खुशी से दिशा के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. फ्रैंड्स से बात करते हुए वह चिडि़यों की तरह चहक रही थी. उस की आवाज की खनक बता रही थी कि बहुत खुश है. यह स्वाभाविक भी था. मंगनी होना उस के लिए छोटी बात नहीं थी.

मंगनी की रस्म के लिए शहर के नामचीन होटल को चुना गया था. रात के 9 बज गए थे. सारे मेहमान भी आ चुके थे. फ्रैंड्स भी आ गई थीं. लेकिन मानस और उस के घर वाले अभी तक नहीं आए थे.

देर होते देख उस के पापा घबरा रहे थे. उन्होंने दिशा को मानस से पूछने के लिए कहा तो उस ने तुरंत उसे फोन लगाया. मानस ने बताया कि वे लोग ट्रैफिक में फंस गए हैं. 20-25 मिनट में पहुंच जाएंगे.

दिशा ने राहत की सांस ली. मानस के आने में देर होते देख न जाने क्यों उसे डर सा लगने लगा था. वह सोच रही थी कि कहीं उसे उस के बारे में कोई नई जानकारी तो नहीं मिल गई. लेकिन उस ने अपनी इस धारणा को यह सोच कर पीछे धकेल दिया कि वह आ तो रहा है. कोई बात होती तो टै्रफिक में फंसा होने की बात क्यों बताता.

अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने ‘हैलो’ कहा तो परिमल की आवाज आई, ‘‘2 दिन पहले ही जेल से रिहा हुआ हूं. तुम्हारा पता किया तो जानकारी मिली कि आज मानस से तुम्हारी मंगनी होने जा रही है. मैं एक बार तुम्हें देखना और तुम से बात करना चाहता हूं. होटल के बाहर खड़ा हूं. 5 मिनट के लिए आ जाओ, नहीं तो मैं अंदर आ जाऊंगा.’’

दिशा घबरा गई. जानती थी कि परिमल अंदर आ गया तो उस की फजीहत हो जाएगी. मानस को सच्चाई का पता चल गया तो वह उस से मंगनी नहीं करेगा. उसे परिमल से मिल लेने में ही भलाई नजर आई. लोगों की नजर बचा कर वह होटल से बाहर चली गई.

गेट से थोड़ी दूर आगे परिमल खड़ा था. उस के पास जा कर दिशा गुस्से में बोली, ‘‘क्यों परेशान कर रहे हो? बता चुकी हूं कि मैं तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की है, फिर भी मैं तुम्हें परेशान नहीं कर सकता. मैं तो तुम से सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि मेरी दुर्दशा करने के बाद तुम्हें कभी पछतावा हुआ या नहीं?’’

दिशा ने रूखे स्वर में जवाब दिया, ‘‘कैसा पछतावा? जो कुछ भी हुआ उस में सारा दोष तुम्हारा था. मैं ने तो पहले ही आगाह किया था कि मुझे बदनाम मत करो. आज के बाद अगर तुम ने मुझे फिर कभी बदनाम किया तो याद रखना पहली बार 3 साल के लिए जेल गए थे. अब उम्र भर के लिए जाओगे.’’

अपनी बात कह कर दिशा बिना परिमल का जवाब सुने होटल के अंदर आ गई. उस की फ्रैंडस उसे ढूंढ रही थीं. एक ने पूछ लिया, ‘‘कहां चली गई थी? तेरे पापा पूछ रहे थे.’’

स्थिति संभालने के लिए दिशा ने बाथरूम जाने का बहाना कर दिया. पापा को भी बता दिया. फिर राहत की सांस ले कर सोफे पर बैठ गई. उसे विश्वास था कि परिमल अब कभी परेशान नहीं करेगा और वह मानस के साथ आराम की जिंदगी गुजारेगी.

परिमल से दिशा की पहली मुलाकात कालेज में उस समय हुई थी, जब वह बीटेक कर रही थी. परिमल भी उसी कालेज से बीटेक कर रहा था. वह उस की पर्सनैल्टी पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकी थी. लंबी चौड़ी कद काठी, आकर्षक चेहरा, गोरा रंग, स्मार्ट और हैंडसम.

मन ही मन उस ने ठान लिया था कि एक न एक दिन उसे पा कर रहेगी, चाहे कालेज की कितनी भी लड़कियां उस के पीछे पड़ी हों.

