UP News : प्रमोद सिंह भले ही अपने बच्चों की फीस जमा कराने के लिए ठगी करना चाहता था, लेकिन इस की शुरुआत उस ने जिस ढंग से की वह निस्संदेह चौंकाने वाला था. जिन अधिकारियों के पास लोग जाने से घबराते हैं, उन्हीं से ऐसी बातें करना आसान नहीं था. उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के जिलाधिकारी सुहास एल. वाई. अपने कार्यालय में आए फरियादियों की समस्याएं सुन रहे थे और यथासंभव उन का निदान करने के लिए संबंधित महकमे के अधिकारियों को निर्देश भी जारी कर रहे थे. इसी बीच उन के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. फोन रिसीव कर जैसे ही उन्होंने हैलो कहा, दूसरी तरफ से आवाज आई,
‘‘जिलाधिकारी जौनपुर बोल रहे हैं.’’
‘‘जी हां, मैं जिलाधिकारी जौनपुर बोल रहा हूं.’’
इस से पहले वह कुछ बोल पाते कि दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘मैं उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग का प्रमुख सचिव बोल रहा हूं.’’
‘‘जी सर, आदेश करें.’’ जिलाधिकारी ने बड़े ही सम्मानजनक ढंग से संबोधित करते हुए कहा.
‘‘आप अपने जिले के जिला आबकारी अधिकारी से कहें कि वह इसी मोबाइल नंबर पर हम से तत्काल बात करें.’’ दूसरी ओर से बात करने वाले ने कहा. इस के बाद उस व्यक्ति ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.’’
जिलाधिकारी ने तुरंत अपने ओएसडी को आदेश दिया कि वह जिला आबकारी अधिकारी को फोन लगा कर तुरंत बात कराएं. ओएसडी ने जिला आबकारी अधिकारी देवनारायण दुबे को फोन लगा कर उन से कहा कि साहब उन से बात करना चाहते हैं. यह सुन कर दुबे के मन में तमाम बातें घूमने लगीं. फिर भी उन्होंने हिम्मत जुटा कर उन से बात की तो जिलाधिकारी ने कहा, ‘‘आप के आबकारी सचिव का उन के पास फोन आया था. आप उन से तत्काल उन के मोबाइल नंबर 09918333333 पर बात कर लें.’’
आबकारी सचिव का नाम सुनते ही जिला आबकारी अधिकारी देव नारायण दुबे को जैसे पसीना आ गया. वह सोच में पड़ गए कि आखिरकार ऐसी कौन सी बात हो गई कि आबकारी सचिव उन से बात करना चाह रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने उन की कोई उलटीसीधी शिकायत कर दी हो? उन के मन में तरहतरह की आशंकाएं पैदा होने लगीं. चूंकि उन्हें उन से बात तो करनी ही थी, इसलिए साहस कर के उन्होंने तुरंत जिलाधिकारी द्वारा दिए गए मोबाइल नंबर पर फोन लगा दिया. कुछ सैकेंड घंटी बजने के बाद जैसे ही किसी ने हैलो कहा, देवनारायण दुबे बोले, ‘‘सर मैं जिला आबकारी अधिकारी जौनपुर देवनारायण दुबे बोल रहा हूं.’’
‘‘हां दुबे, बोलो कैसे हो?’’
‘‘सर ठीक हूं.’’
‘‘दुबे तुम्हारी बहुत शिकायतें मिल रही हैं. तुम ने जौनपुर में खूब लूटखसोट मचा रखी है. सुना है, अवैध शराब कारोबारियों से तुम्हारे अच्छे संबंध चल रहे हैं.’’
‘‘न…नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है. आप चाहे तो जांच करा सकते हैं.’’
‘‘चलो मान लिया कि ठीक है, लेकिन यह बताओ कि खुद तो मौज कर रहे हो. कभीकभी हमें भी याद कर लिया करो. अकेलेअकेले मौज मारना ठीक नहीं है.’’
आबकारी सचिव के इन कुटिल शब्दों को सुन कर देवनारायण दुबे समझ गए कि साहब क्या कहना चाह रहे हैं. फिर भी उन्होंने अनजान बनते हुए कहा, ‘‘सर, आप तो हम लोगों के वरिष्ठ हैं, आप आदेश कीजिए.’’
