नितिन चाय पी कर कप रखने जा रहा था कि उस के मामा के बेटे गिरीश का फोन आ गया. उस ने कप मेज पर रख कर फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से गिरीश ने कहा, ‘‘मैं अपनी इमारत के नीचे खड़ा हूं. बहुत जरूरी काम है. तुम जल्दी से आ जाओ.’’
आने वाली आवाज से गिरीश काफी परेशान लग रहा था, इसलिए नितिन ने पूछा, ‘‘क्या बात है भाई, तुम कुछ परेशान से लग रहे हो?’’
‘‘तुम आ कर मिलो तो… आने पर ही बता पाऊंगा कि परेशानी क्या है?’’ गिरीश ने कहा.
‘‘ठीक है, मैं 10 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’
‘‘भाई, जल्दी आ,’’ कह कर गिरीश ने फोन काट दिया.
नितिन कुछ देर तक खड़ा सोचता रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि गिरीश इतना परेशान क्यों था? उसे जल्दी से जल्दी आने को कहा था. इस के पहले उस ने न कभी इस तरह बात की थी और न इस तरह बुलाया था. इसलिए जल्दी से तैयार हो कर नितिन नीचे आया और आटो पकड़ कर अपने ममेरे भाई गिरीश के घर की ओर रवाना हो गया. गिरीश सचमुच इमारत के नीचे खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. नितिन के पहुंचते ही वह पास आया और उसी आटो से उस के साथ भायंदर मौल की ओर चल पड़ा.
मौल से गिरीश ने तेज धार वाले 2 बड़ेबड़े चाकू, प्लास्टिक के बड़ेबड़े 2 बैग, एक बड़ी बोतल फिनाइल, टेप और पैकिंग का सामान खरीदा तो नितिन परेशान हो उठा. उस से रहा नहीं गया तो उस ने पूछा, ‘‘इन सब चीजों की तुम्हें क्या जरूरत पड़ गई?’’
‘‘आज मारपीट करते समय मधुमती की मौत हो गई है. उसी की लाश को ठिकाने लगाना है,’’ गिरीश ने कहा, ‘‘इस काम में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.’’
गिरीश पोटे ने लाश ठिकाने लगाने में मदद मांगी तो नितिन के होश उड़ गए. क्योंकि उसे पता था कि मामला निश्चित पुलिस तक पहुंचेगा, तब पकड़े जाने पर उसे भी जेल जाना पड़ेगा. लेकिन उसे गिरीश की बात पर विश्वास भी नहीं हो रहा था, क्योंकि गिरीश जब भी नशे में होता था, अकसर इसी तरह की ऊटपटांग बातें करता रहता था.
इस के बावजूद गिरीश ने जो सामान मौल से खरीदा था, उसे देख कर नितिन को उस की नीयत ठीक नहीं लगी. वह जिस काम में मदद मांग रहा था, वह नितिन के वश का नहीं था. इसलिए मौल में भीड़ का फायदा उठा कर वह भाग निकला.
बाहर आ कर उस ने मधुमती को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. उस ने न जाने कितनी बार मधुमती का नंबर मिला डाला. जब मधुमती का फोन स्विच औफ ही बताता रहा तो वह घबरा गया.
काफी प्रयास के बाद भी मधुमती से संपर्क नहीं हो सका तो नितिन ने गिरीश के पिता यानी अपने मामा श्रीरंग पोटे को फोन किया. उन्हें पूरी बात बता कर जब उस ने अपनी आशंका बताई तो श्रीरंग पोटे की हालत खराब हो गई. उन का बेटा गिरीश ऐसा भी कुछ कर सकता है, इस बात की उन्हें जरा भी आशंका नहीं थी.
लेकिन नितिन ने जो बताया था, उसे भी एकदम से नकारा नहीं जा सकता था. वह तुरंत भायंदर के लिए निकल पड़े. भायंदर पहुंचने में उन्हें आधा घंटा लगा. वह गिरीश के फ्लैट पर पहुंचे तो फ्लैट अंदर से बंद था. बारबार डोरबेल बजाने और दरवाजा खटखटाने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो उन का कलेजा मुंह को आ गया. वह अपना सिर थाम कर बैठ गए.