दरअसल, उसे पता चला था कि कई लड़कियां उस पर जान न्योछावर करती हैं. यह अलग बात थी कि उस ने किसी का भी प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था. प्यार मोहब्बत के चक्कर में वह अपनी पढ़ाई खराब नहीं करना चाहता था. पढ़ाई में वह शुरू से ही मेधावी था.

एक ही कालेज में पढ़ने के कारण दिशा उस से पढ़ाईलिखाई की ही बात करती थी. कई बार वह कैंटीन में उस के साथ चाय भी पी चुकी थी.

एक दिन कैंटीन में परिमल के साथ चाय पीते हुए उस ने कहा, ‘‘इन दिनों बहुत परेशान हूं. मेरी मदद करोगे तुम्हारा बड़ा अहसान होगा.’’

‘‘परेशानी क्या है?’’ परिमल ने पूछा.

‘‘कहते हुए शर्म आ रही है पर समाधान तुम्हें ही करना है. इसलिए परेशानी तो बतानी ही पडे़गी. बात यह है कि पिछले 4-5 दिनों से तुम रातों में मेरे सपनों में आते हो और सारी रात जगाए रहते हो.

‘‘दिन में भी मेरे दिलोंदिमाग में तुम ही रहते हो. शायद इसे ही प्यार कहते हैं. सच कहती हूं परिमल तुम मेरा प्यार स्वीकार नहीं करोगे तो मैं जिंदा लाश बन कर रह जाऊंगी.’’

परिमल ने तुरंत जवाब नहीं दिया. उस ने कुछ सोचा फिर कहा, ‘‘यह तो पता नहीं कि तुम मुझे कितना चाहती हो, पर यह सच है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

दिशा के चेहरे की मुसकान का सकारात्मक अर्थ निकालते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारा प्यार पाना चाहता हूं. लेकिन मैं ने इस डर से कदम आगे नहीं बढ़ाए कि तुम अमीर घराने की हो. तुम्हारे पापा रिटायर जज हैं. भाई पुलिस में बड़े अधिकारी हैं. धनदौलत की कमी नहीं है.’’

दिशा उस की बातों को बडे़ मनोयोग से सुन रही थी. परिमल ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘मैं गरीब परिवार से हूं. पिता मामूली शिक्षक हैं. ऊपर से उन्हें 2 जवान बेटियों की शादी भी करनी है. यह  सच है कि तुम अप्सरा सी सुंदर हो. कोई भी अमीर युवक तुम से शादी कर के अपने आप को भाग्यशाली समझेगा. तुम्हारे घर वाले तुम्हारा हाथ भला मेरे हाथ में क्यों देंगे?’’

दिशा तुरंत बोली, ‘‘इतनी सी बात के लिए डर रहे हो? मुझ पर भरोसा रखो. हमारा मिलन हो कर रहेगा. हमें एक होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. तुम केवल मेरा प्यार स्वीकार करो, बाकी सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

दिशा ने समझाया तो परिमल ने उस का प्यार स्वीकार कर लिया. उस के बाद दोनों को जब भी मौका मिलता कभी पार्क में, कभी मौल में तो कभी किसी रेस्तरां में जा कर घंटों प्यार मोहब्बत की बातें करते.

सारा खर्च दिशा की करती थी. परिमल खर्च करता भी तो कहां से? उसे सिर्फ 50 रुपए प्रतिदिन पौकेट मनी मिलती थी. उसी में घर से कालेज आनेजाने का किराया भी शामिल था.

2 महीने में ही दोनों का प्यार इतना अधिक गहरा हो गया कि एकदूसरे में समा जाने के लिए व्याकुल हो गए. अंतत: एक दिन दिशा परिमल को अपनी फ्रैंड के फ्लैट पर ले गई.

दिशा का प्यार पा कर परिमल उस का दीवाना हो गया. दिनरात लट्टू की तरह उस के आगे पीछे घूमने लगा. नतीजा यह हुआ कि पढ़ाई से मन हट गया और उसे दिशा के साथ उस की फ्रैंड के फ्लैट पर जाना अच्छा लगने लगा.

सहेली के मम्मी पापा दिन में औफिस में रहते थे. इसलिए उन्हें परेशानी नहीं होती थी. फ्रैंड तो राजदार थी ही. इस तरह दोनों एक साल तक मौजमस्ती करते रहे. फिर अचानक दिशा को लगा कि परिमल के साथ ज्यादा दिनों तक रिश्ता बनाए रखने में खतरा है. वजह यह कि वह उस से शादी की उम्मीद में था.

