पिता की बात सुन कर वह भी बुरी तरह परेशान हो गया. उस ने माना भी कि इस में कोई दोराय नहीं है. जसपिंदर के साथ कोई अनहोनी घटना घट सकती है क्योंकि उसे गायब हुए 14 दिन बीत चुके थे और अब तक उस का कहीं पता नहीं चला था. फिर उस के पास सोने के जेवरात और नकदी भी तो थे, जो अनहोनी का कारण बन सकते थे.
इस के बाद बिना समय गंवाए बापबेटा सीधे हठूर थाने जा पहुंचे और इंसपेक्टर जगजीत सिंह को पूरी बात बताई कि फिलीपींस की राजधानी मनीला में रहने वाले रिश्तेदार हरपिंदर सिंह ने उन्हें बेटी की हत्या हो जाने की जानकारी है. उस ने वह स्थान भी बताया जहां बेटी की लाश दफनाए जाने की संभावना थी.
जेसीबी से खुदाई कर दफनाई थी लाश
कमलजीत सिंह की बात सुन कर इंसपेक्टर जगजीत सिंह चौंक गए. आननफानन में उन्होंने धारा 364, 120बी आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और उन के बताए गए चारों आरोपियों परमप्रीत सिंह उर्फ परम, भवनप्रीत सिंह उर्फ भवना, एकमप्रीत सिंह और हरप्रीत सिंह को सुधार, घुमाण और मंसूरा से हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए हठूर थाने ले आए.
इंसपेक्टर जगजीत सिंह ने चारों आरोपियों से बारीबारी से कड़ाई से पूछताछ करनी शुरू की तो चारों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया कि उन्होंने 24 नवंबर, 2022 को दिन में ही जसपिंदर का कत्ल कर दिया था और राज छिपाने के लिए उसे दफना दिया था. इस के बाद उन्होंने पूरी घटना का खुलासा कर दिया.
चूंकि जसपिंदर की लाश जमीन में दफनाई गई थी इसलिए उस की खुदाई के लिए मौके पर एक मजिस्ट्रैट का मौजूद रहना अनिवार्य था. फिर चारों आरोपियों से पूछताछ करतेकरते रात काफी हो चुकी थी, इसलिए बाकी की काररवाई अगले दिन के लिए छोड़ दी गई.
5 दिसंबर, 2022 को सुबह करीब 10 बजे ड्यूटी मजिस्ट्रैट एवं सिधवां बेट के नायब तहसीलदार मलूक सिंह, डीएसपी (रायकोट) रछपाल सिंह ढींढसा, एसएसपी हरजीत सिंह और हठूर थाने के एसएचओ जगजीत फार्महाउस पर पहुंच चुके थे और चारों आरोपी भी वहां लाए गए थे. मौके पर फोरैंसिक टीम भी आ चुकी थी और मिट्टी खुदाई के लिए जेसीबी भी बुला ली गई थी.
आरोपी परमप्रीत और भवनप्रीत की निशानदेही पर उस जगह की मिट्टी की खुदाई शुरू हुई, जहां जसपिंदर की लाश दफनाई गई थी. करीब 10 फीट लंबाई और 10 फीट चौड़ाई और 5 फीट गहराई तक मिट्टी निकाली गई तो वहां से तेज भभका उठने के साथ ही एक सड़ीगली लाश बरामद हुई.
लाश इस कदर सड़ गई थी कि पहचानी नहीं जा रही थी कि वह लाश किस की है. लेकिन कपड़ों के आधार पर कमलजीत और उन के बेटे शमिंदर ने उस की पहचान जसपिंदर कौर के रूप में कर ली थी.
लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने पंचनामा तैयार कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सुधार स्थित जिला अस्पताल भिजवा दी. आगे की कागजी काररवाई पूरी कर के चारों आरोपियों को ले कर इंसपेक्टर जगजीत सिंह थाने पहुंच गए थे.
पहले की लगाई गई धारा 364, 120बी के साथ हत्या की धाराओं 302 आईपीसी भी जोड़ दी गई. फिर उन्हें अदालत में पेश कर ताजपुर रोड स्थित सेंट्रल जेल लुधियाना भेज दिया. चारों आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद इस हत्या के पीछे की प्रेम कहानी कुछ ऐसे सामने आई थी—
24 वर्षीय जसपिंदर कौर मूलरूप से लुधियाना जिले के हठूर थानाक्षेत्र स्थित गांव रसूलपुर की रहने वाली थी. पिता कमलजीत सिंह के 2 बच्चों शमिंदर सिंह और जसपिंदर में वह छोटी और सब की लाडली थी.