श्रीरंग को नितिन की आशंका सच नजर आने लगी. उन का मन किसी अनहोनी से कांप उठा. इस की वजह यह थी कि उन दिनों गिरीश और मधुमती का रिश्ता काफी नाजुक मोड़ से गुजर रहा था. दोनों के बीच इतना अधिक तनाव था कि अकसर लड़ाईझगड़े होते रहते थे. कभीकभी नौबत मारपीट तक पहुंच जाती थी. ऐसे में नितिन ने जो बताया था, वैसा होना असंभव नहीं था.
लाख प्रयास के बाद भी जब फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला तो श्रीरंग पोटे नितिन को साथ ले कर मुंबई से सटे जनपद थाना के उपनगर भायंदर के थाना नवाघर जा पहुंचे. उस समय ड्यूटी पर असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर थे. उन्होंने श्रीरंग पोटे और नितिन को बैठा कर आने की वजह पूछी तो श्रीरंग पोटे और नितिन ने उन के सामने अपनी आशंका व्यक्त कर दी.
किसी की जिंदगी का सवाल था, इसलिए असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर ने दोनों की आशंका को गंभीरता से लिया और सच्चाई का पता लगाने के लिए तत्काल हेडकांस्टेबल मोहन परकाले, आनंद मिक्कारे को ले कर गिरीश के फ्लैट पर जा पहुंचे. फ्लैट अभी भी उसी तरह बंद था.
पुलिस ने भी फ्लैट को खुलवाने की कोशिश की. लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो आसपड़ोस के कुछ लोगों को बुला कर फ्लैट का दरवाजा तोड़ दिया गया. दरवाजा खुला तो श्रीरंग पोटे और नितिन ने जो आशंका व्यक्त की थी, वह सच निकली. फ्लैट के अंदर की स्थिति देख कर सभी स्तब्ध रह गए. ममला गंभीर था, इसलिए असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर ने इस की सूचना तुरंत सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले और पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.
सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद ही सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्हीं के साथ थाना जनपद के ज्वाइंट सीपी अनिल कुंभारे और एसीपी संग्राम सिंह भी पहुंच गए थे. फ्लैट के अंदर का मंजर बड़ा ही भयानक था. कमरे में रखी वाशिंग मशीन के ऊपर खून से सने वे दोनों चाकू रखे थे, जिन्हें गिरीश ने नितिन के समने भयंदर मौल से खरीदे थे.
गिरीश पोटे ने उन्हीं चाकुओं से अपनी पत्नी मधुमती के शरीर के कई टुकड़े किए थे. उन से बदबू न आए, इसलिए उन्हें उठा कर फ्रिज में रख दिया था. कुछ टुकड़ों को उस ने पार्सल की तररह पैक कर के बेडरूम में पड़े पलंग के नीचे छिपा दिया था. कमरे के फर्श को फिनाइल डाल कर साफ करने की कोशिश की गई थी.
एक ओर जहां पुलिस अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण और मधुमती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले के निर्देश पर असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर हेडकांस्टेबल मोहन परकाले और आनंद मिल्लारे के साथ गिरीश पोटे की गिरफ्तारी की कोशिश में लग गए थे.
इस के लिए वह गिरीश की बुआ के बेटे नितिन की मदद ले रहे थे. नितिन की ही मदद से असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश सिवरकर ने गिरीश को रात 11 बजे भायंदर के शेवारे पार्क से गिरफ्तार कर लिया. यह 3 दिसंबर, 2013 की बात थी.
गिरीश के थाने पहुंचने तक सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले मधुमती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए थे. अब तक रात के लगभग 12 बज चुके थे. इसलिए पुलिस ने गिरीश से पूछताछ करने के बजाय लौकअप में बंद कर दिया. अगले दिन उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के पूछताछ एवं सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.