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अलगअलग जाति के होने की बात पर रूपा ने कहा कि वह अपने मांबाप को मना लेगी. वह घर की लाडली है. इसलिए घर वाले उस के फैसले का जरा भी विरोध नहीं करेंगे. हर्षित ने भी रूपा को भरोसा दिया कि वह भी अपने मांबाप को शादी के लिए तैयार करने की कोशिश करेगा. ब्राह्मण परिवार होने के कारण इस में थोड़ा समय लगेगा.

प्रेम की आग दोनों तरफ लगी हुई थी. रूपा हर्षित को प्यार जरूर करती थी, लेकिन उसे अपनी देह छूने तक नहीं दे रही थी, जबकि हर्षित रूपा की देह की गंध को अपने कब्जे में करने को आतुर हुआ जा रहा था. उस ने ही रूपा से कहा कि क्यों न वे दोनों मंदिर में जा कर शादी कर लें. उस के बाद उन के मातापिता को मनाना आसान हो जाएगा.

सच तो यह था कि रूपा भी ऐसा ही चाहती थी, ताकि वह हर्षित की ब्याहता बन जाए और उस की संपत्ति पर अपना हक जता सके. उस ने हर्षित के प्रस्ताव को तुरंत मान लिया. आने वाले कुछ दिनों में ही दोनों ने एक मंदिर में जा कर गुपचुप तरीके से शादी रचा ली. यहां तक कि इस खुशी में उन्होंने अपने दोस्तों को एक होटल में पार्टी भी दे दी.

इस की भनक हर्षित के मांबाप को लगी तो उन्होंने हर्षित को डांट लगाई और रूपा से तुरंत संबंध तोड़ने का दबाव बनाया. तब तक रूपा भी पत्नी का अधिकार हासिल कर चुकी थी. उस ने हर्षित के मांबाप के विरोध का सामना किया और रात को हर्षित के साथ एक ही कमरे में रहने लगी.

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