नूर इनायत खान का नाम द्वितीय विश्व महायुद्ध के इतिहास में गुप्तचर के रूप में शहीद होने के कारण स्वर्णाक्षरों में अंकित है. नूर इनायत खान का पूरा नाम नूर उन निसा इनायत खान था. उन के पिता हजरत इनायत खान भारतीय तथा मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के वंशज थे. उन की मां अमेरिकी थीं. नूर 4 भाई बहनों में सब से बड़ी थीं. उन का जन्म 1 जनवरी, 1914 को मास्को में हुआ था. नूर के पिता सूफी मतावलंबी तथा धार्मिक शिक्षक थे. उन्होंने भारत के सूफी मत का पाश्चात्य देशों में प्रचारप्रसार किया. नूर की रुचि अपने पिता की भांति, संगीतकला के माध्यम से पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में थी.

पहले विश्वयुद्ध के बाद नूर के पिता परिवार सहित मास्को से लंदन आ गए थे. नूर का बचपन वहीं बीता. नाटिंगहिल के एक नर्सरी स्कूल में उन की पढ़ाई शुरू हुई. 1920 में वे सब फ्रांस में पैरिस के निकट सुरेसनेस में रहने लगे. 1927 में पिता की मृत्यु के बाद 13 साल की छोटी सी उम्र में ही नूर के कंधों पर मां और 3 छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी आ गई.

स्वभाव से शांत, शर्मीली, संवेदनशील नूर ने जीविका के लिए संगीत को माध्यम चुना. वे पियानो पर सूफी संगीत का प्रचारप्रसार करने लगीं. वीणा बजाने में भी वे निपुण थीं. उन्होंने कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां लिखीं, साथ ही साथ, फ्रैंच रेडियो में भी वे नियमित रूप से योगदान करने लगीं. 1939 में जातक कथाओं से प्रेरित हो कर उन्होंने ट्वंटी जातका टेल्स लिखी.

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लंदन में पुस्तक का प्रकाशन हुआ. द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर वे अपने परिवार के साथ समुद्रीमार्ग से ब्रिटेन के फ्रालमाउथ कार्नवाल आ गईं.

संवेदनशील, शांतिप्रिय, सूफीवाद की अनुयायी नूर को नाजियों द्वारा किए जा रहे क्रूर, बर्बर अत्याचारों से गहरा आघात पहुंचा. उन्होंने अपने छोटे भाई के साथ मिल कर नाजी अत्याचारों के विरुद्ध लड़ने का फैसला किया.

नूर ने 19 नवंबर, 1940 को ब्रिटेन की एयरफोर्स में महिला सहायक के रूप में कार्यभार संभाला. वहां पर उन्होंने वायरलैस औपरेटर का प्रशिक्षण लिया. जून 1941 में बमवर्षक प्रशिक्षण विद्यालय की चयनसमिति के समक्ष सशस्त्र बल अधिकारी पद के लिए आवेदनपत्र प्रस्तुत किया. वहां पर सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर उन की नियुक्ति हो गई.

फ्रैंच भाषा की अच्छी जानकारी होने के कारण ‘स्पैशल औपरेशंस ग्रुप’ के अधिकारियों का ध्यान उन की तरफ गया. उन को वायरलैस औपरेशन के द्विभाषी अनुभवी गुप्तचर के रूप में प्रशिक्षित किया गया. जून 1943 में वे डायना राउडेन (कोड नेम पादरी), सेसीली लेफोर्ट (कोड नेम एलिस शिक्षक) के साथ फ्रांस आ गई. उन का कोड नेम मेडेलीन था. वे फ्रांसिस सुततील (कोड नेम प्रोस्पर) के नेतृत्व में काम करने लगीं.