दिशा ने परिमल से मिलना जुलना बंद कर दिया. उस ने परिमल को छोड़ कर कालेज के ही एक छात्र वरुण से तनमन का रिश्ता जोड़ लिया. वरुण बहुत बड़े बिजनैसमैन का इकलौता बेटा था.

सच्चाई का पता चलते ही परिमल परेशान हो गया. वह हर हाल में दिशा से शादी करना चाहता था. लेकिन दिशा ने उसे बात करने का मौका ही नहीं दिया था. दिशा का व्यवहार देख कर परिमल ने कालेज में उसे बदनाम करना शुरू कर दिया. मजबूर हो कर दिशा को उस से मिलना पड़ा.

पार्क में परिमल से मिलते ही दिशा गुस्से में चीखी, ‘‘मुझे बदनाम क्यों कर रहे हो. मैं ने कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’

‘‘अपना वादा भूल गईं. तुम ने कहा था न कि हमारा मिलन हो कर रहेगा. तभी तो तुम्हारी तरफ कदम बढ़ाया था.’’ परिमल ने उस का वादा याद दिलाया.

‘‘मैं ने मिलन की बात की थी, शादी की नहीं. मेरी नजरों में तन का मिलन ही असल मिलन होता है. मैं ने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर अपना वादा पूरा किया था, फिर शादी के लिए क्यों पीछे पड़े हो? तुम छोटे परिवार के लड़के हो, इसलिए तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

परिमल शांत बैठा सुन रहा था. उस के चेहरे पर तनाव था और मन में गुस्सा. लेकिन उस सब की चिंता किए बगैर दिशा बोली, ‘‘तुम अच्छे लगे थे, इसीलिए संबंध बनाया था. अब हम दोनों को अपने अपने रास्ते चले जाना चाहिए. वैसे भी मेरी जिंदगी में आने वाले तुम पहले लड़के नहीं हो. मेरी कई लड़कों से दोस्ती रही है. मैं सब से थोड़े ही शादी करूंगी? अगर आज के बाद मुझे कभी भी परेशान  करोगे तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा. बदनामी से बचने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

दिशा का लाइफस्टाइल जान कर परिमल को बहुत गुस्सा आया. इतना गुस्सा कि उस के वश में होता तो उस का गला दबा देता. जैसेतैसे गुस्से को काबू कर के उस ने खुद को समझाया. लेकिन सब की परवाह किए बिना दिशा उठ कर चली गई.

दिशा ने भले ही परिमल से बुरा व्यवहार किया, लेकिन उस ने उस की आंखों में गुस्से को देखा था, इसलिए उसे डर लग रहा था. उसे लगा कि परिमल अगर शांत नहीं बैठा तो उस की जिंदगी में तूफान आ सकता है.  वह बदनाम नहीं होना चाहती थी. इसलिए उस ने भाई की मदद ली. उस का भाई पुलिस में उच्च पद पर था, उसे चाहता भी था.

नमक मिर्च लगा कर उस ने परिमल को खलनायक बनाया और भाई से गुजारिश की कि परिमल को किसी भी मामले में फंसा कर  जेल भिजवा दे. फलस्वरूप परिमल को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर इल्जाम लगाया गया कि उस ने कालेज की एक लड़की की इज्जत लूटने की कोशिश की थी.

अदालत में सारे झूठे गवाह पेश कर दिए गए. पुलिस का मामला था, सो आरोपी लड़की भी तैयार कर ली गई. अदालत में उस का बयान हुआ तो 2-3 तारीख पर ही परिमल को 3 वर्ष की सजा हो गई.

परिमल हकीकत जानता था, लेकिन चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकता था. लंबी लड़ाई के लिए उस के पास पैसा भी नहीं था. उस ने चुपचाप सजा काटना मुनासिब समझा.

इस से दिशा ने राहत की सांस ली. साथ ही उस ने अपना लाइफस्टाइल भी बदलने का फैसला कर लिया. क्योंकि वह यह सोच कर डर गई थी कि परिमल जैसा कोई और उस की जिंदगी में आ गया तो वह घर परिवार और समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

उस के दुश्चरित्र होने की बात पापा तक पहुंच गई तो वह उन की नजर में गिर जाएगी. पापा उसे इतना चाहते थे कि हर तरह की छूट दे रखी थी. उस के कहीं आनेजाने पर भी कोई पाबंदी नहीं थी. यहां तक कि उन्होंने कह दिया था कि अगर उसे किसी लड़के से प्यार हो गया तो उसी से शादी कर देंगे, बशर्ते लड़का अमीर परिवार से हो. मम्मी थीं नहीं, 7 साल पहले गुजर गई थीं. भाभी अपने आप में मस्त रहती थीं.

