांव का एक सीधासादा नौजवान था. गांव के ऊंचे घराने की लड़की से उसे इश्क हो गया था. वह लड़की भी उसे बहुत प्यार करती थी. लेकिन उन दोनों के प्यार के बीच दौलत की दीवार थी, जिसे दामोदर तोड़ न सका.

दामोदर के सामने ही उस की प्रेमिका किसी और की हो गई. उस दिन दामोदर बहुत रोया था. उसे एहसास हो गया था कि दौलत के बिना इनसान अधूरा है. उस के पास दौलत होती, तो शायद उस का प्यार नहीं बिछुड़ता.

अपने प्यार का घरौंदा उजड़ते देख कर दामोदर ने फैसला किया कि वह बहुत दौलत कमाएगा, चाहे यह दौलत पाप की कमाई ही क्यों न हो.

इश्क में हारा दामोदर घर में अपने मांबाप से बगावत कर के शहर में

दौलत कमाने का सपना ले कर मुंबई आ गया.

मुंबई में दामोदर बिलकुल अकेला था. काम की तलाश में वह बहुत भटका, मगर उसे काम नहीं मिला.

एक दिन दामोदर की मुलाकात रामू से हो गई. दामोदर ने उसे अपनी आपबीती सुनाई, तो रामू को अपनापन महसूस हुआ.

वह बोला, ‘‘मैं तुम्हें काम दिला सकता हूं, पर उस काम में जोखिम बहुत है और पुलिस का डर भी है.’’

‘‘मो सिर्फ पैसा चाहिए, काम चाहे कितना भी खतरनाक ही क्यों न हो.’’

दामोदर की बात सुन कर रामू ने एक बार उसे ऊपर से नीचे तक देखा. वह समा चुका था कि दामोदर के सिर पर दौलत कमाने का भूत सवार है. इस से कुछ भी काम कराया जा सकता है.

रामू दामोदर को ले कर चनकू बाई के कोठे पर पहुंचा. चनकू बाई ने दामोदर से बात की, फिर उसे एक वैन दे दी, जिस से वह लड़कियां सप्लाई करने लग पड़ा.

इस काम में दामोदर को अच्छीखासी रकम मिलती थी. अब रामू व दामोदर एकसाथ रहने लगे थे. उन दोनों में गहरी दोस्ती भी हो गई थी.

कुछ ही दिनों में दामोदर ने अपनी मेहनत से चनकू बाई के दिल में अच्छीखासी जगह बना ली थी. अब चनकू बाई दामोदर को डीडी के नाम से पुकारती थी.

डीडी उर्फ दामोदर को चनकू बाई का संदेश मिला और वह फौरन कोठे पर पहुंचा. रामू ने लड़की के बारे में दामोदर को सबकुछ बता दिया.

दामोदर दरवाजा खोल कर कमरे में आया. उस ने फर्श पर पड़ी लड़की को उठाना चाहा, मगर वह बेहोशी की हालत में थी. उस का जिस्म किसी गरम भट्ठी की तरह तप रहा था.

‘‘बाई, इस लड़की को तो काफी

तेज बुखार है. किसी डाक्टर को दिखाना होगा,’’ दामोदर ने कहा.

‘‘इस कोठे पर कौन डाक्टर आएगा…’’ चनकू बाई परेशान होते हुए बोली.

‘‘फिर?’’ रामू ने पूछा.

‘‘ठीक है बाई, मैं इस लड़की को घर ले जाता हूं, वहां किसी डाक्टर को दिखा लूंगा. जब यह ठीक हो जाएगी, तो कोठे पर ले आऊंगा,’’ दामोदर बोला.

दामोदर की बात से रामू और चनकू बाई दोनों राजी थे. दामोदर लड़की को अपने घर ले आया. उस का घर बहुत छोटा था. उस के साथ लड़की देख कर महल्ले वाले यह समो कि शायद यह उस की बीवी है.

डाक्टर ने आ कर लड़की को दवाएं दे दीं. बुखार उतर नहीं रहा था. दामोदर पूरी रात उस लड़की के माथे पर पट्टियां रखता रहा.

दामोदर की मेहनत रंग लाई. सुबह लड़की को होश आ गया. दामोदर ने उसे कुछ दवाएं खाने को दीं. नानुकर के बाद लड़की ने दवा खा ली.

दोपहर तक लड़की पूरी तरह से होश में आ चुकी थी. उस ने अपना नाम रजनी बताया. बचपन में ही उस के पिता की मौत हो चुकी थी.

रजनी की मां ने बेटी को पालने के लिए दूसरी शादी कर ली. शादी के कुछ साल बाद ही रजनी की मां की मौत हो गई.

मां की मौत के बाद से ही रजनी के सौतेले बाप ने उसे तंग करना शुरू कर दिया था. पिता से आजिज हो चुकी रजनी गांव के एक नौजवान को दिल दे बैठी.

उस नौजवान ने रजनी को शहर की चमकदमक के सुनहरे सब्जबाग दिखाए. वह रजनी को बहलाफुसला कर शहर ले आया और धोखे से कोठे पर बेच दिया था.

दामोदर ने रजनी की कहानी बड़े गौर से सुनी. आज तक उस ने जितनी भी लड़कियों को धंधे में उतारा था, उन में से किसी की भी कहानी नहीं सुनी थी.

थोड़ी देर के बाद दामोदर दरवाजे पर बाहर से ताला लगा कर खाना लेने होटल चला गया.

