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योगेन को दोबारा होश आया तो उस का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह नींद से जागा हो. किसी की कोमल अंगुलियों ने उस के सिर को छुआ तो उस ने आंखें खोल दीं. उस की आंखों के सामने उसी औरत का चेहरा था, जो कौरीडोर में उस से डर रही थी. लेकिन अब डर की जगह उस के चेहरे पर मुसकराहट थी.

उस ने हमदर्दी से पूछा, “अब तुम कैसा फील कर रहे हो?”

“ठीक हूं.” योगेन ने मुश्किल से जवाब दिया.

“मुझे पहचाना मैं लिलि... लिलि पराशर. मैं वही हूं, जो तुम्हारे आगेआगे बिजनैस सेंटर में आई थी. तुम मेरे पीछे थे.” लिलि ने बेहद नरमी से कहा.

“लेकिन मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था.”

“तुम्हें याद है, मैं डा. परीचा के औफिस में गई थी?” लिलि ने पूछा.

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

“तुम से मेरी एक रिक्वैस्ट है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो मुझ पर एक बड़ा एहसान करोगे.” लिलि ने कहा.

“इस की वजह?” योगेन ने पूछा.

“दरअसल, मेरे पति अतुल पराशर बहुत ही शक्की स्वभाव के हैं. मैं और डा. परीचा बहुत अच्छे दोस्त हैं. शादी के पहले से हम एकदूसरे को जानते हैं. अतुल उन से जलता है, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम यह बात भूल जाओ कि मैं डाक्टर के औफिस में गई थी. इस समय तुम मेरे पति के ही औफिस में हो.”

योगेन चुपचाप उसे देखता रहा. लिलि ने आगे कहा, “मेरी बात मानोगे न? बाहर पुलिस आ चुकी है. कहीं ऐसा न हो कि तुम कह दो कि मैं डाक्टर के पास गई थी.”

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