‘‘अब तक तो उन्हें घर आ जाना चाहिए था, दिन निकल चुका है… न तो इन्हें खाने की सुध है और न ही घर के कामकाज की, बस जंगल की रखवाली की ही फिक्र रहती है.’’ घर के आंगन में झाड़ू लगाते हुए पति जमुना प्रसाद के खयाल में डूबी शांति के मन में जो विचार आ रहे थे, वह बके जा रही थी.

झाड़ू लगाने के बाद वह दरवाजे पर आ कर पति की राह देखने लगी थी. जी नहीं माना तो बेटे संजय को आवाज लगाती हुई बोली, ‘‘जरा जा कर जंगल की ओर तो देख आते कि तुम्हारे बापू अभी तक आए क्यों नहीं?’’

मां की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि संजय ने मां की बात को काटते हुए तपाक से कहा, ‘‘तुम भी मां सुबहसुबह चिल्लाना शुरू कर देती हो. जानती हो न, बापू को कोई मिल गया होगा पीनेखाने वाला, सो लेट हो गए होंगे. आते होंगे न, क्यों शोर मचा रही हो.’’

जमुना वन विभाग में चौकीदार था.

बेटे की बात सुन कर शांति देवी शांत हो कर बैठ गई थी, लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था. न जाने क्यों उसे रहरह कर मन में कुछ गलत खयाल आ रहे थे, जिस से उस का जी घबराने लगा था.

कुछ देर बीता था कि जब उस का मन नहीं लगा तो वह धीरे से उठी और जंगल की ओर चल दी. वह घर से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर पहुंची ही थी कि अचानक जंगल से लगे रास्ते के किनारे पति जमुना की लाश देख कर वह दहाड़े मार कर रोने लगी.

शांति की चीखपुकार सुन कर मौके पर ग्रामीण जमा होने लगे थे. जंगल में शांति के पति जमुना की लाश देख कर हर कोई हैरान और परेशान था. किसी को कुछ समझ में नहीं आ पा रहा था कि उस की हत्या किस ने कर दी. शांति भी रोने के सिवा कुछ बोल नहीं पा रही थी.

जंगल में वन विभाग के चौकीदार की लाश मिलने की यह खबर कानोकान होते हुए हलिया थाने तक पहुंच गई थी. यह खबर पा कर एसएचओ संजीव कुमार सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंच गए.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो किसी वजनी पत्थर से हत्या करने का शक हुआ. वह अधेड़ उम्र का था. मृतक के घर वालों ने उस की शिनाख्त जमुना के रूप में कर ली. थानाप्रभारी ने हत्या के संबंध में वहां मौजूद लोगों से बात करने के बाद इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

सूचना पा कर वन क्षेत्राधिकारी रामनारायण जैसल, स्क्वायड टीम प्रभारी पवन कुमार सिंह, संतोष कुमार के साथ वहां पहुंच गए. सभी अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण करने लगे.

इस के बाद उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भिजवा दी. फिर मृतक जमुना के बेटे धर्मेंद्र कुमार की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के जांच शुरू कर दी थी. यह बात शनिवार 4 फरवरी, 2023 की है.

मृतक की पहचान पहले ही वन विभाग के चौकीदार जमुना प्रसाद धरिकार (58 वर्ष) निवासी ग्राम फुलयारी के रूप में हो चुकी थी. जमुना वन विभाग के हलिया वन रेंज अंतर्गत चौराबीट जंगल में पेड़पौधों की रखवाली करता था. पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि उस की हत्या किन परिस्थितियों में किस ने और क्यों की है?

पूछताछ के दौरान मृतक के घर वाले भी कुछ बता पाने में जहां असमर्थ थे, वहीं आसपास के लोग भी इस मामले से साफ पल्ला झाड़ रहे थे. ऐसे में पुलिस के सामने हत्या के कारणों को ले कर कई जटिल सवाल खड़े हो रहे थे. फिर भी पुलिस छानबीन की दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश में जुट गई थी.

मीरजापुर के एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने एएसपी श्रीकांत प्रजापति, एएसपी (औपरेशन) महेश अत्री व सीओ (लालगंज) की निगरानी में स्वाट टीम प्रभारी राजेश चौबे, इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस प्रभारी, एसओजी प्रभारी माधव सिंह एवं थाना हलिया की पुलिस टीमें गठित कर घटना का जल्द से जल्द खुलासा कर अभियुक्तों की गिरफ्तारी करने के निर्देश दिए.

