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मौकाएवारदात पर पुलिस को जो सूचना मिली थी, वह उस ने गोपनीय रखी ताकि घटना के असल कारणों का पता लगा कर मुलजिमों को आसानी से सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सके. थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह ने विजयपाल को कानोंकान भनक नहीं लगने दी कि वे घटना की तह तक पहुंच गए हैं.

अगले दिन पुलिस को विवेक चौहान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में मौत की वजह हैड इंजरी बताया गया था. हत्यारों ने किसी नुकीली और वजनदार चीज से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा था. यही नहीं हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए विवेक की लाश को फ्लाईओवर के पास फेंक दिया था, ताकि पुलिस इसे दुर्घटना मान ले और हत्यारे साफ बच निकलें.

विवेक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और किरन की हत्या को ले कर सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम काफी सक्रिय थे. दोहरे हत्याकांड की निगरानी सीओ गौतम ही कर रहे थे. पुलिस ने हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए किरन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकवाई.

काल डिटेल्स से पता चला कि उस ने सब से ज्यादा फोन एक ही नंबर पर किए थे. उसी नंबर पर 9 मार्च, 2018 की रात 10 बजे के करीब भी किरन की बात हुई थी.

वह नंबर विवेक का निकला. जांच में यह भी पता चला कि विवेक विजयपाल के साढ़ू का बेटा था. विवेक और किरन मौसेरे भाईबहन थे. फिर भी उन के बीच सालों से प्रेमसंबंध था.

9 मार्च की रात विवेक चौहान को मूड़ाघाट गांव में देखा गया था. वह अपने मौसा के घर आया था. उस के बाद से वह गायब था. अगले दिन उस की लाश बरामद हुई थी. पुलिस के लिए यह सूचना पर्याप्त थी. इस से पुलिस का यह शक यकीन में तब्दील हो गया कि इस घटना में विजयपाल चौहान और उस के परिवार का ही हाथ है.

विजयेंद्र सिंह ने किरन की हत्या के संबंध में पूछताछ के लिए विजयपाल, उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और छोटे भाई जनार्दन को थाने बुलवा लिया.

सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम थाने में पहले से मौजूद थे. थानाप्रभारी ने विजयपाल से सवाल किया, ‘‘क्या बता सकते हो कि कल फ्लाईओवर के पास जो लाश बरामद हुई थी, किस की थी?’’

‘‘साहब, मुझे क्या पता वो किस की लाश थी?’’ विजयपाल चौहान ने गंभीरता से जवाब दिया.

‘‘सच कहते हो तुम, भला तुम्हें कैसे पता होगा कि वह लाश किस की थी. तुम्हें तो उस के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है.’’

‘‘हां साहब, सचमुच मुझे उस लाश के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही मैं उसे पहचानता हूं.’’ विजयपाल ने उत्तर दिया.

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं चलो मैं ही तुम्हारी कुछ मदद कर देता हूं.’’ विजयेंद्र सिंह ने व्यंग्य कसते हुए कहा, ‘‘किसी विवेक चौहान उर्फ रामू को जानते हो?’’ विजयपाल से सवाल कर के उन्होंने उस के चेहरे पर अपनी तीखीं नजरें गड़ा दीं. उन की सवालिया नजरों को देख कर विजयपाल एकदम से सकपका गया.

‘‘साहब, आप तो मुझे ऐसे देख रहे हैं, जैसे मैं ने ही उस की हत्या की है.’’ विजयपाल बोला.

‘‘हम ने कब कहा कि तुम ने उस की हत्या नहीं की है.’’ इस बार सीओ गौतम बोले, ‘‘भलाई इसी में है कि तुम अपना जुर्म कबूल कर लो और सचसच बता दो कि तुम ने विवेक की हत्या क्यों की? वादा करता हूं, मैं सरकार से सिफारिश करूंगा कि तुम्हें कम से कम सजा हो.’’

‘‘हां, साहब. मैं ने ही रामू की हत्या की है.’’ विजयपाल सीओ (सदर) के पैरों को पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘साहब मुझे माफ कर दीजिए, मुझे बचा लीजिए, मैं ऐसा नहीं करना चाहता था, लेकिन हालात से मजबूर हो कर मुझे यह कदम उठाना पड़ा. रामू ने मेरी इज्जत की बखिया उधेड़ कर रख दी थी. लाख समझाने के बावजूद भी वह मेरी बेटी का पीछा नहीं छोड़ रहा था. उस दिन तो उस ने हद ही कर दी और…’’ भावावेश में आ कर विजयपाल चौहान पूरी कहानी सुनाता चला गया.

विजयपाल चौहान द्वारा अपना जुर्म कबूल कर लेने के बाद उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और भाई जनार्दन ने भी अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों ने स्वीकार किया कि विवेक और किरन की हत्या में उन्होंने विजयपाल का साथ दिया था. 36 घंटे के भीतर जिले को दहला देने वाली 2-2 सनसनीखेज हत्याओं का पर्दाफाश हो चुका था.

विवेक किरन हत्याकांड के परदाफाश पर पुलिस कप्तान नरेंद्र कुमार सिंह ने पुलिस टीम को 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत के सामने पेश कर के उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के आधार पर कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

विजयपाल के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पतिपत्नी और 3 बच्चे. 3 बच्चों में 2 बेटे थे गोलू उर्फ शंभू और गुलाब तथा एक बेटी थी किरन, जिस की उम्र 20 वर्ष थी. विजयपाल प्राइवेट नौकरी करता था. तीनों संतानों में किरन दूसरे नंबर की औलाद थी. किरन चंचल और हंसमुख स्वभाव की युवती थी. वह बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. गांव से कालेज वह साइकिल से जाती थी.

किरन की मौसी परिवार सहित गोरखपुर के बड़हलगंज के चिल्लुपार विधानसभा के बरगदवा में रहती थी. उस का एक ही एकलौता बेटा रामू उर्फ विवेक था. विवेक 21-22 साल का गबरू जवान था. साढ़े 5 फीट लंबा और स्मार्ट.

विवेक की अपनी कोई बहन नहीं थी. रक्षाबंधन के अवसर पर उसे बहन की कमी काफी खलती थी. विवेक की मां से बेटे की मायूसी देखी नहीं जाती थी. इसलिए विवेक की मां सुमन अपनी बड़ी बहन की बेटी किरन को रक्षाबंधन पर अपने यहां बुला लेती थी. किरन विवेक की कलाई पर राखी बांध कर अपने घर लौट आती थी. ऐसा हर साल होता था.

किरन और विवेक करीबकरीब हमउम्र थे. भाईबहन के रिश्ते के नाते दोनों के बीच काफी नजदीकियां थीं, विवेक जब भी किरन को देखता था, ख्ुशी के मारे उस का दिल बागबाग हो उठता था. किरन भी विवेक को देख कर खुश हो जाती थी.

गतवर्ष रक्षाबंधन के मौके पर विवेक ने मौसेरी बहन किरन को तोहफे में एक मोबाइल फोन दिया था. जब भी विवेक का मन किरन से बात करने का होता था, वह फोन कर लेता था और जब देखने की इच्छा होती तो बस्ती जा कर किरन से मिल आता था.

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