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उस दिन, 2018 की 18 तारीख थी. थानाप्रभारी सीआई पुष्पेंद्र सिंह अपने औफिस में बैठे थे. उन्होंने महिला कांस्टेबल सावित्री को बुला कर हवालात में बंद हत्यारोपी पूजा को लाने को कहा.

23-24 वर्षीय सांवले रंग की पूजा छरहरे बदन और आकर्षक नैननक्श की महिला थी. एक दिन पहले ही 2 पुरुषों के साथ पूजा के खिलाफ भादंवि की धारा 302 (हत्या) 201 और 34 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था.

थानाप्रभारी पुष्पेंद्र खुद इस केस की जांच कर रहे थे. पूजा आ गई तो उन्होंने उस से पूछताछ शुरू करते हुए पूछा, ‘‘पूजा, तू ने अपने पति कालूराम को क्यों मारा?’’

‘‘हां, यह सच है कि मैं ने अपने पति को मारा है.’’ संक्षिप्त सा उत्तर दिया पूजा ने.

‘‘हत्या के इस मामले में तेरे साथ और कौनकौन थे?’’ सीआई ने अगला सवाल किया.

‘‘साहब, इस काम में कौर सिंह और उस के बेटे संदीप कुमार ने मेरा साथ दिया था.’’

‘‘पूजा, ये बापबेटे न तो तेरी जाति के हैं न रिश्तेदार, फिर भी इन लोगों ने इस जघन्य अपराध में तेरा साथ दिया. आखिर क्यों?’’ इस पर पूजा चुप्पी साध गई.

‘‘साहब, ये दोनों बापबेटे मुझे चाहते हैं. पिछले कुछ दिनों से मैं बापबेटे की पत्नी बन कर रह रही थी. मेरा पति कालूराम हमारी राह का कांटा बन रहा था. इसलिए हम तीनों ने मिल कर उस की हस्ती ही मिटा दी.’’ पूजा के मुंह से यह सुन कर पुष्पेंद्र सिंह हतप्रभ रह गए. क्योंकि भाईभाई की एक पत्नी तो संभव है, पर बापबेटे की नहीं.

अपनी सालों की सर्विस में पुष्पेंद्र सिंह सैकड़ों आपराधिक मामलों से रूबरू हुए थे. पर इस मामले ने जैसे उन के अंतरमन को झकझोर दिया था. भोलीभाली सूरत वाली अनपढ़ पूजा ग्रामीण युवती थी. लेकिन उस के भोले चेहरे के पीछे का डरावना सच यह था कि उस ने अपने शारीरिक सुख की चाह में न केवल अपने भोलेभाले पति का कत्ल किया, बल्कि अपने भविष्य को भी अंधकारमय बना लिया था.

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