सत्तर के दशक की बात है. जगह थी उत्तर प्रदेश का जिला खुर्जा. वहां के सब्जी बेचने वाले एक  परिवार के 2 भाई गूंगा पहलवान और अनवर लंगड़ा काम की तलाश में दिल्ली आए थे. दोनों अंगूठाछाप थे, इसलिए उन्होंने दिल्ली की आजादपुर मंडी में सब्जी बेचने का पुश्तैनी धंधा शुरू किया. बाद में उन्होंने यही काम दिल्ली के दरियागंज इलाके में जमा लिया. काम तो जम गया, लेकिन उन की मंजिल कुछ और ही थी. ऐसी मंजिल जिस तक जुर्म की काली राह से ही पहुंचा जा सकता था.

हालांकि यह साफतौर पर नहीं कहा जा सकता कि वे इस स्याह रास्ते पर पहली बार कब चले थे. पर 14 अक्तूबर, 1986 में जब एक सब्जी बेचने वाले ने ही जबरन वसूली की शिकायत पुलिस से की तो पता चला कि वे दोनों पहले से ही जबरन वसूली के गोरखधंधे में उतर चुके थे.

बताया जाता है कि गूंगा पहलवान और अनवर लंगड़ा जब दरियागंज छोड़ कर ओखला गए थे, तभी उन्होंने प्रोटैक्शन मनी के नाम पर ओखला सब्जीमंडी में गैरकानूनी उगाही का धंधा शुरू कर दिया था. गूंगा पहलवान का असली नाम मोहम्मद उमर था. उस पर 13 और उस के भाई अनवर पर 15 पुलिस केस दर्ज होने की बात सामने आई है.

जुर्म का यह पौधा देखते ही देखते बड़ा पेड़ बन गया. एकएक कर के इन दोनों भाइयों के परिवार वाले भी इस धंधे में हिस्सेदार बनते गए. 23 सदस्यों वाले इस परिवार में 13 सदस्यों पर करीब सवा सौ आपराधिक मामले दर्ज हैं.

गैरकानूनी उगाही का धंधा अब उन का फैमिली बिजनैस बन चुका था. 55 साल के गूंगा पहलवान और 52 साल के अनवर लंगड़ा ने 5 साल पहले इस कारोबार से रिटायरमैंट ले लिया है. उन के रिटायरमैंट के बाद उन के 9 बेटों ने इस धंधे की कमान अपने हाथों में ले ली. 2 नाबालिग बेटे भी जुर्म की राह पर चल चुके हैं.

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