‘‘बडे़ चालाक और समझदार हो दुबे. चलो तुम्हें एक छोटा सा आदेश देता हूं. मैं भारतीय स्टेट बैंक का एक खाता नंबर दे रहा हूं, इसे नोट करो और तत्काल इस में 11 हजार रुपए जमा करा दो.’’
‘‘जी सर, अभी करा देता हूं.’’
जिला आबकारी अधिकारी ने खाता नंबर नोट करा कर फोन काट दिया. यह बात 27 अक्टूबर, 2014 की है. फोन पर बात करने के बाद जिला आबकारी अधिकारी देवनारायण दुबे के मन में रहरह कर एक ही सवाल उठने लगा कि इतना बड़ा अधिकारी भला उन से महज 11 हजार रुपए क्यों मांगेगा? अगर मांगना होता तो वह लाख, दो लाख की बात करता न कि इतनी कम धनराशि की. इस से उन्हें कुछ शंका होने लगी. काफी सोचविचार के बाद उन्होंने जिलाधिकारी को यह बात बतानी जरूरी समझी. वह बिना समय गंवाए सीधे जिलाधिकारी कार्यालय पहुंच गए. जिलाधिकारी ने उन से पूछा, ‘‘दुबे जी आप की आबकारी सचिव जी से बात हो गई?’’
‘‘जी सर, बात तो हो गई, लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही है.’’
यह सुन कर जिलाधिकारी ने देवनारायण दुबे की तरफ देखा, फिर बोले, ‘‘क्या बात?’’
‘‘सर, पहले तो आबकारी सचिव साहब ने मुझे खूब हड़काया और कहा कि तुम्हारी बहुत शिकायतें आ रही हैं. फिर उन्होंने एक खाता नंबर दे कर 11 हजार रुपए जमा कराने को कहा. सर यही बात मेरी समझ में नहीं आ रही है कि इतने बड़े अधिकारी इतनी छोटी रकम के लिए क्यों कह रहे हैं. सर आप बताएं मैं क्या करूं?’’
यह सुनने के बाद जिलाधिकारी भी सोच में पड़ गए. उन्हें भी इस में किसी साजिश की गंध आने लगी. उन्होंने तत्काल अपने मोबाइल फोन से पुलिस अधीक्षक बबलू कुमार को फोन लगा कर कहा, ‘‘मेरे पास जिला आबकारी अधिकारी देवनारायण दुबे बैठे हुए हैं. इन्हें मैं आप के पास भेज रहा हूं. इन की बात को गंभीरता से सुनने के बाद उचित काररवाई करें.’’
जिलाधिकारी से बात करने के बाद एसपी बबलू कुमार के दिमाग में यही विचार आया कि कहीं शराब की तस्करी का बड़ा मामला होगा, जिस में दबिश देनी होगी. इसलिए डीएम साहब ने सीधे फोन किया है. कुछ ही देर में जिला आबकारी अधिकारी देवनारायण दुबे एसपी बबलू कुमार के औफिस पहुंच गए. उन्होंने एसपी को वह सभी बातें बता दीं, जो आबकारी सचिव से हुई थीं. जिला आबकारी अधिकारी की बात सुनने के बाद एसपी को भी मामला गंभीर नजर आया. वह भी सोचने लगे कि इतना बड़ा अधिकारी जिला आबकारी अधिकारी दुबे से इस तरह रकम कैसे मांग सकता है?
एसपी ने लाइन बाजार थानाप्रभारी इंसपेक्टर सत्येंद्र तिवारी को फोन कर के अपने औफिस बुला लिया. उन के निर्देश पर क्राइम ब्रांच के एसआई राजीव कुमार सिंह तथा क्षितिज त्रिपाठी भी आ गए. साथ ही उन के बुलावे पर एसपी सिटी रामजी सिंह यादव, एसपी (ग्रामीण) ओ.पी. पांडेय, सीओ (सदर) अलका भटनागर भी उन के औफिस पहुंच गईं. आपस में विचारविमर्श करने के बाद पुलिस अधिकारियों को आबकारी सचिव वाला मामला संदिग्ध लगा. जिस फोन नंबर से जिला आबकारी अधिकारी के पास फोन आया था, एसपी ने उस फोन नंबर को सर्विलांस पर लगाने के निर्देश दिए, ताकि पता चल सके कि फोन किस एरिया से किया गया था.