नूर एक चिकित्सकीय नैटवर्क में नर्स के रूप में शामिल हो गईं. वे वेश बदल कर भिन्नभिन्न स्थानों से ब्रिटिश अधिकारियों को महत्त्वपूर्ण सूचनाएं भेजने लगीं. द्वितीय विश्वयुद्ध में वे पहली एशियन महिला गुप्तचर थीं. नूर विंस्टन चर्चिल के विश्वासपात्रों में से एक थीं. उन्होंने 3 महीने से ज्यादा समय तक अपना गुप्त नैटवर्क चलाया. वे ब्रिटेन में नाजियों की गुप्त जानकारी भेजती रहीं. एक कामरेड की गर्लफ्रैंड ने ईर्ष्या के कारण उन की जासूसी की और उन को पकड़वा दिया. 13 अक्तूबर, 1943 को उन्हें जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

खतरनाक कैदी के रूप में उन को भीषण यातनाओं से गुजरना पड़ा. उन्होंने 2 बार जेल से भागने की कोशिश की लेकिन बंदी बना ली गईं.

गेस्टोपो के पूर्व अधिकारी हैंस किफर ने उन से गुप्त सूचनाएं प्राप्त करने का अथक प्रयास किया लेकिन नूर के मुंह से वे कुछ भी नहीं उगलवा पाए. 25 नवंबर, 1943 को एसओई गुप्तचर जौन रेनशा और लियोन के साथ वे सिचरहिट्टसडिंट्स, पैरिस के हैडक्वार्टर से भाग निकलीं. लेकिन ज्यादा दूर तक भाग नहीं सकीं और पकड़ ली गईं. 27 नवंबर, 1943 को नूर को पैरिस से जरमनी ले जाया गया. वहां उन्हें फोर्जेम जेल में रखा गया. वहां भी अधिकारियों ने उन को कठोर यातनाएं दीं. भेजी गई गुप्त सूचनाओं की जानकारी प्राप्त करने के प्रयास किए, लेकिन नूर ने कोई राज नहीं खोला.

11 सितंबर, 1944 को नूर को 3 और साथियों के साथ जरमनी के डकाऊ यातना शिविर में ले जाया गया.

13 सितंबर, 1944 को चारों के सिर पर गोली मारने का आदेश हुआ. पहले नूर के 3 अन्य साथियों के सिर पर गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया गया. उस के बाद जरमनी फोर्स ने नूर को डराधमका कर ब्रिटेन भेजे गए संदेशों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही लेकिन निर्भीक, साहसी नूर ने अंत तक कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. हार कर सिर में गोली मार कर उन की भी हत्या कर दी गई.

अंतिम सांस लेने से पहले नूर के होंठों पर एक शब्द था-स्वतंत्रता. लाख कोशिशों के बावजूद जरमन सैनिक राज उगलवाने की बात तो दूर, उन का असली नाम तक नहीं जान पाए थे. मृत्यु के समय उन की आयु केवल 30 साल की थी. वास्तव में वे एक शेरनी थीं, जिन्होंने आखिरी सांस तक अपना मुंह नहीं खोला.

सम्मान

  • इस भारतीय महिला गुप्तचर को मरणोपरांत 1949 में जौर्ज क्रौस से सम्मानित किया गया
  • फ्रांस ने उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान क्रोक्स डी गेयर प्रदान किया.
  • मेंसेंड इन डिस्पैचीज (ब्रिटिश गैलेंटरी अवार्ड).

स्मारक

लंदन के गौर्डन स्क्वैयर में नूर की तांबे की प्रतिमा स्थापित की गई है. यह वह जगह है जहां पर नूर बचपन में रहती थीं. यह पहला अवसर है जब ब्रिटेन में किसी मुसलिम अथवा एशियाई महिला की प्रतिमा स्थापित की गई है. 8 नवंबर, 2012 को प्रतिमा को अनावृत किया गया था. महारानी एलिजाबेथ की द्वितीय बेटी राजकुमारी एनी ने अनावरण किया था. इस प्रतिमा का निर्माण लंदन के कलाकार न्यूमेन ने किया है.

भारतीय मूल की पत्रकार श्रावणी बासु ने नूर की जीवनी को अपनी किताब स्पाई प्रिंसेस यानी जासूस राजकुमारी नूर इनायत खान में संजोने का प्रयास किया है. ब्रिटिश साम्राज्य की विरोधी होने के बावजूद नूर ने ब्रिटेन के लिए जासूसी कर एक अद्वितीय मिसाल कायम की थी.

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