भारत में 70 का दशक बेहद उठापटक वाला था. राजनीति करवट बदल रही थी और गरीबी अभिशाप सा बन चुकी थी. देश की औद्योगिक राजधानी मुंबई में इफरात से गैंगस्टर्स पैदा होने और पनपने लगे थे. सट्टा गलीमोहल्लों में सरेआम चल रहा था और गैंगवार से शहर हर वक्त दहशत की गिरफ्त में रहता था.
छोटेबड़े मुजरिमों की भीड़ में शोभराज भी शामिल हो गया. शुरुआत में उस ने कोई बड़ा जोखिम नहीं उठाया और छोटीमोटी स्मगलिंग और चोरियां करता रहा, जिस का एक्सपर्ट वह पेरिस से ही था.
इसी दौरान उस ने जुएसट्टे में भी हाथ और किस्मत आजमाई. इसी दरम्यान उस के कई दोस्त बने, लेकिन वे स्थाई नहीं रहे. क्योंकि शोभराज सहज किसी पर भरोसा नहीं करता था.
इस रसिया पर मरती थीं लड़कियां
बहुत सी खूबियों के मालिक शोभराज की एक खूबी यह भी थी कि उस ने कभी एक जगह टिक कर अपराध नहीं किए. मुंबई में जब उसे हमपेशा लोगों और पुलिस से खतरा महसूस होने लगा तो वह काबुल भाग गया लेकिन टिका वहां भी नहीं.
1975 तक शोभराज फ्रांस, वियतनाम, अफगानिस्तान, ग्रीस, ईरान और पाकिस्तान के फेरे लगाता रहा. कार चोरी के अलावा ड्रग स्मगलिंग उस ने जम कर की और खूब पैसा कमाया और उसे खर्च भी शाही तरीके से किया.
औरतों के रसिया इस अपराधी पर लड़कियां मरती थीं. वह अपनी पर्सनैलिटी और वाकपटुता के दम पर किसी को भी खड़ेखड़े ही खरीद लेता था.
चैंटल के जाने के बाद उस की जिंदगी में मेरी आंद्रे लेक्लार्क नाम की सैक्सी और बेइंतिहा खूबसूरत लड़की आई. मेरी कनाडा की थी और पेशे से नर्स हुआ करती थी. उस के जरिए ही दिल्ली के रहने वाले अजय चौधरी नाम के शख्स से शोभराज की मुलाकात हुई. स्वभाव से मेरी और अजय दोनों ही अपराधी मानसिकता के थे, इसलिए तीनों गिरोह बना कर वारदातों को अंजाम देने लगे.