एसपी ने थानाप्रभारी और क्राइम ब्रांच टीम को इस मामले में तुरंत काररवाई करने के निर्देश दिए. अपने कप्तान का आदेश पाते ही थानाप्रभारी लाइन और क्राइम ब्रांच की टीम एसपी कार्यालय से बाहर निकल आई. उसी समय आबकारी अधिकारी के मोबाइल नंबर पर उन्हीं आबकारी सचिव का फिर से फोन आया. उन्होंने हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘क्यों दुबेजी, अभी तुम ने कुछ किया नहीं, कहीं ऐसा न हो कि मुझे कोई ठोस काररवाई करनी पड़े और तुम निलंबित हो जाओ.’’
यह सुन कर घबराए हुए दुबे ने अपने नजदीक चल रहे थानाप्रभारी सत्येंद्र तिवारी को इशारे में कुछ बताया और मोबाइल का स्पीकर औन कर कहा, ‘‘साहब, थोड़ा विलंब हो गया. हमारे औफिस का बाबू पैसा ले कर बैंक जा ही रहा था कि आप का फोन आ गया. यह लीजिए आप खुद उस से बात कर लीजिए.’’ इतना कह कर उन्होंने फोन थानाप्रभारी को पकड़ा दिया. फोन थामते ही थानाप्रभारी ने बड़े ही सधे अंदाज में कहा, ‘‘सर प्रणाम,’’
‘‘हां बोलो, क्या बात है?’’
‘‘सर, मैं पैसा ले कर गया था, लेकिन कुछ तकनीकी परेशानी की वजह से पैसा नहीं जा सका. सर, लेकिन घंटे, आधे घंटे में पैसा आप के खाते में चला जाएगा.’’
‘‘ठीक है जल्दी करना, भूल न जाना, वरना…’’
‘‘नहीं सर, ऐसा कुछ भी नहीं होगा.’’
फोन पर बात करने के बाद पुलिस ने उस फोन नंबर की लोकेशन पता की तो वह जौनपुर के आसपास की निकली. इस के बाद पुलिस को विश्वास हो गया कि फोन करने वाला सचिव नहीं, बल्कि शातिर दिमाग आदमी है. पुलिस ने जिला आबकारी अधिकारी देवनारायण दुबे का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगा कर उन से भी कह दिया कि कहीं से भी कोई फोन आए तो बताते रहें. थानाप्रभारी ने पैसा मांगने वाले उस अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ उसी दिन भादंवि की धारा 419/420/467/468/471 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. क्राइम ब्रांच के उपनिरीक्षक राजीव सिंह, क्षितिज त्रिपाठी, थानाप्रभारी लाइन बाजार सत्येंद्र तिवारी, मियांपुर चौकीप्रभारी तहसीलदार सिंह आदि की टीम इस केस को हल करने में जुट गए.
जिस का परिणाम यह निकला कि 30 अक्तूबर, 2014 को उस आबकारी सचिव के फोन की लोकेशन सिटी रेलवे स्टेशन के इर्दगिर्द पाई गई. इस पर पुलिस ने सादा वेश में पहुंच कर वहां अपना जाल बिछा दिया. सर्विलांस सेल के प्रभारी उपनिरीक्षक राजीव सिंह ने स्टेशन पहुंच कर उस व्यक्ति का मोबाइल नंबर मिलाया. तभी आबकारी सचिव बने व्यक्ति ने कहा कि मैं पहचान नहीं रहा हूं, आप कौन बोल रहे हैं? एसआई राजीव सिंह बोले, ‘‘भाई, मैं आप का रिश्तेदार रमेश बोल रहा हूं. आप पहचान नहीं रहे हैं क्या? एक बड़ी खुशखबरी है आप के लिए, वही मैं आप को बताना चाहता हूं. मैं सुल्तानपुर जाने के लिए जौनपुर के सिटी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर बैठा हूं. आप मिल लेते तो मुझे परेशान नहीं होना पड़ता.’’
