माला भले ही 30 की उम्र पार कर चुकी थी, लेकिन अपने रंगरूप और बनसंवर कर रहने की वजह से वह 24-25 साल  से अधिक की नहीं लगती थी. 1 बच्चे की मां बनने के बावजूद उस की सुंदरता और स्वाभाविक चंचलता में कोई कमी नहीं आई थी. वह जिस की तरफ देख कर मुसकरा देती थी, वह उस का दीवाना हो जाता था.

सरोज उपेंद्र कामथी पहली ही नजर में माला का दीवाना हो गया था. वह काफी दिनों बाद मुंबई से अपने गांव आया था. एक दिन जब वह गांव के लोगों और अपने दोस्तों से मिलने के लिए घर से निकला तो अचानक उस की नजर अपने दोस्त राजेश के दरवाजे पर खड़ी माला से लड़ गई. उस ने माला को देखा तो देखता ही रह गया. राजेश उस वक्त घर में नहीं था.

सरोज कामथी औरतों के मामले में काफी अनुभवी था. वह माला के हावभाव देख कर काफी कुछ समझ गया. लेकिन वह चूंकि उस के दोस्त की पत्नी थी और गांव का मामला था, इसलिए वह बिना उस से बात किए अपने घर वापस लौट आया.

उस रात सरोज कामथी रात को सो नहीं पाया. रहरह कर उस की आंखों में नींद की जगह माला का मुसकराता चेहरा घूमता रहा. रात किसी तरह कट गई तो सुबह को वह मौका देख कर फिर राजेश के घर पहुंच गया. माला उस वक्त घर में अकेली थी. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो दरवाजा माला ने ही खोला.

सरोज कामथी को आया देख वह चौंकी. वह कुछ कहती, इस के पहले सरोज ने अपना परिचय दे कर कहा, ‘‘मेरा नाम सरोज है, मैं इसी गांव का रहने वाला हूं. राजेश मेरा दोस्त है. मुंबई में रहने की वजह से कभीकभी गांव आना होता है. गांव वालों से मिलनाजुलना भी कम ही होता है.’’

माला ने सरोज कामथी को अंदर आने को कहा तो वह शरीफ इंसान की तरह अंदर आ गया. माला ने उस से उस के कामधंधे के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि मुंबई में उस की खानेपीने के सामान की दुकान है. जिस से उसे अच्छीभली कमाई हो जाती है.

‘‘मुंबई का बड़ा नाम सुना है. कैसा शहर है मुंबई?’’ माला ने पूछा तो सरोज बोला, ‘‘बहुत अच्छा और सुंदर शहर है. गगनचुंबी इमारतें, रानी बाग, मछली घर, नेशनल पार्क, समुद्र का किनारा बहुत कुछ है मुंबई में देखने के लिए. जुहू चौपाटी पर तो अच्छाभला मेला लगा रहता है, सुबहशाम.’’

सरोज को लंबाचौड़ा बखान करता देख माला बोली, ‘‘ये सब मुझे बताने से क्या फायदा? मेरे ऐसे नसीब कहां कि मुंबई जैसा खूबसूरत शहर देखने का मौका मिले. बस बच्चों, पति और घरपरिवार में ही जिंदगी गुजरती जा रही है.’’

सरोज की बातों में मायूसी भरी चाहत थी. सरोज ने अच्छा मौका देख उस की भावनाओं को भड़काने के लिए कहा, ‘‘इतना मायूस मत होइए. भाभी, आप चाहें तो मैं आप को मुंबई घुमा सकता हूं. एकएक चीज दिखाऊंगा आप को.’’

‘‘सच.’’ माला ने चौंक कर मुसकराते हुए कहा. फिर दूसरे पल ही वह गंभीर हो गई.

‘‘कितना अच्छा सपना है, लेकिन पति और बच्चों का क्या करूंगी?’’

माला को भावनात्मक स्तर पर बहकते देख सरोज तरंग में आ गया. उसे कमजोर पड़ते देख बोला, ‘‘कुछ पाने के लिए कई तरह के समझौते करने पड़ते हैं. एक बार घर से निकल कर देखो तो पता चलेगा, दुनिया कितनी रंगीन है. मुंबई देख लिया तो सब भूल जाओगी. वैसे भी तुम्हारी जैसी खूबसूरती को शहर की शान होना चाहिए, यहां गांव में क्या रखा है?’’

माला सरोज की नजरों में चढ़ गई थी. उसे लग रहा था कि थोड़ा सा प्रयास किया जाए तो वह लाइन पर आ जाएगी. इसीलिए वह इसी कोशिश में लग गया.