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले के हलिया थाना क्षेत्र में एक गांव है फुलयारी. यहीं का रहने वाला जमुना प्रसाद धरिकार वन विभाग में चौकीदार (वाचर) था. उस की ड्यूटी हलिया वन रेंज के चौराबीट में थी. चौराबीट जमुना के घर से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर है, जहां वह रोज पेड़पौधों की रखवाली के लिए जाया करता था और शाम होने पर अपने घर लौट आता था. यह उस की दिनचर्या थी.

3 फरवरी, 2023 को भी वह अपनी ड्यूटी के लिए निकल गया था, जो काफी रात होने के बाद भी घर नहीं लौटा था. उस की दूसरे दिन 4 फरवरी, 2023 को सुबह लाश मिली थी.

मीरजापुर जिले का हलिया थाना जिला मुख्यालय से तकरीबन 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हलिया थाना और हलिया वन रेंज दोनों ही जिले के अंतिम छोर पर स्थित होने के साथसाथ मध्य प्रदेश की सीमा से लगते हैं.

यह इलाका उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का सरहदी इलाका भी कहलाता है. अपराध के साथसाथ हलिया वन रेंज क्षेत्र में रहने वाले दुर्लभ वन्यजीवों के लिए भी यह क्षेत्र सुविख्यात है. यहां तेंदुआ, मगरमच्छ, हिरन, भालू, जंगली सूअर, सांभर, अजगर सहित कई अन्य वन्य जीव पाए जाते हैं. इन में कुछ दुर्लभ वन्यजीव भी हैं.

यह जंगल कभी शेर और चीते की आवाजों से गूंजा करता था. दूरदूर तक फैले हरेभरे घनघोर जंगल और पहाड़ के चलते यहां लकड़ी माफियाओं से ले कर शिकारियों की भी आहट होती रहती है. ऐसे में इस क्षेत्र में पुलिस के साथसाथ वन विभाग द्वारा जंगली जीव और पेड़पौधों की सुरक्षा की खातिर व्यापक पैमाने पर वाचर (चौकीदारों) की तैनाती की गई है, जो पेड़पौधों की सुरक्षा से ले कर जंगली जीवजंतुओं के शिकार तथा पेड़ों के कटान पर नजर रखते हैं.

ऐसे में पुलिस टीम को वाचर जमुना प्रसाद की हत्या में शिकारियों या वन माफियाओं की संलिप्तता को ले कर भी संदेह बना हुआ था. इस संदेह के 2 कारण थे. पहला यह था कि शुक्रवार को जमुना जब घर से 200 मीटर दूर पौधरोपण की देखभाल करने के लिए गया था तो जंगल से कुछ लोग जलावनी लकडि़यों को काट कर ले जा रहे थे. उस ने उन लोगों को पकड़ कर काटी गई लकडि़यां और उन्हें काटने में प्रयुक्त होने वाली कुल्हाड़ी आदि अपने कब्जे में ले कर घर भिजवा दी थी.

उस के बाद वह फिर देखभाल करने के लिए जंगल में चला गया था, जहां से काफी देर होने के बाद भी वह घर नहीं लौटा था. शाम ढलने के बाद रात हो गई थी लेकिन उस का कुछ अतापता नहीं चला था. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. ऐसे में उस का इंतजार करतेकरते घर वाले रात काफी होने पर सो गए थे.

दूसरे जमुना प्रसाद पर एक साल पहले हमला हुआ था, जिस की शिकायत उस ने हलिया थाने में की थी. घर वालों से मिली इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए पुलिस टीम इस पर भी नजर गड़ाए हुए थी.

जमुना प्रसाद के घर वालों से मिली जानकारी और एसपी के निर्देशन में गठित पुलिस टीमों द्वारा इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस एवं भौतिक साक्ष्यों के आधार पर छानबीन की जा रही थी कि इसी बीच मुखबिर की एक सूचना ने पुलिस टीम को मानो डूबते को तिनके का सहारा देते हुए इस घटना के खुलासे के करीब पहुंचने की राह दिखाई.

एसएचओ संजीव कुमार सिंह इस केस को ले कर उलझे हुए थे कि तभी उन का एक खास मुखबिर उन के पास आ कर बोला, ‘‘साहब, आप के लिए एक बहुत खास सूचना ले कर आया हूं?’’

‘‘…तो फिर बोलो पहेलियां क्यों बुझा रहे हो?’’

