राधा भी बह गई नेत्रपाल के प्यार में
जब वह मुसकान बिखेरती हुई रसोई में गई तो उस की मतवाली चाल देख कर नेत्रपाल का दिल जोरों से धडक़नें लगा. कुछ देर में राधा 2 कप चाय और बिस्कुट ले आई.
चाय पीतेपीते नेत्रपाल ने पूछा, “भाभी, एक बात पूछूं, तुम्हारी आंखों में मुझे एक उदासी सी तैरती दिखती है. तुम भैया के साथ खुश तो हो न..?”
राधा ने घूर कर नेत्रपाल को देखा, “यह खयाल तुम्हारे मन में कैसे आया?”
“बस यूं ही आ गया. तुम्हारे खूबसूरत चेहरे पर मुझे उदासी अच्छी नहीं लगती.”
“माना मैं उदास रहती हूं. अब बताओ, मेरी उदासी दूर करने को तुम क्या कर सकते हो?” अप्रत्याशित सवाल पूछ कर राधा ने अपनी नशीली आंखों से उसे देखा.
“तुम्हें खुश करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं.” नेत्रपाल सिंह ने भी कह दिया.
“अच्छा!” राधा ने आंखें नचाईं, “औरत को खुश कैसे रखा जाता है, यह जानते भी हो?”
“भाभी, तुम बताओगी तो जान जाऊंगा. आखिर तुम मेरी प्यारी भाभी हो, इस जहां में सब से अच्छी. सब से सुंदर.” नेत्रपाल ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया.
राधा ने अपनी तारीफ, अपनी खूबसूरती के ऐसे बोल पहली बार सुने थे. नारी सुलभ कमजोरी उस पर हावी होने लगी. उस ने कस कर नेत्रपाल सिंह का हाथ पकड़ लिया, “हाथ पकड़ कर कभी छोड़ोगे तो नहीं?”
“कभी नहीं भाभी. मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं.” कह कर उस ने राधा को अपनी बांहों में भर लिया. राधा भी उस से लिपट गई. नेत्रपाल ने राधा के शरीर से छेड़छाड़ शुरू की तो राधा का मन भी बेकाबू होने लगा. लेकिन वह उचित समय न था, अपनी ख्वाहिशों में मस्ती भरने का. अत: वह नेत्रपाल की बांहों से छिटक गई.
फिर कामुक निगाहों से उसे देखती हुई बोली, “अभी जाओ, कोई आ जाएगा. रात को आना. मैं जानवरों वाले बाड़े में तुम्हारा इंतजार करूंगी.”
झोपड़ी में हुआ पहला मिलन
नेत्रपाल का दिल बल्लियों उछलने लगा. उस ने अपने कपड़े दुरुस्त किए. इधरउधर नजर दौड़ाई, फिर राधा के घर से बाहर निकल आया.
उस शाम राधा ने जल्दीजल्दी खाना खिला कर बच्चों को सुला दिया. ससुर ओमप्रकाश खेत से आते ही अपनी घासफूस की बनी झोपड़ी में चले गए. वहीं उन्होंने खाना खाया. राधा के पति अश्वनी की उस दिन तबीयत कुछ ठीक नहीं थी. अत: वह भी दवा खा कर बिस्तर पर पड़ते ही सो गया.
राधा ने जल्दीजल्दी रसोई का काम निपटाया और घर का मुख्य दरवाजा बाहर से बंद कर बगल में बने जानवरों के बाड़े में पहुंच गई. फिर वह नेत्रपाल का इंतजार करने लगी. रात के 10 बजतेबजते सिरसा दोगड़ी गांव में सन्नाटा छा गया था. सब के दरवाजे बंद हो चुके थे. तभी एक साया अश्वनी के जानवरों वाले बाड़े के बाहर दिखाई दिया. उस ने बाड़े के दरवाजे को ढकेला तो वह खुल गया. अंदर मौजूद राधा ने साए को अंदर खींच कर दरवाजा बंद कर लिया. वह नेत्रपाल ही था.
बाड़े के अंदर आते ही नेत्रपाल ने राधा को अपनी बांहों में भरा और दोनों जमीन पर लुढक़ गए. नेत्रपाल ने राधा के कान के पास मुंह ले जा कर फुसफुसाहट की, “सब सो गए?”
“हां, लेकिन ससुर का पता नहीं, कब जाग जाएं. हमारे पास बहुत कम वक्त है. बेटा उठ गया तो रोने लगेगा.”
हसरतें पूरी करने की चाहत से दोनों सराबोर थे. उन के शरीर भी मिलन को बेताब थे. अत: जल्दी ही दोनों एकदूसरे में समा गए. फिर तो असीम सुख प्राप्त करने के बाद ही वे दोनों एकदूसरे से अलग हुए. उस रात को नेत्रपाल के लिए यह पहला स्त्री सुख था, इसलिए वह देर तक राधा को चूमता रहा. राधा के लिए यह पहला मनमुताबिक सुख था. इसलिए वह उस के बाल सहलाती रही. उस के सीने को अंगुलियों से हरारत देती रही. उस रात के बाद राधा और नेत्रपाल जैसे एक जिस्म दो जान हो गए.
उन के अवैध संबंध जारी रहे
अश्वनी तथा उस के पिता ओमप्रकाश सुबह खाना खाने के बाद खेत पर चले जाते थे. फिर शाम को ही आते. दोपहर को राधा अकेली होती थी. दोपहर का सन्नाटा होते ही नेत्रपाल उस के घर में घुस जाता. दोनों की देह एकदूजे से लिपटती, फिर शरीर का कामज्वर उतारने के बाद ही अलग होती.
राधा का जीवन अब मस्ती से भर गया था. वह पूरी तरह अवैध संबंधों के दलदल में फंस चुकी थी. वह पति की उपेक्षा भी करने लगी थी. अश्वनी समझता था कि राधा बच्चों के पालनपोषण व घर के काम में इतनी थक जाती है जिस से वह उस का ध्यान नहीं रख पाती.
नेत्रपाल सिंह जहां राधा से प्यार करता था, वहीं उस के बच्चों को भी दुलारता था और खिलाता पिलाता था. वह जब भी घर आता, बच्चों को बिस्कुट, नमकीन, चिप्स, कुरकुरे आदि जरूर लाता. इन चीजों को पा कर बच्चे खुश हो जाते. राधा की बेटी व बेटा नेत्रपाल को चाचा कह कर बुलाते थे. हालांकि अश्वनी नेत्रपाल का घर आना तथा बच्चों को सामान ला कर देना पसंद नहीं करता था.
नेत्रपाल शातिर दिमाग था. वह खुद तो शराबी था ही, उस ने राधा के पति अश्वनी को भी शराब का चस्का लगा दिया था. सप्ताह में एक या दो बार वह शराब की बोतल ले कर अश्वनी के घर आ जाता फिर थकान मिटाने का बहाना कर उसे शराब पीने को प्रेरित करता. अश्वनी भी नानुकुर के बाद राजी हो जाता. साथसाथ शराब पीने से दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी.
नेत्रपाल के अकसर अश्वनी के घर में घुसे रहने पर आसपड़ोस को शक होने लगा तो चौपाल पर दोनों के संबंधों की चर्चाएं होने लगीं. कनबतियां एक कान से होती हुई दूसरे कान तक पहुंचीं और बात ओमप्रकाश के कानों तक पहुंच गई.