पिछले 15-20 सालों में नोएडा और ग्रेटर नोएडा का बहुत तेजी से विकास हुआ है. इस के आसपास के गांव भी विकास की दौड़ में शामिल हैं. ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का गांव बिसरख 20 साल पहले भले ही गांव था, लेकिन अब छोटेमोटे शहरों से बेहतर है. यहां पर गौर सिटी-2 की टाउनशिप बन गई है.
प्रशांत कुमार गौर सिटी-2 के गैलेक्सी नार्थ एवेन्यू-2 के फ्लैट नंबर ए-1468 में रहता था. उस के फ्लैट से 2 फ्लोर नीचे उस के दोस्त रूपेंद्र सिंह चंदेल का फ्लैट था. प्रशांत और रूपेंद्र के बीच गहरी दोस्ती थी.
28 अप्रैल, 2019 को रविवार की छुट्टी थी. उस दिन शाम करीब साढ़े 6 बजे प्रशांत घर पर ही था और पत्नी व बच्चों के साथ मौल घूमने जाने की तैयारी में लगा था. उसी वक्त उस के मोबाइल पर रूपेंद्र के बहनोई ओमवीर का फोन आया.
ओमवीर इसी सोसायटी के फ्लैट नंबर-244 में रहता था. ओमवीर ने फोन पर प्रशांत को जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चिंतित हो उठा. ओमवीर ने बताया था कि रूपेंद्र दोपहर में अपनी सफेद रंग की फोर्ड फिगो कार ले कर घर से गया था. उसे कुछ पैसों की जरूरत थी. वह घर से पत्नी के गहने ले कर गाजियाबाद के पी.सी. ज्वैलर्स के पास गिरवी रखने के लिए निकला था. लेकिन साढ़े 3 घंटे गुजर जाने के बावजूद अभी तक वह घर नहीं लौटा है.
ओमवीर ने यह भी बताया कि रूपेंद्र की पत्नी अमृता और वह खुद कई बार रूपेंद्र से फोन पर संपर्क करने की कोशिश कर चुके हैं, मगर दूसरी ओर से काल रिसीव नहीं की जा रही.
यह ऐसी बात थी जिसे सुन कर किसी को भी चिंता हो सकती थी. रूपेंद्र तो वैसे भी प्रशांत का बहुत अच्छा दोस्त था. लिहाजा वह फटाफट जीने की सीढि़यां उतर कर रूपेंद्र के फ्लैट पर पहुंच गया. ओमवीर वहां पहले से ही मौजूद था. रूपेंद्र की पत्नी अमृता के चेहरे पर उड़ रही हवाइयां साफ बता रही थीं कि वह बेहद परेशान है. प्रशांत ने जब अमृता से रूपेंद्र के बारे में पूछा तो उस ने भी वही सब बताया जो कुछ देर पहले ओमवीर ने फोन पर उसे बताया था.
वह घबराते हुए बोली, ‘‘भैया, वो सोने के जेवर ले कर गए हैं. इतनी देर हो गई, न तो वापस आए हैं और न ही फोन रिसीव कर रहे हैं. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है. आप को तो पता है कि यह इलाका कितना खराब है. यहां आए दिन लूटपाट और न जाने क्याक्या होता रहता है. कहीं उन के साथ कुछ ऐसावैसा तो नहीं हो गया? मैं चाहती हूं कि एक बार आप लोग सोसायटी के बाहर जा कर उन्हें आसपास के इलाके में देख लें.’’
कहतेकहते अमृता की आंखों में आंसू छलक आए.
‘‘घबराइए मत भाभीजी, कुछ नहीं होगा रूपेंद्र को. हम लोग अभी पुलिस को खबर कर देते हैं.’’ प्रशांत ने कहा.
‘‘नहीं प्रशांत भाई, अभी हमें पुलिस को इनफौर्म नहीं करना है. मैं चाहता हूं कि पहले हम कुछ लोग मिल कर रूपेंद्र को तलाश कर लें, अगर वह नहीं मिलता तो फिर पुलिस को सूचना दे देंगे.’’ ओमवीर ने बीच में बात काट कर अपनी राय दी.
‘‘हां, यह भी ठीक है. पहले हम लोग तलाश कर लेते हैं.’’ प्रशांत बोला.
पुलिस में जाने से पहले प्रशांत की खोजबीन
इस के बाद प्रशांत और ओमवीर सोसायटी के दफ्तर में पहुंचे. वहां से ओमवीर ने सोसायटी के गार्ड और औपरेटर का काम करने वाले सुमित को अपने साथ ले लिया. प्रशांत ने सोसायटी में रहने वाले अपने दोस्तों संजीव और रोबिन को भी साथ ले लिया.
इस के बाद वे सभी कार ले कर आसपास के इलाके में रूपेंद्र को तलाश करने के लिए निकल पड़े. एक घंटे में उन लोगों ने आसपास के 6-7 किलोमीटर का रास्ता देख लिया लेकिन न तो उन्हें कहीं रूपेंद्र की कार दिखाई दी और न ही आसपास के इलाके में कहीं कोई दुर्घटना होने की जानकारी मिली.
सभी लोग आगे की काररवाई पर विचार करने के लिए वापस सोसायटी की तरफ लौटने लगे. तब तक रात के 10 बज चुके थे. गौर सिटी से कुछ दूर ब्रह्मा मंदिर है. जैसे ही वे लोग कार से मंदिर के पास से गुजरे कि तभी सुमित ने चिल्ला कर कहा, ‘‘सर, कार रोको… कार रोको.’’
‘‘क्या हुआ भाई, कुछ हो गया क्या?’’ कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे प्रशांत ने कार की गति धीमी करते हुए सुमित से पूछा.