‘‘हुजूर, आप जिस बात को ले कर उलझन में पड़े हुए हैं उस उलझी हुई कड़ी की दूसरी कड़ी मृतक के घर से ही सुलझ सकती है.’’ वह बोला.

मुखबिर के मुंह से इतनी बात सुन कर एसएचओ उस की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘मतलब मैं नहीं समझा कि तुम क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘साहब, सीधी सी बात है जमुना प्रसाद की हत्या का राज तो उस के घर में ही छिपा हुआ है.’’

इस के बाद मुखबिर ने सारी जानकारी उन्हें दे दी. मुखबिर की इस सूचना से संजीव कुमार सिंह के चेहरे पर खुशी के भाव दिखाई देने लगे थे. यह बात 10 फरवरी, 2023 की है. इस के बाद पुलिस टीम ने मृतक जमुना के दोनों बेटों संजय कुमार (30 वर्ष), बुद्धसेन (20 वर्ष) व फूलचंद्र धरिकार (50 वर्ष) निवासी फुलयारी को हिरासत में ले लिया. इन से जमुना की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो इन्होंने जमुना की हत्या करने का अपराध कुबूल कर लिया.

पूछताछ के बाद जमुना की हत्या की जो कहानी खुल कर सामने आई, वह न केवल हैरान कर देने वाली थी, बल्कि बापबेटी के समान ससुर और बहू के रिश्ते को तारतार कर देने वाली निकली, जो इस प्रकार से है—

फुलयारी गांव के रहने वाले जमुना प्रसाद धरिकार (58) का 5 बेटों और 4 बेटियों का भरापूरा परिवार था. बेटों और बेटियों का घर बसा कर जमुना अपने परिवार के साथ राजीखुशी से रह रहा था.

बेटे जहां मेहनतमजदूरी कर घर चला रहे थे तो वह वन विभाग में वाचर (चौकीदार) था. खापी कर सुबह जाता था तो शाम ढले घर लौट आया करता था.

एक दिन की बात है. रोज की तरह जमुना जल्दी से तैयार हो कर घर से निकलने ही वाला था कि तभी उस की पत्नी उस के पास आ कर बोली, ‘‘बस 5 मिनट रुको, बहू खाना ले कर आ रही है. कुछ खा लो तब जाना. मैं भी बकरियों को घास खिलाने ले जा रही हूं.’’

पत्नी की बात सुन कर जमुना रुक गया था. शांति घर से बाहर निकली थी कि तभी बेटे संजय की पत्नी सुमन भोजन की थाली ले कर आ खड़ी हुई थी. बहू के हाथ में भोजन की थाली देख कर जमुना ने भी सोचा कि जब बहू खाना ले ही आई तो खा लेता हूं. इस के बाद वह खाना खाने के लिए नीचे जमीन पर बिछी चटाई पर बैठ गया.

जमुना के चटाई पर बैठते ही सुमन भोजन की थाली नीचे रखने के लिए झुकी ही थी कि उस की साड़ी का पल्लू पूरी तरह से सरक कर नीचे आ गया, जिस से उस के गदराए बदन को देखते ही जमुना के तनमन में विचलन होने लगी थी.

झट से साड़ी का पल्लू संभालते हुए सुमन मारे शर्म से लालपीली होती हुई कमरे में चली गई तो वहीं जमुना उसे एकटक देखता ही रह गया था. खाना खाने के बाद जमुना बहू को आवाज लगाते हुए जंगल की ओर निकल तो गया था, लेकिन उस के दिलोदिमाग में बहू का गदराया बदन, उस के उभार उसे चैन से रहने नहीं दे रहे थे.

सुमन भी उस पल को याद कर शर्म से लाल हुए जा रही थी तो कभी साड़ी का पल्लू दांतों से दबाए हुए मन ही मन हंस पड़ती थी. 2 दिन बीते थे कि अचानक सुमन का सामना ससुर जमुना से हुआ तो वह उसी पल को याद कर शर्म से पानीपानी हुए जा रही थी, जबकि जमुना उसे एकटक देखे जा रहा था.

उस दिन शाम के समय जमुना जब काम से लौटा तो बहू को पानी के लिए आवाज लगाई. जैसे ही सुमन ने पानी भरा गिलास ससुर के आगे बढ़ाया तो जमुना ने गिलास के साथ बहू के हाथों को भी थाम लिया था. झट से हाथ छुड़ा कर सुमन मुसकान बिखेरते हुए चली गई थी. बहू की बस यही अदा जमुना को दीवाना कर गई थी.

