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करीब 20 वर्षीय बिट्टू अहमदपुर (घाघरा) के सुरेश महतो के परिवार में जन्मा उन का सब से बड़ा बेटा था. सुरेश के परिवार में कुल 6 सदस्य थे. पतिपत्नी और 4 बच्चे. उन में बिट्टू सब से बड़ा था और उस से 3 छोटे बच्चे थे जिन में एक बेटी भी थी.

बिट्टू जब भी स्कूल जाता था तो वह अकसर सादिकपुर के टोला रामपुर के रास्ते से हो कर ही जाताआता था. लाली भी उसी रास्ते से हो कर स्कूल जातीआती थी. दरअसल, वह भी उसी स्कूल में पढ़ती थी, जिस स्कूल में बिट्टू पढ़ता था. यही नहीं बिट्टू के चाचा उमेश महतो का मंझला बेटा विकेश भी उसी स्कूल में 6ठी क्लास में पढ़ता था.

लाली और बिट्टू करते थे बेपनाह प्यार

उम्र के जिस मोड़ पर बिट्टू और लाली खड़े थे, उस उम्र में पांव का बहक जाना कोई बड़ी बात नहीं थी. यही वह उम्र होती है, जिस ने खुद को संभाल लिया, उस की जिंदगी संवर गई. जिन के पांव फिसल गए, उन का जीवन दलदल में फंस गया.

जातेआते रास्ते में बिट्टू और लाली एकदूसरे को दिल दे बैठे थे. पहल बिट्टू की तरफ से हुई थी और हरी झंडी लाली ने दिखाई थी. मतलब दोनों तरफ इश्क की आग बराबर लगी हुई थी. मौका देख कर दोनों ने अपनी मोहब्बत का इकरार एकदूसरे से कर दिया था.

जिस दिन से लाली बहार बन कर बिट्टू के जीवन में आई थी, उस की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था. वह इतना खुश रहता था कि उस की खुशियां संभाले नहीं संभल रही थीं.

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