Mumbai Crime: एक गलती कर के कल्पना अपनी गृहस्थी में आग लगा चुकी थी. बाद में उस ने आशुतोष दामले से दूसरी शादी कर ली. लेकिन यहां भी वह एक पेच में फंस गई. उस पेच से निकलने के लिए उस ने ममता की चोरी की, लेकिन…

मुंबई महानगर का सीएसटी एक ऐसा रेलवे स्टेशन है, जहां देश के हर कोने से आनेजाने वाले मुसाफिरों की भीड़भाड़ रहती है. मुसाफिरों की उसी भीड़ में एक परिवार अब्दुल करीम शेख का भी था, जो हैदराबाद जाने के लिए पिछले 3 दिनों से मुसाफिरखाने में ठहरा हुआ था. वह मुंबई महानगर से सटे जनपद ठाणे के उपनगर कल्याण का रहने वाला था और वहां लगने वाले पटरी बाजार में फड़ लगाता था. उस के परिवार में पत्नी रुखसाना के अलावा 2 बेटियां थीं. छोटी बेटी आरिजा 4 माह की थी. कुछ दिन पहले उस के साले को किसी आरोप में हैदराबाद पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, जिस की जमानत कराने के लिए यह परिवार हैदराबाद जाना चाहता था, लेकिन जाने के लिए उस के पास किराए तक के पैसे नहीं थे.

इस के लिए उस ने अपने एक परिचित सलीम से मदद मांगी थी तब सलीम ने उस से कहा था कि वह सीएसटी रेलवे स्टेशन पर आ कर पैसे दे देगा. लेकिन 2 दिन बीत जाने के बाद भी सलीम पैसे देने वहां नहीं आया था. उसी के इंतजार में वह मुसाफिरखाने में चादर बिछा कर लेटा हुआ था. वहां पर इंतजार करते हुए 2 दिन बीत गए. सलीम नहीं आया तो अब्दुल करीम की चिंता बढ़ती जा रही थी कि वह हैदराबाद कैसे जाए? उस ने तय कर लिया कि यदि सलीम कल तक पैसे ले कर नहीं आया तो वह हैदराबाद जाने वाली गाड़ी के जनरल डिब्बे में बिना टिकट बैठ कर चला जाएगा. यही सोच कर वह रात को सो गया. उसी चादर पर उस की पत्नी और बच्चे भी सो गए.

आधी रात के बाद अचानक उस की पत्नी रुखसाना की आंख खुली तो उस के होश उड़ गए. उस के बगल में सो रही उस की 4 महीने की बच्ची आरिजा गायब थी. उस ने उसी समय पति को उठाया. दोनों बेटी को इधरउधर देखने लगे. 4 महीने की बच्ची चल भी नहीं सकती थी जिस से समझा जाता कि कि वह इधरउधर चली गई होगी. आशंका यही थी कि कोई उसे उठा कर ले गया है. पतिपत्नी दोनों उसे स्टेशन पर ही इधरउधर ढूंढ रहे थे. रुखसाना रो रही थी, उस के रोने की आवाज सुन कर कुछ और लोगों की भी नींद टूट गई. छोटी बच्ची के गायब होने पर सभी हैरान थे. उस के साथ कुछ और लोग भी बच्ची को ढूंढने लगे. उन्हें ढूंढतेढूंढते सुबह हो चुकी थी. कुछ लोग रुखसाना को तसल्ली दे रहे थे.

स्टेशन पर रोने की आवाज और वहां की भीड़ को देख कर उधर से गुजर रहे राजकीय रेलवे पुलिस के 2 कांस्टेबल वहां आ गए. अब्दुल करीम शेख ने अपनी बेटी के गायब हो जाने की बात उन्हें बताई तो वह अब्दुल शेख को सीएसटी रेलवे स्टेशन से सटे लोहमार्ग जीआरपी थाने ले गए. यह घटना 24 अप्रैल, 2015 की थी. उन दोनों ने थानाप्रभारी शिवाजी शिंदे को पूरी जानकारी देने के बाद अब्दुल करीम की बेटी को तलाश करवाने की मांग की. थानाप्रभारी ने अब्दुल करीम की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद आश्वासन दिया कि वह उन की बेटी को जल्द से जल्द ढूंढने की कोशिश करेंगे. साथ ही उन्होंने इस मामले की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी.

