छठी क्लास में पढ़ने वाले महादेवन का स्कूल घर से कई किलोमीटर दूर था. वह पैदल ही स्कूल आताजाता था, जबकि उस के साथ पढ़ने वले कई छात्र साइकिल से आतेजाते थे. उस का मन करता था कि उस के पास भी साइकिल हो. उस ने अपने पिता विश्वनाथन आचारी से कई बार साइकिल दिलाने का अनुरोध किया, लेकिन वह अभी उसे साइकिल दिलाना नहीं चाहते थे.

इस की वजह यह थी कि महादेवन की उम्र अभी केवल 13 साल थी. 3 बेटियों के बीच वह उन का अकेला बेटा था, इसलिए वह कोई रिस्क नहीं उठाना चाहते थे. वह चाहते थे कि 2-3 साल में बेटा जब थोड़ा बड़ा और समझदार हो जाएगा तो उसे साइकिल खरीदवा देंगे.

मगर महादेवन को पिता की बात अच्छी नहीं लगी. उस ने साइकिल खरीदवाने की जिद पकड़ ली. वैसे विश्वनाथन आचारी के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन की केरल के चंगनाशेरी के निकट मडुमूला में उदया स्टोर्स के नाम से एक दुकान थी. दुकान से उन्हें अच्छीखासी आमदनी हो रही थी और परिवार भी उन का कोई ज्यादा बड़ा नहीं था. परिवार में पत्नी विजयलक्ष्मी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा महादेवन था.

चूंकि वह एकलौता बेटा था, इसलिए घर के सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे. सभी का लाडला होने की वजह से उस की हर मांग पूरी की जाती थी. विश्वनाथन ने उस के जन्मदिन पर एक तोला सोने की चेन गिफ्ट की थी, जिसे वह हर समय पहने रहता था. वह उसे साइकिल खरीदवाने के पक्ष में तो थे, लेकिन अभी उस की उम्र कम होने की वजह से फिलहाल मना कर रहे थे.

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