उस दिन के बाद सरोज माला से मिलने रोज उस के घर जाने लगा. वह ऐसे समय पर जाता, जब उस का पति खेतों पर गया होता और बच्चे स्कूल. माला को वह भी अच्छा लगने लगा था और उस की बातें भी. नतीजतन जल्दी ही दोनों एकदूसरे से घुलमिल गए. दोनों के बीच पहले प्यारीप्यारी बातें, छेड़छाड़ और हंसीमजाक शुरू हुई. ऐसे में दोनों एकदूसरे के करीब आते गए. आखिर वही हुआ जो सरोज चाहता था. माला उस की बाहों में आ गई. इस के बाद यह सिलसिला सा बन गया.

माला सरोज कामथी के रंग में कुछ ऐसी रंगी कि घरपरिवार और बच्चों को छोड़ कर उस के साथ मुंबई जाने को तैयार हो गई. सरोज यही चाहता था. मौका मिलते ही वह उसे भगा कर अपने साथ मुंबई ले आया. सरोज उपेंद्र कामथी मूलत: बिहार के जिला दरभंगा के गांव विलौर का रहने वाला था. उस का परिवार खेतीबाड़ी करता था. उस का विवाह बचपन में ही रिंकू से हो गया था.

सरोज कामथी ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. इस के बावजूद वह महत्त्वाकांक्षी था और शहर जा कर खूब पैसा कमाना चाहता था. सरोज के गांव के कई लोग मुंबई में रहते थे. वह भी उन लोगों की बदौलत मुंबई चला आया. कुछ दिनों तक वह अपने गांव वालों के साथ रह कर अपने लिए नौकरी ढूंढ़ता रहा. जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो वह किसी दूसरे धंधे की तलाश में लग गया.

इसी तलाश में उसे एक अच्छी जगह मिल गई. वह अंधेरी की इनफिनिटी मौल के सामने इडली सांभर, मसाला डोसा और वड़ापाव की दुकान लगाने लगा. महानगर मुंबई में इडली सांभर, मसाला डोसा और वड़ापाव का धंधा बड़ी तेजी से पांव पसारता है. जल्दी ही सरोज कामथी का काम जम गया. उसे अच्छीभली कमाई होने लगी. जब काम चल निकला तो सरोज कामथी मुंबई के उपनगर जोगेश्वरी पश्चिम, न्यू लिंक रोड, न्यू शक्तिनगर की वर्मा चाल के रूम नंबर 5 में रहने लगा. बाद में वह अपनी पत्नी और बच्चों को भी मुंबई ले आया था.

सरोज कामथी अपने परिवार के साथ मुंबई में भले ही बस गया था. लेकिन कभीकभी वह अपने गांव जाता रहता था. अच्छी कदकाठी, बढि़या रहनसहन और हृष्टपुष्ट शरीर की वजह से गांव के लोग उस से प्रभावित होते थे. वह गांव जाता था तो सभी से मिलता था. मिलनेजुलने के इसी सिलसिले में उस की मुलाकात माला से हुई थी.

माला भी सरोज की तरह महत्त्वाकांक्षी औरत थी. सरोज के सामने उसे अपना सीधासादा पति राजेश बहुत बौना लगा था. इसीलिए वह सन  2010 में अपने पति और बेटे को छोड़ कर सरोज के साथ मुंबई चली आई थी.

सरोज कामथी जिस चाल में रहता था, उस ने उसी के पीछे चाल का ऊपर वाला कमरा ले कर माला के रहने का इंतजाम कर दिया. इस के बाद दोनों उसी कमरे में पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे. जब इस बात का पता सरोज कामथी की पत्नी रिंकू को चला तो उस ने पति से काफी लड़ाईझगड़ा किया. लेकिन सरोज कामथी और माला पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा. आखिरकार थकहार कर रिंकू को हालात से समझौता करना पड़ा.

माला को मुंबई लाने के बाद सरोज कामथी कुछ दिनों तक तो उसे मुंबई घुमाताफिराता रहा, उस के साथ मौजमस्ती करता रहा. माला भी अपने घर, गांव, पति और बच्चे भूल कर आसमान में उड़ने लगी. लेकिन जब उसे पता चला कि सरोज कामथी अपने बीवीबच्चों के साथ उसी चाल के आगे वाले हिस्से में रहता है, वह पर कटे पक्षी की तरह फड़फड़ा कर रह गई. लेकिन अब क्या हो सकता था. फलस्वरूप दोनों के बीच झगड़े होने लगे.

जब बात बढ़ी तो सरोज कामथी शराब पी कर माला के साथ मारपीट करने लगा. उस के बदले हुए व्यवहार को देख कर माला को अपना पति, गांव और बच्चे की याद आने लगी. लेकिन अब तक बहुत देर हो चुकी थी. वह अब अपने घर नहीं लौट सकती थी. सरोज कामथी उस के लिए एक मजबूरी बन गया था.