ऐसी भीड़भाड़ वाली जगह से मांबाप के बीच से बच्ची का गायब होना वाकई एक गंभीर मामला था. इसलिए जीआरपी के कमिश्नर मधुकर पांडेय, एडिशनल पुलिस कमिश्नर रूपाली खैरमोडे़ अंवुरे भी अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ मौके पर पहुंच गईं. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण कर लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की. लेकिन बच्ची किस ने चुराई, यह पता नहीं लग सका. तब पुलिस कमिश्नर से विचारविमर्श करने के बाद एडिशनल पुलिस कमिश्नर रूपाली खैरमोड़े ने यह केस अपने हाथ में ले लिया. अब्दुल करीम शेख गरीब था. इस से इस बात की आशंका नहीं थी कि किसी ने फिरौती के लिए बच्ची का अपहरण किया होगा. निस्संदेह यह किसी दुश्मन या फिर किसी बच्चा चोर गिरोह का काम हो सकता था.

अब्दुल करीम शेख से बात की गई तो उस ने किसी से कोई दुश्मनी और विवाद होने की बात से इनकार किया. इस से साफ हो गया कि यह काम किसी बच्चा चोर या फिर किसी निस्संतान महिला का है. इस के बाद पुलिस ने क्षेत्र के बच्चा चोर गिरोहों की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने बच्ची की तलाश के लिए एक पुलिस टीम बनाई. जिस में पुलिस इंसपेक्टर माणिक साठे, योगेंद्र पांचे, असिस्टैंट इंसपेक्टर सुभाष रामण और उन के सहायक गांवकर, शोलके, निकम, पंवार, सालवी, महिला कांस्टेबल परकाले आदि को शामिल किया. उन्होंने सीएसटी रेलवे स्टेशन के सभी सीसीटीवी कैमरों को भी खंगालना शुरू कर दिया.

कैमरों की फुटेज से पुलिस को कुछ सुराग मिले. उस में एक महिला आरिजा को उस की मां रुखसाना के पास से उठा कर एक दूसरी महिला को देती हुई दिखी. दूसरी महिला उस बच्ची को अपनी गोदी में छिपा कर स्टेशन के मेन गेट से बाहर निकली और सामने से आती हुई टैक्सी पकड़ कर निकल गई. उस के जाने के बाद पहली महिला अपने एक साथी के साथ दूसरे गेट से निकल कर कोलकाता जाने वाली ट्रेन में बैठ गई. दोनों महिलाएं कहां से आई थीं और कहां चली गईं. यह पता लगाना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर थी.

अब पुलिस का निशाना वह टैक्सी थी जिस में बैठ कर महिला बच्चे को ले कर गई थी. लेकिन मुंबई शहर में चल रही हजारों टैक्सियों में से उसे तलाशना आसान नहीं था. क्योंकि फुटेज में टैक्सी का नंबर भी दिखाई नहीं दे रहा था. पुलिस टीम इसे ले कर परेशान जरूर थी लेकिन निराश नहीं हुई. उन्होंने उस सीसीटीवी फुटेज की कई कौपियां कर के मुंबई सेंट्रल, कुर्ला और सीएसटी रेलवे स्टेशनों पर भी भेज दीं. इस के बाद पुलिस की अलगअलग टीमें इन स्टेशनों पर जा कर ड्राइवरों आदि से बच्ची को ले जाने वाली महिला के बारे में पूछने लगे. आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई.

उसे जिस टैक्सी ड्राइवर की तलाश थी इत्तफाक से वह सीएसटी रेलवे स्टेशन पर ही मिल गया. दरअसल पुलिस ने उस ड्राइवर को जब बच्ची ले जाने वाली महिला की फोटो दिखाई तो वह उस महिला को पहचान गया. उस ने बताया कि उस ने उस औरत को मानखुर्द उपनगर की म्हाणा कालोनी में छोड़ा था. यह जानकारी पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण थी. पुलिस टीम मानखुर्द उपनगर की म्हाणा कालोनी पहुंच गई. उस समय रात के लगभग 2 बज रहे थे. पूरा इलाका सुनसान था और लोग अपने घरों में सो रहे थे. टैक्सी ड्राइवर ने जिस जगह पर उस महिला को छोड़ा था, वहां 8-10 इमारतें थीं, जिन में 1100 से 1200 फ्लैट थे. टैक्सी से उतर कर वह महिला किस इमारत में और किस फ्लैट में गई, पता लगाना कठिन था.

