भाभी की बात सुन कर कल्लू को भी गुस्सा आ गया. वह घर में तोड़फोड़ करने लगा. दयाशंकर ने कल्लू को समझाने का प्रयास किया तो वह उस से भी भिड़ गया. इस पर दयाशंकर को गुस्सा आ गया. उस ने कल्लू को मारपीट कर घर से बाहर कर दिया.
भाई की पिटाई से कल्लू का नशा हिरन हो गया था. रात भर वह घर के बाहर पड़ा रहा. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह भैयाभाभी का रोटी का एक टुकड़ा भी मुंह में नहीं डालेगा. कमा कर ही खाएगा.
वंदना की तीखी जुबान लक्ष्मी के सीने को छलनी कर देती थी. कल्लू के प्रति उस का दुर्व्यवहार भी दिल में दर्द पैदा करता था, लेकिन वह लाचार थी. अत: उस ने कल्लू को समझाया, ‘‘बेटा, तू जवान है. हट्टाकट्टा है. कहीं भी चला जा और अपमान की रोटी खाने के बजाए इज्जत की रोटी कमा कर खा.’’
मां की बात कल्लू के दिल में उतर गई. उस के बाद उस ने फैजाबाद छोड़ दिया और नौकरी की तलाश में कानपुर आ गया. कुछ दिनों के प्रयास के बाद रमाशंकर उर्फ कल्लू को पनकी गल्ला मंडी में पल्लेदारी का काम मिल गया. शुरू में तो कल्लू को पीठ पर बोझ लादने में परेशानी हुई, लेकिन बाद में अभ्यस्त हो गया.
गल्ला मंडी में गेहूं चावल के 3 बड़े गोदाम हैं. इन्हीं गोदामों में गेहूं चावल का भंडारण होता है. ट्रक आते ही पल्लेदार बोरा उतरवाई की मजदूरी तय कर के माल गोदाम में उतार देते हैं. रमाशंकर उर्फ कल्लू भी ट्रक से माल लोड अनलोड का काम करने लगा.