जरायम की काली दुनिया से निकल कर सतीश पांडेय राजनीति के सहारे विधान परिषद तक पहुंचने के ख्वाब देखने लगे थे. उन्होंने सन 2000 के विधानसभा चुनाव में दरौली विधानसभा क्षेत्र से चनुव लड़ा, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. उस के बाद उन्होंने अपने छोटे भाई अमरेंद्र पांडेय को राजनीति में उतार दिया.

विधायक अमरेंद्र पांडेय की क्षेत्र में अपनी ही सरकार चलती थी. उन के जीवन से जुड़े इतिहास के कई काले पन्ने अतीत में दबे हुए थे. बात 27 मई, 2012 की है. गोपालगंज जिला के हथुआ प्रखंड मुख्यालय में शराब की दुकान चलाने वाले अनिल साह की रात में गोली मार की हत्या कर दी गई थी.

अनिल साह की हत्या के मामले में कुचाईकोट विधानसभा क्षेत्र से जदयू विधायक अमरेंद्र पांडेय, उन के पिता रामाशीष पांडेय, बहनोई जलेश्वर पांडेय, भाभी और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष उर्मिला पांडेय सहित 7 लोगों के खिलाफ स्थानीय थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी.

अनिल साह के परिजनों ने खुल कर आरोप लगाया था कि विधायक अमरेंद्र पांडेय ने साह से 50 लाख रुपए रंगदारी मांगी थी और रुपए न मिलने पर शराब की दुकान बंद करने को कहा था. इस घटना के विरोध में स्थानीय लोगों ने मृतक के शव के साथ हथुआ सड़क को 2 घंटे तक जाम कर रखा था.

बहरहाल, कृष्णा शाही लोक जनशक्ति पार्टी को छोड़ कर बहुजन समाज पार्टी में चले गए. सन 2009 में कृष्णा शाही ने हथुआ विधानसभा से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, जिस में वह हार गए. चुनाव हारने के बाद कृष्णा ने बसपा से नाता तोड़ कर भारतीय जनता पार्टी से नाता जोड़ लिया. भाजपा में आने के बाद कृष्णा शाही ने अपनी पूरी ऊर्जा क्षेत्र के विकास में लगा दी. अपनी मेहनत और लगन की बदौलत वह व्यापारी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष चुने गए.

इस बीच कृष्णा शाही और विधायक अमरेंद्र पांडेय की दुश्मनी खुल कर सामने आ गई. शाही इस की चिंता छोड़ कर क्षेत्र के लोगों की सेवा में जुटे रहे. सन 2012 में फिर मुखिया का चुनाव हुआ. इस बार चौनपुरा मुखिया सीट को महिला सीट कर दिया गया था, इसलिए इस सीट पर न तो कृष्णा लड़ सके और न उन के बडे़ भाई.

शाही ने अपनी पत्नी शांता शाही को मुखिया पद के लिए चुनाव लड़ाया. शांता भारी मतों से जीतीं और सरपंच बन गईं. शांता की जीत से पांडेय खेमे में भूचाल आ गया, क्योंकि इस से शाही का राजनीतिक कद और बढ़ गया था.

कृष्णा शाही की राजनीति में सक्रियता से विरोधियों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही थी. राजनीतिक प्रतिद्वंदिता बढ़ने के साथ अदावत भी बढ़ी. उन की हत्या की आशंका से उन के घर वाले चिंतित भी रहा करते थे. परिजनों का चिंता करना गलत नहीं था. शाही की जान की सुरक्षा को ले कर उन की चिंता तब और बढ़ गई, जब गोरखपुर के कुख्यात अपराधी चवन्नी सिंह को गोपालगंज की पुलिस ने गिरफ्तार किया.

उस से पूछताछ में पता चला कि उसे एक विधायक ने कृष्णा शाही की हत्या की सुपारी दी थी. देखें तो समय रहते पुलिस ने कृष्णा शाही को बचा लिया था. इस के बाद उन पर मंडराते खतरे को देख कर जिला प्रशासन ने उन्हें सुरक्षा के लिए 4 अंगरक्षक दे दिए थे.

इस कहानी की दूसरी कड़ी आदित्य राय से हो कर आगे बढ़ती है. 30 वर्षीय आदित्य राय गोपालगंज के फुलवरिया थाना के बसवरिया मांझा गांव का रहने वाला था. उस के पिता अवधेश राय विदेश में नौकरी करते थे. अवधेश राय के 5 बच्चों में बेटा आदित्य राय एकलौता था.