रात के समय टीम को उन इमारतों के काफी लोगों की बातें सुननी और उन की नाराजगी झेलनी पड़ सकती थी. लेकिन पुलिस को यह काम रात में ही करना था क्योंकि सुबह होने पर वह महिला शायद कहीं भी जा सकती थी इसलिए लोगों के विरोध की परवाह न करते हुए पुलिस ने अपना बच्चा चोर ढूंढने का औपरेशन शुरू कर दिया. पुलिसकर्मी एकएक इमारत के फ्लैटों की कालबेल बजा कर उस महिला और बच्चे के बारे में पूछताछ करने लगे. पुलिस का यह औपरेशन रात भर चला लेकिन उस महिला का पता नहीं लगा जो बच्ची के साथ टैक्सी से वहां उतरी थी. सुबह करीब 7 बजे पुलिस की मेहनत रंग लाई.

वहीं के एक फ्लैट में रहने वाले डाक्टर माने ने बताया कि इस बारे में अधिक जानकारी तो मुझे नहीं है लेकिन कल रात इस इमारत में रहने वाले दामले परिवार के यहां एक बच्चे का नामकरण और वारसा की पार्टी का आयोजन किया गया था. हालांकि वारसा बच्चे के पैदा होने के बारहवें दिन होता है लेकिन उन के यहां जो बच्चा था वह 3-4 महीने का दिखाई पड़ रहा था. वह बच्चा कुछ बीमार सा भी लग रहा था. जब मैं ने उस बच्चे को करीब से देखने की कोशिश की तो उस की मां ने यह कह कर मना कर दिया था कि छूने से बच्चे को संक्रमण हो सकता है.

डाक्टर माने से दामले का फ्लैट नंबर मालूम कर के पुलिस उस के यहां पहुंच गई. कालबेल बजाने पर एक महिला ने अपनी आंखें मलते हुए दरवाजा खोला तो वह महिला पुलिस को देख कर घबराते हुए बोली, ‘‘कहिए, क्या बात है?’’

‘‘माफ करना मैडम, हम ने सुबहसुबह आप को तकलीफ दी. दरअसल हम लोग एक बच्ची ढूंढ रहे हैं, जो कल सुबह सीएसटी रेलवे स्टेशन से चोरी हो गई थी. हमें खबर मिली कि उस बच्ची को इसी कालोनी में एक औरत ले कर आई है.’’ महिला कांस्टेबल ने उस से कहा.

इस से पहले कि वह महिला कुछ जवाब देती तब तक फ्लैट में से ही एक आदमी निकल कर वहां आ गया. वह बोला, ‘‘बच्ची के विषय में हम लोग कुछ नहीं जानते. हमारे घर में एक छोटा सा लड़का है. जो अभी 12 दिन का हुआ है.’’

वह आदमी उस महिला का पति था.

‘‘आप बच्चे को हमें दिखा सकते हैं?’’ इंसपेक्टर माणिक साठे ने कहा.

यह सुन कर महिला का चेहरा सफेद पड़ गया. लेकिन उस के पति ने कह दिया, ‘‘ठीक है आप उस बच्चे को शौक से देख सकते हैं.’’ कहते हुए वह व्यक्ति पुलिस को फ्लैट के अंदर ले गया. महिला कांस्टेबल ने जब बच्चे को देखा और उस का डायपर हटाया तो वह हैरान रह गई क्योंकि वह बच्चा नहीं बल्कि बच्ची थी और वह भी 12 दिन की नहीं बल्कि 3-4 महीने की थी. साथ में खड़े अब्दुल करीम शेख ने उस बच्ची को पहचानते हुए कहा, ‘‘यही मेरी बच्ची है साहब.’’

पुलिस का यह औपरेशन सफल रहा.  पुलिस टीम भी खुश हो गई. 24 घंटों के अंदर ही बच्ची मिल गई थी. अब उस महिला से कुछ बोलते नहीं बन रहा था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. उस ने अपना नाम कल्पना परमार आशुतोष दामले बताया. उसे गिरफ्तार कर के पुलिस थाने ले आई. औपरेशन सफल होने की जानकारी कमिश्नर मधुकर पांडेय को दी गई तो वह भी थाने आ गए. कल्पना परमार को मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के 7 दिन के रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान पता चला कि कल्पना परमार ने अपना दांपत्य जीवन बचाने और अपना सच छिपाने के लिए ही बच्ची चोरी करने जैसा जघन्य अपराध किया था. उस की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार से थी:

39 वर्षीय कल्पना परमार एक साधारण और सभ्य महिला थी. समाज में उस के परिवार की अच्छी प्रतिष्ठा थी. कल्पना के हाईस्कूल पास करते ही मातापिता ने अपने ही समाज के एक युवक के साथ उस का विवाह कर दिया था. अपने भविष्य के सारे सपनों को आंचल में समेट कर कल्पना अपनी ससुराल चली गई. ससुराल में वह काफी खुश थी क्योंकि वहां उसे किसी तरह की कोई चिंता नहीं थी. पति की अच्छी नौकरी थी, इसलिए उस का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से चल रहा था. समय के साथ वह एक बेटे की मां भी बन गई. बेटे के जन्म के बाद परिवार में खुशी और बढ़ गई. लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. कुछ दिनों बाद ही उस के परिवार में विवाद शुरू हो गया.