वह हर रात शराब के नशे में माला के पास आता. उस के साथ मौजमस्ती करता, वह कुछ कहती तो उस के साथ मारपीट करता. रोजरोज की इस मारपीट से माला तंग आ गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे.  जिस कमरे में माला रह रही थी, उस के ठीक सामने वाले कमरे में महेश और सुरेश रहते थे.

वे उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के गांव बकराबाद के रहने वाले थे और अंधेरी स्थित लक्ष्मी इंडस्ट्रियल एस्टेट की वाटर सप्लाई कंपनी बिसलरी में काम करते थे. ये दोनों शादीशुदा थे, लेकिन इन की पत्नियां अपने बच्चों के साथ गांव में रहती थीं. महेश और सुरेश माला के साथ होने वाली ज्यादती को देखा करते थे. उन्होंने माला से सहानुभूति जतानी शुरू कर दी. समय बे समय वह उस की आर्थिक मदद भी करते थे.

सरोज कामथी से परेशान माला को जब सुरेश और महेश की सहानुभूति मिली तो धीरेधीरे उस का झुकाव उन दोनों की तरफ हो गया. नतीजा यह हुआ कि जिस तरह माला सरोज कामथी के करीब आने के बाद अपनी सारी मर्यादाएं भूल गई थी. उसी तरह उस ने अपने और सुरेश व महेश के बीच की सारी दीवारें तोड़ दीं.

जल्दी ही उस के महेश और सुरेश के साथ संबंध बन गए. जब सरोज कामथी अपने काम पर चला जाता तो मौका देख सुरेश और महेश कभी अपने घर में तो कभी माला के घर में जा कर उस के साथ मौजमस्ती करते. इस तरह लगभग 2 सालों तक माला और सुरेश व महेश की रासलीला चोरीछिपे चलती रही. बाद में जब सुरेश और महेश के माला से आंतरिक संबंधों की जानकारी सरोज कामथी को मिली तो वह माला के प्रति और भी ज्यादा कू्रर हो गया.

सुरेश और महेश जबजब माला को सरोज कामथी के हाथों मार खाते देखते थे, तबतब उन का खून खौल जाता था. लेकिन वे चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे. क्योंकि माला उसी के साथ रहती थी और वही उस का खर्चा भी उठा रहा था. वे कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहते थे, जिस से माला मुसीबत में पड़ जाए. दूसरी ओर माला की सहनशक्ति जवाब दे चुकी थी. आखिरकार एक दिन उस ने सुरेश और महेश से कह दिया कि अब वह सरोज कामथी को और ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकती.

3 नवंबर, 2013 को दीपावली थी. उस रात सब के घरों में रोशनी बिखरी हुई थी. लेकिन माला के कमरे में अंधेरा था. उस दिन सुरेश जब माला के घर के अंदर गया तो वह बिस्तर पर पड़ी दर्द से कराह रही थी. सुरेश ने घर की लाइट जला कर उस से कारण पूछा तो माला की आंखों में आंसू भर आए. उस ने बताया कि सरोज ने उस के साथ मारपीट की है और अब यह सब उस की बरदाश्त के बाहर हो गया है.

माला की बात सुन कर सुरेश के तनबदन में आग सी लग गई. उस ने यह बात महेश को बताई तो उसे भी बहुत गुस्सा आया. उन दोनों ने आपस में बात कर के फैसला किया कि जैसे भी हो सरोज कामथी को अपने और माला के बीच से हटा दिया जाए. उन्होंने अपने मन की बात माला से बताई तो वह भी उन का साथ देने के लिए तैयार हो गई.

6 नवंबर, 2013 को सुबह के लगभग 8 बजे 2 युवक जोगेश्वरी के ओसिवारा पुलिस थाने पहुंचे और ड्यूटी पर मौजूद सबइंस्पेक्टर योगेश धारे को बताया कि वे लोग जिस कमरे में रहते हैं, उस के ऊपर वाले कमरे में कुछ गड़बड़ है. 2 दिनों पहले उन के कमरे की लकड़ी की छत से खून की कुछ बूंदें टपकी थीं और अब उस कमरे से अजीब तरह की दुर्गंध आ रही है.

सबइंसपेक्टर योगेश धारे ने उन दोनों की बातें बड़े ध्यान से सुनीं और इस मामले की जानकारी तुरंत अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. इस के बाद वह अपने साथ पुलिस टीम ले कर उन दोनों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन लोगों द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच कर पुलिस ने देखा कि उन्होंने जिस कमरे का जिक्र किया था, उस के दरवाजे पर ताला लटक रहा था.