दिशा जब 12वीं में पढ़ती थी तो एक लड़के के प्रेम में आ कर उस ने अपना सर्वस्व सौंप दिया था. वह नायाब सुख से परिचित हुई तो उसे ही सच्चा सुख मान लिया. वह बेखौफ उसी रास्ते पर आगे बढ़ती गई. नएनए साथी बनते और छूटते गए. वह किसी एक की हो कर नहीं रहना चाहती थी.

पहली बार परिमल ने ही उस से शादी की बात की थी. जब वह नहीं मानी तो उस ने उसे खूब बदनाम भी किया था. वह बदनामी की जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. इसलिए परिमल के जेल में रहते परिणय सूत्र में बंध जाना चाहती थी. तब उस की जिंदगी में वरुण आ चुका था.

परिमल के जेल जाने के 6 महीने बाद दिशा ने जब बीटेक कर लिया तो उस ने वरुण से अपने दिल की बात कही, ‘‘चोरी चोरी प्यार मोहब्बत का खेल बहुत हो गया. अब शादी कर के तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.’’

वरुण दिशा की तरह इस मैदान का खिलाड़ी था. उस ने शादी से मना कर दिया, साथ ही उस से रिश्ता भी तोड़ दिया.

दिशा को अपने रूप यौवन पर घमंड था. उसे लगता था कि कोई भी युवक उसे शादी करने से मना नहीं करेगा. वरुण ने मना कर दिया तो आहत हो कर उस ने शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा होने का निश्चय किया.

पापा से नौकरी की इजाजत मिल गई तो उस ने जल्दी ही जौब ढूंढ लिया. जौब करते हुए 2 महीने ही बीते थे कि एक पार्टी में उस का परिचय रंजन से हुआ, जो पेशे से वकील था. उस के पास काफी संपत्ति थी. शादी के ख्याल से उस ने रंजन से दोस्ती की, फिर संबंध भी बनाया. लेकिन करीब एक साल बाद उस ने शादी से मना कर दिया.

रंजन से धोखा मिलने पर दिशा तिलमिलाई जरूर लेकिन उस ने निश्चय किया कि पुरानी बातों को भूल कर अब विवाह से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी.

दिशा ने घर वालों को शादी की रजामंदी दे दी तो उस के लिए वर की तलाश शुरू हो गई. 4 महीने बाद मानस मिला. वह बहुत बड़ी कंपनी में सीईओ था. पुश्तैनी संपत्ति भी थी. उस के पिता रेलवे से रिटायर्ड थे. मम्मी हाईस्कूल में पढ़ाती थीं.

मानस से शादी होना तय हो गया तो दिशा उस से मिलने लगी. उस ने फैसला किया था कि शादी से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी. लेकिन अपने फैसले पर वह टिकी नहीं रह सकी. हवस की आग में जलने लगी तो मानस से संबंध बना लिया.

2 महीने बाद जब मानस मंगनी से कतराने लगा तो दिशा ने पूछा, ‘‘सच बताओ, मुझ से शादी करना चाहते हो या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’ मानस ने कह दिया.

‘‘क्यों?’’ दिशा ने पूछा. वह गुस्से में थी.

कुछ सोचते हुए मानस ने कहा, ‘‘पता चला है कि मुझ से पहले भी तुम्हारे कई मर्दों से संबंध रहे हैं.’’

पहले तो दिशा सकते में आ गई, लेकिन फिर अपने आप को संभाल लिया और कहा, ‘‘लगता है, मेरे किसी दुश्मन ने तुम्हारे कान भरे हैं. मुझ पर विश्वास करो तुम्हारे अलावा मेरे किसी से संबंध नहीं रहे.’’

मानस ने सोचने के लिए दिशा से कुछ दिन का समय मांगा, लेकिन उस ने समय नहीं दिया. उस पर दबाव बनाने के लिए दिशा ने अपने घर वालों को बताया कि मानस ने बहला फुसला कर उस से संबंध बना लिए हैं और अब गलत इलजाम लगा कर शादी से मना कर रहा है.