इस की वजह यह थी कि कल्पना अब और बच्चा नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने ससुराल वालों को बिना बताए अपनी नसबंदी करवा ली. पति और सासससुर को जब यह पता चला तो उन्हें कल्पना की यह बात अच्छी नहीं लगी. इसी बात पर घर में विवाद रहने लगा. आखिरकार परिवारिक झगड़ा इतना बढ़ गया कि पति ने कल्पना को तलाक दे दिया. तलाक के बाद कल्पना मायके आ गई. कुछ दिनों बाद उस की मुलाकात आशुतोष दामले से मुंबई के एक अस्पताल में हुई थी. कल्पना उस अस्पताल में अपनी दवा लेने जाती थी. आशुतोष दामले उस अस्पताल में पर्यवेक्षक था. आशुतोष दामले अपने मातापिता और भाईबहन के साथ मुंबई के सायन इलाके में रहता था. उस की कहानी भी कल्पना जैसी ही थी.

उस का भी पत्नी से तलाक हो चुका था. पत्नी उसे छोड़ कर अपने मायके में रह रही थी. कल्पना परमार जब भी दवा लेने अस्पताल जाती तो आशुतोष दामले उस की काफी मदद करता और उस से सहानुभूति दिखाता था. उस की इसी आदत से कल्पना प्रभावित हो गई और उन के बीच दोस्ती हो गई. इसलिए उन की मुलाकातें बढ़ती गईं. यह दोस्ती प्यार में बदल गई. फिर वे साथसाथ घूमतेफिरते और मौजमस्ती करते. बात यहां तक पहुंच गई कि एक दिन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. जब दोनों ने शादी की बात अपने घरवालों को बताई तो कल्पना के घरवाले इस रिश्ते से सहमत हो गए लेकिन आशुतोष के घरवालों ने मना कर दिया. पर कल्पना के प्यार में पागल आशुतोष ने अपने घरवालों की बात नहीं मानी और उस ने कल्पना के साथ कोर्ट मैरिज कर ली.

घरवालों को शादी की पता न लगे इस के लिए आशुतोष मानखुर्द उपनगर की म्हाणा कालोनी में एक फ्लैट किराए पर ले कर रहने लगा. अपने घरवालों को आशुतोष ने यह बता दिया था कि वह अधिक पैसा कमाने के लिए दूसरी जगह पार्टटाइम नौकरी करता है. समय अपनी गति से बीतता रहा. कल्पना और आशुतोष दामले का दांपत्य जीवन बड़े आराम से बीत रहा था. मगर कल्पना के प्यार भरे दांपत्य जीवन में भूकंप उस समय आया जब आशुतोष दामले ने कल्पना से अपनी बढ़ती हुई उम्र की चिंता जताते हुए बच्चे की इच्छा जताई. इतना सुन कर कल्पना एकदम से घबरा गई. क्योंकि वह अपनी नसबंदी करवा चुकी थी, जिस से वह अब कोई बच्चा पैदा नहीं कर सकती थी.

नसबंदी करवा लेने की बात उस ने आशुतोष से छिपा रखी थी. नसबंदी के कारण ही उस का पहला दांपत्य जीवन टूट गया था. इसीलिए वह डर गई थी कि नसबंदी की बात जान कर कहीं आशुतोष भी उसे तलाक न दे दे. वह दूसरी बार अपना परिवार उजड़ने देना नहीं चाहती थी. औलाद के लिए आशुतोष दामले का बढ़ता दबाव देख कर कल्पना परेशान हो गई. उस की समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह आशुतोष को यह बात कैसे बताए कि वह उस की यह इच्छा पूरी नहीं कर सकती. अब वह ऐसा उपाय तलाशने लगी कि घर में बच्चा भी आ जाए और उस का परिवार भी बचा रहे. काफी सोचनेसमझने के बाद उस ने इस समस्या के समाधान का जो रास्ता निकाला वही रास्ता उसे जुर्म तक ले गया.

