पुलिस ने प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को उसी समय हिरासत में ले लिया. रामसूरत लाख सफाई देता रहा कि उस का इस मामले से कोई संबंध नहीं है, पर पुलिस ने उस की एक न सुनी. हां, पुलिस ने उसे इतना भरोसा जरूर दिया कि अगर वह निर्दोष पाया गया तो उसे छोड़ दिया जाएगा. यह बात 27 नवंबर, 2015 सुबह 3 बजे की है.
एसीपी जसबीर ङ्क्षसह ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला को गिरफ्तार करने व कैश बरामद होने की जानकारी डीसीपी व अन्य अधिकारियों को दी तो डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा, जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया सहित कई अन्य अधिकारी भी ओखला के उस गोदाम पर पहुंच गए. सभी संदूकों को जब्त करने के बाद पुलिस प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को थाने ले आई.
पुलिस यही अनुमान लगा रही थी कि इतनी बड़ी रकम को लूटने में जरूर किसी बड़े गैंग का हाथ रहा होगा, लेकिन थाने में प्रदीप शुक्ला से जब पूछताछ की गई तो पता चला कि इस लूट में उस के अलावा कोई दूसरा शामिल नहीं था और यह लूट भी कोई पहले से बनाई प्लाङ्क्षनग के तहत नहीं की गई थी, बल्कि अचानक यह सब किया गया था.
प्रदीप शुक्ला ने करीब 3 महीने पहले ही सिक्योरिटी एजेंसी एसआईएस में ड्राइवर की नौकरी जौइन की थी. उस की ड्यूटी विकासपुरी ब्रांच से कैश ले कर कंपनी के ओखला स्थित हैडऔफिस में पहुंचाने की थी. कभीकभी उसे एटीएम मशीनों में पैसे रखने वाली टीम के साथ भी भेज दिया जाता था.
प्रदीप ने बताया कि उस से जितना काम लिया जाता था, उस के मुताबिक उसे सैलरी नहीं मिलती थी. मजबूरी में उसे कम पैसों में वहां नौकरी करनी पड़ रही थी. इसीलिए कभीकभी उस के दिमाग में विचार आता था कि जो पैसे वह वैन में ले कर जाता है, अगर उसे मिल जाएं तो उस की पूरी ङ्क्षजदगी ठाठ से कटेगी. लेकिन यह उस की केवल सोच थी, उस ने वे पैसे ले कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा. बहरहाल कम वेतन मिलने की वजह से वह मानसिक तनाव में जरूर रहता था.