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नानी के निधन के बाद बाबू सिंह अपनी पत्नी बिटान देवी व दोनों बेटियों रूबी व काजल के साथ अहिरवां गांव में रहने लगा और नानी की वसीयत में मिली 10 बीघा जमीन पर खेती कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगा. समय बीतता रहा और समय के साथ उस की बेटियों की उम्र भी बढ़ती गई.

अहिरवां गांव पहले शहर की चकाचौंध से दूर था. लेकिन जैसेजैसे कानपुर शहर का विकास होता गया, वैसेवैसे गांव की अहमियत बढ़ती गई. अहिरवां गांव की जमीन भी अब कीमती हो गई. जो जमीन लाखों की थी, वह करोड़ों में तब्दील हो चुकी थी.

बाबू सिंह का एक रिश्तेदार था नरेंद्र सिंह यादव. वह अहिरवां गांव में ही रहता था. वह दिखावे के तौर पर तो बाबू सिंह का सगा था, लेकिन पीठ पीछे उस से जलता था. यह जलन उसे बाबू सिंह को नानी से वसीयत में मिली जमीन को ले कर थी. धीरेधीरे उस ने वसीयत वाली जमीन पर आंखें जमानी शुरू कर दीं. उस ने बाबू सिंह को शराब पीने का भी आदी बना दिया. वर्ष 2018 में नरेंद्र ने फरजी वसीयत बनवा कर अपनी दबंगई के बल पर बाबू सिंह की जमीन पर कब्जा जमा लिया.

बाबू सिंह यादव शाम को घर वापस आया तो उस के माथे पर चिंता की लकीरें थीं. वह कमरे में पड़े तख्त पर जा कर बैठ गया और दोनों हाथ माथे पर रख कर कुछ सोचने लगा. उस वक्त उस की पत्नी बिटान देवी रसोई में खाना बना रही थी. जबकि दोनों बेटियां रूबी और काजल कमरे में पढ़ाई कर रही थीं. पति को आया देख कर बिटान ने चाय बनाई, फिर आवाज लगाई, ‘‘बेटा काजल, पापा को चाय दे दो.’’

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