पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ के सेक्टर-45 स्थित बुड़ैल मोहल्ले में एक किराए का कमरा ले कर 45 वर्षीय चंपा देवी 2बच्चों (बड़ी बेटी ममता और बेटा छोटू) के साथ रहती थी. उस का पति किशन किसी कारणवश उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में स्थित अलाहपुर गांव में अकेला रहता था. वह गांव में खेतीकिसानी करता था. यहां रह कर चंपा दोनों बच्चों की परवरिश के लिए घरों में चौकाबरतन करती थी.
चंपा देवी का सपना था कि दोनों बच्चों पढ़ालिखा कर उन्हें इतना काबिल बना दे कि वो किसी दूसरे के सामने हाथ फैलाने के बजाय अपने पैरों पर मजबूती से खड़े हो सकें, चाहे इस के लिए उसे दिनरात हाड़तोड़ मेहनत ही क्यों न करनी पड़े. वह बच्चों के भविष्य से कोई समझौता नहीं कर सकती थी. मां के त्याग और तपस्या को देख कर ममता और छोटू के भी मन में ऐसी भावना जाग रही थी. लेकिन एक दिन चंपा देवी को बच्चों की वजह से अपने सपनों पर पानी फिरता नजर आया.
उस रोज 19 नवंबर, 2022 की तारीख थी और दोपहर के ठीक 3 बज रहे थे. छोटू रोज इसी टाइम स्कूल से घर लौटता था और उस दिन भी जब स्कूल से छुट्टी के बाद घर वापस लौटा तो घर का दरवाजा खुला देख कर उसे बड़ा अजीब लगा. कुछ सोचता हुआ वह अपने कमरे में दाखिल हुआ तो बैड पर बड़ी बहन ममता को अस्तव्यस्त हालत में लेटे हुए देख कर वह परेशान हो गया था.
उस ने बहन को जोरजोर झकझोर कर उठाने की कोशिश की, लेकिन ममता जरा भी टस से मस नहीं हुई. छोटू हैरान हो गया. स्कूल का बैग एक ओर रखते हुए वह बैड पर बैठ गया और ‘दीदी, उठो ना. दीदी उठो. जोरों की भूख लगी है. मुझे कुछ खाने को दो न.’ कहते हुए ममता को फिर से झकझोर कर उठाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन ममता थी कि उठने का नाम ही नहीं ले रही थी.