‘‘अरे भाईसाहब, कौन सी खुशखबरी है. वैसे तो मैं आप की आवाज को थोड़ाबहुत पहचान रहा हूं, लेकिन नाम नहीं याद आ रहा. चलो मैं प्लेटफार्म नंबर एक पर पहुंच रहा हूं.’’
इधर एसआई राजीव सिंह भी बात करतेकरते प्लेटफार्म नंबर एक की ओर चल पड़े. तभी उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति एक तरफ बैठा फोन पर बातें कर रहा था. एसआई राजीव सिंह को आभास हो गया कि शायद यही फरजी आबकारी सचिव है. उन्होंने हाथ उठा कर उसे अभिवादन किया. यह इशारा समझते ही कुछ दूर पर मौजूद पुलिस टीम ने बेंच पर बैठे उस आदमी को घेर लिया. अचानक खुद को घिरा देख कर वह आदमी घबरा गया. उस ने पहले तो पुलिस को हड़काने की कोशिश की, लेकिन उस की धमकी का पुलिस पर असर नहीं पड़ा. कस्टडी में ले कर पुलिस ने उस की जामातलाशी ली तो उस के पास वही मोबाइल फोन मिल गया, जिस से उस ने जिला अधिकारी देवनारायण दुबे को फोन किया था.
इस के अलावा उस के पास से एक एटीएम कार्ड, एक फरजी ड्राइविंग लाइसेंस भी बरामद हुआ. उस व्यक्ति ने अपना नाम प्रमोद कुमार सिंह उर्फ पी.के. सिंह निवासी गांव बलरामपुर, जिला जौनपुर बताया. प्रमोद के पास से जो ड्राइविंग लाइसेंस मिला, उस पर फोटो तो उसी का लगा था, लेकिन उस पर नाम अखिलेश मिश्र पुत्र राजनारायण मिश्र गांव नूरीकलां, थाना सुजानगंज, जौनपुर अंकित था. पुलिस ने इस बारे में उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि फोन तो उस का है, लेकिन एटीएम कार्ड उस की पत्नी पूनम सिंह का है.
ड्राइविंग लाइसेंस में नाम किसी और का और फोटो अपनी लगाने के बारे में पूछे जाने पर वह कोई उत्तर नहीं दे पाया. उस ने बताया कि वह इसी ड्राइविंग लाइसेंस का प्रयोग करता था. धोखाधड़ी कर पैसे मांगने के संबंध में उस ने बताया, ‘‘साहब, बच्चों की फीस जमा करनी थी, इसीलिए ऐसा किया, ताकि आसानी से पैसा हासिल हो सके.’’ प्रमोद ने पुलिस को आगे बताया कि वह एडीएम प्रशासन नोएडा तथा प्रशासनिक अधिकारी बन कर कई लोगों को ठग चुका है. सभी लोगों से पैसे उस ने अपनी पत्नी पूनम सिंह के खाते में जमा कराए थे.
पुलिस को प्रमोद कुमार सिंह ने बताया कि उस की मंशा ठगी के जरिए करोड़पति बनने की थी, लेकिन इस के पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. फर्जी प्रमुख सचिव आबकारी प्रमोद कुमार सिंह को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने 30 अक्तूबर, 2014 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. पुलिस अधीक्षक बबलू कुमार ने इस सफलता के लिए एसआई राजीव सिंह, क्षितिज त्रिपाठी, चौकीप्रभारी मियांपुर तहसीलदार सिंह, तथा आरक्षी सनोज यादव, वेदप्रकाश, पंकज, रामबाबू यादव, सत्यजीत यादव आदि को 5 हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की है.
कथा लिखे जाने तक अभियुक्त प्रमोद कुमार सिंह जिला कारागार जौनपुर में था. उसे जमानत नहीं मिल पाई थी. UP News
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित






