सुप्रीम कोर्ट ने रघुवीर सिंह की अग्रिम जमानत की अरजी खारिज कर दी तो मजबूरन उसे 16 दिसंबर, 2013 की दोपहर 2 बजे महानगर मुंबई के उपनगर चेंबूर स्थित क्राइम ब्रांच यूनिट-6 के औफिस आ कर जांच अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा. क्योंकि इस के अलावा अब उस के पास कोई दूसरा चारा नहीं बचा था.
इस तरह वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक श्रीपाद काले और उन की जांच टीम को नवी मुंबई के बहुचर्चित संध्या सिंह हत्याकांड के मामले में 1 साल 3 दिन बाद मृतका के बेटे रघुवीर सिंह को गिरफ्तार कर ने में एक महत्त्वपूर्ण कामयाबी मिल गई थी. क्योंकि उन का कहना था कि रघुवीर सिंह के खिलाफ उन के पास भले ही कोई ठोस सुबूत नहीं है, लेकिन परिस्थितिजन्य सुबूत अवश्य हैं.
जिन परिस्थितिजन्य सुबूतों के आधार पर रघुवीर सिंह को गिरफ्तार किया गया था, ये सुबूत क्राइम ब्रांच और नवी मुंबई पुलिस के पास पिछले 6 महीनों से थे. लेकिन अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए रघुवीर सिंह बारबार कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहा था, इसलिए पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पा रही थी. वह जहां भी गया, जांच अधिकारियों ने परिस्थितिजन्य सुबूतों के आधार पर उस की अग्रिम जमानत का विरोध किया था. सभी अदालतों ने उन्हीं परिस्थितिजन्य घटनाओं को सुबूत माना और उस की अग्रिम जमानत की अरजी खारिज कर दी.
पुलिस के पास रघुवीर सिंह के खिलाफ कोई ठोस सुबूत भले नहीं थे, लेकिन ये सुबूत उस ने खुद बारबार अदालत जा कर उपलब्ध करा दिए थे. गिरफ्तारी से बचने के लिए बारबार अदालत जा कर उस ने पुलिस का संदेह पुख्ता कर दिया था.
बारबार अदालात जा कर जो गलती रघुवीर सिंह ने की थी, कुछ ऐसी ही गलती नोएडा के डा. राजेश तलवार और नूपुर तलवार ने अपनी बेटी आरुषि और नौकर हेमराज हत्याकांड के मामले में की थी. इन दोनों ने भी बारबार अदालत जा कर संदेह को पुख्ता किया था.
जबकि इस मामले में भी सीबीआई के पास मात्र परिस्थितिजन्य सुबूत ही थे, डाइरैक्ट एविडेंस नहीं थे. इसलिए सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट पेश की तो डाइरैक्ट एविडेंस न होने की अपनी मजबूरी अदालत को बता दी थी. अंतत: अदालत ने उसी क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट मान कर मुकदमा चलाया और परिस्थितिजन्य सुबूतों के आधार पर ही दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
जिन 50 वर्षीया संध्या सिंह की हत्या के मामले में उन के बेटे रघुवीर सिंह को मुंबई की क्राइम ब्रांच यूनिट-6 ने गिरफ्तार किया है, वह नवी मुंबई के गार्डन सिटी कहे जाने वाले पौश इलाके के एनआरआई कौंप्लेक्स की इमारत नंबर-3 में अपने परिवार के साथ रहती थीं. उन के परिवार में पति जयप्रकाश सिंह के अलावा बेटी राजेश्वरी और बेटा रघुवीर सिंह था.
सेंट्रल एक्साइज कमिश्नर जयप्रकाश सिंह उन दिनों इंदौर में तैनात थे. बेटी राजेश्वरी सिंह मणिपाल यूनिवर्सिटी से जिओपौलिटिक्स ऐंड इंटरनेशनल रिलेशंस की मास्टर डिग्री की पढ़ाई कर रही थी. वह वहीं हौस्टल में रहती थी. जबकि बेटा रघुवीर सिंह अपनी गर्लफ्रैंड श्रेया के साथ मां के साथ ही रहता था.
रघुवीर सिंह एक बिगड़ा हुआ नवाब था. लाडप्यार ने उसे इस कदर बिगाड़ दिया था कि उस पर किसी का अंकुश नहीं रह गया था. ड्रग एडिक्ट होने की वजह से मांबेटे में बिलकुल नहीं बनती थी. वह ड्रग के लिए अकसर मां संध्या सिंह से पैसे मांगता रहता था. मना करने पर वह उन से लड़ाईझगड़ा करता था. कई बार तो उस ने मां पर हाथ भी उठा दिया था.