वैसे भी पंजाब खेतीबाड़ी के मामले में अग्रणी माना जाता है. कमलजीत सिंह किसान थे. बापबेटे दोनों मिल कर अपने खेतों में अथक मेहनत करते थे, जिस की बदौलत ही खेतों में इतना अनाज पैदा हो जाता था कि साल भर खाने के अनाज रख लेने के बाद बाकी बचे अनाज को बाजार में बेच देते थे. उन पैसों से उन की और परिवार की ठाठ से जिंदगी कट रही थी.
बच्चों के पसंद की हर चीज घर में उपलब्ध थी. अपनी समझ से कमलजीत सिंह किसी चीज की कमी नहीं रखते थे. बच्चों की एक फरमाइश पर उन के मनपसंद की हर चीज मिल जाती थी. उन के मनपसंद खानेपीने से ले कर पहननेओढ़ने तक सब उपलब्ध रहता था, वह भी उन की एक फरमाइश पर.
कमलजीत सिंह बेहद सीधे और सच्चे इंसान थे. जैसे वह खुद थे, बच्चों से भी वैसी ही उम्मीद करते थे कि वह भी उसी तरह बनें. लेकिन बिगड़े परिपाटी और टेलीविजन सभ्यता में यह संभव नहीं था.
शमिंदर और जसपिंदर भी इसी आधुनिक युग में जन्मे और पलेबढ़े थे तो संस्कार भी टेलीविजन वाले ही ग्रहण किए. दोनों बच्चे कमलजीत सिंह के विश्वास पर खरे नहीं उतरे, इस का मलाल उन्हें था.
जसपिंदर कौर थी तो दुबलीपतली, लेकिन तीखे नाकनक्श की थी. काले घने लंबे बाल कमर तक, सुराही की तरह पतली गरदन, गोलमटोल गोरा चेहरा, सिंदूरी सुर्ख गाल, गुलाब की नाजुक पंखुडि़यों के समान सुर्ख होंठ, झील सी गहरी कालीकाली आंखें. बलखा कर जब वह चलती थी तो दीवानों के मुंह से आह निकलती थी.
उन दीवानों में एक नाम परमप्रीत सिंह उर्फ परम का भी लिखा था, जो जसपिंदर कौर के दिल पर अपना नाम लिखने के लिए बेताब था. परम के प्रेम को जसपिंदर ने अपने दिल के कोरे पन्ने पर लिख लिया था. खैर, उन की उम्र के साथसाथ उन का प्यार भी जवां होता जा रहा था.
इसी जिले के सुधार थानाक्षेत्र स्थित वासी के मूल निवासी परमप्रीत उर्फ परम का दूसरा भाई भवनप्रीत उर्फ भवना और एक बहन परमिंदर थी. भाईबहन में परम बीच का था. सब से बड़ा भवनप्रीत था और सब से छोटी परमिंदर. परमिंदर अपनी ससुराल में थी.
परमप्रीत के पिता हरपिंदर सिंह एक एनआरआई थे. वह फिलीपींस की राजधानी मनीला में पत्नी के साथ रहते थे. दोनों बेटों को उन्होंने यहीं पढ़ने और खेतीबाड़ी की देखरेख करने के लिए छोड़ दिया था.
परमप्रीत और भवनप्रीत में बड़ा भवना की हरपिंदर सिंह ने गृहस्थी बसा दी थी. सिर्फ उन की जिम्मेदारी में परमप्रीत ही रह गया था. उस की भी शादी के लिए उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों के बीच में बात छेड़ दी थी कि कोई अच्छी खानदानी लड़की हो तो बताना. उस के साथ मंझले बेटे परमप्रीत की शादी कर देंगे. उन्होंने नातेरिश्तेदारों के बीच बात छेड़ तो दी थी लेकिन कोई बात बनी नहीं.
इधर परमप्रीत की मोहब्बत उसी के पिता के रिश्तेदार कमलजीत सिंह की सुंदर बेटी जसपिंदर कौर के साथ जवां हो रही थी. परम और जसपिंदर एकदूसरे से प्रेम करते थे. इस की जानकारी जसपिंदर के घर वालों को थी. उन्होंने बेटी पर परम से दूरी बनाए रखने के लिए उस पर कड़े पहरे लगाए लेकिन वह उन की हर बंदिशों को तोड़ कर अपने प्यार परम से मिलती ही थी.