पहला प्यार और पहला अपराध
जिंदगी का सफर और अपनी मंजिल खुद तय करने की चुनौती से जूझता शोभराज, जैसा कि ऐसे मामलों में डर रहता है, अपराध की तरफ चल पड़ा और इतनी तेजी से चला कि लोग ताकते रह गए. क्योंकि शोभराज ने कभी मुड़ कर अपने नन्हे कदमों के निशान भी नहीं देखे.
अब दुनिया खुली किताब की शक्ल में शोभराज की आंखों के सामने थी, जिसे अपने मुताबिक पढ़ने और समझने की आजादी उसे थी. एक आवारा किशोर कैसे दुनिया को पढ़ता और समझता है, यह जल्द ही उस के पहले अपराध ने जता दिया, जो बहुत मामूली था.
कोई नौकरी या मेहनत वाला काम उस ने नहीं चुना, बल्कि युवा जीवन या करिअर कुछ भी कह लें, की शुरुआत साल 1963 में 19 साल की उम्र में पेरिस के एक घर में चोरी कर की. इस जुर्म में पहली दफा उसे जेल हुई और कुछ महीनों की सजा काटने के बाद वह रिहा भी हो गया.
इन कुछ महीनों ने ही उस की आने वाली जिंदगी की कहानी लिख दी. जेल में उस का वास्ता कई पेशेवर अपराधियों से पड़ा, जिन से बजाय सबक लेने के, शोभराज ने अपराध की दुनिया का सिलेबस पढ़ते हुए नएनए गुर सीखे.
यह वक्त हिंदी फिल्मों के उन दृश्यों सरीखा था, जिन में जेल में सजा काटने आए कम उम्र अपराधी को लंबी सजा काट रहे खतरनाक और खूंखार मुजरिम ट्रेनिंग देते यह भी बताते और सिखाते हैं कि अपराध करने के बाद कानून और पुलिस से कैसे बचा जाता है. जेल से इस शौर्ट टर्म कोर्स को पूरा करने के बाद शोभराज जब बाहर आया तो न केवल उस की दुनिया बदल गई थी बल्कि वह भी बहुत कुछ बदल गया था.