गहरे रंग की तीखे नयननक्श वाली रेशमा एक छोटे से कस्बे में अपने बाप अल्लारखा और मां ताहिरा के साथ रहती थी. उस का बाप कपड़ों की सिलाई का काम करता था. उस की आमदनी ठीकठाक थी, इसलिए उस की गुजरबसर आराम से हो रही थी.
रेशमा एकलौती बेटी थी, इसलिए मांबाप उस के खूब नाजनखरे उठा रहे थे. बाप खुद सिलाई का काम करता था, इसलिए वह नएनए फैशन के कपड़े पहनती थी.
उस में वैसे तो कोई खास बात नहीं थी, सिर्फ एक गुण यह था कि उस की आवाज ऐसी सुरीली और मीठी थी कि दिल को छू लेती थी. अल्लारखा के पास एक ट्रांजिस्टर था, जिसे वह दिन भर दुकान पर साथ रखता था और शाम को घर आते समय लेते आता था.
मौका मिलते ही रेशमा उस पर गाने लगा कर साथसाथ गाती. इस से धीरेधीरे उसे गानों के उतारचढ़ाव और सुरताल समझ में आने लगे थे. उसे ढेरों गाने याद भी हो गए थे. कभी स्कूल में कोई समारोह होता तो उसे गाने का मौका भी मिलता, जिस से उसे तारीफ तो मिलती ही, इनाम भी मिलता. मां भी उस की तारीफ और इनाम से खुश होती. रेशमा की सब से प्यारी सहेली थी मैमूना. उस के भाई की सगाई थी, जिस में उस ने रेशमा को भी बुलाया था.
करीबी सहेली ने बुलाया था, इसलिए रेशमा खूब सजधज कर सगाई में गई थी. वहां गाने के प्रोग्राम में जब रेशमा ने गाया तो उस की आवाज का जादू ऐसा चला कि लोग कामधाम छोड़ कर उस का गाना सुनने वहां आ गए.