एक दिन कल्पना ने पति को बता दिया कि अब उस की इच्छा पूरी होने वाली है. वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है. पत्नी के गर्भवती होने की बात जान कर आशुतोष खुश हो गया. वह कल्पना का और ज्यादा ध्यान रखने लगा. कल्पना भी समय के अनुसार अपनेआप को ढालने लगी थी. पूरे 9 महीने वह इस प्रकार से रही कि पति के अलावा आसपास वालों को भी उस पर कोई संदेह न हो. जैसेजैसे समय गुजरता जा रहा था, कल्पना अपने शरीर की बनावट भी वैसी ही कर रही थी. पेट आगे आने के लिए वह कपड़ों का सहारा ले रही थी. यह बात राज ही रहे, इस के लिए उस ने पति को अपने से दूर ही रखा. आसपास वालों को भी खुद को गर्भवती बताती थी.

बच्चे की डिलीवरी में जब कुछ दिन शेष रह गए तो अपना नाटक सफल बनाने के लिए वह चेकअप करवाने के बहाने बच्चे की तलाश में निकल जाती थी और हाल ही में जन्मे बच्चे को तलाश करती. इस बारे में उस ने 1-2 नर्सों से भी बात की. जब वहां बात नहीं बनी तो वह मुंबई के उन अनाथालयों में गई, जहां से बच्चे गोद लिए जाते थे. वहां उसे नवजात शिशु मिल तो रहे थे लेकिन उन के गोद लेने की प्रक्रिया जटिल थी. प्रक्रिया देख कर उस की हिम्मत पस्त हो गई. इस के बाद कल्पना ने उन महिलाओं से संपर्क किया, जो रेलवे स्टेशनों और सार्वजनिक जगहों पर बैठ कर छोटे बच्चे को ले कर भीख मांगती थीं. उन महिलाओं से उस ने बात की तो उन्होंने भी उसे अपना बच्चा देने से मना कर दिया.

उस की तथाकथित डिलीवरी का समय पूरा हो चुका था लेकिन अभी तक बच्चे के बारे में उस की किसी से बात नहीं बन पाई. वह परेशान हो गई कि अब वह पति को बच्चा कहां से ला कर देगी. कहीं से कोई बच्चा मिलता न देख आखिरकार उस ने कोई नवजात शिशु चोरी करने की योजना बनाई. उस ने सोचा कि कहीं न कहीं से उसे कोई नवजात मिल जाएगा तो वह किसी तरह उसे चुरा कर ले जाएगी. एक दिन वह घर से अस्पताल जाने को कह कर घर से निकल गई. पति अपनी ड्यूटी पर निकल गया. कल्पना ने उस दिन पति को फोन कर के यह खुशखबरी दे दी कि उस ने एक लड़के को जन्म दिया है.

बेटा पैदा होने की खबर पा कर आशुतोष दामले बहुत खुश हुआ. लेकिन उस दिन आशुतोष दामले का यह दुर्भाग्य ही था कि एक इमरजेंसी केस में 24 घंटे की ड्यूटी लग जाने की वजह से अपने बच्चे को देखने के लिए नहीं जा सका. अगले दिन वह पत्नी द्वारा बताए अस्पताल पहुंचा तो कल्पना उसे उस अस्पताल के बाहर ही मिल गई. पति को उस ने बताया कि बच्चा किसी खतरनाक बीमारी से ग्रस्त है. इसलिए डाक्टरों ने उसे 10-12 दिनों के लिए किसी दूसरे अस्पताल में भेज दिया है. डिलीवरी नार्मल हुई थी. इसलिए डाक्टरों ने उसे डिस्चार्ज कर घर जाने के लिए कह दिया. सीधेसाधे आशुतोष ने कल्पना की बातों पर विश्वास कर लिया और पत्नी के साथ घर लौट आया. अपने कामों में व्यस्त होने के कारण आशुतोष ने बच्चे का सारा काम पत्नी पर ही छोड़ दिया था.