उस कमरे का ताला तुड़वाया गया तो अचानक तेज दुर्गंध का झोंका आया. अंदर जा कर देखा गया तो पुलिस टीम स्तब्ध रह गई. कमरे में एक आदमी का निर्वस्त्र शव पड़ा था, जिस में सड़न शुरू हो चुकी थी. लाश के आसपास ढेर सारा खून फैला था, जो सूख चुका था. मृतक के सिर पर गहरा घाव और गले में नीला निशान था. लग रहा था कि उस की हत्या सिर पर किसी वजनी चीज से प्रहार कर के और गला दबा कर की गई थी.

मृतक कौन था, उस के साथ कौनकौन रहता था? योगेश धारे अभी इस की जांच कर रहे थे कि पुलिस उपायुक्त छेरिंग दोरजे, सहायक पुलिस आयुक्त शेर खान थाने के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक नासिर पठान, पुलिस निरीक्षक बाबूराव मुखेड़कर, सहायक पुलिस निरीक्षक रवींद्र पाटिल, हेडकांस्टेबल गोरखनाथ पवार, सिपाही प्रवीण धार्गे और विकास पोल भी वहां पहुंच गए.

मृतक की शिनाख्त के लिए पुलिस को कोई माथापच्ची नहीं करनी पड़ी, क्योंकि मृतक की पत्नी रिंकू अपने बच्चों के साथ वहां पहुंच गई. उस ने रोते बिलखते बताया कि मृतक उस का पति सरोज कामथी है. रिंकू ने अपने पति की हत्या का आरोप सीधेसीधे माला पर लगाया. उस ने यह भी बताया कि माला पिछले 3 सालों से उस की सौतन बन कर उस के पति के साथ रह रही थी.

पूछताछ में यह बात भी पता चली कि माला दीपावली के दूसरे दिन से गायब है. यह भी जानकारी मिली कि माला के बाजू वाले कमरे में रहने वाले 2 युवक सुरेश और महेश भी शामिल हैं. रिंकू के बयान और घर से गायब होने के कारण वे दोनों भी संदेह के घेरे में आ गए.

रिंकू के बयान और घटनास्थल की प्राथमिक जांच व काररवाई के बाद मृतक सरोज कामथी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए कूपर अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर सीनियर इंसपेक्टर नासिर पठान ने तीनों संदिग्धों की गिरफ्तारी के लिए 3 पुलिस टीमें तैयार कीं. पुलिस की तीनों टीमों ने माला, सुरेश और महेश की सरगरमी से तलाश शुरू कर दी. परिणामस्वरूप शीघ्र ही कामयाबी भी मिल गई. महेश को अंधेरी में उस के एक दोस्त के यहां से गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में महेश ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. उस से पता चला कि सुरेश और माला हत्या के बाद अपनेअपने गांव भाग गए थे. महेश के बयान के बाद सहायक पुलिस निरीक्षक रवींद्र पाटिल के निर्देशन में पुलिस की एक टीम सुरेश के इलाहाबाद स्थित गांव और एक टीम माला के दरभंगा स्थित गांव भेजी गई.

12 नवंबर, 2013 को मोबाइल फोन की लोकेशन से सुरेश को इलाहाबाद स्टेशन के मुसाफिरखाना से गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन माला की तलाश में गई पुलिस टीम दरभंगा से खाली हाथ लौट आई.

मुंबई पहुंच कर सुरेश ने अपना गुनाह कबूल करते हुए पुलिस को बताया कि उन दोनों के माला से अवैध संबंध थे. इसी वजह से सरोज कामथी माला को प्रताडि़त करता था, जो उन से बरदाश्त नहीं होता था. इसलिए जब माला ने उन से कहा कि वह सरोज कामथी से छुटकारा पाना चाहती है तो उन लोगों ने उस के साथ मिल कर उस की हत्या की योजना बना डाली. उस की हत्या में माला भी शामिल थी.

सुरेश के अनुसार 4 नवंबर, 2013 को दीवाली के दूसरे दिन सरोज कामथी शराब के नशे में घर आया और सो गया. यह बात माला ने फोन कर के उन्हें बताई तो वे बिना देर किए उस के पास पहुंच गए. अपनी योजना के अनुसार सुरेश ने सरोज कामथी के सीने पर चढ़ कर उस का गला पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया. महेश ने उस के दोनों पैर पकड़े और माला ने मसाला पीसने वाले पत्थर से उस के सिर पर वार किया. सरोज कामथी की हत्या करने के बाद कमरे में ताला लगा कर तीनों से फरार हो गए थे.

सुरेश और महेश से विस्तृत पूछताछ के बाद जांच अधिकारी बाबूराव मुखेड़कर और रविंद्र पाटिल ने तीनों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें अंधेरी कोर्ट के मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. माला अभी फरार है.

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