संध्या सिंह जहां फिल्मों से जुड़े परिवार से थीं, वहीं उन के पति जयप्रकाश सिंह भी एक वीआईपी परिवार से थे. दोनों ही परिवार काफी संभ्रांत और प्रतिष्ठित थे. जयप्रकाश सिंह प्रशासनिक सेवा के अंतर्गत सेंट्रल कस्टम ऐंड एक्साइज कमिश्नर थे. कई सालों तक मुंबई में तैनात रहने के बाद उन का तबादला इंदौर हो गया था. उन के एक भाई मुंबई एयरपोर्ट के चीफ सिक्युरिटी अफसर थे तो एक अन्य भाई बंगलुरु में पुलिस कमिश्नर थे.
दूसरी ओर संध्या सिंह के दादा पंडित जसराज विश्वप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायक थे तो उन के 2 भाई जतिन और ललित बौलीवुड में संगीतकार हैं. अभिनेत्री और गायिका सुलक्षणा पंडित और विजयेता पंडित उन की छोटी बहनें हैं. संध्या सिंह को फिल्मों में काम करना पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने फिल्मों से हट कर जयप्रकाश सिंह से शादी कर ली थी.
संध्या की जयप्रकाश सिंह से दुबई से भारत आते हुए हवाईजहाज में मुलाकात हुई थी. रास्ते में होने वाली बातचीत ने दोनों को इस कदर प्रभावित किया था कि उन में दोस्ती हो गई. दोनों ही प्रतिष्ठित और संपन्न परिवारों से थे, इसलिए उन की यह दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. इस के बाद दोनों ने शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ली.
यही संध्या 13 दिसंबर, 2012 की दोपहर को करीब 11 बजे अपने घर से 20 लाख के गहने ले कर बैंक के लौकर में रखने के इरादे से निकलीं तो लौट कर नहीं आईं. यह इलाका थाना एनआरआई के अंतर्गत आता था. जब संध्या सिंह की गुमशुदगी की सूचना थाना एनआरआई पुलिस को दी गई तो मामला बड़े और वीआईपी परिवार से जुड़ा होने के कारण वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजकुमार चाफेकर ने तत्काल इस बात की जानकारी उच्चाधिकारियों को दी और अपने सहायकों के साथ उन की तलाश में जुट गए.
मामला रसूखदार परिवारों से जुड़ा था, इसलिए नवी मुंबई के पुलिस आयुक्त अशोक शर्मा ने तत्काल योग्य और कुशल पुलिस अधिकारियों की 4 टीमें बना कर मामले की जांच में लगा दिया. इन टीमों में क्राइम ब्रांच, 2 पुलिस उपायुक्त और 7 वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक भी शामिल थे. वरिष्ठ अधिकारियों के दिशानिर्देश में चारों टीमें संध्या सिंह की तलाश में जुट गईं.
पूछताछ में पता चला था कि 13 दिसंबर, 2012 को संध्या सिंह 20 लाख के गहने ले कर नेरुल की अभ्युदय बैंक के लौकर में रखने के लिए घर से निकली थीं तो लौट कर नहीं आई थीं. वह घर से निकल रही थीं तो बेटे रघुवीर सिंह ने उन से बैंक तक छोड़ने को कहा था, लेकिन उन्होंने उस के साथ जाने से मना कर दिया था. इमारत से निकल कर वह आटो स्टैंड की ओर जा रही थीं, तभी उसी कौंप्लेक्स की इमारत नंबर 32 की रहने वाली उन की सहेली उमा गौर उन्हें मिल गईं. वह अपनी कार से दादर जा रही थीं. उन्होंने संध्या सिंह को अपनी कार में बैठा लिया था.
उमा गौर टीवी सीरियलों और फिल्मों में स्क्रिप्ट लिखने का काम करती थीं. संध्या सिंह से उन की जानपहचान तब हुई थी, जब उन की बहन की शादी थी. उन्हें बहन की शादी में आने वाले मेहमानों को ठहराने के लिए एक मकान की जरूरत थी. वह मकान की तलाश कर रही थीं, तभी उन्हें उसी कालोनी की भीमा शंकर इमारत में संध्या सिंह के खाली पड़े मकान के बारे में पता चला था. उमा ने संध्या सिंह से संपर्क किया और कुछ दिनों के लिए उन से अपना मकान देने को कहा.
संध्या सिंह ने बिना किसी किराए के अपना वह मकान उन्हें दे दिया था. चूंकि संध्या सिंह फिल्में और सीरियल तो देखती ही थीं, इस के अलावा वह एक फिल्मी परिवार से जुड़ी थीं, इसलिए उमा और उन के बीच दोस्ती हो गई थी. यही वजह थी कि उस दिन वह किसी काम से दादर जा रही थीं तो रास्ते में संध्या सिंह को देख कर अपनी कार में बैठा लिया था. उन्होंने उन्हें अभ्युदय बैंक के सामने छोड़ा था.