उस के पिता और भाई गुस्से में मानस के घर गए. उस के मातापिता के सामने ही उसे खूब लताड़ा और दिशा की बेहयाई का सबूत मांगा.

मानस के पास कोई सबूत नहीं था. मजबूर हो कर वह दिशा से मंगनी करने के लिए राजी हो गया. 15 दिन बाद की तारीख रखी गई. आखिर वह दिन आ ही गया. मानस उस से मंगनी करने आ रहा था.

एक सहेली ने दिशा की तंद्रा भंग की तो वह वर्तमान में लौट आई. सहेली कह रही थी, ‘‘देखो, मानस आ गया है.’’

दिशा ने खुशी से दरवाजे की तरफ देखा. मानस अकेला था. उस के घर वाले नहीं आए थे. उस के साथ एक ऐसा शख्स था जिसे देखते ही दिशा के होश उड़ गए. वह शख्स था डा. अमरेंदु.

मानस को अकेला देख दिशा के भाई और पापा भी चौंके. उस का स्वागत करने के बाद भाई ने पूछा, ‘‘तुम्हारे घर वाले नहीं आए?’’

‘‘कोई नहीं आएगा.’’ मानस ने कहा.

‘‘क्यों नहीं आएगा?’’

‘‘क्योंकि मैं दिशा से शादी नहीं करना चाहता. मुझे उस से अकेले में बात करनी है? वह सब कुछ समझ जाएगी. खुद ही मुझ से शादी करने से मना कर देगी.’’

भाई और पिता के साथ दिशा भी सकते में आ गई. उस की भाभी उस के पास ही थी. उस की बोलती भी बंद हो गई थी. दिशा के पिता ने उसे अकेले में बात करने की इजाजत नहीं दी. कहा, ‘‘जो कहना है, सब के सामने कहो.’’

मजबूर हो कर मानस ने लोगों के सामने ही कहा, ‘‘दिशा दुश्चरित्र लड़की है. अब तक कई लड़कों से संबंध बना चुकी है. 2 बार एबौर्शन भी करा चुकी है. इसीलिए मैं उस से शादी नहीं करना चाहता.’’

भाई को गुस्सा आ गया. उस ने मानस को जोरदार थप्पड़ मारा और कहा, ‘‘मेरी बहन पर इल्जाम लगाने की आज तक कभी किसी ने हिम्मत नहीं की. अगर तुम प्रमाण नहीं दोगे तो जेल की हवा खिला दूंगा.’’

‘‘भाईसाहब, आप गुस्सा मत कीजिए अभी सबूत देता हूं. जब मेरे शुभचिंतक ने बताया कि दिशा का चरित्र ठीक नहीं है, तभी से मैं सच्चाई का पता लगाने में जुट गया था. अंतत: उस का सच जान भी लिया.’’

मानस ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ जो शख्स हैं, उन का नाम डा. अमरेंदु है. दिशा ने उन के क्लिनिक में 2 बार एबौर्शन कराया था. आप उन से पूछताछ कर सकते हैं.’’

डा. अमरेंदु ने मानस की बात की पुष्टि करते हुए कुछ कागजात दिशा के भाई और पिता को दिए. कागजात में दिशा ने एबौर्शन के समय दस्तखत किए थे.

दिशा की पोल खुल गई तो चेहरा निष्प्राण सा हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था  कि अब उसे क्या करना चाहिए. भाई और पापा का सिर शर्म से झुक गया था. फ्रैंड्स भी उसे हिकारत की नजरों से देखने लगी थीं.

दिशा अचानक मानस के पास जा कर बोली, ‘‘तुम ने मेरी जिंदगी तबाह कर दी. तुम्हें छोडूंगी नहीं. तुम्हारे जिंदगी भी बर्बाद कर के रख दूंगी. तुम नहीं जानते मैं क्या चीज हूं.’’

‘‘तुम्हारे साथ जो कुछ भी हो रहा है वह सब तुम्हारे लाइफस्टाइल की वजह से हो रहा है. इस में किसी का कोई दोष नहीं है. जब तक तुम अपने आप को नहीं सुधारोगी, ऐसे ही अपमानित होती रहोगी.’’

पलभर चुप रहने के बाद मानस ने फिर कहा, ‘‘आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो चुकी हो कि तुम से कोई भी शादी करने के लिए तैयार नहीं होगा.’’