आदित्य राय की सगी बुआ कृष्णा शाही के गांव चौनपुर में ब्याही थीं. उन्हीं के यहां आनेजाने में आदित्य की जानपहचान शाही परिवार से हुई थी, यह 17-18 साल पहले की बात है. तब आदित्य की उम्र 15-16 साल थी. दोनों परिवारों के बीच घनिष्ठ रिश्ता बन गया था, जो अभी तक चलता चला आ रहा था.

आदित्य के पिता भले ही विदेश में नौकरी करते थे, लेकिन उन का परिवार गांव में ही रहता था. आदित्य के अलावा उस की 4 बहनें थीं. अवधेश राय की अनुपस्थिति में उन के परिवार की देखभाल कृष्णा शाही के घर वाले करते आ रहे थे. ये लोग दुखसुख की हर घड़ी उन के परिवार के साथ खड़े रहते थे. शाही की अनुपस्थिति में उन की पत्नी शांता को कहीं जाना होता या कोई जरूरी काम पड़ जाता तो आदित्य उन के लिए तैयार रहता.

इतना ही नहीं, आदित्य और उस की 2 बहनों की शादी भी कृष्णा के घर वालों ने ही कराई थी. कृष्णा शाही का आदित्य के यहां रातोदिन का उठनाबैठना था. इसी उठनेबैठने में कृष्णा शाही की नीयत रागिनी को देख कर डोल गई. सामान्य कदकाठी और साधारण नैननक्श की रागिनी कृष्णा शाही के दिल में उतर गई. वह उस से प्रेम करने लगे. रागिनी भी सयानी थी. मर्दों की नजरों की भाषा वह समझने लगी थी. उस ने शाही की नजरों को पढ़ लिया था.

रागिनी जान गई थी कि कृष्णा शाही उस पर फिदा हैं. वह भी उन्हें अपना दिल दे बैठी. मौका मिलते ही उन्होंने अपनेअपने प्यार का इजहार  कर दिया. इस के बाद वे छिपछिप कर मिलने लगे. यह सिलसिला सालों तक चलता रहा. किसी को कानोंकान इन के प्यार की खबर नहीं लगी.

घटना से 15 दिनों पहले यानी 3 जुलाई, 2017 को आदित्य के दादा लालबाबू राय की मौत हो गई थी. अंतिम संस्कार में कृष्णा शाही ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और आर्थिक मदद भी की थी. इस के अगले दिन आदित्य कमरे में कोई काम कर रहा था, तभी उस ने रागिनी को किसी से फोन पर बातें करते सुना. रागिनी उस से प्यारमोहब्बत की बातें कर रही थी. उस की बातें सुन कर आदित्य का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. इस के बावजूद कुछ कहने के बजाय वह परदे की ओट से उस की बातें ध्यान से सुनने लगा.

रागिनी भाजपा नेता कृष्णा शाही से प्यार की बातें कर रही थी. उस की बातें सुन कर आदित्य गुस्से से पागल हो उठा. वह यह सोच कर परेशान था कि शाही ने उस के साथ दोस्ती में दगा की है. बस उसी दिन से वह भाजपा नेता कृष्णा शाही को सबक सिखाने की योजना बनाने लगा. यह बात उस ने अपने तक ही सीमित रखी, ताकि शाही को निपटाने के बाद पुलिस उस पर शक न कर सके.

18 जुलाई, 2017 को आदित्य राय के दादा लालबाबू की तेरहवीं थी. शाही उस दिन पूरे समय आदित्य के साथ थे. उन्हें देख कर आदित्य को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर उसे मौके की तलाश थी. क्योंकि वह जानता था कि शाही को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचाने का हश्र क्या हो सकता है. वह कोई मामूली आदमी नहीं थे, इसलिए जो भी कदम उठाना था, सोचसमझ कर उठाना था.

7 बजे शाम तक कृष्णा शाही आदित्य के घर रहे. मेहमानों को भोजन कराने के बाद वह जरूरी काम की बात कह कर चले गए. जातेजाते रागिनी से कह गए थे कि वह रात को आएंगे, तभी खाना भी खाएंगे. यह बात आदित्य ने सुन ली थी. बस, उस ने रात में ही उन का काम तमाम करने का निर्णय ले लिया. उन के जाने के बाद आदित्य बड़का गांव बाजार गया और कीटनाशक दवा की एक शीशी खरीद लाया. रात साढ़े 10 बजे कृष्णा शाही अपनी कार से आदित्य के यहां पहुंचे. उन्होंने ड्राइवर को यह कह कर घर भेज दिया कि सुबह आ कर उन्हें ले जाएगा.

आदित्य उन्हें देख कर खुश हुआ. वह उन्हें पुराने घर न ले जा कर नए घर ले गया. उन्हें वहां बैठा कर आदित्य पुराने घर से एक थाली में खाना परोस कर लाया. उसी खाने में उस ने बाजार से लाया कीटनाशक मिला दिया. शाही खाना खा कर सो गए. सोते समय ही उन की मौत हो गई.