सुमित ने मंदिर के पास सर्विस रोड की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘सर, वो देखो वहां एक सफेद रंग की कार खड़ी है. मुझे लगता है, वह रूपेंद्र सर की ही है.’’
सभी ने चौंकते हुए सर्विस रोड की तरफ देखा तो वहां वाकई एक सफेद रंग की कार खड़ी नजर आई. प्रशांत ने फौरन अपनी कार आगे बढ़ा दी. कुछ दूर आगे जा कर यू टर्न ले कर वह कार को सर्विस रोड पर वहां ले गया, जहां सफेद रंग की कार खड़ी थी.
पास पहुंचते ही प्रशांत ने देखा कि वाकई वह फोर्ड फिगो कार थी और उस का नंबर यूपी95जे 9096 था, जो रूपेंद्र की कार का था. कार का नंबर पढ़ते ही प्रशांत और ओमवीर साथियों के साथ जल्दी से नीचे उतरे और उन्होंने गाड़ी के शीशे से भीतर झांका तो उन के हलक से चीख निकल गई. क्योंकि कार के भीतर ड्राइविंग सीट पर खून से लथपथ रूपेंद्र का शव पड़ा था.
प्रशांत व ओमवीर ने दरवाजा खोल कर रूपेंद्र को हिलाडुला कर देखा तो ओमवीर की मौत हो चुकी थी.
‘‘ओह माई गौड! मुझे जिस बात का शक था, वही हुआ. लगता है बदमाशों ने लूटपाट कर के रूपेंद्र को मार दिया है.’’ कहते हुए ओमवीर ने अपना माथा पकड़ लिया.
जिस की तलाश में प्रशांत और उस के साथी निकले थे, वह तलाश पूरी हो चुकी थी. रूपेंद्र जिंदा तो नहीं मिला अलबत्ता उस की लाश जरूर मिल गई थी. उस की मौत कैसे हुई? क्या हादसा हुआ? यह पता लगाना पुलिस का काम था.
लिहाजा करीब साढ़े 10 बजे प्रशांत ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी. कुछ ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. ओमवीर ने भी तब तक अपनी पत्नी और रूपेंद्र की पत्नी को इस बारे में खबर कर दी थी. गौर सिटी के कुछ दूसरे लोग भी रूपेंद्र की लाश मिलने की सूचना पा कर वहां पहुंच गए.
पीसीआर गाड़ी से आए पुलिसकर्मियों ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद यह खबर स्थानीय बिसरख थाने को दे दी. बिसरख थाने के एसएचओ मनोज पाठक पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल की जांचपड़ताल के बाद सीओ पीयूष कुमार सिंह, एसपी (देहात) विनीत जायसवाल और फोरैंसिक टीम को खबर कर दी. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम और पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.
जांचपड़ताल में पुलिस को घटनास्थल पर ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से पता चल पाता कि रूपेंद्र की हत्या लूटपाट के लिए या लूटपाट का विरोध करने के कारण हुई है. सब से बड़ी बात यह थी कि उस की हत्या उस के निवास से करीब ढाई किलोमीटर की दूरी पर हुई थी.
रूपेंद्र की पत्नी अमृता भी अपने 6 साल के बेटे आयुष्मान के साथ वहां पहुंच गई थी. पति की मौत के बाद एक पत्नी का दुख और सदमा उस पर क्या असर करता है, अमृता का विलाप देख कर समझा जा सकता था. ओमवीर की पत्नी शिखा जो रिश्ते में अमृता की ननद थी, उस ने कुछ दूसरी महिलाओं व लोगों के साथ मिल कर रो रही अमृता को सांत्वना दी.
फोरैंसिक टीम ने मृतक की कार के भीतर से फिंगरप्रिंट व दूसरी तरह के नमूने एकत्र कर लिए थे. मौके की काररवाई निपटाने के बाद इंसपेक्टर मनोज पाठक ने रूपेंद्र का शव रात में ही पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही उन्होंने मृतक के परिजनों से इस मामले की एफआईआर दर्ज कराने के लिए लिखित शिकायत देने के लिए अगली सुबह थाना बिसरख आने के लिए कहा.
थाने में रिपोर्ट लिखाने से भी किया मना
लेकिन हैरत की बात यह कि अगली सुबह रूपेंद्र की पत्नी या उस के बहनोई ओमवीर में से कोई भी थाने नहीं पहुंचा. हां, रूपेंद्र का दोस्त प्रशांत जरूर अपने दोस्तों को ले कर बिसरख थाने पहुंच गया था. इंसपेक्टर पाठक ने जब उस से पूछा कि रूपेंद्र की पत्नी या परिवार के लोगों में से कोई एफआईआर कराने क्यों नहीं आया तो प्रशांत ने बताया कि उस ने रूपेंद्र के परिवार वालों से थाने चलने के लिए कहा था. लेकिन उन्होंने कहा कि रिपोर्ट लिखाने से क्या होगा, इस से रूपेंद्र जिंदा तो हो नहीं जाएंगे.
परिजनों का जवाब बेहद चौंकाने वाला था, लेकिन पुलिस को जांच आगे बढ़ाने के लिए महज शिकायत की जरूरत होती है. घटना से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा कोई भी शख्स शिकायत कर सकता है.
लिहाजा इंसपेक्टर पाठक ने प्रशांत से ही लिखित में शिकायत ले कर 29 अप्रैल, 2019 को भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने उसी दिन रूपेंद्र के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के घर वालों को सौंप दिया. तब तक रूपेंद्र के पिता और भाई के अलावा उस के दूसरे रिश्तेदार तथा अमृता के परिजन भी आ चुके थे.