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प्रीति रोज कालेज जाती थी. एक दिन रास्ते में खड़ा हो कर वह प्रीति का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर में प्रीति आती दिखाई दी. उसे देखते ही राहुल के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई. जैसे ही उस की नजरें प्रीति से टकराईं, उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. प्रीति ने उसे देख लिया था. वह राहुल के पास आ कर धीरे से मुसकराई और सामने से गुजर गई.

राहुल ने भी प्रीति के पीछे अपने कदम बढ़ा दिए. उस ने आसपास देखा और फि़र आहिस्ता से उसे आवाज दी, ‘‘प्रीतिजी!’’

प्रीति को भी आभास था कि राहुल उस के पीछे आ रहा है. लिहाजा चौंकने के बजाय उस पर नजर पड़ते ही प्रीति बोली, ‘‘त...तुम, मेरा मतलब आप..?’’

‘‘पहला संबोधन ही रहने दो, मुझे वही अच्छा लगता है.’’ राहुल ने उस के बराबर में आते हुए कहा.

‘‘सम्मान में बोलना चाहिए,’’ प्रीति बोली.

‘‘खैर छोडि़ए इन बातों को.’’ राहुल ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा,‘‘आज इतनी देर कैसे हो गई आप को?’’

‘‘रात देर तक जागती रही, इसलिए सुबह देर से आंख खुली.’’ प्रीति ने शोखी से जवाब दिया.

‘‘मैं तो पूरी रात नहीं सो सका, सुबह के वक्त नींद आई.’’

‘‘क्या रात भर पढ़ते रहे?’’

‘‘हां, रात भर मैं तुम्हारे चेहरे की हसीन किताब अपनी आंखों के सामने रख कर पन्ने पलटता रहा.’’ राहुल ने कहा तो प्रीति ने शरमा कर अपना चेहरा झुका लिया. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘इस तरह की बात न करो.’’

‘‘क्यों, क्या मेरी बात अच्छी नहीं लगी?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. आप की बातें रात को मुझे परेशान करेंगी. अब आप जाओ, कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी.’’

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