रात में सब सो गए तो आदित्य उन की लाश को कंधे पर लाद कर घर से कुछ दूरी पर स्थित कुएं पर ले गया, जहां उस ने उन की कमर से एक भारी पत्थर बांध कर लाश को कुएं में फेंक दिया. इस के बाद उस ने उन की लाल रंग की हवाई चप्पल भी ला कर कुएं में फेंक दी और घर जा कर आराम से सो गया.

सुबह 4 बजे कृष्णा शाही का ड्राइवर सुनील उन्हें ढूंढते हुए आदित्य के घर पहुंचा और उसे जगा कर कृष्णा शाही को जगाने के लिए कहा. क्योंकि उन्हें किसी काम से पटना जाना था. लेकिन आदित्य ने कहा कि वह तो यहां आए ही नहीं थे, जबकि सुनील खुद ही उन्हें छोड़ कर गया था.

आदित्य का यह जवाब उसे काफी अटपटा लगा. कुछ कहने के बजाय वह लौट गया और सारी बात शांता शाही को बताई. शांता ने पति के दोनों नंबरों पर फोन किया. दोनों ही नंबर बंद थे. इस के बाद उन्होंने जेठ उमेश शाही को सारी बात बता कर पति के बारे में पता लगाने को कहा. उमेश शाही ने भाई के बारे में पता किया तो उन की लाश कुएं में मिली.

23 जुलाई को कृष्णा शाही की हत्या के मामले में एक नया मोड़ आ गया. शांता शाही ने एसपी के घटना के खुलासे को चुनौती दी कि उन के पति के चरित्र पर जो दाग लगाया गया है, वह सरासर बेबुनियाद है. आदित्य के परिवार से उन का बीसों साल से पारिवारिक संबंध रहा है. उस की 2 बहनों की शादी उन्होंने ही करवाई थी, तब क्यों किसी ने उन के पति के चरित्र पर अंगुली नहीं उठाई, अब कैसे उन का संबंध आरोपी की बहन रागिनी से हो गया. इसे वह पुलिस की मनगढं़त कहानी बता रही हैं.

उन का कहना है कि आदित्य को मोहरा बनाया गया है, जबकि उन के पति की हत्या राजनीतिक विद्वेष की वजह से हुई है. वह पति की हत्या का दोषी जदयू के विधायक अमरेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय और उन के परिवार को मानती हैं.

पुलिस जो कह रही है कि आदित्य ने उन के खाने में जहर मिला दिया था, यह झूठ है. घटना मंगलवार को घटी थी, उस दिन शाहीजी का व्रत था. व्रत में वह खाना कैसे खा सकते थे. दूसरी बात यह कि शाहीजी का वजन 95-96 किलोग्राम था, जबकि आदित्य काफी कमजोर है. वह अकेला शाहीजी की लाश को कैसे अपने कंधे पर उठा कर ले गया, तीसरी बात घटना वाली रात साढ़े 10 बजे उन की पति से बात हुई थी. उन्होंने बताया था कि आदित्य ने यह कह कर रोक लिया है कि रात काफी हो गई है, वह यहीं सो जाएं.

जबकि आदित्य का कहना था कि शाहीजी उन के वहां आए ही नहीं थे. आखिर उस ने ऐसा क्यों कहा, यह जांच का विषय है. इन तमाम सवालों के जवाब देने में पुलिस प्रशासन विफल है. निश्चय ही शाहीजी की हत्या में आदित्य के साथ और भी कई लोग शामिल थे, जिन्हें पुलिस बचा रही है. इसलिए वह इस घटना की सीबीआई जांच कराने की मांग कर रही हैं.

मृतक के भाई उमेश शाही ने डीजीपी पी.के. ठाकुर से मिल कर घटना की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है. कथा लिखे जाने तक सीबीआई जांच की संस्तुति नहीं हुई थी. दूसरी ओर एसपी रविरंजन कुमार का कहना है कि घटना का खुलासा सही किया गया है. हत्या अवैध संबंधों की वजह से ही हुई है. हत्यारे को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया है. बाकी जिन 5 आरोपियों के नाम उमेश शाही की ओर से दिए गए हैं, जिन के बारे में जांच चल रही है. दोषी पाए जाने पर उन के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी.

कथा लिखे जाने तक आरोपी आदित्य राय जेल में था. पुलिस अब तक कृष्णा शाही के दोनों मोबाइल फोन के बारे में पता नहीं लगा सकी है.

– कथा परिजनों एवं पुलिस सूत्रों पर आधारित

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