कुछ देर बाद ही दामोदर खाना ले कर लौटा. रजनी ने खाना खाया. उस के बाद वह तख्त पर लेट गई. दामोदर भी फर्श पर चटाई बिछा कर पुराना सा कंबल ले कर लेट गया.

रजनी की सेहत दिन ब दिन सुधरने लगी थी. दामोदर रोज घर के बाहर ताला लगाने के बाद कोठे पर जा कर चनकू बाई को रजनी की सेहत के बारे में बताता था.

एक दिन दामोदर जल्दी में बाहर से ताला लगाना भूल गया. जब वह शाम को घर लौटा, तो उस ने खुला दरवाजा देखा. उस के मानो होश उड़ गए. उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. लेकिन रजनी घर पर ही थी.

‘‘रजनी, आज तो भागने का मौका था. तुम भागी क्यों नहीं?’’

दामोदर की बात सुन कर रजनी मुसकराते हुए बोली, ‘‘भाग कर जाती भी तो कहां? अब तो दुनिया के सभी दरवाजे मेरे लिए बंद हो गए हैं.’’

रजनी के ये शब्द दामोदर के दिल में तीर की तरह चुभ गए थे.

‘‘लो, खाना खा लो,’’ दामोदर ने खाने का पैकेट रजनी को देते हुए कहा.

‘‘नहीं, आज मैं ने घर पर ही खाना बना लिया था. आप हाथमुंह धो लीजिए. मैं खाना परोसती हूं,’’ रजनी बोली.

दामोदर ने रजनी के हाथ का बना खाना खाया. आज पहली बार मां के बाद उस ने किसी दूसरी औरत के हाथ का बना स्वादिष्ठ खाना खाया था.

खाना खाने के बाद दामोदर पुराना कंबल ले कर जमीन पर लेट गया. रजनी भी तख्त पर लेट गई. पर उन दोनों को नींद नहीं आ रही थी. वे दोनों अपनीअपनी जगह पर करवटें बदलते रहे.

सर्दी भरी रात में दामोदर ठंड से सिकुड़ता जा रहा था, लेकिन रजनी जाग रही थी. रजनी लेटे हुए ही दामोदर को देख रही थी, शायद दामोदर सो चुका था. रजनी ने अपनी रजाई उठाई और वह भी दामोदर के साथ सो गई.

सुबह जब दामोदर की आंख खुली, तब तक काफी देर हो चुकी थी. रजनी ने अपना सबकुछ दामोदर को सौंप दिया था. दामोदर अपनी इस गलती के लिए शर्मिंदा था.

दामोदर तैयार हो कर जैसे ही कोठे पर जाने के लिए निकला, सामने रामू अपने गुरगे ले कर पहुंच गया. वह रजनी को लेने आया था, पर दामोदर ने रजनी के बीमार होने की बात कही और उनके साथ कोठे पर चला गया.

अब दामोदर रजनी को कोठे पर नहीं लाना चाहता था. शायद उसे रजनी से प्यार हो गया था.

दामोदर ने अपने प्यार वाली बात रामू को बताई. रामू ने दामोदर को चनकू बाई के कहर का वास्ता दिया और आगे से ऐसी गलती न करने की राय भी दी.

दूसरे दिन रामू जीप ले कर रजनी को लेने दामोदर की खोली में पहुंचा, तो दामोदर वहां नहीं था. उस के कमरे के बाहर ताला लटका देखा. रामू तो समा गया कि दामोदर रजनी को ले कर कहीं भाग गया है.

जब यह खबर चनकू बाई को मिली, तो वह गुस्से से तिलमिला उठी. उस ने फौरन शहर में गुंडे फैला दिए थे, ताकि दामोदर और रजनी शहर से बाहर न जाने पाएं.

अब सारे शहर में चनकू बाई के आदमी घूम रहे थे, पर दामोदर और रजनी का कहीं अतापता नहीं था. रामू भी कुछ आदमियों को ले कर रेलवे स्टेशन पर तलाश कर रहा था. हथियारों से लैस चनकू बाई के आदमी टे्रन के हर डब्बे की तलाशी ले रहे थे.

रामू जैसे ही डब्बे में घुसा, सामने दामोदर और रजनी को देख कर ठिठक गया था. रजनी किसी अमरबेल की तरह दामोदर से चिपकी थी.

रामू को देख कर वह कांप उठी. दामोदर भी रामू की आंखों में आंखें डाले देख रहा था. उधर ट्रेन चलने के लिए हौर्न दे रही थी.

‘‘रामू, वे इस डब्बे में हैं क्या?’’ चनकू बाई के किसी आदमी ने चिल्ला कर पूछा.

‘‘नहीं, इस डब्बे में कोई नहीं है. चलो, कहीं दूसरी जगह ढूंढें़.’’

रामू की यह बात सुन कर दामोदर और रजनी की जान में जान आई.

रामू ट्रेन से नीचे उतर गया था. वह खिड़की के पास से गुजरते हुए बोला, ‘‘जाओ मेरे दोस्त, तुम्हें नई जिंदगी मुबारक हो. तुम दोनों हमेशा खुश रहो. इस दलदल से निकल कर एक नई जिंदगी जीओ.’’

ट्रेन चल चुकी थी. दामोदर ने खिड़की से बाहर देखा. रामू जीप स्टार्ट कर के चनकू बाई के आदमियों के साथ दूर जा चुका था.

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