फिर क्या था, जमुना अब अवसर की तलाश में जुट गया था. कुछ ही दिन बीते थे कि एक रोज जमुना दोपहर में ही घर लौट आया.

बेटे जहां कामधंधे पर निकले थे तो वहीं पत्नी शांति भी छोटी बेटी व बहू के साथ खेतों की ओर गई थी. घर में अकेली सुमन ही थी. वह भी घर के कामकाज से खाली हो कर आंगन में नहाने के लिए बैठी थी.

चूंकि उस दिन अचानक से हवा तेज होने से ठंड का असर बढ़ गया था सो उस ने यही सोचा कि थोड़ा धूप कड़क हो जाए तो नहाया जाए. सुमन जैसै ही सारे कपड़े उतार कर सिर्फ पेटीकोट पहने नहाने को हुई थी कि तभी अचानक से ससुर आंगन में आ गया. सामने बहू को उस अवस्था में देख जहां उस की आंखें फटी रह गईं तो वहीं बहू सुमन ने अपने उभारों को दोनों हाथों से ढकने का प्रयास करते हुए गरदन झुका ली.

यह देख कर झट से जमुना पीछे मुड़ा और घर की किवाड़, जो आते वक्त खुला हुई थी, को बंद कर वापस लौट आया. बिना देर किए उस ने बहू सुमन को बांहों में भर लिया और उस के बदन को सहलाने लगा.

ससुर की इस हरकत का सुमन ने विरोध करते हुए उस की बांहों की जकड़न से छूटने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘ब..ब.. बाबूजी, ये क्या कर रहे हैं आप? हटिए, छोडि़ए…’’

सुमन का इतना कहना था कि जमुना ने अपनी बांहों के बंधन को और मजबूत करते हुए उस के अधरों को चूमना शुरू कर दिया.

‘‘बाबूजी छोडि़ए, कोई आ गया तो…’’

उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि जमुना बोला, ‘‘इस की फिक्र मत करो, मैं ने किवाड़ की कुंडी चढ़ा दी है, जिसे तू चढ़ाना भूल गई थी.’’

इतना कह कर उस ने सुमन को गोद में उठा लिया. पहले तो सुमन ससुर की बांहों से मुक्त होने के लिए हाथपैर मार रही थी, लेकिन धीरेधीरे उस ने हाथपैर मारने बंद किए तो जमुना भी उस की मौन सहमति को समझ गया. फिर आंगन में ही बिछी चारपाई पर ले जा कर सुमन को लिटा दिया. इस के बाद उस ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

जिस्मों की प्यास बुझी तो दोनों अलग हुए. एक बार यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर यह चलता ही रहा. दोनों को जब भी समय मिलता, दो जिस्म एक जान हो जाते थे.

ससुरबहू की इस लुकाछिपी का खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. किसी तरह बात पत्नी शांति के कानों से होते हुए बेटे संजय तक पहुंच गई थी. फिर क्या था, पूरे घर में भूचाल आ गया था.

इस बात को ले कर घर में आए दिन कलह होने लगी. अंत में वही हुआ, जिस की जमुना ने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी.

काफी समझाने, घर की इज्जत का हवाला देने के बाद भी जब जमुना नहीं माना तो बेटे संजय ने अपने भाई बुद्धसेन को यह बात बताई.

पिता की इस करतूत ने दोनों भाइयों के खून में उबाल ला दिया. फिर उन्होंने अपने दोस्त और पड़ोसी फूलचंद्र धरिकार के साथ मिल कर पिता को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

फिर योजना के अनुसार संजय कुमार ने अपने भाई बुद्धसेन व पड़ोसी फूलचंद्र धरिकार के साथ मिल कर घर पर ही पिता के सिर पर पत्थर से प्रहार कर हत्या कर दिया. किसी को शक न हो, इसलिए शव को घर से कुछ दूरी पर ले जा कर डाल दिया था और हत्या में प्रयुक्त पत्थर भी छिपा दिया.

पुलिस ने संजय कुमार, बुद्धसेन व फूलचंद्र धरिकार से पूछताछ के बाद इन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पत्थर भी बरामद कर लिया इस के बाद सभी आरोपियों को सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया है.

एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने केस का खुलासा करने वाली टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा करने के साथ पीठ भी थपथपाई.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं

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