इसी बीच कल्पना को बच्चे की व्यवस्था करनी थी. यह उस के लिए बड़ी ही मुश्किल घड़ी थी. बच्चा कहां से लाए यह समस्या उस के सामने अब भी खड़ी थी. अगर इन 10-12 दिनों में बच्चे का बंदोबस्त नहीं हुआ तब वह क्या करेगी. आखिरकार धीरेधीरे वह समय भी नजदीक आ गया, जब उसे बच्चा घर लाना था. उस दिन वह सुबहसुबह पति के साथ ही घर से बाहर निकली. बच्चा चोरी करने के इरादे से पहले वह विरार के एक मंदिर गई. लेकिन वहां भीड़भाड़ को देख कर वह घबरा गई. वहां अपनी दाल गलते हुए न देख वह विरार से सीधे ट्रेन पकड़ कर मुंबई के चर्चगेट स्टेशन आ गई. वहां से टैक्सी की और सीएसटी रेलवे स्टेशन पहुंच गई. अब तक काफी रात हो गई थी. लेकिन यहां भी उस की हिम्मत फेल हो गई थी.

अपने वादे के मुताबिक कल्पना को सुबह बच्चा ले कर घर पहुंचना था. परेशान कल्पना थक कर मुसाफिरखाने में खाली पड़ी एक बेंच पर बैठ गई. उसी बेंच पर कुछ समय बाद एक महिला और एक पुरुष आ कर बैठ गए. उस महिला ने कल्पना का उदास चेहरा देखा तो उस से बातचीत शुरू कर दी. उस ने कल्पना को अपना नाम सुनंदा और साथ में आए युवक को अपना देवर बताया था. सुनंदा पर विश्वास हो जाने के बाद कल्पना ने उसे अपनी दुखभरी कहानी सुना दी. उस की कहानी सुन कर उस महिला ने इधरउधर देखा. और निडर भाव में कहा, ‘‘देख तेरे सामने ही एक सुंदर सी बच्ची सोई हुई है. उस की मां तो जैसे घोड़े बेच कर सो रही है.

जा, उसे उठा ले और ले कर निकल जा. अगर तेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है तो मुझे बता. मैं तेरी मदद कर दूंगी. लेकिन इस के बदले में तू मुझे क्या देगी? मुझे कोलकाता जाना है.’’

वह 4 महीने की बच्ची अब्दुल करीम शेख की थी जो अपनी मां रुखसाना के बगल में सो रही थी. कोई नवजात न मिलने पर कल्पना उस बच्ची को ही ले जाने के लिए तैयार हो गई. सुनंदा की यह बात सुन कर कल्पना कुछ समय तक खामोश रही. फिर बताया कि उस के पास इस समय सिर्फ 15 हजार रुपए हैं. सुनंदा ने कल्पना से वह 15 हजार रुपए लिए और इधरउधर देख कर रुखसाना की 4 माह की बच्ची को उठा कर उस की गोदी में डाल कर कहा, ‘‘अब तू जल्दी निकल जा यहां से. मैं भी निकलती हूं. मेरी ट्रेन जाने वाली है.’’

कल्पना बच्ची को गोदी में छिपा कर सीएसटी स्टेशन के मैन गेट से निकल कर टैक्सी द्वारा अपने घर पहुंच गई. सुनंदा नामक औरत अपने देवर के साथ दूसरे गेट से चली गई थी. कल्पना जिस समय बच्चे को ले कर घर पहुंची उस समय उस का पति आशुतोष दामले घर पर ही था. वह कल्पना को देख कर काफी खुश हुआ था. बच्चे के घर आने की खुशी में आशुतोष ने उस दिन छुट्टी ले रखी थी और रात को बड़ी धूमधाम से बच्चे का वारसा और नामकरण की पार्टी का आयोजन किया. उस पार्टी में उस ने अपने जानपहचान वालों को भी बुलाया था. उस कार्यक्रम में उसी बिल्डिंग में रहने वाले डाक्टर माने का भी परिवार आया था.

कल्पना का सच तो सामने आ गया. लेकिन पुलिस को यह पता नहीं लग सका कि सुनंदा नाम की महिला जिस ने बच्ची चुरा कर दी थी वह कहां की रहने वाली है. कल्पना से पूछताछ के बाद पुलिस ने सुनंदा का एक स्कैच तैयार करवा कर मुंबई तथा कोलकाता में सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए हैं ताकि उस के बारे में सुराग मिल सके. रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने कल्पना परमार को न्यायालय में फिर से पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस मामले में कल्पना के पति की कोई गलती नहीं थी इसलिए पुलिस ने उस के बयान ले कर उसे घर भेज दिया.

कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद पुलिस ने बच्ची उस के मांबाप को सुपुर्द कर दी. सुनंदा का अभी तक कोई पता नहीं चल सका. मामले की तफ्तीश सीनियर पुलिस इंसपेक्टर शिवाजी शिंदे कर रहे हैं. Mumbai Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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