वह एक पल रुक कर बोला, ‘‘हां, एक ऐसा शख्स है जो तुम्हें बहुत प्यार करता है. तुम कहोगी तो खुशी खुशी शादी कर लेगा.’’

‘‘कौन?’’ दिशा ने पूछा.

‘‘परिमल…’’ मानस ने कहा, ‘‘गेट पर उस से मिल कर आने के बाद तुम उसे भूल गई थीं, पर वह तुम्हें नहीं भूला है. होटल के गेट पर अब तक इस उम्मीद से खड़ा है कि शायद तुम मुझ से शादी करने का अपना फैसला बदल दो. कहो तो उसे बुला दूं.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’ दिशा ने पूछा.

मानस ने बताया कि वह परिमल को कब और कहां मिला था.

कार पार्क कर मानस डा. अमरेंदु के साथ होटल में आ रहा था तो गेट पर परिमल मिल गया था. न जाने वह उसे कैसे जानता था. उस ने पहले अपना परिचय दिया फिर दिशा और अपनी प्रेम कहानी बताई.

उस के बाद कहा, ‘‘तुम्हें दिशा की सच्चाई भविष्य में उस से सावधान रहने के लिए बताई है. अगर उस से सावधान नहीं रहोगे तो विवाह के बाद भी वह तुम्हें धोखा दे सकती है.’’

मानस ने परिमल को अंदर चलने के लिए कहा तो उस ने जाने से मना कर दिया. कहा, ‘‘मैं यहीं पर तुम्हारे लौटने का इंतजार करूंगा. बताना कि तुम से मंगनी कर वह खुश है या नहीं?’’

कुछ सोच कर मानस ने उस से पूछा, ‘‘मान लो दिशा तुम से शादी करने के लिए राजी हो जाए तो करोगे?’’

‘‘जो हो नहीं सकता, उस पर बात करने से क्या फायदा? जानता हूं कि वह कभी भी मुझ से शादी नहीं करेगी.’’ परिमल ने मायूसी से कहा.

मानस ने परिमल की आंखों में देखा तो पाया कि दिशा के प्रति उस की आंखों में प्यार ही प्यार था. उस ने चाह कर भी कुछ नहीं कहा और डा. अमरेंदु के साथ होटल में चला आया.

मानस ने दिशा को सच्चाई से दोचार करा दिया तो उसे भविष्य अंधकारमय लगा. परिमल के सिवाय उसे कोई नजर नहीं आया तो वह उस से बात करने के लिए व्याकुल हो गई.

उस का फोन नंबर उस के पास था ही, झट से फोन लगा दिया. परिमल ने फोन उठाया तो उस ने कहा, ‘‘तुम से कुछ बात करना चाहती हूं. प्लीज होटल में आ जाओ.’’

कुछ देर बाद ही परिमल आ गया और दिशा ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, परिमल. मैं तुम्हारा प्यार समझ नहीं पाई थी, लेकिन अब समझ गई हूं. मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. अभी मंगनी कर लो, बाद में जब कहोगे शादी कर लूंगी.’’

कुछ सोचने के बाद परिमल ने कहा, ‘‘यह सच है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. पर तुम आज भी मुझ से बेवफाई कर रही हो. सच नहीं बता रही हो. सच यह नहीं है कि मेरा प्यार तुम समझ गई हो, इसलिए मुझ से शादी करना चाहती हो. सच यह है कि आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो गई हो कि तुम से कोई भी शादी नहीं करना चाहता. मानस ने भी शादी से मना कर दिया है. इसीलिए अब तुम मुझ से शादी कर अपनी इज्जत बचाना चाहती हो.

‘‘तुम से शादी करूंगा तो प्यार की नहीं, समझौते की शादी होगी, जो अधिक दिनों तक नहीं टिकेगी. अत: मुझे माफ कर दो और किसी और को बलि का बकरा बना लो. मैं भी तुम्हें सदैव के लिए भूल कर किसी और से शादी कर लूंगा.’’

परिमल रुका नहीं. दिशा की पकड़ से हाथ छुड़ा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. वह देखती रह गई. किस अधिकार से रोकती?

कुछ देर बाद मानस और डा. अमरेंदु भी चले गए. दिशा के घर वाले भी चले गए. सहेलियां चली गईं. महफिल खाली हो गई, पर दिशा डबडबाई आंखों से बुत बनी रही.

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