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अदालत का आदेश भी नहीं माना पुलिस ने

28 अक्तूबर, 2016 को अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि मामला काफी संगीन है, इस की जांच डीसीपी रैंक के अधिकारी से करवाई जाए. अदालत की पहल पर मामला डीसीपी पोखरे को सौंप दिया गया. डीसीपी पोखरे ने एसीपी राजकुमार चाफेकर के साथ मामले की जांच तो की, लेकिन उस पर कोई काररवाई नहीं हुई और देखतेदेखते 2 महीने गुजर गए. मामला ज्यों का त्यों रहा.

पहली जनवरी, 2017 को अदालत ने पुलिस प्रशासन को फटकार लगाते हुए मामले की जांच के लिए एसीपी प्रकाश निलेवाड़ की देखरेख में एक स्पैशल टीम गठित करने को कहा और पूछा कि मामले से संबंधित औडियो वीडियो का रिकौर्ड होने के बाद भी काररवाई क्यों नहीं की गई.

अदालत के आदेश पर एसीपी प्रकाश निलेवाड़ ने मामले को गंभीरता से लिया और जांच की जिम्मेदारी पीआई संगीता अलफांसो को सौंप दी. पीआई संगीता अलफांसो ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया. उन्होंने एक महीने की जांच के बाद 31 जनवरी, 2017 को अश्विनी बेंद्रे के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

इस के पहले कि पीआई संगीता अलफांसो अश्विनी बेंद्रे के अपहर्त्ताओं पर कोई काररवाई करतीं, पीआई अभय कुरुंदकर को अपनी गिरफ्तारी का अहसास हो गया और फरवरी, 2017 में वह अदालत चला गया, जिस की वजह से मामले में रुकावट आ गई. जब तक अदालत का कोई आदेश आता, तब तक पीआई संगीता अलफांसो का ट्रांसफर हो गया. उन के जाने के बाद इस मामले की जांच 9 महीने के लिए फिर अटक गई. अभय कुरुंदकर ने अदालत में यह अरजी लगाई कि उस के ऊपर लगाए गए सारे आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं. उसे साजिश के तहत फंसाया जा रहा है.

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